Sarita Kumar

Romance Tragedy

4.7  

Sarita Kumar

Romance Tragedy

विवाह ( एक लाश से )

विवाह ( एक लाश से )

22 mins
452



शिमला के माल रोड पर रितेश बहुत संभल संभल कर कार चला रहा था । पहली बार ऐसी घुमावदार सड़कों का पाला पड़ा था । उसने देखा दोनों तरफ बड़ी अच्छी हरियाली थी । खुशगवार मौसम हसीन वादियां ऐसे में एफ एम पर गाना बजने लगा किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है ...... और ऐतबार फिल्म की शूटिंग भी शिमला की है । कुछ पल के लिए उसका ध्यान इधर उधर हुआ और देखते ही देखते दुर्घटना हो गई .... एक वृद्ध महिला कार से टकरा गई । ग़लती उस महिला की ही है लेकिन जनता कार सवार को ही घेरती है और सौ बखेड़े खड़ा कर देती है । जल्दी से ब्रेक लेकर गाड़ी रोकी और उस महिला को उठाकर देखने की कोशिश की कहीं लगी तो नहीं ? मगर उठाते ही वो झूल गई .... बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में ..। चोट तो कहीं नहीं लगी थी लगती भी कैसे कार से दूर वो गिर गई थी शायद डर से हर्ट अटैक आ गया होगा ? जो भी हो यहां से लेकर किसी हॉस्पिटल में तो जाना ही होगा फिर इनके मोबाइल से इनके घर पर सूचना देनी होगी । कुछ लोग इकट्ठे हो गए पुलिस से पहले ही तहकीकात शुरू कर दी थी वो तो अच्छा हुआ किसी ने हॉस्पिटल का रास्ता बता दिया और बिना देरी किए हाॅस्पिटल में एडमिट किया इलाज भी शुरू हो गया । 

रितेश को अभी तक समझ में नहीं आया कि हुआ क्या ? दो तीन ब्लैक कॉफी पीने के बाद उसकी सारी उलझने सुलझ जाती थी लेकिन आज उसने चार कॉफी पी लिया फिर भी समझ नहीं पा रहा है । यह कैसा इत्तेफाक है नये शहर में पहला दिन और आते ही एक्सिडेंट हो जाता है उसकी गाड़ी से जबकि पिछले बीस सालों से चला रहा है । आज से पहले कभी नहीं हुआ ।‌ सिर्फ एक्सिडेंट होना ही बड़ी बात नहीं है बल्कि उस अजनबी महिला के मोबाइल में उसका नंबर होना अधिक हैरत में डालने वाली बात हुई थी । रितेश सारी घटनाओं को दोहरा कर समझना चाहता था । उसे याद आया कि चाय बड़ी कमाल की चीज़ होती है अम्मा कहती थी , उसने चाय मांगी और वापस कार में बैठ कर याद करने लगा । हां वो धीरे धीरे ही कार चला रहा था अचानक एक वृद्ध महिला सामने आ गई उसने ब्रेक लेकर गाड़ी रोक ली थी और गाड़ी के सामने वो महिला गिरी मिली उसने उन्हें उठाने की कोशिश की देखा कहीं कोई चोट ख़रोंच का निशान नहीं था लेकिन जैसे ही उसने उठाया उनका सर झूल गया था । ऐसे मानो पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो के बाहों में आते ही हीरोइन दम तोड़ देती है ..... नहीं नहीं अभी वो जिंदा है ऐसे ख्याल क्यों आ रहें हैं । अगर वो दम तोड़ देती हैं तो उसे सज़ा हो जाएगी । इस उम्र कत्ल का इल्ज़ाम ..... कैसे सामना कर पाएगा रीना और बच्चों का ???? नहीं नहीं नहीं उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए । हे ईश्वर आज तक मैंने अपने लिए कभी कुछ नहीं मांगा है पहली बार उस महिला की जिंदगी मांग रहा हूं । कोई रिश्ता नहीं है ना ही कोई पहचान है बल्कि आज पहली बार शहर में निकला था । गृहस्थी का जरूरी सामान लेने और तभी ये हादसा .....। हादसा और भयानक तब लगा जब उनके मोबाइल से कॉल लगाने पर रितेश का मोबाइल बजने लगा । रितेश उन्हें बिल्कुल नहीं पहचानता था । लेकिन वक्त की नजाकत को समझते हुए वहां से निकलने में ही भलाई थी सो उन्हें लेकिन कर हॉस्पिटल में भर्ती कराया । वहां रूकना और बहस में पड़ना केस को अधिक उलझा सकता था । अब ईश्वर उन्हें ठीक कर दें होश में आएं फिर उनका पता ठिकाना पूछ कर घर छोड़ आया जाएं । लेकिन आखिर उनके मोबाइल में रितेश का नंबर कैसे सेव था । कुल सात नंबर ही थें जिसमें डॉ , पानी वाला , दूध वाला , ग्रोसरी वाला , टेलर और रितेश का । मतलब कोई परिवार वाला नहीं है ? सिंगल रहती हैं ? एक आईडिया आया ग्रोसरी सोप पर फोन लगाकर घर का पता लगाया जा सकता है । चाय का कमाल हो ही गया । झट से उसने फोन लगाया कॉल पीक होते ही धड़कनें तेज हो गई गला रूंध गया आवाज गायब सी हो गई .... । बड़ी मुश्किल से बोला था "चीनी और चायपत्ती भेज दो ।" उधर से गंभीर सी आवाज़ आई रितेश साहब आप आ गये ? एक और झटका .. ग्रोसरी वाले को कैसे पता कि इधर से रितेश है और वो आने वाला है ? हड़बड़ा कर रितेश ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया । कुछ सेकंड चुप रहने के बाद रितेश ने फिर फोन लगाया और पूछा कि आप रितेश को कैसे जानते हैं और रितेश आने वाला है यह किसने बताया ? ग्रोसरी वाले ने बड़ी सहजता से बोला कि आंटी बोलती थी जिस दिन रितेश आएंगे उसी दिन चाय मांगूंगी तब सबसे बढ़िया चाय पत्ती भेजना मैं उन्हें बहुत अच्छी चाय पिलाना चाहती हूं ।‌ आंटी चाय नहीं पीती थी बोलती थी रितेश के साथ चाय पियूंगी । आपने जैसे बोला कि चायपत्ती चीनी चाहिए तो कौन उल्लू नहीं समझ सकता कि रितेश साहब आएं हैं ? रितेश पसीने से तर-ब तर हो गया उसने ठीक से शक्ल भी नहीं देखी थी । उसने सोचा एक्सिडेंट की बता देना ही सही होगा और बता दिया की सीधा हॉस्पिटल आइए और उनके परिवार वालों को बता दीजिए । ग्रोसरी वाले ने अजीब तरह से हंसा था ... उनका परिवार तो आपसे है मैं क्या बताऊंगा ? रितेश का मन हो रहा था अपना ही सर फोड़ लें । ये क्या मुसीबत है बात सुलझने के बजाए उलझती ही जा रही है । उसने आखिरी सीप ली और डस्टबिन के तरफ बढ़ने लगा तभी सिस्टर ने आवाज दी । पेशेंट को होश आ गया वो रितेश रितेश पुकार रहीं हैं । दौड़ता हुआ रितेश अंदर पहुंचा पीला पड़ा मलिन झुर्रिदार चेहरा माथे पर बड़ी सी गहरी लाल बिंदी काले सफेद खीचडी से बाल हाथों में सुर्ख लाल लाख की चूड़ियां , मांग में सिंदूर भी .... फिर भी सिंगल ....? खैर अभी यह सब सोचने का वक्त नहीं है । रितेश वृद्ध महिला के ठीक सामने खड़ा होकर उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था । तभी डॉ रितेश से मुखातिब होकर कहने लगे बधाई हो कि इनका दिमाग ठीक है वरना ऐसे केसेज में यादाश्त चली जाती है । "इन्होंने होश में आते ही बोला बाहर रितेश साहब चाय पी रहें होंगे जब पी लेंगे तब बताना कि मुझे होश आ गया वरना वो चाय छोड़कर चले आएंगे । " और इनकी हिदायत पर ही आपकी चाय खत्म होने पर बताया गया आपको । दवाईयां लिख दिया हूं आप इन्हें घर ले जा सकते हैं । रितेश को समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था । उसने पेमेंट किया और वृद्ध महिला के साथ चलने लगा । वो महिला भी बिना कुछ बोले साथ साथ चलने लगी । कार का गेट खोलने के बाद रितेश ने पूछा किधर जाना है ? वृद्ध महिला ने सरल सहज भाव से कहा "घर चलो ।" कहां किसके घर ???? 

