sonu santosh bhatt

Romance Classics Inspirational

3.5  

sonu santosh bhatt

Romance Classics Inspirational

माँ सही कहा करती थी

माँ सही कहा करती थी

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मैं मूर्ख था। सही सुना आपने, मैं सच मे बेवकूफ था जो उसकी हर मनमानी सहता गया, जो वो कहती गयी मैं बस उसी पर ध्यान देता था। एक पल के लिए माँ और बाबूजी भी पराए लगने लगे थे मुझे।

 पलक से मेरी शादी हुए अभी डेढ़ ही साल हुए थे, लेकिन जिंदगी कहाँ से कहाँ पहुंच गई थी। शादी तो अरेंज ही थी, ऐसा नही की मैं घरवालो की मर्जी के बगैर ही शादी कर आया था। बहु भी घरवालो की पसंद की थी, और जब से उससे मुलाकात हुई वो मेरी भी पसंद बन गयी। और इसी वजह से मुझे माँ और बाबूजी का ये फैसला बहुत अच्छा लगा। उनकी जानपहचान में किसी अच्छे घराने की लड़की थी , खूबसूरत भी बहुत थी, और मैं भी थोड़ा अच्छा दिख लेता था।

शादी हुई, मेरी जिंदगी के सबसे हसीन पल कैद होने लगे थे किसी कैमरे में, और मेरे जीवन के कोरे कागज पर मेरे नाम के आगे पलक का नाम जुड़ने लगा, सागर संग पलक।

शादी के बाद जितने दिन बीतते गए ना जाने क्यो पलक के लिए मेरे दिल मे प्यार हद से बढ़ने लगा था और भरोसा भी। और उसी भरोसे का वो फ़ायदा उठाती गयी और मैं समझ नही पाया।

"माँ ने ऐसा कहा ? करती तो हो तुम काम, इतना तो काम करती हो, और तुम्हारी तबियत ठीक नही थी तो बता देती माँ को, जरुरी था क्या जबरदस्ती काम पर लगे रहना" मैंने पलक की परेशानी को समझते हुए कहा।

"बताया तो था, लेकिन उनके लिए ये सब नार्मल है, कहते है कि उनके जमाने मे तो सांतवे महीने में भी जंगल जाकर लकड़ियां लाते थे सिर पर लादकर, और आजकल की बहुओं के नखरे, एसिडिटी भी हो जाये तो उनसे झाड़ू पोछा नही होता" पलक ने अपनी परेशानी बताई। और इस मामले में माँसे बात करने को मना कर दिया, वो नही चाहती थी कि छोटी छोटी बात पर घर मे क्लेश हो। लेकिन इन्ही छोटी छोटी बातों को दिल मे रखकर घर मे इतनी बड़ी दिवार बन जाएगी ना मैंने सोचा था ना ही मेरे माँ और बाबूजी ने। धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और मेरी माँ से प्यारी मेरे लिए सास हो गयी, क्योकि मेरी माँ पलक का ख्याल नही रखती थी, जबकि पलक की माँ को पलक की बहुत फिक्र रहती थी।

एक दिन जब बात बहुत ज्यादा आगे बढ़ गयी तो मुझसे रहा नही गया और मैंने मन मे कैद किये हुए सारे शिकवे कर दिए, माँ को आइना दिखाने की कोशिश करते हुए मैं खुद अंधा हो गया था- "मुझे सब पता है माँ, एक बहु कभी बेटी बन ही नही सकती, तुमने कभी पलक को ज्योति की तरह देखा होता तो कभी ऐसा नही करती, एक तो उसकी तबियत वैसे ही कुछ दिनों से ठीक नही है ऊपर से आपकी बाते सुन सुन के वो और बीमार हो जाएगी, अगर वो कोई काम नही कर पाती या उससे कोई गलत काम हो जाता है तो एक बार तुरन्त उसी वक्त बताया जाता है कि गलती कर रही हो, और कैसे सुधारना है ये भी बताया जाता है। लेकिन तुम ना तो गलती करते वक्त कुछ बोलती हो और ना ही तब टोकती हो, और बाद में हफ्ते दस दिन बस उसी के लिए ताना देते रहती हो, हद होती है किसी बात की" मैं गुस्से में बोला, इतना ही नही और भी बहुत कुछ माँ से कहा, पलक पर किये उनके सारे जुल्म गिनवाए जो पलक ने उन्हें बताने से मना किया था।

"जो बात तू अभी बता रहा है, वो बात बहु उसी वक्त मुझे बताती तो शायद में भी सुधर जाती" माँ ने कहा और कमरे की तरफ जाने लगी।

मैं माँ को टोकते हुए बोला- "तुम कभी नही सुधरोगे, मैंने पहले भी कहा था अब भी कह रहा हूँ,अगर ऐसा ही रहा तो मैं…. मैं…. कोई बड़ा फैसला ले लूँगा"

"अगर पलक ने जो जो तुझे बताया है सब सच है तो आज ही ले ले वो फैसला, लेकिन एक बार फिर बहु से पूछ लें, क्योकि आधी से ज्यादा बाते तो मुझे याद भी नही है कि मैंने उसे कही थी, अब या तो मैं भूल गयी हूँ, या तेरी बीवी ने कुछ ज्यादा ही कान भरे है तेरे" माँ को भी गुस्सा आता ही था, और उनके बोलने का तरीका भी ऐसा था कि वो कुछ प्यार से भी बोले तो ऐसा लगता जैसे गुस्से में बोल रही हों।

यही हल्के फुल्के झगड़े ने हमारा चूल्हा अलग कर दिया, एक घर मे चार कमरे थे, बाबूजी की मेहनत का रंग दीवारों पर पोता गया था, लेकिन अब ये दो घर बन चुके थे, दो कमरे हमारे, दो कमरे माँ बाबूजी के, हम एक कमरे में रहकर एक कमरे को किचन बना लिए।

 दो से तीन हफ्ते ही गुजरे थे कि मेरी हालत खराब हो चुकी थी, आफिस में तो खराब होती थी लेकिन अब घर मे भी बहुत सारे टेंशन मुझे घेरने लगे थे।

 "शाम को आते आते शब्जी लेते आना, आटा तेल और मसाले भी खत्म है" पलक ने कहा तो मैं भी चिढ़ते हुए बोला- "मैं कब लाऊँगा ये सब, ऑफिस में थक जाता हूँ, घर कब पहुँचू हुई रहती है, तुम कहती हो मार्किट ठहर ठहर के आउँ"

"ये सब तो माँ करती थी ना, मुझे करना नही आता" पलक ने कहा।

"प्याज काटने में तुम्हे आसूं आते है, मसाले डालने का अनुभव तुम्हे नही है, एक रोटी ही पकाती हो वो भी एक तरफ जली एक तरफ कच्ची, आता क्या है तुम्हे, एक हफ्ते से देख रहा हूँ , कोई भी काम बोलता हूँ तो कह देती हो कि वो तो मम्मी करती थी, मुझे आता नही, सब काम अगर मम्मी करती थी तो तुम क्या करती थी" मैं आज ऑफिस में सीनियर से डाँट खाकर आया था, और घर आकर सारा गुस्सा पलक पर निकालने लगा, लेकिन इन दो हफ़्तों में मुझे माँ की एक बात तो अच्छे से समझ आ गयी थी, माँ गलत नहीं कहा करती थी उसे। माँ सही कहा करती थी।


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