ख्वाब
ख्वाब
जीवन के इंद्रधनुषी रंगों को देखने के लिए थोड़ा सब्र करना पड़ता है। पहले कड़ाके की सर्दी, चिलचिलाती धूप उसके बाद जब घिरते है बादल बरसता है पानी फिर सात रंगों से मिलकर आकार लेता है इंद्रधनुष अनंत आकाश पर। बिल्कुल वैसे ही जीवन के कई मुकाम गुजारने के बाद , कहीं धूप कहीं छांव, कहीं उमस कहीं तपिश तब जाकर मिलता है सुकून।
हमें लगता है जैसे जीवन कोई हसीन ख्वाब है या फिर ख्वाब में है जीवन ? अक्सर यह ख्याल आता है, की जिंदगी कुछ अजीब सी क्यों है ? पग पग पर एक रोमांच, एक हादसा, एक अप्रत्याशित, अकाल्पनिक, अद्भुत और अनोखी घटना ..। किसी कहानी सी है जिंदगी या फिर जिंदगी एक कहानी है ? एक पहेली सी है जिंदगी या फिर जिंदगी ही एक पहेली है ? एक अजीब सा प्रश्न है या फिर यह प्रश्न ही जिंदगी है ? जिसे हल करने में बिताने पड़ते हैं पांच छः दशक तब जाकर थोड़ी थोड़ी समझ में आती है जिंदगी।
मगर एक दूसरे दृष्टिकोण से देखी जाए तो जिंदगी बिल्कुल वही है जो की हम सोचते हैं, जो चाहते हैं, जो सपने देखते हैं या जो कल्पना करते हैं। हमारा मस्तिष्क उसे पकड़ लेता है और नित निरंतर उस पर कार्रवाई शुरू कर देता है। चेतन अवस्था में अचेतन अवस्था में और अवचेतन अवस्था में भी। इसीलिए सपनों जैसा जीवन हकीकत बन जाता है। ख्वाब सारे सच हो जाते हैं। आपकी अलिखित लिपि कहानी बन जाती है। सुलझ जाती है वो पहेली और जीत हो जाती है आपकी। आपका चाहा हुआ ख्वाब, सोची गई बात और देखें गये सपनें आपके जीवन में अप्रत्याशित खुशी और अलौकिक आनंद देते हैं। आप वो सब बन जाते हैं जो आप बनना चाहते हैं। आप सफल हो जाते हैं और आपकी यह सफलता, संतुष्टि और संतृप्ति का एहसास करवाते हैं। पांच दशक बिता कर मैंने भी महसूस किया कि मुझे हर वो चीज़ मिली जिसकी मैंने कभी तमन्ना की थी। मेरा देखा हुआ अधुरा ख्वाब भी बेहद खूबसूरती से पूरा हुआ और मुझे मिल गया दोनों जहां। मेरी चाहतें, मेरी ख्वाहिशें, मेरी आरजू और मेरी अभिलाषाएं सब की सब पूरी हो गई और मैं ब्रह्मांड के सबसे खुशनसीब लोगों की पंक्ति में खड़ी हो गई। अपने जीवन के सम्पूर्णानंद एहसास को बांट कर जाना चाहती हूं। तमाम अपनें अजीज़ों को बता कर जाना चाहती हूं कि मैंने अपनी जिंदगी को भरपूर जिया और तृप्त होकर विदा ले रही हूं।
मेरे जाने के बाद कोई शोक नहीं मनाई जाए और ना दान पुण्य किया जाए, और ना ही भोज भंडारा में अपनी गाढ़ी मेहनत से अर्जित धन व्यय किया जाए। मेरे जीवनकाल में मेरे परिवार का हर सदस्यों ने मेरी हर छोटी से छोटी इच्छाओं को पूरा किया है और मुझे यह भी पता चल चुका है कि मेरी चाहतों और दो पल की खुशियों के लिए उन लोगों ने क्या क्या जोखिम उठाया है। मेरे पति ने रिटायरमेंट के बाद बैंक से लोन लिया, बेटे ने अपने तीन साल की नौकरी में ही अपने "पी एफ फंड" से पैसे निकालें, बड़ी बेटी और दामाद ने अपने बच्चें के सुनहरे भविष्य के लिए के लिए जमा की गई पूंजी को खर्च किया और छोटी बेटी ने क्रेडिट कार्ड से शॉपिंग की। दैनिक जीवन में सुख साधन के सभी आधुनिक उपकरणों के बाद। हीरे के जेवरात तक दिया जो उस वक्त उनके लिए लेना उचित नहीं था। दो तीन साल की नौकरी में तो हमने कुछ भी ऐसा नहीं किया था। मुझे तो आठ वर्ष लगे थे तब जाकर ननद की शादी करने का सामर्थ्य जुटा पाई थी। मेरी संतान हमसे चार कदम आगे है और मुझे गर्व है अपनी परवरिश पर, अपनी शिक्षा, दीक्षा और संस्कार पर । मैं पास हो गई अपने जीवन के सबसे बड़े इम्तिहान में। सुखी, सम्पन्न और समृद्ध जीवन व्यतीत करने के बाद और क्या चाहिए ? बस एक तसल्ली कि मेरा वंश चलता रहे, मेरा नाम शेष रहे। मुझे तो इससे भी बढ़कर खुशी मिली है कि अब मेरी पहचान मेरे बच्चों के नाम से है।
मैं मिस्टर कश्यप की मां कहलाती हूं जब किसी बड़े रेस्टोरेंट में हमारे लिए टेबल बुक की जाती है और जब एयरपोर्ट पर कुछ गड़बड़ होता है तब मिस श्रीवास्तव की मां की हैसियत से विशेष सुविधा का लाभ उठाती हूं और जब अचानक बीमार पड़ जाती हूं और अफरातफरी मच जाती है तब हॉस्पिटल की सारी सुविधाएं घर पर व्यवस्थित हो जाती है क्योंकि मैं आनंद साहब की सासू मां हूं। जहां भी जाती हूं हर तरफ़ मेरे लिए लिए नरम मुलायम गलीचा बिछा हुआ मिलता है। इससे अधिक और कुछ नहीं चाहिए। अभी भी नहीं और मेरे जाने के बाद मेरे नाम पर तो बिल्कुल भी नहीं। मेरे अपनें अजीज़ों को यह तसल्ली होनी चाहिए की उन्होंने मुझे मेरे जीवनकाल में ही सब कुछ बहुत अधिक दे दिया है।
मेरे नाम पर कुछ करना चाहते हैं तब बस इतना करें कि मेरे जीवन के आदर्शों और सिद्धांतों में से जो उन्हें अच्छा लगे उसे अपनाने की कोशिश करें। अपनी संतानों को सुनाएं कभी फुर्सत में हमारी जिंदगानी। सुखमय, खुशहाल और गौरवशाली जीवन की अनोखी अद्वितीय कहानी। एक थी मम्मी और एक थें पापा जो हमसे और हम उनसे अटूट बंधन में बंधें हुए हैं। ढेरों तस्वीरें हैं हम सभी के साथ कुछ बेहद हसीन यादगार लम्हों के। उन तस्वीरों को दिखाना अपनी अपनी संतानों को। परिवार का वो अर्थ समझना जो तुम लोगों ने देखा है जिया है और जिसे तहेदिल से आत्मसात किया है और न्योछावर हुए हो जिस परिवार के आदर्शों एवं मर्यादाओं का मान रखने लिए। अपनी नैतिकता का बोध कराना उन्हें भी। सामाजिकता का पाठ पढ़ाना, धार्मिक मान्यताओं की झलक दिखाना। बस यही होगी हमारे लिए तुम लोगों की तरफ़ से सच्ची श्रद्धांजलि। अपने कठिन मेहनत से हासिल धन को मत व्यय करना किसी पाखंड और ढकोसले में। सुकून से रहना क्योंकि जीते जी मेरी सभी इच्छाओं को पूरा कर दिया है सभी ने मिलकर। *नो* *ड्यूज* लिख दिया है मैंने। जिसका अर्थ है कि अब कुछ भी बाकी नहीं रहा।
आत्मानुभूति
