मैं खुश हूँ मरकर भी (सीजन-3)
मैं खुश हूँ मरकर भी (सीजन-3)
तुम्हे मेरी कमी का एहसास होगा, आज नही तो कल ही सही, शायद तुम मुझे याद करोगे और अपनी गलती पर पछताओगे की तुमने क्या खो दिया है? तुम सोचोगे की काश तुम समय पर संभल गए होते। कुछ ऐसा सोचा था मैंने। लेकिन तुम…… तुम ना जाने किस मिट्टी के बने थे, ना जाने क्यों इतना बदलाव तुममें आया, ना जाने क्यों तुम्हारा दिल पत्थर का हो गया था? क्यो?
क्यों मेरे मरने के बाद भी तुम नही संभल पाए। शायद और ज्यादा बिखर गए हो, पहले थोड़ा कसाव था लेकिन अब तुम बिल्कुल आजाद हो। और मैं भी ।
मैं एक बुरी लड़की हूँ, बहुत बुरी। जी हाँ….बुरी। जिंदगी के दलदल में अपनी गलती से फँसी और फिर निकलने की हर कोशिश मुझे और भी ज्यादा डूबा रही थी।
तीन साल पहले पहली बार मुंबई आयी, नए से सपने लेकर, जिंदगी को खूबसूरत बनाने के बहुत सुंदर सपने। देहरादून तक वो मुझे लेने आये थे।
आप ना मुझे जानते है ना उसे, तो सबसे पहले में इंट्रोड्यूस कराती हूँ खुद से।
मेरा नाम किरन है सॉरी-सॉरी……। है नही था, मेरा नाम किरन था। और मैं कॉलेज के सेकंड ईयर में थी, साहित्य विषय था और मेरी रुचि एक्टिंग में थी, शायद मेरे सपना ही एक्टर बनना था। स्कूल में ड्रामा और नाटक करने में कभी नही हिचकिचाती थी , और जब से मोबाइल खरीदा तब से मैं छोटी छोटी एक्टिंग क्लिप पोस्ट कर करके इंस्टाग्राम में करीब चालीस हजार फॉलोवर बना चुकी थी। जो लगातार बढ़ रहे थे। दोस्तो में तो मैं फेमस थी और छाई हुई थी जैसे मैं कोई स्टार बन चुकी हूं। इसी बीच मेरी मुलाकात हुई कार्तिक से, उसकी सागर से भी गहरी बाते जिनमें मुझे सच्चाई नजर आती थी, उसके बोलने का अंदाज और भाषा बहुत आकर्षक थी और वो भी एक फेमस युट्यूबर था, जो ब्लॉग बनाकर अपनी ख्याति फैला रहा था। मैंने उसे एक दिन इंस्टाग्राम पर फॉलो किया तो उसने मुझे फ़ॉलोबेक करके मेरी कुछ वीडियो को लाइक किया था जो मेरी उम्मीद से परे की बात थी, मैं बहुत खुश थी। होती भी क्यों नही आखिर वो एक स्टार था मेरे लिए। उसकी लाइफ स्टाइल देखकर मैं दंग थी, हमेशा अलग अलग नए नए कपड़ो में वीडियो, और उसका घर जो उसने वीडियो में दिखाया था वो किसी बंगलु से कम नही था। और ड्राइविंग करते करते उसके बहुत से ऐसे ब्लॉग भी आये थे जिसमें उसने सभी दर्शकों को अपने सुंदर से शहर की सैर कराई थी, तब मन करता था कि काश उसके बगल वाली शीट में बैठकर मैं भी घूम पाती।
एक चाह थी दोस्ती की, और हल्का फुल्का क्रश भी था। और उसके लाइक किये गए नोटिफिकेशन की स्क्रीनशॉर्ट को मैंने स्टोरी पर लगाते हुए उसे टैग कर लिया। और कैप्शन में डाला थेँक्स सो मच ।
थेँक्स सो मच से हमारी बात शुरू हुई और ना जाने कब हम दोस्त हुए और कब प्यार…. ये ज्यादा जल्दबाजी नही थी, शुरू शुरू में एक दूसरे के पोस्ट में तारीफ, और थेँक्स तक बात सीमित थी। उसके पोस्ट पर हजारों कॉमेंट आते लेकिन रिप्लाय सिर्फ मेरा ही करता था, हां कुछ और भी खास लोग थे जिनके जवाब भी दे देता था।
उसके बाद इनबॉक्स में बातें हुईं और धीरे धीरे नम्बर का आदान प्रदान हुआ।
आज सोचती हूँ काश नही होता, अगर बात ही नही होती तो मेरी जिंदगी मेरे पास होती, ना मैं बर्बाद होती ना ही मेरे मम्मी पापा बादनाम होते।
