Saroj Verma

Tragedy

4  

Saroj Verma

Tragedy

मैं बेकसूर हूँ....

मैं बेकसूर हूँ....

16 mins
804


"अग्रणी! बेटा!तैयार हो गई...एकाध घंटे में बस बारात दरवाज़े पर पहुँचती ही होगी...."किशनलाल जी ने अपनी भाँजी अग्रणी से कहा.....


"जी! मामाजी! बस!चूडियाँ पहननी बाकी़ रह गई हैं,मामी जी सारे सामान के साथ रखना भूल गई थीं,इसलिए दूसरे कमरे से लाने गईं हैं",अग्रणी ने उत्तर दिया।


"बेटा! बुरा ना मानो तो एक बात कहनी थी तुमसे"! किशनलाल जी कुछ सकुचाते से बोलें।।


"जी! कहिए! मामाजी!ऐसी क्या बात है?जो आप इतना संकोच कर रहे हैं",अग्रणी ने पूछा।।


"वो तुम्हें किसी से मिलवाना था",किशनलाल जी बोले।।


"जी! कौन है वो?" अग्रणी ने बहुत ही उत्साहित होकर पूछा।।


"तुम ख़ुद ही देख लो,इतना कहकर किशनलाल जी ने किसी को कमरें मे आने को कहा...


"अरे,आप अन्दर आ जाइए...."


तभी शाँल ओढ़े एक अधेड़ उम्र की औरत ने कमरे मे प्रवेश किया.....उस औरत को देखकर अग्रणी ने आश्चर्य से पूछा___


"मामाजी!कौन हैं ये?"


"ये...ये तुम्हारी माँ हैं बेटा!" किशनलाल जी बोले।।


ये सुनकर अग्रणी भड़क उठी और बोली..."ये यहाँ क्या करने आईं हैं?ये मेरी माँ हैं,इनसे पूछिए कि इन्होंने कभी माँ होने का फ़र्ज़ निभाया हैं,ये तो मुझ दुधमुँहीं बच्ची को अकेला छोड़कर चलीं गईं थीं ना ! आपने और मामी ने मुझे पालपोसकर बड़ा किया,आप और मामी ही मेरे माँ बाप हैं,ऐसी औरत मेरी माँ कभी नहीं हो सकतीं जो अपनी अय्याशी के लिए अपनी छोटी सी बेटी को छोड़कर चली जाए।।"


"ऐसा मत कह.. बेटा! एक बार मेरी भी बात सुन ले,उस औरत ने कहा...."


"मुझे कुछ नहीं सुनना,तुम यहाँ से इसी वक्त चली जाओ",अग्रणी बोली।।


फिर उस औरत ने अग्रणी से कहा कि "सच कहा मेरा यहाँ से जाना ही ठीक है" और वो उसी समय वहाँ से रोते हुए चली गई ये देखकर किशन लाल जी चुप ना रह सके और अग्रणी से बोले___"ऐसा ना कह बेटा!इतनी कठोर मत बन,आखिर वो तुम्हारी माँ हैं,एक बार उसकी बात तो सुन ले",किशनलाल जी बोले।।


"मामा जी!आप इनकी सारी सच्चाई जानते हुए भी ऐसी बातें कर रहे हैं",अग्रणी बोली।।


 "बेटा!इनके बारें जो तुझे पता है,वो ही मुझे भी पता था,लेकिन अभी कुछ दिनों पहले ये मुझे मथुरा के एक मंदिर में कुछ विधवाओं के साथ मिलीं,मैने इन्हें पहचान लिया और कहा कि जीजी!मैं आपका किशन ,छोटा भाई,लेकिन इन्होंने मुझे पहचानने से इनकार कर दिया,

फिर मैने कहा कि जीजी!आपकी बेटी की शादी है,उसे आशीर्वाद देने नहीं आऐंगीं,तब जाकर इन्होंने मुझसे कहा___


 किशन! मुझे माफ कर दे,मुझ जैसी कलंकिनी को तुझे भाई पुकारने का कोई हक़ नहीं हैं,मैं क्षमा के योग्य नहीं हूँ लेकिन जो मैने किया वो मेरी मजबूरी थी,मैं असहाय और अकेली थी,मैं तुमलोगों की जिन्दगी मे वापस नहीं आना चाहती,मुझसे दूर रहो।।


