गीतों भरी कहानी
गीतों भरी कहानी
सिद्धार्थ जब भी घर आते तो मेघा अजीब सी परेशान हो जाती । कुछ अस्त व्यस्त सी बड़ी अनमनी सी । पानी का गिलास सिद्धार्थ के बजाए पापा को पकड़ाने चली जाती और किताब काॅपी किचन में रख देती और जाकर कोने में खड़ी हो जाती । फिर उसके पापा आवाज़ लगाते तब आकर बैठती । कभी कभी नजरें उठाकर देखती और निगाहें मिलते ही डर जाती और कलेजा धक से कर जाता । झट से कमरे से निकल कर दीदी के कमरे में आकर बैठ जाती ।उस दिन भी यही सब हुआ । तभी रेडियो पर सैनिक भाइयों के लिए गीतों का कार्यक्रम शुरू हुआ । पहला गाना था - "आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहें देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा .....!" न जाने क्या सूझा उसने रेडियो का वाल्यूम तेज कर दिया और ड्राइंग रूम में जाकर बैठ गई । सिद्धार्थ ने एक बार नजरें उठाई और फिर अपने काम में लग गए लेकिन एक मीठी सी मुस्कान आ गई थी उनके चेहरे पर जिसे महसूस करके मेघा झेंप गई । हालांकि उसने जानबूझकर ही आवाज तेज की थी सिद्धार्थ को सुनाने के लिए ही । शायद सिद्धार्थ को भी शरारत सूझी और झट से उठ खड़े हुए और बोले - "अच्छा तो अब चलते हैं ......।" मेघा तड़प गई उसने कहा फिर कब आएंगे ? सिद्धार्थ ने गुस्से में कहा "अब कभी नहीं आऊंगा तुम बहुत डिस्टर्ब करती हो । यहां मैं चैन से पढ़ने के लिए आता हूं और तुम हो कि मुझे डिस्टर्ब करती रहती हो ।" मेघा रोनी सूरत बना कर पेन उठा लिया । सिद्धार्थ अपना पेन किसी को नहीं देते और ना ही छोड़ कर जा सकते थें । तभी मेघा के अंतर्मन में गाना चलने लगा - अभी न जाओ छोड़ कर , के दिल अभी भरा नहीं । अभी अभी तो आए हो प्यार बन के छाएं हो ये दिल अभी संभला नहीं .....। सिद्धार्थ ने गुस्से में देखा जैसे - "तुम कहोगी यही सदा कि दिल अभी भरा नहीं !" डोर बेल बजने लगा । मेघा ने जाकर दरवाजा खोला तो खुशी के मारे उछल पड़ी उसकी बड़ी दीदी और जीजू खड़े थे । दीदी से गले मिलकर फिर अंदर के कमरे में ले गई । सिद्धार्थ से किसी ने कोई बात नहीं की वो जाने को हुआ तभी मेघा के पापा ने कहा "सिद्धार्थ जी आप अपनी पढ़ाई पूरी कर के जाईए । अंदर गपशप चलता रहेगा लेकिन आपकी पढ़ाई रूकनी नहीं चाहिए । मैं यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूंगा । " सिद्धार्थ रूक गए और वापस टेबल पर आकर अपना काम शुरू कर दिया । बीच बीच में अंदर से मेघा की खनकती हंसी सुनाई पड़ रही थी । सिद्धार्थ को बुरी नहीं लगती है मेघा लेकिन हर रोज कोई न कोई ऐसी हरकत कर बैठती है जिससे सिद्धार्थ बूरी तरह चिढ़ जाते हैं । अभी आधा घंटा ही गुजरा था कि अचानक बादल गरजने लगें बिजली कड़कने