शिखा श्रीवास्तव

Drama

4.2  

शिखा श्रीवास्तव

Drama

मशाल

मशाल

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"नहीं... छोड़ दो उसे..."

चीखते हुए नयन की नींद खुल गयी।

स्वयं को अपने बिस्तर पर पाकर वो आश्वस्त हुआ कि अब तक वो सपना देख रहा था, एक बुरा सपना।

बाहर आसमान में सूरज अपनी सिंदूरी आभा बिखेरने लगा था।

नयन ने पास रखा पानी का ग्लास उठाया और एक घूंट में उसे खत्म करते हुए अपने दोस्तों विशाल, अमित और सागर को कॉन्फ्रेंस कॉल लगाने लगा।

"इतनी सुबह तू अपनी बाबू-शोना को फ़ोन किया कर। हमारी नींद क्यों खराब कर रहा है?" उनींदी आवाज़ में विशाल ने कहा।

"अरे कोई बाबू शोना होगी तब तो ये उसे फ़ोन करेगा।" अमित की आवाज़ आयी।

"अब तुम लोग बेचारे को सताना बंद करो और उसे बोलने तो दो कि आखिर उसने फ़ोन किया क्यों?" सबको चुप कराते हुए सागर ने कहा।

सागर की बात खत्म होते ही नयन बोला "तुम तीनों अभी के अभी हमारे घर के पास वाले पार्क में मिलो। बहुत जरूरी काम है।"

इससे पहले की कोई कुछ और पूछ पाता नयन फ़ोन रख चुका था।

पंद्रह मिनट के बाद ही चारों मित्र गार्डन में इकट्ठा हो चुके थे।

सुबह सैर करने वालों से पार्क गुलज़ार था।

नयन ने अपने दोस्तों से पार्क के अंतिम छोर पर चलने के लिए कहा जहाँ भीड़ थोड़ी कम रहती थी।

वहाँ पहुँचकर सभी दोस्त बैठ गए और उत्सकुता से नयन की तरफ देखने लगे।

नयन ने कहा "तुम सब मुझे इस तरह घूरना बंद करो तब मैं कुछ बोलूँ।"

"हाँ-हाँ बिंदास बोल मेरे यार।" विशाल ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

"मैंने तुम सबको बताया था ना कि पिछले कुछ महीनों से मुझे एक सपना लगातार परेशान कर रहा है।" नयन ने कहा।

"हाँ लेकिन हमारे बार-बार पूछने पर भी तूने कभी उस सपने के बारे में नहीं बताया।" अमित के स्वर में शिकायत थी।

"आज बताता हूँ। ध्यान से सुनो।" कहकर नयन ने आँखें बंद की, मानों फिर से उस सपने को देख रहा हो।

"मैंने देखा सुनसान सड़क है और एक लड़की चली जा रही है। अचानक ही कुछ गुंडे आकर उसके साथ बदतमीज़ी करने लगते है।

मैं उनसे थोड़ी ही दूरी पर हूँ। वो लड़की मदद के लिए मेरी तरफ देखती है। मैं उन्हें रोकने की कोशिश करता हूँ पर उनकी संख्या के आगे अकेला बेबस पड़ जाता हूँ।

उस लड़की में इतनी हिम्मत ही नहीं होती कि खुद अपने बचाव के लिए कुछ कर सके।

मैं चीखता हूँ छोड़ दो उसे, लेकिन कोई मेरी बात नहीं सुनता।

और फिर मेरी नींद टूट जाती है।" बोलते हुए नयन की साँस इस तरह फूलने लगी मानों वो मीलों पैदल चलकर आया हो।

"आजकल अखबार उठाओ या समाचार-चैनल लगाओ, हर जगह लड़कियों के साथ होने वाले अपराधों की खबरें ही छायी रहती हैं। तेरा ये सपना इन्हीं खबरों का असर है और कुछ नहीं। इसमें चिंता की कोई बात नहीं।" सागर ने कहा।

बाकी दोनों मित्र भी उससे सहमत नज़र आ रहे थे।

"चिंता की बात है कैसे नहीं? भगवान ना करे अगर कहीं ये सपना सच हो गया तो मैं उसे क्या मुँह दिखाऊँगा?" नयन के चिंता भरे स्वर को सुनकर तीनों मित्र हैरान हो गए।

"उसे? ये कौन है?" तीनों की सवालिया नज़रें नयन के चेहरे पर टिकी थी।

"ये कोई भी हो सकती है। हमारी बहन, भाभी, सहपाठी, पड़ोसी या भविष्य में हमारी बेटी।" नयन ने कहा।

"सीधे-सीधे ये बता की हम तीनों से तू क्या चाहता है?" सागर, विशाल और अमित एक साथ बोले।

"देखो दोस्तों, हमारे इस छोटे से शहर में भी लड़कियों के साथ कुछ दुखद वारदातें हो चुकी हैं। लेकिन ना लड़कियाँ खुद अपनी सुरक्षा को लेकर जागरूक हैं और ना ही उनका परिवार।

ज्यादा से ज्यादा हम सुरक्षा के नाम पर उनके साथ घर के किसी पुरुष को भेज देते हैं, या फिर अगर किसी अनहोनी की आशंका हुई तो उनका घर से बाहर निकलना ही बंद कर देते हैं।" नयन ने कहा।