प्यार मोहब्बत की बातों में उसे इंटरेस्ट था तो बस इजहार और फ्यूचर प्लानिंग का, जो मुझे भी पसंद था। मुझे भी उसकी बातें बहुत अच्छी लगती थी। उसकी बातों में एक अलग तरह की कशिश थी जो शायद उसके मासूम शक्ल और उभरता हुआ कलाकार होने के कारण और खूबसूरत लगती थी। वो तो मुझे ये भी बताता था कि उसकी कितनी गर्लफ्रेंड रह चुकी है, और कितनी लड़कियां उसपे क्रश करती है और उसे अपना दोस्त बनाने के लिए तरसती है, ये बातें मुझे कहीं से कहीं तक झुठी नही लगती थी, और उसका ये सच बताना मुझे इतना अच्छा लगा कि उसपे जो भरोसा था वो और बढ़ गया और दिल मे इज्जत और प्यार ने घर बना लिया।
वैसे मैंने भी उसे एक बॉयफ्रेंड का बताया, वो बॉयफ्रेंड नही मेरे स्कूल का दोस्त था, कभी प्यार मोहब्बत की बात नही हुई उससे, बस झगड़ा ही होता था और कभी बात नही करेंगे बोलकर अगले दिन बोल पढ़ते, सिर्फ दोस्त ही था, लेकिन मेरी सहेलियों ने इसे बॉयफ्रेंड का नाम दे दिया, मैं तो जानती भी नही थी कि बॉयफ्रेंड और फ्रेंड में क्या फर्क है, मुझे हमेशा लगता था कि लड़का दोस्त को ही बॉयफ्रेंड कहते होंगे इसलिए जब भी कोई मुझसे पुछता की तेरा कोई बॉयफ्रेंड है तो मैं भी कह देती की तीन चार है।
लेकिन जब से उस युट्यूबर से बात शुरू हुई, तब से लगने लगा कि बॉयफ्रेंड सिर्फ वो है जिसके साथ लाइफ टाइम गुजारने के सपने दिल देखने लगे, जिसके साथ शादी का ख्याल दिल मे आये, जिसके साथ घूमने फिरने का मन करे और जिसके हाथ को थामकर किसी शाम, एक छत के ऊपर खड़े होकर आसमान में तारों को गिरते हुए देखकर सिर्फ उसके लिए दुआ किया जाए, और फिर उस हाथ को अपने होठों की छुअन के साथ उसके सीने में लगकर उसकी धड़कन में अपना नाम सुनते हुए आंखे धीरे से बंद कर लेने से शुकुन मिले और खुद को महफूज महसूस किया जाए। और ये सब ख्याल मुझे भी आने लगे थे और सपने भी। वो भी शादी के लिए तैयार था लेकिन उसे पहले कुछ करना था, अपने करियर के लिए बहुत सोचता था वो।
जब दोनो की मोहब्बत हद से बढ़ी तो दूरियां चुभने लगी, कहाँ मुंबई और कहाँ अपना देहरादून। मेरी मम्मी को मैं जानबूझकर उसकी वीडियो दिखाती थी, मम्मी भी शुरू शुरू में देख लेती थी और तारीफ करती थी। तारीफ के आड़ में मैंने एक दिन कह दिया कि ये मुझे पसंद करता है और कहता है शादी करना चाहता है। मैंने ये सब तो इसलिए कह दिया क्योकि मम्मी उसकी तारीफ कर रही थी। लेकिन बाजी पलट गई, मम्मी ने दस बाते सुनाई और मेरा भी उसकी वीडियो देखना बंद करवा दिया, मेरा मोबाइल चेक कराया जाने लगा शुक्र है मैं चैटिंग डिलीट करते रहा करती थी।
अब माँ जब भी मुझे मोबाइल चलाते देखती तो दादीमाँ बन जाती, इतना शक करने लगी, इतनी खरी खोटी सुनाने लगी कि ऐसा लगने लगा जैसे वो सौतेली माँ होगी, मेरी सगी माँ के कोई लक्षण ही नही थे, पापा तो जब से मैं हुई तब से शौतेले जैसे ही थे लेकिन अब माँ भी। और इतना ही कम नही था, अब तो मेरा स्कूलमेट अनुज…. वो भी मेरे शोशल मीडिया पोस्ट में युट्यूबर कार्तिक के कॉमेंट पर टिप्पणी करने लगा, और मुझे स्क्रीनशॉर्ट भेज भेज के पूछने लगा कि वो है कौन जो तेरी फ़ोटो में उल्टे सीधे कमेंट कर रहा है। मैं क्या बोलती, मैंने भी कह दिया कि उल्टे सीधे नही है। हॉट , जहर, और किलर…. इन्हें गंदे क्यो बोल रहे, तुम्हारी तरह अद्भुत, अविस्मरणीय, खूबसूरत नही लिख रहा तो गंदा हो गया। और वैसे भी वो मेरा बॉयफ्रेंड है। अब उसके भाषण शुरू…….
ये बम्बइया भैया लोग होते खराब है, लड़कियों को फसाते है बस, इनकी बातो में मत आना। इनकी तेरी जैसी एक सौ ग्यारह गर्लफ्रेंड होती है, पैसे का धौस होता है और लड़कियां तो होती बेवकूफ है। हर किसी पर जल्दी यकीन कर लेती है, चल उसे ब्लॉक कर ले चुपचाप। नही तो घर आकर अंकल आँटी को बता दूँगा, वो पिटेंगे मैं वीडियो बनाऊंगा, और ब्लॉग बनाएंगे हम भी। उस कार्तिक की तरह, वो भी तो पार्कों में जाकर झूठ बोलकर लोगो को लड़ाता है और लास्ट में कहता है कि - "सॉरी भैया जी प्रेंक था"
कहीं तुम्हे भी ये ना कह दे बाद में- "सॉरी बहन जी प्रेंक था"
अनुज को डांटते हुए मैंने उसे ही ब्लॉक कर दिया, ज्यादा ही बन रहा था। मैं और कार्तिक , देखो दोनो का नाम भी कितना सेम सेम है। किरण और कार्तिक यानि केके……
एक दिन कार्तिक ने किसी शूटिंग के लिए ऋषिकेश आना था। उससे मेरी जब बात हुई तो मैंने उसे यही कहा कि मुम्बई से उत्तराखण्ड आ ही रहे तो मिलकर तो जाओगे ही। उसने जवाब में कहा कि सिर्फ मिलकर ही नही तुम्हे लेकर भी जाऊंगा, तुम मेरे साथ चलोगी ना??
मुझे लगा वो मजाक कर रहा है, मैं मुस्कराई और मैंने भी उसके मैसेज का जवाब लिखा- "हां हां क्यों नही…. मैं तो हमेशा से यही चाहती हूँ।
उसने दोबारा लिख भेजा कि- "चलो तैयार रहना, मैं शूटिंग के बहाने सिर्फ तुम्हारे लिए आ रहा हूँ, शूटिंग शिमला में होनी थी लेकिन मैंने ही सबका प्लान बदल दिया, इतनी तो चलती है मेरी"
"मैंने कैपिटल ए के पीछे बहुत सारे डब्ल्यू लिख भेजे- (अव्व्व्व्व्व) और साथ मे एक प्यार भरा ब्लशिंग इमोजी, जो मेरे खुशी और प्यार का इजहार था। उसके बाद वो व्यस्त हो गया, शाम को फोन भी किया तो बेटरी कम होने का हवाला देकर काट दिया।
अगली सुबह शूटिंग की दो चार फ़ोटो खींचकर भेजे थे और एक बार विडिओकॉल भी किया तब उसने कहा कि तैयार रहना, कपड़े वगेरा पैक कर लेना, शाम को निकलना है और तुम भी आ रही हो।
"पागल हो क्या, मैं कैसे आ सकती हूँ" मैंने डांटते हुए कहा, क्योकि मुझे तो लगा कि वो मजाक में बोल रहा होगा कल तक, इसलिए मैं हां बोल रही थी, लेकिन हकीकत में मम्मी पापा के इजाजत के बिना जाना मेरे लिए मुश्किल था, और मम्मी पापा किसी लड़के के साथ मुझे मुंबई भेज दे ये तो नामुमकिन से भी नामुमकिन था। वो क्या मुझे किसी लड़के के साथ इतना दूर भेजेंगे जो स्कूल में स्टेट लेवल की प्रतियोगिता में भी मुझसे पहले पूछते थे कि कितनी लडकिया कितने लड़के है। स्कूल और डिस्ट्रिक लेवल में पेंटिंग और ड्रामा में अक्सर में फर्स्ट आती थी और उसके बाद स्टेट लेवल में एक स्कूल के दो विद्यार्थी जाते थे, अगर मेरे साथ लड़की हुई तो शायद भेज भी देते लेकिन अकेले या किसी लड़के के साथ…. ऊफ़…. बचपन से ही मुझे ये लोग शक की नजर से देखते थे, इसे शक नही कुछ ज्यादा ही ख्याल रखना कह सकते है, और आजकल माहौल इतना खराब है कि शायद वो अपनी जगह सही भी थे।
आज मैं बहुत बड़ी मुशीबत में थी, मम्मी पापा घर पर नही थे, ऊपर से कार्तिक मुझे सामान पैक करके स्टेशन आने को कह रहा था,
"कुछ साल रहेंगे नाराज, लेकिन जब तुम फेमस हो जाओगी, हीरोइन बन जाओगी तब ये लोग गर्व से कहेंगे कि वो मेरी बेटी किरन है, किरन मेरी बात मानो जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए छोटे छोटे कदम उठाने पड़ते है। अगर आज तुम इतना अच्छा मौका गवा दोगी तो फिर भूल जाना अपने सपनो को, घर वाले तो हमेशा रोकते है, मुझे भी शुरुआत में मेरे घरवालो ने बहुत टोका, लेकिन मैं अपनी जिद में हमेशा अड़ा रहा, आज देखो, अब कहते है बेटा बेटा, लेकिन मैं नही बोलता, अब तो तब ही जाऊँगा उनके पास जब बहुत बड़ा बन जाऊँगा"
बस उसकी इन्ही बातो को सुनकर मेरे अंदर एक उत्साह आया और मैं भी एक चिट्ठी घर पर छोड़कर घर से निकल आयी, चिठ्ठी में यही लिखा था कि मैं अपने सपने सच करना चाहती हूं, और मेरे सपने बहुत बड़े है, आज नही तो कल मैं ये साबित कर दूंगी की मैंने घर छोड़कर कोई गलती नही की है, मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। मैं जहां भी रहूंगी खुश रहूंगी।
उनकी नजर में मैं तब ही मर चुकी थी, उन्हें कितनी तकलीफ हुई होगी जब उनकी उन्नीस साल की लड़की उनके उन्नीस साल के दिये प्यार और दुलार को भूल कर उन्हें समाज में बादनाम करके चली गयी। मैंने स्टेशन पर कार्तिक से मिलते ही मम्मी पापा का नम्बर उसमे सेव करके अपना सिम तोड़ दिया और एक नया सिम खरीद लिया और चल पड़ी कार्तिक के साथ अपने सपने सच करने के सपने देखकर।
जब हम मुंबई पहुंचे तो उसके दोस्त लोग अपने घर की तरफ चले गए और वो अपने रूम की तरफ। मैं उसके साथ जब उसके घर गयी तो दो रूम सेट थे । ये वो बंगलु तो बिल्कुल नही था जिसे वीडियो में वो अपना घर बताकर बीसों कमरे गिनाता था।
मेरे मन मे सवाल तो था ही कि आखिर ये कौन से कमरे है और किसके है, उसका घर कहाँ है। लेकिन अभी मैंने कुछ नही पूछा। खाना हम खाकर आ चुके थे, अब बस सोना ही था।
"ये मेरा कमरा है, चलो तुम्हे तुम्हरा कमरा दिखाता हूँ।" कहते हुए कार्तिक मुझे दूसरे कमरे में ले गया।
मैं ये सोचकर खुश हुई कि चलो कमरे तो दो है कम से कम, मैं डर गई थी कि कहीं एडजस्ट एडजस्ट करके रूम ना शेयर करना पड़ जाए। लेकिन अब सब ठीक था।
मुझे कमरे में छोड़कर उसने गुडनाइट विश् किया और कमरे से चले गया और अपने रूम में जाकर मैसेज करने लगा की आज वो बहुत खुश है। लेकिन मैं बहुत अपसेट थी, घरवालो के बारे में सोचकर, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने जल्दबाजी में बहुत बड़ी गलती कर दी है। घरवाले बहुत परेशान होंगे यही सोचकर मेरा मूड खराब था और बचपन की यादें मेरी आँखों मे रील की तरह घूम रही थी। पहले मम्मी पापा दोनो बहुत प्यार करते थे मुझसे, मेरी हर बात मानते थे, कभी रोने नही देते थे, पापा मेरे उदास चेहरे को देखकर परेशान हो जाते थे और माँ को डांटते थे कि गुड़िया का ख्याल क्यो नही रखती, उसके बाद मुझसे पूछते की मुझे क्या चाहिए, और मेरे कहने की देर थी कि अगले दिन मेरे लिए वो सब आ जाता था। लेकिन धीरे धीरे सब बदलने लगा, जब मैंने सायकिल लेनी थी तो पूरा महीना मैं जिद लेकर बैठी रही तब जाकर दया आयी पापा को, वो भी मम्मी के दस बार झगड़ने पर।