लगी । बहुत जोरदार गड़गड़ाहट की आवाज आने लगी और बिजली गुल हो गई । सिद्धार्थ ने सर पकड़ लिया । चुलबुली सी मेघा एक किरोसीन लैंप लेकर आई और फरमान जारी किया "बहुत तेज बारिश आ रही है चुपचाप यहां बैठकर काम कीजिए घर जाने की जरूरत नहीं है । आज खाना मैं बना रही हूं आपको खाना पड़ेगा ।" सिद्धार्थ ने कहा "ना बाबा ना तुम्हारे हाथ का खाना खाने से उपवास कर लेना अच्छा है । शेखचिल्ली बिल्ली चूहे का कीमा और कॉकरोच के पकौड़े खिलाओगी । मैं तो चला अपने घर । मां के हाथों से नरम गरम रोटी सब्जी खाकर चैन से सो जाऊंगा । " मेघा पांव पटकती अंदर आ गई और भुनभुनाने लगी कि "एक दिन पक्का चूहे से कटवा दूंगी और कॉकरोच शर्ट में डाल दूंगी तब मजा आएगा ।" शरारती ख्याल आते ही चेहरा खिल गया और दौड़ कर ड्राइंगरुम में आई तब तक सिद्धार्थ जा चुके थे । जीजू ने मेघा को छेड़ते हुए कहा कि "चलो विभा हम वापस चलें जाते हैं यहां मेरी कोई कद्र ही नहीं है । अब तो पड़ोसी पड़ोसी की आंख-मिचौली हो रही है । " मेघा नकली गुस्सा दिखाते हुए घूरने लगी - "जाइए आप कहां जाएंगे ... दूर तक आपके पीछे पीछे मेरी आवाज़ चली आएगी ...!" जीजू ने भी पासा फेंका - "हम तो तेरे आशिक है सदियों पुराने चाहें तू माने चाहें न माने ...!" अब अम्मा की बारी थी । चलों सब लोग खाना खाओ । इतना लम्बा सफ़र तय करके आएं हैं जल्दी खाना खाकर सो जाओ । कल करना जी भरकर बातें ।
विभा मां की आज्ञाकारी बेटी झट से उठकर रसोई में पहुंच गई । रमा ने थाली लगा ली थी फिर सब लोगों ने खाना खाया । बिजली आ गई बारिश थम गई । सभी अपने-अपने कमरे में सोने चले गए । मेघा ने भी तकिया लिया और चादर तानकर सोने की कोशिश करने लगी लेकिन नींद उसके आंखों से कोसों दूर चली गई । दूर बहुत दूर से धीमे-धीमे स्वर में एक गीत सुनाई देने लगा - "सावन के झूले पड़े , तुम चले आओ तुम चले आओ तुम चले आओ ...!" मेघा सोचने लगी कि सावन तो सचमुच आया है दीदी और जीजू भी आएं हैं तीज का त्यौहार मनाना है अच्छा है कल झूले डलवा लूंगी । फिर हम सब खूब झूलेंगे और सिद्धार्थ के चेहरा आंखों में कौंध गया । नींद तो उड़ चुकी थी । बार बार करवटें बदलने से रमा भी सो नहीं पा रही थी उसने गाल पर दो चपत लगाई उलाहना देते हुए की "तुम तो सोती रहोगी देर तक अपनी नींद पूरी कर लोगी लेकिन मुझे तो 5 बजे उठना है । चुपचाप एक करवट सो जा नहीं तो छत पर चली जा ।" मेघा ने शैतानी से देखते हुए कहा कल पक्का छत पर जाकर सो जाऊंगी और उठाकर लाने के सिद्धार्थ को भेज देना और मुंह दाब कर हंसने लगी अबकी रमा ने तीर चार झापड़ जमा दिए । "नालायक , बदतमीज ढीठ कहीं की, देख कल से सिद्धार्थ का आना ही बंद करवा देती हूं । पापा को बता दूंगी तुम्हारे इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहें हैं । कल होकर कोई कांड कर दो तो बेचारा शरीफ़ इंसान बेमौत मर जाएगा ।" मेघा ने रमा के मुंह पर हाथ रख दिया मत बोलो मत बोलो ... "सिद्धार्थ को मत मारो । मैं कुछ नहीं करूंगी । मुझे भी पापा का डर है मां का डर है और जीजू तो ऐसे ही बहुत जलते हैं सिद्धार्थ से । सॉरी, मत कहना किसी से कुछ , मैं बिल्कुल बात नहीं करूंगी सिद्धार्थ से । बस देखा करूंगी "चोरी-चोरी चुपके-चुपके कोई आएं मन में बसें , बस के रहें तो भला हम क्या करें ..!" रमा सो गई सारा दिन काम करके थक गई थी ।
मेघा को काम धंधा तो कुछ आता-जाता नहीं है बस बकवास , शैतानी और शरारतों में महारथ हासिल है । मेघा ने धीरे से रमा का हाथ अपने हाथों में ले लिया और आंखें मूंद ली - "तुम आ गए हो तो नूर आ गया है नहीं तो चिरागों से लौ जा रही थी .. तुम्ही से जीने की वजह मिल गई है ।". गुनगुनाते गुनगुनाते मेघा भी सो गई । सुबह घर के सभी लोग गार्डन में चाय की चुस्की ले रहे थे और मेघा सपनों की दुनिया में अठखेलियां खेल रही थी । जब साढ़े आठ बजा तो विभा ने जगाया मेघा हड़बड़ा कर उठी अरे मुझे किसी ने जगाया क्यों नहीं ? मुझे मार्निंग वाक पर जाना था । कोई बात नहीं साली साहिबा हम इवनिंग वाक पर चलेंगे गोलगप्पे भी खाएंगे और कुल्फी भी चख लेंगे बोलते हुए गौरव जी दरवाजे तक आ गए । कमरे के अंदर आने की इजाजत घर के दामाद को भी नहीं थी और दामाद जी घर के नियम कायदे कानून और अनुशासन का सम्मान करते थे इसलिए बोल कर वापस अपने कमरे में चले गए । मेघा उठकर जीजू के पास गई और कहा पक्का न शाम को हम सब चलेंगे न ? हां भाई हां पक्का चलेंगे लेकिन तुम सिद्धार्थ को मत लटकाना । "कौन सिद्धार्थ ? कहां का सिद्धार्थ ? कब आया ? कहां हैं ? एक लगातार इतने सारे बकवास और वो भी भोली सूरत बना कर ।" विभा ने कहा चुप कर नाटकबाज । चल जा जल्दी से तैयार हो जा फिर हम सब मार्केट जाएंगे । तीज का सामान लाना है और तुम दोनों बहनों के कपड़े भी । मां पापा और गोलू-मोलू के कपड़े तो सासूमां ने भेजे हैं लेकिन तुम दोनों के लिए कहा है कि तुम्हारे पसंद का लूं इसलिए चलो मार्केट चलें । " आधे घंटे में सब तैयार होकर चली गई । नियत समय पर सिद्धार्थ आएं और आते ही अपने टेबल पर किताब कॉपी खोल कर बैठ गए । भारद्वाज साहब ने पानी लाकर दिया सिद्धार्थ एकदम से हड़बड़ा गए , सर आप आप क्यों पानी लेकर आएं ? मेघा रमा विभा सबके सब कहां हैं ? भारद्वाज साहब ने कहा सब लोग मार्केट गए हैं । बिटिया आई है पहला तीज है तो खूब धूमधाम से मनाया जाना है उसकी तैयारी के लिए सब गए हैं । इतना कह कर भारद्वाज साहब किचन