Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Ranjeeta Dhyani

Crime

5  

Ranjeeta Dhyani

Crime

मर्डर मिस्ट्री

मर्डर मिस्ट्री

18 mins
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सर्दियों की वो घनघोर अंधेरी रात, चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था.. धुंध अंधेरे के साथ और बढ़ती जा रही थी। ठिठुरन ऐसी कि बाहर निकलने के नाम से कोई भी सिहर जाए शायद इसलिए सड़क के किनारे छोटी नदी के तट पर बनी झोपड़ियों के बाहर भी कोई नहीं था। वैसे तो यहां अक्सर मजदूर आग जलाकर बैठे रहते थे।थोड़ी देर बाद पगडंडी के पास जाकर पेट्रोलिंग के लिए अाई एक मोटरसाइकिल रुकती है। इंस्पेक्टर विजय आज खुद पेट्रोलिंग पर हैं। वो मोटरसाइकिल चला रहे हेड कांस्टेबल प्रवीण से मोटसाइकिल रोकने का कारण पूछते हैं तो वो बताते हैं कि -"सर, ठंड ज्यादा होने की वजह से हाथ सुन्न हो गए हैं।.(कुछ सोचकर)...आप रुकिए सर, मैं मजदूरों के घर जाकर उनसे मशाल ले आता हूं। आगे का रास्ता बहुत लंबा है और खतरनाक भी, घने पेड़ों की छाया में हेडलाइट की रोशनी से भी काम नहीं चलता और जंगली जानवरों से कब टक्कर हो जाए उसका कोई पता नहीं।" थोड़ी देर बाद प्रवीण हाथ में दो मशाल लिए वापस आए और अब इंस्पेक्टर विजय मोटरसाइकिल स्टार्ट कर हेड कांस्टेबल प्रवीण को पीछे की सीट पर बैठने का इशारा करते हैं। कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें सामने एक पुल नज़र आया। इंस्पेक्टर विजय ने मोटरसाइकिल को उसी दिशा में आगे मोड़ लिया एकाएक इंस्पेक्टर विजय को वॉकी टॉकी द्वारा कंट्रोल रूम से खबर मिलती है कि शहर के नुक्कड़ पर जंगल वाले रास्ते में एक एक्सीडेंट हुआ है। इंस्पेक्टर विजय बताए गए घटनास्थल की ओर रुख करते हैं। लगभग 40 मिनट तय करने के बाद कहीं से उन्हें रोने की आवाज़ आई। वो आवाज़ की तरफ बढ़ने लगे। दोनों पुलिसकर्मी घटनास्थल पर पहुंचते हैं। सामने का मंजर बहुत ही खतरनाक था। एक युवक खून से लथपथ मृत पड़ा था और दो लड़के उसके पास बेबस बैठे रो रहे थे। इंस्पेक्टर विजय ने घटना का जायजा लिया तो उन्हें मालूम हुआ कि वे तीनों दोस्त हैं। आज बहुत साल बाद कॉलेज के दोस्तों के साथ पार्टी कर वो अपने घर जा रहे थे। करन बाइक चला रहा था क्योंकि उसने शराब नहीं पी थी उसके पीछे सुधीर और सबसे पीछे मोहित बैठा था। इन दोनों ने थोड़ी शराब पी रखी थी, तीनों आराम से जा रहे थे लेकिन अचानक सुधीर एक ओर झुक गया जिससे बाइक का बैलेंस भी बिगड़ गया। बड़ी मुश्किल से संभाला था करन ने खुद को। उन्हें लगा शायद सुधीर को अटैक आया है उन्होंने उसे नीचे लिटाया पर.... इतने में एक तेज़ रफ़्तार से आई सफ़ेद रंग की गाड़ी उसे कुचल कर चली गई। मोहित और करन को भी काफी गंभीर चोटें अाई थी। इंस्पेक्टर विजय ने उनसे गाड़ी के बारे में बताने के लिए कहा पर उन्होंने जवाब दिया कि सुधीर की हालत और फिर उस एक्सीडेंट से वो इतने ज्यादा घबरा गए कि उन्हें गाड़ी और उसके ड्राइवर के बारे में कुछ पता नहीं है। इतने में पुलिस की गाड़ी एंबुलेंस के साथ वहां पहुंच जाती है। इं. विजय दूसरी टीम को केस के बारे में बताते हैं और डेड बॉडी को पोस्टमार्टम और घायलों को अस्पताल में इलाज के लिए उनके साथ भेज देते हैं। उधर हेड कांस्टेबल प्रवीण इं.विजय को बताते हैं कि "जिस गाड़ी से एक्सिडेंट हुआ था वो उन्हें मिल गई है जिसे नहर के पास एक गहरी खाई में जान - बूझकर गिराया गया था, क्योंकि कार के दरवाज़े बंद थे और ड्राइवर भी उसमें नहीं था। दोनों पुलिसकर्मी काफी देर तक सुराग ढूंढने में लगे रहते हैं और वहां से काम खत्म कर थाने पहुंचते है| दूसरी ओर एंबुलेंस के साथ रवाना हुई टीम को पता चलता है कि सुधीर के परिवार में उसकी पत्नी और एक डेढ़ - दो साल की बच्ची है, यह टीम अस्पताल का काम निपटाकर सुधीर के घर पहुंचती है जो अस्पताल के पास ही रियान अपार्टमेंट के पीछे वाली गली में है लेकिन वहां घर में ताला लगा मिलता है। आस - पड़ोस में पूछने पर पता चलता है कि सुधीर हफ्ते भर से काम के सिलसिले में बाहर गया है और उसकी पत्नी की हालत भी ठीक नहीं है।चार दिन पहले पड़ोसियों ने ही उसकी पत्नी की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उसे अस्पताल में भर्ती करवाया और सुधीर को इन्फॉर्म कर दिया था, बच्ची को उसी दिन उसके नाना अपने साथ ले गए थे। डॉक्टर ने तबीयत बिगड़ने का कारण एनीमिया और मेंटली स्ट्रेस बताया।वैसे दोनों(सुधीर और अनीता) बहुत हेल्पफुल और मिलनसार हैं। पड़ोसियों से जानकारी लेने के बाद इं. गरिमा अनीता का फोन नंबर पूछती है और फिर उनकी गाड़ी पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ जाती है पर रास्ता बन्द होने के कारण उन्हें दूसरा रास्ता बदलना पड़ता है। इस रास्ते में कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा हो रखी थी पूछने पर पता चला कि एक आदमी नशे की हालत में बेहोश पड़ा है।भीड़ में से कोई उसे नहीं जानता था तब पुलिस उसे उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाती है। दूसरी ओर पुलिस स्टेशन पहुंचने पर पूरी घटना एक नया मोड़ लेती है। सुधीर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक उसकी मौत जहरीली शराब पीने से हुई। पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है यह जानते हुए भी वह दोस्तों के साथ पार्टी कर रहा था। उन्होने अनीता के मायके जाकर बात की तो पता चला कि अब तक तो उन्हे सब ठीक ही लगता था... अनीता ने कभी किसी परेशानी का जिक्र भी नहीं किया लेकिन अनीता की हालत और सुधीर की मौत ने उन्हें भी सदमे में डाल दिया है वे भी यही सोच रहे है कि आखिर हंसती - खेलती जिंदगी इतना भयानक मोड़ कैसे ले सकती है। पुलिस के सामने ये केस एक गंभीर पहेली बन गया था । हालांकि अनीता का बयान अभी बाकी है पर फिर भी.....क्या ये वाकई मात्र एक गैर - इरादतन एक्सिडेंट है, दोस्तों के बीच कोई रंजिश या फिर पति - पत्नी के आपसी तालमेल में आई कड़वाहट का परिणाम।

इं. गरिमा इस केस की छानबीन में लगी है और हर जगह से सबूत जुटाने की कोशिश कर रही है पर हैरानी इस बात की है कि पार्टी वाली जगह से उठाए शराब के सैंपल में जहर नहीं मिला और ना ही पुलिस के डाटा में उसके दोस्तों का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड मिला। अनीता की हालत में सुधार होने के बाद जब उससे पूछताछ की तो पता चला कि सुधीर वैसे तो बहुत ही शांत और केयरिंग हस्बैंड था लेकिन पिछले दो - तीन महीनों से उसे नशे की लत लग गई थी जिससे दोनों के बीच झगड़ा भी होता था और खास बात यह थी कि कई बार वह मंदिर वाली कोठी - २ बड़बड़ाता रहता था , हां ये सच था कि अनीता ने कभी ये बात किसी को नहीं बताई क्योंकि इससे समाज में उनकी इंसल्ट होती....जिसका एक कारण यह भी था कि नशा उतरने पर सुधीर को भी अपनी गलती का पछतावा होता था वो भी अपनी इस आदत से परेशान था। इस बार तो वो खुद अनीता से प्रॉमिस करके गया था कि वापस आने पर अपना इलाज़ किसी अच्छे डॉक्टर से करवाएगा। इसके अलावा अनीता और उसके परिवार की कॉल डिटेल से भी कोई संदिग्ध क्लू नहीं मिला,और कोई है भी नहीं उसके परिवार में अपने मां - बाप की इकलौती बेटी है वो... दो महीने बीत गए इस केस को लेकिन इसकी गुत्थी हर पड़ाव पर उलझती ही जा रही थी, खैर तहकीकात अभी जारी है.. इं. विजय आज सिविल ड्रेस में है और बहुत दिन बाद एक बार फिर हेड कांस्टेबल प्रवीण के साथ पेट्रोलिंग पर है, आज दोनों गाड़ी में हैं और मौसम भी साफ़ है, ढलता सूरज नदी के पानी में बड़ी ही मनोरम छटा बिखेर रहा था, पर ये क्या? नदी किनारे पगडंडी और सड़क के दोराहे पर ही हेड कांस्टेबल प्रवीण ने गाड़ी रोक दी। इं. विजय अपने साथी प्रवीण से पूछते है- "अरे भैया ! अभी क्यों रूके, मशाल तो झोपड़ियों के पास रखी होती है और वो तो काफ़ी दूर हैं यहां से...(प्रवीण कहीं खोए से लगते है तो थोड़ा रुककर फिर कहते है) अच्छा! आपको कहीं वो डेंजरस नाइट तो याद नहीं अाई जब मैं भी आपके साथ था।" इसके जवाब में प्रवीण कहते है- "नहीं सर, ऐसा नहीं है उसके बाद आपकी ड्यूटी शहर में थी पर मेरा पांच - छ: बार उसी केस के सिलसिले में इधर आना हुआ था लेकिन इतने दिनों में यहां कोई हलचल नहीं है उधर झोपडिय़ों में भी कुछ ही मजदूर रह गए हैं लेकिन अभी पानी की कुछ अजीब आवाज़ सुनी आपने? शायद कुछ पेटियां -सी गिरने की.... बस उसी में डूबा था...। शाम लगभग ढल चुकी है, अंधेरा होने लगा था जो नदी के पास ज्यादा था।इतने में नदी किनारे बहुत तेज लाइट चमकने लगी जो दूसरे छोर की ओर बढ़ रही थी। बीच में टैम्पो चलने की आवाज़ -सी अाई पर कुछ दिखाई नहीं दिया इसलिए इं. विजय और हेड कांस्टेबल प्रवीण जरूरी सामान साथ लेने के बाद गाड़ी लॉक करके पगडंडी से उतरकर बड़े पत्थर के पास झाड़ी के पीछे छिप गए (यह जगह छिपने के लिए अच्छी थी क्योंकि एक तो यहां से चारों तरफ आसानी से देखा जा सकता था और ऊपर रास्ते और नदी के किनारे की आवाजें थोड़ा ध्यान से सुनने पर साफ सुनाई देती और दूसरा अगर पगडंडी से अगर कोई ऊपर भी आयेगा तो उसकी नज़र उन पर नहीं पड़ेगी) दूरबीन से वो लाइट्स साफ दिखाई देने लगी कुछ मजदूर पैक्ड पेटियों को अपने पुराने कपड़ो पर बांधकर एक किनारे रख रहे थे कंधे पर पेटियां और हाथ में मशालें लिए वहां से निकल रहे थे थोड़ी देर में फिर सब तरफ शांति छा जाती है यह नज़ारा देखकर हेड कांस्टेबल प्रवीण इं. विजय से कहते है सर यहां बहुत बड़ी गड़बड़ लगती है। ये मजदूर जो सामान लेकर जा रहे हैं, पिछले महीने इनके बारे में मुझे रघु ने बताया कि ये लोग काम न मिलने की वजह से हमेशा के लिए यहां से अपने गांव जा चुके है और उसे भी अगर कुछ दिनों में मजदूरी का काम नहीं मिला तो वो भी अपने गांव चला जाएगा। इसके अलावा अगर ये अपना सामान ले जा रहे हैं तब भी ...सड़क से शहर आसानी से पहुंचा जा सकता है तो इतना रिस्की रास्ता कोई क्यों चुनेगा? वो भी रात के वक्त...(इं.विजय जो प्रवीण की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे अचानक हाथ से उन्हें चुप होने का इशारा करते हैं कोई शायद ऊपर की ओर आ रहा है) दो मजदूर आपस में बातें करते हुए ऊपर की तरफ आ रहे थे जिनमें से एक कह रहा था कि "वो साहब कितने अजीब थे न जिन्होंने नई गाड़ी को खाई में फिंकवा दिया और फिर हमें पैसे दिए और तो और बढ़िया खाना खिलाकर शहर में रुकने का बंदोबस्त भी किया.. सुना है वह हमारे ठेकेदार के बेटे जग्गी से मिलने आ रहा है पर आज मैं उसका कोई काम नहीं करूंगा, मुझे तो पूरा विश्वास है वो कोई दो नंबरी धंधा करता है, पिछली बार देखा नहीं जब हम शहर से आए थे तब प्रवीण साहब के साथ कितने पुलिसवाले यहां के चक्कर लगा रहे थे।"दूसरा मजदूर हामी भरते हुए कहता है "हां भाई तुम्हारी बात में दम तो होयो, मेरू भी यो मानना है कि एक रोटी कम खाल्यो पर अपना ईमान मत बेच्यो, पर.... कदी जग्गी को पता चला हमारे फैसले के बारे में तो तब के होगा?" इस पर पहला मजदूर कहता है "अरे वो यहां थोड़े है शहर गयो अपने मालिक को मिलने... हां इक खास बात बताएं इस बार पहले वाले किसी भी आदमी को उसने काम पर नहीं आने दिया और किसी से फोन पर कह रहा था कि सारा काम हर हाल में आज ही पूरा होना चाहिए क्योंकि आज इं.विजय शहर से बाहर है वरना उससे कोई बच निकले तो गनीमत है, हर गली नुक्कड़ के रास्ते जो पता है उसे।" इं.विजय और हेड कांस्टेबल प्रवीण झाड़ी के पीछे छिपकर उनकी सारी बातों को सुनते है और रिकॉर्डर भी ऑन रखते हैं, फिर मजदूरों के पास आते ही वो भी पगडंडी पर आ जाते है, प्रवीण उन्हें देखते ही पहचान लेते है ,ये तो मशालें बनाने वाले रामधन और रामपाल है। वे दोनों प्रवीण को देखते ही ठिठक जाते है और फिर बात बदलते हुए प्रवीण से कहते है साहब जितनी जरूरत हो उतनी मशाल ले लो, झोपड़िया के छप्पर के नीचे ही तो रखी है, जहां हमेशा रहती है। प्रवीण कहते है हां.. ले लेंगे पर पहले बताओ जिस गाड़ी की वो बात कर रहे थे वो कब और कहां गिराई गई थी, दोनों मजदूर डरते हुए- "लेकिन साहब हम फंस गए तो.... ।" इं.विजय उनसे कहते हैं कि घबराने की जरूरत नहीं है, कुछ नहीं होगा अब सच बताओ। तब वे बताते हैं -"जी,14 दिसम्बर को...जग्गी भईया ने उन्हें रस्से से बंधी गाड़ी को नीचे फेंकने को कहा था वो तो पहले उसे जलाना चाहते थे पर अचानक पुलिस के सायरन की आवाज़ सुनाई दी तो.... फिर सामने की ओर इशारा करके कहते हैं साहब! उन दो पहाड़ों के बीच जो गहरी खाई है उसमें, सफ़ेद रंग की गाड़ी थी, नई ही लग रही थी। प्रवीण उनसे जब मालिक के बारे में पूछते है तो उनका बताया हुलिया सुधीर से मैच नहीं कर रहा था जबकि आरटीओ ऑफिस के रिकॉर्ड के हिसाब से गाड़ी सुधीर के नाम पर थी। इं.विजय उनसे पूछते हैं-" क्या उन्हें गाड़ी के मालिक में कुछ खास लगा?" इसके बारे में मजदूर बताते हैं कि- "वह बहुत पियक्कड़ है और अजीब भी अपनी गाड़ी गिराने की हमें पार्टी दी।" इसके बाद इं.विजय उनसे जग्गी और उसके काम के बारे में पूछते हैं तो पता चलता कि बिजनेस के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता क्योंकि वह बहुत गुस्सैल है इसलिए उन्हें उससे डर लगता है, वे सिर्फ इतना जानते हैं कि आज रात 9 बजे जग्गी भैया शहर जाएंगे वो मंदिर वाली कोठी है कोई । इसके अलावा उन्हें कुछ मालूम नहीं है। इं. विजय उन्हें जाने की इजाज़त दे देते हैं साथ ही ये बातें किसी को भी बताने को मना करते हैं और हेड कांस्टेबल प्रवीण को पुलिस स्टेशन जाकर टीम गठन कर मंदिर वाली कोठी पर पहुंचने को कहते हैं.. खुद वो जग्गी पर नज़र रखने के लिए वहीं रुक जाते हैं। उधर इं.गरिमा जिनकी आज नाइट ड्यूटी है उनके पास पक्की खबर है कि आज रात मंदिर वाली कोठी में 11 बजे लैंड माफिया के लोग आने वाले है। उन्होंने ग्राउंड स्टाफ को 11:15 तक शहर के सारे गेट बंद करने को कह दिया है और पेट्रोलिंग टीम भी हाई अलर्ट पर है। रात के ठीक 9 बजे जग्गी घर से निकल कर शहर को रवाना होता है उसके साथ उसका जिगरी यार रघु भी है, रास्ते में उन्हें एक भिखारी मिलता है जो उनसे मदद मांगता है तो दोनों ये सोचकर बिठा लेते है कि ड्रग्स के धंधे में काम आएगाऔर फिर चल देते है मंदिर वाली कोठी की ओर। तीनों वहां पहुंचते है जग्गी इस पांच मंजिला कोठी का गेट खोलता है और फिर भिखारी को बाहर बैठने को बोलता है पर फिर रघु के कहने पर उसे भी साथ ले चलता है धीरे - धीरे बाकी के लोग भी पहुंच गए। कुल 12 लोग हैं, सभी भिखारी के वहां होने पर ऑब्जेक्शन करते हैं पर जग्गी कहता है कि इससे घबराने की जरूरत नहीं है फिर सब मान जाते है और शुरु होती है। बाहर प्रवीण की टीम बहुत ही मुस्तैदी से इस कोठी पर नज़र रखे हुए है पर अभी तक सब शांत है लेकिन परेशानी की बात ये है कि इं. विजय का फोन नहीं लग रहा। रात के 11 बज गए इं.गरिमा अपनी टीम के साथ शहर का मुआयना करने निकली है आज अकेले निकलना ख़तरे से खाली न था। अंदर मीटिंग खत्म होने के बाद पार्टी का प्रोग्राम है। सबके लिए एक नामी होटल खाना और ड्रिंक्स लेकर एक आदमी पहुंचता है, वह दरवाज़े से अंदर पहुंचा देता है और खुद बाहर टहलने लगता है। अंदर सब हाथ मुंह धोकर आते है, सिर्फ भिखारी ज़मीन पर चादर बिछा कर सो चुका है क्योंकि उसकी तबीयत ढीली है। जग्गी और रघु सबको खाना और ड्रिंक सर्व करते है फिर रघु भी खाना खाता है और जग्गी को भी खाने को कहता है, पर जग्गी यह कहकर मना कर देता है कि खाना थोड़ा है और इतने से दोनों में से किसी का पेट नहीं भरेगा इसलिए वह सारा खा ले। खाना खाने के बाद सभी ताश खेलने बैठ जाते है और धीरे - २ सोने लगते है। जग्गी को बहुत भूख लगी है पर वो इन लोगों को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता इसलिए सोचता है बाहर गाड़ी में रखे बिस्किट लेकर खा लेगा.. पर जैसे ही बाहर की ओर बढ़ता है, उसका बायांपैर जमीन पर बिछी कालीन पर उलझ जाता है और जितने में वह संभलता इतने में कहीं से गोली आकर उसके पैर पर लग जाती है। बाहर गोली की आवाज़ सुनकर हेड कांस्टेबल प्रवीण अपनी टीम को अंदर एंटर करके पोजिशन लेने को कहते हैं पर अंदर एक-२ करके कई गेट है। कुछ ही मिनटों के अंतराल में इं. गरिमा भी अपनी टीम के साथ वहां पहुंच जाती है क्योंकि उन्हे खबर मिली है कि जिस आदमी के साथ सुधीर को अक़्सर मंदिर वाली कोठी पर देखा गया वो आज फिर वहां आया है वहां पहुंचने पर अंदर से आवाज़ आती है- "जग्गी और रघु तुम ये करोगे वरना तुम्हारा भी वहीं हाल करूंगा जो सुधीर का हुआ।" एक लंबे अट्टहास के बाद फिर आवाज़ आती है- "मैं जानता हूं तुमने मेरा साथ दिया पर तुम्हें बताना भूल गया कि तुम जैसों को मैं रोज़ खरीदता हूं लेकिन इस बार प्रतिक्रिया में भी आवाज़ अाई कि अगर तू हम जैसों को रोज़ खरीदता है तो हम भी गुलाम नहीं है काम का पैसा लेते हैं.. रघु देख क्या रहा है? टेबल पर मेरी पिस्टल है उठा उसे और बता दे इसको कि हम धंधे में धोखा बर्दाश्त नहीं करते" फिर दो गोलियों की आवाज़ आती है पर दोनों एक जगह से दो अलग दिशाओं में चली है। हेड कांस्टेबल प्रवीण दरवाज़ा तोड़कर अंदर जाते है वहां तीन लोग जमीन पर पड़े हैं, तीनों को गोली लगी है जग्गी और रघु को तो प्रवीण पहचान गए कोई कसर नहीं छोड़ी थी इन्होंने पुलिस को गुमराह करने में दोनों के पैर में गोली लगी है सोफों पर कोई 8-9 लोग हैं पर इतना सब होने पर इनकी नींद नहीं खुली और तीसरे आदमी को हाथ और पैर पर गोली लगी है तब तक इं.गरिमा की टीम भी वहां पहुंच जाती है। हेड कांस्टेबल प्रवीण की टीम वहां पहले से एक्टिव थी और तीनों आरोपियों को उन्होंने काबू कर रखा था। इं. गरिमा सुधांशु को पहचान जाती है। ये वही शख्स है जिसे सुधीर के घर से वापस आते हुए रास्ते में उन्होंने बेहोश पड़ा देखा था। इं.गरिमा की भौहें तन गई थी उन्होंने कड़क होकर सुधांशु से असलियत बताने को कहा। लेकिन सुधांशु कुछ नहीं बोला।अब इं.गरिमा की दहाड़ती आवाज़ उसके कानों को चीरने लगी -"सच सच बताओ तुमने क्यों मारा सुधीर को??क्या दुश्मनी थी तुम्हारी उससे??बताओ जल्दी। वरना सच बुलवाने का हमें अपना तरीका आजमाना पड़ेगा।(उनकी आवाज़ में उग्रता थी) सुधांशु की चुप्पी टूट जाती है। वो बताता है कि-" उसका ड्रग्स सप्लाई करने का काम है।इसके लिए वो पैसेवाले लोगों को अपना शिकार बनाता था...उनसे दोस्ती करता था और उन्हें दोस्ती के जाल में फंसाकर उनका विश्वास जीत लेता था।इसीलिए उन्हें पता भी नहीं चलता था कि कब उन्हें ड्रग्स की लत लग गई और जो ज्यादा होशियार बनने की कोशिश करता था उसे मैं अपने रास्ते से हटा देता था।सुधीर भी उनमें से एक था।मैंने उसके बारे में सारी डिटेल निकाली थी तो मुझे पता चला वो बहुत अमीर है और करोड़ों की प्रॉपर्टी उसके पास है..फिर क्या था मैंने उससे दोस्ती कर ली और धीरे- धीरे उसे ड्रग्स की लत लगाता गया..जब वो पूरी तरह मेरे जाल में फंस गया तब मैं उसकी प्रॉपर्टी अपने नाम करवाने लगा जिसके बारे में उसे पता चलता इससे पहले मैंने उसे दुनिया से हमेशा के लिए भेज दिया।उस दिन मैं भी उसके साथ उसके दोस्तों की पार्टी में गया था।जहां मैंने उसके साथ शराब पी और फिर मैं पार्टी से निकल गया था,जिस ग्लास में मैंने उसे जहर मिलाकर शराब पिलाई उस डिस्पोजल को भी मैं अपने साथ ले आया था।जब वो पार्टी कर के घर जा रहे थे तो मैंने जग्गी को उनके पीछे लगा दिया। रात में जब जग्गी ने मुझे फोन पर बताया कि सुधीर की तबीयत खराब है और उसे सड़क पर लिटाया हुआ है तो मैंने जग्गी को उसके ऊपर गाड़ी चलाने को कह दिया।वही गाड़ी जो उसी की थी और उसने मुझे चलाने के लिए दे रखी थी।जग्गी और रघु ने मेरा काम एक ही झटके में पूरा कर दिया और गाड़ी को खाई में गिरा दिया। अरे!ऑनर किलिंग के बादशाह हैं ये... आज भी पूरे 9 लोगों को मेरे इशारे पर मौत दे दी (सामने पड़े लोगों की ओर अंगुली करता है फिर जोर से हंसने लगता है)....पर पुलिस ने आकर सारा काम खराब कर दिया (गुस्से में हाथ टेबल पर मारता है)इसलिए मैंने ज्यादा पी ली और मैं कहां पड़ा हूं मुझे खुद होश नहीं था।"

"हां.. और पुलिस को चकमा देकर भी तुम्हें होश नहीं आया।पुलिस ने तब तुम्हें सिर्फ एक शराबी समझकर छोड़ दिया था पर फिर भी तुम्हें अक्ल नहीं अाई..., तुम्हें तो होश शायद फांसी के फंदे पर लटक कर ही आएगा वैसे भी तुम्हारे काले करतूतों का घड़ा इतना भर चुका है कि तुम्हारा फांसी के फंदे से बचना नामुमकिन है।शर्म आनी चाहिए तुम्हें गैरकानूनी धंधे और पैसों के नशे में तुमने कितने घर बर्बाद कर दिए और तुम्हारे साथ जग्गी और रघु ने भी ज्यादा रईस बनने के चक्कर में अपने जीवन में कांटों की सेज सजा दी।तुम जैसे दरिंदों के लिए तो फांसी की सज़ा भी कम है। गिरफ़्तार कर लो इनको।" (इं.गरिमा अपनी टीम को सुधांशु जग्गी और रघु को अरेस्ट करने का आदेश देती है)।वहां पड़ी डेड बॉडीज को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है। अब सिर्फ वहां पर इं.गरिमा और हेड कांस्टेबल प्रवीण बचे हैं जो सबूत उठा रहे हैं। कुछ देर की शांति के बाद प्रवीण कहते हैं-" मैडम मुझे लगा आज कई केस सुलझ जाएंगे पर ये तो और उलझ गया।" इं.गरिमा कहती है-" हां लेकिन इस बार खास बात यह है कि तीनों गोलियां एक आदमी ने चलाई है, मुझे पूरा विश्वास है वो कोई शार्प शूटर है क्योंकि इन तीनों को गोली नहीं लगी है सिर्फ छू कर गई है पर ऐसा करने के पीछे उसका क्या मकसद हो सकता है?" तभी वो दोनों सोफे को हटाते हैं तो उसके नीचे लेटा भिखारी बाहर आता है प्रवीण उससे पूछते हैं-तुम कौन हो? यहां कैसे आए, बता सकते हो यहां क्या हुआ था भिखारी खड़ा होते हुए कहता है अरे भैया! सब्र करो सब बताते हैं। तो सुनो.. हमें यहां जग्गी और रघु इस शर्त पर लाए थे कि जो वो बोलेंगे मै वो सारे काम चुपचाप करूं इसके बदले वो मेरे खाने का इंतजाम करवा देंगे, हम उन्हें जंगल में मिले, अब जो लोग सोए थे वे सारे ड्रग्स की दुनिया के सौदागर थे और लोगों की जिंदगी नरक बनाने के ठेकेदार भी, उन्हें रघु और जग्गी ने खाने में जहर देकर मार दिया इसका पता मुझे तब चला जब मैंने सोफे के नीचे रखे नमक जैसे जहर को देखा इसके अलावा बाकी तीन को तो आप जान ही गए हैं, रही बात आज की मीटिंग और खबरों की जो आप तक पहुंची उनका संचालन ड्रग्स की दुनिया के बेताज डमी बादशाह महाकाल उर्फ एसीपी सिन्हा कर रहे थे। अच्छा, अब अपना परिचय देते हैं- मुझे(भिखारी के वेश में खड़ा व्यक्ति) इं.विजय कहते हैं इस वक़्त फ्रॉम क्राइम ब्रांच, और वे तीनों कहीं कानून को अपने हाथ में लेकर एक -दूसरे को न मार दें इसलिए मुझे गोलियां चलानी पड़ी फिर प्रवीण की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहते हैं अब समझ गए भैया जी। इं.गरिमा और हेड कांस्टेबल प्रवीण के चेहरे पर भी यह सुनकर हल्की सी मुस्कुराहट आ जाती है दोनों इं.विजय को सैल्यूट करते हैं और उन्हीं के अंदाज़ में कहते हैं आज मान गए भैया आपकी जिंदादिली और काबिलियत दोनों को सच कहें हम भी नहीं पहचान पाए आपको।(ठहाका गूंज उठता है)



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