दोस्त
दोस्त
दोस्ती का एकलौता ऐसा रिश्ता है जो हम अपनी मर्ज़ी से बनाते हैं । बाकी तमाम रिश्तों में कुछ तो विरासत में मिलता है , कुछ स्वार्थ वश बनाएं जाते हैं, कुछ मजबूरी में बनाई जाती है । सिर्फ दोस्त ही है जिसे हम अपनी मर्ज़ी से , अपने पसंद से और अपने स्वभाव के अनुकूल देखकर बनाते हैं ।
मैंने भी कुछ दोस्त बनाएं थें 44 साल पहले वो आज भी मेरे साथ है । हर रोज सुबह की गुड मॉर्निंग और रात को गुड नाईट बोले बिना एक भी दिन नहीं गुजरा । कभी कभी हमारी बात चीत होती है । अपना सुख दुःख , हंसी ख़ुशी हम सब बांटते हैं । उसकी शादी पहले हो गई थी और मेरी थोड़ी देर से हुई । हम काफी दूर हो गये लेकिन ये दूरियां सिर्फ मीलों की रही दिलों की नहीं । जब मेरे घर में टेलीफोन नहीं था तब टेलीफोन बूथ जाकर महीने में दो चार बार जरूर बात किया करती थी । खतों का सिलसिला तो जारी ही रहा । इधर आठ दस सालों से बंद हुआ है । मेरे पास उन दोस्तों के खत और न्यू ईयर की ग्रीटिंग्स कार्ड अभी तक सुरक्षित है जबकि पिछले तीस चालीस सालों में दस बारह बार मैंने शहर बदला और अपना ठिकाना । मेरे पति सेना में हैं तो हर तीसरे साल तबादला निश्चित था और वो बिजनेस मैन की पत्नी जब से शादी हुई पटना के उसी कंकड़ बाग के कालोनी में पहले ससुराल में रहती थी कुछ दिनों बाद पास में ही अपना एक दूसरा फ्लैट खरीद लिया था लेकिन परिवार वालों से नजदीकियां बरकरार रही । मुझे बहुत अच्छा लगता था उसके सास ससुर देवर और ननदों के साथ मिलकर ।
शीला चौधरी से शीला शुक्ला बन गई लेकिन मेरे लिए तो आज भी वही शीलू है । पिछले साल दिसंबर में मैं उसके पास गयी थी दो दिन और तीन रातें बिताई । बहुत सारी बातें हुई । वक्त चाहें कितना भी बदल गया हो हम आज भी उतने ही करीब है । मैं उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बैठी रही घंटों तक .... बड़ा सुकून मिला । घर , परिवार , समाज की बातों के अलावा अपने अपने पतियों की भी बात की । कॉलेज के दिनों की यादें दोहराई । सड़क के किनारे खड़े होकर चाट और गोल-गप्पे खाई । जिंदगी सचमुच बहुत खुबसूरत है । और हमारी दोस्ती बहुत मजबूत है । जब 45 सालों से चलती आ रही है तब आगे भी यूं ही चलती रहेगी । ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे।