शिखा श्रीवास्तव

Abstract

4  

शिखा श्रीवास्तव

Abstract

साथ

साथ

6 mins
24.1K


राकेश दफ्तर से घर आया तो देखा उसकी पत्नी 'सीमा' पूजा की तैयारियों में लगी हुई थी। 'हरितालिका तीज' का व्रत था। सुबह से ही वो उपवास में थी।

राकेश ने सीमा से चाय मांगी तो उसने थोड़ा इंतज़ार करने के लिए कहा। बस राकेश का गुस्सा फूट पड़ा और वो चिल्लाने लगा "दफ्तर से थका हुआ आदमी आया है और यहां किसी को चाय-पानी देने की फुर्सत नहीं है।"

सीमा डबडबायी आँखों से राकेश को एक नज़र देखकर रसोई में जा ही रही थी कि तभी उनकी बेटी 'ऋचा' ट्यूशन से लौटी और राकेश के गुस्से का कारण समझते ही अपनी माँ से बोली "माँ तुम आराम करो। मैं संभाल लूंगी।"

जब ऋचा ने चाय-नाश्ता लाकर अपने पापा के आगे रखा तो राकेश ने कहा "अरे बिट्टो, तुम क्यों रसोई में गयी? तुम्हारी माँ का काम है ये सब।"

"पापा घर तो हम सबका है ना, फिर काम सिर्फ माँ का क्यों? वो सुबह से भूखी-प्यासी अकेली काम कर रही है। अब जब आप और मैं आ चुके है तो क्यों ना हम माँ का हाथ बंटा दे।" ऋचा सहजता से बोली।

राकेश ने कहा "बिल्कुल नहीं। ये जिम्मेदारी उसकी है उसे ही करने दो।"

रात के खाने में क्या बनाना है ये आदेश देकर राकेश अपने मित्र के यहां चला गया।

ऋचा ने सीमा से पूछा "माँ, मैं बचपन से देखती आ रही हूँ तुम कभी पापा की गलत बातों का विरोध क्यों नहीं करती? जिसके लिए उपवास रखा है उसी का तिरस्कार झेल रही हो। कोई कद्र नहीं है उन्हें तुम्हारी।"

"क्या करूँ बिट्टो, ऐसी ही हूँ मैं। नहीं दे पाती हूँ जवाब ये सोचकर कि बेवजह घर में क्लेश होगा, शांति भंग होगी। इससे अच्छा है चुपचाप अपने कर्तव्यों में लगे रहो। शायद एक दिन सब ठीक हो जाये। लेकिन तुम ऐसी मत बनना बिट्टो। तुम अपनी मुस्कान, अपने सम्मान से समझौता मत करना।" कहते हुए सीमा रो पड़ी।

"जब बच्चे छोटे और नासमझ होते है तब माता-पिता उन्हें सही रास्ता दिखाते है। वैसे ही बच्चों का भी फ़र्ज़ है कि अगर उन्हें लगे कि उनके माता-पिता कुछ गलत कर रहे है तो वो उन्हें रोके। अब देखना आपकी ये बिट्टो क्या करती है।" अपनी माँ के आँसू पोंछते हुए आत्मविश्वास के साथ ऋचा ने कहा और रसोई में चली गयी।

जब राकेश वापस घर आया तो उसने देखा ऋचा खाना बना रही थी।

इससे पहले की वो सीमा को कुछ कहता ऋचा ने कहा "पापा, मैं अपनी मर्जी से माँ का हाथ बंटा रही हूँ।"

राकेश बिना कुछ बोले खाने की टेबल पर बैठ गया।

जब ऋचा खाने की थाली लेकर आयी तब राकेश दुलार से बोला "आज तुमने पहली बार खाना बनाया है। बताओ मेरी लाडली बिटिया को क्या उपहार चाहिए?"

"बस इतना ही पापा की मेरी शादी उससे किजिएगा जो मेरे भूखे रहने पर खुद भी ना खा पाए।" ऋचा ने अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।

अपनी बिट्टो की बात सुनकर राकेश को सीमा के प्रति अपने गलत व्यवहार का अहसास हुआ। वो उठा और सीमा के पास जाकर बोला "आज हमारी बेटी ने मेरी आँखें खोल दी। मुझे माफ़ कर दो सीमा। आज से, अभी से मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा।

आधा ही सही लेकिन अब इस उपवास में भी मैं तुम्हारे साथ हूँ। और अगले बरस से मेरा ये उपवास आधा नहीं पूरा होगा।"

सीमा की आँखों में आज पहली बार खुशी के आँसू थे।

उस सीधी-सरल स्त्री को मानों उसके व्रत का फल मिल गया था।

उधर ऋचा मुस्कुराते हुए टेबल पर से खाना हटाकर फ्रिज में रख रही थी।

अगली सुबह जब सीमा पारण की पूजा के लिए जगी तो उसने देखा राकेश और ऋचा मिलकर रसोई में खाना बना रहे थे।