में आकर चाय बनाने लगे । पहले शक्कर का डब्बा खोलने की कोशिश में गिर गया शक्कर फैल गया जोर की आवाज आई तो सिद्धार्थ अंदर आए और डब्बा उठाया फिर कहा "सर आप बैठिए आज मैं चाय बनाता हूं । " भारद्वाज साहब ने कहा चलो ठीक है बेटा दो प्याली चाय बना लो । सुकून से चाय पी ली जाए फिर तुफ़ान एक्सप्रेस आएगी तब दो घंटे तक चख-चख जारी रहेगा । सिद्धार्थ बड़े हौले से मुस्काए और चाय छानने लगे । दो कप के बाद भी थोड़ी सी चाय बच गई थी । तभी तुफ़ान मेल का इमरजेंसी लैंडिंग हुई और किया धमाका "वाह वाह वाह बहुत खूब कहा है दाने दाने पर लिखा है खाने वाले नहीं नहीं प्याले प्याले पर लिखा है पीने वाले का नाम । अब बची हुई चाय तीसरे प्याली में डालिए और अदब से मेरे पास लाइए । अभी मैं सिद्धार्थ शर्मा हूं और आप मेघा भारद्वाज । " और सचमुच सिद्धार्थ के कुर्सी पर बैठ गई । पापा ने पूछा तुम अकेली कैसे आई बाकी सब कहां हैं ? ऐसा है कि चाय की खुशबू मुझे खींच कर ले आई और उन लोगों को दूर बहुत दूर ढकेल दी क्योंकि वो सब बड़े खास लोग हैं अच्छी सी चाय पीते हैं और मैं तो रद्दी सी सडी हुई बेकार चाय पीने वाली सो चाय पीने आ गई मुझे खबर मिली कि आज शर्मा जी स्पेशल थर्ड क्लास चाय बनाने वाले हैं सो टपक पड़ी । सिद्धार्थ तीन प्याली चाय लेकर ड्राइंगरुम में दाखिल हुए और बड़े अदब से बेगम के खिदमत में पेश किया । भारद्वाज साहब को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा मगर इग्नोर किया और बासी अखबार ही उलटने पलटने लगे । चाय पीकर मेघा ने कहा सॉरी , कान पकड़कर सॉरी और भोली सूरत बना कर फर्श पर बैठ गई । सिद्धार्थ के सामने । सिद्धार्थ ने झिरकते हुए कहा चलो हो गया , नाटक मत फैलाओ । बर्तन भांडी धो झाड़ू पोंछा कर लो । तुम्हारे जीजू आए हैं उनकी खातिरदारी का इंतजाम करो । नहीं मुझे कुछ नहीं आता है । "आप सीखा देंगे तब सीख लूंगी फिर अगली बार बनाऊंगी । " मेघा इधर आओ , सिद्धार्थ को पढ़ाई करने दो । पांव पटकती हुई मेघा अंदर आ गई और रेडियो खोल दिया - "ना तुम हमें जानो ना हम तुम्हें जाने , मगर लगता है मेरा हमदम मिल गया .... ये होंठों पे बात चुप है , खामोशी सुनाने लगी है दिल की दास्तां ....ना तुम हमें जानो , ना हम तुम्हें जाने मगर लगता है ...। " सच्ची मुच्ची ??? क्या सिद्धार्थ ने पूछा तो मेघा झेंप गई । मतलब सिद्धार्थ पढ़ाई नहीं कर रहे थे उनका ध्यान अंदर की तरफ ही था । भारद्वाज साहब ने रेडियो बंद कर दिया । मेघा जल भुन कर सिद्धार्थ के पास शिकायत करने चली गई । सिद्धार्थ को भी उसका इंतजार था । उन्होंने झट से एक कॉपी दे दी और कहा दो पेज का नोट्स तुम कॉपी पर लिख दो । मेघा की तो बांछे खिल गई । सिद्धार्थ के करीब बैठने का मौका जो मिल गया । एकदम शराफ़त दर्शाते हुए बैठ गई और लिखने लगी । लिखते लिखते नज़र उठाकर देख लेती और फिर लिखने लगती - "बैठ मेरे पास तुझे देखती रहूं , तू कुछ कहे ना मैं कुछ कहूं । बैठ मेरे पास तुझे देखती रहूं ... ।" न जाने क्यों मेघा गंभीर हो गई ।
