मरम्मत जरूरी है
मरम्मत जरूरी है


वो एक बेहतरीन सोच ही होती है जिससे एक उम्दा समाज और साफ सुथरे मोआशरे की तामीर होती है। सड़ी हुई सोच और गली हुई रिवायतें एक बेहतर समाज को कैसे गढ़ सकतीं है ? खास तौर से तब जब उनको दिखावे के मज़हब और शरीयत की चाशनी में लपेटा गया हो।
समाज की तरक्की मतलब उसके लोगों की तरक्की यानी मुल्क की तरक्की। अच्छी सोच, सही गलत में फर्क करने की तमीज़ होना, ये सब तभी मुमकिन है जब तालीम हो। तालीम का रास्ता और उसका हक़ हर शख्स के लिए है, हर मजहब में है। आज जब की हर इंसान तालीम की रोशनी में खुद की तकदीर की मरम्मत करने में लगा हुआ है वहीं अभी भी कुछ ऐसी सड़ी गली सोच और खोखली रिवायतें जड़ किए हुए है जिससे तरक्की तो दूर की बात है, खुद का वजूद ही खतरे के हाशिए पे और मुस्तकबिल अंधेरे में नजर आने लगता है, ख़ास तौर पे उन बच्चियों का, जो अभी जिंदगी के सही मायने ही नहीं जानती,और घर की जिम्मेदारियां और परिवार की इज्जत का बोझ अपने नन्हे कंधों पर कच्ची उम्र में ही लिए हुए हैं। जैसे मज़हब की सारी शर्तें इन्ही के लिए हैं और सारे सामाजिक दायरे इन्ही को क़ैद करने के लिए बने हुए हों। ये इस बात से बेखबर हैं की इसके आगे भी एक जिंदगी है जो बेहद खूबसूरत हैं लेकिन उसका रास्ता तालीम से होकर गुज़रता है। वो इस रास्ते पे अगर चलना भी चाहें तो जिम्मेदारियों और बंदिशों का का टोकरा इतना भारी होता है की आगे का रास्ता ही नजर आना बंद हो जाता है।
समाज में कुछ कुरितियां अभी भी मज़हब की आड़ में धड़ल्ले सेचलाई जा रहीं हैं और खामियाज़ा कई बार लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है।
अभी जल्दी ही एक वाक्या मेरे नजदीक गुज़रा, अपने ही समाज की एक बहोत भद्दी सी तस्वीर सामने आ गयी और खुद के अंदर एक कुढन सी मेहसूस होने लगी । लेकिन नईमा मैम ने उस तस्वीर के भद्देपन को खूब तरीके से साफ किया।
एक रोज़ हुआ यूं की नईमा मैम बहोत उदास सी स्टाफ रूम में बैठी थी की तभी लीना मैडम और शगुफ्ता मैडम दाखिल हुई और उन्हें यूं बैठा देख पूछ पड़ीं " क्या हुआ मैम आज कुछ बुझी बुझी सी लग रहीं हैं? क्या बात है?"
इस पर नईमा ने अफसोस जताते हुए कहा " क्या बताऊं मैम! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, इस मामले को कैसे हल करना चाहिए और ये सिर्फ ऐसा एक मामला नहीं है बल्कि ऐसा हर घर में है जो समाज के लिए नासूर है खास तौर से हमारे घरों में पल बढ़ रही जवान नस्लों के लिए"।
"कुछ बताएंगी की सिर्फ पहेलियां बुझाएंगी?" शगुफ्ता मैम ने पूछा।
"शगुफ्ता तुम तो जानती ही हो ये जो घरों में खास तौर से हमारे समाज में आपस में रिश्ते जोड़ने वाली रस्मे और रिवायतें चली आ रही है, मैं उसी से परेशान हूं।"
"अब देखो न वो जो क्लास नौवीं की बच्ची है .... ज़ीनत , उसका रिश्ता पक्का होने वाला है, और मालूम है किससे? उसके ही रिश्ते में उससे बीस साल बड़े चचा से ।वो मुझे ऐसे पता चला की उसकी एक रिश्तेदार मेरे घर आई थी वो ही बता गई और कहने लगी की महीने भर बाद उसकी शादी हो जाएगी इसलिए वो अब स्कूल नहीं जाएगी।"
