शिखा श्रीवास्तव

Abstract

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शिखा श्रीवास्तव

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फ़र्ज़

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रिया मेले में गुब्बारे वाले कि दुकान पर बंदूक हाथ में लिए गुब्बारों पर निशाना लगाने में मगन थी।जब एक घंटे तक वो बिना रुके निशाना लगाती रही तो उस दुकान में काम करने वाले छोटे से लड़के से रहा नहीं गया। उसने रिया से कहा- "दीदी आपको शायद ध्यान नहीं है, आप तीन सौ रुपये के गुब्बारे फोड़ चुकी हैं।" रिया बेफिक्री वाले अंदाज में बोली- "तो क्या हुआ? ये मेरा पसंदीदा खेल है।"

लड़के ने फिर कहा- "आपके घर में डांट नहीं पड़ेगी? मेरा बापू तो मुझे अठन्नी भी खर्च करने नहीं देता।"

अब रिया ने उस बच्चे को ध्यान से देखा जो कई जगह से फटी हुई कमीज पहने, नंगे पांव, एकदम दुबला-पतला उसके सामने खड़ा था। उसके चेहरे से लग रहा था जैसे उसने कुछ खाया भी नहीं है।रिया ने उससे पूछा- "भेल पूरी खाओगे? तो उस बच्चे ने ना में सर हिला दिया और कहा- माँ कहती है हमें मुफ्त में किसी से कोई चीज नहीं लेनी चाहिए।"

रिया ने कहा- "तुमने अभी मुझे दीदी कहा तो तुम मेरे भाई हुए वो भी छोटे। तो छोटे भाई को दीदी की बात माननी होगी।" और उसने भेल-पूरी का एक प्लेट उस बच्चे को दे दिया। फिर उस दुकान के मालिक से वो कुछ बात करने लगी।मालिक ने बच्चे को उस दिन के पैसे दिए और कहा- "जाओ आज तुम्हारी छुट्टी।" बच्चा हैरान सा उसे देखता हुआ जाने लगा तो रिया ने उसे रोका और कहा- "अरे रुको जरा, दीदी से बात तो करो।"

उस बच्चे ने कहा- "आप बड़े घर की हैं और हम छोटे लोग। आप हमसे क्या बात करेंगी।"

रिया बोली- "ये बड़ा-छोटा सब भूल जाओ। बस याद रखो मैं दीदी हूँ तुम्हारी। अब बताओ तुम्हारा नाम क्या है?"

बच्चे ने कहा- "बबलू।"

रिया ने पूछा- "तुम ये काम क्यों करते हो बबलू? और तुम्हारे घर में कौन-कौन है?"

बबलू ने बताया- "घर में माँ-बापू और एक छोटा भाई है। बापू ज्यादा पैसा नहीं लाते इसलिये माँ बोलती है मैं बड़ा हूँ तो छोटे भाई की जिम्मेदारी मेरी है। इसलिए मैं मजदूरी करता हूँ।"

रिया ने पूछा- "तुम पढ़ाई नहीं करते?"

ये सुनकर बबलू की आँखों में आँसू आ गए। उसने अपने आँसू पोंछते हुए कहा- पांचवी तक गया था विद्यालय और मुझे वहां अच्छा भी लगता था लेकिन बापू ने फिर ये कहकर जाने से मना कर दिया कि विद्यालय जाने से वक्त बर्बाद होता है और काम करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलता।

रिया ने पूछा- "तुम पढ़ना चाहते हो?"

बबलू ने कहा- "हाँ दीदी मैं खूब पढ़ना चाहता हूँ और बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता हूँ, और अपने भाई को भी पढ़ाना चाहता हूँ।"

रिया बोली- "फिर ठीक है। आओ चलो मुझे अपने घर ले चलो।"

बबलू घबराकर बोला- "नहीं दीदी मेरे बापू नाराज होंगे आप मत जाइये।"

रिया ने कहा- "'घबराओ मत कुछ नहीं होगा।" और वो उसके साथ उसके घर की ओर चल पड़ी।

वहां जाकर उसने बबलू के माता-पिता से कहा कि वो बबलू की मदद करना चाहती है ताकि वो पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बन सके।बबलू के पिता लापरवाही से बोले- "मैडम जी ये सब आप बड़े लोगों के चोंचले है। ये पढ़ेगा तो काम कौन करेगा? घर के खर्च के पैसे कहाँ से आएंगे।"

तब रिया ने कहा-" जितना पैसा आपका बेटा महीने में कमाकर लाता है, उतने पैसे हर महीने मैं आपको दे जाया करूँगी। बस आप उसे पढ़ने दीजिये। उसकी पढ़ाई की भी सारी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ।"रिया ने आगे कहा- "अब भी आप नहीं माने तो मैं पुलिस की मदद लूंगी क्योंकि बच्चों से काम करवाना जुर्म है।"

अब बबलू का पिता कुछ नहीं बोल सका। हाँ कहने के अलावा कोई रास्ता नहीं था उसके पास।रिया बबलू को लेकर अपने घर चली गयी। अपने माँ-पापा से बात करके उसने उन्हें उसके एडमिशन के लिए मना लिया। उसके माँ-पापा ने शर्त रखी कि वो ये खर्च अपने जेबखर्च से देगी और उसे अपनी सारी फिजूलखर्ची बंद करनी होगी। रिया खुशी-खुशी मान गयी।

अगले ही दिन रिया ने बबलू का दाखिला एक अच्छे विद्यालय में करवा दिया और उसी विद्यालय के छात्रावास में उसके रहने का इंतज़ाम करवा दियाहर रविवार रिया उससे मिलने जाती। बाजार से जरूरी चीजें उसे दिलवाकर उसके माँ-पापा से भी उसे मिलवा लाती।अब उसके माँ-पापा भी अपने बेटे को देखकर खुश होते थे।बबलू की गिनती जल्द ही विद्यालय के मेधावी छात्रों में होने लगी और प्राचार्य की कोशिश से अब उसे हर महीने छात्रवृत्ति भी मिलने लगी।बबलू ने रिया से कहा- "दीदी अब मेरा भाई भी बड़ा हो गया है। मैं अपनी छात्रवृत्ति के पैसों से उसे पढ़ाना चाहता हूँ।"रिया बोली- "तुम वो पैसे खर्च नहीं करोगे। मैं बैंक में तुम्हारा खाता खुलवा रही हूँ। वो सारे पैसे तुम उसमें जमा करना आगे की पढ़ाई के लिए। तुम्हारे भाई का दाखिला मैं करवा दूंगी।"बबलू ने कहा- "दीदी आप बहुत अच्छी हैं।"

रिया बोली- "अच्छे तो तुम हो मेरे छोटे भाई। तुम उस दिन ना टोकते तो मैं पैसों की अहमियत कभी समझ ही नहीं पाती।"रिया ने उसी विद्यालय में बबलू के भाई का दाखिला भी करवा दिया।दोनों भाई मन लगाकर पढ़ने लगे।कुछ सालों के बाद रिया की भी पढ़ाई पूरी हो गयी और वो एक कंपनी में नौकरी करने लगी।अब बबलू भी दसवीं कक्षा में आ गया था। रिया ने अपने वेतन से उसे अच्छे ट्यूशन क्लास में भी दाखिला दिया ताकि वो अच्छे से पढ़ाई कर सके।

जब बबलू ने अच्छे नम्बरों से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की तो रिया की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसने एक बड़ी सी पार्टी रखी इस खुशी में। फिर सोच-विचार करके उसने बबलू को आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया और उससे कहा कि वो अपने भाई की बिल्कुल फिक्र ना करे।बबलू खतों के जरिये रिया को अपनी पढ़ाई-लिखाई की सारी जानकारियां देता रहता था।इधर कुछ वक्त के बाद रिया की शादी हो गयी और बबलू छात्रवृत्ति लेकर विदेश चला गया।दोनों अपने-अपने नए जीवन में व्यस्त दो-तीन महीने में एक-दूसरे का हाल-चाल लेते रहते।

कुछ महीनों के बाद राखी का त्योहार आया। बबलू अपने कमरे में उदास बैठा था। आज इतने सालों में पहली बार उसे रिया की राखी नहीं मिली थी। अपनी सूनी कलाई देखकर उसे बहुत दर्द हो रहा था। उसने सोचा शायद दीदी भूल गयी होगी अपनी व्यस्तता में। उसने याद दिलाने के लिये रिया को फोन लगाया पर रिया ने फोन नहीं उठाया। फिर उसने रिया के पति के नंबर पर फोन किया लेकिन उन्होंने भी फोन नहीं उठाया। अंत में उसने अपने भाई को फोन किया।उसके भाई ने रुआंसी आवाज़ में कहा- "भईया, दीदी को कुछ हो गया है। वो अस्पताल में है। लेकिन मुझे कोई कुछ नहीं बताता। आपको बताने से भी मना किया था।"