हर बार यही कहते थे कि हमारे आसपास देखा किसी लड़की को चलाते हुए, अकेले अकेले क्या करेगी चलाकर। पहले जहां उदास देखकर पुचकारते थे अब वो मेरी उदासी को इग्नोर करने लगते थे। और ज्यादा ही दिन तक अगर ऐसा देखा तो माँ से कहते - "पूछ लो उसे क्या दिक्कत है, मरा सा मुंह लेकर क्यो बैठी है" जब ऐसी बात याद आती है तो लगता है ठीक ही किया, उन लोगो के सिर का बोझ हल्का हो गया, अब बस तिलक ही है उनके पास उनका लाडला, जिसके चक्कर मे मुझे हमेशा डांटते रहते थे।
मेरे रिप्लाय देर में जा रहे थे और मैं बार बार यही बोल रही थी कि मुझे घर की याद आ रही है, कार्तिक मुझे समझाता रहा। फिर मैं नेट ऑफ़ करके सो गई।
अगली सुबह हम कहीं घूमने गए, कहाँ गए थे ये तो ठीक से याद नही लेकिन घर से ज्यादा दूर नही था। उसने मुझे अपने दो तीन दोस्तो से मिलाया जो अक्सर उसके वीडियो में नजर आ जाया करते थे। पूरा दिन घूमने फिरने और खाने पीने में गुजर गया और फिर वही रात….
मैं सोने लगी थी कि तभी कमरे के दरवाजे को खटखटाते हुए कार्तिक ने आवाज दी।
मैंने दरवाज़ा खोला और कहा- "आप??…. सोये नही अभी"
"यार एक घर मे होकर हम अलग अलग कमरे में बैठकर क्यो बात करें, टाइप कर करके उंगली दुखने लगती है, तो मैंने सोचा कि क्यों ना पांच दस मिनट साथ बैठकर बात कर लें" कार्तिक ने कहा।
"छत में चलें" मैं बोली, क्योकि छत में रात को तारो से भरे चमकीले आसमान को देखते हुए ही अक्सर उससे फोन पर बात किया करती थी, आज मौका मिला था कि चाँद तारो के मौजूदगी में अपने प्रेमी के संग कुछ गुफ्तगू की जाए।
"क्यों नही?" कार्तिक बोला और उसने मेरा हाथ पकड़ा और भागते हुए छत की तरफ दौड़ पड़ा, मैं भी उसके साथ भागती हुई गयी। उसकी ऐसी शरारतें ही मुझे पसंद थी और उस दिन हाथ पकड़कर भागते हुए सीढियां चढ़कर छत में पहुँचना और छत में जाते ही उसका मुझे उंगली पकड़ाकर घुमाते हुए डांस करना और फिर एक हाथ से मेरा हाथ थामना और दूसरे हाथ को मेरे कमर पर रखना और कदमो को एक संयोजित आकार देकर झुमना…. मैं कैसे भूल सकती हूँ। शायद ये बिल्कुल मेरे सपने जैसा था।
मैं थोड़ा शरमा रही थी और लगातार हँस रही थी हम दोनो की पागलपंती पर। लेकिन वो, वो तो बिल्कुल फील के साथ नाच रहा था और लगातार मेरे करीब आ रहा था, उसके चेहरे से मेरा चेहरा ज्यादा दूर नही था। कार्तिक ने हल्की मुस्कराहट के साथ मेरे माथे पर अपना माथा टिकाया और गोल गोल घूमते हुए कभी दो कदम आगे जाता कभी दो कदम पीछे। उसकी सांसे महसूस कर पा रही थी मैं और मेरे अंदर एक स्थिरता थी, मेरे कदम बस उसके इशारे में चल रहे थे जो अब उसके थमते ही थम गये और मेरी धड़कने बहुत तेज धड़कने लगी। मैं जैसे सबकुछ भूलती जा रही थी, खुद को भी और अपनी हदों को भी। हम दोनो जैसे स्टेच्यू हो गए थे और ठंडी हवा हिमे छूकर निकल रही थी और गर्म आहें हमे ठंड से राहत दे रही थी। मैं एकदम से होश में आई और खुद को छुड़ाकर थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गयी। कार्तिक ने मुझे पीछे से हग किया और मेरे बालो को हटाते हुए मेरे कान के पास अपने होठों की फुसलाहट लाते हुए कहा- "आई लव यू सो मच किरन"
अगली सुबह आँखें खुलते ही मुझे उसका चेहरा नजर आया जो मेरे बगल में था, मैं खुद उठ गई और उसके उठने से पहले नहा धोकर फ्रेश होकर उसके लिए और अपने लिए कॉफी बनाकर लायी।
