Dhan Pati Singh Kushwaha

Tragedy

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Tragedy

वे कभी मिल न पाए

वे कभी मिल न पाए

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आज रविवार के दिन भी कक्षा के सभी विद्यार्थी वर्चुअल मीटिंग के माध्यम से एक दूसरे से मिल रहे थे। इसे पहले वाली मीटिंग में ही यह तय कर लिया गया था कि यह रविवार मई माह का दूसरा रविवार है अर्थात मातृ दिवस ( मदर्स डे)। मां का हम सबके जीवन में बहुत ही महत्व इस संसार के हर प्राणी से उससे परिचय की अधिकतम अवधि हमारे अपने जीवन काल के बराबर हो सकती है लेकिन हमारा मां से जुड़ाव हमारे संसार में आने के नौ महीने पहले ही हो जाता है।

कक्षा कि इस वर्चुअल मीटिंग में अपने विचार प्रकट करने की शुरुआत सुबोध ने की-"साथियों मदर्स डे मनाने की यह परंपरा लगभग एक सौ दस साल पुरानी है इस दिन की शुरुआत एना जारविस ने की थी। उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया था और इसकी तारीफ इस तरह चुन्नी की इसकी तारीफ उनकी मां की पुण्यतिथि नौ मई के आसपास ही पड़े। दरअसल मदर्स डे की शुरुआत एना जार्विस की मां एन ग्रीव्स जार्विस करना चाहती थीं। भी चाहती थी एक ऐसा दिन शुरू किया जाए जिस दिन अपनी अमूल्य सेवा के लिए माताओं को सम्मानित किया जाए। 1905 में रीव्स जारविस की मौत हो गई थी और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी है ना जारविस ने उठा ली। a9 इस दिन की टीम में थोड़ा सा बदलाव किया उन्होंने कहा कि मदर्स डे के दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करते हुए उन्हें सराहा और लोगों को उनका यह विचार बहुत अधिक पसंद आया पहली बार मदर्स डे एन रीव्स जार्विस की मौत के 3 साल बाद यानी 1908 में पहली बार मनाया गया था। दुनिया में जब पहली बार मदर्स डे मनाया गया तो एना जार्विस ही एक तरह से इसकी पोस्टर गर्ल थीं। उन्होंने उस दिन अपनी मां के पसंदीदा सफेद कारनेशन फूल बैठे थे जिन्हें चलन में ले लिया गया। इन फूलों का व्यवसायीकरण इतना अधिक बढ़ गया कि आने वाले वर्षों में मदर्स डे पर सफेद कारनेशन फूलों की कालाबाजारी होने लगी यह एना को पसंद नहीं आया और उन्होंने इस को समाप्त करने की मुहिम भी शुरू कर दी थी। उन्होंने लोगों को फटकारा कि अपने लालच के लिए बाजारीकरण करके उन लोगों ने इस दिन की अहमियत की घटा दी है वर्ष 19-20 में उन्होंने लोगों से फूलना खरीदने की अपील भी की थी उन्होंने इसके लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया लेकिन यह मुहिम रुक ना सकी और 1948 में एना इस दुनिया को अलविदा कह गईं। आज भी ज्यादातर लोग अपनी मां को सम्मान देने के लिए मदर्स डे मनाते हैं। हम इस संसार में चाहे कुछ भी कर ले लेकिन कोई भी व्यक्ति कभी अपनी मां के ऋण से उऋण नहीं हो सकता।"

आज की इस वर्चुअल मीटिंग में आकांक्षा काफी देर में आई थी। आकांक्षा का प्रवेश हमारे विद्यालय में पिछले वर्ष जुलाई में हुआ था वह मदर्स डे पर हम लोगों के साथ पहली बार थी। आकांक्षा एक बहुत ही हंसमुख लड़की है उसके चेहरे पर एक प्राकृतिक मुस्कान हम सब हर समय महसूस करते हैं। पर पता नहीं आज उसके चेहरे पर एक उदासी थी। हमारी जिज्ञासा अपनी जिज्ञासा को ज्यादा देर तक नहीं रह सकती उसने आकांक्षा से उसके चेहरे पर छाई उदासी का कारण जानना चाहा।

जिज्ञासा ने आकांक्षा से पूछा -"बहन आकांक्षा ,तुम सदैव प्रसन्नचित्त दिखती हो किंतु आज प्रसन्नता का दिन है लेकिन तुम्हारे चेहरे पर उदासी के भावों का हम लोग कारण जानना चाहते हैं।"

जिज्ञासा की बात सुनकर आकांक्षा की आंखों में आंसू भर आए वह अपने आंसुओं को रोकना चाहती थी किंतु आंसू आंखों में नहीं रुके और बह निकले। हम सब हैरान थे कि ऐसा क्या हो गया की आकांक्षा के आंसू रुक नहीं रहे लगातार बहते जा रहे हैं। हम सब उसे बार-बार पूछ रहे थे और वह कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं थी तभी उसके पापा अमरनाथ जी आए और उन्होंने आकांक्षा की उदासी और उसके रोने का कारण बताया।

आकांक्षा के पापा अमरनाथ जी ने बताया-" तुम बच्चों को शायद यह मालूम नहीं है कि आकांक्षा की मां नहीं है और आकांक्षा कभी भी अपनी मां से नहीं मिल पाई थी।"

आकांक्षा अपनी मां की यादों में इतना दुखी हो रही थी कि उसके पिताजी को उसे संयत करने में कुछ समय लगा। कुछ देर में आकांक्षा जब संयत हुई तब उन्होंने हम लोगों को बताया-"बच्चों आकांक्षा का एक बड़ा भाई है। जब आकांक्षा अपनी मां के गर्भ में आई तब से ही वह यह कहती थी कि ईश्वर से यही विनती है कि उसने मुझे एक बेटा दो दे दिया अब एक बेटी देकर मेरा परिवार पूरा कर दें। वह आकांक्षा के संभावित आगमन को लेकर बहुत ही प्रफुल्लित थी हम सब आपस में बहुत सारी बातें करते थे। गर्भावस्था के दौरान हम हम लोग सदा डॉक्टर के संपर्क में रहे जन्म के समय डॉक्टर ने ही बताया था कि इस बच्चे का जन्म सामान्य प्रसव प्रक्रिया द्वारा नहीं हो सकेगा इसके लिए हमें ऑपरेशन करना पड़ेगा। प्रसव के समय उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया इसे हम सब का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि विधि का विधान ही था। प्रसव के दौरान आकांक्षा की मां को नहीं बचाया जा सका। वह इस फूल सी बच्ची को जन्म देकर स्वयं परलोक सिधार गईं। आज मैं इन दोनों बच्चों को मां और पिता दोनों का प्यार देने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन यह कहा जाता है की पिता के ना रहने पर मां पिता का फर्ज आसानी से पूरा कर सकती है लेकिन पिता कुछ भी कर ले वह अपने बच्चे को वह प्यार नहीं दे सकता जो उसे उसकी मां दे सकती है। तुम सब ने शायद 'दर्द का रिश्ता' फिल्म का गीत सुना हो 

' बाप की जगह मां ले सकती है ,

मां की जगह बाप ले नहीं सकता ,

लोरी दे नहीं सकता,

सो जा...सो जा...

अपनी आने वाली बेटी के लिए मन में अनगिनत सपनों को जिस मां ने सजाया था वह मां और बेटी एक बार भी एक दूसरे से नहीं मिल पाए।



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