Saroj Verma

Crime

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Saroj Verma

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बेपनाह नफरत

बेपनाह नफरत

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रति....रति....कहाँ हो? महेश ने अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा.....

यहाँ हूँ गौशाला में, गाय को दाना पानी दे रही हूँ, रति गौशाला से बोली....

   पहले मेरी बात सुन लो , फिर अपना काम करती रहना, महेश ने कहा...

आती हूँ जरा ठहरो और इतना कहकर रति गौशाला से आँगन में आ गई और महेश से बोली...

कहो जी!क्या बात है?ऐसा भी क्या काम आन पड़ा जो मेरे बिना पूरा ना हो सकता था...

अरे!मैं ये कह रहा था कि पास वाले गाँव के जो हमारे खेत हैं, आज वहाँ का अनाज उठवाने जा रहा हूँ, लौटने में देर हो जाएगी तुम खाना खाकर सो जाना, मेरा इन्तजार मत करना, महेश बोला...

ये कौन सी नई बात है, ये तो मैं ना जाने कब से सुन रही हूँ, तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही कहाँ है? रति ने रूठते हुए कहा....

रूठ गई पगली!, महेश बोला...

नहीं!मैं तो खुशी से नाच रही हूँ, रति चिढ़ते हुए बोली...

रति की बात सुनकर महेश हँस पड़ा फिर बोला....

तुम तो जानती हो ना कि बाबूजी के जाने बाद पूरी जमींदारी मेरे सिर पर आ गई है, इसलिए मैं तुम्हें बिल्कुल समय नहीं दे पाता हूँ, अगर तुम नहीं समझोगी तो मेरी बात और कौन समझेगा?

हाँ...हाँ...सब समझती हूँ, अब तुम जाओ, मैं गुस्सा नहीं करूँगी, रति ने हँसकर कहा ....

ठीक है तो फिर मैं चलूँ, महेश बोला...

और रति ने हाँ में सिर हिलाकर अपनी अनुमति जताई और महेश मुस्कुराते हुए बाहर चला गया...

     तो ये थे रति और महेश, महेश के पिता के स्वर्ग सिधारने के बाद जमीन जायदाद की सारी जिम्मेदारी अब महेश पर आ पड़ी थी, उसका सारा दिन मुनीम जी के साथ बहीखातों की जाँच करने में ही व्यतीत हो जाता था और वो अब रति को कम समय दे पाता था, फिर भी रति बुरा ना मानती और घर-गृहस्थी के कामों में स्वयं को उलझाएं रखती, रति के मायके में भी कोई नहीं था, इसलिए गृहस्थी सम्भालते हुए वो अपने धर्म का पालन कर रही थी, सुबह शाम नदी पर स्नान के लिए जाती, मन लगाकर पूजापाठ करती,

      लेकिन सबकुछ होने के बावजूद भी रति भीतर से दुखी थी क्योंकि ब्याह के पाँच साल होने को आएं थे और अभी वो सन्तान की किलकारियाँ सुनने को तरस रही थी, उसके मन की पीड़ा महेश भी समझता था लेकिन डाक्टरी इलाज, वैद्यों और हकीमों के पास जाने के बाद भी दोनों अब भी निराश थे...

           उधर महेश का प्रतिद्वन्दी राधेश्याम शास्त्री जो अभी शहर से लौटा था, वो एक नम्बर का अय्याश इन्सान था, बाप-दादा की छोड़ी हुई दौलत , हवेली और जायदाद थी, जिनके बल पर उसने लोगों को अपना गुलाम बना रखा था , जब देखो तब शराब में डूबा रहता और महेश की तरक्की उसकी आँखों में खटकती थी, वो हमेशा उसकी काट करता रहता, महेश और राधेश्याम की ये दुश्मनी खानदानी थी, जो पीढ़ियों से चली आ रही थी, एक शाम राधेश्याम नौकाविहार के लिए निकला, शराब के बिना वो कहीं जाता नहीं था जो उस वक्त भी उसके पास मौजूद थी, क्योंकि इसके बिना राधेश्याम को नौकाविहार में आनन्द ना आता, राधेश्याम ने काफी पी ली थी और उसकी पलकें मदहोश होकर झपकने लगी थीं....

