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तुम्हारी नजर

तुम्हारी नजर

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तुमने पूरी बाँह का स्वेटर नहीं पहना आज ?

बैठक में दाखिल होती जूही से नवीन ने पूछा तो पीहू के चेहरे पर आश्चर्य था।

पीहू की तरफ देख मुस्कुराती हुई जूही नवीन से बोली- माघ चढ़े 12 दिन हो चुका है जी ! ...अम्मा हमेशा कहती थीं "आधे माघे कंबल कांधे " ...अब ठंड कहाँ ?......लो चाय पियो।

चाय की चुस्कियाँ लेते नवीन ने पूछा- अच्छा पीहू बेटा ! फिल्में वगैरह देखती हो ?

पीहू- जी पिताजी ! लेकिन सिर्फ जय कुमार की।

नवीन उछल पड़े- देखो मैं न कहता था कि आज की तारीख में जय कुमार ही सबके दिलों पर राज कर रहा है ? लेकिन तुम्हारी होने वाली सास को कौन समझाए ? इन्हें बिना मूँछ वाले नायकों से चिढ़ है ...अभिनय से कोई मतलब नहीं, इन्हें तो बस मूँछो वाले नायक देखने होते हैं, अभी हाल ही में उस मूँछ वाले ...क्या नाम है उसका ?.....हाँ सुनील रॉय की एक फ़िल्म आई थी ... 'कबाड़ी' ....मुझे फूटी आँख नहीं सुहाई ...लेकिन ये महारानी तीन बार देख आईं और साथ में मुझे भी घसीटा।

जूही ने आँखें तरेरीं - महाशय ! जरा कम बोलो ! तुम्हारी मूँछों प

र मुग्ध होकर ही तुमसे शादी की थी मैंने ....वरना तुम कॉलेज में मुझसे दो साल जूनियर थे।

मूँछों पर हाथ फेरते नवीन मुस्कुराये- लेकिन तुम तो कहती थी कि तुम्हें मेरी कविताओं ने दीवाना बनाया था।

जूही भी मुस्कुरा दी- दोनों ने।

बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा तो नवीन, पीहू से बोले- जाओ बेटा रजत आ गया है ....रात होने पर ठंड और बढ़ जाएगी, भाई साहब और भाभी जी चिन्ता कर रहे होंगे।

पीहू उठी ...दोनों के पाँव छुए और हैरान सी पोर्च में पहुँच रजत से बोली- तुम्हें पता है पिताजी मुझसे फिल्मों के बारे में बात कर रहे थे ? ....यहाँ तक कि अम्माजी ने स्वेटर नहीं पहना है, ये भी उन्हें पता चल गया।

रजत मुस्कुराया- पिताजी वो हर चीज देख लेते हैं जो माँ देख पाती है ....उनकी शादी हुए पच्चीस साल ही हुए लेकिन पिताजी की दुर्घटना में आँखें चली जाने के बाद लगातार तीस साल से माँ उनकी आँखें बन कर उनके साथ है।

कहकर रजत ने कार आगे बढ़ा दी... मौन बैठी पीहू के दाएं हाथ की पकड़ गियर संभाले रजत के बायें हाथ पर धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही थी ।


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