इस पर शगुफ्ता मैम ने कहा "हुंह!! यहीं तो सारा खेल खराब होता है। इन मज़हब के ठेकेदारों का ही सब किया धरा है और कहते हैं हमारे लोगों को तरक्की नहीं मिलती, इसलिए हमलोगों की कौम पिछड़ी है। कहीं न कहीं इसके हम भी ज़िम्मेदार हैं। अरे कम से कम उसकी शादी लायक उमर तो हो जाने देते, कुछ पढ़ लिख जाने देते....! खबीस कहीं के ! न खुद पढ़ेंगे न पढ़ने देंगे।"
"उमर का फासला तो मैम आजकल बहोत मायने नहीं रखता लेकिन इतना फासला क्यों? क्या लड़की में कोई ऐब है या लड़के में? या दोनो को ही आगे कोई रिश्ता नहीं मिलता?" लीना मैम ने पूछा।
" और वो लड़का और ज़ीनत , क्या दोनो मान गए या जबरदस्ती हो गया रिश्ता?" स्टाफ रूम में किनारे बैठी
संगीता मैम जो अब तक सब खामोशी से सुन रहीं थी पूछ बैठीं।
"अरे मैम ! ये आजकल के बच्चे भी बहोत एडवांस्ड हैं।और क्यों न हो कुछ तो सोशल मीडिया अपना काम कर देता है और बहोत कुछ घरवाले करते रहते हैं।
इनके मुजरिम मैं घरवालों को ही मानती हूं जो बच्चों में बचपन से रिश्तों की तमीज़ कराना भूल जाते हैं।तालीम की तरफ तवज्जो होने ही नही देते और ऐसे माहौल में जवान होते बच्चों की सोच भी वैसी ही हो जाती है।" गुस्से में भरी आवाज से शगुफ्ता मैम ने बात का जवाब दिया।
"और एक बात बताऊं मैम! इसी तरह के माहौल में पल बढ़ रहे बच्चे जब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंचते हैं तब अपने घर को और रिश्तों को ही गंदा कर देते हैं, क्योंकि रिश्तों के मायने कुछ नहीं हैं इनके सामने सबको उसी एक नज़र से देखने लगते हैं। वजह है की कल को जिस बहन के साथ खेले उसे आज बीवी बनते देखते है। जिसे कल अपना कजिन ब्रदर कहके मिलवाती थी आज वो मौसा या जीजा बन गया ।उदाहरण कई सारे हैं।" नईमा मैम ने शगुफ्ता मैम की बात को सपोर्ट करते हुए कहा।
"इसकी एक बड़ी वजह और भी है, वो ये की लड़की वाले ये मान के चलते हैं की लड़की का मुस्तकबिल शादी है क्योंकि वो अपने पैरों पे नहीं खड़ी हो सकती इसलिए किसी भी रिश्तेदार के पल्ले करदो किसी भी उम्र में।और पैरों पे क्यों नहीं खड़ी हो सकती? क्योंकि उसको लिखाने पढ़ाने की सलाहियत इनमे नही होती। अगर किस्मत से शक्ल सूरत की अच्छी हुई तो पैसेवाले रिश्तेदार ऐसे ही रिश्ता लगा लेंगे, फिर तो लॉटरी लग गई समझिए। और अगर शक्ल अक्ल की कम हुई लेकिन पैसेवालों के घर की है तब भी कोई परेशानी नहीं पैसों के ज़ोर पे रिश्ते तै हो जाते हैं। नाम दे दिया जाता है मजहब का।" कहते हुए शगुफ्ता मैम अपनी क्लास लेने चली गईं।
लीना मैम, संगीता मैम और नईमा मैम स्टाफ रूम में बैठीं कॉपी चेक कर ही रहीं थीं की तभी रश्मि ने अंदर दाखिल होने की इजाज़त मांगी। इजाज़त मिलते ही वो डरी सहमी सी नईमा मैम के पास आ खड़ी हुई और कहने लगी " मैम आपसे अकेले में कुछ बात करनी है। बहोत जरूरी है।"
"हां बेटा बोलो क्या बात है?" कहते हुए नईमा मैम रश्मि को किनारे ले गईं।
