HARSH TRIPATHI

Crime Drama Thriller

3.7  

HARSH TRIPATHI

Crime Drama Thriller

श्री कृष्ण-अर्जुन – अंतिम भाग

श्री कृष्ण-अर्जुन – अंतिम भाग

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कुछ दिनों के बाद दोपहर करीब 12 बजे नंदन छाया के साथ पाठक जी के घर पहुँचे। माँ-बेटी घर पर ही थी, अरुणा अपने कमरे में सो रही थी। छाया को साथ मे देख कर गीतिका गुस्से से पागल हो गयी थी लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। ये चारों लोग ड्राइंग रूम के बगल में जो कमरा था, उसी में बैठे थे जब रजनी देवी ने सीधे नंदन से ही बात की "नंदन, आपके बारे में ऐसा नहीं सोचा था हमने...क्यों किया आपने ऐसा ?"

नंदन चुप थे, उनको कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। गीतिका ने ऊंचे स्वर में गुस्से में कहा "बीवी-बच्चों वाला आदमी ऐसा करता है क्या ?" फिर वह रोने लगी "ऐसी क्या कमी रह गयी थी नंदन मुझमें ?" नंदन अभी भी चुप थे।

रजनी देवी ने छाया की ओर देखा फिर नंदन से कठोर स्वर में कहा "देखिये, इस औरत की तो बात ही अलग है.....कलंक है ये औरत ज़ात के नाम पर....कोई चरित्र, कोई पवित्रता ही नहीं है इसकी। वेश्या से भी बदतर हो चुकी है ये, जिसका कोई मान-सम्मान ही नहीं है। वेश्या का तो फिर भी होता होगा। मगर आप से तो ये उम्मीद नहीं थी नंदन।"

अभी तक चुप बैठी छाया, रजनी देवी की बात के बीच मे ही गुस्से से फुफकार उठी "।अच्छा !।तो अब आप मुझे बताएंगी चरित्र ? बात करेंगी मुझसे आप पवित्रता के बारे में ? इतनी हिम्मत है क्या रजनी देवी आप में ?"

रजनी देवी बिल्कुल चुप थी।

"बोलिये ? क्या आप मुझसे चरित्र के बारे में बात करेंगी ? मैं बताऊँ आपका चरित्र ?”

रजनी देवी की आँखें अब झुकने लग गयी थीं, और चेहरा पीला पड़ने लगा था। वह किसी बुत की तरह खामोश थी। गीतिका को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसने नंदन की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सिगरेट सुलगा रहे थे।

फिर छाया ने गुस्से से कहा “..अपने ही पति को खा जाने वाली महिला का चरित्र कैसा होगा ?..और अब वो मुझसे चरित्र की बात कर रही है ?”

ये सुनते ही गीतिका का तो मानो खून ही जम गया। उसको विश्वास ही नहीं हो रहा था, जो कुछ वह अपने कानों से सुन रही थी और अपनी आँखों से देख रही थी। उसने बड़ी मुश्किल से कहा “मम्मी...क्या....क्या कह रही है छाया ?..क्या मतलब है इसका ?” लेकिन रजनी देवी सिर झुकाये और अपनी नज़रें ज़मीन पर गड़ाये बैठी थीं। उनकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सिर उठाकर कमरे में बैठे बाकी तीनों की तरफ देख सकें। उनकी चुप्पी इस बात का समर्थन ही कर रही थी।

छाया ने कहा “जी हाँ एम.एल.ए. मैडम यही सच है। आपके पूज्य पिताजी की हत्या का षड्यंत्र मेरे पति विजय या किसी और ने नहीं बल्कि आपकी इन्ही पूज्य माताजी ने, अपने उस नालायक सुपुत्र वैभव के साथ मिलकर रचा था।”

रोते हुए गीतिका ने छाया और नंदन की ओर देखा। छाया काफी गुस्से मे थी लेकिन नंदन मुस्कुराते हुए रजनी देवी की तरफ देख रहे थे। गीतिका ने रजनी देवी से पूछा “कुछ तो बोलिये ! !।प्लीज़ कुछ तो बोलिय...।क्यों किया आपने ऐसा ?”

“क्योंकि आप इनका खून नहीं हैं। आप गंदा खून हैं एम.एल.ए. मैडम ....अनाथ आश्रम से उठाकर लायी गईं थीं आप। वैभव इनका अपना खून था, इस खानदान का चिराग था, भले ही वो नालायक और निकम्मा था। पाठक जी हमेशा आप की ही तरफदारी करते थे। पार्टी मीटिंग में भी विधायकी का टिकट आपको और पार्टी की मुखिया भी आप ही को बनाया गया था.....इस से इन माँ-बेटे ने सोचा कि पाठक जी के ज़िंदा रहते वैभव का रास्ता कभी नहीं खुल सकता. इसलिये पाठक जी को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचा गया और इन सब में इन माँ-बेटे का पूरा साथ दिया पाठक जी के सबसे ज़्यादा विश्वासपात्र व्यक्ति और मेरे ससुर जी यानि कृष्णा बाबू ने।” ये सुन कर गीतिका ने अपना सिर पीट किया।

रजनी देवी ज़मीन की ओर देखते हुए, दाँत पीसते हुए बोली “किसने बताया तुम्हे ये सब ?”

“और कौन ?आपका वही नालयक, कमीना लड़का वैभव....होटल वगैरह में तो काफी जाता था न वो ?....कभी पूछा नहीं आपने कि किस से मिलने जाता है वह ?” छाया व्यंग्यात्मक लहज़े में बोली। नंदन अभी भी हँस रहे थे।

रोते हुए, किसी तरह से गीतिका ने पूछा “लेकिन कृष्णा बाबू भी तो मारे गये थे न उस हत्याकाण्ड मे ?”

“इस बारे में मैं ज़्यादा नहीं जानती मैडम, लेकिन इतना तो पक्का है कि पाठक जी की हत्या इन्होने ही करवायी थी।और अब ये मुझसे चरित्र और आचरण की बातें कर रही हैं ? रजनी देवी, अपने गिरेबान में झांकियेगा कभी फुरसत मे।”

रजनी देवी चुप-चाप सिर नीचे किये बैठी थी।

गीतिका ने पूछा “आखिर मेरा परिवार बरबाद क्यों कर रही हो तुम ?....मैंने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा ?”

नंदन ने अब बीच में ही टोका “उसे क्या कह रही हो गीतिका ?....कुछ नहीं किया उसने....असल में मुझे प्रॉब्लेम थी तुमसे और तुम्हारी इस घटिया सोच से”

“मतलब ?”

“मतलब तुम्हारी ये सोशल सर्विस का फितूरमुझे बिल्कुल पसंद नहीं आता है। किसान, गरीब या मजदूर से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। वो गरीब हैं, ये उनके कर्मों का फल है, और ये मेरा सिरदर्द नहीं है।लेकिन तुम्हारे इस काम की वजह से मुझे सिरदर्द ज़रूर होता है। पार्टी के काम, अपने पापा के काम, हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दुनिया भर के केसेज़, और भी पता नहीं क्या-क्या ?....वो भी उन भूखे-नंगों के लिये जो कभी अपनी ज़िंदगी सुधारना नहीं चाहते, इसीलिये अब तक वो वैसे ही हैं, और आगे भी वैसे ही रहेंगे। मुझे उम्मीद थी कि तुम्हारे असर की वजह से रसूलपुर निंदौरा का प्रॉब्लेम सुलझ जायेगा, 300 करोड़ की डील हमें मिल जायेगी, लेकिन तुम ऐसा कुछ नहीं कर पायी।क्योंकि तुम ऐसा कुछ करना भी नहीं चाहती थी। अपने पति का साथ देने की जगह तुम उस विजय और उन दो कौड़ी के किसानों का साथ दे रही थी। मेरी ,तुम्हारी सोच में बहुत फर्क है गीतिका, बेहतर है कि हम अलग ही हो जायें......फिर छाया इज़ माई टाइप ऑफ गर्ल.....वी नो ईच अदर सो वेलफ्रॉम ऑवर लखनऊ यूनिवर्सिटी डेज़।”

फिर छाया ने हँसते हुए कहा “आपने कुछ नहीं बिगाड़ा मैडम…दरअसल आप और मेरे पति जैसे लोग कभी कुछ कर भी नहीं सकते। क्योंकि आप दोनो ही भिखारी हैं। भिखारियों की हालत वही होती है, जो आज आप दोनों की है। जो इंसान अपने घर-परिवार के हितों के बजाय दूसरों के हितों की चिंता करता है, उसका यही हश्र होता है।”

फिर कमरे मे सन्नाटा हो गया, जिसे केवल गीतिका की सिसकियाँ ही तोड़ रही थीं।

कुछ मिनटों के बाद छाया और नंदन जाने के लिये खड़े हुए, और माँ-बेटी से छाया ने कहा “जो बात करने के लिये बुलाया था हमें आपने, वे सारी बातें हो चुकी हैंअब हम चलते हैं।” यह कह कर वे दोनों ही कमरे से तेज़ी से निकल गये। अब कमरे में बस दो महिलाएं ही बैठी थीं।


