Dr. A. Zahera

Tragedy Inspirational

4.6  

Dr. A. Zahera

Tragedy Inspirational

गिटार

गिटार

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बच्चों का अपने सपनों का एक अलग ही कैनवस होता है जिसमे वो अपनी कल्पनाओं की आकृति उकेरते रहते हैं और अपने ही पसंद के रंग खुद भरना चाहते हैं। उसमे हम अगर अपनी लकीरें बनाने लगें तो उनके सपनों और आकांक्षाओं का रंग रूप बदल जाता है, उसमें भरे हुए रंग बिखरने लगते हैं और वहां से शुरू होती है उनकी निराशा।


साहिल का मन आज पढ़ाई में नहीं लग रहा था। वो क्लास में बहोत उदास सा बैठा था। किसी भी टीचर की बात उसे अच्छी नही लग रही थी। आज स्कूल के ऑर्केस्ट्रा बैंड में सिलेक्शन के लिए अंतिम तारीख़ का ऐलान जो हुआ था। सारे बच्चों को अपने अपने वाद्य यंत्र (म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट) के साथ अगले हफ्ते स्कूल में एक प्रस्तुति देनी थी। अपने घर के माहौल और अपने पिता के बारे में सोच सोच के वो परेशान हुआ जा रहा था। वो यही सोच रहा था की "आधी जंग तो मैं ऐसे ही हार गया ........ बाकी आधी प्रस्तुति वाले दिन हार जाऊंगा क्योंकि मेरे पास तो गिटार ही नहीं है।"


साहिल का सपना था की वो एक गिटारिस्ट बने। उसे उसके साज़ और उसकी आवाज़ से बड़ा लगाव था। साहिल के लिए संगीत की दुनिया ही सब कुछ थी। वो छुप छुप के संगीत की क्लास किया करता था क्योंकि उसके पिता को उसका गाना बजाना बिलकुल भी पसंद नहीं था। 

स्कूल से जब साहिल अपने घर पहुंचा तो उसने देखा की दरवाज़े पर बड़ा सा ताला लटका हुआ है। "लगता है आज फिर मां को देर हो जायेगी।" मन ही मन बुदबुदाता हुआ वो अपने घर के बाहर दरवाज़े की सीढ़ियों पर बैठ गया और गिटार कहां से लाया जाए इस बारे में सोचने लगा "पापा से तो कहने का कोई फायदा नही है और मां से अगर बताऊंगा तो वो परेशान हो जायेगी, उनके लिए इतने पैसों का इंतज़ाम करना बहोत मुश्किल होगा। उनको पापा से बहोत लड़ाई लड़नी पड़ेगी। वैसे ही वो रोज़ गुस्से में होते हैं और अपनी ऑफिस का सारा गुस्सा घर पर आ कर मां पर ही तो उतारते हैं।"

साहिल के पापा बहोत ही पुराने खयाल के थे। हमेशा गुस्से में रहना, लड़ाई करना और साहिल पर कई बार हाथ उठाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। किसी प्राइवेट संस्था में मामूली से बाबू थे। घर की सारी जरूरतें उनकी छोटी सी तनख्वाह में पूरी नहीं हो पाती थी इसलिए उसकी मां कपड़े सिलकर अपने हिस्से की भागीदारी निभाती थी।


मां साहिल के इस हुनर को बखूबी जानती थी लेकिन वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। बड़ी मुश्किल से बहोत लड़ के उसकी मां ने साहिल का दाखिला शहर के अच्छे स्कूल में करवाया था। इस बात का ताना वो रोज़ उसके पापा से सुनती थी। और साहिल को रोज़ इस बात का एहसास कराया जाता था की कितनी मुश्किलों से उसको पढ़ाया जा रहा है। अक्सर उसको ये सुनने को मिलता "तुम जीवन में क्या करोगे? तुम कुछ नही कर पाओगे। झूठ मूठ तुम पर इतना खर्च हो रहा है ....

