जिम्मेदारी

जिम्मेदारी

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गोरखपुर दीवानी कचहरी के गेट पर मदारी वालों से लेकर संडा का तेल , ताबीज और अंगुठियां आदि बेचने वालों की लाइन आज भी लगती है । कई दशक पहले भी लगती थी । रामदेव चौबे वैसे तो रेलवे कारखाने में मुलाजिम थे लेकिन उनके भारी भरकम शरीर और तदनुरूप कर्कश वाणी ने हाकिमों में इतना साहस नहीं रख छोड़ा था जो पूछ लें कि ड्यूटी टाइम में साइकिल लेकर किधर जा रहे हो ?


उनके होश संभालने के साथ जमींदारी टूट चुकी थी लेकिन उसकी तासीर अभी भी युवा रामदेव के रगों में दौड़ रहे खून को गाहे बगाहे न्यून ताप पर भी खौला देती थी । कचहरी के जो दांव पेंच उन्होंने सीख रखे थे उसे देख बड़े से बड़ा काबिल वकील भी किताबें पलटने पर मजबूर हो जाया करता था । लोग उन्हें पीठ पीछे कचहरी का कीड़ा कहते थे । शेष गांवों में पंचायत कर विवाद समाप्त करने का चलन अभी भी शेष था लेकिन रामदेव चौबे अपने गाँव की पंचायत के हर फैसले को तत्क्षण पलट देने के लिए कुख्यात हो चुके थे और जिसके विपरीत फैसला आता उसे लेकर थाने का रुख कर जाते थे । महीने में जब तक दो तीन इस्तगासे उन पर कायम न हो जाएं तब तक खाना हजम नहीं होता था ।


      इस बार कचहरी पहुंचे तो भन्नाए हुए थे । सुखदेव चौबे ने उन पर बलवा का मुकदमा कर दिया था । गिरफ्तारी तो नहीं हुई लेकिन डेढ़ पसली के सुखदेउवा की इतनी हिम्मत उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी । और किया भी क्या था उन्होंने ? उस रोज कारखाने से लौट रहे थे तो देखा कि सुखदेव का लड़का सिर पर एल्मुनियम की बटुली उल्टी रख कर बजाता हुआ चला आ रहा था । इन्हें दिल्लगी सूझी और बटुली कस के मुक्का मार के बजा दी । अगले पल लड़के का सिर बटुली के भीतर । वो घबराया और गला फाड़ - फाड़ कर चिल्लाने लगा । इन्होंने निकालने की कोशिश की लेकिन वो इतना छटपटा रहा था कि कोई उपाय ही काम नहीं आया । प्रत्यक्षदर्शियों ने सुखदेव को बताया कि जब बटुली नहीं निकली तो जाते वक्त रामदेव ने लड़के की पीठ पर दो मुक्के भी जड़े और गालियाँ भी दीं । बस फिर क्या था ? अगले दिन ही रामदेव के सिपाही मित्र ने खबर भिजवा दी कि जमानत करवा लो , मुकदमा लिखा जा चुका है । 


जैसे ही कचहरी गेट पर पहुंचे एक विप्र वेशधारी व्यक्ति ने रोक लिया - " कहाँ जा रहे हो यजमान ? बैठो कुछ अपने भविष्य के बारे में जान लो "


-"ठीक ठीक बता दोगे ?"....रामदेव को लेट हो रहा था । उन्हें आडम्बरी लोगों से हद दर्जे की घृणा भी थी ।


-"मैं अपने गुरु का सबसे प्रिय शिष्य रहा हूँ , उनकी कृपा से आज तक मिथ्या कुछ भी नहीं निकला मेरे मुख से "...उस व्यक्ति ने सहज रहते हुए कहा ।


-"चलो देख लो ! लेकिन यह भी जरूर बताना कि अभी तुम्हारी पीठ पर मैं कितने मुक्के जड़ने वाला हूँ ?" रामदेव चौबे ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा ।


आदमी मुस्कुराया - " आज तुम किसी को पीटोगे ऐसा तो कोई योग नहीं बनता दिख रहा लेकिन जेल जाने के पूरे आसार हैं "