गीतिका ने रोना बंद किया और अपने आँसू पोछते हुए बोली “अब तो बता ही दीजिये आप, कि सच्चाई क्या है ?मै सच कहती हूँ, मै कहीं कुछ भी नहीं कहूंगी।लेकिन एक बेगुनाह इंसान वहाँ जेल की सलाखों की पीछे है....बेगुनाह इंसान की बद्दुआ बहुत लगती है मम्मी.....ईश्वर सब देखता है. अपने जीवन का सबसे बड़ा पाप तो आप कर ही चुकी हैं, अब अगर अपने जीवन में कुछ अच्छे कर्म शामिल कर लेंगी तो बहुत अच्छा होगा. बताईये मम्मी।”

रजनी देवी ने अपन चेहरा ऊपर उठा कर गीतिका की ओर देखा। “थोड़ा पानी देना गीतिका” उन्होने धीरे से कहा। गीतिका उठकर रसोई से पानी ले आयी। पानी पीते हुए रजनी देवी ने कहा “मुझे माफ कर देना बेटी।जब तक मुझे मेरे गुनाह समझ में आये तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैं बहुत दूर निकल चुकी थी। अपनी औलाद के मोह में और तुमसे नफरत करते-करते मैंने कब इंसानियत की सीमा लाँघ दी, मुझे एहसास ही नहीं हुआ।”


फिर उन्होने बताना शुरु किया “पार्टी मीटिंग मे क्या हुआ था, ये सब समाचारों और अखबारों से पता चल चुका था। पार्टी मीटिंग में किसी ने वैभव का नाम तक नहीं लिया। खुद पाठक जी ने भी तुम्हे पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष और विधायकी का टिकट देने का ऐलान किया और यह बात भी कही कि अगले लोकसभा चुनाव मे शहर केंद्रीय सीट पर तुम दावेदारी करोगी। मुझे लगा कि हमारे परिवार और वैभव का सूरज अस्त होने वाला है और खुद पाठक जी ही नहीं चाहते थे कि वैभव आगे बढ़े। तुमसे मेरी नफरत इतनी ज़्यादा थी गीतिका कि नफरत में अंधी होकर मैंने कब पाठक जी को मारने तक की बात सोच ली, मुझे पता भी नहीं चला।”

रजनी देवी ने बोलना जारी रखा “लेकिन मुझे और वैभव को पता था कि बिना कृष्णा बाबू के सहयोग के यह काम नहीं हो सकता था। इसलिये हमने उन्हे भी शामिल करने का निर्णय लिया। लेकिन वह हमारी मदद क्यों करेंगें ?।उनका क्या स्वार्थ ? तब हमने तय किया कि हम उनके आगे उनके बेटे विजय को सांसद बनाने और वैभव को विधायक बनाने का प्रस्ताव रखेंगे। उस दिन जब पाठक जी को एक गोष्ठी के लिये के.पी. कॉलेज जाना था, तब इसी बात पर चर्चा करने के लिये हमनें कृष्णा बाबू को घर बुलाया था। इसी कमरे में उस दिन हम 3 लोग बैठे थे। चाय पीते हुए मैंने कृष्णा बाबू से कहा “क्यों कृष्णा बाबू ? पार्टी मीटिंग में विजय के लिये कुछ भी नहीं ? न विधायकी, न सांसदी, न पार्टी उपाध्यक्ष का पद ?  ऐसी क्या बात हुई ?  जबकि पाठक जी तो विजय पर जान छिड़कते हैं ?”

“अब क्या बोल सकते हैं भाभी जी…हो सकता है पाठक जी ने पार्टी और विजय के हित में कुछ सोचा हो आज तक उनका कोई भी कदम कभी गलत साबित नहीं हुआ है, इसी से उम्मीद है कि भविष्य में विजय के लिये ज़रूर अच्छा होगा कुछ।”

वैभव बोला “भविष्य में सिर्फ एक इंसान के लिये ही अच्छा होगा सब कुछ....और वो है गीतिका, जिस से हम केवल नफरत करते हैं. पता नहीं किसका खून है, और हमारा हक़ छीन रही हैऔर पापा भी उसको सब कुछ दिये जा रहे हैं।”

रजनी देवी ने कहा “वैसे कृष्णा बाबूआपको पता है इस गीतिका की हक़ीक़त ?”

“भाभी जी, अनाथ थी यह किसी अनाथाश्रम में, जहाँ से पाठक जी इसे लाये थे लेकिन भाभी जी, चाहे जिसका भी खून हो।इसके अंदर गुण तो सारे वही हैं जो पाठक जी की अपनी बेटी में होते। पार्टी के नेता, कार्यकर्ता भी गीतिका को बहुत पसंद करते हैं।”

“लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कृष्णा बाबू कि सब कुछ उस पर लुटाये चले जाये...आखिर अपना खून, अपना होता है. क्या वैभव का पाठक जी कि विरासत पर हक़ नहीं ?” रजनी देवी ने गुस्से में कहा।

कृष्णा बाबू चुप थे, वे जानते थे कि सच सुनने की हिम्मत दोनो मे से किसी की नहीं है।

“और कृष्णा बाबू, विजय ? आखिर विजय भी तो अपना बच्चा है न ? और विजय तो अपनी पार्टी छोड़िये, इस समय किसी भी पार्टी के किसी भी युवा नेता से हज़ार गुना बेहतर है...उसका नाम आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया ? वह तो सांसद होने लायक है कृष्णा बाबू।”

कृष्णा बाबू सुन रहे थे। उनकी दुखती रग पर हाथ रखा था रजनी देवी ने।

“और कृष्णा बाबू, ये गीतिका की सच्चाई शायद आप नहीं जानते। आप किरन कुमारी को जानते हैं ?”

“किरण कुमारी ?हाँ, हाँ वह पाठक जी की सहायक थी काफी पहले, जाति की हरिजन थी शायद अगर मुझे याद है तो”

“जी हाँ, वही।ये गीतिका उसी दलित जाति की किरण कुमारी की बेटी है, जिसके पिता कोई और नहीं, आपके प्रिय पाठक जी हैं। यह गीतिका पाठक जी की अवैध संतान है, इसलिये वह सब कुछ उसी पर लुटाये जा रहे हैं।और मैं कलेजे पर पत्थर रख कर यह तमाशा देखने को मजबूर हूँ पिछले लगभग 30 साल से” रजनी देवी ने गुस्से मे कहा।

कृष्णा बाबू को घोर आश्चर्य हुआ “लेकिन पाठक जी ने मुझे तो कुछ और बताया था।”

“झूठ बोला था उन्होने आप से और अब ये दलित की बेटी हम ब्राह्मणों पर हुक़्म चलायेगी ये सोच कर मेरा दिल फटा जा रहा है। वह भी विजय जैसे युवा नेता पर जिसके आगे सभी नेता पानी भरने लायक हैं। आप सोचिये, विजय को अब तक विधायक भी नहीं बनाया है, सोचिये सांसद कब बनायेंगें ? और बनायेंगे भी या नहीं, कौन जानता है ?  बुरा मत मानियेगा कृष्णा बाबू लेकिन पाठक जी ने कभी आपको सांसद नहीं बनने दिया, जबकि वह आपके 35 साल पुराने दोस्त हैं, और आपने उनके हर काम मे उनका भरपूर साथ दिया है फिर भी……।और अब वही चाल वह आपके बेटे विजय के साथ खेल रहे हैं, उस गीतिका के लिये। वैभव को तो लोग बुरा कहते हैं, मुझे अच्छी तरह पता है...लोग गालियाँ भी देते हैंलेकिन विजय ?...वह तो लाखों में एक है, उसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों ?असल में आप और विजय एक जैसे हैं, किसी पद के लिये कभी पाठक जी या किसी से भी कहेंगे ही नहीं, और आपकी इसी शराफत का लाभ बार-बार उठाया जाता रहा है।”

कृष्णा बाबू के चेहरे पर क्षोभ साफ दिख रहा था।

“अगर आप चाहें, तो विजय के लिये मैं आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ” रजनी देवी ने पासा फेंका।

“क्या ?”

“कृष्णा बाबू, अगर पाठक जी ही न हो तो ?”

“मतलब ?”

रजनी देवी ने कहा “मतलब यह कि यदि कुछ ऐसा हो कि पाठक जी को इस पूरे समीकरण से हटा दिया जाये तो गीतिका बिल्कुल अकेली पड़ जायेगी और कुछ नहीं कर सकेगी।फिर आपके बेटे विजय के लिये सांसदी और पार्टी अध्यक्ष पद और मेरे बेटे वैभव के लिये विधायकी का रास्ता खुल सकता हैदोनो बच्चों को उनका वाजिब हक़ मिल जायेगा जो अभी दूर की कौड़ी लग रहा है। विजय के साथ पूरा न्याय होगा कृष्णा बाबू”

“लेकिन कैसे सम्भव है यह ?” कृष्णा बाबू ने पूछा।

“आप चाह लें तो सब सम्भव है” वैभव ने मुस्कुरा कर कहा।

“कैसे ?।मैं क्या कर सकता हूँ”

वैभव ने अपनी माँ की ओर देख कर फिर कृष्णा बाबू से कहा “अगर किसी सड़क दुर्घटना में पाठक जी की जान चली जाये तो ?”