"हाँ और कोई ये भी नहीं सोचता कि सिर्फ किसी पुरुष का साथ होना ही सुरक्षा की गारंटी नहीं हो सकती। जैसे अपने सपने में तू अकेला बेबस था गुंडों की संख्या के आगे।" अमित ने आगे कहा।

"और ना ही लड़कियों को उम्र भर घर में कैदी बनाकर रखना ही इन समस्याओं का हल है।" सागर ने भी अपनी बात रखी।

"लेकिन अगर लड़कियाँ खुद अपनी सुरक्षा में सक्षम हों, जागरूक हों तब शायद इस समस्या का कुछ हल हो सकता है।" विशाल बोला।

"तो आखिर तुम सब मेरी बात समझ ही गए।" नयन ने मुस्कुराते हुए कहा।

"समझेंगे कैसे नहीं? आखिर हम सब बचपन के दोस्त है, चार जिस्म लेकिन एक जान।" कहते हुए तीनों मित्र नयन के गले लग चुके थे।

"अब बता तेरी योजना क्या है? हम सब तेरे साथ है।" सागर ने कहा तो अमित और विशाल ने भी अपनी सहमति जता दी।

"हम चारों जो कि कराटे में ब्लैक-बेल्ट हैं, हमने तो पास के शहर जाकर आसानी से ट्रेनिंग ली, लेकिन लड़कियों के लिए ये असंभव है। इसलिए मैं सोच रहा था क्यों ना हम अपने शहर में लोगों को, खासकर लड़कियों को कराटे ट्रेनिंग देने वाली संस्था शुरू करें, साथ ही उन्हें उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक करें।" नयन ने कहा।

"बात तो तेरी सही है। लेकिन इस शहर के लोगों की सोच अभी इतनी नहीं खुली है कि वो अपने घर की बेटियों को अंजान लड़कों के पास कराटे सीखने भेजेंगे। मुझे तो बहुत मुश्किल लग रहा है।" विशाल बोला।

"असंभव इस दुनिया में कुछ भी नहीं। हम सबको मिलकर एक कोशिश तो करनी ही चाहिए। आखिर हमारे समाज के प्रति हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है।" नयन ने अपने दोस्तों की तरफ देखते हुए कहा।

"मेरे पास एक योजना है। हो सकता है इससे हमारी मुश्किल हल हो जाये।" अमित बोला।

सबकी नज़रें अब अमित पर गयीं थी।

"सुबह-सुबह जब लोग इस पार्क में सैर करने आते हैं, तब उसी वक्त अगर हम यहीं अपनी कराटे क्लासेज शुरू करें तो लोगों को हम पर इतना भरोसा तो होगा कि भीड़ के बीच हम कुछ अनुचित नहीं करेंगे।" अमित ने अपनी योजना बतायी।

"हाँ, ये भी हो सकता है कि हमें देखकर कुछ और लोग भी हमारी मदद के लिए आगे आयें। या तो ट्रेनर के रूप में या ट्रेनी के रूप में।" सागर ने कहा।

"शुरुआत हम अपने-अपने मोहल्ले से करते हैं। अपने मोहल्ले के लोगों से मिलकर, उनसे बात करके हम उन्हें लड़कियों को कराटे सिखाने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे। फिर सोशल मीडिया के जरिये और लोगों तक पहुँचने की कोशिश करेंगे।" विशाल ने अपनी राय रखी।

"लेकिन हम एक सबसे जरूरी बात भूल रहे हैं। क्लास शुरू करने के लिए ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ी पूंजी की भी तो जरूरत होगी। पार्क का किराया, ट्रेनिंग के सामान वगैरह।" अमित ने अपनी चिंता जाहिर की।

"व्यायाम वगैरह के ज्यादातर उपकरण तो हमारे पास हैं ही। पॉकेटमनी की थोड़ी-बहुत जमा-पूंजी हम सबके पास है। बाकी का इंतज़ाम क्लास की फीस से हो जाएगा। फीस हम सिर्फ इतनी ही रखेंगे जिससे क्लास की जरूरत पूरी हो सके। फिलहाल इतने में शुरू करते है। बाकी देखा जायेगा।" विशाल ने सुझाया।

सभी उससे सहमत हो गए।

"तो तय रहा। अब बिना किसी देरी के हमें इस योजना को मूर्त रूप देने में लग जाना है।" नयन ने हाथ आगे बढ़ाया तो सभी मित्रों ने मुस्कुराते हुए उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया और फिर अपने-अपने घर की तरफ चल पड़े।

लेकिन नयन थोड़ी देर और पार्क में बैठना चाहता था।

आँखें बंद करते हुए वो एक बार फिर उस चेहरे को याद करने लगा| जो उसे अक्सर सपनों में दिखता था, उसके घर के सामने रहने वाली उस प्यारी सी लड़की का चेहरा।

उसका नाम भले ही कृतिका था, लेकिन नयन उसे 'दो चोटी' कहकर बुलाया करता था।

और कृतिका अक्सर ही उसे "काले-कलूटे, बैंगन लूटे" कहकर चिढ़ाया करती थी।

मोहल्ले के सभी बच्चे एक ही विद्यालय में साथ-साथ जाया करते थे। सारे रास्ते नयन और कृतिका एक-दूसरे से उलझते रहते थे।