ये मेरी पहली गलती थी, और शायद मेरी बर्बादी का कारण भी। एक दिन जब मैंने कार्तिक से शादी की बात कही तो उसने कहा- "किरन मैं तुमसे जरूर शादी करूँगा लेकिन अभी नही, अगर हमने जल्द शादी की तो इससे तुम्हारा करियर खराब हो जाएगा, हर डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ये चाहते है कि उनकी फिल्म की हिरोइन सिंगल हो, शादीशुदा लड़कियों को जल्दी से कोई एड नही मिलता है, इसके पीछे बहुत सारे कारण होते है जो तुम एक दिन समझ जाओगी, लेकिन फिलहाल तुम्हारा ये समझना जरूरी है कि अभी शादी नही कर सकते"
"कब तक इस तरह रहेंगे, जब रहना साथ है, जिंदगी शादीशुदा वाली जीनी है तो फिर शादी करने में क्या हर्ज, एक काम तो कर सकते है ना, चुपचाप शादी कर लेते है लेकिन ये बात पर्दे में रखेंगे" मैंने कहा लेकिन इसका जवाब भी अजीब तरह से दिया गया।
"पागल हो क्या? अगर शादी धूमधाम से नही हुई तो क्या फायदा, और चोरी छिपे शादी करो या ना करो, बात तो एक ही है ना, वैसे भी ये रेंट का मकान है, एक कमरा मेरा और एक कमरे में कोई और लड़की रहती है ये सोच के अगर तीन महीने गुजार दिए है तो आगे भी गुजार लेंगे, कौन सा कोई पुछता है यहां, ये मुंबई है यहां सब चलता है।" कार्तिक ने कहा।
"दो कमरे बस नाम के है, अगर कल को तुम किसी और से शादी कर लोगे तो मेरी जिंदगी तो बर्बाद हो जाएगी, मुझे कुछ नही सुनना है, हम दोनो शादी करेंगे , किसी कोर्ट में जाकर। बाहर बात नही जाएगी" किरन ने कहा।
"तुम्हे भरोसा नही है ना मुझपर, प्लीज किरन, अंडरस्टेंड,आई लव यू "
उसके मुंह से आई लव यू सुनने के बाद मैं हमेशा की तरह खामोश हो जाती थी, और उसकी बात पर यकीन आ जाता था। लेकिन दिन प्रतिदिन मैं परेशान रहने लगी, वो ना मुझे किसी डायरेक्टर से मिलाता था ना ही किसी तरह के कार्यक्रम में मुझे ले जाता था, मैं दिन भर घर मे बैठी रहती और वो दिन भर ना जाने कहाँ रहता था, लेकिन शाम को वो हमेशा की तरह आ जाता था, खाना कभी मैं पका देती तो कभी वो बाहर से ले आता। मैं घर मे बैठे बैठे वीडियो बनाती और डिलीट कर देती, किसी भी शोशल मिडीया में डालने से डरती थी ताकि मेरे घरवाले या रिश्तेदार ना देख ले। पहले जो चेहरे में खूबसूरती थी ना जाने वो अब निखरने के बजाए बिखरने लगी थी। राह तरह के पोज बनाकर फ़ोटो खींचने से ऊब गयी थी । घंटो तक आईने के सामने अपने बालों को संवारती और फिर बिखेर देती, अलग अलग तरह के कॉस्ट्यूम से अपना मेकप करती और फिर गुस्से में आकर मुंह धोकर आ जाती और बेड में लेटकर रोने लगती। मोबाइल में मम्मी पापा के साथ कि बचपन की कुछ तस्वीरें थी जिन्हें देखकर अपनी गलती का एहसास होता था। काश उस दिन घर से भागकर ना आती, काश कार्तिक की बात में यकीन ना करती।
आजकल कार्तिक अलग अलग लड़कियों के साथ ब्लॉग बनाने में व्यस्त था, और जब भी वो किसी लड़की से किसी वीडियो की स्क्रीप्ट की बात करने घर आता तो मुझे पहले बता देता था कि मैं उस कमरे में ना आउँ क्योकि उसके सभी दोस्त यही सोचते है कि मैं कार्तिक की पड़ोसन हूँ, और खासतौर पर लड़कियों के आने पर तो वो बालकनी में मिल भी जाये बात नही करता था और अंदर लड़कियों के सामने ऐसे पेश आता था जैसे हम अजनबी है। मेरी जिंदगी भी जैसे कोई कहानी बन के रह गयी थी और उसके लेखक श्रीमान कार्तिक जी जो जैसा स्क्रीप्ट लिखते मैं वैसा ही करती।