“क्या ?” कृष्णा बाबू को सहसा विश्वास नहीं हुआ। “क्या कहा आपने वैभव ?भाभी जी, क्या बात कर रहा है ये लड़का ?” कृष्णा बाबू ने हतप्रभ होकर रजनी देवी से कहा।

“वह ठीक ही कह रहा है कृष्णा बाबूजब पूरी क़ाबिलियत के बाद भी अपना अधिकार नहीं मिलता है, बल्कि किसी अयोग्य व्यक्ति को दिया जाने लगे, तो उसे छीनना ही पड़ता है।पाठक जी के रहते विजय और वैभव को कभी उनका अधिकार नहीं मिल पायेगा।”


कृष्णा बाबू के पास शब्द नहीं थे। रजनी देवी ने कहा “मैं जानती हूँ कि आप क्या सोच रहे होंगे। आप यही सोच रहे होंगे न कि कैसी पत्नी और बेटे हैं पाठक जी के ?लेकिन कृष्णा बाबू, अब से 10 साल बाद की सोचिये, हमारा बेहद काबिल बेटा विजय सांसद नहीं होगा।और वो दलित गीतिका, केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री तक बन जायेगीपाठक जी को रोकना ही होगा कृष्णा बाबू, हमारे अपने विजय और वैभव के लियेनहीं तो इनके हाथ मे कटोरा ही आयेगा।”


कृष्णा बाबू अभी भी चुप थे।


“कोई जल्दी नहीं है कृष्णा बाबू।इस तरह के काम कभी जल्दबाज़ी में न तो किये जाते हैं, न ही करना चाहिये।आप आराम से सोच कर बताइयेगा।”

फिर कृष्णा बाबू वहाँ से चले गये।

अच्छी तरह सोच-विचार कर फिर कुछ दिन बाद एक शाम उन्होने पाठक जी के घर फोन किया और रजनी देवी से मिलने का वक़्त मांगा। रजनी देवी और वैभव से हुई दूसरी मुलाक़ात में कृष्णा बाबू ने इस पूरी योजना पर अपनी सहमति व्यक्त की।


यह तय हुआ कि कार्यकारिणी की दूसरी मीटिंग में भाग लेने जब पाठक जी, कृष्णा बाबू और उज्जवल सिंह दिल्ली जायेंगे तो तीन अलग-अलग गाड़ियों में यहाँ से लखनऊ के लिये निकलेंगे। सबसे पीछे की गाड़ी में पाठक जी रहेंगे और उसमे टाईमर डिवाइस की सहायता से शक्तिशाली बम फिट किया जायेगा। बाकी दोनो गाड़ियाँ उनसे कुछ अधिक दूरी बनाते हुए आगे चलेंगी जिस से विस्फोट में उन्हे बहुत कम ही नुकसान हो। ऊँचाहार के पास यह विस्फोट किया जायेगा और उसके बाद दिखावे के तौर पर कृष्णा बाबू पाठक जी को बचाने का प्रयास करेंगे, परंतु घटनास्थल पर ही पाठक जी की मृत्यु हो जायेगी और अस्पताल पहुँच कर उन्हे मृत घोषित कर दिया जायेगा। फिर से पार्टी कार्यकारिणी की एक आपात मीटिंग बुलायी जायेगी जिसमे विजय को पार्टी अध्यक्ष बनाया जायेगा व शहर केंद्रीय सीट से लोकसभा उप-चुनाव प्रत्याशी घोषित किया जायेगा तथा वैभव को गीतिका की जगह विधायकी का टिकट दिया जायेगा।


फिर कृष्णा बाबू चले गये थे। उनके जाने के बाद रजनी देवी ने वैभव से कहा “वैभव, जो इंसान जीवन भर हमारे कदमों के नीचे रहा है, उसका बेटा सांसद और पार्टी अध्यक्ष और मेरा बेटा विधायक कतई नहीं बनेगा।सांसद तो तुम्हे ही होना होगा, कठपुतली पार्टी अध्यक्ष तो किसी को भी, यहाँ तक कि गीतिका को भी बनाया जा सकता हैपाठक जी के मरने के बाद वैसे भी उसके हाथ में कुछ रहेगा नहीं।”

“तुम एक काम करो, कुछ आदमियों का इंतज़ाम करो. जब विस्फोट के बाद पाठक जी को बचाने कृष्णा बाबू और उज्जवल सिंह आयेंगे तब इन आदमियों को भेजकर वहाँ उन दोनो पर कुछ देर तक अंधाधुंध गोलियाँ चलवानी है, जिस से इन दोनो के बचने की भी सम्भावना समाप्त हो जाये। फिर तुम्हारे आदमी तेज़ी से वहाँ से भाग निकलेंगे। किसी को भी पुलिस के हाथ नहीं लगना चाहिये।” रजनी देवी ने कहा।

वैभव ने पूछा “क्यों ?ऐसा क्यों करेंगे ?”

“इसलिये क्योंकि ऐसा करके हम एक साथ चार समस्याएं हमेशा के लिये सुलझा सकते हैं। पहले तो पाठक जी का समाधान हो जायेगा। फिर इस योजना में हमारे साझीदार, कृष्णा बाबू से भी किसी तरह का खतरा नहीं रहेगा। पाठक जी और कृष्णा बाबू की मौत के बाद हम यह दोषारोपण विजय पर करेंगे कि पार्टी में अपनी अनदेखी से वह अत्यंत दुखी व नाराज़ था जिस से उसने इस हत्या की साजिश की। वह जेल में रहेगा और तुम्हारे शहर केन्द्रीय लोकसभा सीट से सांसद बन जाने का रास्ता साफ हो जायेगा। पाठक जी की मौत के बाद गीतिका बहुत कमज़ोर हो जायेगी जिसे या तो हम अपने इशारों पर नचा सकते हैं या फिर वह खुद ही अप्रासंगिक होकर एक किनारे हो जायेगी।”

रजनी देवी की यह पूरी योजना सुनकर गीतिका दुख और सदमे से पागल हो उठी थी। अपने आँखों और कानों पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था। वह वहाँ से धीरे से उठी और अपने कमरे में चली गयी।

अपने कमरे मे बैठी, रोती हुई गीतिका अब तक के अपने जीवन के बारे में सोच रही थी जिसमे उसको केवल दुख के अलावा कुछ और नहीं मिला था। यही उसकी नियति थी। पहले बचपन में उसने अपनी माँ को नहीं देखा, देखा भी तो रजनी देवी के क्रूर और दुष्ट स्वरूप को। न भाई का सुख मिला न बहन का। फिर गीतिका के जीवन का एकमात्र सहारा, उसके पिता पाठक जी की हत्या हो गयी। कॉलेज के बाद शादी हुई और जब सब कुछ ठीक चलता लग रहा था तभी नंदन की असलियत सामने आ गयी। एक दोस्त जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा था, वह पाठक जी की हत्या के आरोप में जेल में था। उम्र के इस पड़ाव पर जब यह लगा कि अब रजनी देवी से सुलह हो जायेगी और 33 साल बाद ही सही, उसे माँ मिल जायेगी, उस समय एक और दुख भरी, कड़वी सच्चाई से उसका सामना अभी-अभी हुआ था। वह यही सोच रही थी कि हर जगह से उसे केवल दुत्कारा ही गया है, केवल उपेक्षित ही किया गया है।

इस हालत में उसने तय लिया कि वह एक बार फिर विजय से मिलेगी।


विजय से मिलने वह फिर जेल पहुँची। वह उसी मेज पर बैठी थी जहाँ पिछली बार वे मिले थे। विजय आया और बैठ गया। उन्हे आधे घंटे का ही वक़्त मिला था जो बहुत कम लग रहा था। गीतिका को बहुत कुछ बात करनी थी। गीतिका ने उसे सब कुछ बताया, पाठक जी की हत्या का षड्यंत्र और उसमे शामिल लोग, जिसमे कृष्णा बाबू भी थे, फिर कृष्णा बाबू की हत्या की योजना, नंदन और छाया के सम्बंध, आदि सभी कुछ। विजय ने सब कुछ बड़ी खामोशी से सुना। वह शांत बैठा हुआ था और उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिन्हे रोकने की वह बड़ी कोशिश कर रहा था लेकिन रोक नहीं पा रहा था। कुछ मिनटों के बाद उसने सिर्फ इतना कहा “मेरी पेशी है कल, ज़्यादा बात करने की इच्छा नहीं है गीतिका....आई एम सॉरी...मैं चलता हूँ।” और विजय उठ कर चला गया और इस बार भी मुड़कर गीतिका की ओर नहीं देखा। गीतिका हैरान थी “क्या कोई इंसान ऐसा भी हो सकता है ?” मगर विजय ऐसा ही था।