बबलू के होश ही उड़ गए ये सुनकर। वो रोते हुए खुद को कोसने लगा कि वो इतना व्यस्त कैसे हो गया कि एक बार जाकर दीदी से मिल भी नहीं सका, ना ढंग से फोन पर ही बात कर सका। आज तीन महीने बाद उसे दीदी की याद आयी वो भी तब जब उसे राखी नहीं मिली। वो इतना स्वार्थी कैसे हो गया।

किसी तरह बबलू ने खुद को संभाला और टिकट का इंतज़ाम करके अगले ही दिन अपने शहर पहुँच गया।घबराया सा, बेचैन जब वो रिया के घर पहुँचा तो उसे पता चला सब लोग अस्पताल में है। वो दौड़ा-दौड़ा अस्पताल गया। वहाँ पहुँच कर उसे झटका सा लगा बीमार रिया को आई.सी.यू में देखकर।

रिया के चेहरे की रंगत ही बदल गयी थी।बबलू को पता चला रिया की दोनों किडनियां खराब हो गयी थी और वो दो महीने से अस्पताल में थी। सबने बहुत कोशिश की लेकिन कोई डोनर नहीं खोज पाए उसके लिए।दिन पर दिन रिया की हालत बिगड़ती जा रही थी।

बबलू तुरंत डॉक्टर के पास गया और बोला- आपको जो भी टेस्ट करने है जल्दी से जल्दी कीजिये। मैं अपनी एक किडनी अपनी दीदी को देना चाहता हूँ।

डॉक्टर ने कहा-"तुम अभी बहुत जवान हो। ऐसा जोखिम मत लो" लेकिन बबलू नहीं माना।

उसने कहा- "अगर मेरी दीदी को कुछ हो गया तो मैं वैसे भी नहीं जी पाऊंगा। कुछ नही होगा मुझे। मेरी दीदी का आशीर्वाद हमेशा मेरी रक्षा करेगा।"

अंततः बबलू ने अपनी एक किडनी रिया को दे दी।

जब रिया को होश आया तो उसने बबलू को सामने देखा। बबलू ने अपनी सूनी कलाई आगे करते हुए कहा- जल्दी अच्छी हो जाओ दीदी। देखो मेरी कलाई को आपकी राखी का इंतज़ार है। ये कहकर वो रो पड़ा।रिया के पति ने रिया को बताया कि बबलू ने ही उसे अपनी एक किडनी दी है।उसने कहा-" हम सब तो अपने बारे में सोचकर ये कदम नहीं उठा सके लेकिन बबलू ने एक मिनट का भी वक्त बर्बाद नहीं किया ये फैसला लेने में।"रिया की आँखों से आँसू बह निकले। बबलू ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा- रोना नहीं है। बस जल्दी ठीक होकर घर आना है।रिया के माता-पिता की आँखों में खुशी के आँसू थे कि उनकी बेटी ने दो बच्चों का जीवन संवारकर देश को दो अच्छे नागरिक दिए, और आज उसे उसके अच्छे कर्मों का फल भी मिल गया।बबलू के माता-पिता भी गर्व से अपने बेटे को देख रहे थे जिसने कामयाब होने के बाद भी अपनों को, उनके अपनेपन को नही बिसराया।

कुछ वक्त के बाद रिया को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। बबलू ने सबके साथ मिलकर पूरा घर रिया की पसंद के फूलों से सजा दिया था।रिया घर आई तो बबलू ने कहा- अब हम सबसे पहले अपनी राखी का त्योहार मनाएंगे और राखी की थाली रिया के हाथ में रख दी।राखी बंधवाने के बाद जब बबलू ने रिया को तोहफा दिया तो रिया ने कहा- तुम तो पहले ही मुझे इतना कीमती तोहफा दे चुके हो, मेरा ये नया जीवन। अब इस तोहफे की आवश्यकता नहीं।

बबलू बोला-" वो तोहफा नहीं एक भाई का फर्ज था। और ये फ़र्ज़ निभाना मैने आपसे ही तो सीखा है। आपकी बदौलत आज इस मुकाम पर हूँ मैं दीदी।और ये जो तोहफा है ना बस आपके भाई का थोड़ा सा प्यार है उसका पहला वेतन, दुनिया की सबसे अच्छी दीदी के लिए ।"

रिया ने ये सुनकर बबलू को गले से लगा लिया।दोनों भाई-बहन की आँखों में खुशी और संतोष के आँसू थे कि दोनों ने एक-दूसरे के प्रति अपना फर्ज आज निभा दिया था।उनके माता-पिता नम आँखों और मुस्कान के साथ भाई-बहन की इस अनोखी जोड़ी को आशीर्वाद दे रहे थे



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