           आकाश में सुनहरा सूरज बादलों में छुपने की कोशिश कर रहा था, नदी का पानी चमचमा रहा था और नदी का विशाल प्रवाह जगमगा रहा था, नाव अब नौकाविहार करके वापस लौट रही थी, नदी के किनारे घाटों पर लोगों की चहल-पहल थी, लेकिन राधेश्याम का ध्यान उन सभी की ओर ना गया और उसका ध्यान उस ओर गया जहाँ उधर एकान्त में जब रति नदी में स्नान करने उतरी तो उसे राधेश्याम ने देख लिया, राधेश्याम को वो अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रही थी, वैसे भी रति का नियम था कि नित्य प्रातः और सायं वह नदी में स्नान के लिए घर से कुछ दूर चलकर इधर एकांत में स्नान करने आती थी, अचानक राधेश्याम ने उसे देखा तो उसे ऐसा लगा कि जैसे वो कोई स्वप्न देख रहा हो और उसने यहीं पर भूल कर दी, उसकी भूल थी कि वो रति के सौन्दर्य को देखकर बेकाबू हो गया, सामने वह अत्यन्त सुन्दर नारी, जिसके वस्त्र भीगकर उसके अंगों से चिपककर प्रायः अंगों का स्पष्टिकरण दे रहे थे, प्रयागी आँखें मीचें खड़ी सूर्य को नमस्कार कर रही थी,  ऐसा लग रहा था कि वो कोई नारी नहीं जल पर उगा गुलाबी कमल थी, राधेश्याम उसे देखकर भौचक्का सा रह गया, उसने आज तक ऐसा गोरा रंग, शरीर का कटाव और ऐसा रूप नहीं देखा था, वो उसे देखते ही भाव विभोर हो उठा, उसने खेवनहार से पूछा कि वो कौन है?

 तब खेवनहार बोला...

जी! वो तो जमींदार महेश सिंह की घरवाली है...

     अब रति स्नान करके जा रही थी, लेकिन राधेश्याम के मन में आशा का संचार हुआ, उसके हृदय की गति अब तीव्र हो चुकी थी और श्वास थम चुकी थी, उसकी आँखों में अब केवल रति ही समाई थी, जिसे पाने के ख्वाब अब राधेश्याम ने अपनी आँखों में सजा लिए थे, अब राधेश्याम की आँखो की नींद और दिल का चैन रति लूटकर ले जा रही थी और राधेश्याम ये सब होने दे रहा था....

    अब रोजाना ही राधेश्याम वहाँ आने लगा जहाँ रति स्नान करने आती थी और फिर एक दिन राधेश्याम ने आखिरकार रति से अपने मन की बात कह ही दी, रति स्नान करके वापस जा रही थी तो राधेश्याम उसके नजदीक गया और उससे बोला....

जरा सुनिए...

जी!कौन हैं आप और क्या कहना चाहते हैं?रति ने पूछा...

जी!मैं राधेश्याम और मैं आपसे प्रेम करने लगा हूँ, राधेश्याम बोला।।

राधेश्याम ने इतना कहा तो अब रति के लिए असहनीय था और उसने एक जोर का झापड़ राधेश्याम के गाल पर धरते हुए कहा.....