हाइकोर्ट में अगली पेशी पर विजय के विरुद्ध कोई आरोप तय करने में एक बार फिर पुलिस व केंद्रीय एजेंसी विफल रही, फलत: विजय को सशर्त ज़मानत दे दी गयी कि वह किसी सार्वजनिक गतिविधि से दूर रहेगा और शहर छोड़कर नहीं जायेगा और प्रतिदिन नज़दीकी थाने में हाजिरी लगायेगा। उस दिन अदालत में गीतिका भी मौजूद थी।

विजय अपने घर पहुँचा जहाँ कोई भी नहीं था। उसे यह बात पता थी। छाया अब अपनी बेटी को लेकर नंदन के साथ रहने लगी थी। अकेले बैठा विजय अपने जीवन की दुर्दशा के बारे में सोच रहा था, जब गीतिका वहाँ आयी और दरवाज़ा खटखटाया। विजय ने उठ कर दरवाज़ा खोला और बिना कुछ बोले, वापस जा कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। गीतिका भी वहीँ आ कर सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी। वह विजय को देख रही थी जबकि विजय छत की तरफ, विचारमग्न होकर देख रहा था। गीतिका उठी और रसोई में जाकर चाय बनाने लगी। विजय अभी भी बुत बन कर वैसे ही बैठा था। 2 कप चाय बनाकर गीतिका ले आयी और विजय के सामने रखी। विजय अभी भी कुछ सोच रहा था। गीतिका ने कुछ देर बाद थोड़ा ज़ोर से कहा “विजय ! !” , तब विजय का सोचना बंद हुआ और उसने देखा कि सामने चाय रखी है। गीतिका ने उसे चाय पीने का इशारा किया। चाय का घूँट पीते हुए विजय ने लम्बी साँस छोड़ी और कहा “और बोलो एम.एल.ए. मैडम ! कैसे हो ?”

गीतिका के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट खेल गयी “बाप मर चुका है, माँ को आज तक देखा नहीं, पति ने मुझे छोड़ दिया है और किसी दूसरी औरत के साथ रह रहा है, और अभी-अभी पता चला है कि जिसको माँ समझा, उसी ने बाप को मारा ह.... बताओ, कैसी होऊंगी मै ? तुम्हारे आगे बैठी हूँ, देख लो।” विजय ने भी हँसते हुए कहा “फिर तुम्हे क्यों देखूं ? खुद को ही न देख लूँ ? माँ पहले से नहीं है, लोग सोचते हैं कि बाप को मैंने मारा है, और बीवी बेटी को लेकर किसी और के साथ है।इस तरह से ज़्यादा फर्क तो नहीं है तुम में और मुझमें....तुमको क्या देखूँ फिर ?” जिस तरह से वे दोनों एक दूसरे से चाय पर बातें कर रहे थे, ऐसा लग रहा था कि उन्होने अपनी नियति के साथ समझौता कर लिया था, और अब वे खुद अपने हालातों पर हँसना सीख रहे थे, खुद अपना ही मज़ाक उड़ा रहे थे, जिस से कम से कम चैन से जी तो सकें।

गीतिका ने पूछा “अब आगे क्या करोगे ? क्या छाया से मिलने जाओगे विजय ? बेटी भी तो है ही आखिर तुम्हारी।”

“मुझे कहीं नहीं जाना, न ही किसी से मिलना है।रही बात बेटी की तो अभी वो बहुत छोटी है, बाप से ज़्यादा उसको माँ की ज़रूरत है। यकीन तो नहीं लेकिन उम्मीद ज़रूर है कि कम से कम बेटी के साथ तो छाया दगा नहीं करेगी। मैं घर में ही रहूंगा. किसी जगह जाने पर पाबंदी है, पुलिस थाने में रोज़ हाजिरी देनी है...कहाँ जाऊंगा मैं ?”

“खुद को बेगुनाह साबित कैसे करोगे ?”

“जब कुछ किया ही नहीं है, तो डरना क्या ?आखिर पुलिस और सेंट्रल एजेंसी भी मेरी ज़मानत नहीं रोक पायीं, इसी तरह मेरी रिहायी भी नहीं रोक पायेंगी। मुझे कुछ नहीं करना इसमे। जो भी सच है, वह सामने आयेगा ही ...बात खत्म !”


विजय को ज़मानत मिल जाने की खबर सभी जगह पहुँच गयी थी। दूसरी बैरक में मौजूद वैभव को जब से इस ज़मानत का पता लगा था तब से उसका दिमाग फट रहा था। वह बहुत गुस्से में था और उस से मिलने जो उसके वकील आये थे, उनसे भी खूब झगड़ा कर चुका था। अपने साथ में बैरक के दूसरे कैदियों को भी भला-बुरा बोले जा रहा था।

बैरक की रसोई में जब खाना बँटने का वक़्त आया तो काफी कैदी एक ही जगह एकत्र थे और खाना ले रहे थे। उसी में किसी की वैभव के साथ किसी बात पर कहा-सुनी हो गयी। विजय की ज़मानत की वजह से पहले से ही उसका दिमाग खराब था, अब यहाँ किसी ने कुछ कह दिया उसे तो वह गुस्से से आग-बबूला हो गया और उस कैदी को मारने दौड़ा। अब कैदी तो कैदी ठहरे, शरीफ तो होते नहीं, फिर जिसको जितनी लम्बी सज़ा मतलब वह उतना ही दुष्ट कैदी था, और उस बैरक में ऐसे एक से एक थे। कई सारे कैदी अपनी पुरानी रंजिशों की वजह से भी वैभव को सबक सिखाने की ताक में काफी समय से थे और योजना बना रहे थे। आज उन्हे मौका मिल गया था, वे कैदी मिलकर वैभव के ऊपर पिल पड़े और उसे बुरी तरह पीट रहे थे। पूरे बैरक और रसोई में अराजकता का माहौल था और जिसको जिधर जगह मिल रही थी, वह उधर ही भाग रहा था।

इतने में कई सारे कैदी जो काफी समय से अपने पास धारदार हथियार छुपा कर रखे थे, उन हथियारों के साथ आ भिड़े। कुछ वैभव के समर्थक थे तो कुछ उसके विरोधी समूह के। भयंकर हिंसा और मार-पीट शुरु हो गयी थी। लग रहा था कि इंसान नहीं, जानवर लड़ रहे हों। लगभग एक-डेढ़ घंटे बाद जब काफी मात्रा में पुलिस बल आया और कठोरता से बल प्रयोग किया तब कहीं जाकर हालात काबू में आये। इस बीच इस भयानक हिंसा में लगभग 25 कैदी, और जेल स्टाफ के करीब 12 व्यक्ति बुरी तरह घायल हो गये थे, उन सबको जेल के अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहाँ पूरी कोशिशों के बाद भी 3 कैदी और जेल स्टाफ के 2 लोगों की मृत्यु हो गयी। मृतकों में एक कैदी का नाम था वैभव पाठक।

रजनी देवी के पास जब यह खबर फोन के ज़रिये पहुँची तो उन्होने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी। सम्भवत: अब न तो उनका मन और न तो उनका शरीर इस से ज़्यादा बर्दाश्त कर सकते थे। उनकी पूरी उम्र केवल वैभव को बचाने-बचाने में कट गयी। समाज से बचाया, बीवी से बचाया, बाप से बचाया…और तो और, वैभव के साथ मिलकर, अपने पति की हत्या तक करवायी। इस अपराध का दोष भी एक निश्छल, निरपराध व्यक्ति पर डाला जो उनको माँ की तरह ही मानता था। अब शायद उनकी हिम्मत नहीं बची थी। अब वह सिर्फ इतना चाहती थी कि जो समय बचा है, वह ठीक ढ़ंग से बीत जाये और वह भी कुछ पुण्य कमा लें, वर्ना पाप तो उन्होने इतने भयंकर किये थे कि 10 बार कैलाश की परिक्रमा करने, और कुम्भ नहाने पर भी वह कम नहीं हो सकते थे। वह बिल्कुल चुप रहीं और धीरे से खुद से ही बोल पड़ी "...जाओ वैभव....अपनी करनी, पार उतरनी”, इतना बोलते-बोलते उनकी आँखों में आँसू आ गये।