और अगर किसी दिन किसी वजह से दोनों में से कोई एक गायब रहता था तो दूसरे को उसकी कमी भी खलती थी।

धीरे-धीरे सभी बच्चे उच्च कक्षाओं में पहुँच चुके थे।

कृतिका और मोहल्ले की दूसरी लड़कियों का दाखिला अब लड़कियों के विद्यालय में हो चुका था।

अपनी-अपनी नई दुनियाँ में व्यस्त नयन और कृतिका के बीच अब झिझक की एक दीवार खड़ी हो चुकी थी।

कभी-कभार एक-दूसरे से नज़रें मिलने पर बस दोनों खामोशी से मुस्कुरा देते।

जिस दिन नयन के हिस्से में ये मुस्कुराहट आती थी, उसका चेहरा पूरे दिन खिला रहता था। वजह जानते हुए भी वो इस वजह से अंजान ही बना रहना चाहता था।

कुछ महीने पहले की बात थी जब घर लौटते वक्त नयन ने देखा कृतिका घबरायी हुई सी तेज़ कदमों से सड़क पर भागी जा रही थी।

पीछे से आने वाली सिटी की आवाज़ ने नयन को सब कुछ समझा दिया था।

तब से कृतिका बहुत ही कम घर से बाहर जाया करती थी।

नयन को उसकी बातें याद आती थी, जब बचपन में वो आसमान की तरफ बाँहें फैलाकर कहती थी "देखना काले बैंगन, मैं एक दिन इसी आसमान में उड़ूँगी। तू अपनी छत पर खड़े-खड़े मुझे देखना।"

अचानक ही दो बच्चों की खिलखिलाहट से नयन का ध्यान भंग हुआ।

उन्हें देखकर उसकी नज़रों के सामने अपना और कृतिका का बचपन आ गया।

"मैं उसके पंखों को कमज़ोर नहीं पड़ने दूँगा।" दृढ़ निश्चय के साथ उठता हुआ नयन अपने घर की तरफ बढ़ गया।

कॉलेज में मिलने पर नयन और सभी मित्रों ने एक बार फिर अपनी योजना पर विस्तार से बात की और तय किया कि कॉलेज के बाद कराटे के अपने प्रमाण-पत्रों के साथ वो अपनी संस्था के रजिस्ट्रेशन के लिए राज्य कराटे आयोग में आवेदन देने के साथ ही नगरपालिका जाकर पार्क में क्लास शुरू करने के लिए भी आज्ञा-पत्र का आवेदन दे देंगे।

दोनों जगहों पर आवेदन देने के बाद उन्हें पता चला कि सारी प्रक्रिया पूरी होने में लगभग एक माह का वक्त लग जायेगा।

"जब तक हमारी क्लास रजिस्टर होती है तब तक हम क्लास के लिए जरूरी चीज़ों की सूची बनाने के साथ-साथ लोगों को इससे जोड़ने का काम भी शुरू कर देते हैं।" नयन के इस सुझाव से सभी सहमत थे।

"लेकिन लोगों से मिलने से पहले हमें बकायदा एक पैम्पलेट बनाना चाहिए जिसमें हमारी संस्था के सभी उद्देश्यों और हमारे मूल्यों का अच्छी तरह जिक्र हो, ताकि लोगों को हमारी बात आसानी से समझ में आ सके।" विशाल ने सुझाव दिया।

"पैम्पलेट बनाने की जिम्मेदारी मेरी। मैं कल ही बनाकर लाता हूँ।" सागर ने कहा।

"और उसे प्रिंट करवाने का काम मैं करवा लूँगा।" अमित बोला।

अगले दिन मिलने की बात तय करके सभी अपने घर की तरफ चल पड़े।

चारों मित्र आने वाली सुबह को लेकर उत्साहित थे।

तय वक्त पर जब वो कॉलेज में मिले तब सागर ने पैम्पलेट का नमूना सबके सामने रखा जो कुछ यूँ था।

"आदरणीय नगरवासियों

जैसा कि आप सब जानते है कि आज हमारे समाज में महिलाओं के प्रति अपराधों में किस कदर बढ़ोत्तरी हुई है। अखबार और समाचार चैनलों पर दिल दहलाने वाली खबरें पढ़-सुनकर हम सबका मन कहीं ना कहीं घबराया रहता है।

हम हरसंभव कोशिश करते है कि अपने घर की महिलाओं को सुरक्षित रखें। लेकिन ये भी संभव नहीं कि हम हर वक्त हर जगह उनके साथ उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद रहें और ना ही ये उचित है कि असुरक्षा के डर से हम उनसे इंसान होने की आज़ादी छीन लें।

समाज के प्रति एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज़ निभाते हुए हम मित्रों ने एक कराटे क्लास शुरू करने की योजना बनाई है।

हमारी ये क्लास आप सबके सामने, आप सबके बीच सरकारी पार्क में, सरकारी सहमति के साथ कार्य करेगी ताकि आप हमारी तरफ से किसी भी अनुचित व्यवहार के प्रति निश्चिन्त रहें।

आप चाहें तो महिलाओं के साथ-साथ आप भी इस क्लास का हिस्सा बन सकते हैं, या क्लास के दौरान वहाँ मौजूद रह सकते हैं।

आइये ज्यादा से ज्यादा संख्या में हमसे जुड़कर अपने घर के साथ-साथ अपने समाज की महिलाओं को भी सशक्त बनाने में अपना योगदान दीजिये।"

सबने पैम्पलेट की तारीफ करते हुए सागर के लिए तालियाँ बजायीं।

नयन ने कहा "इसमें ये कुछ पंक्तियाँ भी जोड़ दो-

मत रोकिये बेटियों की उड़ान,

आइये मिलकर दीजिये उन्हें खुला आसमान।"

पैम्पलेट को फाइनल करने के बाद अमित उसे लेकर प्रिंट करवाने चला गया।

दो दिनों के बाद जब पैम्पलेट छपकर आया तब उन्होंने सबसे पहले अपने-अपने घरवालों को उसे दिखाया।

सभी के घरवालों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें ये समाजसेवा करने की जगह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, अपना भविष्य बनाना चाहिए।

जब उन्होंने आश्वस्त किया कि उनकी पढ़ाई पर कोई असर नहीं होगा, और अपने भविष्य के साथ-साथ एक बेहतर समाज बनाना भी उनकी जिम्मेदारी है तब आखिरकार उनके परिवार वाले मान ही गए।

सबका आशीर्वाद लेकर चारों मित्र अब पैम्पलेट लेकर बारी-बारी से अपने मोहल्ले की तरफ चल पड़े।

एक-एक घर में पैम्पलेट देकर उन्होंने अपनी बात लोगों को समझाने की कोशिश की।

बहुत लोग उनसे सहमत हुए, तो कुछ लोग असहमत भी थे।

कुछ लोगों ने कराटे क्लास की मामूली सी फीस देने में असमर्थता ज़ाहिर करते हुए अपने घर की लड़कियों को कराटे क्लास में भेजने से मना कर दिया| तब चारों मित्रों ने तय किया कि जो स्वेच्छा से फीस देना चाहेंगे उनसे लेंगे, और जो नहीं देना चाहेंगे उनके लिए क्लास मुफ्त रहेगी।

इस बात का कुछ लोगों पर सकारात्मक असर हुआ और वो क्लास से जुड़ने के लिए राजी हो गए।

सबसे अंत में नयन कृतिका के घर पहुँचा।

दरवाज़े पर दस्तक की आवाज़ सुनकर कृतिका ने ही दरवाज़ा खोला और नयन को देखकर चौंक गयी।

नयन ने मुस्कुराते हुए कहा "क्या मैं अंदर आ जाऊँ?"

"हाँ-हाँ, बिल्कुल आओ।" दरवाज़े से हटते हुए कृतिका बोली।

अंदर जाकर नयन ने देखा सामने ही सोफे पर कृतिका के पापा बैठे हुए थे।

नयन ने उन्हें प्रणाम करते हुए पैम्पलेट दिया।

उसे पढ़कर कृतिका के पापा कश्यप जी बोले "बेटा, तुम बहुत नेक काम कर रहे हो। मेरी तरफ से आशीर्वाद है। लेकिन मैं कृतिका को नहीं भेज सकता।"

"लेकिन चाचाजी, क्या आप नहीं चाहते आपकी बेटी आत्मरक्षा के गुण सीखकर आत्मनिर्भर बने?" नयन ने कहा।

"मैं इस तरह सबके बीच अपनी बेटी को लड़कों के साथ मारपीट सीखने नहीं दे सकता। उसकी जगह घर के अंदर है, बाहर सड़क पर नहीं। और रही उसकी सुरक्षा की बात तो हर वक्त कोई ना कोई उसके साथ रहता ही है।" कश्यप जी अपनी बात पर दृढ़ थे।

लेकिन नयन भी तय करके आया था कि वो हार नहीं मानेगा।

उसने फिर कहा "चाचाजी, क्या सिर्फ किसी का साथ होना सुरक्षा की गारंटी दे सकता है? मान लिया कि लड़की के साथ जाने वाला परिवार का सदस्य ऐसी स्थिति का सामना करने में सक्षम है, लेकिन अगर लड़की भी आत्मरक्षा जानती हो तो क्या दोनों मिलकर ज्यादा मजबूती से अपराधियों का सामना नहीं करेंगे?"

"हाँ बेटा, तुम्हारी बात बिल्कुल सही है।" कृतिका की माँ आशा जी आगे बढ़कर बोली।

उनकी बात सुनकर नयन को उम्मीद की किरण नज़र आने लगी।

इससे पहले की वो कुछ और बोलता, आशा जी ने कहा "ये बच्चे हमारा विश्वास बनाये रखने के लिए ही तो सबके बीच अपनी क्लास शुरू कर रहें हैं। और अगर बीच सड़क पर बेटियों के साथ बदतमीज़ी हो सकती है तो बीच सड़क पर बेटियाँ अपनी सुरक्षा के गुण क्यों नहीं सीख सकतीं?"

