Dr. A. Zahera

Drama Action Inspirational

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Dr. A. Zahera

Drama Action Inspirational

मेरा आसमां!!

मेरा आसमां!!

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200


बाग़ो में बुलबुल चहक चहक के गा रहीं हैं, और बागबान उनकी मीठी आवाज़ सुन अपने सींचे हुए पौधों पर लगे फूलों को खिला खिला देख मस्त मगन हो रहा था।"

कविता की कुछ लाइनें पढ़ कर जब सर फेरी क्लास में समझा रहे थे तभी यकायक उनकी नजरें अनादिल पे पड़ी। "अरे अनादिल तुम्हारे नाम का मतलब भी तो बुलबुल है"। अपना नाम सुनते ही वो चौंक के अपने खयालों से वापस लौटी और झेंपते हुए बोली "जी सर"।" अपने नाम की तरह तुम्हारी आवाज़ भी मीठी है और तुम लिखती भी अच्छा हो, मैंने स्कूल मैगजीन में तुम्हारी एक कविता पढ़ी, बहुत अच्छा लिखती हो!" कहते हुए वो आगे की लाइन पढ़ने लगे।

 

अपनी कुछ कीमती चीज़ों को समेटते हुए उसने जब अपनी पुरानी कॉपी पर सर फेरी की लिखावट और अपने लिए बेहतरीन जुमले लिखे देखे तो इस बहुत पुरानी बात को याद करते हुए बुलबुल यानी अनादील की आंखों में जैसे सावन घिर आया। आंखों से आंसुओं के मोती झर झर बहने लगे। अपनी जिंदगी की किताब के कुछ पन्नों को वो हमेशा सजा के रखना चाहती थी लेकिन चंद पन्ने ऐसे थे जिन्हें वो फाड़ के फेंक देना चाहती थी क्योंकि उन पन्नों ने उसकी जिंदगी को एक भद्दी किताब में तबदील कर दिया था। सामान को समेट कर वो रात में अपने कमरे की बालकनी में खड़ी हुई और कुछ सोचने लगी।


रात का आसमान तारों की चादर से सजा हुआ था। गर्मी की रात थी हर तरफ मोगरे की भीनी भीनी खुशबू फैली हुई थी। एक थमा हुआ खामोश सा सन्नाटा हर तरफ पसरा हुआ था। लेकिन अनादिल के दिलो दिमाग में हज़ारों तरह के खयालों की बारिश के साथ एक तूफान सा उठा हुआ था। आज वो बहुत परेशान सी थी। उसको एक फैसला लेना था जो उसकी जिंदगी में अहम किरदार अदा करेगा। एक ऐसा फैसला जो उसकी और उसके बच्चों की जिंदगी बदलने वाला था। रात काफी हो चुकी थी लेकिन सोच का बवंडर रुकने का नाम नहीं ले रहा था। वो बहुत कशमकश में थी। नींद की जगह आंखों में पुरानी तस्वीरें और गुज़रे वक्त की कुछ बेहतरीन यादें एक रील की तरह घूम रहीं थी, जैसे अभी कल ही की बात हो हालांकि इन बातों तो गुज़रे लगभग अठारह बीस साल का वकफा हो चला था। 

" अना!" इसी नाम से वो उसे हमेशा बुलाया करता था।

अरमान नाम था उसका। अनादील और अरमान एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। दोस्ती कब प्यार में तब्दील हुई पता ही नहीं चला। दोनों के बीच एक अजीब सी कशिश थी, मुहब्बत थी, एक दूसरे के लिए इज़्ज़त, एक दूसरे की बातों को समझने की कूवत और सबसे बड़ी बात की जिंदगी की तरफ दोनों का नज़रिया बिल्कुल एक सा था। दोनों जिंदगी को बहुत आसान तरीके और सलीके से जीना चाहते थे।

" अना! मैं तुमसे वो सब कुछ कहना नहीं चाहता जो सब कहते हैं। तुम बेशक बहुत खूबसूरत हो लेकिन मेरे लिए उससे ज़्यादा अहम तुम्हारी खूबसूरत सोच और जीने का अंदाज़ है। मैं अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ गुज़ारना चाहता हूं। क्या तुम इस सफर में मेरा साथ दोगी?" उसने तब बड़ी मोहब्बत से आंखों में आंखें डाल के अपने हाथों में उसका हाथ थाम के ये सब कुछ कहा था। तब दोहरे मन से अनादील ने अरमान की बात में हामी भरी थी वो इसलिए की उसे इस बात का डर था की उन दोनों के मां बाप शायद इस रिश्ते को मंजूरी ना दें। क्योंकि दोनो परिवारों के एकतिसादी हालात और रहन सहन में बहुत फ़र्क था। अनादील बहुत रईस परिवार से थी उनका कपड़ों का बहोत बड़ा कारोबार था। वहीं अरमान एक मध्यवर्गीय परिवार से था लेकिन उसकी तरबियत बड़ी नेक दिली से हुई थी। उसके हौसले बहोत बुलंद थे, वो ज़िन्दगी में बहुत आगे जाना चाहता था, अना के साथ। लेकिन जिस चीज़ का डर था वही हुआ क्योंकि किस्मत के खेलने का अपना अलग अंदाज़ होता है। वो कई बार मोहरो के साथ ऐसी चाल चलती है कि इंसान अपने हिसाब से तै की हुई चाल चलते हुए अपनी बाज़ी हार जाता हैं। बहुत कोशिशों के बाद भी अनादील के घरवाले उन दोनों के रिश्ते के लिए राज़ी नहीं हुए और आनन फानन में उसका रिश्ता मोबीन से तै कर दिया। मोबीन हैसियत, शोहरत और पैसे से खानदानी अमीर था और शहर के रईसों में गिना जाता था। हालांकि ये शोहरत उसे अपनी विरसे में मिली थी।


एक दूसरे से बिछड़ते हुए अरमान और अना दोनों ने सिर्फ आंखों ही आंखों में एक दूसरे से बात की और अपने बिछड़ने का ग़म आंसुओं से साझा करते रहे। आखरी बात अरमान ने सिर्फ यही कही थी , "अना! जिंदगी के किसी भी मोड़ पर जब तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी तो तुम मुझे अपने साथ खड़ा पाओगी।" इतना सुनते ही अनादील अरमान के गले लग कर खूब रोई थी।


आज अनादील की मोबीन से शादी हुए अठारह साल गुज़र चुके थे। वो दोनों दो बच्चों के मां बाप थे। लेकिन आज तक दोनों के बीच किसी भी तरह की जज़्बाती कुरबत नहीं थी। शुरू से ही अनादील ने महसूस किया था की मोबीन और उसका रिश्ता किसी समझौते के तहत हुआ है। और तो और मोबीन के नज़दीक एक औरत सिर्फ हाथ की कठपुतली होती है। उसका काम सिर्फ घर का काम करना और बच्चे पैदा करना है। वो कहता," तुम औरतों का अपना कोई वजूद नहीं है, पैदा होते ही अपने बाप के नाम से जानी जाती हो और बाद में शौहर के नाम से और फिर औलाद के नाम से। तुम्हारा अपना कुछ नहीं होता है, और खास तौर से तुम? तुम में ऐसा क्या है जिस पर कोई तुम पर फख्र कर सके? तुम्हारा वजूद अपने बाप के नाम से शुरू और मेरे नाम पे ही खतम होगा।" इन सब बातों का असर अनादील के दिल पर बहुत गहरा होता जा रहा था। वो डिप्रेशन का शिकार होती जा रही थी। जितनी वो जिंदादिल और खुश मिज़ाज थी उतनी ही वो अब ज़िंदगी से बेज़ार होती जा रही थी। मोबीन जहां मौका मिलता उसकी बेइज़्जती करता। उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता। तब वो अपने दोस्तों को याद करती खास तौर से अरमान को। अरमान के अलावा भी उसके खास दोस्तों में आनंद, अमर, मीता थे और जब मन खराब होता या अकेलापन होता तब मोबाइल उठा फौरन किसी भी नंबर पर कॉल लगा देती। इसी क्रम में पहला नंबर आनंद का होता था उसे फौरन फोन लगा दिया करती। जले पर जो असर बर्फ करती है वही असर फोन से बात करने पर उसके दिल पर होता। बहुत तो नहीं थोड़ा सुकून मिल जाता थोड़ी ठंडक मिल जाती वो भी चंद लम्हों के लिए। आज भी उसने सोचा की वो किसी से बात करे क्योंकि उसे फैसला लेने में किसी की मदद चाहिए थी क्योंकि आज उसे पता चला की मोबीन की जिंदगी में किसी और औरत का दखल है। इसलिए शायद उसकी जिंदगी में अनादील की कोई अहमियत नहीं थी। इतने सालों से वो उसे धोखा ही दे रहा था। अब उसे समझ में आया की मोबीन उससे ऐसा बरताव क्यों करता था। उसने मन बना लिया था की वो एक छत के नीचे मोबीन के साथ नहीं रहेगी और उससे अलग हो के अपने बच्चों में सही तरबियत का बीज बोएगी। इन्हीं सब उधेड़बुन में उसने जब आसमान की तरफ देखा तो सोचने लगी की तारों की तो अपनी रोशनी होती है इसलिए वो इतना टिमटिमाते हैं। लेकिन चांद? वो तो अपनी रोशनी से रोशन नहीं होता वो तो किसी और के सहारे पर है रोशनी के लिए, इसलिए उसका एक हिस्सा हमेशा अंधेरे में होता है। मेरी जिंदगी पर भी मोबीन के नाम की परछाईं है जो मुझे खुद अपनी रोशनी में खिलने के लिए रोक रही है। अब मुझे खुद अपने आप पर एतबार करना होगा। इन्हीं ख्यालों के साथ अपने दिल को पुख्ता किया।

रात कब सवेरे कि आमद की आहट पाकर चली गई उसे एहसास ही नहीं हुआ। सुबह होते ही उसने मोबीन से अपने फैसले के बारे में बताया। मोबीन ने पहले उसे दुनिया का डर दिखाया, फिर समाज का हवाला दिया और फिर उसे ये अहसास कराने लगा की वो तो खुद मोबीन के सहारे खड़ी है।इन बातों का उसपर कोई असर नहीं हुआ और वो बच्चों के साथ घर से बाहर निकल गई।


जब एक औरत को ये एहसास होता है की वो ठुकराई जा रही है तो वो और मजबूत हो जाती है और अपने आपको साबित करने में जुट जाती है। 


घर से निकलते ही उसे कुछ नहीं सूझ रहा था फिर उसे याद आया की उसकी मां ने उसके नाम से कुछ पैसे रखे थे जिनका इस्तेमाल करके उसने पहले किराए पर एक मकान लिया। आनंद की याद आई और वो उसके पास गई। कई जगह वो काम की तलाश में निकली लेकिन कोई बात नहीं बनी। एक दिन अचानक उसकी मुलाकात आनंद से हुई। उसे देख कर वो बहुत खुश हुई और अपने लायक किसी काम के बारे में पूछा, तभी आनंद ने कहा, " सर फेरी याद है तुम्हें? स्कूल छोड़ने के बाद उन्होंने एक पब्लिशिंग हाउस खोला था। वो तो नहीं रहे लेकिन उनका पब्लिशिंग हाउस अभी भी खूब चलता है। तुम एक बार वहां कोशिश करो कुछ अपना काम ले जाओ, दिखाओ वहां। हो सकता है तुम्हारा काम बन जाए। तुम्हारे अंदर तो वो सलाहियत है की कितनो को पीछे छोड़ दो।" इतना सुनकर अना के हौसले बुलंद हो गए और उसने सर फेरी के पब्लिशिंग कंपनी में जा कर अपनी लिखीं हुई कविताओं की फाइल वहां देदी। कई दिन इंतज़ार के बाद एक दिन उसे मिलने के लिए बुलाया गया l उसकी कविताओं की बहुत तारीफ़ हुई और छपने को भेज दी गईं। अनादील ने जी जान मेहनत किया और धीरे धीरे उसे अपनी कहानियों, कविताओं और नोवल की वजह से पहचान मिलने लगी। अब लोग उसे उसके नाम से पहचाने लगे। धीरे धीरे उसका बड़ा नाम बड़ी शख़्सियत में शुमार होने लगा । तीन साल के वाकफे में उसने अपनी कंपनी खोल ली, उसके पास उसका नाम, काम और नया मकाम सब था वो भी एकदम अपना।


एक दिन उससे मिलने कोई शख्स उसकी ऑफिस में आया। रिसेप्शनिस्ट ने कहा वो अपना नाम बताना नहीं चाहता। अनादील ने उसे अंदर भेजने को कहा। और एक या दो मिनट में जो इंसान उसके सामने आ खड़ा हुआ वो मोबीन था। उसे देख के अना चौंक गई बहरहाल उसने उससे आने की वजह पूछी तो मोबीन ने नज़रें झुका के उससे कहा की वो यहां उससे माफी मांगने आया है। वो गलत था। उसकी सोच अना के बारे में बहुत गलत थी। वो उससे माफी मांगने आया था।


ये जान कर अनादील ने मोबीन से कहा की अपनी अमीरी और मर्दानगी के दम पर वो भूल गया था की जिसने उसे जन्म दिया वो एक औरत ही है, वो जिस बेटी का बाप है वो भी एक औरत है, वो जिसका भाई है को भी एक औरत है ! लेकिन उसे आज इस बात की खुशी है की वो औरत की ताकत, उसके हौसले और हिम्मत को समझ गया और आज उसकी असली तरक्की हुई है की जब उसने मोबीन की औरत के बारे में सोच और राय दोनों बदल दी। उसे सही मायनों में आज अपना खुद का आसमान मिल गया था जिसपर सिर्फ अनादील की मेहनत और काबिलियत का परचम लहरा रहा है। अब वो अपने परों से अपने आसमान में उड़ सकती है।



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