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Navya Agrawal

Abstract

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Navya Agrawal

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मालिनी एक संघर्ष गाथा भाग 1

मालिनी एक संघर्ष गाथा भाग 1

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       यह रचना वैब सीरीज के तहत लिखी गई है..। जिसमे एक निम्न वर्गीय महिला के जीवन का चित्रण किया गया है..। एक महिला जो घर घर जाकर साफ सफाई का काम करती है और बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए मेहनत करती है..। उसे जीवन में बहुत कठिन परिस्थितियों के सामना करना पड़ता है..। हम जानते है कि अक्सर सभी को प्रेम कहानियां ही पसंद आती है..। पर हम ने प्रेम कहानी में दिखाई गई फिल्मी बातो से अलग कुछ लिखने का प्रयास किया है..। समाज का एक ऐसा हिस्सा जिसके दुख तकलीफ़ को हम जानते तक नहीं.. कि उन्हें जीवन में कितना संघर्ष करना पड़ता है.. वही आप सभी के समक्ष रखा गया है..। रचना काल्पनिक अवश्य है किन्तु इसमें लिखी अधिकांश घटनाएं किसी न किसी के वास्तविक जीवन पर आधारित है.. क्योंकि एक वेब सीरीज का लगभग 60% भाग हकीकत और लगभग 40% नाटक के रूप में होता है..। जो हमने अपने आस पास देखा है बस वहीं एक कहानी के रूप में लिखने का प्रयास किया है..। हम आशा करते है कि आप सभी को यह कहानी पसंद आएगी और हम भी इसे बेहतर ढंग से लिख पाए..।



"मालिनी क्या बात है.. आज तू बड़ी चुप चुप है..सब ठीक है ना..?" - सरिता ने पूछा..!!


"जी मैम साहब, सब ठीक है.."- मालिनी ने भारी गले से कहा..।

  ( मालिनी सरिता के घर साफ सफाई का काम करती है..। वह सरिता के फ्लैट के पास ही बनी गरीबों की बस्ती, जिसे सभी "कल्याणी बस्ती" के नाम से जानते है, रहती है..। वहां रहने वाली अधिकतर महिलाएं फ्लैट में रह रहे लोगों के घरों में साफ - सफाई और बर्तन साफ करने का काम कर के अपने घर का गुजारा करती है..।


       मालिनी एक साथ 6 घरों में सफाई का काम करती है..। जिसके बदले में उसकी अच्छी खासी कमाई हो जाती..। प्रत्येक घर से वह सफाई के हर महीने 1500 रुपए लेती है.. और एक घर जहां खाना बनाती है वहा उसे 2000 रुपए प्रतिमाह मिलते है..। वह सुबह 5.30 बजे से ही काम पर निकल जाती.. जिसे खत्म होते होते उसे 11 तो कभी 12 बजते थे..। उसके बाद वह एक घर में खाना बनाती.. और फिर अपने घर जाकर काम में लग जाती..।


      मालिनी के घर में उसका पति मोहन और एक 6 साल का बेटा छोटू रहता है..। मोहन अक्सर मालिनी के साथ मार पिटाई करता था..और वो जो भी कुछ कमाती.. उसे शराब, जुए बाज़ी और लड़कियों पर उड़ा देता है..। मोहन की इन सभी खराब आदतों की वजह से मालिनी बहुत दुखी रहती है..।)


शायद आज भी......


      सरिता पेशे से एक वकील है.. और एक एनजीओ से भी जुड़ी हुई थी..। जितनी प्रोफेशनल है वो अपने काम को लेकर और उतनी ही अच्छी इंसान भी है..। उसे यह समझते बिल्कुल भी देर नहीं लगी कि मालिनी के साथ फिर से उसके पति ने मारपीट की है..। थोड़ी देर में सरिता के घर की डोर बेल बजी..। सरिता ने दरवाजा खोला तो सामने मालिनी की सहेली और साथ ही उसकी पड़ोसन भी सुधा खड़ी थी..।


सरिता - "अरे सुधा, तू आज यहां कैसे..? तू तो दूसरी बिल्डिंग में काम करती है ना..?"

( सरिता सुधा को जानती थी क्योंकि अक्सर सुधा मालिनी से मिलने आती रहती थी..।)


सुधा - "जी नमस्ते मैम साहेब, मै..वो.. मालिनी से मिलने आई हूं..!!"

( सुधा थोड़ी दबी दबी सी आवाज में बोली..!)