लाज नहीं आती तुम्हें, उम्र में मुझसे छोटे होकर ऐसी बातें करते हो, मैं किसी की सुहागिन हूँ, कोई बाजारू औरत नहीं, खबरदार!जो आज के बाद मेरा रास्ता रोका तो मुझसे बुरा कोई ना होगा,

   इतनी बेरहम मत बनिए, कुछ तो ख्याल कीजिए मेरी भावनाओं का, अगर आपने मेरा प्रेम स्वीकार नहीं किया तो मैं सच कहता हूँ मर जाऊँगा, राधेश्याम बोला।।

  अपनी बकवास बंद करो और जाकर किसी अच्छी लड़की से ब्याह करके उससे प्यार करो, मेरा पीछा छोड़ो, रति बोली।।

मैं अब किसी और से प्रेम नहीं कर पाऊँगा, क्योंकि मैनें अपना सारा प्यार आप पर लुटा दिया है, राधेश्याम बोला।।

फिर से वही बकवास, रति बोली।।

ये बकवास नहीं प्रेम है और एक दिन मैं ये साबित करके रहूँगा, तब आपको मेरे प्यार पर भरोसा करना ही होगा, राधेश्याम बोला।।

ये इस जन्म में तो नामुमकिन है, रति बोली।।

मैं मुमकिन करके दिखाऊँगा, इतना कहकर राधेश्याम वहाँ से चला गया और रति उसे जाते हुए देखती रहीं....

    रति ने ये बात महेश को नहीं बताई क्योंकि वो सोच रही थी कि ना जाने ये सुनकर उसके पति की क्या प्रतिक्रिया हो और उधर राधेश्याम की हालत दिनबदिन खराब होती जा रही थी, रति के प्रेम ना स्वीकार करने के बाद वो शराब पीकर कहीं भी पड़ा रहता, कभी तो नाली में गिर जाता तो कभी रात को किसी सड़क पर पड़ा मिलता, ये बात महेश को पता चली तो उसने रति से कहा कि मेरे दुश्मन राधेश्याम को किसी से मुहब्बत हो गई है और वो उसके ग़म में पागल हो गया है, अगर मुझे पता चल जाए कि वो लड़की कौन है तो उससे बदला लेने में आसानी होगी, तब रति उस बात को छुपा ना सकी और उसने महेश को सब बता दिया, अब महेश ने रति से कहा कि वो राधेश्याम से प्यार का झूठा नाटक करें, लेकिन रति ना मानी तब महेश ने उसे अपनी कसम देकर उसे राजी कर लिया....

       रति की समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपने पति की बात माने या नहीं, क्योंकि उसकी अन्तरात्मा इस बात को मानने के लिए कतई राजी नहीं थी, वो मन ही मन सोच रही थी कि कैसे कोई पति अपनी पत्नी से परपुरूष से प्रेम का अभिनय करने को कह सकता है, उसे अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे और वो सोच रही थी कि वो अपने प्रश्नों के उत्तर किससे जाकर पूछें, महेश ने तो मन में ठान ही लिया था राधेश्याम शास्त्री को नीचा दिखाने का, वो इसके लिए किसी भी सीमा को लाँघने को तैयार था....

        उसने रति से अपनी कसम देने के अलावा ये भी कहा कि मैंने आज तक तुमसे कभी कुछ नहीं माँगा, हमारी वंश बेल को भी बढ़ाने वाला अभी तक ना आया लेकिन मैंने तब भी तुमसे कभी कोई शिकायत नहीं की , क्या औरों के घर की किलकारियाँ सुनकर मेरा भी जी नहीं करता कि मेरे घर में किलकारी गूँजे, मैं तुमसे प्यार करता हूँ इसलिए तुम्हें दुख देने के लिए कभी कुछ नहीं कहता, तुम्हारी खुशी में ही अपनी खुशी समझता हूँ तो क्या तुम मेरी खुशी के लिए मेरी ये बात नहीं मान सकती, अब महेश ने जो पासा फेंका था उसमें रति की मात निश्चित थी, उसने आज युधिष्ठिर का रूप धरकर रति को दाँव पर लगा दिया था, ये परवाह किए बिना कि जिसके सामने वो रति को द्रौपदी बनाकर हार रहा है वो राधेश्याम दुशासन से भी बदतर है और अगर रति फँस गई तो उसकी लाज बचाने यहाँ कान्हा भी नहीं आने वाले....