दूसरे दिन तीज का त्यौहार था । सबने मिलकर खूब तैयारियां की झूले लगाए गए , पकवान बनाए गए , मेंहदी रचाई जा रही थी । अम्मा , विभा और मेघा के हाथों में लग गई थी । रमा किचन में चाय पकौड़े और समोसे में उलझी
हुई थी । भारद्वाज साहब पंडित जी को निमंत्रण देने गए थें । सिद्धार्थ ने सोचा रमा की मदद कर दी जाए । लेकिन रमा बहुत फुर्ती से सब बना कर लगा दिया लॉन में सभी पहुंच कर खूब आनन्द से खाए पिए । रात हो गई थी सिद्धार्थ को घर जाना था उन्होंने अपना किताब कॉपी समेटा पेन जेब में डाला और चलने को हुआ , मेघा ने पेन झपट लिया कहने लगी रूक जाईए ना थोड़ी देर । सिद्धार्थ ने कहा आज नहीं कल रूक जाऊंगा तुम तीज करने वाली हो न ? मैं कल देखूंगा तुम्हारा पूजा पाठ सजना संवरना । कभी तो लगो जैसे कोई सभ्य शिष्ट सुशील नारी हो ? अच्छा तो क्या मैं असभ्य हूं बदतमीज हूं शैतान हूं ?????
"नहीं मेरी दादी अम्मा, तुम तो साक्षात देवी हो, क्षमा करो माते और मुझे आज्ञा दो !" घर जाने दो मां राह देखती होंगी । ओह , सॉरी आप जाइए जल्दी से । कल के लिए बोल कर आइएगा प्लीज़ । सिद्धार्थ ने संक्षिप्त उतर दिया "ओके "और बिना देखे चल पड़े । दूर तक मेघा देखती रही पूरी गली पार करके जब गेट खोलकर बाहर निकले और फिर मुंड कर गेट बंद किया तब तक निहारती रही ।
दूसरे दिन सबसे पहले मेघा जगी और सभी के लिए मसालेदार चाय बनाई सभी साथ बैठ कर पी रहे थे । अचानक मेघा की नजर हरश्रृंगार के पेड़ के नीचे गिरे हुए फूलों पर पड़ी दो फूल थे । बेइंतहा खुशी हुई क्योंकि हरश्रृंगार के फूल खिलने का मौसम खत्म हो चुका था । सावन में कभी नहीं खिलता है मगर आज अचानक खिला । सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए फिर सभी लोग अपने अपने काम में व्यस्त हो गए । शाम हुई झूले डाल दिए गए माली आकर बेला के फूलों से सजा दिया था । विभा को दुल्हन की तरह सजाया गया यह उसका पहला तीज का व्रत था । रमा और मेघा ने भी नये कपड़े पहनकर तैयार थी । मेंहदी तो सभी को लगाई गई थी । पंडित जी आए पूजा शुरू हुई लगभग दो घंटे लग गए । मेघा का मन पूजा में बिल्कुल नहीं लग रहा था । "ओ आने वाले आ , तू देर न लगा हर आहट पे धड़के दीवाना दिल मेरा ..... ओ आने वाले आ ......!" न जाने क्यों नहीं आया अभी तक ।
अब तो "इंतहा हो गई मेरे इंतजार की , आई ना कुछ खबर मेरे यार की ...!"
