Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

5.0  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

बाहुबली और सिकंदर (अलेक्जेंडर)

बाहुबली और सिकंदर (अलेक्जेंडर)

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आज कक्षा में हैप्पीनेस के पीरियड में कहानी सुनाने का दिन है। कक्षा के सभी विद्यार्थी गौरव सर का इंतजार कर रहे थे क्योंकि गौरव सर कक्षा में कहानी बड़ी मनोरंजक तरीके से सुनाते थे।गौरव सर के आते ही पूरी कक्षा ने बड़े ही जोर की हर्ष ध्वनि और करतल ध्वनि से उनका स्वागत किया।अजय ने गौरव सर से आज एक काल्पनिक राजा और एक ऐतिहासिक राजा के युद्ध की कहानी सुनाने का आग्रह किया।कक्षा के सभी विद्यार्थियों ने अजय के इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताते हुए गौरव सर से निवेदन किया कि अजय ने जिन काल्पनिक और वास्तविक योद्धाओं के बीच में युद्ध की कहानी सुनाने के लिए आग्रह किया है यदि कहानी बाहुबली और सिकंदर के बीच के युद्ध की कहानी हो तो यह बड़ी ही रोमांचकारी कहानी होगी।

गौरव सर विद्यालय के सबसे अधिक लोकप्रिय शिक्षक हैं। आखिर हों भी क्यों नहीं।वे सभी विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। विद्यालय का कोई भी विद्यार्थी उनके पास अपनी समस्या लेकर पहुंचता तो वे यथासंभव उसकी समस्या का समाधान करने का हर संभव प्रयास करते। वे अपनी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए विशेष परियोजनाएं तैयार करते थे। कक्षा के कुशाग्र बुद्धि बच्चों के लिए वे स्वयं ऐसी विशेष परियोजनाएं तैयार करते थे जो कुशाग्र बुद्धि विद्यार्थियों के लिए अधिक से अधिक कल्याणकारी हों। उन कुशाग्र बुद्धि बच्चों का मार्गदर्शन करते हुए उनके साथ मिलकर कमजोर और मध्यम बच्चों के अध्ययन को उत्कृष्ट बनाने के लिए परियोजनाएं बनाते और बनबाते थे। इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन कुशाग्र बुद्धि बच्चे उनके मार्गदर्शन में करते थे इससे उन कमजोर और मध्यम बच्चों का तो कल्याण होता ही था साथ ही कुशाग्र बुद्धि बच्चों में अध्ययन के साथ अध्यापन, सीखने के साथ सिखाने में रुचि जागती और उनकी प्रतिभा में और अधिक निखार सतत् आता रहता था। गौरव सर इन कुशाग्र बुद्धि बच्चों की सहायता से कमजोर व मध्यम बच्चों की मदद करवाते थे। इस तरह 'एक पंथ दो काज' वाली कहावत चरितार्थ होती थी।गौरव सर अध्ययन - अध्यापन के साथ-साथ शिक्षणेत्तर क्रियाकलापों जैसे खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम ,संगीत ड्राइंग आदि में भी पूरे मनोयोग के साथ लगे रहते थे। इस कार्य में वे विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम की शिक्षिका,संगीत के शिक्षक ,और ड्राइंग की शिक्षिका के साथ उनका सहयोग करते जिससे बच्चों को यथासंभव अधिक से अधिक सीखने में मदद मिलती थी। वह स्वयं भी इन अध्यापकों के सहयोग से ड्राइंग ,संगीत ,भाषण आदि का बर्तन भी सतत अभ्यास करते रहते थे और उन्होंने इन क्षेत्रों में स्वयं भी निपुणता हासिल कर ली थी।

वे कहते थे कि इन विद्यार्थियों के साथ वह स्वयं का भी विकास कर रहे हैं और इस कार्य के लिए वह सदैव विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत के शिक्षक और ड्राइंग अध्यापिका की प्रार्थना सभा में मंच से खुले दिल से बहुत प्रशंसा किया करते थे। उनका कहना था कि इन साथियों की मदद से ही उनके व्यक्तित्व में लगातार निखार आ रहा है।

