Sarita Kumar

Romance

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Sarita Kumar

Romance

मौन संवाद

मौन संवाद

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202



जब भी हम मिलें , किया तुमने केवल प्रेम । अगाध , निरंतर, निर्बाध बिना किसी अभिव्यक्ति के । गौन भावों का मौन संवाद । ठीक मेरे सामने मगर थोड़ा दूर । बस निगाहों का निगाहों से मिलना होता रहा । कभी निगाहों में थम जाना । कभी झट से निगाहें नीची कर लेना । कभी उलझ जाना मेरी निगाहों से , कभी अकचकाकर सिर को झटकना । जैसे किसी छमाही इम्तिहान में बिन पढ़ें बैठ जाने पर सवाल देखकर भौंचक्का होना । कभी दूज का चांद सा मुस्कुराना । कभी कभी बेबाक खिलखिलाकर हंसना । अमूमन मेरी किसी मूर्खतापूर्ण हरकतों पर ही ये पूनम का चांद दिखता था । और कभी बेहद नाराजगी भरी गहन खामोशी .... । 

ये नाराजगी भी अक्सर चाय की प्याली पर ही जाहिर होती था । पड़ी पड़ी तप्त द्रविका शील खंड बन जाती थी । 

बहुत मान-मनौव्वल करने का हुनर नहीं था तब । बस अच्छी सी ठंडी चाय फेंक कर रद्दी सी बेकार चाय बनाने भर की कोशिश रहती थी ....।

जब वो चाय की प्याली अपने गंतव्य तक पहुंचती तब .... सैकड़ों फुलझडियां एक साथ छुटने की खुशी होती ..... 

चाय पीते समय उनके चेहरे पर मुस्कान कि वजह मेरे चेहरे पर झलकती हुई राहत की ख़ुशी होती और मैं समझती मेरी बनाई चाय बेहद लज़ीज़ लगती है इसलिए पहले वाली चाय छोड़ दी थी । मौन का यह सबसे बड़ा लाभ था कि हम अपनी अपनी मर्जी से कुछ भी सोचकर मुस्कुरा सकते हैं ।‌ खुश हो सकते हैं , सपने पाल सकते हैं और भर सकते हैं ऊंची ऊंची उड़ान । 

ख़ैर.... मतलब चाहें जो भी हो मैं खुश हो जाती थी और फिर ..... मैं ...

मैं समेटने लगती थी उन लम्हों को, के अगर कभी बिछड़ जाए हम तो जीवन सफ़र में , कठिन डगर में संबल बनेगा यहीं संग संग बिताए स्वर्णिम पल । हमारा बिछड़ना तय था मगर हमारा प्रेम अटल । दिया नहीं हमने अपनी भावनाएं को कोई आकार , न नाम और ना ही कोई पहचान । बस निगाहों का निगाहों से होता रहा वर्षों वर्ष मौन संवाद ।


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