 इत्यादि इत्यादि.... इन रोज़ की बातों से साहिल हीनता का शिकार हो रहा था। वो अपने सपने को किसी भी कीमत पर पूरा करना चाहता था और अपने पिता की राय अपने बारे में गलत साबित करना चाहता था।


इस साल साहिल ग्यारहवीं में था, अगले साल बोर्ड कि परीक्षा देना है इस खयाल से साहिल के पिता हमेशा उसको स्कूल की बाकी एक्टिविटीज से दूर रहने को कहते। लेकिन साहिल की मां उसे हमेशा प्रेरित करती। इसी बात से उसका मनोबल बढ़ जाता। 


शाम के पांच बज रहे थे और साहिल अपने मां का इंतज़ार कर रहा था की तभी दूर से आती हुई उसकी मां ने उसे देख लिया और जल्दी से आकर दरवाज़े का ताला खोल दिया। "क्या बात है बेटा ? तुम बहोत बुझे बुझे से लग रहे हो ... देर से इंतजार कर रहे थे न? दर असल मैं आज सिलाई का एक बड़ा ऑर्डर ले कर आई हूं देखो उसका एडवांस भी मिला है मुझे, उसी में देर हो गई।" लेकिन तुम्हारा चेहरा क्यूं बुझा हुआ है? क्यों परेशान लग रहे हो?" 


साहिल कुछ बोल नही पाया बस आंख में आंसू भर आए और वो अपने मां को पकड़ कर सिसकियां भरने लगा। "अरे! कुछ बताएगा भी या फिर ऐसे ही रोता रहेगा?" रोते हुए साहिल ने कहा, " मां स्कूल बैंड में अगले हफ्ते सिलेक्शन होना है और मेरे पास मेरा गिटार नहीं है। पापा ने अगर मेरे गिटार तोड़ा नही होता तो मैं भी भाग ले सकता था। क्योंकि स्कूल के ऑर्केस्ट्रा बैंड को इस महीने के लास्ट में परफॉर्मेंस देनी है वो भी इस शहर की स्थापना दिवस पर.... शहर की सारी बड़ी हस्तियां वहां होंगी। मम्मी..... आप तो जानतीं है की ये मेरा सपना है की मैं ऐसे म्यूज़िकल इवेंट्स में परफॉर्म करूं।"

" तुम परेशान मत हो मैं खरीद के दूंगी गिटार और तुम परफॉर्म भी करोगे लेकिन उसको तुम घर पे ना रखना न बजाना क्योंकि तुम्हारे पापा उसे फिर तोड़ देंगे।"


साहिल को उसकी मां ने समझाया और प्रोत्साहित किया। मां की बातों से साहिल को बहोत हिम्मत मिली लेकिन साथ ही अपनी मां की रोज़ की कड़ी मेहनत भी दिखाई दे रही थी। मां की साधना को सफल बनाना चाहता था। वो जानता था की उसका जीवन में कुछ बनना अगर संभव होगा तो सिर्फ उसकी लगन और उसकी मां का साथ और प्रोत्साहन की वजह से ही होगा वरना तो वो अपने घर के हालात जानता था।


मां बाप द्वारा दिया गया एक छोटा सा प्रोत्साहन, साथ और भरोसा बच्चों को किसी भी मकाम तक पहुंचा सकता है। वरना बहुत से प्रतिभाशाली बच्चे रास्ता भटक जाते हैं और असल मंज़िल तक पहुंच नहीं पाते। एक बच्चे की अपने सपनों की उड़ान अपने मां बाप के प्यार, साथ और विश्वास के रास्ते से होकर ही गुज़रता है और ये ही ना हो तो सपने बेमानी हो जाते हैं उसके लिए। 

अगले दिन उसकी मां उसके लिए गिटार ले आई और उसे देते हुए बोली "बेटा ये ले तेरे लिए मैं सबसे अच्छी दुकान से लाई हूं। अपने सपनो को पूरा कर और हम सबका नाम रौशन कर।" 

"मां आप मेरे लिए इतना महंगा गिटार ले आईं, मैं जानता हूं इसके लिए आपको बहोत पैसे खर्च करने पड़े होंगे। आप कितनी मेहनत से ये पैसे कमाती हैं मैं जानता हूं। मैं अपने स्कूल बैंड में ज़रूर सिलेक्ट होके दिखाऊंगा।" साहिल ने अपनी मां से वादा करते हुए कहा।