गौरव सर ने ओमप्रकाश से कहा-"बेटा ओम प्रकाश ,जहां तक मेरा अनुभव कहता है कि तुम वह विद्यार्थी हो जिसकी फिल्मों वगैरह में विशेष रूचि है। किसी फिल्म को देखकर , टीवी पर चलने वाले धारावाहिकों की कहानी को लेकर या पढ़े हुए पाठों को फिर से उनके बारे में अपनी प्रखर स्मरण- शक्ति के द्वारा तुम उसे बेहतर ढंग से दुबारा प्रस्तुत कर देते हो। तो मैं चाहूंगा कि तुम हमारी कक्षा को बाहुबली की कहानी बताओ।"

ओम प्रकाश ने गौरव सर का आभार व्यक्त करते हुए कहा-" सर 'आपने मेरी प्रशंसा करते हुए , मुझ पर विश्वास करने के साथ-साथ इस कहानी को कक्षा के समक्ष समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया है इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूं। मेरा प्रयास रहेगा कि मैं यथासंभव इस कहानी को ठीक ढंग से सुनाऊं फिर भी यदि अनजाने में कोई त्रुटि हो जाती है तो मैं उसके लिए आप सब से अग्रिम रूप में क्षमा याचना करता हूं।"

"बहुत हो गई ,भाई ओमप्रकाश ,भूमिका ।अब बिना कोई विलंब किए कहानी शुरू करो। देख नहीं रहे हो, सारी कक्षा तुम्हारी कहानी सुनने के लिए बेचैन हो रही है।"-अजय ने ओमप्रकाश से अपनी कहानी जल्दी शुरू करने का आग्रह किया।

"ठीक है।"-कहते हुए ओमप्रकाश ने कहानी शुरू की-"महिष्मती नामक एक बड़े राज्य की रानी शिवगामी देवी के दो पुत्र थे। भल्लालदेव और आमरेंद्र बाहुबली। आमरेंद्र बाहुबली उनका सौतेला पुत्र था जो बहुत ही सामर्थ्यवान , सुयोग्य और शक्तिशाली था। उसमें राजा बनने के समस्त गुण विद्यमान थे। दूसरी ओर रानी का अपना सगा बेटा भल्लालदेव बड़ा ही कपटी, धूर्त और चालबाज था। रानी शिवगामी देवी अपने इन दोनों पुत्रों के गुणों और स्वभाव से भलीभांति परिचित थीं। राज्य के कल्याण को ध्यान में रखते हुए रानी शिवगामी देवी अमरेंद्र बाहुबली को राजा और भल्लालदेव को राज्य का सेनापति बनाने का निर्णय लेती हैं। रानी शिवगामी देवी के इस निर्णय से उनका पति विज्ज्वला देव असंतुष्ट होने के कारण मन ही मन बहुत अधिक क्रोधित होता है। उसका क्रोध इस सीमा तक होता है कि वह रानी रानी देवी की हत्या कर देना चाहता है लेकिन उसका अपना बेटा भल्लालदेव उसे सही अवसर आने देने तक की प्रतीक्षा करने को कहता है और इस समय उससे उसकी इस योजना को स्थगित कर इस समय शांत हो जाने की सलाह देता है। बाहुबली के नेतृत्व में महिष्मती राज्य अपने पास के एक दूसरे राज्य को युद्ध में परास्त कर देता है।अमरेंद्र बाहुबली की इस विजय से रानी शिवगामी देवी बहुत प्रसन्न होती हैं और वे घोषणा करती हैं कि शीघ्र ही आमरेंद्र बाहुबली को महिष्मती राज्य का राजा और भल्लालदेव को राज्य का सेनापति बनाया जाएगा। रानी शिवगामी देवी आमरेंद्र बाहुबली को अपने बड़े से राज्य का शासन शुरू करने के लिए राजा बनने से पहले राज्य के बारे में पूरी वर्तमान स्थिति की जानकारी करने के लिए पूरे राज्य का दौरा करने के लिए कहती हैं। बाहुबली रानी के इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार करते हुए राज्य का दौरा करता है। रानी शिवगामी देवी अपने एक वफादार और विश्वसनीय सेवक कटप्पा को बाहुबली की सहायता के लिए उसके साथ भेजती हैं।वे दोनों एक सामान्य नागरिक की तरह अपने राज्य का दौरा करने का सफर प्रारंभ करते हैं। राज्य के अपने इस भ्रमण के दौरान वे दोनों कुंतला नाम के एक छोटे से राज्य में पहुंच जाते हैं। इस राज्य की राजकुमारी देवसेना से आमरेंद्र बाहुबली को प्रेम हो जाता है। उनके इस प्रेम के बारे में भल्लालदेव को पता चलता है तो वह एक षड्यंत्र करता है। वह अपनी मां से कहता है कि कुंतला राज्य की राजकुमारी देवसेना को वह बहुत पसंद करता है और उससे शादी करना चाहता है उसकी यह बात सुनकर रानी शिवगामी देवी बहुत ही प्रसन्न होती हैं। रानी शिवगामी देवी को यह पता नहीं होता है कि आमरेंद्र बाहुबली देवसेना को प्यार करता है। वे भल्लालदेव से कहती हैं कि सगा बेटा होने के बावजूद भी वे उसे महिष्मती राज्य का राजा तो नहीं बना पाईं लेकिन वह उसकी पसंद की राजकुमारी से उसकी शादी अवश्य करवाएंगी यह उनका वायदा है। कुंतला राज्य के राजा के पास उनकी पुत्री राजकुमारी देवसेना को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव भेजती हैं। कटप्पा और अमरेंद्र बाहुबली यह समझते हैं कि रानी ने देवसेना से आमरेंद्र के विवाह का प्रस्ताव भेजा है। देवसेना एक क्षत्राणी है और क्षत्रिय परिवार की परंपरा के अनुसार भल्लालदेव को बिना देखे और उसके बारे में बिना कुछ जाने की स्थिति के कारण उससे शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है।