सीमा पर नज़र पड़ते ही राकेश ने कहा "जल्दी-जल्दी पूजा खत्म करो। देखो हमने सारा खाना बना दिया है। अब तुम्हें परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।"

राकेश का ये बदला हुआ रूप सीमा के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।

पूजा खत्म करके जब वो आयी तब शर्बत के साथ-साथ गर्म-गर्म खाने की थाली उसके आगे थी जिसे वो आश्चर्य से देखे जा रही थी।

"अरे भई, थाली को सिर्फ घूरती ही रहोगी या खाओगी भी? एक तो पहली बार मैंने हमारी बिट्टो के निर्देशन में खाना बनाया है और उसके बाद हम भी खाने के लिए इंतज़ार में है।" राकेश सीमा की तरफ देखते हुए बोला।

ऋचा ने खाने का एक कौर उठाकर सीमा को खिलाते हुए पूछा "बताओ माँ, हम पास हुए या फ़ेल?"

"डिस्टिंक्शन के साथ पास हुए दोनों।" मुस्कुराते हुए सीमा ने कहा।

राकेश ने फिर ऋचा से कहा "इसी बात पर चलो बिट्टो हम भी अपनी थाली लाये। मेरे पेट में तो चूहे दौड़ रहे है।"

"पापा उससे पहले मुझे आपसे कुछ पूछना है।" ऋचा राकेश की तरफ देखती हुई बोली।

राकेश ने कहा "हाँ-हाँ, पूछो।"

"पापा, आप एक ही रात में इतना कैसे बदल गये? कहीं ये सपना तो नहीं है ना?" ऋचा ने पूछा।

यही सवाल सीमा के मन में भी था। लेकिन कुछ पूछ पाना उसके लिए संभव नहीं था।

राकेश ने ऋचा के सर पर हाथ रखते हुए कहा "बिट्टो, जब तुमने कल कहा कि मेरी शादी उससे कीजियेगा जो मेरे बिना खाना ना खाये तब मैं मात्र इस कल्पना से सिहर गया कि अगर इतने नाज़ों से पाली हुई मेरी बेटी के साथ उसका पति तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करेगा, व्रत-उपवास में भी उसके आराम का ख्याल नहीं रखेगा तो कैसे सहन हो पायेगा मुझसे? और कैसे खुश रह पायेगी मेरी ये बिट्टो?

काश मुझे पहले अपनी गलतियों का अहसास हो पाता कि सीमा को भी तो मेरे कारण ऐसे ही दुख होता होगा। फिर भी पता नहीं क्यों आज तक ना इसने मुझसे कुछ कहा, ना अपने माता-पिता से ही मेरी शिकायत की।

देर से ही सही लेकिन अब मैं अपनी पत्नी को वही सम्मान और सुख देना चाहता हूँ जो मेरी बिट्टो के लिए मैं हमेशा चाहता हूँ।"

"ओह्ह पापा आप कितने अच्छे है। तुरंत समझ गये। मुझे तो लगा था आपको समझाने के लिए अभी लंबा वक्त लगेगा।" ऋचा ने मासूमियत से कहा।

सीमा भी ऋचा से सहमत थी और अपनी बिट्टो के सर पर हाथ रखते हुए उसे ढेरों आशीर्वाद दे रही थी।

"क्या अब मुझ आधे व्रती को खाने की इजाजत है?" राकेश ने बेबसी वाला चेहरा बनाते हुए कहा।

उसकी ऐसी शक्ल देखकर दोनों माँ-बेटी हँस पड़े।

उनके साथ हँसी में शामिल होते हुए और सीमा को खाना शुरू करने के लिए बोलकर राकेश ऋचा के साथ रसोई में चला गया।

जब वो दोनों अपनी थाली लेकर आये तो देखा सीमा ने अभी तक खाना शुरू नहीं किया था।

राकेश ने जब इसकी वजह पूछी तो सीमा ने कहा "आज अपने परिवार के साथ खाने की इच्छा है।"

"तो लो हम हाज़िर है तुम्हारी ये इच्छा पूरी करने के लिए। अब खाने पर टूट पड़ो।" राकेश ने हँसते हुए कहा।

पहली बार परिवार के साथ-साथ राकेश स्वयं भी ये महसूस कर पा रहा था कि उसका हृदय पत्थर नहीं है। उसमें भी अपनों के लिए असीम प्रेम भरा है।

और ये सब सम्भव हो सका था ऋचा की बदौलत।

ऋचा की समझदारी से आज खाने की टेबल के साथ-साथ घर का माहौल और सीमा का जीवन भी खुशनुमा हो गया था।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract