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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

बदलें व्यवहार-जग के अनुसार

बदलें व्यवहार-जग के अनुसार

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अपने ऑफिस में सदा शांत रहने वाला सुबोध आज अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा रहा था-"मेरी हमेशा यही कोशिश रही है कि मैं दूसरे की जितनी मुझसे संभव है मैं मदद करूं और अपना काम अपने आप अधिक से अधिक करूं। हम सब जानते हैं हम सभी का जीवन आपसी सहयोग से ही चलता है। इस संसार में जड़ और चेतन भी एक दूसरे के लिए सहायक होते हैं। एक दूसरे से सहायता लेते हुए और सहायता देते हुए हमारा जीवन सुविधाजनक तरीके से चलता रहता है और इस सहयोग पूर्ण भावना के कारण ही हमारा एक दूसरे से जुड़ाव भी बना रहता है। समाज में बहुत से कार्य मिल जुलकर करने से आपसी स्नेह और सौहार्द बना रहता है। समाज में हम सब एक दूसरे के साथ अपने सुख- दुख साझा करते हैं । सब एक दूसरे की खुशी में शामिल होते हैं जिससे कि खुशियां कई गुना बढ़ जाती हैं। इसी प्रकार हम किसी के दुख के क्षणों में उसके दुखों को बंटाते हैं तो यह दुख कम हो जाते हैं। दुख कम होने से मेरा तात्पर्य दुखों की अनुभूति की तीव्रता कम हो जाती है। हमेशा कुछ लोग दूसरों के दुख दर्द को महसूस करते हैं और यथासंभव अपने साथी के दुखों को कम करने हेतु तन मन धन से सहयोग करते हैं । यहां इस संसार में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो किसी की प्रकृति को समझ कर उसकी शराफत का नाजायज फायदा भी उठाते हैं ।अपना स्वार्थ सिद्ध हो हो जाने के बाद वे भूल जाते हैं ।दूसरे के दुख को बंटाने की जगह पर वे अपने व्यंग्य बाणों से उसके दुख- दर्द को और बढ़ा देते हैं ।कुछ लोग अपनी खुशी को तो खुशी समझते हैं लेकिन दूसरी की खुशी उन्हें शूल की तरह चुभती है । ऐसे ही लोगों के व्यवहार को अनुभव करके यह कहावत बनी होगी कि यह संसार में वही दुखी जिसका पड़ोसी सुखी।"


 हम सब जानते हैं कि आज के इस स्वार्थ भरे जमाने में लोग इस ताक में रहते हैं कि उन्हें न्यूनतम परिश्रम और अधिकतम लाभ मिले। किसी व्यक्ति को जब उन्हें नौकरी की तलाश होती है तो उस समय वह किन्हीं शर्तों पर नौकरी करने के लिए लालायित रहता है लेकिन जब उसे यह अवसर मिल जाता है तो वह अपने कर्त्तव्यों को भूलकर बस अपने अधिकारों पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित रखते हैं। सुबोध जैसे शरीफ साथियों पर ही अपने दायित्वों की कोशिश करते हैं। ऐसे कार्यस्थलों जो कोई व्यक्ति ईमानदारी से काम कर रहा होता है उसके ऊपर बड़ी ही चालाकी से यह अतिरिक्त कार्य का अत्यधिक बोझ उस पर डाल दिया जाता है। शुरु शुरु में तो वह व्यक्ति से अपने सरल स्वभाव ,अपने कर्तव्य प्रति अति संवेदनशील और साथियों की मदद के भाव मानकर करता रहता है।जब उसे यह अहसास होता है कि उसका शोषण किया जा रहा है ।वह और उसकी कर्त्तव्यपरायणता का उपहास का विषय बनी है तो उसके हृद

य में वेदना होती है।सबसे सद्व्यवहार और पूरे मनोयोग से सहयोग करने के बाद जब उसे पता लगता है कि ये सब कैसे चालाक किस्म के लोग अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।इस अहसास के होते ही ये शोषित सहकर्मी सुबोध की भांति आहत होकर अपने मन की भड़ास बड़बड़ाकर निकालते हैं।


गौरव जी जो सचमुच इस आफिस का गौरव हैं आज सुबोध के इस बदले व्यवहार से हतप्रभ थे। वे बोले-" सुबोध जी, लगता है कि आपकी भावनाएं आहत हुई हैं। अभी आप युवा हैं इसलिए आप दूसरे की भावनाओं को ज्यादा महत्व देते हैं स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों को आराम देने का प्रयास करते हैं । आज भी हम अपने देश के राजनीतिज्ञों देखें तो युवा नेता देश में बदलाव चाहते हैं। समय बीतता है तो उनमें से अधिकांश के विचारों में बदलाव देखने को मिलते हैं। वे भी दूसरे घाघ राजनीतिज्ञों की भांति ही वे भी विभिन्न तरह के लालच , स्वार्थ या दबावों आदि के शिकार हो जाते हैं। राजनीति के दलदल में आज भी कुछ गिने चुने ऐसे राजनीतिज्ञ भी हैं जो लोक कल्याण की बात सोचते हैं और इस मामले उनकी सोच सतत् एक ही दिशा में उत्तरोत्तर परिपक्वता को प्राप्त करती है। ऐसे में उनके अपने पारिवारिक वातावरण को कुछ के परिवार या किसी राष्ट्रभक्त संस्था से जुड़े होने के कारण वे सदैव देशहित की बात सोचते हैं।"


थोड़ा रुक कर गौरव जी बोले-"मैंने तुम्हें इशारों में समझाने के संकेत दिया था कि संसार में हर चीज ,हर व्यवहार की अपनी सीमा है।हद से ज्यादा सीधे पन को लोग आपकी कमजोरी मानते हैं।आप किसी की निन्यानबे बार कर दो लेकिन सौवीं बार किसी मजबूरी उनकी मदद नहीं कर पाते हैं तो निन्यानबे बार की मेहनत बेकार हो जाती है साथ ही सौवीं बार काम न कर पाने के कारण उपजी नाराजगी प्रभावी हो जाएगी।"

 सुबोध को प्रायः गौरव जी ऐसी बातें बताकर समय पर आगाह करते रहते थे। उन्होंने सुबोध को इसके पूर्व भी दुनियादारी के प्रति सचेत किया था और उससे हर व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन करके उसी अनुरूप अपना व्यवहार करने का सुझाव दे रखा था।

 

गौरव जी ने कहा-" सुबोध जी,आप लोगों के व्यवहार का अनुभव करिए।आप की शांति और शराफत के उदाहरण दिए जाते हैं। आपको सदैव ध्यान रखना कि आपका सभी के प्रति सहयोगपूर्ण व्यवहार आपके लिए मानसिक रूप से उलझाने वाला हो सकता है।आप सरल बनें पर दूसरों के व्यवहार के अनुसार ही आप अपने अपने व्यवहार में संशोधन करते हुए व्यवहार करें।

"आपका हार्दिक आभार और कोटि-कोटि धन्यवाद। भविष्य में मैं आपकी दी सीख के अनुसार अपने आचरण- व्यवहार में परिवर्तन करूंगा।"- सुबोध ने कहा और वह शांत भाव से अपने कार्य में व्यस्त हो गया।


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