Swati Rani

Tragedy

4.9  

Swati Rani

Tragedy

एक प्रेम पत्र ऐसा भी

एक प्रेम पत्र ऐसा भी

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"सुनो बेगम अब जो मैं कुछ दिन का मेहमान हूँ, इसलिए तुम्हारे लिये कुछ सरप्राइजेज है"रमेश अपनी आगामी मौत का भी मजाक बनाने से नहीं चुक रहा था, कोई इतनी सहजता से अपने मौत के बारे में कैसे बात कर सकता था भला! 

"चुप भी करो क्या बोलते हो", ये रमेश कि इस संजीदा वक्त पर की गयी ये ठीठोलियां सुई सी चुभती थी मुझे! 

" हां तो क्या, मौत ही सच है! इतनी जानलेवा बिमारी से कोई बचता है क्या?? सुना भी था आज तक नाम न्यूरोइंडोकराईन कैंसर है,"रमेश बोले! 

"शुभ-शुभ बोलो जी, आपसे पहले मैं मर जाऊं"कहते हुये मेरे आंसू की दो बुंदें छलक गयी रमेश के हाथों पर ! 

"ओह अब लो क्या तुम वोही ऊमा हो जो जब मैं लड़ता था तो महीने-महीने दिन बात नहीं करती थी, बस युं ही समझ लेना हमारी लड़ाई हुयी है और हमारी बातचीत हरदम के लिए बंद हो गयी"रमेश ने समझाने के लहजे में कहाँ ! 

"बस मैं जा रही हूँ अब बाहर, जो बकना है अकेले बको, तुमको हर बात में मजाक ही सुझता है, ये नहीं समझ आता बिलकुल सामने वाले पर क्या बीत रही है!"मैं भर्राये गले से बोली! 

"अच्छा छोड़ो ये बातें हमारे खरूस ससुर जी कहाँ है आजकल?? याद है मेरे लिये कवितायें लिखते थे और गलती से उनकी डायरी मेरे हाथ लग गयी थी, क्या कविता था वो वाह! !वाह!! 

मेरे प्रिय दमाद रमेश, 

किया करो ना मेरी बेटी से कलेश, 

जो कहोगे मेरी बेटी को मोटी, 

आखें निकाल खेलूंगा गोटी! 

बस इतना ही याद है मुझे! 

मैं और रमेश दोनों जोर से हंस दिये! 

मैनें मन में सोचा जबसे डाक्टर ने रमेश को उसके कैंसर के बारे में बताया था, उसे लग रहा था जैसे जाने कौन सा पल आखिरी हो, जाने से पहले सारी बातें बोलदूं! 


 थोड़ी देर में मैं शब्दविहीन सी रमेश कि आंखों में देखने लगी कि काश ये वक्त यही रुक जाये! रमेश कि उम्र 40 कि थी, पर दिल बच्चा था! मैं 10 साल छोटी थी उनसे! रमेश कि अनकही बातें जो अधरों पर आ कर रुकी थी मै सब समझ रही थी, आखिर ये 10 सालों के विवाह के बाद का प्यार था! वो भी मेरे मन के अनजाने भय को भलीभाँति भांप रहे थे! 


रमेश ने अपने हाथ में मेरा हाथ लेकर  कहाँ , "पगली सोचती क्यों है, हम सभी कि डोर उपर वाले के हाथ में हैं, अच्छा बताओ तो हमारी शादी के पहले तुम मुझे जानती थी भला, फिर भी तो रह रही थी ना, तो अब क्यों नहीं! 

आनंद का राजेश खन्ना का डायलग नहीं सुना"जिंदगी और मौत उपर वाले के हाथ में है,उसे ना तो आप बदल सकते हैं ना मैं! 


ये सुनकर मैं अपने अंदर उठ रहे तूफान को रोक ना सकी, किसी 6 महीने के बालक के जैसे वो किसी वस्तु के लिये जिद करता है,मैं भी फफक कर रोने लगी और अंतर्मन और भगवान से जिद करने लगी कि रमेश मेरे साथ हरदम रहे, हालांकि जेहन को पता था ये संभव नहीं है! 