" मैम ज़ीनत की अम्मी आपसे मिलना चाहती हैं लेकिन अपने घर पे नहीं आपके घर में या आप जहां कहें वहां।"
"अच्छा तो कल उन्हे यहीं स्कूल में ले आओ लेकिन दो बजे के बाद। स्कूल की छुट्टी भी हो जायेगी और मैं फ्री भी रहूंगी, ठीक है।"
"ठीक है मैम! मैं उन्हे बता दूंगी।" कहते हुए रश्मि चली गई।
"ज़ीनत बहोत ज़हीन बच्ची है अगर उसे मौका मिला तो बहोत आगे जाएगी, पता नही क्या माजरा है कैसे मान गई ?" सोचते हुए नईमा मैम अपनी क्लास की तरफ बढ़ गईं।
अगले दिन तकरीबन दो बजे रश्मि ने नईमा मैम के पास आके उन्हे ज़ीनत की अम्मी के आने की इत्तेला दी। नईमा मैम ने रश्मि से उन्हे स्टाफ रूम में लाने को कहा।
थोड़ी ही देर में एक लंबी सी काया काले नकाब में स्टाफ रूम में दाखिल हुई। नईमा मैम को सलाम करती हुई उसने नकाब का मकना उठाया और मैम के कहने पे कुर्सी पे बैठ गई। बहोत खूबसूरत सी बड़ी आंखों वाली ऊंचे कद काठी की औरत थी। पढ़ी लिखी मालूम होती थी। नईमा मैम ने बात को शुरू करते हुए पूछा, "बताइए आप मुझसे क्यों मिलना चाहती थी वो भी इस तरह?"
"मैम अब आप ही कुछ रास्ता बताइए, ज़ीनत का रिश्ता उसके अब्बू और फूफी ने मिलकर तै कर दिया है, लेकिन मैं और मेरी बच्ची इससे राज़ी नहीं हैं। ज़ीनत की अभी उम्र ही क्या है? इस साल पंद्रह की पूरी हुई है सोलहवां लगा है।" कहकर उनकी आंखें भर आईं।"तो क्या आपने अपने शौहर से ये सब नहीं कहा?" नईमा ने पूछा।
" वो इतने ही काबिल होते तभी क्यों? कहने को तो ज़ीनत और मैंने बहोत कहा लेकिन उल्टा कल उन्होंने उस गरीब पर हाथ उठा दिया। मै
म आपके बारे में हमने बहोत सुना है। आपने इस सोच से कैसे लड़ाई लड़ी ? और आप आज अपने दम पे खड़ी है, कैसे किया आपने ? आपके घरवालों और शौहर ने भी तो बहोत बेड़ियां डालनी चाहीं आप पे, लेकिन आज आपने अपना एक अलग मुकाम बना लिया है, सारे शहर में लोग आपको कितनी इज्जत देते हैं आपका एहतेराम करते हैं, इसलिए आपसे मिलना चाहती थी क्यों की कितनी ही बच्चियों के लिए आप एक मिसाल हैं। ज़ीनत आपसे मिलना चाहती थी लेकिन उसको घर से बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी सो मैं चली आई आपसे मिलने। खुदारा कोई हिकमत लगाइए।"
"सबसे पहले तो बता दूं की सबको अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है और वो तभी मुमकिन है जब आप के अंदर हिम्मत हो और सही गलत में फर्क करने का सलीका हो, और ये सब तालीम से ही मुमकिन है। अब बताईए ये क्यों हो रहा है? " नईमा ने पूछा।
"ज़ीनत की बुआ ये रिश्ता ले आईं थीं, उसका शौहर कोई काम नहीं करता वही हाल ज़ीनत के अब्बू का भी है किसी दुकान पे कपड़े पैक करने का डिब्बा बनाते हैं। दोनो निकम्मे हैं मैम। मैं यहां की नहीं हूं लेकिन जब से शादी हुई है यही देखती आ रही हूं कि घर की औरतें काम करतीं हैं और मर्द चाय पान की दुकान पर दिन भर बैठे वक्त ज़ाया करते हैं। शुरू में मैने बगावत की लेकिन कोई नतीजा हासिल नहीं हुआ।