मंज़िलें इतनी आसानी से कहां मिलती हैं। उसके लिए रास्तों को समझना पड़ता है तो कभी हौसलों को परखना पड़ता है। साहिल के लिए रास्ते कुछ हद्द तक उसकी मां ने आसान कर दिए लेकिन अभी उसके हौसले और धैर्य की परख बाकी थी। 

स्कूल बैंड के सिलेक्शन के एक दिन पहले अचानक ग्यारहवीं क्लास से बहोत शोर सुनाई दिया। कुछ बच्चे आपस में लड़ाई कर रहे थे। लड़ाई इतनी ज्यादा हो गई की एक लड़के के सर पे चोट लग गई और दूसरे का हाथ घायल हो गया। शोर सुन कर प्रिंसिपल और बाकी टीचर्स भी वहां पहुंच गए। उन्होंने देखा साहिल और विवेक आपस में लड़ रहे हैं और बाकी बच्चे उन दोनो को अलग करने में जुटे हैं। प्रिंसिपल के पहुंचते ही बच्चों का शोर बंद हो गया। एक टीचर ने उन दोनो को अलग किया। माजरा पता चला की विवेक को साहिल अचानक गुस्से में मारने लगा जिसकी वजह से उसके सर पर बहोत चोट आई है और वो खुद भी घायल हो गया। प्रिंसिपल ने फौरन साहिल को अपनी ऑफिस में बुलाया और उसे सस्पेंशन लेटर थमा दिया। ऐसा होते देख वो प्रिंसिपल के आगे बहोत रोया और माफी मांगी लेकिन उसकी एक न चली। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे वो गहरे सदमे में है। आंख में आंसू भरे और घायल हाथ लिए वो अपनी क्लास की तरफ जा रहा था की वर्षा मैम जो कि स्कूल में काउंसलर थी उसे देख पूछ बैठी "क्या हुआ साहिल? तुम रो क्यों रहे हो? और ये तुम्हारे हाथ में चोट कैसे लगी? " बहोत बार पूछने पर उसने वर्षा मैम को बताया," मैम आप तो सब जानती हैं। मैं ऐसा लड़का नहीं हूं जो लड़ाई झगड़ा करता हूं। मेरे घर के हालात से आप वाकिफ हैं। मुझे अपने आपको अपने पापा के सामने साबित करना है की मैं कुछ कर सकता हूं मेरा वजूद बेकार नहीं है, और ये मैं अपने हुनर और पैशन के ज़रिए ही कर सकता हूं क्योंकि मैं पढ़ाई में उतना बेहतर परफॉर्म नही कर पाता। स्कूल बैंड में सिलेक्ट होकर मैं ये सब कर सकता था, इसके लिए मेरी मां मेरे लिए गिटार ले आई। मैम मेरे मां बाप विवेक के मां बाप जितने पैसे वाले नही हैं फिर भी मेरी मां ने मुझे अपनी मेहनत के पैसों से गिटार दिलाया था सिलेक्शन के लिए। विवेक ने उसे तोड़ दिया। मैं उसे नही मारता लेकिन अपनी मां की मेहनत, उम्मीद, अपने ही पिता द्वारा की गई अपनी रोज़ की बेइज्ज़ती और खुद मेरा सपना सब मेरे आंखों के सामने आ गया और मेरा हाथ उठ गया। मैं सिलेक्ट नही हो पाऊंगा इसका दुख मुझे उतना नही है जितना अपने गिटार टूटने का। वो मेरी मां की मेहनत है उसे मैं कैसे टूटने या खराब होने दे सकता हूं। मुझे अब जीने का फायदा नज़र ही नहीं आ रहा। मेरा दिल नही करता जीने का।" ये सुन कर वर्षा मैम परेशान होकर सीधे प्रिंसिपल की ऑफिस की तरफ चली गईं साहिल से वहीं रुकने को कह कर।