वृद्ध महिला बेतहाशा हंसने लगी हंसते हंसते बेहाल हो कर मोबाइल दे दिया उसमें लोकेशन था । रितेश चुपचाप उन्हें बिठाया और ड्राइविंग सीट संभाला । मैप के हिसाब से चलता रहा और फिर घर पहुंचते ही कार रोक दिया । बाहर निकल कर आंखें खुली की खुली रह गई । घर के बाहर नेम प्लेट देखा "रितेश विला " धड़कनें ऐसे बेकाबू हो रहीं थीं कि जैसे कलेजा मुंह में आ जाएगा । लेकिन कोई सीन नहीं क्रिएट करना चाहता था इसलिए बड़ी मुश्किल से संभाला खुद को और कार का गेट खोला । वृद्ध महिला ने सहजता से कहा आईए चाय बनाती हूं । मैंने सीख ली है अब बहुत अच्छी चाय बनाती हूं । रितेश पीछे पीछे चलकर घर के अंदर दाखिल हुआ । सामने लगी थी उसकी तस्वीर हकलाते हुए पूछा ये ये ये कौन हैं ..? वृद्ध महिला फिर बेतहाशा हंसने लगी हा हा हा ..... पहचाना नहीं ? कैसे पहचानेंगे आपने चश्मा जो लगा रखा है ? होता है ऐसा भी होता है हम आईना से पूछते हैं कि भला कौन हो तुम ? मैं भी आईना के सामने घंटों बैठकर पूछती हूं कि मैं कौन हूं ? अच्छा ये सब बातें बाद में पहले चाय बनाती हूं । नहीं नहीं आप रहने दीजिए मैं बनाता हूं चाय फिर हम दोनों पिएंगे । अच्छा तो अभी तक भूले नहीं ? क्या नहीं भूला ? चाय बनाना ? और क्या , आप तो खाना भी बहुत अच्छा बनातें थे । मैं हर साल होली पर बनाती हूं आपकी बनाई हुई रेसिपी से बेसन पाड़ा । रितेश को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह महिला कौन हैं जो उसके बारे में सब कुछ अच्छे से जानती है और वो नहीं पहचानता ? तभी बाहर से दौड़ता हुआ एक बच्चा आया और आते ही बोला राम राम साहब आप आ गये ? अच्छा हुआ जो आप आ गये अब आप सुनते रहना इनकी प्रेम कहानी । मुझे सुना सुना कर पका दिया है इन्होंने .... वैसे झूठ नहीं था जो कुछ बताया था आप बिल्कुल वैसे लग रहें हैं और आप बिल्कुल सही वक्त पर आएं हैं । आंटी बस दो चार दिन की मेहमान हैं । लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है आप आ गये हो तो सब ठीक कर ही दोगे ? आंटी ने आपकी बहादुरी के खूब किस्से सुनाएं हैं । रितेश का सर दर्द से फटने लगा था उसने उस बच्चे से पूछा कि मम्मी हैं उनको को बुलाना प्लीज़ । तभी एक महिला प्लेट में कुछ लेकर आई , हाथ जोड़कर अभिवादन किया और किचन में चली गई । चाय बन चुकी थी वृद्ध महिला तीन कप में चाय छानी मतलब उन्हें पता था कि तीन लोग चाय पिएंगे ? खैर .... देखते रहना है आगे आगे और होता है क्या ? मेज पर चाय रखकर भोलू को दुकान भेजा कुछ लाने के लिए फिर तीनों चाय पीने लगे । उस अधेड़ सी उम्र की महिला ने रितेश से मुखातिब होकर बोला । आप कुछ परेशान लग रहें हैं ? रितेश ने कहा नहीं तो । हद हैं परेशान होने की बात पर भी परेशान नहीं होते हैं ? वास्तव में नीरा सच कहती थी । नीरा नीरा ओह तो ये नीरा है नीरा उसकी नीरा उसकी अपनी नीरा .........! लेकिन पहचाना नहीं अपनी नीरा को ? वृद्ध महिला (नीरा) उठकर कमरे में चली गई और एक संदूक उठाकर ले आई । संदूक खोल कर