"अरे !आई हेट टियरस ऊमा!!!रमेश की बीवी होकर तुम तो बड़ी कमजोर निकली, अच्छा मेरी बात सुनो वो जो नर्स है ना जूली, वो मुझे काफी पसंद आ गयी है, अगर मैं दुसरी शादी कर लूं तो तुम्हे ऐतराज तो ना होगा, वो तुम्हारे जैसे रोतलु नहीं है"रमेश ने विषय बदलकर मुझे हंसाने का प्रयत्न किया! 

मैनें हंसते हुये अपना माथा पिट लिया और बोला सब सुधर जायेंगे पर आप नहीं, कभी तो गंभीरता से रहो! 

"सही बोलती हो मजाक करते करते जिंदगी ने भी घिनौना मजाक कर दिया मेरे साथ, पर मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता", रमेश खुद में बुदबुदाया! 


कई बार हाॅस्पिटल के दरवाजे के शीशे से मैनें रमेश को रोते हुये देखा था पर मैं ना टूटूं इसलिए वो हरदम मेरे सामने हंसते रहता था!तभी कमरे में जूली आयी! हम दोनों ने हड़बड़ा कर अपने आंसू पोछें!


"जूली तुम आज रोज लाना भूल गयी मेरे लिये, अब तुम मुझे पहले जैसा प्यार नहीं करती हो कोई और आ गया है क्या तुम्हारी जिंदगी में"रमेश ने मुझे चिढा़ने के लिए जूली से कहाँ ! रमेश कि स्थिति देखकर सब उसे प्यार करने लगे थे और वो था भी ऐसा सबका मन लगाये रहता था हास्पिटल में ! 

"अरे ऐसा नहीं है, आज मेरे गार्डन में रोज खिला नहीं था, कल लाऊंगी पक्का और आप ही मेरे बाॅयफ्रेंड हो, मुझ जैसी को कौन मिलेगा"जूली ने भी बेधड़क जवाब दिया मेरे होने कि परवाह ना किये बिना! 

"अरे तुम बोलती था ना वो हास्पिटल का रिसेप्शनिस्ट तुमको पसंद करता है बोल के देखो ना उसे"मैनें भी चुटकी ली! 

"नहीं नहीं कहाँ वो इतना हैंडसम और मैं बावली सी, नौकरी भी चली जायेगी कंपलेन किया तो , मैं तो नहीं बोलुंगी बाबा"जूली घबरा कर बोली! 

"हम्म मुझे ही कुछ करना होगा,जूली के बस कि सेटिंग नहीं",रमेश मन में बुदबुदाया!

शाम में रमेश टहलता हुआ रिसेप्शन पर गया तो रिसेप्शनिस्ट रजत को टटोला, "यार,तुम इतने स्मार्ट और हैंडसम हो, कोई सेटिंग कराओ ना यार,मन नहीं लगता हाॅस्पिटल में तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड कि दोस्त नहीं है क्या??

"नहीं सर!!!मुझे आज तक अच्छी लड़की मिली ही नहीं कोई"उसने मुस्कुराते हुए कहाँ ! 

"क्या??तुम्हारे उम्र में हमारी 4-4 गर्लफ्रेंड हुआ करती थी,तुम कहो तो मैं ढूंढ दुं??"रमेश ने फटाक से कहाँ ! 

मैं थोड़ी दूर से दरवाजे कि ओट से सुनकर खुब हंस रही थी! 

"ज.. ज.. जी ,कोई ढंग की ढ़ुढ़ोगे तो जरूर सोचुंगा"उसने कहाँ , शायद लड़के-लड़कों से ज्यादा सहज रहते हैं, इन सब बातों में! 

"ठीक है एक नंबर लो आज रात में तुम इसपर काॅल करना , ये पट जायेगी,"रमेश ने शरारती लहजे में कहाँ ! रिसेप्शनिस्ट भी हंस दिया! 

अगले दिन जूली हमारे कमरें में आयी! 

"जूली- जूली रजत का दिल तुमपर आया जूली", उसको देखकर रमेश गुनगुनाने लगा! 

हम दोनों हंस पड़े! 

जूली कि मुस्कान से हमदोनों समझ गये थे कि सेटिंग हो चुकी थी! 

"जूली मुझे अपने शादी में बुलाना ना भूलना"रमेश ने जूली से वादा लिया! 

जूली ने हस कर हामी भरी! 


फिर एक दिन मेरे पापा हाॅस्पिटल में मिलने आये! ऐसे तो जब दोनों मिलते थे युद्ध का सा माहौल रहता था !काफी पिस चुकी थी मैं दोनों के बीच! पर इसबार पापा का रुख थोड़ा नर्म था, होना लाजमी भी था! पर रमेश मुंह फुलाये जानबूझकर पेपर में मुंह घुसेड़े बैठा था! 

"कैसे हो बेटा??"पापा ने बड़प्पन दिखाया! 

रमेश ने अनसुना कर दिया! 

"कैसे हो बेटा??" वैसे तो पापा ये दुबारा पुछते भी ना पर मैं उनको समझा कर लायी थी इसबार सो पुछ लिया! 

"हु... रिपोर्ट आये चार दिन हो गये और ये आज आये हैं,सीधा मौत वाले दिन ही आ जाते"रमेश झिड़का! 

"बेटा अब तो गुस्सा मत हो"पापा ने समझाया! 

"होऊंगा आपने मेरी शादी में मुझे सोने कि चेन देने का वादा किया था, आज तक नहीं मिला, धोखेबाज हो आप"रमेश के वही घीसे पीटे ताने! 

"अच्छा बेटा ये सब बात याद करके क्या फायदा"पापा ने कहाँ ! 

वैसे पापा भी कम लड़ाकू ना थे पर सिर्फ मौके कि नजाकत से चुप थे! मैं खुद हैरान थी जिसके जिंदगी के कुछ दिन बचें हो उसकी ऐसी शिकायतें! सच में रमेश के कहने ही नहीं थे! 

"करुंगा और मौत के बाद भूत बनकर आऊंगा वसुलने, आज बकरी क्यों बने हो,जैसे बाघ जैसे दहाड़ते थे हरदम वैसे ही दहाड़ो, मरने वाला हूँ इसलिए प्यार से बात मत करो"रमेश ने वैसे सच ही कहाँ था! 

"ध्यान रखो अपना"पापा ने समझाया! 

"फिर आइऐगा शुक्रिया"रमेश ने 

हाथ जोड़कर बात ही ऐसे कर दी कि उनको उठकर जाना पड़ा! मेरी तो आदत पड़ चुकी थी ऐसे काॅमेडी शोस देखने कि दोनों की!


सिनियर डाक्टर ने एक दिन मुझे बुला कर पुछा, "आप दोनों को कोई बच्चा नहीं है या कोई गार्जियन??"

मैनें कहाँ , " नहीं, मैं ही हूँ, क्यों क्या बात है??"

"कुछ दिन के और मेहमान है आपके पति आप घर ले जाकर रखिये उनको अच्छा लगेगा"डाक्टर ने साफ साफ लहजे में मुझसे कह दिया चुकी मैं ही अकेली थी उनके साथ! ये सुनकर मेरे पांव तले जमीन ही खिसक गयी, दिल का एक कोना खाली सा हो गया, खुद को कैसे संभाला मै ही जानती हूँ! 

सब ने हाॅस्पिटल में भरे दिल से रमेश को विदाई दी! मैने रमेश को कुछ नहीं बताया बस बोला कि डाक्टर ने बोला है घर ले जाने कि हवा पानी बदलेगा तो सेहत में सुधार होगा! 

"वाह! काफी दिनों बाद घर आये हैं पर मुझे एक बात समझ ना आयी उस दिन डाक्टर कह रहा था, मै काफी बिमार हूँ और आज डिस्चार्ज ,काफी बढि़या डाक्टर हैं,ठीक ही बोला, मरीज घर पर जल्दी ठीक होते हैं वैसे भी"रमेश काफी पक चुका था वैसे भी हाॅस्पिटल में! इतना सुनना था मैं रमेश से लिपट के रो पडी़! टुट कर बिखरने ही वाली थी कि रमेश ने मुझे संभाल लिया!वो मेरे अनकहे बातों और बिन मौसम कि बारिश देखकर सब समझ गया था! 

"चुप कर पगली दुख पड़े तो रोते नहीं है, होनी को कौन टाल सका है भला", रमेश ने मुझे गले से लगाते हुये ढ़ाढ़स बंधाया! 