देवसेना द्वारा रानी का प्रस्ताव अस्वीकार कर देने के कारण रानी शिवगामी देवी बहुत क्रोधित होती हैं और वे कुंतला राज्य में मौजूद बाहुबली और कटप्पा को आदेश देती हैं कि वे देवसेना को बंदी बनाकर महिष्मती राज्य के दरबार में प्रस्तुत करें। इसी समय कुंतला राज्य पर पिंडारी नामक लुटेरे आक्रमण कर देते हैं। आमरेंद्र बाहुबली ,कटप्पा और देवसेना का चचेरा भाई कुमार वर्मा पिंडारीओं के इस आक्रमण को असफल कर देते हैं। इस युद्ध के बाद आमरेंद्र बाहुबली वहां के लोगों के समक्ष अपना परिचय देते हुए वहां अपने आने का कारण भी स्पष्ट करता है। बाहुबली सबके समक्ष देवसेना के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करता है। देवसेना भी पिंडारिओं के साथ बाहुबली के युद्ध में प्रदर्शित की गई वीरता से बहुत प्रभावित होती है वह भी बाहुबली के प्रति सबके समक्ष अपने प्रेम को प्रकट रूप से स्वीकार करती है। बाहुबली बाकी लोगों के सामने यह स्पष्ट करता है कि उसकी मां रानी शिवगामी देवी ने देवसेना को बंदी बनाकर महिष्मती राज्य में प्रस्तुत करने का आदेश उसे दिया है और वह मां के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता इसलिए उसे देवसेना को महिष्मती राज्य में अवश्य ले जाना होगा। बाहुबली देवसेना को हर संकट से बचाने का वचन देते हुए देवसेना को महिष्मती राज्य में चलने के लिए सहमत कर लेता है।

