Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Swati Rani

Others

4.8  

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लाॅटरी

लाॅटरी

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हाँ मेरा ये लाॅटरी ही तो था मेरे लिये! वाट्सएप पर आशा संस्था के तरफ से मिला मैसेज मेरे लिए एक जैकपॉट जैसा था! 

चलिये थोड़ा बातें करती हूँ आपलोगों से, अकेले मन बहुत घबरा सा रहा था! शायद कुछ शेयर करके अच्छा लगे! काफी छोटी सी थी मैं, मेरे भाई के एक दोस्त पसंद करने लगे मुझे! जब भी अकेले स्कूल जाती पीछा करते, सारी-सारी रात मैसेज और काॅल करते! भाई को बताने पर मेरे पुरुष मित्र दोस्तों के साथ गलत संबंध बता कर बदनाम करने का हवाला देते! एक बार मैं नहीं डरी, उनका फोन नहीं उठाया,तो खुन्नस में उन्होंने तेजाब फेंक दिया, वो तो इधर उधर पैसे देकर बच निकले! पर मैं कोर्ट में चरित्रहीन बनी सो बनी, जिंदगी मेरी नर्क से बदतर हो गयी! खुबसूरती कि दिवानी दुनिया में मैं एक काले धब्बे जैसे हुं! एक वक्त ऐसा आया कि परिवार ने भी साथ नहीं दिया, बल्कि जब भाभियाँ आयी तो दबे मुंह मैनें अपने बारे में ये सुना कि सुबह-सुबह दिख के दिन खराब कर देती है इससे अच्छा मर ही गयी होती! कितना पैसा लगा होगा इस अधजली को बचाने में! तब मुझे लगा इस दुनिया में इंसान नहीं गिद्ध रहते हैं! आप टुट कर जुटना चाहोगे पर जुड़ने नहीं देंगे,पर आप टुटना नहीं,मजबूत बने रहना मेरे जैसे,एक दिन वक्त जरूर पलटेगा, जैसे मेरा पलटा! अब आगे बताती हुं, ऐसे में एक ऐसी संस्था जो आपकी व्यथा समझ पाये, सबल बना पाये, खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा पाये, लाॅटरी ही तो है मेरे लिये! 

इस संस्था की लड़कियों से मिली हूँ मैं, कुछ वक्त बिताये पर लगा सब अपने से हैं, किस्मत के मारे! उनके कंधे पर सर रख कर रोयी मैं, उन्होंने मेरे दर्द को महसूस किया! तब वही परिवार बेहतर था ना मेरे लिये! जिनके चेहरे बदसूरत पर दिल सुंदर थे! अच्छाई का आवरण ओढ़े छल प्रपंच के बस्ती वालों से लाख गुना अच्छे थे वो लोग, क्योंकि शायद मेरी तरह कम उम्र में जीवन कि सच्चाई से रूबरू जो हो चुके थे! बनते का सब है बिगड़ते का कोई नहीं है, इस दुनिया में! 

आज मैं हरदम के लिये जाने वाली थी वहां! चेहरे पर अलग ही चमक थी मेरे! एक आंख बह चुकी थी, पर आज आंखें भरकर काजल लगाया था मैनें! लिपस्टिक का गहरा लाल रंग अधजले होठों पर लगाया था मैनें! कान की बस एक बाली डाली थी, दूसरा कान तो था ही नहीं! वहां के लोगों के लिये मैनें बहुत प्यारा केक बनाया था, क्योंकि वहाँ के लोग यहाँ के लोगों जैसे घिन नहीं करते मेरे हाथों से खाने में! 

घरवाले सब हैरान थे आखिर ये जा कहा रही है इतना बनठन कर!फिर मैं अपने भाई के पास गयी और बोली, "अब तुम हरदम के लिये मेरे बोझ से आजाद हो मेरे भाई"! 

भाई ने घड़ियाली आंसू कि कुछ बुंदे टपकायी! पर रोकने कि कोशिश तक ना की! भाभियाँ काफी खुश थी कि पिंड छुटा इससे! मैं उन्मुक्त सी, कुरूपों कि बस्ती से चली जा रही थी, अपने सुंदर से आशियाने में आशा घर में!मुझ डुबते को तिनके का सहारा था वो! 


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