कश्यप जी गुस्से भरी नज़रों से आशा जी की तरफ देखते हुए बोले "बिटिया की शादी की बात चल रही है। लड़के वालों ने इसे ये सब करते हुए देखा तो क्या सोचेंगे? कल को कुछ ऊँच-नीच हो गयी तो कौन जिम्मेदारी लेगा? शादी के बाद वैसे भी इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी इसके पति की होगी।"

"लल्ला, अगर सिर्फ शादीशुदा होना, या पति का साथ होना ही काफी होता तो बरसों पहले मुझे भी उस डरावनी रात का सामना नहीं करना पड़ता।

वो तो महज एक संयोग था कि उस वक्त पुलिस की गाड़ी वहाँ से गुजरी, वर्ना जाने क्या हो जाता।" अपने पुराने ज़ख्मों को याद करती हुई कृतिका की ताई जी ने कश्यप जी से कहा।

उनकी बातें सुनकर वहाँ मौजूद कृतिका के भाई निमेष ने भी कहा "और फिर हम ऐसे घर में अपनी बहन-बेटी की शादी करें ही क्यों जिनकी सोच इतनी छोटी हो। जो किसी तरह की अनहोनी होने पर लड़की को सीधे-सीधे दोषी ठहरा दें जैसा कि आमतौर पर हमारे समाज में होता है, लेकिन उसके कराटे सीखने पर आपत्ति जताएँ जो कि आज के वक्त की माँग है। और ईमानदारी से जवाब दीजिये क्या घर के अंदर बंद कर देने मात्र से सभी बेटियाँ सुरक्षित हो जाएँगी?"

सभी के तर्कों के आगे अब कश्यप जी निरुत्तर नज़र आने लगे थे।

आखिरकार उन्होंने कृतिका को कराटे क्लास में भेजने के लिए हामी भर दी।

उनके हाँ करते ही निमेष ने नयन से कहा "भाई, कृतिका के साथ तुम्हारी भाभी और मैं भी कराटे सीखेंगे।"

उसकी बात सुनकर निमेष की पत्नी जो चुपचाप खड़ी सबकी बातें सुन रही थी, उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी।

"बेटा लेकिन एक बात बताओ, क्या तुम अपने साथ कुछ लड़कियों को भी ट्रेनर के रूप में क्यों नहीं जोड़ते?" कश्यप जी ने अपनी अंतिम बात नयन के सामने रखी।

नयन ने कहा "चाचाजी, जिस तरह बेटियों को बिना डॉक्टरी की पढ़ाई करवाये बिना आप उनके लिए महिला डॉक्टर की सुविधा नहीं दे सकते, उसी तरह बेटियों के लिए महिला ट्रेनर की व्यवस्था भी तभी हो सकेगी ना जब पहले कुछ बेटियाँ ट्रेनी बनें।"

"हाँ बेटा, तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। यही तो विडंबना है हमारे समाज की। हम सब चाहते हैं कि हमारे देश में दूसरे भगत सिंह पैदा हों, लेकिन हमारे नहीं पड़ोसी के घर में।" ताई जी गहरी साँस लेते हुए बोली।

अब कश्यप जी के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं बचा था।

अंदर अपने कमरे में कृतिका बाहर की सभी बातें सुन रही थी।

नयन के प्रति आज वो फिर से बचपन वाला लगाव महसूस कर रही थी।

उसका मन कर रहा था फिर से उसका हाथ पकड़ कर विद्यालय के पुराने रास्ते की तरफ निकल पड़े, बचपन की ही तरह एक-दूसरे को चिढ़ाते, हँसते-हँसाते हुए।

"अरे किस बात पर अकेले-अकेले मुस्कुरा रही हैं ननद जी?" अपनी भाभी की आवाज़ सुनकर कृतिका ख्यालों से बाहर आयी।

"कुछ नहीं भाभी, बस यूँ ही।" कहती हुई कृतिका छत की तरफ चली गयी।

नयन अपने दरवाज़े पर खड़ा अपने दोस्तों से बातें कर रहा था कि उसकी नज़र छत पर खड़ी कृतिका से टकरा गयी।

उसकी मुस्कुराहट देखकर नयन का मन खिल उठा।

थोड़ी देर एक-दूसरे को खामोशी से देखते हुए दोनों अपने-अपने घरों में चले गए।

आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब राज्य कराटे आयोग के साथ-साथ नगरपालिका ने कराटे क्लास को मंजूरी दे दी। रजिस्ट्रेशन के कागज़ लेकर जब चारों मित्र पार्क के लिए आज्ञा पत्र लेने नगरपालिका पहुँचे, तब नगरपालिका अध्यक्ष ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया।

अध्यक्ष महोदय ने उनसे कहा "आप जैसे जागरूक युवाओं की हमारे समाज को सख्त जरूरत है। पार्क में क्लास शुरू करके लोगों में विश्वास बनाये रखने की आपकी बात से मैं सहमत हूँ। लेकिन आते-जाते लोगों के बीच शायद हमारी बेटियाँ पूरी तरह सहज नहीं हो पायेंगी, इसलिए अपने फ़िलहाल पार्क में एक अस्थायी शिविर का निर्माण करवाने की बात सोची है, ताकि आप सब लोगों के बीच भी कार्य कर सकें और लोगों के आवागमन से बेटियों को असहजता भी महसूस ना हो।

ट्रेनियों के साथ सिवा उनके गार्जियन के किसी को शिविर के अंदर जाने की इजाज़त नहीं होगी, ताकि वहाँ बेवजह की भीड़ इकट्ठा ना हो।"

उनकी बात सुनकर चारों मित्र अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बोले "हमारा उचित मार्गदर्शन करने और इन सुविधाओं को देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हम पूरी कोशिश करेंगे कि आप सबके विश्वास पर खरे उतरें।"

एक हफ्ते में सारी तैयारियों के पूर्ण होते ही पार्क में कराटे क्लास की शुरुआत हो गयी, जिसका नाम उन्होंने 'मशाल' रखा था।

शुरू-शुरू में महज़ बीस लड़कियाँ और दस लड़के ही मशाल के साथ जुड़े।

लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या और मशाल की लोकप्रियता बढ़ने लगी।

चारों मित्रों की अपील पर कुछ और लोग जो कराटे एक्सपर्ट थे, बतौर ट्रेनर मशाल से जुड़ गए। साथ ही कुछ लोग वित्तीय सहायता के लिए भी आगे आने लगे।

एक साल गुजरते-गुजरते पहली बैच के सभी ट्रेनी कराटे में एक्सपर्ट हो चुके थे।

अंततः वो दिन भी आया जब राज्य कराटे आयोग के विशेषज्ञ सभी ट्रेनियों की परीक्षा लेने के बाद उन्हें प्रमाणपत्र सौंपने वाले थे।

सब लोग मशाल के शिविर में बेचैनी से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

नयन आज खुश भी था और थोड़ा सा उदास भी।

पिछले कुछ वक्त में एक बार फिर उसे कृतिका के साथ कि आदत पड़ चुकी थी, जो आज फिर से खत्म होने वाली थी।

नयन को याद आ रहा था कि कृतिका हमेशा उसके पहुँचने से पहले ही शिविर में मौजूद रहा करती थी, और उसके साथ ही अभ्यास शुरू किया करती थी।

ना जाने क्यों नयन की आँख से आँसू का एक कतरा गिर पड़ा।

तभी अचानक वहाँ पहुँची कृतिका ने आँसू की उस बूंद को मुट्ठी में बंद करते हुए आश्चर्य से कहा "अरे रे, मेरे इतने मजबूत बैंगन की आँखों में आँसू?"

"वो आँख में कुछ चला गया था।" कहता हुआ नयन, कृतिका से नज़र चुराता हुआ वहाँ से चला गया।

कृतिका की बात सुनकर पास ही खड़े विशाल, अमित और सागर मुस्कुरा उठे।

नयन के पास जाकर विशाल ने उसे छेड़ते हुए कहा "भाई ये बैंगन का क्या माज़रा है?"

"कहीं ये वही तो नहीं जिसे तू सपने में देखता था, और जिसके लिए तूने ये क्लास शुरू करने की योजना बनायी थी?" सवालिया निगाहों से नयन को देखते हुए अमित ने कहा।

"तुम लोग भी ना बिल्कुल बुद्धू हो। ये कोई पूछने की बात है? देखो इस घोंचूराम के चेहरे पर सब साफ नज़र आ रहा है" सागर बोला।

"मेरे प्यारे दोस्तों, तुमने बिल्कुल ठीक समझा। लेकिन इस राज़ को राज़ ही रखना।" नयन ने कहा।

विशाल ने हैरत से पूछा "क्यों भाई? प्यार किया तो डरना क्या?"

"हाँ और कृतिका को देखकर भी यही लगता है कि उसके मन में भी तेरे लिए कुछ है।" सागर ने कहा।

"नहीं यार, उसके पापा पहले ही उसकी शादी तय कर चुके है। इसलिए ये सब सोचना अब फिजूल है।" नयन के स्वर में उदासी थी।

"अरे तो शादी तुड़वा देते है भाई। तू एक बार बोल तो सही।" अमित ने कहा।

"नहीं, मैं ऐसा कोई काम नहीं कर सकता जिससे किसी भी बेटी औ उसके परिवार का सर झुके। मैं उसकी बचपन की यादों के साथ बहुत खुश हूँ।" कहता हुआ नयन वहाँ से चला गया।

तीनों मित्र भी नयन के लिए उदास हो गये।

थोड़ी देर बाद राज्य कराटे विशेषज्ञों के पहुँचते ही सभी मित्र निजी जीवन की बातें भूलकर काम में लग गए।

सभी ट्रेनी आज प्रमाणपत्र पाकर बहुत ही खुश थे।

डरी-सहमी रहने वाली लड़कियों के चेहरे पर अब आत्मविश्वास स्पष्ट नज़र आ रहा था।

उनके खिले हुए चेहरों को देखकर आज चारों मित्र एक अलग ही संतुष्टि का अनुभव कर रहे थे।

उनके परिवार वाले जो कभी उनके इस काम के विरोध में थे, आज उनकी नज़रों में भी अपने बेटों के लिए गर्व झलक रहा था।

जब कृतिका अपना प्रमाणपत्र लेने आयी तब उसने कहा "अगर माननीय सदस्य आज्ञा दें तो मैं कुछ कहना चाहूँगी।"

सबकी हामी मिलने पर कृतिका ने बोलना शुरू किया "जब नयन जी मेरे घर पर कराटे क्लास की बात करने आये थे, तब मेरे पापा ने पूछा था कि क्या इस क्लास में कोई महिला ट्रेनर नहीं है?