महिष्मती राज्य पहुंच कर सारी गलतफहमियां स्पष्ट हो जाती हैं। वहां यह स्पष्ट हो जाता है कि रानी शिवगामी देवी ने देव सेना के साथ भल्लाल देव की शादी का प्रस्ताव भेजा था यह बात जानकर शिवगामी देवी और देवसेना में एक दूसरे के विचारों के प्रति स्पष्ट विरोधाभास की स्पष्ट स्थिति जब आमने - सामने आ जाती है। इस स्थिति में रानी शिवगामी देवी बहुत क्रुद्ध होती हैं और वे अमरेंद्र बाहुबली से महिष्मती राज्य के सिंहासन और देवसेना में किसी एक का चुनाव करने के लिए कहती हैं। बाहुबली राजा का पद स्वीकार न करके देवसेना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का चुनाव करता है। बल्दा भल्लालदेव का षड्यंत्र सफल होता है और महिष्मती राज्य का राजा भल्लालदेव को घोषित कर दिया जाता है। राज्याभिषेक के दिन भल्लालदेव को महिष्मती का राजा बनाया जाता है और बाहुबली को राज्य का सेना प्रमुख नियुक्त किया जाता है। राज्य की जनता बाहुबली को ही अपना राजा मानती है। बाहुबली की इस लोकप्रियता से भल्लालदेव को बड़ी ईर्ष्या होती है। देवसेना और अमरेंद्र बाहुबली का विवाह हो जाता है। कुछ समय के बाद देवसेना गर्भवती होती है। बाहुबली और देवसेना के बच्चे की गोद भराई की रस्म के उत्सव के दिन भल्लालदेव बाहुबली को सेना प्रमुख के पद से हटा देता है। इस अन्याय के विरुद्ध देवसेना रानी शिवगामी देवी से प्रश्न पूछती है कि आंखों के सामने होने वाले इस अन्याय को वह क्यों होने दे रही है? राजा के आदेश के विरुद्ध प्रश्न खड़ा करने के आरोप में बाहुबली और देवसेना को राज्य से निकालने का आदेश दे दिया जाता है और इन दोनों को अपना आगे का सारा जीवन एक सामान्य नागरिक की तरह राज्य के लोगों के बीच हंसी खुशी से बिताते हैं। इधर भल्लालदेव और उसका पिता बिज्ज्ला देव रानी महेश शिवगामी देवी को यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाते हैं कि अमरेंद्र बाहुबली से भल्लालदेव की जान को खतरा है। रानी अपने वफादार सेवक कटप्पा को बाहुबली को मारने का आदेश देती है और उससे कहती है कि यदि वह बाहुबली को नहीं मारता तो वह स्वयं बाहुबली को मार देगी। कटप्पा रानी का वफादार सेवक होता है और वह मजबूरी में बाहुबली को मारने का निर्णय लेता है।

कटप्पा बाहुबली को एक जगह बुलाकर धोखे से उसकी पीठ पर वार करके उसे मार देता है। कटप्पा राज महल में रानी को यह बताता है कि यह सब भल्लालदेव का बाहुबली को अपने रास्ते से हटाने का एक घृणित षड्यंत्र था इसी समय देवसेना राजमल में पहुंची हुई होती है और वह सब यह सुन लेती है। भल्लाल देव देव सेना को बंदी बना लेता है और रानी शिवगामी देवी महल के बाहर आने में सफल होती है। राज महल के बाहर आकर रानी शिवगामी देवी अमरेंद्र बाहुबली के पुत्र महेंद्र बाहुबली को गोद में उठाकर राज्य की जनता के सामने घोषणा करते हुए उन्हें यह बताती है कि यह महेंद्र बाहुबली ही उनका राजा है जो उनके राजा आमरेंद्र बाहुबली का वंशज है। भल्लालदेव अपने सैनिकों को रानी शिवगामी देवी को बंदी बनाने का आदेश देता है। शिवगामी देवी महेंद्र बाहुबली को लेकर जल पर्वत की ओर भागती हैं। शिवगामी देवी एक गुप्त मार्ग से राज्य से बाहर निकलने में सफल होती हैं। इस क्रम में वे एक नदी से होकर गुजरती हैं जिस नदी के तेज बहाव में रानी शिवगामी देवी बह जाती हैं और उस शिशु महेंद्र बाहुबली का पालन - पोषण आदिवासी करते हैं।वे उसका नाम शिवा रखते हैं शिवा उन्हीं के बीच बड़ा होता है और वह बार-बार जल पर्वत पर चढ़ने का प्रयास करता है जब शिवा पच्चीस वर्ष का एक बहुत ही वीर और साहसी युवक हो जाता है तो उसकी मां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक अनुष्ठान करती है। शिवा स्वयं अपने हाथों से उठाकर शिवलिंग को झरने के नीचे स्थापित करता है जहां उसे झरने के पानी में बहता हुआ एक नकाब मिलता है। इस बार शिवा जल पर्वत के शिखर पर पहुंचने में सफल होता है। जहां पहुंचकर वह अवंतिका नाम की लड़की से मिलता है जिसका वह नकाब होता है। अवंतिका एक वीरांगना है जिसका उद्देश्य देवसेना को भल्लालदेव की कैद से मुक्त कराना है।

