सोच
सोच


वर्षा को अपनी सहेलियों के साथ 'रसोई-रसोई' खेलते देखकर उसकी बुआ ने वर्षा की माँ से कहा "अच्छा है भाभी अभी से लड़कियों के कामों में रुचि ले रही है आपकी पढ़ाकू बेटी। भले होशियार हो पढने में लेकिन एक दिन तो रसोई ही संभालनी है ससुराल में।"
वर्षा की माँ ने जवाब में कहा "नहीं दीदी, मेरी बेटी केवल रसोई ही नहीं अपने सपनों को भी संभालेगी और जियेगी।"
माँ के इस कथन के बावजूद भी बुआ की बातों का वर्षा के कोमल मन पर ऐसा असर हुआ कि धीरे-धीरे उसे उन कामों से, उन खेलों से चिढ़ होने लगी जो आमतौर पर लड़कियों के कहे जाते है।
वर्षा अब हर वक्त बस इसी कोशिश में रहती थी कि ये साबित कर सके कि वो लड़कों से कम नहीं है। जो काम उसके भाई को दिये जाते उसे आगे बढ़कर वर्षा कर देती।
और जो काम उसे दिए जाते उन्हें करने से मना कर देती।
एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद अब वर्षा एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रही थी।
एक नए प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए कंपनी में चार अलग-अलग टीम बनाई गई थी।
वर्षा की टीम में उसके साथ था 'अनिकेत'।
दोनों साथ मिलकर बहुत मेहनत कर रहे थे।
आज वर्क सबमिट करने का दिन था। वर्षा दफ्तर के लिए निकल ही रही थी कि अनिकेत का फोन आया।
अनिकेत ने कहा "वर्षा, मेरी माँ की तबियत बहुत खराब है। मैं दफ्तर नहीं आ पाऊँगा। तुम प्लीज मेरे घर आकर फ़ाइल ले लो।"
वर्षा अनिकेत के घर पहुँची तो वो रसोई में था। उसे खाना बनाते हुए देखकर वर्षा ने हैरानी से पूछा "तुम ये सब लड़कियों वाले काम कर लेते हो?"
"तुमसे किसने ये कहा की ये लड़कियों का काम है" अनिकेत ने हँसकर कहा।
वर्षा बोली "बचपन से सुनती आ रही हूँ। इसलिए चिढ़ है मुझे इन कामों से। इनके जरिये हमें लड़कों से कमतर आंका जाता है और एक घेरे में बांध दिया जाता है जो मुझे मंजूर नहीं।"
वर्षा की बात सुनकर अनिकेत ने कहा "हाँ कुछ लोग ऐसा कहते है कि ये लड़कियों के काम है, वो लड़कों के लेकिन मुझे लगता है हमें ऐसे लोगों की बातों पर ध्यान देने की जगह अपनी सोच को
ऊँचा रखना चाहिए और हर काम सीखना चाहिए। क्या पता कब जरूरत पड़ जाये?"
वर्षा कुछ और कहती उससे पहले अनिकेत की माँ ने कहा "बेटी, खाना क्या लड़के नहीं खाते या घर में क्या सिर्फ लड़कियां रहती है?
तो फिर ये काम सिर्फ लड़कियों के क्यों?
जैसे बाहर की दुनिया में अब लोग लड़कियों की बराबरी स्वीकार करने लगे है उसी तरह घर में भी धीरे-धीरे बराबरी आने लगेगी बशर्ते हम किसी की गलत सोच से आहत होकर किसी काम को तुच्छ ना समझें।
हर काम की अपनी अहमियत है, जिसके बिना हमारी गुजर नहीं हो सकती।"
अनिकेत की माँ की बात सुनकर वर्षा को अपनी माँ की बातें याद आने लगी जिनकी वो आज तक अवहेलना करती आयी थी।
उसकी तंद्रा भंग करते हुए अनिकेत बोला "अरे कहाँ खो गयी? ये चर्चा आगे जारी रहेगी। फिलहाल अब दफ्तर जाओ। आज हमें सबसे ज्यादा नम्बर मिलने चाहिए।"
वर्षा ने मुस्कुराते हुए फ़ाइल संभाली और अनिकेत की माँ को धन्यवाद कहते हुए उन्हें प्रणाम करके दफ्तर चली गयी।
शाम को घर लौटने पर वर्षा ने देखा घुटनों में दर्द के कारण माँ अपने कमरे में थी। पापा और भाई रसोई में लगे थे।
वर्षा को देखकर उसके पापा ने पूछा "चाय पीयेगी ना लाडो? बैठ अभी लाता हूँ।"
"नहीं पापा आप बैठिये। आज चाय मैं बनाऊँगी" वर्षा ने कहा।
वर्षा की बात सुनकर सभी उसे हैरानी से देखने लगे।
उसके भाई ने कहा "रहने दो बहना, तुम्हें तो इन कामों से चिढ़ है ना।"
वर्षा चाय का पानी चढ़ाते हुए बोली "नहीं भाई, मैं समझ गयी हूँ कि मेरी सोच गलत है। कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता और ना ही किसी काम को करने से इज्जत कम होती है।
कुछ लोगों की सोच चाहे गलत हो लेकिन हमारे माँ-पापा की सोच बहुत ऊँची है, तभी तो उन्होंने आज तक मेरी इच्छाओं का मान रखा और किसी काम के लिए मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कि।"
वर्षा के हाथ से चाय का कप लेते हुए उसके माँ-पापा बोले "हमारी लाडो सही मायनों में आज बड़ी हुई है।"
अपने माँ-पापा के चेहरे पर संतोष की मुस्कान देखकर वर्षा का चेहरा भी खिल उठा था।