पूजा सम्पन्न हुई ,आरती भी हो गई । अब सबसे पहले भारद्वाज साहब और लता जी को झूले पर बिठाया गया । पचपन के उम्र में भी लता जी बेहद खूबसूरत लग रही थी । पूरी तरह सफेद बालों के बीच दो किलोमीटर लम्बा हाई वे बना रखा था सुर्ख लाल सिंदूर से । उसपर से हया की लाली उनके झुर्रिदार चेहरे पर एक अलग ही नारंगी आभा बिखेर रही थी । ढलता सूरज की आखिरी किरणों ने उन्हें अधिक अलंकृत कर दिया था । मेघा ने धर धर दस बारह फोटो निकाल लिए । अब विभा और दामाद जी की बारी थी । मेघा ने गाना बदल दिया - "ले तो आए हो मुझे सपनों के गांव में प्यार की छांव में बिठाए रखना सजना .. ओ स ज ना आ आ आ .......! " शाम ढलने को आई रमा और मेघा को झूलना था मगर मेघा को तो इंतजार था किसी का .....। "लो आ गई उनकी याद , वो नहीं आए .....!" बेमन से लगभग जबरदस्ती मेघा रमा के साथ झूले पर बैठी और इतनी लम्बी पेंगे मारी की झूला दूसरे पेड़ से टकराते हुए पलट गया रस्सी टूट गई और दोनों बहनें धम्म से नीचे गिर गई । आवाज़ बड़ी जोर की आई सब लोग दौड़ कर पहुंचे । दोनों बहनों को उठाकर देखा गया । कुछ खास चोट दिखाई नहीं दे रही थी मगर मेघा जोर जोर से रो रही थी शायद गुम चोट हो दूसरे दिन उजागर होगा । विभा ने दूध हल्दी गर्म करके ले आई रमा ने तो पी लिया मगर मेघा के नाटक खत्म ही नहीं हो रहे थे । बारी बारी से सबने कोशिश कर ली मगर टस से मस नहीं हुई । थक हार कर सभी ने छोड़ दिया और अंदर आकर बैठ गए । रमा ने बताया की बेहतर महसूस कर रही है इसलिए किचन में जाकर खाना बनाना शुरू कर दिया । बाकी लोग गपशप में मशगूल हो गए । बाहर लेटी लेटी मेघा बेहोश हो गई थी और नाक मुंह से खून बह रहा था तभी सिद्धार्थ वहां पहुंचे और मेघा को इस हाल में देख कर चीख निकल गई नहीं नहीं नहीं तुम नहीं जा सकती इस तरह मुझे छोड़कर ... नहीं नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकती तुम मेघा नहीं मेघा नहीं ऐसा नहीं कर सकती ... पागलों की तरह सिद्धार्थ बोलें जा रहें थे । विभा और रमा भी बाहर आ गई और हंसते हुए कहा आप भी उसके झांसे में आ गए ? एक नंबर की नाटकबाज है वो बेमतलब बहाने बना रही है कामचोर कहीं की ...। सिद्धार्थ ने उसे छूकर खून दिखाया सभी को तब सभी को काठ मार गया । वास्तव में खून बह रहा था और मेघा बेहोश थी । पास वाले डॉक्टर मुखर्जी को बुलाया गया उन्होंने देख कर बताया की सर में चोट लगी है और इंटर्नल ब्लिडिंग हो गई है जान को खतरा हो सकता है तुंरत हॉस्पिटल ले जाना होगा । सिद्धार्थ ने मेघा को उठाया और लगभग दौड़ते हुए सड़क पर पहुंचा एक टैक्सी रोकी और बिना किसी को लिए चल पड़ा । एस एन मेडिकल कॉलेज वहां उनकी भाभी डॉक्टर थी इसलिए तुंरत इलाज शुरू कर दिया गया । पीछे से परिवार के बाकी लोग भी पहुंच गए । न्यूरो सर्जन डॉ भट्ट ने बताया 12 घंटे आब्जर्वेशन में रखने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है । विभा को चक्कर आने लगा शायद पहली बार निर्जला व्रत किया था इसलिए या फिर मेघा की