बारिश
बारिश


पिछले साल बारिश जा ही नहीं रही थी। जा जाकर लौट आ रही थी। मानो किसी को ढूँढ़ रही हो। किसी को क्या तुझी को ढूँढ़ रही थी। ढूंढ रहीं होगी कि वह जो पहली फुहार के साथ ही दादी और पापा की डाँट की भी परवाह ना करके। दस बहाने बनाकर छतरी लेकर निकल जाता था। आधे घंटे बाद बंद छतरी और भीगे बदन वापस आता और मुस्कुराते हुए कहता, "माँ हवा बहुत जोरों की थी छतरी मुड़ जा रही थी, इसीलिए बंद कर दी।" कितनी भुवनमोहिनी मुस्कान माँ हमेशा उसे देखती और सोचती, 'इसकी मुस्कान इतनी प्यारी है तो कान्हा की मुस्कान जिस पर गोकुल नि:स्सार था, वह कितनी प्यारी होगी।
वह बचपन से ही ऐसा था और माँ उसे देड़कू (मेंढक) बुलाती, स्थानीय भाषा में देड़का मतलब मेंढक। मेंढक की तरह बारिश शुरू होते ही उसका राग अलापना शुरू, "माँ !चलो ना दरिया पर घूम कर आएंगे, माँ चलो ना कहीं घूम कर आते हैं।"और माँ बेटे रेन कोट पहन कर बारिश में भीगने निकल जाते। बहुत लोगों को बारिश में भीगते देखा सुना होगा पर यह एकदम अलग बात है ना छतरी लगाकर भीगना या रेनकोट पहन कर भीगना। वास्तव में रेनकोट पहन कर भीगने पर भीगना भी हो जाता है और किसी बड़े की डाँट भी नहीं पड़ती है।
इस साल बारिश आ ही नहीं रही है, मानो रूठी है । लोग परेशान है जुलाई लग गई है। जून के पहले हफ्ते से शुरू होने वाली बारिश अभी तक क्यों नहीं आई ? शायद उसे भी मालूम चल गया है उसकी बूँदों में भीगने वाला उसका देड़कू अब धरती पर भीगने के लिए नहीं है । बारिश और उसका तो नाता पुराना है । ऐसी ही एक भयंकर बारिश की रात को बारह बजे का गरजते बरसते ही तो वह आया था । उसे देखते ही दीदी ने कहा, "अरे मम्मी भी गोरी पापा भी गोरे, यह काला कलूटा किसका है?" दादी ने दुलारकर गोद में लेते हुए कहा, "यह तो भादो के महीने में गरजते बरसते साक्षात कान्हा ही तो मेरे घर आ गए है। शायद इसीलिए भी बारिश उसे बहुत पसंद थी। जब दुनिया बारिश देखकर भजिया और चाय की फरमाइश करती, तब उसकी एक ही फरमाइश मैं भीग कर आता हूँ। सब चिल्लाते, बीमार पड़ जाओगे। वह मुस्कुराते हुई अपनी माँ की और
देखता। उसकी माँ को भी बारिश में भीगना बहुत पसंद था । पर ससुराल में बारिश में भीगना संभव नहीं ना, तो बस बेटे का बहाना बनाकर माँ भी भीगने निकल जाती । पति को अपनी पत्नी की इच्छा मालूम थी । वह भले ही उसे इस तरह से बारिश में खुले में भीगने की परमिशन नहीं दिला सकते थे पर माँ बेटे को रोकते नही। इस तरह से दोनों माँ बेटे मस्त बारिश में भीगने की अपनी इच्छा पूरी करते।
एक दिन बेटे ने कहा, "माँ अब मैं बड़ा हो गया हूँ। आप पीछे बैठो मैं चलाऊंगा।"
माँ ने कहा, "ठीक है।"
थोड़ी देर बाद गाड़ी रोक कर बेटा माँ से चिपक गया और बोला, "कैसे इन तीर जैसी चुभती बूँदों के बीच आप गाड़ी चला पाती हो ? मेरी तो आँखे ही नहीं खुल पा रही है। इतनी हवा है स्कूटर को कंट्रोल करने में मेरे हाथ दुख गए। आप कैसे कर पाती हो ? मेरे लिए इतना सहन करती हो।"
" नहीं बेटा तेरे लिए नहीं ।मुझे भी तो भीगना पसंद है।" इतना कह कर उसने प्यार से अपने बेटे को देखा वह बहुत कुछ कहना चाहती थी कैसे कहती, कि यह बारिश की बूँदों की तीर जैसी चुभन, ससुराल में वक़्त बेवक्त मिलने वाले तानों से बहुत कम है। उनसे तो मेरी आत्मा छलनी हुई पड़ी है। यह बारिश की बूँदे तो मरहम का काम करती है।
बेटा बोला,"जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो एक बड़ा सा घर बनाऊंगा। जहां पर खूब बड़े टेरेस (छत) पर बारिश में हम खूब भीगेंगे।" हाँ अभी तो वह एक चॉल में रहती है। जहां खपरैल की छत होती है पक्की छत नही होती। बारिश में घर के बाहर वह भीग नहीं सकती । वह सोचती यह देश न जाने कैसा है यहां के लोग बारिश में भीगना पसंद नहीं करते पर दरिया पर जाकर उसकी लहरों में भीगते हैं पर बारिश के पानी में नहीं ।
पर शायद ईश्वर ने उसके नसीब में बारिश के पानी में भीगना लिखा ही नही था। इसलिए वो चला गया। अपनी माँ को आँसुओं का उपहार देकर। भले ही आसमान से बारिश नही हो रही हो। उसकी माँ की आँखे बरस रही हैं। अब बारिश अक्सर होती है पर माँ की आँखों से, भीगता रहता है उसका मन बेटे की यादों में।