  "नहीं जीजी! आपको उसे आशीर्वाद देने आना ही होगा",मैने कहा।।


"नहीं किशन! मैं अपवित्र हो चुकी हूँ,समाज ने मुझे अस्वीकार कर दिया है,मैं कैसे उसे आशीर्वाद देने आ सकती हूँ",जीजी बोलीं।।


तब जीजी से मैने कहा___"जीजी! मुझे मालूम है कि समाज ने तुम्हें चरित्रहीन,कलमुँही,कलंकनी और ना जाने क्या क्या कहकर पुकारा,लेकिन मुझे पता है मेरी शीतल जीजी कभी भी ऐसी नही हो सकती,आज मुझे तुम्हारे बारें में सब सुनना है,तब मैं छोटा था तो तुम्हारे लिए कुछ ना कर सका,लेकिन अब मैं तुम्हारा खोया हुआ सम्मान वापस दिलवा कर रहूँगा,तुम ने आजतक जितनी भी राखियाँ मेरी कलाई में बाँधीं हैं,मुझे उन राखियों की सौगन्ध है।।"


 तब जाके वो मुझे वृद्धाश्रम लेकर गईं जहाँ वो रहतीं थीं,वहाँ वो छोटे मोटे काम कर दिया करतीं थीं जिससे उन्हें वहाँ दो समय का खाना और रहने के लिए छत नसीब थी।।वहाँ जाकर जब मैने उनकी कहानी सुनी तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।।


"मामा जी! क्या वो सब झूठ है,जो हम लोगों ने माँ के बारें में सुन रखा है",अग्रणी ने पूछा।।


"हाँ!बेटा!वो सारीं बातें पूरी तरह से सही नहीं हैं",किशनलाल जी बोले।।


"तो क्या आप मुझे माँ के बारें में पूरी सच्चाई बताएंगे?"अग्रणी बोली।।


"तू सच में सुनना चाहती है",किशनलाल जी बोले।।


"हाँ! मामा जी!मैं उनके बारें में सब सच सच जानना चाहती हूँ,"अग्रणी बोली।।


"तो सुन अपनी माँ की सच्चाई और किशनलाल जी ने शीतल जीजी की कहानी सुनानी शुरू कि_____


 बात उन दिनों की हैं जब मैं दस साल का था और शीतल जीजी ने अभी सोलहवें साल में कदम रखा था,शीतल जीजी मेरे सगे ताऊजी की बेटीं थीं,शीतल जीजी की माँ उन्हें जन्म देते ही भगवान को प्यारी हो गई थीं,तब परिवार वालों के दबाव में आकर शीतल जीजी के पिता जी राधेश्याम जी ने दोबारा शादी कर ली,लेकिन सौतेली माँ आखिर सौतेली ही निकली,वो तरह तरह के जुल्म ढ़ाती शीतल जीजी पर यहाँ तक की शीतल जीजी की आठवीं के बाद उनकी वज़ह से पढ़ ना सकीं,शीतल जीजी पढ़ने में इतनी होशियार थीं कि अगर उन्हें आगें पढ़ने का मौका मिलता तो आगें चलकर वो जरूर डाक्टर या इन्जीनियर होतीं,सौतेली माँ किसी कारणवश माँ ना बन सकीं तो उसकी सारी भड़ास शीतल जीजी पर ही निकालतीं,कहतीं कि ये ही मनहूस है,इसलिए ऐसा हो रहा है,शीतल जीजी की माँ हमेशा बिना सिर पैर की बातें करतीं रहतीं।।


ताऊ जी और मेरे पिता जी के बीच घर का बंटवारा हो चुका था,दादा परदादाओं की पुरानी हवेली थी,इसलिए जगह की कोई कमी ना थी,हवेली के दो हिस्से होने के बावजूद भी दोनों परिवारों को बहुत बड़े बड़े हिस्से मिले थे,हवेली के पीछे ही बगीचा और गौशाला थी,जहाँ दो छोटी छोटी कोठरियाँ बनीं थी,भूसा लकड़ी और उपले रखने के लिए,दोनों ही घरों को बड़े बड़े आँगन मिल गए और साथ में छत भी।।


मेरी माँ और ताईजी के बीच बिल्कुल भी बोलचाल नहीं था,क्योंकि ताई का स्वाभाव बहुत ही खरा था,उनकी किसी से भी ना पटती थी,ताई जी जब शीतल जीजी के साथ गलत व्यवहार करतीं तो वो मेरी माँ से ना देखा जाता,इसलिए जब वो ताईजी से कुछ कहतीं तो ताई जी उनसे कहती कि तू छोटी है और मैं तेरी जेठानी हूँ,तू मुझे ज्यादा ज्ञान मत दें,ये बात माँ को अच्छी नहीं लगती,दादी के रहने पर तब भी ताई जी का व्यवहार उतना खराब ना था शीतल जीजी के साथ लेकिन दादी के जाने बाद तो जैसे उन पर चण्डी सवार हो गई थी,ना तो वो छोटो को सहतीं और ना ही बड़ो का मान रखतीं।।


 शीतल दीदी की पढ़ाई बंद हो जाने के बाद ताऊजी अक्सर उनके पढ़ने के लिए घर पर ही किताबें ले आते,वो घर का काम करतीं उसके बाद जितना भी समय मिलता तो पढ़ लिया करतीं,


इसी तरह एक रोज़ शाम का वक्त़ था और वो छत के किनारे बनी हुई दीवार के सहारे टेक लगाए बैठीं कुछ पढ़ रहीं थीं,तभी उन्होंने देखा कि छत पर एक पतंग मांझे सहित कटकर आ गिरी हैं,उन्होंने उठकर इधर-उधर देखा और सोचा कि ना जाने ये पतंग कहाँ से उड़कर आई हैं?


तभी उन्होंने छत की दीवार से नीचे झाँककर देखा तो एक बड़ा सा लड़का और उसके संग एक छोटा बच्चा था,छोटे बच्चे को तो वो पहचानती थी लेकिन बड़े लड़के को उन्होंने पहली बार देखा था,छोटा बच्चा तो बगल वाली मंजरी भाभी का बेटा उदय था लेकिन उसके साथ बड़ा लड़का ना जाने कौन था।तभी उस बड़े लड़के ने कहा___


"माफ़ कीजिए,आपकी छत पर हमलोगों की पतंग कटकर गिरी हैं,वापस कर दीजिए।।"


 शीतल जीजी ने पतंग उठाई और छत से फेंक दी___उस बड़े लड़के ने कहा,धन्यवाद जी ! और इतना कहकर दोनों वहाँ से चले गए___लेकिन उस दिन के बाद पतंग कटकर छत पर गिरने का सिलसिला शुरू हो गया__तभी एक दिन उस बड़े लड़के से शीतल ने कहा___


"आप कौन हैं? और रोज़ रोज़ आपकी पतंग हमारे घर पर आकर ही क्यो गिरती हैं? मैं सब समझती हूँ।।"


"जी! जो आप समझ रहीं हैं बिल्कुल वैसा ही हैं",वो बड़ा लड़का बोला।।


"बड़े बतमीज़ हैं जी आप!शीतल बोली...."


"जी! वैसे तो नहीं हूँ,लेकिन जबसे आपको देखा हैं तो बतमीज़ हो गया हूँ",उस लड़के ने कहा__


"चलिए,जाइए,मेरे पास फालतू बातों के लिए समय नहीं है और इतना कहकर शीतल चली गई....

           

अब वो लड़का घर की छत पर आकर किताब पढ़ते हुई शीतल को निहारने पहुंँच जाता,शीतल भी कभी कभी किताब के पीछे से कनखियों से झाँककर उसे लेती तो वो मुस्कुरा पड़ता और शीतल जल्दी से फिर किताब के पीछे अपना चेहरा छिपा लेती।।


 इधर उस लड़के ने शीतल के चचेरे भाई किशन से भी दोस्ती कर ली,अब किशन ने शीतल से उस लड़के के बारें में बातें करना शुरू कर दिया,तब शीतल को पता चला कि वो लड़का मंजरी भाभी का भाई है और उस छोटे बच्चे उदय का मामा है उसका नाम पवन है,जो कि वकालत पढ़ रहा है,उम्र में मंजरी से कम से कम पाँच साल बड़ा होगा,पवन ने धीरे-धीरे अपनी बातों और शरारतों से मंजरी का दिल जीतना शुरू कर दिया,