अफ़सोस कि तब हमारे शहर में ऐसी कोई महिला नहीं थी।

लेकिन आज अपने हाथों में ये प्रमाणपत्र थामे हुए मैं चाहती हूँ कि ऐसे कुछ अभिभावक जो महिला ट्रेनर के साथ ही अपनी बेटी को ट्रेनिंग लेते हुए देखना चाहते हैं, उनकी इस इच्छा को इस क्लास के साथ बतौर ट्रेनर जुड़कर मैं पूरा करूँ।"

अपनी बात खत्म करते हुए कृतिका ने सबसे पहले अपने पापा की तरफ देखा। उनकी आँखों में अपने इस कदम के लिए पूर्ण सहमति पाकर वो मुस्कुरा उठी। और फिर जब उसने नयन की तरफ देखा तो पाया उसका चेहरा भी खिल उठा था।

वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने कृतिका के इस फैसले का ताली बजाकर स्वागत किया।

साथ ही कुछ और लड़कियों ने भी बतौर ट्रेनर कार्य करने की इच्छा जतायी।

अपनी एक छोटी सी योजना के इस सफल विस्तृत रूप को देखकर नयन, विशाल, अमित और सागर के मन में जो भावनाएँ उठ रहीं थी, उसे व्यक्त करने के लिए उनके पास शब्द नहीं थे।

अब जब लोगों के बीच इस क्लास ने अपना भरोसा कायम कर लिया था, और इसका दायरा भी बहुत बड़ा हो गया था| तब नगरपालिका अध्यक्ष के सहयोग से मामूली से शुल्क पर क्लास के लिए स्थायी भवन के साथ-साथ सरकार से उन्हें कुछ वित्तीय सहायता भी मिल गयी थी।

नए भवन में आज मशाल की टीम का पहला दिन था।

जब नयन वहाँ पहुँचा तब उसने देखा कृतिका आज भी उससे पहले वहाँ मौजूद थी।

दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हुए अपने-अपने काम में लग गए।

क्लास खत्म होने के बाद कृतिका नयन के पास आयी और बोली "सुनो, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। मेरे साथ चलो।"

नयन को लगा कहीं उसके दोस्तों ने कृतिका को कुछ बता तो नहीं दिया।

उसने विशाल, अमित और सागर की तरफ देखा तो उन तीनों ने अनभिज्ञता में सर हिला दिया।

उनकी तरफ से आश्वस्त होकर नयन कृतिका के साथ चला गया।

कृतिका उसे लेकर अपने पुराने विद्यालय के रास्ते पर जाने लगी तो नयन ने हैरानी से पूछा "हम इधर क्यों जा रहे हैं?"

"बस चुपचाप चलो।" कृतिका ने कहा।

थोड़ी देर बाद दोनों अपने विद्यालय के भवन के पीछे मौजूद एक छोटे से तालाब के पास पहुँच चुके थे।

"ये तालाब याद है?" कृतिका ने नयन की तरफ देखा।

"हाँ, हमने इसमें ना जाने कितनी कागज़ की कश्तियाँ तैरायी थी।" नयन ने हँसते हुए कहा।

"और मेरी कश्ती हमेशा जीत जाती थी।" कृतिका बोली।

"क्योंकि तुम चीटिंग करती थी दो चोटी।" नयन ने नाराज़ होने का अभिनय करते हुए कहा।

कृतिका ने बचपन की तरह उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए कहा "तो तुम कुछ कहते क्यों नहीं थे?"

"तुम्हें खुश देखना अच्छा लगता था।" नयन ने कृतिका की तरफ देखा।

"लेकिन लगता है अब तुम मुझे खुश देखना नहीं चाहते काले-कलूटे बैंगन लूटे?" कृतिका की नज़रें भी नयन के चेहरे पर जमी थी।

"ये तुमसे किसने कहा?" नयन हैरान था।

"अगर तुम मुझे खुश देखना चाहते तो आज मुझे आगे बढ़कर तुम्हें प्रोपोज़ नहीं करना पड़ता। बल्कि मेरी जगह आज तुम होते और तुम्हारी जगह पर मैं।" अपने बैग से एक गुलाब निकालकर नयन की तरफ बढ़ाते हुए कृतिका घुटनों पर बैठ चुकी थी।

नयन आश्चर्य के भाव से उसे देखे जा रहा था।

उसे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है? ये सच है या फिर कोई सपना?

"अरे मूर्ख इंसान, एक लड़की तुम्हारे सामने घुटनों के बल बैठी है और तुम हो कि उसे उठाकर कुछ बोलने की जगह मुँह फाड़े बस देखे जा रहे हो।" कृतिका की आवाज़ ने नयन को भरोसा दिला दिया कि ये लम्हा बिल्कुल सच था।

"अब बोलो भी, मुझसे शादी करोगे बैंगन?" कृतिका ने फिर कहा।

उसे उठाकर उसके हाथ से गुलाब लेते हुए नयन बोला "लेकिन तुम्हारे पापा तो..."

उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कृतिका ने कहा "अपने पापा के साथ-साथ तुम्हारे पापा की इजाज़त मिलने के बाद ही मैं यहाँ हूँ, क्योंकि मुझे पता है मेरे बैंगन के लिए परिवार की सहमति, और उनकी इज्ज़त की क्या अहमियत है।"

"यार दो चोटी, तुम तो बड़ी पहुँची हुई निकली। मैं तो तुम्हें दब्बू, डरपोक समझता था।" नयन ने बचपन की तरह उसकी चोटी खींचते हुए कहा।

कृतिका मुस्कुराते हुए बोली "हाँ दब्बू और डरपोक तो मैं थी, पर किसी के सहयोग ने आज निडर बना दिया है मुझे।

अब चलो घर पर सब हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।"

कृतिका को साथ लेकर जब नयन उसके घर पहुँचा तब वहाँ नयन के घरवाले भी मौजूद थे।

कॉलेज खत्म होने के बाद नयन के अपने पारिवारिक व्यवसाय को ठीक से संभाल लेने के बाद उन दोनों की शादी तय कर दी गयी।

उधर महिला ट्रेनरों के मशाल से जुड़ने के बाद क्लास में लड़कियों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी हुई थी।

विशाल, अमित और सागर ने नयन से कहा "हमारी क्लास को इतना आगे बढ़ाने में कृतिका की पहल का बहुत योगदान है। इसलिए हम चाहते हैं कि हम अब उसे इस क्लास की पूरी जिम्मेदारी सौंप दें, ताकि हम भी अब कॉलेज के बाद अपने भविष्य को बनाने में लग सकें।"

सबकी सहमति के साथ-साथ उनके मार्गदर्शन में कृतिका कराटे क्लास की संचालिका का पद बखूबी संभाल चुकी थी।

दो वर्ष बीत चुके थे। अपनी डिग्री पूरी करने के बाद नयन अपने पापा के साथ उनके व्यवसाय में लग गया था।

विशाल, अमित और सागर भी नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहरों में चले गए थे।

नयन की शादी का निमंत्रण पत्र मिलते ही तीनों तत्काल अपने शहर के लिए रवाना हो गए।

वहाँ पहुँचकर सभी मित्र मशाल के प्रांगण में इकट्ठा हुए।

अपने बोये हुए छोटे से बीज को आज इतने बड़े पेड़ के रूप में देखकर सभी भावुक थे।

अगले दिन से नयन और कृतिका की शादी की रस्में शुरू हो गयी।

नगरपालिका अध्यक्ष भी इस मौके पर उन्हें आशीर्वाद देने आये हुए थे।

दूल्हा-दुल्हन को उपहार देने के बाद उन्होंने घोषणा की, कि आगामी गणतंत्र दिवस पर पूरे शहर की तरफ से मशाल की नींव रखकर, शहर में चेतना की नई रोशनी जलाने वाले चारों मित्रों के साथ-साथ इस रोशनी को निरंतर प्रकाशमान रखने के लिए कृतिका को सम्मानित किया जाएगा।

सभी उपस्थित लोगों ने तालियाँ बजाकर इस घोषणा का स्वागत किया।

गणतंत्र दिवस के दिन जब नगरपालिका भवन में झंडोत्तोलन के पश्चात मंच पर मशाल की टीम को आमंत्रित करते हुए नगरपालिका अध्यक्ष बोले "समाज में कुछ भी गलत होने पर सिस्टम पर, सरकार पर हर कोई ऊँगली उठा देता है, लेकिन स्वयं एक जिम्मेदार नागरिक बनकर उस गलत को रोकने की कोशिश चंद ही लोग करते है।

अपने अधिकारों की वकालत करते हुए हम सब अक्सर भूल जाते हैं कि हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं।

लेकिन मशाल की टीम ने समाज के लिए जो का किया है उसने हम सबको आईना दिखाया है। उन्हें सम्मानित करते हुए मैं गर्व का अनुभव कर रहा हूँ।"

अध्यक्ष महोदय के प्रति आभार व्यक्त करके सम्मान ग्रहण करते हुए नयन ने कहा "मैंने एक छोटा सा सपना देखा, और उससे जुड़ी अपनी भावनाएं अपने मित्रों से बांटी, उन्होंने मेरी भावनाओं को समझा, मेरा साथ दिया, और फिर ये भावना सिर्फ मेरी नहीं हमारी हो गयी।"

"हम सब नयन के आभारी है कि उसके कारण हमें एक ऐसा काम करने का अवसर मिला जो हमारे साथ-साथ दूसरों की मुस्कान की भी वजह बना" विशाल ने आगे कहा।

"और हम सब आभारी है आप सब नगरवासियों के जिन्होंने हमारी मशाल को जलाने में हमारा भरपूर सहयोग दिया।" अमित बोला।

"और हमारे शहर की बेटियों के जीवन से डर-रूपी अंधकार को दूर करने के लिए हमारे साथ आगे बढ़े।" सागर ने कहा।

उनके बाद जब कृतिका से दो शब्द बोलने के लिए कहा गया, तब उसने कहा "मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि मुझे वो जीवनसाथी मिला जिसने मेरे पंखों को उड़ान दी, साथ ही मुझे ये हौसला दिया कि मैं अपने साथ-साथ दूसरी लड़कियों के जीवन में भी हिम्मत की ऐसी मशाल जलाऊँ जिसकी रोशनी वो इस शहर से बाहर भी पहुँचायें, और खुद पर गर्व करें।

आप सब नगरवासियों से यही आग्रह है कि जिस तरह आज तक आपने मशाल की टीम का साथ दिया है, आगे भी देते रहिएगा, ताकि हमारी भावी पीढियां भी इसकी रोशनी से लाभान्वित होती रहें।"

सम्पूर्ण प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था। इन तालियों की गूँज इस बात की गवाह थी कि इंसान ठान ले तो नामुमकिन कुछ भी नहीं।


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