दिखाया एक घरौंदा था कुछ टूटा फुटा सा ..... रितेश ने उसे छूकर देखना चाहा जैसे हाथ लगाया उई उई उई .... हाथ हिलाने लगा कांच चुभ गया था खून बहने लगा ... नीरा जल्दी से पानी के गिलास में हाथ डूबा दिया । फिर कुछ मेडिकल रिपोर्ट लेकर आई जिसे देखकर सारी बातें स्पष्ट हो गई । नीरा तो वही है लेकिन एक एक्सिडेंट की वजह से प्लास्टिक सर्जरी करानी पड़ी थी जिससे शक्ल बदल हुई लग रही है । एक अजीब दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना हुई थी । दो सहेलियों का एक्सिडेंट एक साथ होता है जिसमें एक की जान चली जाती है और नीरा सही सलामत जिंदा बच जाती है लेकिन उसका चेहरा खराब हो जाता है लगभग आठ महीने बाद उसका प्लास्टिक सर्जरी होता है जिसमें जानबूझकर उसने अपनी शक्ल बदलवा लेती है । सर्जरी बहुत मुश्किल थी मगर सफल हुई । एक साल बाद ही नीरा शिमला आ गई और तब से यहीं रह रही हैं । रितेश को सारी कहानी समझ में आ गई लेकिन कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई । सब कुछ जानने समझने और पहचानने के बाद भी वो जड़ बना बैठा रहा । अधेड़ उम्र की महिला ने खामोशी तोड़ती हुई बोली मैं आप लोगों के लिए खाना बनाती हूं तब तक आप लोग गपशप करो । और उठ कर बाहर चली गई । नीरा चुपचाप बैठी रही और रितेश भी .... तभी बिजली चमकने लगी बादल गरजने लगे । नीरा कांपने लगी घबराने लगी .... रितेश को याद आया नीरा बिजली चमकने और बादल गरजने से बहुत डरती थी । उठकर नीरा के पास आ गया कुछ नहीं होगा डरो नहीं कुछ नहीं होगा मैं हूं न ...! कुछ नहीं होगा । नीरा सिसकने लगी ...... । रितेश करीब आ गया मगर हाथ नहीं पकड़ सका एक अजीब सी उलझन .... बादल का गरजना और तेज़ हो गया नीरा बहुत जोर से डर गई रितेश से लिपट गई । रितेश उसे समझाता रहा कुछ नहीं होगा डरो मत .... नीरा शांत हो गई अब उसे बादल का गरजना नहीं बल्कि रितेश की धक धक सुनाई दे रही थी .... कुछ पलों में ही नीरा फिर से झूल गई रितेश की बाहों में .... रितेश उसे सोफा पर लिटा दिया और पानी की बोतल खोला तभी भोलू आ गया उसने बोला आंटी सो गई क्या ? नहीं "डर गई हैं शायद बेहोश‌ हो गई है ।" अरे नहीं वो सो जाती हैं जब भी डरती हैं या कोई प्रोब्लम सामने आती है तो सो जाती हैं और कुछ देर बाद जगती हैं तो बिल्कुल नार्मल हो जाती हैं । बहुत दिनों से जानता हूं कुछ अजीब सी हैं आंटी । हम लोगों की नींद उड़ जाती है जब कोई प्रोब्लम आती है या जब हम डर जाते हैं , और आंटी सो जाती हैं कहीं भी कभी भी । रितेश सोचने लगा बचपन से ही नीरा ऐसी थी । मोबाइल बजने लगा तब ख्याल आया रितेश को उसने रीना को बताया नहीं की हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिल गया है । उसने मोबाइल उठाया तब तक बंद हो चुका था । उसने लगाया और रीना को बताया कि पेशेंट को घर छोड़ने आया था और बारिश होने लगी इसलिए रूका हुआ है । रीना ने कहा ठीक है आराम से आना कोई जल्दी नहीं है । बस इतना जानना चाहती थी कि कोई प्रोब्लम तो नहीं