  मंजरी शुरू शुरू में तो उसे भाव ना देती थी लेकिन बाद में वो भी पवन के मोहपाश में फँसने लगी,करती भी क्या? वो इस दुनिया में खुद को अकेला महसूस करती थी ,अब जाके उसे एक ऐसा दोस्त मिला था जो कम से कम उसके चेहरे पर मुस्कान तो ले आता था,सालों से सौतेली माँ के ताने सुनसुन कर उसका मन शुष्क हो गया था लेकिन पवन उसके जीवन में ओस की बूँदों की तरह आया था और उसने शीतल के मन को भिगो दिया था, अब शीतल के कठोर स्वाभाव मे थोड़ी नर्मी आ गई थी।।

दोनों छत में जाते और अपने मन की बात पत्रों में लिखकर एकदूसरे को पहुँचा देते,कभी कभी दोनों बगीचे में बनी कोठरी में भी मिल लेते थे,दोनों अब एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे,शीतल अब हरगिज़ भी पवन से दूर होने का नहीं सोच सकती थी और पवन भी शीतल से ही ब्याह करना चाहता था,वो उससे कहता वकालत की पढ़ाई पूरी होते ही मैं धूमधाम से तुम्हारे साथ ही ब्याह करूँगा,अब दुनिया की कोई भी ताकत मुझे तुमसे अलग नहीं कर सकती और फिर वो कहता पवन तो शीतल हो तभी अच्छी लगती है,गर्म पवन तो किसी को भी अच्छी नहीं लगती,हमारी जोड़ी तो ऊपर वाले ने बनाई हैं शीतल-पवन , मैं तुम्हारे बिन और तुम मेरे बिन अधूरी हो और ऐसी बातें सुनकर शीतल शर्म से पवन के सीने में अपना मुँह छुपा लेती।।दोनों का प्यार ऐसे ही परवान चढ़ रहा था लेकिन कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश़्क छुपाए नहीं छिपते और एक दिन शीतल की सौतेली माँ श्यामा बगीचे की कैठरी में उपले उठाने गई,कोठरी के किवाड़ अंदर से बंद नहीं थे,केवल अटके हुए थे, श्यामा ने जैसे ही कोठरी के किवाड़ खोले तो उसने देखा कि पवन शीतल की गोद में अपना सिर रख के लेटा हुआ हैं और शीतल उसके बालों को सहला सहलाकर बातें कर रही है,अब श्यामा ने जब ये नज़ारा देखा तो वो गुस्से से उबल पड़ी,उसने पवन से पूछा___

"कौन हो जी तुम? और यहाँ क्या रहे हो?मालूम होता है कोई खिचड़ी पक रही है यहाँ?

अब पवन की सिट्टी पिट्टी गुम ,वो डर के मारे कुछ ना बोल पाया,तभी उसे बचाने के लिए शीतल बोल पड़ी___ माँ! ये मंजरी भाभी के भाईं हैं!!"

" मैने तुझसे पूछा,तो फिर तू क्यों मेरे सवाल का जवाब दे रही हैं? और तुम बेशर्मों की तरह यहाँ क्यों खड़े हो,जाते क्यों नहीं?" श्यामा गुस्से से बोली।।

 श्यामा की बात सुनकर पवन वहाँ से चला गया और शीतल उसे जाते हुए देखती रही,उस कोठरी में एक कोने में लकड़ियों का ढ़ेर पड़ा था,श्यामा ने उस ढ़ेर में से एक लकड़ी उठाई और शीतल को मारना शुरू कर दिया,शीतल ने अपना कोई भी बचाव नहीं किया और चुपचाप मार खाती रही जब श्यामा ,शीतल को मारते मारते थक गई तो खुद ही उसने मारना बंद कर दिया और उसने शीतल को उस कोठरी मे बंद करके बाहर से ताला लगा दिया,लेकिन शीतल ने कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया,दोपहर से शाम हो गई ,शीतल भूखी प्यासी ऐसे ही उस कोठरी में पड़ी रही।।

   इधर पवन ने परेशान होकर किशन से ये कह दिया कि तुम्हारी जीजी भूखी प्यासी कोठरी में बंद है जरा अपनी माँ से कहकर उसकी मदद करो,किशन को ये पता हुआ तो उसने फौरन अपनी माँ को आकर बताया,किशन की माँ से ये सब ना देखा गया और उसने अपनी जेठानी श्यामा से उसे कोठरी से बाहर निकालने को कहा....

 श्यामा बोली__

आई बड़ी! सिफ़ारिश करने वाली,पता है आज मैने उसे एक लड़के साथ रंगे हाथों पकड़ा है,आ जाने दो इसके बाप को जो इसकी बहुत तरफदारी करता है,उसे सब बताऊँगी कि तुम्हारी लड़की कैसी कैसी करतूतें करती है।।

शीतल की गलती देखकर किशन की माँ भी चुप हो गई,उस दिन के बाद श्यामा ने शीतल को घर में ही नज़रबन्द कर दिया और आनन फानन में शीतल का ब्याह भी तय कर दिया गया,इधर पवन ये ख़बर सुनकर तड़प उठा,एक दिन चिट्ठी लिखकर उसने किशन के हाथ भिजवाई कि वो शीतल से मिलना चाहता है,रात में बगीचे के पास मिलो।।

  शीतल रात को बगीचे में उससे मिलने गई और पवन ने रोते हुए शीतल को गले से लगा लिया और बोला___

"शीतल! ब्याह मतकर ,मना कर दे इस ब्याह के लिए,कुछ दिन बस मेरा इंतज़ार कर ले,पढ़ाई पूरी होते ही मैं तुझसे ब्याह कर लूँगा।।"

" मैं कुछ नहीं कर सकती पवन! अब कुछ भी मेरे बस में नहीं है,मेरा और तुम्हारा साथ बस इतना सा ही था,मैं अब अपने माँ बाप को और धोखा नहीं दे सकती" और इतना कहकर शीतल ने खुद को पवन की बाँहों से छुड़ाया और चली गई,पवन वहीं बगीचें में घुटनों के बल रोता रह गया।।

 कुछ दिनों में शीतल का ब्याह हो गया और उसकी विदाई में पवन ने बहुत आँसू बहाए,जब शीतल दोबारा ससुराल से अपने मायके लौटी तो उसे पता चला कि उसकी शादी के दो दिन बाद ही पवन ने अपने गाँव जाकर नहर मे़ कूदकर आत्महत्या कर ली थी,ये सुनकर शीतल बहुत रोई और मन ही मन उसने पवन से माफी माँगी।।

अब शीतल दोबारा ससुराल पहुँची,उसका ससुराल में अब मन लगने लगा था,चूँकि उसके पति दयाल का स्वाभाव बहुत ही अच्छा था,वो काफी खुशमिज़ाज और मिलनसार था,वो शीतल का भी बहुत ख्याल रखते था,लेकिन दयाल के माँ बाप नहीं थे,उसे उसकी बड़ी बहन चन्दा ने ही अपने घर आसरा दे रखा था,चूँकि चन्दा निःसंतान थी इसलिए वो दयाल को अपने बेटे जैसा और शीतल को बहु की तरह मानती थी।।

 दयाल एक बस कंडक्टर था,आमदनी इतनी हो जाती थी कि वो शीतल को खुश रख सकता था,इसी तरह तीन साल बीत गए लेकिन शीतल की गोद ना भरी,अब चन्दा को ये लगने लगा कि कहीं शीतल भी उसकी तरह निःसंतान ना रह जाएं लेकिन कुछ दिनों के बाद भगवान ने शीतल की सुन ली,ख़बर मिली की वो माँ बनने वाली है,इस बात को तीन महीने ही बीते थे कि एक दिन....

