रंग बिरंगी छवि
रंग बिरंगी छवि
🎨 रंग-बिरंगी छवि 🎨 😛 एक ताज़ा-तड़कता हास्य–व्यंग्य 😛 ✍️ श्री हरि 🗓️ 23.11.2025 हमारी कॉलोनी में अभी कुछ दिन पहले ही एक नई भाभी आई हैं—नाम है छवि। यथा नाम तथा गुण! उनकी छवि तो मनमोहक है ही, पर मिज़ाज? अरे भैया, मिज़ाज ऐसा कि गिरगिट भी इनसे ट्यूशन लेने आया करे। दिन में जितने रंग छवि भाभी बदलती हैं, उतने रंग तो गिरगिट अपनी जीवन भर की परीक्षा में भी नहीं बदल पाता। इसीलिए कॉलोनी वालों ने प्यार से उनका नाम रख दिया— “रंग-बिरंगी छवि भाभी।” सुबह 7 बजे — हल्दी जैसा पीला मूड “सूरज इतनी जल्दी क्यों उगता है? उसके बीवी-बच्चे नहीं हैं क्या? दुनिया मेरी नींद की दुश्मन क्यों है?” सूरज बेचारा दूर से सुनकर भी शरमा गया। 8 बजे — सिंदूरी लाल मूड पति ने वार्डरोब खोली—एक भी शर्ट इस्त्री की हुई नहीं! छवि भाभी ने रजाई में लिपटे-लिपटे ही सिंदूरी मूड में गरज कर कहा— “जो भी कमीज़ मिल जाए, उसे इस्त्री करके पहन लो, मैं नहीं करने वाली!” और धम्म से रजाई ओढ़कर फिर सो गईं। 10 बजे — गुलाबी डिजिटल मूड पति ऑफिस पहुँचे, तब छवि भाभी बिस्तर से बाहर। अब शुरू होता है सोशल मीडिया का रासलीला! व्हाट्सऐप पर पप्पी को किस करती फोटो डालकर स्टेटस लिखा— “माई लव, माई पपी… सभी प्राणी प्रेम हैं, मुस्कुराइए…” जबकि दो घंटे पहले ही पड़ोसन पर चिल्लाकर बर्तन तक बजा आई थीं। दोपहर 1 बजे — कोयले जैसा काला मूड “गैस खत्म! बिल्ली ने दूध गिरा दिया! ऊपर वाली दिव्य-देवी फिर झाड़ू पटक रही है! मुझसे कोई बात मत करो!” पूरी रसोई का तापमान 120 डिग्री। 3 बजे — समुद्री नीला दार्शनिक मूड “जीवन अनित्य है… कपड़े खुद ही सूख जाएंगे… मन शांत रखो…” पर दो मिनट बाद वही मन कॉलोनी के बच्चों पर भौंक रहा था— “कितनी बार कहा है मेरी खिड़की पर गेंद मत मारो!” 6 बजे — हरा ताज़गी वाला किट्टी मूड किट्टी पार्टी की घंटी बजी और छवि भाभी चमत्कारिक रूप से हरी-हरी हो गईं। “अरे हाय-हाय! कैसी हो? तुम तो बिल्कुल नहीं बदलती! मैं तो बस हल्का-सा थक गई थी!” और हम सोचते रह गए— “हल्का-सा?” सुबह से मौसम विभाग की तरह सात बार अपडेट आ चुके थे! 9 बजे — जामुनी रहस्यमयी मूड पति ने हिम्मत करके पूछा— “आज खाना क्या है?” छवि भाभी ने आँखें तरेरकर कहा— “आज तुम अनुमान लगाओ… और अगर सही न निकला तो कल से अपना खाना खुद बनाओ।” पति देव का रंग तुरंत फीका पड़ गया। 11 बजे — सफेद शांत ‘आध्यात्मिक’ मूड स्टेटस: “मैं सरल, शांत, स्थिर आत्मा हूँ…” आत्मा भले स्थिर हो, चेहरा तो रंग-बिरंगे ट्रैफिक सिग्नल की तरह हर घंटे बदलता रहा! कॉलोनी वाले अब उनका असली नाम भूलकर प्यार से पुकारते हैं— “अरी, रंग-बिरंगी छवि भाभी… आज कौन-सा मौसम चला रही हो?” कहने का सार यही— जहाँ मौसम विभाग सप्ताह में तीन बार बदलता है, वहाँ रंग-बिरंगी छवि भाभी एक घंटे में तीन बार बदल जाती हैं। इसलिए हम मोहल्ले वाले अब उनसे बात करने जाते हैं तो— छाता, रेनकोट, स्वेटर, सनस्क्रीन— सब साथ लेकर जाते हैं। क्योंकि छवि भाभी की रंग-बिरंगी छवि से कौन, कब, कहाँ टकरा जाए— ये तो ब्रह्मा जी भी न बता पाए! 😄🎨