शिवा उसे बताता है कि उन दोनों का लक्ष्य एक ही है वह भी पच्चीस वर्ष से भल्लालदेव की कैद में बंदी देवसेना को मुक्त कराना चाहता है और वह अपनी बहादुरी और सूझबूझ का परिचय देते हुए देवसेना को भल्लालदेव की कैद से मुक्त करा लेता है। देवसेना को मुक्त करा कर आते हुए शिवा का पीछा कटप्पा और भल्लालदेव का बेटा भद्रा करते हैं इस मुठभेड़ में शिवा भद्रा का वध कर देता है। कटप्पा और शिवा का आमना सामना देवसेना भल्लालदेव को अपने द्वारा एकत्रित की गई लकड़ियों में जिंदा जला देती है और आमना-सामना होते ही कटप्पा शिवा को देखते ही पहचान लेता है कि वह अमरेंद्र बाहुबली का पुत्र महेंद्र बाहुबली है। महेंद्र बाहुबली को सारी कहानी बताता है कि किस प्रकार भल्लालदेव ने उसके माता-पिता को षड्यंत्र का शिकार बनाया।महेंद्र बाहुबली और कटप्पा दोनों मिलकर भल्लालदेव के साथ युद्ध में भल्लालदेव की सेना को नष्ट कर देते हैं। देवसेना अपने द्वारा इकट्ठी की गई लकड़ियों में भल्लालदेव को जिंदा जला देती है इस प्रकार महेंद्र बाहुबली महिष्मति राज्य से भल्लालदेव के क्रूर शासन को समाप्त कर देता है और महिष्मती राज्य फिर से सुखी और समृद्धिशाली राज्य बन जाता है।"

पूरी कक्षा तालियों की गड़गड़ाहट से ओम प्रकाश द्वारा बाहुबली की वीरता से परिपूर्ण कहानी कक्षा को सुनाने के उपलक्ष में उसका अभिनंदन करती है। गौरव सर ने रितु को सिकंदर की कहानी  सुनाने के लिए प्रेरित करते हुए कक्षा में इसे मनमोहक हाव-भाव के साथ प्रस्तुत करने के लिए आदेश दिया।

गौरव सर का आदेश पाते ही रितु ने सिकंदर की कहानी कक्षा को बतानी प्रारंभ की-"356 ईसा पूर्व 20 जुलाई को सिकंदर का जन्म मकदूनिया (मेसोडोनिया) , यूनान में हुआ था। उसके पिता का नाम फिलीप द्वितीय और माता का नाम ओलंपियाज था। उसने 336 ईसा पूर्व से 323 ईसा पूर्व तक शासन किया उसने यूनान , फारस और पंजाब में विजय प्राप्त की थी। सिकंदर ने अपने पिता के द्वारा एक सामान्य राज्य को महान शक्ति सैन्य शक्ति में बदलते हुए देखा था। वह बाल्कंस में अपने पिता को जीत पर जीत दर्ज करते हुए देखते हुए बड़ा हुआ था। एक विश्वविजेता बनने की इच्छा का बीजारोपण उसके मन में बचपन से ही हो गया था। सिकंदर को उसके गुरु अरस्तू ,जो एक बहुत ही प्रसिद्ध और महान दार्शनिक था, ने उसे विश्व विजेता बनने का सपना दिखाया था। अपने विभिन्न युद्धों को जीतकर उसने एशिया माइनर, ईरान, मिस्र ,मेसोपोटामिया फिनिशिया ,गाजा सहित कई क्षेत्रों को जीता। उसने मिस्र के में अलेक्जेंड्रिया नाम का एक नया नगर बसाया जहां उसने एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना की थी। फारसी साम्राज्य सिकंदर के साम्राज्य से लगभग चालीस गुना बड़ा था। वहां के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हराकर सिकंदर वहां का राजा बना। वहां की जनता का दिल जीतने के लिए सिकंदर ने वहां की राजकुमारी रुखसाना से विवाह भी कर लिया। सिकंदर अपनी सेना के साथ पंजाब की सिंध नदी के तट तक पहुंच गया।जिस समय सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया उस समय चाणक्य तक्षशिला शिक्षा केंद्र के आचार्य थे। तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली । चाणक्य ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया किंतु पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई राजाओं ने तक्षशिला के राजा की तरह सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। जब सिकंदर पुरू के राज्य की ओर बढ़ा तो झेलम और चेनाब नदी के बीच में पुरू या पोरस के साथ उसका युद्ध हुआ जिसमें पुरू हार गया।जब पुरू को सिकंदर के सामने लाया गया तो सिकंदर ने उससे पूछा कि उसके साथ क्या व्यवहार किया जाना चाहिए तो पुरू ने कहा कि आपको मेरे साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।सिकंदर ने पुरू को अपना मित्र बना लिया और उसके राज्य के जीते हुए अधिकांश से उसे वापस कर दिया। वह यहां से व्यास नदी तक पहुंचा लेकिन उसके सैनिकों ने मगध के शासक नंद की विशाल सेना का सामना करने और व्यास नदी को पार करने से इंकार कर दिया। इसी बीच सिकंदर को फारस में विद्रोह का समाचार मिला और उसे दबाने के लिए वह वापस चल दिया। जब वह बेबीलोन पहुंचा तो उसे भीषण बीमारी ने जकड़ लिया।