हुई ? रितेश ने फोन डिस्कनेक्ट किया और बैठ गया । प्रोब्लम तो इतनी बड़ी हो गई है कि सॉल्व ही नहीं हो सकती है , लेकिन किससे कहें किससे पूछें ?????? भोलू चाय लेकर आ गया "अंकल चाय पी लो टेंशन खत्म हो जाएगी " हां दे दो मुझे चाय की तलब हो रही थी , थैंक्यू बेटा । भोलू एक स्माइल देकर वहीं बैठ गया और बातें करने लगा । रितेश परेशान था और नीरा बेफिक्र होकर मस्त सो रही थी ... भोलू ने टोका आप सोच रहें होंगे कि आंटी इतने आराम से कैसे सो रही हैं ? हैं न ? मैं भी यही सोच रहा हूं । थोड़ी देर पहले रो रही थी चिल्ला रही थी न ? ऐसा ही करती हैं हम सभी जानते हैं । रितेश ने सोचा भोलू से कुछ और बातें पूछी जा सकती है । अच्छा बेटा आंटी का कोई रिश्तेदार हैं यहां ? हां, बिल्कुल मैं हूं न ? हां तुम तो हो और कोई ? पता नहीं आंटी तो कहती हैं "कोई नहीं है बस रितेश हैं जो एक दिन जरूर आएंगे ।" लेकिन आंटी का एक अल्बम है जिसमें बहुत सारे लोगों की तस्वीर है वो दिखा सकता हूं । और दराज खोलकर अल्बम निकाल कर ले आया । जल्दी जल्दी पलटने लगा उसमें सभी तस्वीरें उसके मायके वालों की थी दो तीन तस्वीरें रितेश की भी थी । इसका मतलब नीरा की शादी नहीं हुई थी । फिर सिंदूर क्यों लगाती है ? पूरा अल्बम देखने के बाद फिर से देखने लगा लेकिन कोई अजनबी नहीं मिला सिवाय उसके मायके वालों के जिन सभी को रितेश पहचानता था । काफी समय पहले की बात है दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थें इसलिए परिवार के सभी लोगों से परिचित था बल्कि दोनों परिवार के रिश्तेदारों और दोस्तों को भी जानते थे दोनों । रितेश जिन बातों को भुलाकर आगे बढ़ चला था वो बातें इस तरह सामने आएंगी कभी सोचा न था । नीरा कब इतनी अपनी हो गई और कब वो उससे दूर चला गया ..... इतना दूर की कभी सपने में नहीं देखा था इन 25 सालों में । उसने अपना शहर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया था । दो बार नीरा को ढूंढने आया जरूर था लेकिन नीरा नहीं मिली और ना ही कोई पता ठिकाना । धीरे-धीरे वक्त गुजरता रहा अपनी बीवी बच्चों में उलझ कर भूल ही गया था । लेकिन नीरा उसे नहीं भूल पाई थी तभी तो अपने घर का नाम " रितेश विला " रखा था । रितेश की बड़ी सी तस्वीर लगा रखी थी । इतना ही नहीं उसने आस पड़ोस में सभी को बता रखा था कि रितेश एक दिन आएंगे । जबकि इन 25 सालों में नीरा से कोई सम्पर्क नहीं हो सका था और कल ही तो पहली बार शिमला आया है । रितेश को तो मालूम भी नहीं था कि नीरा शिमला में है । आखिरी बार उससे नागपुर में ही मिला था उसके बाद ना खत न कोई खबर आज 25 सालों बाद किन हालातों में मुलाकात हुई । नीरा की नींद खुल रही है शायद अंगराई लेते हुए ऐसे उठ रही है जैसे पहाड़ तोड़ कर सोई हो और सारी थकान उतार कर जग रही है । रितेश को देखकर सहज सरल मुस्कान बिखेरते हुए कहा बड़ी मीठी नींद आई थी । अब अच्छा महसूस कर रही हूं । आप "अभी तक जगे हैं ?" , "हां मैं तुम्हारा अल्बम देखा रहा था ।"

" देखा उसमें आपकी तस्वीरें भी हैं ।"

"हूं देखा लेकिन और कोई तस्वीर नहीं मिली जिन्हें तलाश रहा था ।"

"किसे ? सभी लोग तो हैं जो मेरी दुनिया में थें । अब कोई नहीं रहा मां पापा रोड ऐक्सिडेंट में एक साथ चले गए फिर भैया भी और दीदी तो ससुराल में इतनी मगन हो गई कि सबको भुला दिया । बची मैं और आप तो आप की परछाई जो मैंने संभाल कर रखा हुआ है देखिए उधर , नीरा ने दीवार की तरफ इशारा किया ।"

" हूं मैं तो हूं मगर क्या तुम भी वही हो जिसे मैं जानता था ?" रितेश ने पहली बार नीरा की आंखों में देखकर पूछा था ? नीरा ने नजरें मिलाते हुए कहा था "जी हां देख लीजिए मेरी आंखों में ....!" रितेश तड़प उठा सचमुच नीरा की आंखों में सच्चाई झलक रही थी । नीरा रितेश से बिछड़ने के बाद भी रितेश के साथ थी और रितेश .... उसने तो अपनी दुनिया बसा ली थी और अपनी दुनिया में इतना रम गया था कि कभी सोचा ही नहीं कि नीरा कैसी होगी ? किसके साथ होगी ? किस हालात में होगी ? रितेश आत्मग्लानि से दब सा गया था नजरें नीची हो गई थी । नीरा ने कहा , "आपको पता है मैं इतने सालों से कैसे रहती थी ? किसके साथ रहती थी ? नहीं पता न ? आइए मिलवाती हूं" नीरा अपने बेडरूम में आई और पीछे से रितेश भी

"देखिए .... कितने सारे आप हैं मेरे पास ..". रितेश ने देखा बड़ा बड़ा दस बारह गुड्डा था कोई बैठा हुआ , कोई पढ़ता हुआ , कोई लिखता हुआ , और एक गुड्डा उसके बेड पर ग्रीन टी-शर्ट पहने हुए । ग्रीन कलर रितेश का फेवरेट कलर हुआ करता था । रितेश नीरा के आंखों में दर्द , पीड़ा और तकलीफ़ महसूस करना चाहता था लेकिन नीरा बिल्कुल सहज सामान्य दिखाई दे रही थी । उसने कहा "मैं कभी अकेली नहीं पड़ी हमेशा आप थें मेरे साथ इसलिए मुझे कोई दुःख , कोई पीड़ा और कोई तकलीफ नहीं हुई । बहुत मज़े में जिंदगी गुजरती रही । हर त्यौहार मनाती थी होली दिवाली दशहरा तीज़ और करवाचौथ भी मुझे मालूम था आप कहीं तो होंगे और जहां कहीं भी हों सुखी रहें खुशहाल रहें इसलिए मैं भी हमेशा खुश रहती थी । कभी कभी लड़ाई भी करती थी । गुस्सा भी हो जाती थी फिर मान भी जाती थी । बहुत अच्छा गुजरा मेरा पूरा जीवन । अब आप आए हो तो एक काम कर जाना । मुझे सुहाग जोड़े में विदा कर देना । मैंने सब कुछ खरीद कर रखा है" और जल्दी से उसने आलमीरा खोला एक थैला निकाला और दिखाने लगी उसमें लाल चुनरी लाख की चूड़ियां और सभी ज़ेवर आलता बिंदिया और मेंहदी भी रखी हुई थी ।

"आपको कुछ नहीं करना है सरोज मुझे सजा सवार देगी बस आप अग्नि संस्कार कर देना मुझे मुक्ति मिल जाएगी । मैं ऊपर जाकर आपका इंतजार करूंगी और जब आप ऊपर आएंगे तब मैं घर सजाकर रखूंगी । रंगोली बनाऊंगी , आरती की थाली सजाऊंगा और आपके पसंदीदा व्यंजन बनाऊंगी । फिर कैरम खेलूंगी , बैडमिंटन खेलूंगी और एक बार फिर घरौंदा बनाऊंगी ....." रितेश निशब्द उसे देख रहा था । कितनी सहजता से अपनी मौत और उसके बाद की प्लानिंग बता रही है । चेहरे पर कोई दर्द नहीं है । शायद नीरा पागल हो गई है ? और उसके पागलपन की वजह कौन है ????? रितेश बेचैन हो गया खिड़की से बाहर देखने लगा बारिश थम गई थी मौसम साफ हो गया था उसे घर जाना चाहिए मगर जाने की बात कहने का साहस नहीं हो रहा था उसे । वो चुपचाप नीरा को देख रहा था । नीरा कुछ असहज होती हुई बोली "आपको चाय चाहिए ? बोलिए न बोलिए न बोलिए न ????" एकदम से झकझोर दिया था रितेश को । रितेश ने कहा "नहीं अभी नहीं ।" नीरा ने कहा "नहीं अभी चाय पीजिए और अपने घर जाइए । थोड़ी सी मोहलत मिल गई है मुझे लेकिन टिकट तो कन्फर्म है इसलिए अभी आप जाइए जब फोन करूंगी तब आइएगा तब तक ये आपकी सेना है न मेरी देखभाल के लिए । आप बेफिक्र होकर जाइए । आपको पता तो चल ही गया कि शिमला में आपका तबादला क्यों हुआ है ?" मुझे विदा करने के लिए बोलते हुए जोर से हंस पड़ी थी नीरा । किस बिंदास अंदाज में अपना जीवन व्यतीत कर रही है ? वास्तव में यह कोई आम औरत नहीं है । नीरा उठकर खड़ी हो गई और रितेश को उठाने लगी "उठिए फ्रेश हो जाइए जब तक चाय लेकर आती हूं ।"

रितेश उठ गया वाश-बेसिन के सामने खड़ा होकर निहारने लगा खुद को । क्या मैं वही रितेश हूं जिसे नीरा अपना सबकुछ मानती है ? अपनी शक्ल उसे बहुत कुरूप और घिनौनी लगने लगी । पानी का छींटा मार मार कर न जाने कौन सा धूल धोना चाहता था । नीरा चाय लेकर आ गई थी और टावेल पकड़ा गई । रितेश टावेल से चेहरा ढक कर चोर नज़र से नीरा को देखा । नीरा बिल्कुल सहज सरल सामान्य लग रही थी । सोफ़ा पर आकर बैठ गया नीरा शोर मचाने लगी "जल्दी चाय पीजिए और अपने घर जाइए । मेरी चिंता बिल्कुल नहीं कीजिएगा । भोलू और सरोज हैं न इनके अलावा पूरी सोसायटी मेरी फैमिली है मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है यहां । बड़े आराम से जिंदगी गुजर रही है । बस एक ही टेंशन थी अब वो भी खत्म हो गई । उठिए जल्दी जाइए" , चाय का कप रितेश के हाथ से लेकर बची हुई दो घूंट चाय नीरा गटक गई । रितेश को हंसी आ गई पहली बार हंसा था जब से आया था चेहरे पर तनाव , चिंता और परेशानी ही झलक रहा था । रितेश उठा और चलने लगा । नीरा ने रितेश के पांव छूकर अपने मांग में कुछ भर लिया था शायद उसके चरणों के धूल .... क्योंकि रितेश को ही अपने मन मंदिर में बसाया था जिंदगी भी साथ साथ बसर करने की सोची थी मगर एक जरा सी बात पर दोनों के रास्ते अलग हो गए थें । रितेश ने तो शादी कर ली अपना संसार बसा लिया मगर नीरा .... नीरा अपने मन से उतार नहीं सकी थी इसलिए किसी को अपना नहीं सकी और तन्हा रहने का फैसला लिया था । रितेश की यादों को जुदा नहीं करना चाहती थी । उसने एक काल्पनिक दुनिया बसा ली थी अपनी उसी दुनिया में वो जीती रही अपने रितेश के साथ । हर रोज सुबह दो कप चाय बनाती थी । बाहर लॉन में जाकर चाय पीती थी पहले रितेश वाली चाय और बाद में अपनी वाली चाय । इसी तरह सुबह की चाय से लेकर रात की नींद तक रितेश के साथ बीतने लगा था । स्कूल सुबह 9 बजे से 2 बजे तक उसके बाद सारा वक्त रितेश के ख्यालों के साथ । कुछ लोग पागल समझने लगें थें । हरकतें ही ऐसी थी मगर स्कूल की नौकरी और कुछ बच्चों का ट्यूशन के वजह से एक पहचान मिल गई थी और इसी वजह से सारी मुश्किलें हल होती रही थी । 

रितेश मुड़ कर हाथ हिलाए और चला गया । नीरा के चेहरे पर अजीब सा सुकून , तृप्ति और संतुष्टि के भाव थे । सोफ़ा पर लेट कर रितेश की तस्वीर से बातें करने लगी "आखिर आ गये न तुम .... मैं जानती थी तुम जरूर आओगे जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत होगी ।" उसने भोलू को आवाज देकर बोला सरोज को भेज दे । सरोज तुंरत ही दाखिल हुई दो कप चाय लेकर और कहा "मैं जानती थी आपको चाय चाहिए इसलिए बनाकर रखा था । " सरोज को गले लगा लिया और बोला देखो अब मैं मर भी जाऊं तो मत रोना मेरी तपस्या सफल हुई इस बात की खुशी मनाना । चुनरी साड़ी पहनाकर सोलह श्रृंगार कर देना और रितेश को खबर देना कहना उनसे की सिंदूर भरकर मुझे विदा करें । मुझे यकीन है वो इनकार नहीं करेंगे । तभी एक नोटिफिकेशन आया रितेश का मैसेज "मैं घर पहुंच गया " फिर बात होगी , "तुम बेफिक्र होकर सो जाओ मैं आ गया हूं और साथ में तुम्हारे लिए एक सहेली और दो बच्चें भी हैं । हम सभी मिला करेंगे । " नीरा को बहुत चैन मिल गया उसने जवाब में बस "थैंक्यू" लिखा । बेडरूम में जाकर गाना गाने लगी एक दिन आप यूं हमको मिल जाएगा फूल ही फूल राहों में खिल जाएंगे , मैंने सोचा न था .... नहीं नहीं मैंने सोचा था आप जरूर मिलेंगे जरूर मिलेंगे और जरूर मिलेंगे ....... गाते गाते नीरा गिर गई । सरोज तुंरत आई देखा तो चीख निकल गई भोलू को आवाज लगाई । भोलू ने एंबुलेंस और रितेश दोनों को फोन किया । एंबुलेंस से पहले रितेश आया साथ में पत्नी और दोनों बच्चों को भी लाया । नीरा बेहोश पड़ी थी उसे उठाकर हॉस्पिटल ले जा रहा था तभी उसने आंखें खोली और "थैंक्यू" बोला । रितेश ने बोला " "कुछ नहीं होगा तुम्हें , तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी ।" नीरा ने कहा आप मुझे विदा करने आएं हैं अपना काम ठीक से कीजिएगा मुझे सिंदूर लगा कर भेजिएगा मैं सुहागन मरना चाहती हूं । दुनिया वालों के डर से आपके नाम का सिंदूर बरसों से भरती आई हूं ताकी किसी की नज़र में नहीं आऊं , "मैंने जहां आपको विराजमान किया था वो जगह किसी और को नहीं दे सकती थी इसलिए आपके नाम से जीती रही और आपका नाम लेकर ही मरना चाहती हूं । आप वादा करो सुहागन बनाकर विदा करोगे न ? " बोलिए ना प्लीज़ बोलिए ना .. हां तुम सुहागन हो और सुहागन ही विदा होगी । मैं तुम्हें सजाऊंगा , सोलह श्रृंगार करूंगा । यकीन करो देखो मेरी आंखों में ... नीरा ने आंखें बंद कर ली और हाथों में हाथ रख दिया .... थैंक्यू मेरे सपनों से निकल कर जीवन में आने के लिए ... शब्द लड़खराने लगे थे स्वर धीमा पड़ने लगा । गाड़ी रोक दी हॉस्पिटल आ गया था मगर नीरा जा चुकी थी अपने सफ़र पर ........। आखिरी वक्त भी उसने थैंक्यू कहा था । 

हॉस्पिटल लेजाकर सारी प्रक्रिया पूरी की गई और जैसा की नीरा चाहती थी वैसी ही शानदार विदाई हुई । दुल्हन सी सजी नीरा पूरे सफ़ेद बालों के बीच लाल सिंदूर बहुत खिल रहा था । रितेश की पत्नी ने लाख की चूड़ियां पहनाई काजल लगाई नेलपॉलिश आलता सब कुछ करने के बाद रितेश से बोला आखिरी इच्छा तो सजा देने वाला जल्लाद भी पूरी करने देता है तो आपसे ये उम्मीद कर सकती हूं न ? सोसायटी के सभी लोग इकट्ठे हो गए थे सभी ने कहा और रितेश ने मांग भर दी । राम नाम सत्य है का जयकारा लगाते हुए प्रस्थान किया । भोलू बिल्कुल नहीं रोया ले जाते हुए देखता रहा । भोलू ने रितेश की तस्वीर के आगे खड़ा होकर बोला "थैंक्यू सर ।" 

ये दुनिया एक रंगमंच है यहा आने से पहले सभी के किरदार तय किए जा चुके होते हैं और सभी को अपना अपना किरदार निभाना पड़ता है । नीरा , रितेश , भोलू , सरोज के साथ साथ रीना रितेश की पत्नी ने अपनी भूमिका बहुत अच्छी निभाई । एक अनोखा विवाह जिसमें लाश की मांग में सिंदूर भरी गई और दुल्हन बनाकर विदाई की गई ।


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