           रति महेश की भावनात्मक बातों के भँवरजाल में फँस गई, जिससे उसका बाहर निकलना नामुमकिन था, पहले तो रति कुछ सोच नहीं पा रही थी लेकिन अब उसके डर और संकोच दोनों ही लुप्त थे, क्योंकि जब सुहाग ही अपनी सुहागन का बलिदान देना चाहें तो फिर कुछ शेष बचा ही नहीं था, आखिरकार रति ने राधे श्याम का प्रेम स्वीकार कर लिया, दोनों तरफ से पत्रो का लेन देन होने लगा.....

        ये पत्र रति महेश को पढ़वाती , फिर महेश अपनी योजना की सफलता पर मंद मंद मुस्काता, धीरे-धीरे दोनों ओर से कई कई पत्र, प्रश्न और उत्तर के रूप में, हाथों में बदलने लगे, फिर भी आग कोयले में ढकी रही, धुआँ ना उठा, अगर धुआँ उठता तो जमाने को खबर लग जाती, रति का स्नान नदी के घाट पर सुबह शाम अधिक देर तक होने लगा,

          राधेश्याम उसे अनेकों बार वहांँ आकर अकेले मिलकर चला जाता, लेकिन फिर एक दिन....

वह एक मद-भरी सांँझ थी, रति और राधे नदी के घाट की सीढ़ियों पर बैठे, दृश्यों का आनंद उठा रहे थे, राधे की आंँखों में अजीब सा सुरूर था, रति के गुलाब समान होंठों की मुस्कुराहट उसे बेचैन कर गई, वो स्वयं को उसके रूप के सामने पराजित समझ रहा था, नदी पर डूबता सूरज, चिड़ियों का चहचहाना, ठंडी बयार और पानी में उठती हिलोरें राधे को इतना बेचैन कर गई कि वो अपने मन में उठती हिलोरों को दबा ना सका और भूलवश रति के होठों का प्रगाढ़ चुम्बन ले बैठा, रति स्वयं को छुड़ाती रही लेकिन राधेश्याम ना माना,

      राधे को तब होश आया जब उस की वासना शान्त हुई, रति ने आव देखा ना ताव और जोर का थप्पड़ राधेश्याम के गालों पर धरकर बोली.....

निर्लज्ज!पापी!तू मुझसे प्रेम करता है, अगर तेरा प्रेम सच्चा होता तो तुझमें धीरज होता लेकिन तू जिसे प्रेम कहता है वो प्रेम नहीं वासना है और इस वासना में तू अन्धा हो चुका है, आज के बाद मुझसे मिलने का कभी भी प्रयास मत करना, मैं तुझ जैसे पापी से मिलना नहीं चाहती और इतना कहकर रति अपने आँसू पोंछते हुए वहाँ से चली आईं....

             रात हो चुकी थी, उस दिन चाँदनी रात थी इसलिए चारोँ ओर चांदनी फैली हुई थी, लेकिन रति के मन में तो अँधेरा छाया हुआ था, रति ने रसोई बनाकर रख दी थी लेकिन खाया नहीं था उसका मन व्यथित था फिर वो सारे दीपक बुझाकर एकांत में बैठ गई, तभी किसी ने धीरे से द्वार के किवाड़ो की साँकल खटखटाई, रति ने पहले लालटेन जलाई फिर काँपते हाथ से किवाड़ खोले, वो महेश था, महेश बाहर से खाकर आया था, इसलिए कपड़े बदलकर पलंग पर लेट गया और थोड़ी ही देर में सो भी गया लेकिन रति देर तक जागती रही, उसे अपने होठों पर राधेश्याम का स्पर्श अभी भी महसूस हो रहा था, उसे स्वयं से घिन आ रही थी, परपुरुष का स्पर्श वो भी अपने अधरो पर ... छीः... छीः.... ये तो मेरे लिए डूब मरने वाली बात है....

     दिन बीत रहे थे और अब रति घाट पर स्नान करने ना जाती, उधर रति की सूरत ना देख पाने के कारण राधेश्याम व्याकुल हो उठा और एक रात पिस्तौल अपनी कमर में छुपाकर रति के मकान पर जा पहुँचा, पहले मकान के किवाड़ पर लगी साँकल खड़काई और खुद को कम्बल में छुपा लिया, जब रति ने किवाड़ खोले तो वो धड़धड़ाता हुआ भीतर घुस गया, उसने कुछ भी कहने सुनने की भी आवश्यकता नहीं समझी,

       रति ने देखा तो चिल्ला उठी, तब राधेश्याम ने अपने चेहरे से कम्बल हटाया, लालटेन की रौशनी में रति ने उसे देखा और वह पीछे हट गई, राधेश्याम उस समय उसे बाघ की तरह घूर रहा था, उसने रति की ओर पिस्तौल तानकर कहा,

‘‘शोर मत मचाना वरना गोली मार दूंँगा,

रति ये देखकर मुस्कराई और बोली.....

अब तुम इस हद तक गिर चुके हो,

हाँ!गिर चुका हूँ इस हद तक, मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम मेरी अवहेलना करती हो, राधे बोला।।

सच में मुझे प्यार करते हो तो यूँ चोरी छुपे क्यों यहाँ आएं हो? मुझे बदनाम करने, रति ने पूछा।।

नहीं!मैं तुम्हें कभी बदनाम नहीं कर सकता रति!मैं तो तुमसे क्षमा माँगने आया था, तुम मुझे प्यार करो या ना करो मगर मुझे क्षमा कर दो, मैं तुम्हारे बिना जीने की कोशिश करूँगा, अगर तुम्हारे बिना जी नहीं पाया तो मर जाऊँगा लेकिन तुम्हारी नफरत लेकर ना तो मैं जी पाऊँगा और ना ही मर पाऊँगा, बस मुझे एक बार क्षमा कर दो, मेरा प्रेम तुम्हारे लिए पवित्र है, जैसा मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूँ, वैसा आज तक मैनें किसी भी स्त्री के लिए महसूस नहीं किया और फिर राधेश्याम घुटनों के बल बैठकर फूट फूटकर रोने लगा और उसी क्षण उसके हाथ से पिस्तौल जमीन पर गिर गई,

             अब रति भी कठोर ना बन पाई वो भी राधेश्याम का व्यवहार देखकर पिघल गई और उसने अपने दोनों हाथ फैला दिए, राधेश्याम फौरन ही उसके अंकपाश में समा गया, रति ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर कहा.....

    जाओ मैनें तुम्हें माँफ किया, तुम्हारी आँखों में मुझे पाश्चाताप नजर आया, तुम्हारे ये आँसू झूठे नहीं हैं, इसलिए मुझे तुम पर दया आ गई, अब तुम जाओ, रात बहुत हो चुकी है मेरे पति के आने का वक्त हो गया है,

रति की बात सुनकर राधेश्याम चला गया, लेकिन अपनी पिस्तौल वहीं भूल गया, जब महेश घर लौटा तो उसने पिस्तौल को अपने घर में पाकर रति से पूछा....

ये कहाँ से आई?

   फिर रति ने महेश से कहा कि राधेश्याम मुझसे माफी माँगने आया था और वादा करके गया है कि वो मुझसे फिर कभी नहीं मिलेगा और अपनी पिस्तौल भी यहीं भूल गया, महेश ने रति की बात पर भरोसा कर लिया, इधर रति भी अपने पति से झूठ बोलकर पछता रही थी, लेकिन सच बोलती भी क्या कि राधेश्याम ने उसके होंठों का चुम्बन लिया था और वो उसी की माफी माँगने आया था, इन्हीं उलझनों में उलझी रति सोने का प्रयास कर रही थी...