गीतिका अपने कमरे में थी। जब से नंदन और छाया असलियत बता कर गये थे, तब से गीतिका ने रजनी देवी से बात तक नहीं की थी। वे दोनो साथ में केवल सुबह का नाश्ता, शाम की चाय, और दोनो वक़्त का भोजन करते थे। इसके अलावा वे दोनों कभी साथ बैठ्ते भी नहीं थे। अपने आप को तकलीफ भरी यादों से बचाने के लिये, गीतिका ने खुद को पार्टी के काम-काज और अपने निर्वाचन क्षेत्र के कामों में लगाना शुरु कर दिया था। एक रात करीब 11 बजे का वक़्त रहा होगा जब रजनी देवी ने गीतिका के कमरे पर दस्तक दी “।गीतिका बेटीदरवाज़ा तो खोल दो बेटा।मुझे माफ कर दो बेटी।मैं जानती हूँ कि मै किसी माफी के लायक नहीं हूँ, लेकिन बेटा, कभी-कभी वक़्त आता है कि इंसान की मति भ्रष्ट हो जाती है, तब न उसे सही दिखता है, न गलत।तुमसे नफरत, और मेरे बेटे के लिये सत्ता का लालच मेरे मन में इतनी गहरी बैठी हुई थी कि मैं कब क्या करती, और सोचती चली गयी, खुद मुझे ही पता नहीं चला . तुमसे बात कर लूँ तो थोड़ा तो तसल्ली मिल जाये. बेटी....दरवाज़ा खोल दो गीतिका।” गीतिका ने रजनी देवी की आर्त स्वर में की गई इस करुण पुकार पर द्रवित होकर दरवाज़ा खोल दिया। उसकी आँखें लाल थीं, ऐसा लगता था कि कमरे में वह काफी देर से रो रही थी। उसकी बेटी अरुणा बगल में ही सो रही थी। दरवाज़ खोल कर वह वापस बिस्तर पर आकर बैठ गयी, वह अभी भी रजनी देवी की ओर नहीं देख रही थी। रजनी देवी कुछ दूर पर रखी एक कुर्सी को थोड़ा खींचकर गीतिक के पास ले आयी और उस पर बैठ कर गीतिका और अरुणा को देखने लगी। कुछ देर बाद हिम्मत करके रजनी देवी ने धीरे से पूछा “नंदन के बारे में क्या सोचा गीतिका ?”

गीतिका ने बिना उनकी ओर देखे कहा “सोचना क्या है ? सोच तो लिया नंदन ने....अब वह उसी के साथ रहेंगे....मेरे पास सोचने हो कुछ नहीं है।” फिर वह अरुणा की ओर देख कर बोली “हम दो माँ-बेटी हैं, कर लेंगे कुछ।”

“अगर वाकई ऐसी बात है, तो मैं तुमको कुछ बोलूँ ?”

“कहिये”

“तुम्हे नंदन को तलाक़ का नोटिस भिजवाना चाहिये”

“उस से क्या होगा ?...तलाक़ हो या नहीं, फिलहाल मेरी ज़िंदगी पर कोई फर्क नहीं आने वाला है. तलाक़ के बगैर भी मैं ऐसे हूँ, तलाक़ के बाद भी यही होगा।”

“मेरी बात सुनो……नंदन एक कारोबारी है, बनिया है वो.....वह वहीं जायेगा जहाँ उसको कुछ मुनाफा होगा। आज की तारीख में, और आने वाले वक़्त में भी एक विधायक या सांसद का कारोबारी पति होने से ज़्यादा मुनाफा किसी में नहीं है, कम से कम उस छाया के साथ रहने में तो शर्तिया नंदन को कोई भी फायदा नहीं है। जितना मुनाफा उसे तुम्हारे साथ होने में है, उतना मुनाफा छाया कतई नहीं दे सकती। तलाक़ का नोटिस मिलने पर वह भाग कर तुम्हारे पास आयेगा।”

“तो इस से भी क्या होगा ?” छाया उनकी बात को बीच में काटते हुए गुस्से से बोली। “कल को फिर उसे कोई लड़की पसंद आ जायेगी।फिर वह उसको चोरी से लिप्स्टिक देगा, फिर मुझे कपड़े धोते वक़्त उसकी सोने की लौंग मिलेगी।फिर मैं यहाँ आऊंगी। फिर मैं नोटिस भेजूंगी.....कोई मतलब है इन सब का ?”

“मेरी बात पूरी सुनी नहीं तुमने.......तुमको नोटिस भिजवा देना चाहिये। अगर वह वापस नहीं आता है और छाया के साथ ही रहने का फैसला करता है तो वह नोटिस पर दस्तखत कर के भेज देगा, इस से तुम इस सम्बंध के फंदे से हमेशा के लिये आज़ाद हो जाओगी। मेरा मतलब है कि नोटिस को अगर वह मानता है या नहीं भी मानता है, दोनो तरह से तुम फायदे में रहोगी।”

उन्होने बोलना जारी रखा “....और एक बात और है बेटा, गलती सुधारने का एक मौका किसी को भी देने का रास्ता हमेशा खुला रखना चाहिये। ये भी हो सकता है कि कुछ वक़्त के लिये नंदन की मति भ्रष्ट हो गयी हो, जैसे मेरी हो गयी थी.....इंसान गलत रास्ते पर चला ही जाता है कभी-कभी....फिर अगर आगे तुम्हें ऐसा लगता है कि उसके अंदर कोई बदलाव नहीं हुआ है…जैसा तुम कह रही हो तो मैं तुमको नहीं रोकूंगी। फिर तुम जो चाहो वह कदम उठा सकती हो।” 

गीतिका को इतने सालों में पहली बार उनकी कोई बात सही लगी थी शायद। अगले कुछ दिनों में अपने वकील से सलाह-मशविरा करके, गीतिका ने नंदन के दफ्तर के पते पर तलाक़ का नोटिस भिजवा दिया।


नंदन उस दिन अपने दफ्तर से वापस आये तो कुछ परेशान लग रहे थे। घर के अंदर आये तो छाया अपनी बेटी के साथ खेल रही थी। नंदन को देख कर वह बोली “क्या हुआ नंदन ?” नंदन ने कागज़ का एक पुलिंदा निकाल कर सामने की मेज पर रखा “मैडम ने नोटिस भिजवाया है तलाक़ का।” छाया उस नोटिस को खोलते हुए बड़ी खुशी से बोली “ये तो बहुत अच्छी बात है न ? इट्स फैंटास्टिक ! !” नंदन ने मुस्कुरा कर कहा “”हाँ, खुशी की तो बात है ही।” फिर वह कपड़े बदलने अपने कमरे में चले गये।

ऑफिस के कपड़े उतारकर नंदन अपने बिस्तर पर बैठे कुछ सोचते हुए से लग रहे थे। तभी छाया आयी और वह भी वहीं बैठ गयी। नंदन को देख कर उसने पूछा “क्या हुआ नंदन ? नोटिस आया है, ये तो अच्छी बात है।ये तो वह मौका है जिसके इंतज़ार में हम कब से थे, फिर क्या सोच रहे हो तुम ?”

नंदन ने कुछ धीमे स्वर में कहा “..हाँ ये बात तो है....हम बिलकुल यही चाहते थे, लेकिन....” फिर नंदन कुछ बोलते-बोलते रुक गये। फिर अचानक ही उन्होने मुस्कुराते हुए बात बदल ली “...और बताओ, डिनर में क्या है आज ?” छाया ने हँसकर कहा “आज आलू-मटर-सोयाबीन है” नंदन ने कहा “ठीक है फिर, मैं अभी तुरंत नहा कर आता हूँ, मुझे भूख लगी है तेज़।” छाया बिस्तर से उठी और नंदन के गालों को चूम लिया फिर मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर रसोई की ओर निकल गयी। नंदन भी तौलिया लेकर बाथरूम की तरफ बढ़ गये।

बाथरूम में फव्वारे के नीचे नहाते हुए नंदन सोच रहे थे “इस नोटिस का क्या करूँ अब ? अगर दस्तखत करता हूँ तो आगे जाकर नुकसान हो जायेगा। वह आज एम.एल.ए. है, कल को एम.पी. होना ही है उसको। इस पार्टी की प्रेसिडेंट तो वह हमेशा ही रहेगी, और पार्टी भी लगातार मज़बूत होती जा रही है।नोटिस पर दस्तखत करने से मुझे भारी घाटा होगा। विधायक और सांसद का पति होने के बहुत सारे फायदे हैं। बिज़नेस में आगे बहुत सारे प्रोजेक्ट आयेंगे जहाँ मुझे उसकी मदद की ज़रूरत होगी ही। फिर इसी रास्ते मैं विधान परिषद और राज्य सभा भी आसानी से पहुँच सकता हूँ। अगर साइन कर दिये तो आगे के बिज़नेस और पॉलिटिक्स, दोनो के रास्ते बंद हो जायेंगे।इस पार्टी की सरकार जहाँ भी रही वहाँ तो मेरी कम्पनी दाखिल भी नहीं हो पायेगी, फिर इसकी पार्टी तो केंद्र सरकार में भी गठ्बंधन साझीदार है।मेरा बिज़नेस तो चौपट हो जायेगा।लेकिन अगर साइन नहीं किये तो कहीं वैभव की तरह छाया मेरी भी दुर्गति न कर दे. यौन शोषण का एक आरोप लगा नहीं कि ज़िंदगी और बिज़नेस, प्रतिष्ठा सब एक झटके में खत्म !। ज़मानत भी नहीं होगी....फिरइस औरत का भी कितना भरोसा किया जा सकता है ?” यही सब सोचते-सोचते, और बाथरूम में नहाते हुए नंदन ने एक कठोर निर्णय किया।


फिर एक दिन छाया अपनी बेटी को प्लेस्कूल से लेकर वापस आ रही थी। रिक्शे वाले को उसने लोहिया चौक की तरफ चलने को कहा। लोहिया चौक पर फलों की बहुत बड़ी मार्केट लगती थी, जहाँ से छाया फल लेना चाह रही थी। वहाँ पहुँच कर वह रिक्शे से उतरी और उसे पैसे देकर बेटी के साथ फल के एक ठेले के पास पहुँची। वह ठेले वाले से सवाल-जवाब कर ही रही थी जब दो आदमी उसके ठीक पीछे, बहुत नज़दीक आकर खड़े हो गये। उनमे से एक के दायें हाथ पर मोटा सा शॉल लिपटा हुआ था। इसके पहले वह कुछ समझ पाती, उनमे से एक ने पिस्तौल निकालकर छाया की कमर पर इस तरह से रख दी कि केवल उस आदमी और छाया को ही पता चल पा रहा था। वह पिस्तौल उसी मोटे से शॉल के अंदर छिपायी गयी थी। उस आदमी ने छाया के काफी पास आकर उसके कान मे कहा “मैडम आप बिल्कुल हिलियेगा नहीं और हमारी बात सुनियेगा...जैसे कह रहे हैं, वैसा कीजिये. इसी में आपकी और इस बच्ची की भलाई है। हम आपको कोई नुकसान नहीं पहुँचाएंगे।आप बस हमारे साथ चलिये और जैसे कहें, वैसे कीजिये।”

छाया ने अपनी गर्दन घुमाने की कोशिश की, इस पर उस आदमी ने पिस्तौल को उसकी कमर पर और धँसा दिया और कड़क कर कहा “मैडम, हिलियेगा नहीं, आपको बताया हमने अभी”। छाया फिर स्थिर हो गयी। उस आदमी ने एक तरफ इशारा करके कहा “इधर चलिये”, और छाया अपनी बेटी के साथ उसी तरफ चुप-चाप चल दी। रास्ते में उसने गुस्से से उस आदमी से पूछा “किसनें भेजा है तुमको ?उस कमीनी एम.एल.ए. ने न ?......या फिर वो जो जेल से बाहर आया है.....उस सूअर विजय ने ?....बोलो ?” वह आदमी हँस कर बोला “”मैडम जो कहा गया है, हम वो कर रहे हैं......आपसे हमारे साहब मिल लेंगे, उन्ही से सारी बातें करना। अभी आप बस चलो।” अब तक वे लोग एक पुरानी फिएट कार के पास पहुँच गये थे। उस आदमी ने कार का गेट खोला और कहा “बैठिये मैडम अंदर बच्ची के साथ”। छाया बिना कुछ बोले बैठ गयी।

कार अकबराबाद की सड़कों पर भागते हुए मम्फोर्ड्गंज के उसी बेनाम होटल के आगे जाकर रुकी जहाँ वह कभी वैभव से मिला करती थी। छाया ने वह इलाका और होटल देखा और गुस्से में चिल्लायी “”तो उस बुढ़िया रजनी देवी ने भेजा है तुम्हे ?” वह आदमी भी गुस्से से बोला “मैडम आपको बोलने को नहीं कहा है, केवल चुप-चाप साथ चलने को कहा है। अगर बात नहीं मानोगे तो आप और ये बच्ची दोनो जान से जाओगे, समझे ! !।...अब चलो अंदर” छाया बिल्कुल चुप हो गयी और होटल के गेट की तरफ चलने लगी। होटल के अंदर दाखिल होने पर उस आदमी ने उसे सीढ़ियों से ऊपर के तल पर चलने को कहा। ऊपर जा कर छाया ने देखा कि वहाँ कई आदमी थे। फिर छाया से बिल्कुल दूर वाले छोर पर स्थित कमरे की ओर चलने को कहा गया। छाया देख रही थी कि हर कोई उसे ही देख रहा था। उस कमरे तक पहुँच कर उस आदमी ने ताला खोला और छाया से कहा “8-9 बजे के आस-पास साहब आयेंगे आपसे मिलने, फिर आप उनसे बात कीजियेगा। तब तक आप इस बच्ची के साथ इसी कमरे में रहिये। आपकी ज़रूरत का सारा सामान अंदर है…वो बिस्तर भी लगा है, बिजली-पंखा भी है, वहाँ एक मटका भी पानी भर के रखा है, चाय वगैरह भी मिल जायेगी आपको अगर आप तमीज़ से रहेंगी तो। अब जाइये अंदर।” छाया अपनी बेटी के साथ भीतर चली गयी। उस आदमी ने दरवाज़ा बंद कर दिया और दरवाज़े पर एक दूसरे आदमी को पहरे पर खड़ा कर दिया। छाया ने अंदर से दरवाज़ा पीटना, चीखना-चिल्लाना और गन्दी गालियाँ देना शुरु किया और करीब आधे घंटे तक पागलों की तरह चिल्लाती रही, जिस पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। आधे घंटे में छाया का गला जवाब दे गया, और फिर उसने जाकर मटके से पानी निकालकर खुद भी पिया और बेटी को भी दिया। इतने में एक दूसरा आदमी आकर चाय और दो पैकेट बिस्किट और 2 प्लेट रोटी-सब्ज़ी रखकर चला गया। छाया ने खुद चाय पी और खाना खाया और बेटी को भी बिस्किट और खाना दिया। छोटी बच्ची थक गयी थी, वह भोजन कर के जल्दी सो गयी। छाया भी अब तक थक कर चुप हो चुकी थी।


शाम 5-6 बजे के आस-पास एक आदमी कमरे में आकर फिर से चाय व बिस्किट रख गया। शाम की चाय के बाद छाया को अपने गले में फिर से ताक़त महसूस हुई तो उसने फिर से कमरे के अंदर से गालियों की बौछार करनी शुरु कर दी। वह बुरी तरह चिल्ला रही थी और पूरे तल पर उसकी गालियाँ सुनाई दे रही थी, जिसका वहाँ, कमरे से बाहर मौजूद लोग पूरा लुत्फ ले रहे थे, लेकिन उनमे से कुछ आदमी बड़े गुस्से में थे, उन्ही में से एक आदमी भन्नाया हुआ कमरे में गया और ज़ोर से छाया को भद्दी गालियाँ देते हुए कहा “दोपहर से नौटंकी कर रही हो तुमचुप रहने को बोला है तो वो भी नहीं हो रहा है तुमसे ?खाना-पानी-चाय सब दे रहे हैं, उसके बाद भी तुमने आसमान सिर पर उठा रखा है । पूरी पिस्तौल तुम्हारे भेजे में खाली कर देंगे अभी......बस बात खत्म !” इतना सुन कर छाया चुप हो गयी और वो आदमी चला गया, लेकिन थोड़ी देर के बाद छाया ने फिर वही सब शुरु कर दिया, जिस पर फिर से किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया।


रात करीब 10 बज चुके थे, खाना वगैरह माँ-बेटी को नहीं दिया गया था। इस वजह से उन दोनों का बुरा हाल हो रखा था। चिल्ला-चिल्ला कर और गालियाँ दे-दे कर छाया अधमरी हो रखी थी और दरवाज़े के पास दीवार पर सिर रख कर, बेटी को गोद में छिपाये बैठी थी। तभी दरवाज़े के बाहर कुछ हलचल बढ़ी सुनाई देने लगी। एक आदमी बाकियों से चिल्ला कर बोला “साहब आ गये ! !” इतना सुनकर छाया का सोया पड़ा दिमाग अचानक सक्रिय हो गया और वह दरवाज़े पर कान लगा कर सुनने का प्रयास करने लगी। थोड़ी देर में वहाँ बाकी आदमियों के बीच एक आदमी की अजीब सी आवाज़ सुनाई देने लगी। ऐसा लग रहा थ कि ये आदमी उन लोगों के बीच का नहीं था। थोड़ा और ध्यान लगा कर, बच्ची का मुँह बंद कर, जब छाया ने सुनने की कोशिश की तो उसे लगा कि यह आवाज़ उसने सुनी है कहीं. थोड़ा और ध्यान देकर सुना तो उसके होश फाख्ता हो गये……यह उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। वह बुत बनकर फिर से दीवार के सहारे बैठ गयी। वह नंदन थे।


नंदन को उनके आदमी दरवाज़े की ओर ले आये।


दरवाज़े पर तैनात आदमी ने गुस्से में कहा “साहब, दोपहर से इस औरत ने नरक मचा रखा ह..... बिल्कुल चरस बो रखी है इसने भेजे में। आपकी बात मानकर रुके थे नहीं तो सीधा कर दिया होता इसको।” नंदन ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोलने का इशारा किया। जैसे ही दरवाज़ा खुला, खुलते ही नंदन के चेहरे पर एक गंदा सा थूक पड़ा। नंदन ने देखा तो सामने छाया नागिन जैसी फुफकार रही थी और गुस्से से उसकी साँस फूल रही थी।

नंदन ने आगे बढ़कर छाया का आँचल हाथ में लिया और बेशर्मी से मुस्कुराते हुए उस से अपना थूक साफ किया। फिर छाया से पूछा “कोई दिक्कत तो नहीं हुई यहाँ ?” छाया ने भयंकर गाली देते हुए एक बार फिर से मुँह में थूक भरकर नंदन के चेहरे पर थूक दिया। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। नंदन ने फिर से उसके आँचल की ओर हाथ बढ़ाया और फिर से वैसे ही अपना चेहरा साफ किया। छाया ने रोते हुए गुस्से से पूछा “क्यों किया ऐसा तुमने ?” नंदन ने बिल्कुल शांति से जवाब दिया “ज़रूरी था छाया ये , मैं क्या करता ?......कॉस्ट-बेनिफिट एनालिसिस में तुम फिट नहीं हो रही थी...एक एम.एल.ए. और एम.पी. का साथ मेरे लिये कहीं ज़्यादा ज़रूरी था बजाय कि कॉलेज की एक पुरानी दोस्त के।” छाया ने फिर पूछा “तो ये मुझसे तुम पहले दिन ही बोल दिये होते....बात यहाँ तक बढ़ती ही नहीं. तुम अपनी दुनिया में खुश रहते और मैं अपनी…क्यों नहीं बोला तुमने कि मैं तुम्हारी कॉस्ट-बेनिफिट एनालिसिस में फिट नहीं आती ?”

सिगरेट सुलगाते हुए नंदन ने कहा “कम ऑन यार छाया.....डोंट बी सेंटीमेंटल ! ! लेट्स बी प्रैक्टिकल। उस समय गीतिका को कोई टिकट वगैरह नहीं मिला था, और उसका भी कोई इंट्रेस्ट नहीं था एक्टिव पॉलिटिक्स में। पहले सब कुछ वैभव का था। फिर से अब तक काफी चेंज हो चुका है,……शी इज़ एन एम.एल.ए. एंड वुड बी एन एम.पी. वेरी सून, प्लस शी इज़ लाइफटाईम प्रेसिडेंट ऑफ द पार्टी नाऊ...........अब अगर ये 300 करोड़ की डील फेल भी हो जाती है, तो आगे मुझे कई ऐसी डील्स मिल जायेंगी, थैंक्स टु पोजीशन ऑफ माई वाइफ। तुमसे शादी करके मुझे इस तरह का कोई फ्यूचर बेनिफिट नहीं होगा.......लेकिन अगर तुमको मैं अभी यहाँ से बाहर जाने दूँ, तो कल को या आज के 20 साल बाद……हो सकता है मेरी हालत वैभव जैसी ही हो जाये। मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था छाया.......सॉरी...वेरी सॉरी !”

“फिर मेरे शरीर, मेरे मन के साथ ऐसा खिलवाड़ क्यों किया नंदन ?” छाया ने फूट-फूट कर रोते हुए पूछा। नंदन ने बिल्कुल सपाट चेहरे के साथ शांति से सिगरेट फूंकते हुए उत्तर दिया “एक्चुली इट वाज़ ए टू-वे चैनल छाया।तुम मेरे पास इसलिये आयी क्योंकि तुम्हे तुम्हारा पति विजय नहीं पसंद था. वो भिखारी ही था तुम्हारे लिये.....उसकी सोच और ज़िंदगी जीने के तरीके से तुम्हें नफरत थी। और जहाँ तक मेरी बात थी छाया, पसंद तो मुझे भी मेरी बीवी नहीं थी......अभी भी नहीं है, बट शी इज़ एन एम.एल.ए. ना। बोला तो तुमको अभी। फिर एक बात और है छाया....रोटी और आलू-गोभी तो इंसान हर वक़्त खाता ही है, थोड़ा डिफरेंट टेस्ट....थोड़ी चिकन बिरयानी मिल जाये कभी तो मज़ा ही आ जाता है. अब घर पर तो खा नहीं सकते न बिरयानी। वाइफ इज़ प्योर वेजीटेरियन।  वैसे तुम्हारा हस्बैंड भी तो वेजीटेरियन ही है न। बिरयानी खाने का मन तो तुम्हे भी होता ही था। नहीं ?” और नंदन के चेहरे पर बेहद घटिया मुस्कान खेल गयी।


छाया यह सब सुनकर लड़खड़ा कर ज़मीन पर ही धम से बैठ गयी। उसकी बेटी अब उस से लिपटी हुई थी। छाया के पास बोलने को शब्द नहीं थे, उसे प्रतिबिम्ब द्वारा कही गई बातें याद आ रही थी “अपने कर्मों का फल, हर इंसान को इसी जन्म में मिलता है” इस पर छाया ने कहा था “”ऐसी बातें विजय के मुँह से बहुत सुनी है, लेकिन इनका कोई फायदा होते देखा नहीं मैंने” ,फिर प्रतिबिम्ब ने कहा था “....नंदन व्यापारी है......फिर यह मत कहना कि मैंने बताया नहीं”

नंदन छाया के आगे ज़मीन पर घुटने के बल बैठ गये और सिगरेट का धुआँ उसके मुँह पर फेंकते हुए, पास खड़े अपने आदमी की ओर हाथ बढ़ाया जिसने उनके हाथ पर एक पिस्तौल रख दी। छाया को यह देख कर अब बिल्कुल डर नहीं लग रहा था। उसने बेटी का चेहरा अपने आँचल में छुपा लिया था और खुद नंदन की ओर देख रही थी। नंदन ने कहा “सॉरी छाया, मैं लगेज लेकर नहीं चलता।” और फिर उस कमरे में एक गोली चलने की आवाज़ आयी। छाया ज़मीन पर गिरी हुई थी और उसके सिर से खून की मोटी धारा फूट पड़ी थी। 4 साल की उस बच्ची को कुछ समझ नहीं आ रहा था , वैसे भी 4 साल का बच्चा कितना समझदार होता ही है ? कुछ देर बाद कमरे में गोली चलने की एक और आवाज़ आयी। फिर कुछ देर बाद नंदन ने अपने आदमी के हाथ पर पिस्तौल वापस रखते हुए कहा “साफ-सफाई करवा देना”, और वह चले गये।


देर रात नंदन ने पाठक जी के घर फोन किया जिसे गीतिका ने उठाया। वह तब तक जग कर अपने काम निपटा रही थी। पाठक जी की तरह देर रात जाग कर काम करने की आदत थी उसको। उसने कहा “हैलो ?” नंदन ने कहा “गीतिका, मैं नंदन...प्लीज़ फोन मत रखना, मेरी बात सुन लो पहले” नंदन ने डरते हुए कहा।

“क्यों किया है फोन ?...तुमसे बात करना नहीं चाहती मैं. जो नोटिस भेजा है, उसका जवाब दो और मुझे आज़ाद करो जल्दी।”

“गीतिका, देखो नाराज़ मत हो।इंसान गलती का पुतला होता है, मुझसे भी गलती हुई है, ज़ाहिर तौर पर बहुत बड़ी गलती हुई है, जिसकी माफी अगर मैं सोचूँ तो मुमकिन नहीं है, लेकिन गीतका.....गलती तो तुम्हारी माँ से भी हुई है, आखिर माफ कर दिया न तुमने उन्हें ? एक मौका मुझे दे दो प्लीज़”।

“बोलो।”

“मैं मिलना चाहता हूँ तुमसे”

“क्यों ?”

कुछ बताना है तुमको....फोन पर बताना मुनासिब नहीं है. मिल के बात करना चाहता हूँ, बोलो कब आऊँ तुम्हारे घर ?”

“घर तो आओ नंदन लेकिन इस उम्मीद में मत आना कि तुम बोलोगे और मैं तुरंत तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चली आऊंगी। यहाँ तुम अकेले ही आओगे, और यहाँ से अकेले ही जाओगे।” गीतिका ने सख्ती से कहा।

“यार ,मिल तो लो”

“मैं लखनऊ में रहूँगी अगले कुछ दिन, तुम एक हफ्ते बाद, अगले रविवार को आना। डिनर यहीं करके जाना।”

“ओ. के.” और फिर कॉल डिस्कनेक्ट हो गयी।

कुछ सोच कर थोड़ी देर बाद गीतिका ने विजय को फोन लगाया। उसको पता था कि उसकी तरह एक और इंसान को भी अपने काम निपटाने के लिये रात का वक़्त ही भाता है। विजय ने फोन उठाया, “हैलो ?”

“हैलो विजय, मैं गीतिका”

“अरे इतनी रात गये ? सब ठीक तो है मैडम ?”

“तुम क्या कर रहे इस समय ?”