और तैंतीस वर्ष की आयु में 10 जून,323 ईसा पूर्व को वहीं पर सिकंदर की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बिखर गया और उस साम्राज्य में शामिल देश आपस में अपनी शक्ति और आजादी के लिए लड़ने लगे। ऐसा कहा जाता है कि सिकंदर ने कहा था कि उसकी मृत्यु के बाद जब उसकी अरथी निकाली जाए तो उसके दोनों हाथ अरथी के बाहर निकाल दिए जाएं ताकि दुनिया के लोग यह सीख सकें कि दुनिया में इतना सब कुछ जीतने वाला सिकंदर भी अंत समय में खाली हाथ जा रहा है और इस प्रकरण से हम सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि हमें भौतिक साधनों की जीत के बजाय लोगों के दिलों को जीतना चाहिए क्योंकि इस संसार में प्रेम ही सबसे बड़ी पूंजी है।"

गौरव सर ने रितु को सिकंदर की कहानी को संक्षिप्त रूप में बताने और सिकंदर के द्वारा अपने अंत समय में इस दुनिया को सीख देने के लिए अपने प्रभावी शब्दों का प्रयोग करने के लिए रितु का धन्यवाद करते हुए उसका उत्साहवर्धन किया। समस्त कक्षा में भी तालियां बजाकर रितु का उत्साह बढ़ाया। कक्षा में ओम प्रकाश अपनी बात को विस्तार पूर्वक समझाने के लिए जाना जाता है तो रितु भी अपनी बात को संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित रूप में प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है।

गौरव सर ने अपनी बात को बच्चों के सामने इस रूप में प्रस्तुत किया-"प्यारे बच्चों ,सिकंदर ने अपने युद्ध अपने राज्य का विस्तार करने के लिए किए। उसका उद्देश्य केवल एक विश्व विजेता बनकर विश्व में स्वयं को महान के रूप में प्रदर्शित करना था। अंत समय में उसके जीवन की घटना से यह शिक्षा मिलती है की संसार में भौतिक साधनों की जीत महत्वपूर्ण नहीं है यदि महत्वपूर्ण है तो वह है लोगों के दिलों को जीतना। लोगों के मन में सम्मान और प्रेम की भावना जागृत करना। जिस तरीके से महिष्मती राज्य की जनता आमरेंद्र बाहुबली के राज्य पद से हट जाने के बाद भी उसे अपने राजा के रूप में प्यार करती थी उससे स्पष्ट होता है कि किसी भी क्षेत्र पर राज्य करना और दिलों में राज करना दो अलग-अलग चीजें हैं जिनमें से लोगों के दिलों में राज्य करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। भौतिक संसाधनों की लालसा व्यक्ति को उसके चरित्र से गिरा देती है और फिर उसे अपना पराया कोई नजर नहीं आता जिस प्रकार भल्लालदेव ने अपनी माता को भी बंदी बनाने का प्रयास किया । भारत के मुगल काल के इतिहास में औरंगजेब अपने भाइयों का कत्ल करके सिंहासन पर बैठा जिसने अपने पिता शाहजहां को आगरा के लाल किले में कैद रखा। उनकी यह संस्कृति भारतीय संस्कृति की सनातन परंपरा के एकदम विरुद्ध है जहां 'सर्वे भवंतु सुखिनः ,सर्वे संतु निरामया ' के सिद्धांत को माना जाता है और पूरी दुनिया को 'वसुधैव कुटुंबकम् ' यानी पूरी दुनिया को एक ही परिवार के रूप में मनाने की श्रेष्ठ आर्य परंपरा रही है।"

गौरव सर ने थोड़ा सा रुकते हुए कहा-"जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया तब महेंद्र बाहुबली और अवंतिका महिष्मति के राजा और रानी थे। इसमें कटप्पा महिष्मती राज्य का सेनापति था। इतनी अधिक आयु होने के बाद कटप्पा का रण कौशल देखते ही बनता था । उसकी सैन्य व्यूह रचना अद्वितीय थी। यही कारण है की जिस समय सिकंदर ने पुरू को हराकर उसे बंदी बनाया था ।उसी समय महेंद्र बाहुबली की सेना ने सिकंदर की सेना पर आक्रमण कर दिया। सिकंदर की विशाल सेना की तुलना में महिष्मति राज्य की सेना बहुत छोटी थी लेकिन युद्ध के दौरान महेंद्र बाहुबली के सैनिक जिस आत्मविश्वास और बहादुरी के साथ युद्ध कर रहे थे। उनकी वह युद्ध - कला और अपने राज्य के प्रति समर्पण की भावना देखते ही बनती थी। यही कारण है कि महेंद्र बाहुबली की छोटी सी सेना ने सिकंदर की महान और विशाल सेना को नाकों चने चबवा दिए। महेंद्र बाहुबली देश के प्रति समर्पण भावना आसपास के राजाओं ने भी देखी। सभी राजाओं ने सिकंदर की सेना के विरुद्ध महेंद्र बाहुबली की ओर से सिकंदर की सेना को पराजित करने के लिए कमर कस ली। सिकंदर ने भी समय की नजाकत को देखते हुए अपने साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले राज्यों को संदेश भेज दिया। वे सभी राजा भी अपनी अपनी सेनाएं लेकर अलग-अलग मोर्चों पर आ डटे तो यह एक विश्व युद्ध जैसी स्थिति बन गई जिसमें संसार के ज्यादातर देश एक दूसरे के साथ युद्ध में उतर गए थे।

जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में कौरवों और पांडवों की ओर से अलग-अलग देशों के राजा अपनी अपनी सेनाएं लेकर महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए आए और बहुत ही बड़े पैमाने पर जन विनाश हुआ उसी प्रकार यह विश्व युद्ध होने की तैयारी हो चुकी थी । विश्व युद्ध अपने कगार पर पहुंच चुका था किंतु महेंद्र बाहुबली ने सिकंदर को इस भीषण युद्ध को रोकने के लिए प्रस्ताव भेजा कि तुम्हें अपनी मातृभूमि को वापस लौट जाना चाहिए। हर एक व्यक्ति को अपनी मातृभूमि से बहुत प्यार होता है। एक व्यक्ति को दूसरे की मातृभूमि पर राज्य करने का कोई नैतिक अधिकार  नहीं होता। यदि कोई राजा दूसरे के क्षेत्र पर अपनी संतान तुल्य प्रजा को युद्ध की भेंट चढ़ाकर अपने राज्य का बहुत अधिक राज्य का विस्तार भी कर लेता है पर यदि जनता सुखी न रह सके तो ऐसा राज्य निरर्थक है। राज्य की जनता जिस प्रकार से सुखी रह सके वही उपाय सभी राजाओं को करने चाहिए। तभी विश्व बंधुत्व की भावना लोगों के दिलों में अनादिकाल तक रह सकेगी।युद्ध की क्षण - क्षण की सूचना सिकंदर को मिल रही थी और सिकंदर की विशाल सेना को उस छोटी सी सेना ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