अब मैं रोज रमेश को गीता रामायण पढ़कर सुनाती थी शाम के वक्त में, एक दिन रमेश का दर्द कुछ ज्यादा ही बढ़ गया और वो मेरा हाथ पकड़कर बोले, "भगवान हर जन्म में तुम्हें मेरी पत्नी बनाये! "

मुझसे सिंदूर मांगा और बोले,"पति सिर्फ दो बार मांग भरता है एक बार सिंदूर दान के वक्त और एक बार मरने के वक्त, पर मै जिंदगी भर साथ निभाने का वादा तोड़ पहले ही जा रहा हूँ, पर मांग भर देता हूँ तुम्हारी,कि उपर जाकर कह सकुं भगवान से कि तुमपर मेरा काॅपी राईट है," इतना कहकर उन्होंने दम तोड़ दिया!


कैसे भी अंतिम संस्कार करने के बाद मैं जैसे एकदम पत्थर कि हो गयी!सब रिश्तेदार वापस चलें गये, पापा कुछ वक्त तक थे फिर वो भी गांव चले गये!इतनी बड़ी मुंबई में मेरी जिंदगी एक कमरे में सिमट के रह गयी!मैं साल भर घर से ना निकली! चेहरे पर बड़े-बड़े मुहासें हो गये गंदगी के कारण, बालों में जटायें बन गयी, जुयें हो गये! शरीर से बदबू आने लगी! जब खुद का ये हाल था तो घर का कौन पुछता है! जगह जगह धुल जमें थे, मकड़े के जाले लगे थे! खा-खा कर सारे प्लेट गंदे फैला रखे थे मैंने फर्श पर! 

फिर एक दिन अचानक पापा आये और बोले, "बेटा क्या हाल बना लिया है अपना??चल तैयार हो जा आज रमेश की बरसी है! "फिर मुझे होश आया साल भर ऐसे ही बीत गये थे मेरे! मैं बुझे मन से तैयार होकर गयी और सारे कर्म कांड किये! वापस घर आकर घर को ठीक किया,चाय बना कर रमेश कि डायरी खोल कर बैठ गयी! 

अपने जिंदगी के आखिरी क्षणों में वो मुझसे छुपा कर कुछ लिखते थे और मुझसे बोलते थे जब मैं ना रहूं तब पढ़ना! डायरी में लिखा था, याद है पंखा चलाने के लिये मेरे से कितना लड़ती थी मोटी अब तो चला के सोती होगी ना फुल स्पीड में!बेड के दायें तरफ में सोने के लिए भी कितना लड़ती थी अब तो पुरे बेड पर पसर कर सोती होगी! 

 

पढकर आंखों में अनगिनत भावपूर्ण आंसू आ गये! मन में सोचा कितनी रातें बिना नींद के गयी हैं तुमको क्या पता??तुमसे लड़ते झगड़ते कब नींद कि आगोश में चली जाती थी पता ही नहीं चलता था, अब तो तरस जाती हूँ कि कोई बात भी करे! बेड पर तो हरपल तुम्हारी याद आती थी इसलिए तुम्हारी यादों से भागने के लिए सोफे पर ही सोती थी! 

डायरी में आगे लिखा था, खाना बनाने में भी खुब दादागिरी करती होगी, मुझे पता है रोज आलू के पराठें खाती होगी मेरे बिना.. हम्म! 

खाना तो छोड़ो जीवन जीने का मन ही नहीं करता अब, तुम्हारें लिये प्यार से खाना पकाने में ही तो मजा था, आज खाये बिना कितने दिन हो जाते हैं!मन करता है रुठुं तो कोई मनायें! सच पुछो तो बहुत लड़ाईयां कि हैं हमने पर आज जाना है तुम्हारा कद्र! 


बस अब और नहीं पढ़ पाऊंगी सोचकर मैनें डायरी बंद कर दी, तभी देखा तो मेनडेट के पास एक चिट्ठी पडी़ थी! बाहर झांका तो कोई नहीं था, मैनें सोचा पोस्टमैन होगा! 

चिट्ठी प्रिंटर पर टाईप कि हुयी थी! और उसमें ठीक वैसी ही खुशबू थी जो परफ्यूम रमेश हरदम लगाता था! अचानक से इस खत ने मेरे अंदर रोमांच भर दिया!शायद रमेश के जाने के बाद पहली बार मुस्कुरायी थी मैं!

उसमें लिखा था


मेरी प्रियतमा ऊमा!!! 

मैनें अपनी मौत को सालों पहले अपनी ओर आते देख लिया था! इसलिए मैंने कुछ खत तुम्हारें नाम लिखे है! मेरे जाने के बाद तुम उदास क्यों हो?? याद है झूला झुलना तुमको कितना पसंद था, तो जाओ ना झुलों सामने वाले पार्क में,किसने रोका है! किसने दिया है उम्र और समय का पैमाना कि पति के मरने के बाद तुम झुला नहीं झूल सकती!क्या मेरे जाने से ये धरती रुक गयी है, तुमने सांसे लेना बंद कर दिया,नहीं ना तो तुम्हारी जिंदगी क्यों रूक गयी??और हां वो पिंक साड़ी और मोतियों कि माला पहन कर जाना, जो मेरा फेवरेट था!कोई जरूरत नहीं विधवा के वेशभूषा को धारण कर खुद को हरपल दुखी करने का एहसास दिलाने कि, समाज तुमहें खाने को नहीं दे रहा और हां उसके बाद वो आईसक्रीम पार्लर जरूर जाना वहां तुम्हारा फेवरेट वनिला फ्लेवर खाना और महसूस करना जानेमन कि मैं तुम्हारे साथ हरपल हूँ! ये मेरा हुकुम है! लव यू जान!

पति का हुकुम था जाना ही पड़ा मुझे, रमेश के जाने के बाद पहली बार लगा जैसे जिंदा हूँ मैं, खुली हवाओं में सांस लिया, खुब झूला झुलीं लोगों कि परवाह किये बगैर! एकबार लगा सब मुझे घूर रहे हैं पर मुझे किसी कि परवाह ना थी, रमेश कि रुह जो थी मेरे साथ! 


आइसक्रीम खाने वक्त पल-पल मैनें अपने और रमेश के द्वारा बिताये पिछले लम्हें याद किये कि कैसे रमेश अपनी आइसक्रीम खा कर जल्दी-जल्दी, मेरे आइसक्रीम पर भी हाथ साफ कर देता था! कितनी खुश रहती थी मैं उस वक्त! 


फिर कुछ दिन बाद पापा आये, देखकर बोलें अब तुम थोड़ी ठीक लग रही हो मुझे!चुकी पापा गांव से और संकिर्ण विचारों वाले थे तो खुलकर मुझे समझा नहीं पाते थे! पर कम शब्दों में ही मेरे तरफ अपनी चिंता जाहिर कर देते थे!बच्चों कि मनोदशा माता- पिता से ज्यादा आखिर कौन जान सकता है! 

मैनें पापा को अभी चिट्ठी वाली बात ना ही बताना ठीक समझा! 

पापा एक दो दिन मेरे साथ रुकने वाले भी थे , हमलोगों को रमेश कि मन्नत उतारने एक मंदिर जाना था! उसके नाम कि सोने कि चेन पापा को पंडित को देना था कि उसके आत्मा को शांति मिले! हमलोगों ने वो दान कर दिया! हमलोग जैसे गांव से थे उसमें बेटियों को ज्यादातर माँ ही समझाती हैं, पापा कम ही बोलते है पर फिर भी पापा ने अपने स्तर पर मुझे खुश रहने कि हरेक सलाह दी रास्ते भर! 