   और इधर राधेश्याम ने मन में सोचा कि उसने मुझे माफ कर दिया, वो बहुत दयालु है, अब मैं उससे मिलने का कभी प्रयास नहीं करूँगा क्योंकि मुझे लगने लगा है कि मैं उससे सच्चा प्रेम करने लगा हूँ और सच्चे प्रेम को पाने की आवश्यकता नहीं होती वो तो बस महसूस किया जा सकता है, आज से शराब भी बंद, मैं आज से एक अच्छा इन्सान बनने की कोशिश करूँगा,

         अब उस बात को भी दो ढ़ाई महीने बीत चुके थे जब राधेश्याम रति के घर आया था और अपनी पिस्तौल भूल गया था लेकिन तभी एक रोज़ शाम के वक्त रति चक्कर खाकर गिर पड़ी, महेश ने फौरन वैद्य जी को बुलवाया, वैद्य जी आएं और उन्होंने रति की नाड़ी जाँची, नाड़ी जाँचकर वें बोलें.....

    मेरा अन्दाजा है कि ये शायद माँ बनने वालीं हैं लेकिन एक बार दाईमाँ को बुलवाकर इनकी जाँच करवा लीजिये, उनकी जाँच पर ही ये तय होगा कि मैं सही हूँ या नहीं....

   दाई माँ को भी बुलवाया गया, दाईमाँ ने रति की जाँच की और उन्होंने कहा कि.....

 वैद्य जी का अन्दाजा बिल्कुल सही है, बहुरानी उम्मीद से है, बधाई हो !

ये सुनकर दोनों पति पत्नी की खुशी का ठिकाना ना रहा, खुशी के मारें दोनों की आँखें भर आईं, उस रात महेश ने घर में घी के दीप जलाएं, रति ने महेश के मनपसंद पकवान तले और फिर खाने के बाद दोनों पति-पत्नी आपस में अपनी खुशियाँ बाँटने लगें, तब महेश बोला...

 मैं बहुत खुश हूँ, तुम्हारा कितना इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा ना हुआ और आज बिना इलाज के ही ये चमत्कार हो गया,

  हाँ!मुझे डाँक्टर कहा करते थे कि तुम में कमी नहीं है, हो सकता है तुम्हारे पति में कमी हो , उन्हें एक बार इलाज के लिए लाओ, लेकिन मैंने किसी डाँक्टर की बात नहीं सुनी और आज देखो ऊपरवाले ने मेरी झोली खुशियों से भर दी, रति बोली....

तुमने डाक्टर की बात क्यों नहीं मानी? महेश ने पूछा...

मुझे तुम पर पूरा यकीन था और फिर रति महेश के अंकपाश में समा गई, सुबह दोनों ने इस खुशी के पल को भगवान के साथ बाँटने का सोचा और वे दोनों सुबह सुबह मंदिर पहुँचे, लेकिन मंदिर की सीढ़ियों पर जब महेश ने राधेश्याम को देखा तो उसका माथा ठनका, वो उसे देखकर कुछ परेशान सा हो गया और उसे उस रात की बात याद आ गई जिस रात राधेश्याम उसके घर आया था और अपनी पिस्तौल भूल गया था, उसके दिमाग़ में वो बात घर कर गई कि उस रात राधेश्याम आया था तो कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बच्चा......क्योंकि रति रात को बता रही थी कि उससे डाक्टरों ने कहा था कि उसके अंदर कोई कमी नहीं है अपने पति को भी इलाज करवाने के लिए ले आओ, कश्मकश़ में उलझा महेश मंदिर के भीतर तो चला गया लेकिन उसका मन पूजा करने में नहीं लगा, उसका दिमाग़ घूम रहा था और ना जाने कितनी शंकाओं ने उसे आकर घेर लिया था, पूजा करने के बाद दोनों घर पहुँच़े, तब रति ने उससे कहा....

देखा ना राधेश्याम कितना बदल गया है वो मंदिर की सीढ़ियों में बैठा था, लोग कहते हैं कि वो अब वहीं रहने लगा है, उसने अब अपनी हवेली के सारे ऐश-ओ-आराम भी छोड़ दिए हैं....

तुम बहुत तरफदारी कर रही हो राधेश्याम की, महेश ने ताना मारते हुए कहा...

कहना क्या चाह रहे हो?साफ साफ कहो ना!रति बोली।।

यही कि डाक्टरों ने तुमसे कहा था कि तुम में कोई कमी नहीं है, तुम इलाज के लिए अपने पति को लेकर आओ, इतने सालों से कोशिश करने के बावजूद हम दोनों माँ बाप नहीं बन पाएं लेकिन उस रात राधेश्याम आया था और...., कहते कहते महेश रूक गया.....

और....क्या?......कहते कहते रूक क्यों गए?...आगे बोलो....और क्या.... रति चीखी।।

तुम सुनना ही चाहती हो तो सुनो, यही कि ये बच्चा मेरा नहीं राधेश्याम का है, महेश बोला...

क्या कहा तुमने?..ये बच्चा तुम्हारा नहीं है...राधेश्याम का है, ये कहते तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं आई, रति चीखी...

अब ज्यादा सती सावित्री बनने का नाटक मत करो, मुझे पता है कि ये बच्चा उसी का है, महेश ने एक बार फिर विष उगला......

 ठीक है तुम्हें ऐसा लगता है तो मैं ये प्रमाणित करके रहूँगी कि ये बच्चा तुम्हारा है और जिस दिन तुम्हें सच्चाई पता चलेगी ना तो तुम कहीं के ना रहोगें, रति बोली.....

      फिर महेश कुछ नहीं बोला और बाहर चला गया, रति भी दीवार की टेक लगाकर रोती रही, आधी रात हो चली थी, महेश घर लौटा , किवाड़ खोलकर वो भीतर गया, लेकिन रति घर पर नहीं थी, उसने पूरा घर छान मारा लेकिन उसे रति कहीं ना मिली, एकाएक लालटेन की रौशनी में उसकी नज़र उसके पुराने लोहे के सन्दूक पर गई, जिसमें वो अपना जरूरी सामान रखता था, उसने देखा कि वो खुला पड़ा था, ये देखकर वो एक पल को सन्न रह गया क्योंकि उसकी चाबी तो रति के पास ही रहती थी,

     एकाएक महेश को कुछ ध्यान आया और वो उसमें उसे ढूँढने लगा, बहुत खोजने पर वो वस्तु उसे नहीं मिली और जिसे वो खोज रहा था वो राधेश्याम की पिस्तौल थी जो वो उस रात छोड़ गया था, जो अब वहाँ से नदारद थी, अचानक महेश के मस्तिष्क में ये विचार कौंधा कि कहीं रति तो उस पिस्तौल को नहीं ले गई , ऐसा तो नहीं वो मुझसे रूठकर कुछ ऐसा वैसा कर दें....बुरे ख्यालों ने महेश को घेर लिया...

     पूरा गाँव खामोश सा नींद के आग़ोश में खोया था और रति अव्यवस्थित सूती धोती के सीधे पल्लू में खुले सिर , खुले बाल और हाथ में पिस्तौल लेकर बस बेसुध सी चली जा रही थी, एकाएक वो मंदिर की सीढ़ियों के पास रूकीं और उसने किसी को पुकारा, वो राधेश्याम था वो उससे बोली...

राधेश्याम!सो गए या जागते हो,

राधेश्याम ने अपने चेहरे से चादर हठाते हुए और आँखें मिचमिचाते हुए कहा.....

कौन?रति है क्या?इतनी रात को तुम यहाँ क्या कर रही हो?

कुछ प्रमाणित करने आई थी, रति बोली...

क्या...?राधेश्याम ने पूछा...

और फिर रति ने पिस्तौल राधेश्याम की ओर तानते हुए उसके सीने में दो गोलियाँ चला दीं, राधेश्याम सीढियों पर अचेत होकर गिर पड़ा , फिर रति ने जरा भी देर ना करते हुए अपने माथे पर पिस्तौल रखकर गोली चला ली, वो भी यूँ ही अचेत होकर गिर पड़ी, गोलियों की आवाज़ सुनकर कुछ ही देर में वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई, जब तक महेश वहाँ पहुँचा तो बहुत देर हो चुकी थी, महेश की बेपनाह नफरत ने आज रति को ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था.....

समाप्त......



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