धीरे धीरे हमारा एक कमरा अब उसका प्राइवेट रूम बनने लगा था, क्योकि आज तक हम दोनो एक ही कमरे में प्यार भरी बातें करते करते सोते थे, मैं कुछ शिकायत करती और वो कुछ तसल्लियाँ देता था। लेकिन कुछ दिनों से उसका नया बहाना चलने लगा और कहने लगा कि मेरे यार दोस्त रात को भी कभी भी आ सकते है, हम अलग अलग कमरे में सोया करेंगे, क्योकि मैं नही चाहता हमारे बीच की बात बाहर तक जाए और तुम्हारी बदनामी हो।
भला इस शहर में मेरी क्या बदनामी होती, यहां कौन जानता था मुझे, जितनी बदनामी होनी थी गाँव मे हो चुकी थी। लेकिन कार्तिक की बात मैं हर बार की तरह मानती गयी। ना जाने क्यो वो मुझसे दूरियां बनाने लगा था, शायद उसे अब मेरी जरूरत नही थी। ना ज्यादा बात करता था ना मेरी बातों को ध्यान से सुनता था। उसके साथ खाना पीना और रहना तक सीमित होने लगी थी जिंदगी, और इसमे भी झोल लगा, कभी कभी वो आता ही नही था, कुछ पकाकर खा लेना कहकर बताता भी नही था कि वो क्यो और किसलिए बाहर रह रहा।
डेढ़ साल में ना तो कोई एड मिली, ना कोई ऑडिशन हुआ। बस कैद थी एक कमरे में और किसी के प्यार और विश्वास के जाल में। ये पिंजरा एक ऐसा पिंजरा था जिसमे कैद होने से पहले में आजादी के सपने देखने लगी थी जबकि मै आजाद थी। मैं तब जानती नही थी कि आजादी क्या है। मैं सोचती थी मम्मी पापा के ताने नही सुनना आजादी है, मुझे लगता था कि अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सारे रिश्ते तोड़ देना ये आजादी है। लेकिन मुझे इस पिंजरे में फसने के बाद आजादी का असली मतलब असली मायने समझ आये। मैं कैद थी ऐसे पिंजरे में जहां से बाहर जाना मुश्किल नही था लेकिन बाहर जाकर मुश्किलें ज्यादा थी। मैं लड़ती रहती थी कार्तिक से की या तो मुझसे शादी करो या फिर कोई अच्छा सा काम दिलवाओ जिसके लिए मैं यहां आई हूँ। लेकिन वो हमेशा की तरह मुझे टाल देता और कहता कि कौन सा शौक तुम्हारा पूरा नही हो रहा, अच्छे कपड़े, रहने के लिए छत और खाना मिल रहा है, फिर क्यो टेंशन के रही, ऐसे जल्दबाजी में किसी भी एड के लिए हां नही बोल सकते। आजकल लोग अच्छे नही है इस शहर के, वो कैसे कैसे सीन देते है, तुमसे ऐसा करवाने थोड़ी लाया हूँ।
"मैं क्या कहती, उसके सवालो का कोई जवाब तो मेरे पास होता नही था, और इस घर को छोड़कर जा भी नही पा रही थी। जाती भी कहाँ, कौन जानता था मुझे, मैं बस घुट घुट के रह रही थी घर मे, वो आता दोस्तो के साथ और अपने कमरे में दोस्तो के जन्मदिन बनाता और मुझे केक भी सुबह देता था इतना पराया कर रखा था, एक बार तो उसका एक दोस्त मेरे कमरे में घुस आया और छेड़खानी करने लगा, मैंने किसी तरह उसे चार बात सुनाकर पुलिस की धमकी देकर कमरे से बाहर निकाला । और अगले दिन ये बात कार्तिक को बताई तो उसने इतना साधारण सा रिएक्शन दिया जैसे उसे ज्यादा कोई फर्क ही नही पड़ता है कि मेरे साथ कुछ भी हो, ऊपर से मुझे ही बिकने को बोलने लगा।