रात में मैं रमेश की डायरी पढ़ने बैठी उसमे लिखा था,सवा रूपये तिलक ले कर करोडो़ कि संपति ली थी तुम्हारे रूप में तुम्हारे पिता से मैनें,मेरा सोने के चेन का ताना महज तुम्हारे पिता को बात करवाने भर का तरीका मात्र था क्योंकि हमारे शादी के महज साल भर के अंदर तुम्हारी मां कि मृत्यु ने उनको झकझोर दिया था,जिससे वो चुप से हो गये थे।ऊमा याद है जिस दिन तुम्हारा गर्भपात हुआ था और तुम बेहोश थी,बहुत मिन्नतें कि थी मैनें भगवान से कि तुमको बचा के मुझे उठा ले और भगवान ने मेरी ये मन्नत सुन भी ली!इन दस सालों में रिश्तों के सारे उतार चढाव को देखा है हमने पर अपना रिश्ता टूटने नहीं दिया यही हमारे रिश्ते कि गरिमा थी।

तुमको पता है जब तुम्हारे पापा बिमार थे,मैने बिना तुम दोनों को बताये उनके ईलाज का खर्च वहन किया था क्योंकि मुझे पता था वो बेटी के यहां का एक पैसा नहीं लेते।मैं उन्हें तुमसे ज्यादा प्यार करता था।रमेश के दिल कि बात एक-एक कर डायरी के पन्नों जैसे खुल रही थी मेरे सामने! डायरी बंद कर मैं बेड पर लेट अतीत की यादों में डुबती उतराती नींद की आगोश में कब चली गयी पता नहीं! 

अगले दिन आंख खुलते मुझे एक और चिट्ठी मेनडोर पर पडी़ मिली! मुझे चिट्ठी मिलने का इतना उत्साह था कि वो आया कहाँ से मैं पता लगाना भुल गयी! पापा के वापस गांव जाने के बाद मैं उसे पढ़ने बैठ गयी! उसमें लिखा था! 

मेरी प्रियतमा ऊमा! 

 मुझे पता है मैनें जो बोला वो तुमने किया होगा, क्योंकि तुम एक आदर्श पत्नी थी, पर अब तुमको खाली नहीं बैठना है अपने लिए जाॅब तलाशों,दोस्त बनाओ, खुद को वयस्त रखो और हां इस बार अगर कोई फ्लर्ट करे तो इंजाय करना, डेट के लिए पुछे तो चले जाना,पहले जैसे थप्पड़ मत मारना क्योंकि अब तुम सिंगल हो!खुद को खुश रखने में कोई बुराई नहीं है, विधवा मत समझो खुद को,तुम 21 वी सदी कि महिला हो!अगर मैं बुरा पति साबित होता तो भी तो तुम मुझे छोड़ ही देती ना और दुसरा जीवनसाथी चुनती! तो दोस्ती में कोई बुराई नहीं है!तुमको मेरी ये बात माननी ही होगी वरना अगली चिट्ठी नहीं मिलेगी! 

लव यू जानेमन! 


रमेश कि ये चिट्ठी पढ़कर मुझे काफी हौसला मिला,मेरा जिंदगी को देखने का नजरिया बदला, अगले ही दिन मैनें जाॅब तलाशा! भगवान के कृपा से मुझे अपनी पुरानी कंपनी में ही नौकरी मिल गयी! क्योंकि सब को पता था अब मेरे पति नहीं है, तो बाॅस कि कहीं ना कही मेरे तरफ दया दृष्टि थी! सब बातें करते थे कुछेक सहानुभूति से तो कुछ लोग फ्लर्ट करने के लिये! 

एक बार पीयूष नाम के स्टाफ ने मुझे काॅफी के लिये पुछा, मैं डांटने ही वाली थी कि मुझे मेरे दिवंगत पति कि बात याद आयी! आखिरकार मैं काॅफी पीने गयी, हम दोनों ने अच्छा टाईम बिताया! काफी अच्छे दोस्त बन गये दोनों!उसका भी ब्रेक-अप हुआ था अभी,सो उसको भी सहारे कि जरूरत थी!दोनों दुख बाटनें लगें एक दूसरे से! 


फिर मैं एकदिन घर में बैठी मैं रमेश कि डायरी पढ़ रही थी तो मैंने सोचा रमेश कि लिखावट तो अच्छी थी फिर उसने मुझे टाईप करके लेटर्स क्यों दिये ??और उसके डायरी में भी लेटर का जिक्र नहीं है!पर उस लेटर में जो बातें है वो सिर्फ रमेश और मेरी दिवंगत माँ को ही पता थी, इसलिए उस लेटर को रमेश ने लिखा था इससे मेरा विश्वास नहीं डगमगाया!