रामदेव ने सुना तो बौखलाए और उसकी पूरी दुकान बिखेर दी । गालियां बकते हुए उसका कॉलर धरते तब तक जमानतदारों ने पकड़ लिया । उनको जाता देख अपनी दुकान समेटता वो व्यक्ति पुनः बोला - " तुम्हारे भाग्य में कुछ ऐसा भी लिखा है जो लोगों के लिए नजीर बनेगा "


जमानत के पेपर तैयार होकर जब हाकिम के पास पहुँचे तो हाकिम ने उन्हें घूर कर देखा , पहचान लिया था उसने - " अभी पिछले हफ्ते ही किसी केस में जमानत ली थी न तुमने "


रामदेव बगलें झांक रहे थे , वकील दलीलें दे रहा था लेकिन हाकिम जमानत नामंजूर कर चुका था । वो रात जेल में कटी और किसी प्रकार अगले दिन जमानत मिल सकी ।


   उस दिन के बाद से सुखदेव उनके सबसे बड़े शत्रु हो गए । हर वक्त ऐसे मौके की तलाश में रहते जब सुखदेव को उसकी नानी याद दिला दें । चकबन्दी में सुखदेव के खेत बिगाड़ने में उन्हें पहली कामयाबी मिली , चकबन्दी दफ्तर के चक्कर लगाते सुखदेव को देखते तो छाती गज भर की हो जाती । जिस रामदीन के चक के साथ सुखदेव के खेत की अदला - बदली हुई थी उसे चढाकर दोनों में फौजदारी भी करवा दी । रामदीन की पैरवी ये अपने खुद भी कर रहे थे , अतः झूठे गवाहों और सुबूतों के बल पर सुखदेव को छः महीने की जेल करा दी ।


   रामदेव उस रात लघुशंका के लिए उठे तो जोर से किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज आई -" अरे काका दौड़िये !"


आवाज पहचान चुके थे । यह सुखदेव की बेटी थी जो पूरे गाँव में केवल उन्हीं को काका कहकर संबोधित करती थी । कातर आवाज ने कुछ भी सोचने विचारने की स्थिति में उन्हें नहीं छोड़ा था । सुखदेव का घर उनके घर से चार पाँच घर दूर था । तेजी से दौड़े तो पैर धोती में फँसा और मुँह के बल गिरे । खुद को संभाला , आवाज और उसकी कातरता बढ़ चुकी थी , दरवाजा अंदर से बंद था । बलिष्ठ शरीर काम आया , कंधे के एक ही जोरदार प्रहार ने दरवाजे का मान मर्दन कर दिया । भीतर घुसे तो अंधेरे में ही किसी ने उनके दोनों पैर कस कर पकड़ लिए । यह सुखदेव की लड़की थी । तब तक किसी ने कोई धारदार हथियार उनकी बाँह पर दे मारी । बिलबिला उठे , लेकिन अंधेरे में ही हमलावर की कलाई पकड़ में आ गई । पैर झटका तो लड़की दूर जा गिरी । हमलावर को दोनों हाथों में उठाया और उठाकर ऐसा फेंका कि वो दरवाजे के बाहर जाकर गिरा । अपने भी बाहर आये और हमलावर को तब तक उठा कर पटकते रहे जब तक उसके शरीर से हरकत आनी बन्द नहीं हो गई । शोर सुनकर काफी लोग ढिबरी टॉर्च लिए पहुँच चुके थे , देखा ! सुखदेव की पत्नी और लड़का मूर्च्छित पड़े हैं जबकि उसके जेल में होने का फायदा उठाकर उसकी बेटी के साथ दुराचार की नीयत से आये रामदीन के प्राण पखेरू उड़ चुके थे ।


    जेल में जिस दिन रामदेव को भेजा गया उसी दिन सुखदेव की सजा पूरी हुई थी । रामदेव को देख उनकी आँखों में आँसू आये तो रामदेव ने उन्हें पोंछ दिया और मुस्कुरा कर बोले - " कचहरी का कीड़ा हूँ , बहुत जल्द बाहर आ जाऊँगा । कोई अहसान नहीं किया है , बेटियाँ साझे की होती हैं। "





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