सिकंदर को बड़ा आश्चर्य हुआ कि सैनिक अपने राज्य की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों के मूल्य को नगण्य समझते हैं , उनके लिए मातृभूमि की रक्षा से बढ़कर कुछ नहीं है। महेंद्र बाहुबली की सेना ने सिकंदर की सेना को अपने राज्य की सीमा से खदेड़ दिया लेकिन उसके बाद उन्होंने उस सेना के साथ युद्ध नहीं किया। उन्होंने भागते हुए और घायल सैनिकों पर अपनी दया दृष्टि बनाए रखी। घायल सैनिकों की उन्होंने अपने शिविर में ले जाकर पूरे सम्मान के साथ सेवा- सुश्रुषा की। भागते हुए सैनिकों पर प्रहार नहीं किया। सिकंदर को महिष्मति राज्य की इस धर्मपूर्वक युद्ध नीति ने अंदर तक प्रभावित किया क्योंकि वह देख रहा था कि उसकी पीछे हटती सेना के साथ महिष्मति राज्य के सैनिकों ने दयापूर्वक व्यवहार  किया था। पीछे हटती सेना पर यदि वे दया भावना न दिखाई आती होती तो उसकी सेना का एक बहुत बड़ा भाग समाप्त हो चुका होता। पोरस को जब सिकंदर के सामने लाया गया तो उसके मन में महिष्मती राज्य के सैनिकों के द्वारा दिखाई गई दरियादिली का प्रभाव भी उसके मन में था । जब पोरस अर्थात पुरू ने सिकंदर  से अपने साथ वही व्यवहार करने के लिए कहा जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है तो सिकंदर के स्वयं अपने मन में ग्लानि का भाव जागृत हुआ और उसने उसी रहमदिली के प्रभाव से प्रभावित होते हुए पुरू  के साथ में उत्कृष्ट व्यवहार किया। सिकंदर ने जब महिष्मति राज्य के इतिहास के बारे में सुना तो उसके मन में आमरेंद्र बाहुबली के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव उमड़ा जिसने देवसेना के प्यार की खातिर राजपद को ठोकर मार दी थी। आमरेंद्र सदैव ही अपने राज्य की समस्त जनता के कल्याण के कार्य करता था। यही तो वह कारण था कि पूरे राज्य की जनता उसके सामान्य व्यक्ति के जीवन के रूप में भी जीवन व्यतीत करते समय भी जनता उसे  अपने राजा की भांति ही उसका सम्मान करती थी। बचपन से ही उसमें सभी के प्रति दया के भाव थे।एक सच्चा राजा वही होता है जो अपने देश के हर नागरिक को अपनी संतान की भांति प्यार करता है। एक सच्चे राजा के गुणों का उसके चरित्र में समावेश देखा गया था तभी तो रानी शिवगामी देवी ने अपने सगे पुत्र के स्थान पर उसे महिष्मती राज्य का राजा बनाने का निर्णय किया था।"

अपनी घड़ी की ओर देखते हुए गौरव सर ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा-"अब यह पीरियड समाप्त होने को है आज की इन दो कहानियों से हमें यह सीखना चाहिए कि यदि हम भौतिक संसाधनों और सुख सुविधा के साधनों की ओर आकृष्ट न होकर समस्त समाज की भलाई का भाव अपने मन में में रखते हैं और उसी के अनुरूप हमारा आचरण और व्यवहार भी होता है। तो हमें सभी से सम्मान मिलता है। इस संसार में हम जैसा बोते हैं वैसी ही फल काटने को हमें मिलती है यदि हम सभी का सम्मान करते हैं तो निश्चित रूप से हमें सम्मान के बदले में सम्मान अवश्य मिलेगा। यदि हम सबसे प्यार करते हैं तो हमें भी प्यार के बदले में प्यार ही मिलता है। अपने जीवन काल में हमारे आचरण और व्यवहार से लोग प्रभावित होते हैं और इस प्रभाव से ही लोग हममें सद्गुण या अवगुण देखते हैं हमारे सद्गुणों की सराहना होती है उनका अनुकरण होता है। हमारे दुर्गुण हमारी बदनामी का कारण बनते हैं । लोग दुर्गुणी से युक्त व्यक्ति को तिरस्कार की भावना से देखते हैं। संसार में भौतिक संसाधन नष्ट हो जाते हैं और लोगों की प्यार की भावना पूरे संसार में एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में युगों युगों तक अमर रहती है।तो ध्यान रखें 'प्यार बांटते चलो।'


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