दयाल की बस का एक्सीडेंट हो गया,काफ़ी मुस़ाफिर हताहत हुए ,कुछ की मौत भी हो गई और मरने वाले लोगों में बस के ड्राइवर और कंडक्टर भी शामिल थे,इस खबर से शीतल बिलकुल हिल गई,उसे लगने ला था कि शायद वो दुख झेलने के लिए ही पैदा हुई है।।

 इसी तरह पति की मौत का दुख झेलते हुए शीतल ने कुछ महीनों बाद एक लड़की को जन्म दिया और प्यार से उसका नाम अग्रणी रखा लेकिन अब भी शीतल के दुखों का सिलसिला थमा नहीं था,उसे ये तो पता था कि उसका ननदोई बिहारी अच्छे चरित्र का आदमी नहीं है लेकिन उसे ये नहीं पता था कि वो उस पर भी खराब नीयत रखता है।।

   एक दिन दोपहर के समय शीतल घर में अकेली थी,वो अग्रणी को सुलाकर दोपहर का खाना बनाने जा रही थी,चन्दा बाजार गई हुई थी इतने मे बिहारी घर आया और उसने देखा कि चन्दा घर पर नहीं हैं,वो तो इसी मौके की तालाश मे था उसने शीतल को अकेली पाकर घर का दरवाजा बंद किया और पीछे से जाकर उसे दबोचने की कोशिश की लेकिन शीतल ने अपने आपको बचा लिया और वो हट गई लेकिन अपना वार खाली देख बिहारी गुस्से से लाल हो कर बोला__

आज तो चाहे जो हो जाए मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा,आज तो चन्दा भी घर पर नहीं है,तुझे भला कौन बचाएगा?

  ये सुनकर शीतल गिड़गिड़ाते हुए अपनी इज्जत की भीख माँगने लगी,लेकिन वो राक्षस कहाँ मानने वाला था,इतने मे बच्ची जाग उठी और जोर जोर से रोने लगी,तब पड़ोस में रहने वाली काकी ने अपने घर से आवाज़ दी....

 क्यों री?चन्दा! बच्ची को क्यों रूला रही है?

तभी शीतल ,बिहारी से बोली___आप ने अगर कोई हरकत की तो मैं सबको चिल्ला चिल्लाकर बुला लूँगीं॥

"अगर हिम्मत है तो चिल्ला और बुला ले सबको" ,बिहारी बोला।।

"मैं सच कह रही हूँ,कोई लिहाज नहीं करूँगी",शीतल फिर से बोली।।

लेकिन तब भी बिहारी नहीं माना,मजबूर होकर शीतल ने शोर मचाना शुरू कर दिया,शोर सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गई,तभी बिहारी दाँव खेल गया और उसने सबसे ये कहा कि___

  ये ही मेरे गले पड़ रही थी,क्या करें बेचारी जवान खून है?जवानी सम्भाली नहीं हो रही है,जवानी के जोश़ मे इसने ये भी ना देखा कि मैं इसके बाप के समान हूँ,कहने लगी हल्ला मचा देगी,मैने बहुत समझाया कि ऐसी हरकतें भले घर की लड़कियों को शोभा नहीं देतीं,लेकिन ये कहाँ मानने वाली थी,बस लिपटने लगी मुझसे,मैने मना किया तो हल्ला मचाकर आप सबको बुला लिया,कलंकनी कहीं की,कुलच्छनी कहीं की,जा कहीं चूल्लू भर पानी मे डूब मर बदन की आग ठंडी हो जाएगी।।

ये सुनकर शीतल चुप ना रह सकी और बोली___ये आदमी झूठ बोलता हैं,मैने ऐसा कुछ भी नहीं किया।।

उसी समय चन्दा भी आ गई और ये सब तमाशा देखकर वहीं करम पर हाथ धरकर बैठ गई,फिर बोली___आप सब लोग जाइए,मैं सब सम्भाल लूँगीं।।

ये देखकर शीतल बोली___"जीजी! मेरा कोई दोष नहीं है,मैने कुछ नहीं किया।।"

दोषी तो सीता भी नहीं थी,फिर भी अग्निपरीक्षा भी तो उसी ने दी थी,मुझे पता है कि तू ने ऐसा कुछ नहीं किया होगा लेकिन तू ये क्यों भूल रही हैं कि ये समाज पुरूषों का बनाया हुआ है,जो वो चाहेंगें वही होगा,चन्दा बोली।।