डायरी में रमेश ने लिखा था, याद है जब शादी के महज कुछ दिनों बाद मैनें तुमको अपने घर वापस जाने बोल दिया था! फिर मैंने वो साड़ी लाकर तुमहें देकर मनायी थी, उसके लिए मुझे हरपल अफसोस था उसके लिए मुझे माफ कर देना प्लीज! 

रमेश ने आगे लिखा था याद है, जब मैं तुमसे एक-एक रुपये का हिसाब मांगता था और तुम नहीं देती थी मै सोचता था तुम उस बचाकर अपने पापा को गिफ्ट देती हो, कितना लड़ा था मैं तुमसे, फिर जब मेरी जाॅब अचानक चली गयी उनहीं पैसों से राशन लायी थी तुम, तब मुझे अहसास हुआ, कि तुम मेरी सच्ची अर्धांगिनी हो! 


मैं तुम्हारे प्यार को तब और समझा जब मैं नौकरी जाने के वजह से डिप्रेशन में था और हर एक रात तुम मेरे नींद के साथ जगी और सोयी थी!तुमसे बेहतर हमसफ़र कहाँ मिलता मुझे! मेरी माँ कि जो तुमने निश्चल सेवा कि थी, उनके पक्षाघात के बाद तब मुझे समझ में आया कि तुम मेरे साथ-साथ मेरे परिवार कि भी हितैषी हो!


रमेश कि डायरी का खुलना और मेरी आंसुओं के बहने का सिलसिला दोनों का रिश्ता बारिश और कवि जैसा हो गया था, जैसे बारिश में कवि कविता जरूर लिखता है, मैं रमेश कि डायरी खोलकर भावविभोर जरूर होती थी! तभी अचानक दरवाजे के नीचे से तीसरा पोस्ट आया मैनें दरवाजा खोला, काफी दूर तक भागी पर कोई नहीं दिखा!मैं थककर वापस आयी और बिना विलम्ब किये चिट्ठी फाड़ी और पढ़ने लगी! 


मेरी प्रियतमा ऊमा! 

मुझे पता है तुमने अच्छी बीबी होने के सारे फर्ज निभाये!मुझे तुमसे कोई गिला नहीं है, वरन मैं ऊपर लड़ाई भी कर रहा हूँ, हमदोनों के अगले जन्म के बुकिंग के लिये! 

पर एक बात मैं कहना चाहता हूँ जिसके साथ तुम काॅफी पीने गयी थी तुम उसे उसी झील पर लेकर जाओ जहाँ मै तुमहें हरदम ले जाता था और महसूस करो क्या तुमहें वैसा ही लगता है जैसे मेरे साथ लगता था! जिंदगी में आगे बढ़ो मेरी जान,जिंदगी बिना हमसफर के नहीं कट सकती! इसमें कोई बुराई नहीं है,कभी-कभी समाज के बारे में छोड़कर खुद के बारे में भी सोचना चाहिए, स्वार्थी बनने में कोई बुराई नहीं है अगर बात हित की हो! शायद ये मेरा आखिरी खत हो तुम्हारे लिये! मुझे पता था तुम मेरे जाने के बाद से डिप्रेशन में होगी, इसलिए इस खत के माध्यम से मैनें तुम्हारा साथ जितना दे सकता था दिया आगे कि जंग समाज के खिलाफ तुम्हें खुद लड़नी होगी!

लव यू ऊमा! 


मेरे आंसुओं से रमेश के प्यार कि बरसात हो रही थी! दुख भी था कि रमेश का ये आखिरी खत है पर सच ये भी था कि वो जाते-जाते मुझे जीना कि कला सीखा गया! ऊधर पापा भी मंद मंद मुसकुरा रहे थे कि उनकी और रमेश की तरकीब काम आ गयी थी मेरी जिंदगी सुधारने में क्योंकि रमेश और पापा के अलावा मुझे इस दुख से कोई नहीं निकाल सकता था,रमेश ने पापा से वादा जो लिया था मेरी परिस्थिति देखकर निर्णायक कदम उठाने की, एक समय ऐसा था मैं खुद कि जिंदगी खत्म करने कि सोच रही थी,पर पापा ने ये साबित कर दिया भले ही वो ना दिखाते हो पर कितना प्यार करते थे मुझे!


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