सरिता को सुधा की आवाज में भी थोड़ा दर्द महसूस हुआ.. इसलिए उसने सुधा का हाथ पकड़ा और उसे बाहर सीढ़ियों के पास लाकर खड़ी हो गई..।


सरिता -" आज मालिनी भी एकदम शांत है.. और तेरा भी चेहरा उतरा हुआ है..! क्या बात है सुधा..? मालिनी के पति ने मालिनी के साथ फिर से बदतमीजी की क्या..?"


सुधा - "मैम साहब दरअसल बात ये है कि...."( सुधा बोलते बोलते ही चुप हो गई..।)


सरिता -" क्या बात है बोल..? तू बोलते बोलते बीच में क्यों रुक गई..? बता मुझे क्या बात है..? "(सरिता ने थोड़ा जोर देते हुए तेज आवाज में कहा..।)


सुधा - "मैम साहेब !! कल मालिनी जब काम से फ्री होकर घर पहुंची तो उसने मोहन को किसी दूसरी औरत के साथ देखा..! इसी बात पर मालिनी और मोहन की बहुत जिद्द बहस हुई..! और मोहन ने रात को शराब पीकर उसे बहुत मारा..। न तो उसे खाने को दिया और ऊपर से बेचारी रातभर घर के बाहर बैठी रही..!!

(इतना कहते ही सुधा की आंखो से आंसू छलक कर बाहर निकल आए..)


      सरिता सुधा को चुप कराने लगी..। तो सुधा ने कहा - "मैम साहेब.. उसने कल से कुछ नहीं खाया है.. आप प्लीज़ उसे थोड़ा खाना दे देना..। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी..!!" ये कहते हुए सुधा सरिता के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई..।


सरिता ने सुधा के हाथो को थामते हुए कहा कि "तू परेशान मत हो..! मै मालिनी को खाना खिलाकर ही भेजूंगी..!! अच्छा ये बता उसके बेटे ने भी कुछ खाया है या नहीं..? कहीं ऐसा तो नहीं उस जालिम की वज़ह से वो बेचारा बच्चा भी वहां भूखा हो..?"

(सरिता के चेहरे पर परेशानी और मालिनी के लिए फिक्र साफ दिखाई दे रही थी..)


"पता नहीं.. इस बात का तो मुझे कोई अंदाजा नहीं है, मैम साहेब..!" सरिता ने कहा -" चल कोई बात नहीं.. मै मालिनी से ही पूछ लूंगी..! तुझे कुछ काम है मालिनी से तो बाहर भेज देती हूं मै उसे.. या बस यही बात थी..?"


सुधा कहने लगी कि नहीं बस यही बात करनी थी उससे कि कुछ खाया भी है या नहीं..! अब मै चलती हू मैम साहेब.. आप उसे सम्भाल लेना..!! इतना कहकर सुधा सरिता के सामने हाथ जोड़कर निकल गई..। कुछ देर तक सरिता वही खड़ी अपनी ही सोच में खोई रही.. और उसके बाद वह वापस घर के अंदर आ गई..।


सरिता ने एक नजर मालिनी को देखा.. और मन ही मन सोचने लगी कि हमेशा हंसकर बात करते हुए काम करने वाली औरत की उस दुष्ट ने क्या हालत कर दी है..। जो लगातार कुछ न कुछ बोलती रहती है.. आज उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं सुना..। सरिता सोचने लगी कि अगर वो ऐसे ही मालिनी को खाने के लिए कहेगी तो वो मना कर देगी..।


वो खुद से ही बडबडाते हुए सोचने लगी - क्या करू.. क्या करू.. जिससे मालिनी खाना भी खा ले और इसे कुछ शक भी ना हो..? तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया.. और वह तुरन्त किचन की तरफ भागी..।


 सरिता ने खाने में मालिनी की मनपसंद डिश इडली - सांभर बनाया..। उसके पास ज्यादा समय नहीं था खाना बनाने के लिए.. इसलिए जल्दी जल्दी इडली का घोल तैयार कर सांभर पकने के लिए गैस पर रख दिया..। जल्द ही इडली सांभर बनकर तैयार थे.. और सरिता ने खाने की खुशबू लेते हुए कहा - "ये खा कर मालिनी बहुत खुश होगी और वो मन करके अच्छे से खाना भी खा लेगी..।"


सरिता ने एक बाउल में सांभर और एक बाउल में इडली लेकर डायनिंग टेबल पर रखा और मालिनी को आवाज लगाते हुए कहने लगी -"मालिनी तेरा काम खत्म हो गया हो तो यहां आ जल्दी..!!" मालिनी ने कहा - "जी आई, मैम साहेब..!"