अब मैं हिम्मत हार चुकी हूं। दरअसल जिस लड़के से शादी हो रही है वो ज़ीनत के अब्बू का करीबी रिश्ते से भाई है।उसका बाप भी कुछ नहीं करता। लड़का खुद भी किसी के यहां नौकर है सीरत का बहोत अच्छा नहीं है, लेकिन उसके बाप ने ज़ीनत की फूफी को अपनी पुश्तैनी जायदाद में से एक कमरा देने का वादा किया और चंद रुपए ज़ीनत के अब्बू को देने के लिए कहा जिसके बदले मेरी ज़ीनत की कुर्बानी दी जा रही है, बगावत करने पर कहते हैं चल हट ये हमारे मजहब में है हम कोई नजायज या खराब काम थोड़े ही कर रहे हैं, शादी ही तो करवा रहे हैं, खुश रहेगी और करना ही क्या है।" ये कह कर ज़ीनत की अम्मी ज़ारो ज़ार रोने लगी।
"अच्छा रोइए मत! पहले ये बताईए आपका साथ आपके घर में कौन कौन दे सकता है?" नईमा मैम ने पूछा तो उसपर वो बोलीं " मेरा एक बेटा है शोएब जो बड़ा है, एक छोटी बेटी और है निदा वो ज़ीनत से साल भर छोटी है लेकिन बहोत ज़हीन है। इसके अलावा मेरी सास हैं। अपने बच्चों के अलाव किसी पर भी ऐतबार नहीं रहा अब मुझे।सास कुछ कहती नहीं लेकिन कब किस तरफ़ पलट जाए कोई ठीक नहीं है। आपा पे बहोत भरोसा था सो वो भी खत्म हो गया।"
"ज़ीनत का बर्थ सर्टिफिकेट होगा न आपके पास?"
"मैम वो तो सब इन्ही के पास होगा देखना पड़ेगा। आप ओरिजनल अपने घर में देख लीजिए और हां मंगनी की रस्म किस दिन है वो बताइए।" कहते हुए नईमा मैम ने अपना मोबाइल नंबर देते हुए उनसे शाम में बात करने के लिए कहा।ज़ीनत की अम्मी खुदा हाफ़िज़ कहके रूखसती ले के चलीं गईं । नईमा मैम स्टाफ रूम से बाहर आकर अपने मोबाइल पर एक नंबर डायल करने लगीं।
उस तरफ से किसी की भरी आवाज आई। नईमा मैडम ने उन्हे सारी बात बता दी। उन्होंने कहा कि आप बस वक्त और प्रूफ के बारे में इत्तेला कर दीजिएगा बाकी तो हम संभाल लेंगे।
शाम में ज़ीनत की अम्मी का फोन आया और उन्होंने बताया की मंगनी इसी हफ्ते जुम्मे के रोज है।नईमा मैम ने ज़ीनत की अम्मी से ताकीद कर दी की इन सब बातों की किसीको कानो कान खबर न हो।
जुम्मे के रोज़ दोपहर में स्कूल खत्म करके नईमा मैम ने शगुफ्ता मैम,लीना मैम और ज़ीनत की क्लास की लड़कियों को साथ लिया और सीधे ज़ीनत के घर धमक पड़ीं। उन सबको वहां देख के ज़ीनत के अब्बू और बाकी मेहमानों को लगा की शायद ज़ीनत ने उन्हें अपनी मंगनी में बुलाया हो। जैसे ही रस्म शुरू हुई नईमा मैम ने शोएब को बुलाया और उसके कान में कुछ कहा। उनकी बात सुन के शोएब अंदर से बर्थ सर्टिफिकेट ले आया। और तभी नईमा मैम ने फोन से कॉल लगाई। मिस्ड कॉल देके वो खामोश खड़ी रहीं। तभी वहां इंस्पेक्टर सूरज सिंह अपनी टीम के साथ आ पहुंचे। अपनी भारी आवाज़ में बोले " यहां क्या हो रहा है?" उसपर ज़ीनत के अब्बू और फूफी बोले "अरे शादी मंगनी का माहौल है सरकार बच्ची की मंगनी हो रही है। लेकिन आप यहां ......? कैसे....? कोई मसला है क्या...?
"जी मसला है । लड़का कौन है? " लड़का खड़ा हुआ और बोला "सर मेरी मंगनी होनेवाली है। बात क्या है?"
"बताते हैं अभी बताते हैं... इतनी जल्दी क्या है?"