" वो ऐसा ही है, जहां लड़की देखी वहां घुस जाता है, वैसे पैसे वाला बहुत है, अगर तुम मान जाती तो पैसे की बारीश……"
मैंने कसकर तमाचा कार्तिक के मुंह पर मारा और रोते हुए अपने कमरे कि तरफ चली गयी।
कार्तिक मेरे कमरे के बाहर आया और दरवाज़ा खटखटाते हुए बोला- "अरे , तुम मुझे गलत समझ रही हो, मेरा कहने का वो मतलब नही था"
"तुमने मुझसे शादी करनी है या नही?, आखिरी बार पूछ रही हूँ" मैंने आवाज देते हुए कहा।
"सही समय आने पर कर लूंगा यार, अभी ना तुम कुछ बन पाई हो ना मैं" कार्तिक ने कहा।
मैं समझ चुकी थी कि जो वो बनाने के लिए मुझे लाया था वो मैं बन चुकी थी, उसके लाने के बाद ही मैं वो बन चुकी थी जो उसने बनाना था। वो तो शुरू से ही बेवकूफ बनाना चाहता था, और शायद मैं ही बेवकूफ थी जो उसकी बात मान ली। पहले मुझे लगता था कि मैं अच्छी एक्टर हूँ, सांग पर लिरिक्स भी अच्छी कर लेती हूँ, खूबसूरत हूँ। लेकिन नही…. सब भृम टूट गया, ना आइने में खुद को देख पा रही थी और ना ही आंखे बंद करके जिंदगी के आने वाले पलो में खुशहाली नजर आ रही थी, नजर आ रहे थे तो मेरी इज्जत लूटते दरिंदे और पैसा समेटता कार्तिक…. शायद मेरे भविष्य भी कुछ ऐसा होने वाला था। बस यही सोचते सोचते मैने अपने कमरे में ही अपने दुपट्टे से फांसी लगाकर खुद को आजाद करना बेहतर समझा। क्योकि और कोई रास्ता नही था मेरे पास, ना ही कार्तिक सुधरना चाहता था ना ही मैं खुद को अकेले इस काबिल बना पा रही थी उससे दूर जाकर खुद को संभाल सकूँ, लेकिन फांसी लगाने के बाद मैने सोचा वो बहुत पछतायेगा, शायद मेरे मरने के बाद उसे मेरी कमी का एहसास होगा, लेकिन वो शायद कभी बदलना नही चाहता था, जेल जाने के डर से उसने मेरी लाश को रातो रात दफन कर दिया और किसी को खबर भी नही हुई , अपने दोस्तों को कह दिया कि लड़की अब कमरा छोड़कर चली गयी, तुममें से कोई आना चाहे तो रहने आ सकता है। मुझे कोई जानता नही था इसलिए ना किसी ने मेरी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई ना मुझे ढूंढने की कोशिश की।
लेकिन मैं इस बात के लिए अपने इस फैसले को सही मानती हूँ क्योकि ये मौत मेरे लिए सुसाइड नही था, ये मौत मेरे गलती की सजा थी, उस गलती की जो मैं देहरादून से किसी अनजान के भरोसे मुंबई आ गई। अपने मम्मी पापा को इतनी बड़ी तकलीफ देकर आई थी कि मेरी जान का चले जाना भी इसकी सज़ा के लिए बहुत कम था। कार्तिक को सज़ा देने के लिए मर गयी लेकिन पता चला कि ये उसकी नही मेरी सज़ा थी। जो मुझे ही मिली थी।
मैं खुश तो हूँ कि मैंने जिंदगी भर गुलामी से अच्छा मौत का रास्ता चुना, क्योकी जिंदगी भर मरने से तो अच्छा ही हुआ। डेढ़ साल से मर ही रही थी कभी घरवालो के लिए कभी अपने लिए, और फिर सबके लिए। और अब तो डेढ़ साल पूरे हो गए मरे हुए। रोज एक नयी किरन को अंधेरे के गुमनामी में डूबते हुए देखती हूँ, रोज एक किरन किसी पर इस कदर भरोसा करती है की जब भरोसा टूटे तो सब कुछ टूट जाये। और फिर कुछ किरन बिक जाती है बाजार में तो कुछ किरन अपनी ही रोशनी में खो जाती है, हमेशा हमेशा के लिए………
समाप्त