प्रिंसिपल के पास पहुंच कर वर्षा मैम ने कहा "सर! मुझे आपसे कुछ बहोत ज़रूरी बात करनी है। साहिल के बारे में।" प्रिंसिपल ने गुस्से में कहा "शायद आपको पता नही है उसने क्या किया है। पता होता तो आप यहां नहीं आतीं।" "सर मैं जानती हूं सब लेकिन स्कूल की काउंसलर की हैसियत से मैं आपका ध्यान कुछ बातों पर केंद्रित करना चाहती हूं। आपको सुनना पड़ेगा नही तो हम एक मासूम जिंदगी से हाथ धो बैठेंगे।" वर्षा मैम ने परेशान होकर कहा। बिना रुके वो अपनी बात कहने लगीं।"सर मैं मानती हूं डिसिप्लिन का हम सबको ध्यान देना है लेकिन मैं रोज़ काउंसलिंग के दौरान ऐसे बच्चों से रूबरू होती हूं जिनको जानने और सुनने के बाद मुझे ये महसूस होता है की ऐसी और इतनी डिसिप्लिन किस काम कि जब हम बच्चों के एहसास और भावनाओं को समझ ही नही सकते उनकी परेशानियों का निवारण ही नही कर सकते। आपको नही पता शायद सर.. ये बच्चे इस उमर में कई तरह की मानसिक परेशानियों का सामना करते हैं। हम ये समझते हैं की अवसाद से सिर्फ बड़े ही जूझते हैं तो हम गलत समझते हैं ,बच्चे भी इसका शिकार हैं। आज कल की जो जीवन शैली है, खास तौर से एकल परिवार की बात करें तो, जिसमे मां बाप दोनो नौकरी पेशा हैं वो अपने लिए वक्त नहीं निकाल पाते तो बच्चों को क्या वक्त देंगे। कौन समझेगा इनको???

आपको पता नही शायद... साहिल एक बार सुसाइड के बारे में सोच रहा था। कारण उसके पिता उसे हिकारत की नज़र से देखते हैं। मां की बेबसी को साहिल समझता है। उसको जुनून है अपने हुनर से अपने पिता को गलत साबित करने का। आखिर ये सोचने और करने का मौका हम आप ही तो दे रहे हैं इन बच्चों को।"

कितने बच्चों के चेहरे पर आप आत्मसंतुष्टि का भाव देखते हैं? सब भीड़ में चले जा रहे हैं। हमें रुकने की ज़रूरत है, सबको आत्ममंथन की ज़रूरत है वो चाहे अभिभावक हों या स्कूल मैनेजमेंट और शिक्षक। सर साहिल दुखी है अपने गिटार के टूटने से। हमें उसे टूटने से बचाना है। उसे माफ करके एक मौका और देना चाहिए।"

ये सुन कर प्रिंसिपल ने फौरन साहिल को बुलवाया और कहा " साहिल मैं इसे तुम्हारी पहली और आखरी गलती समझ कर इस बार छोड़ रहा हूं। लेकिन इसकी भर पाई तुम्हे स्कूल बैंड में सिलेक्ट होकर करनी पड़ेगी। तुम्हारा गिटार मैं ठीक करवा रहा हूं।" ये सुन कर साहिल की आंखों से सिर्फ आंसू बह रहे थे। उसने सर का धन्यवाद करके वर्षा मैम के पैर छुए।

बैंड में सिलेक्शन पाकर उसने शहर के स्थापना दिवस पर अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दी। उसके माता पिता भी वहां आए थे। अपने बच्चे को प्रस्तुति देता देख साहिल के पिता को आत्मग्लानि हुई। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद उसके पिता ने उसे गले से लगा कर कहा," बेटा मुझे तुम पर गर्व हो रहा है। तुम अपने सपनो को पूरा करो हम तुम्हारे साथ हैं।"

आज के दौर में इसी विश्वास की ज़रूरत है। और अगर ये प्यार ये वक्त और बच्चों के हिस्से का सम्मान हम देने लगे तो किसी काउंसलर की जरूरत नही पड़ेगी।


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