"लड़की को बुलाइए फौरन" ज़ीनत की अम्मी उसे अपने साथ ले आती है।
इंस्पेक्टर ज़ीनत से पूछते है " बेटा क्या ये सब तुम्हारी मर्जी से हो रहा है?" ज़ीनत रोते हुए कहती है " नही सर, मुझे तो आगे पढ़ना था लेकिन अब्बू मुझे पढ़ने नहीं देते ये उनकी और फूफी की जिद्द से हो रहा है।"
"अरे सर बच्ची हमारी है हम उसका बुरा थोड़े ही सोचेंगे, उसे अभी क्या पता वो बच्ची है।" ज़ीनत के अब्बू ने कहा।
"जी हां बात तो यही है की ये अभी बच्ची है और इसकी शादी की उम्र नहीं है। सही कहा न मैंने?"नईमा मैम बर्थ सर्टिफिकेट शोएब से लेते हुए इंस्पेक्टर सूरज को देते हुए बोलीं।
इंस्पेक्टर सूरज ने कहा "ले चलो इन सब को थाने बंद कर दो अन्दर। जब जेल की हवा खायेंगे तब अक्ल ठिकाने आयेगी। और तू ..... तीस साल का होके अपने से आधे उमर की लड़की से शादी करने चला है वो भी उसकी मर्जी के बगैर। चल तेरा भूत उतरता हूं।"कह कर इंस्पेक्टर ज़ीनत के अब्बू, लड़के के बाप और लड़के को अपने साथ ले जाते है। नईमा मैम उन्हे शुक्रिया कहते हुए ज़ीनत की तरफ मुड़ के उसे गले से लगा लेती हैं और वहां मौजूद सब लड़कियों से कहती है "बच्चियों किसी भी कीमत पर तालीम हासिल करना। सही और सच्चा मजहब पहचानने का रास्ता इल्म से होकर गुजरता है। जानोगी नही तो सही गलत का फर्क कैसे करोगी ? तुम सबमें बहोत सारी खूबियां है टैलेंट है, पहचानो उसे और आगे बढ़ो। मज़हब ने तालीम को ऊंचा मकाम दिया है। ये एक इबादत का रूप है। आगे से कॉपी कलम किताब को अपना हथियार बनाओ आंसुओं या बेबसी को नही। और हां! अच्छी खराब नजरों को पहचानना सीखो। मज़हब के नाम पर अपने आपको ठगने मत दो, खुदा ने तुम्हे जीता जागता इंसान पैदा किया है । तुम मुजस्सिमा बनना बंद करो। खुदा ने दिमाग का दर्जा सबसे ऊपर दिया है उसे इस्तेमाल करो और अपनी अच्छी सोच से मकबूलियत हासिल करो.... समाज की तस्वीर बदल डालो। समझे सब? " इतना सुन के सारी लड़कियों और वहां मौजूद लोगों में हिम्मत और हौसला बढ़ गया।
"ज़ीनत कल से स्कूल आना है तुम्हे और हां अपनी अम्मी का शुक्रिया अदा करो उनके इस कदम ने तुम्हारे मुस्तकबिल का रास्ता साफ कर दिया।"
फिर ज़ीनत की अम्मी से कहती है, "आप भी कभी कुछ बाज़ी चल दिया कीजिए वरना कई बार सामने वाला अपने मोहरे मजहब और रिवायतों के नाम से चल देता है और हम रिश्ते निभाने में ही लगे रह जाते हैं।" नईमा मैम, लीना मैम और शगुफ्ता मैम बाकी लडकियों के साथ खुश होते हुए वहां से चल देती हैं।
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इंसान चांद पर पहुंच गया, बाकी सैय्यारों तक पहुंच बनाए जा रहा है लेकिन ज़मीन पर इंसान कैसे बन के रहना है ये नहीं जान पाया शायद इसीलिए कभी मजहब का हवाला देता है, कभी रिवायतों का हवाला देता है , कभी खुदा का हवाला देता है, कभी समाज का ताकि अपनी नाजायज चाहतों को जायज़ करार दे सके और कमजोर पर लाद सके।
आज भी बहोत से रीति रिवाज़ ऐसे हैं जो सिर्फ बोझ बन चुके हैं सड़ चुके हैं लेकिन हम उन्हे लादे फिर रहे हैं। उनकी मजम्मत करना अब जरूरी हो गया है। जब इनकी मजम्मत होगी तभी हमारी सोच की मरम्मत होगी, और एक खूबसूरत समाज की बुनियाद पुख्ता होगी ।