उस समय तो चन्दा इतना बोलकर चुप रह गई लेकिन रात को उसने शीतल से कहा कि___

मैं कब तक तुझको बचाती रहूँगी,तू ऐसा कर बच्ची को यहीं मेरे पास छोड़ कर शहर चली जा,मैं सब सम्भाल लूँगी और रातोंरात चन्दा ने शीतल को कुछ पैसे देकर शहर जाने वाली बस मे बैठा दिया,इधर बिहारी को मौका मिल गया और उसने शीतल को बदनाम करने के लिए ये कह दिया कि वो किसी साथ भाग गई है,खानदान का नाम बदनाम कर दिया।।

   और बिहारी ने शीतल के पिता से कहा कि बच्ची को ले जाएं हम उसे नहीं रखेगें,शीतल के पिताजी अग्रणी को ले आएं लेकिन सौतेली माँ ने भी पालने से मना कर दिया,किशन की माँ नन्ही सी बच्ची को ना छोड़ सकी और उसकी जिम्मेदारी उसने ले ली।।

उधर शहर मे जब तक शीतल के पास पैसे थे तो वो जी रही थी लेकिन पैसे खतम होने के बाद वो भूखों मरने लगी,एक दिन इसी तरह भूखी प्यासी वो सड़क के किनारे जा रही थी और चक्कर खाकर वहीं पर गिर पड़ी,सड़के किनारे एक छोटी सी गुमटी में लुहार अपना काम कर रहा था उसने शीतल को बेहोश देखा तो उसके मुँह पर पानी झिड़का,शीतल होश में आई तो उसने पूछा___तुम कौन हो बहन? तुम्हारे साथ में कौन है?

तब शीतल ने अपनी रामकहानी उस लोहार को सुना दी,वो लोहार बोला___

बहन! तुम यहीं रह सकती हो,मेरा हाथ बँटा दिया करो और जो रूखी सूखा पकाओगी तो तुम भी खाया करो और मुझे भी दे दिया करो,

 इस तरह शीतल उस लोहार के संग उसकी बहन बनकर रहने लगी ,लेकिन एक दिन गाँव से कोई व्यक्ति शहर आया होगा तो उसने शीतल को उस लोहार के संग देख लिया,उसने सारे गाँव में ये कह दिया कि वो किसी लोहार के साथ मुँह काला करती फिरती है,बिहारी ने सही कहा था,वो कुल्टा ही थी।।

 इस तरह बिहारी सही साबित हो गया और शीतल बदचलन ,आवारा साबित हो गई और कुछ दिनों बाद वो लौहार भी तपेदिक से मर गया और एक बार शीतल फिर अकेली हो गई,लेकिन इस बार वो अनाथालय में अनाथ बच्चों का सहारा बनकर उनकी सेवा करने लगी,वो इसके लिए सिर्फ़ दो वक्त का खाना लेती थी,उसे रहने के लिए वहीं जगह मिल गई थी,लेकिन जब उसका शरीर कमजोर होने लगा तो वो मथुरा चली गई और वहाँ उसने वृद्धाश्रम में सहारा लिया।।

फिर जब किशन की शादी हो गई तो दोनों पति पत्नी ने अग्रणी को माँ बाप की तरह सम्भाल लिया,किशन को भी शीतल की पूरी सच्चाई पता नहीं थी,उसे तो बस वो ही मालूम था जो समाज ने उसे बताया था,उसने अग्रणी को भी वही बताया।।

लेकिन जस शीतल जीजी किशन को मिली तब उसे सारी सच्चाई मालूम हुई।।

 इसलिए अग्रणी बेटा माफ़ कर दे उस अभागन को कितने कष्ट झेले हैं उसने,आज उसके सीने से लगकर उसके सभी कष्टों का निवारण कर दे,किशनलाल जी बोले।।

 ये सुनकर अग्रणी फूट फूटकर रोने लगी और किशनलाल जी से बोली___

मामा जी!मुझे माँ के पास ले चलिए।।

किशनलाल जी अग्रणी को शीतल के पास ले गए,शीतल बाहर पेड़ के पास बने चबूतरे पर बैठकर रो रही थी।अग्रणी ,फौरन जाकर शीतल से लिपटकर बोली___" मुझे माफ कर दो माँ!"

तब शीतल बोली___"मैं बेकसूर हूँ बेटा!"

" मैं जानती हूँ माँ"!अग्रणी बोली।। और दोनों माँ बेटी ऐसे ही लिपटकर रोते रहे।।

समाप्त__


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy