बरसात
बरसात
☔ बरसात : रोमांस भी, कहर भी ☔
🤪 एक हास्य व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 18.12.2025
बरसात भी बड़ी अजीब चीज है—
किसी का दिल धड़का देती है,
तो किसी की जान ले लेती है।
लोग टकटकी लगाए आसमान देखते हैं
और इंतजार करते हैं मीठी फुहारों का,
लेकिन झुग्गी-झोपड़ी वाले बादल देखते ही
निगोड़ी बरसात को कोसने लग जाते हैं।
बरसात आते ही आसमान नहीं,
दिलों की छत टपकने लगती है।
यह वही मौसम है जो किसी के लिए इश्क़ का बहाना है,
तो किसी के लिए आंसुओं का सैलाब।
प्रेमी-प्रेमिका के लिए बरसात
ईश्वर का भेजा हुआ वरदान है।
दो बूंदें गिरते ही रोमांस टपकने लगता है,
दिल धड़कने लगते हैं।
हाथ अपने-आप थामे जाते हैं,
और आंखें एक-दूसरे में डूब जाती हैं।
अपनी गलियों के गड्ढे उन्हें रोमांच लगने लगते हैं।
लड़का सोचता है—“भीग जाऊँगा, पर जैकेट उसे दे दूँगा।”
लड़की सोचती है—“इसे ज़ुकाम हो गया तो?”
वह अपने आंचल रूपी छाते में उसे समेट लेती है,
जैसे उसने कितना महान काम कर दिया।
यानी बरसात में भीगकर ही प्रेम
भक्ति रूप में जन्म लेता है।
अब आइए पति-पत्नी पर।
बरसात इनके रिश्ते की रील नहीं, रियलिटी है।
पति खिड़की से पानी गिरता देख कहता है—
“वाह! मौसम कितना सुहावना है।”
पत्नी उसी खिड़की से आती बौछारें देख कहती है—
“अब पकौड़े बनाने का हुक्म मत सुना देना,
साफ-सफाई तो मुझे ही करनी पड़ती है।
मौसम सुहावना तुम्हें लग रहा है,
बाल्टी मुझे बदलनी पड़ रही है।”
प्रेम यहाँ भी है, बस खिचखिच के बीच है—
सैंडविच की तरह।
अब बात उन बेचारे लड़के-लड़कियों की,
जिनका न कोई बॉयफ्रेंड है, न कोई गर्लफ्रेंड।
बरसात इनके लिए प्ले लिस्ट का दुःख है।
खिड़की से गिरती बूंदें उन्हें कविता लगती हैं,
और हर रोमांटिक गाना सीधे दिल पर गिरता है—
बिना छाते के।
ये लोग कहते हैं—“बरसात अच्छी है।”
असल में कहना चाहते हैं—
“कोई होता तो और अच्छी लगती।”
साजन-सजनी परदेस में हों
तो बरसात सबसे ज़्यादा निर्दयी हो जाती है।
यहाँ हर बूंद याद बनकर गिरती है।
मोबाइल पर वीडियो कॉल में
एक कहता है—“यहाँ बहुत बारिश है।”
दूसरा जवाब देता है—“यहाँ भी।”
असल में दोनों जगह आँखों में ही पानी होता है।
बरसात तब मौसम नहीं रहती,
विरह की सरकारी छुट्टी बन जाती है।
अब ज़रा समाज का वर्गीकरण देखिए—
गरीब की झोंपड़ी में बरसात
सीधे अंदर आ धमकती है, बिना दस्तक दिए,
गुंडों की तरह।
और सब कुछ तहस-नहस कर जाती है।
छत टपकती है, बिस्तर भीगता है,
और आदमी सोचता है—
“आज पानी बाहर नहीं, घर में बह रहा है।”
यहाँ बरसात कविता नहीं, कठोर व्यंग्य होती है।
और आलिशान बंगले की बरसात—ओह!
वहाँ पानी फॉल बनकर गिरता है,
और लोग कहते हैं—“नेचर कितना ब्यूटीफुल है!”
बच्चे खिड़की से बाहर देखते हैं,
पत्नी चाय का कप उठाती है,
और पति सोशल मीडिया पर लिखता है—
“Love the Monsoon!”
यहाँ बरसात एसी के तापमान जितनी नियंत्रित होती है।
बरसात में नेता-अधिकारी घर भरते हैं,
बाढ़ राहत के नाम पर,
नाली-सड़क के नाम पर—
जो हर बार बरसात में बह जाती हैं।
किसान भगवान से गुहार लगाता है—
“हे प्रभु! फसल पकने वाली है,
इस बरसात को रोक ले,
वरना अनर्थ हो जाएगा।”
प्रेमी रोमांस के सपने देखता है,
पति फरमाइशों की फेहरिस्त बनाता है,
और पत्नी बरसात को कोसने बैठ जाती है।
अकेला इंसान गाने लगता है—
“जब याद की बदली छाती है,
तब आँख मेरी भर आती है।”
गरीब बाल्टी से घर का पानी बाहर फेंकता है,
और अमीर फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है—
“Lovely Monsoon!”
यही तो बरसात की असली शरारत है—
वह सब पर एक सी गिरती है,
पर सबको महसूस अलग-अलग होती है।
और जाते-जाते एक आख़िरी छींटा मारकर
हँसते हुए कह जाती है—
☁️ “मैं तो तुम्हारा जीवन हूँ,
तुम्हें जीना सिखाने आई हूँ।” ☁️