हालत देखकर । डॉ शर्मा ने कहा की "भारद्वाज साहब को छोड़कर बाकी सभी लोग घर चले जाइए । यहां भीड़ लगाने से कोई फायदा नहीं होगा । विभा की तबीयत खराब हो सकती है वो मां बनने वाली है इसलिए उसकी देखभाल भी जरूरी है । आप सभी चले जाइए । जैसा भी होगा फोन करके बता दूंगी । " भारद्वाज साहब ने विभा का ख्याल रखते हुए सभी को घर भेज दिया और आई सी यू के बाहर सोफा पर बैठ गए । डॉ शर्मा ने सिद्धार्थ से कहा "तुम थोड़ी देर यहां रूक सकते हो तो रूक जाओ ।" सिद्धार्थ ने कहा "हां रूका हुआ हूं ।"
दो तीन चार घंटे बीत गए लेकिन मेघा को होश नहीं आया । धड़कने चल रही थी सांस ले रही थी आक्सीजन लगा हुआ था । पिन पटक सन्नाटा छा गया था घड़ी की टिक-टिक के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था । सोती हुई खामोश मेघा बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही थी । हमेशा से उसके बक-बक पर खीझने वाला सिद्धार्थ उसकी खामोशी पर खीझ उठा था ।
"मेरा प्यार वो है कि मर कर भी तुमको जुदा अपनी बाहों से होने न देगा .... मेरा प्यार वो है ...। गाने की पंक्तियां अभी पूरी नहीं हुई और मेघा के शरीर में हरक़त शुरू हो गई । सिद्धार्थ रोक नहीं पाया खुद को और बाहों में भरने की कोशिश करने लगा बीच में आ गया आक्सीजन का पाइप और तार निकल जाने से अलार्म बज गया । अफ़रा-तफ़री मच गई । डॉ नर्स सब पहुंच गए । सिद्धार्थ संभल कर दूर हो गया । मेघा आंखें मींचने लगी और बड़ी लम्बी अंगराई लेती हुई अपने हाथों को ऊपर किया फिर आंखें खोल कर चारों तरफ भयभीत निगाहों से देखने लगी सिद्धार्थ पर नजर पड़ते ही उछल पड़ी और एकदम से लिपट गई । फिर एकदम से झटक दिया "कितने जोर से धक्का मार दिया जो मैं पेड़ से टकराते हुए गिर गई । मेरी नाक टूट जाती तो ...? मेरी शादी भी नहीं होती " फिर आपके छाती पर मूंग दलती रहती और हंस पड़ी । सिद्धार्थ बहुत जोर से डर गया लेकिन डॉक्टर शर्मा को राहत महसूस हुई ।
डॉ शर्मा ने मेघा को लिटा दिया और भारद्वाज साहब को बताया की "अब खतरा टल गया । चिंता की कोई बात नहीं है लेकिन दो घंटे और रहने दीजिए सुबह होने के बाद एक बार न्यूरो सर्जन की राय लेकर फिर भेज दूंगी । घर पर सभी को बता दीजिए मेघा बिल्कुल ठीक है । "
घर पर बता दिया गया । भारद्वाज साहब निश्चिंतता अनुभव कर रहे थे और लम्बे हो गये सोफा पर मगर सिद्धार्थ बेचैन हो गए । क्योंकि उन्हें तो कुछ मालूम ही नहीं था कि मेघा कब , कैसे और कहां गिरी थी ? जब वो आया तो लॉन में औंधे मुंह पड़ी हुई मेघा को देखा था नाक और मुंह से खून बह रहा था । इससे अधिक उसे कुछ भी नहीं मालूम था । मेघा ने सिद्धार्थ को आवाज़ दी और कहा "मेरे पास आइए ना मुझे डर लग रहा है ।" डर तो सिद्धार्थ को भी लग रहा था मगर समय की नजाकत को समझते हुए चुपचाप उठ कर मेघा के पास चला गया । मेघा ने धीरे से सिद्धार्थ का हाथ पकड़ लिया ।
"तेरा साथ है तो हमें क्या कमी है , अंधेरों से भी मिल रही रौशनी है । तेरा साथ है तो ....।"