मालिनी काम खत्म करके हाथ धोकर हॉल में आई तो देखा सरिता वही डायनिंग टेबल पर उसका इंतजार कर रही है.. और खाने की भी बहुत अच्छी खुशबू आ रही है..। मालिनी ने सरिता के पास आकर पूछा - "आपने बुलाया मैम साहेब, कुछ काम था क्या..?" 


      सरिता खुद कुर्सी पर से खड़ी हो गई और मालिनी को एक कुर्सी पर बैठने का इशारा किया..। मालिनी नीचे बैठने लगी तो सरिता एकदम जोर से बोली - "अरे ये क्या कर रही है पगली..! मैंने तुझे नीचे नहीं कुर्सी पर बैठने को कहा है..!!" मालिनी सवालिया नजरों से सरिता को देखते हुए कुर्सी पर बैठ गई..।


सरिता ने एक प्लेट में कुछ इडली, नारियल चटनी और एक बाउल में सांभर रखा.. और प्लेट मालिनी की तरफ बढ़ाते हुए कहने लगी - "आज मैंने इडली सांभर बनाया है.. और मुझे पता है तुझे ये डिश बहुत पसन्द है..!!" सरिता उसकी तरफ एक स्पून बढ़ाते हुए बोली - "ले जरा खा कर बता कैसा बना है.?" 


मालिनी के लिए सरिता का ऐसा व्यवहार सामान्य था..। वो अक्सर कुछ न कुछ नई डिशेज बनाकर मालिनी को खिलाती रहती थी..। इसलिए मालिनी को आज भी कोई अंदेशा नहीं था कि सरिता सब कुछ पहले से जानती है..। उसने चुपचाप सरिता के हाथ से स्पून ली और खाना खाने लगी..।

  सरिता ने मालिनी से इशारे में पूछा सांभर कैसा बना है जो वही टेबल पर हाथ टिकाए मालिनी के बोलने का इंतजार कर रही थी..। मालिनी ने कहा - "मैम साहेब.. आपके हाथो में तो जादू है सच में..! कितना स्वादिष्ट खाना पकाती है आप..! पेट भर जाता है मगर खाने से दिल नहीं भरता..!!" 


  सरिता खुशी से उछलती हुई बोली - "क्या सच में खाना इतना टेस्टी बना है..! जरा मै भी तो टेस्ट करूं, कैसा बना है..!!" सरिता खुद सांभर चखती है.. और कहती है कि वाकई आज तो मैंने अच्छा खाना बनाया है..! सरिता की इस हरकत पर मालिनी को आखिर हंसी आ ही जाती है..। 


      सरिता उसे हंसता देखकर कहती है -"बस यूं ही हंसती रहा कर तू पगली..! तू चुप रहती है काम के वक्त तो घर में लगता ही नहीं कोई रहता है..! एक तू ही तो है जिससे कुछ देर के लिए ही सही मेरे घर में चहल पहल रहती है..! वरना तो तू जानती ही है राजीव (सरिता के पति) के ऑफिस जाने के बाद घर में मै अकेली रह जाती हूं..! सब खाली - खाली ही रहता है..!!" 


      सरिता की बातो में अकेलापन कोई भी महसूस कर सकता था.. क्योंकि वो खुद एक अनाथ लड़की थी.. और अनाथाश्रम में पली - बढ़ी..। अपना कहने के लिए सिवाय उसके पति के उसके पास कोई और नहीं था..। सरिता ने अपने जीवन में बहुत बुरा वक्त भी देखा है..। लेकिन अपनी मेहनत से पढ़ लिखकर उसने खुद को काबिल बनाया.. और आज उसका नाम नामी वकीलों ने शामिल होता है..। सरिता के पति बहुत बड़े बिजनेस man है.. और उनकी इनकम भी काफी है..। लेकिन फिर भी आज उसके पास इतना पैसा होते हुए भी उसे किसी भी चीज का कोई घमंड नहीं है..। वो हमेशा गरीबों की और बेसहारा लोगो की मदद करती है.. और उन्हें अपना ही समझती है..। यही कारण था कि उसे मालिनी से भी बेहद लगाव था..।


     सरिता मालिनी को ऐसा कहकर उठकर किचन में जाने लगी..। तो पीछे से मालिनी ने आवाज दी -"मैम साहेब, आप जानती थी ना कि...........!!!


क्रमशः



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