सुबह हो चुकी थी । एक सुहानी सुबह बेहद हसीन सुबह , एक खुशनुमा सुबह । मेघा की जीत हुई थी मरते मरते बच गई थी और सिर्फ बची ही नहीं उसे एक सरप्राइज भी मिला था । सिद्धार्थ का प्यार , बेशुमार , बेइंतहा और बेहिसाब ....।
डॉ का राउंड शुरू हुआ । सिद्धार्थ बाहर चला गए । भारद्वाज साहब ने कागज़ी औपचारिकता पूरी की । कैब से तीनों लोग घर लौटें । अम्मा आरती की थाली लेकर बाहर आई नज़र उतारी गई । नमक , राई , हल्दी , कंकड़ पत्थर और आटे की लोई से निहुछा गया फिर महारानी जी को अंदर लाया गया । मुश्किल से पांच मिनट जुबान को आराम दिया होगा और शुरू कर दिया सिद्धार्थ का क्लास लेना । "कल आने में देर क्यों कर दी ?" जल्दी आ गए होते तब ठीक से झूलाते तब तो नहीं गिरती न ? "अच्छा तो मैंने मारी थी लम्बी पेंग ??????? बेवकूफियां खुद करो और इल्ज़ाम दूसरे पर , वाह भाई वाह । कमाल करती हो तुम तो ।"
"अच्छा बस करो कल जो हुआ उसकी बात अब कभी नहीं की जाएगी । और झूला तो भूल ही जाओ । कभी नहीं डलेगा झूला । सावन आए या भादों ।" यह धमाकेदार ऐलान भारद्वाज साहब ने किया । सब लोग खामोश हो गए ।
मेघा ने कहा "पापा आपका कानून इस घर में ही चलेगा न ? मैं अपने ससुराल जाकर झूला डाल सकती हूं न ?" सचमुच कितनी ढीठ और शैतान है यह लड़की कभी नहीं सुधर सकती । तुझसे शादी कौन करेगा ऐसी बिगड़ैल लड़की से ? अम्मा ने कहा तो सब लोग हंसने लगे और मेघा चुपचाप सिद्धार्थ के पास आकर बोली "बता दीजिए ना कि आप मेरी शादी करवा देंगे । " सिद्धार्थ ने कहा मुझे भरी जवानी में गंजा होने का शौक नहीं है । "कौन करवाएगा तुम्हारी शादी ? सौ सौ जूते पड़ेंगे उसे । " मेघा ने कहा एक सुपर आईडिया दूं ? हां बोलो ? मुझसे कोई शादी नहीं करेगा तो ना करें मैं ही कर लूंगी आपसे शादी फिर तो आपको सौ सौ जूते नहीं पड़ेंगे न ? और मुझे मिल जाएगा मेरे सपनों का राजकुमार । फिर मैं गाना गाऊंगी - "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है , मेरा महबूब आया है । घटाओं रागिनी गाओ मेरा महबूब आया है ।"
शुक्र है कि भारद्वाज साहब नहीं थे । सिद्धार्थ उनका प्रिय शिष्य जरूर है लेकिन दामाद बनाने का कोई इरादा नहीं रखते थे । घर के बाकी लोगों ने भी कभी ऐसा कुछ नहीं सोचा था । मेघा के दिमाग का फितूर है यह सब या फिर उसका कोई बेहुदा मज़ाक । चाहें जो कुछ भी हो लेकिन मेघा के आंखों में जो खुशियां झलक रही थी उसे गम में बदलना कोई नहीं चाहता था । कितने बड़े हादसे से बची है अभी अभी इसलिए कोई भी उसे किसी तरह का तनाव नहीं देना चाहता था । सिद्धार्थ अब बेहद गंभीर मुद्रा में आ गए थें ।
रमा ने माहौल हल्का फुल्का करने के ख्याल से टीवी खोला । गाना आ रहा था - "एक दिन आप यूं हमको मिल जाएंगे मैंने सोचा ना था ...
फूल ही फूल राहों में खिल जाएंगे मैंने सोचा न था ।
एक दिन जिंदगी होगी इतनी हसीं
झूमेगा आसमां , गाएगी ये ज़मीं मैंने सोचा न था ....!"
सिद्धार्थ ने मेघा को देखा और मेघा खो गई सिद्धार्थ की झील सी गहरी आंखों में ......!