“कुछ नहीं....मैं मृत्युंजय उपन्यास पढ़ रहा था.....शिवाजी सावंत.....आज ही ले आया था यूनिवर्सिटी रोड से......मुझे पढ़ के बड़ा अच्छा लग रहा है, हिंदी में अच्छी किताबें कम ही रहती हैं।ये बहुत शानदार किताब लग रही है.....कभी वक़्त मिले तो पढ़ना ज़रूर।और बताओ, कैसे याद किया ?”

“एक काम है विजय। एक मदद चाहिये तुमसे”

“मुझसे मदद ? अरे मैडम, मैं ज़मानत पर बाहर हूँ।मैं भला तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ ?” विजय ने हँस कर कहा।

“नहीं विजय, ये मदद तुम ही कर सकते हो” गीतिका के स्वर में कठोरता थी, जो सामान्यत: नहीं होती थी।


एक हफ्ते बाद रविवार को नंदन अपनी गाड़ी से लगभग शाम के 7 बजे पाठक जी के घर आये, जहाँ गीतिका और रजनी देवी उनका इंतज़ार कर रहीं थीं। नंदन की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि माँ-बेटी से आँखें मिला सके। उनकी शारीरिक भाषा साफ बता रही थी कि वह काफी असहज महसूस कर रहे थे। खाने के बाद वे तीनों ड्राइंग रूम में बैठे। गीतिका ने नौकरों को पहले ही जाने को कह दिया था, सो घर में ये तीन ही लोग थे। गीतिका ने पूछा “बोलो नंदन,क्या बात करनी थी तुम्हे ?”

“कुछ बताना था आप दोनों को”

“क्या ?”

“ये कि मैं गीतिका और अरुणा को अपने जीवन में वापस लाना चाहता हूँ। मैं अपनी गलती सुधारने का एक मौका चाहता हूँ”

“कैसे होगा ये ?” रजनी देवी ने पूछा।

“होगा ये, क्योंकि मैंने छाया और उसकी बेटी, दोनों को मार दिया हैअब मेरी ज़िंदगी में गीतिका और अरुणा के अलावा न कोई है, और ना कोई होगा ,ये मैं आश्वासन देता हूँ। यही बताने मैं यहाँ आया था।”

गीतिका और रजनी देवी उसे देख रही थी। गीतिका ने कहा “भरोसा तो पहले भी किया ही था नंदन तुम पर।”

नंदन ने कहा “इस बार बस और कर लो गीतिका.....ये परीक्षा अब आगे कभी नहीं देनी पड़ेगी, न तुम्हे, न मुझे।”

इसी प्रकार बातें करते-करते रात के 12:30 बज गये थे। नंदन लगातार सोच रहे थे कि गीतिका साथ चलने के लिये तैयार होगी, इसीलिये वह देर तक बैठ कर बात करते रहे, लेकिन गीतिका टस से मस नहीं हुई। फलत: नंदन को उठना ही पड़ा “ठीक है गीतिका, मैं चलता हूँ।” उन्होने सोचा कि गीतिका रात रुकने को बोलेगी लेकिन गीतिका ने दरवाज़े की ओर चलते हुए कहा “चलिये, आइये।” गीतिका फिर उन्हे छोड़ने बाहर, उनकी गाड़ी तक आयी। नंदन ने झिझकते हुए पूछा “तो क्या समझूँ मै ?” गीतिका ने कहा “नंदन मेरे भीतर बहुत दर्द है अभी। तुम्हारी बातें सुनी हैं लेकिन मैं कुछ तय नहीं कर सकती....मुझे सोचने के लिये थोड़ा समय चाहिये....दिस इज़ नॉट गोइंग टु बी दैट ईज़ी”

“ओ.के.,तो मैं फिर कब आऊँ ?”

“इलेक्शन के बाद तो काम ज़्यादा बढ़ गया है. आप शुक्रवार को रात को आइये।लेकिन कुछ सोच कर मत आइयेगा. हो सकता है उस दिन भी आपको अकेले ही वापस जाना पड़े।”

नंदन ने कहा “ठीक है, मैं शुक्रवार को शाम को आऊंगा”

गीतिका ने पूछा “वैसे नंदनउस बच्ची को क्यों मारा आपने ?उसकी माँ को कसूरवार माना जा सकता है, लेकिन उस बच्ची की क्या गलती थी ?”

नंदन के पास कोई जवाब नहीं था, वह चुप होकर खड़े थे।

नन्दन को देख कर गीतिका ने कहा “ठीक है, आप शुक्रवार को आईये......बात करते हैं।”

नंदन ने “हाँ” में सिर हिलाया और गाड़ी में बैठ गये।

फिर शुक्रवार को नंदन रात के वक़्त फिर आये। गीतिका, और रजनी देवी के साथ बात करते-करते-करते काफी समय गुज़र गया लेकिन गीतिका का कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था। रात लगभग 12:30 बज रहे थे, नंदन जान चुके थे कि आज भी उन्हे खाली हाथ लौटना होगा। गीतिका फिर उन्हे पहले की तरह उनकी गाड़ी तक छोड़ने आयी थी।


अपनी गाड़ी चलाते हुए नंदन मालवीय छात्रावास के बाहर पहुँचे थे कि कुछ नकाबपोश लोग जो वहाँ पहले से मोटरसाइकिलों के साथ मौजूद थे, उनकी गाड़ी को रोका और उन्हे बाहर निकलने को कहा। वे लोग बहुत ऊंचे स्वर में नंदन को भद्दी गालियाँ दे रहे थे और गाड़ी से बाहर निकलने के लिये चिल्ला रहे थे। इतनी रात को बिल्कुल सुनसान जगह पर अचानक हुई इस वारदात को नंदन समझ ही नहीं पाये और हाथ ऊपर किये गाड़ी से बाहर आये। वह उन लोगों से बात करना चाह रहे थे लेकिन ऐसा लग रहा था कि उन लोगों के दिमाग पर पागलपन सवार था। उन्होने कोई बात नहीं सुनी और तुरंत ही उनमें से दो लोगों ने बेहद खतरनाक खंजर निकालकर नंदन के पेट में उतार दिया। अभी नंदन को इसका अंदाज़ा हुआ ही था कि पीछे से दो और लोग आये और नंदन की कमर में वैसे ही दो खंजर घोंप दिये। कुछ पलों के बाद उनमें से दो ने अपने खंजर निकाले और फिर पूरी ताकत से नंदन के पेट में घोंप दिये। इसी तरह के कई बार नंदन के शरीर में बड़ी बेरहमी से खंजर उतारे गये। नंदन के पेट से खून की नदियाँ बह निकलीं और वह गाड़ी के पहिये के पास ही गिर पड़े। इतने पर भी उन लोगों क मन नहीं भरा। उन्होने गाड़ी खोलकर तलाशी ली और गाड़ी और बिज़नेस से जुड़े जितने भी कागज़ात थे, सभी को निकाल लिया। फिर उन्होने अपने साथ बड़ी मात्रा में लाया पेट्रोल पूरी गाड़ी पर और नंदन के ऊपर छिड़क दिया और आग लगा दी। ऐसा करते ही वे लोग सभी कागज़ात सहित अपनी मोटरसाइकिलों से भाग निकले। इतनी रात, इतने सुनसान में उन्हे कोई देखने, रोकने वाला भी नहीं था। 

अगले दिन जब अखबार में प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध कारोबारी नंदन अग्रवाल की नृशंस हत्या की खबर आयी, तो रजनी देवी अखबार लेकर भागी-भागी गीतिका के पास गयी। “गीतिका ये देखो आज अखबार में क्या आया है ?नंदन को जलाकर मार दिया किसी ने” गीतिका ने अखबार हाथ में लेकर देखा और खिन्न और दुखी स्वर में माँ से कहा “जो उन्होने बोया, वही काटा।कोई क्या कर सकता है इसमे ?।इतना सब कुछ होने के बाद मेरे साथ अब उनका रहना य न रहना दोनों बराबर ही था।” 


उस रात जब गीतिका ने विजय को फोन किया था तो उसने पूछा था “विजय, निंदौरा में जिन लोगों के साथ तुम धरना-प्रदर्शन में शामिल थे, क्या उनमें से तुम कुछ को जानते हो ?क्या तुम अभी भी सम्पर्क में हो उन लोगों के ?”

“उनमे तो मैं काफी लोगों को जानता हूँ,…।और मैं बिल्कुल सम्पर्क में हूँ उनके, बल्कि जिस दिन मुझे ज़मानत मिली थी, वही लोग मुझे लेकर मेरे घर तक आये थे।उन लोगों को फोन भी आते ही रह्ते हैं। लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रही हो ?”

फिर गीतिका ने वह बात बतायी कि एक हफ्ते बाद नंदन उस से मिलने आने वाले हैं। विजय ने पूछा “तो मैं क्या करूँ ? वह मिलने आ रहा है तुमसे, अपनी बीवी से।”

“लेकिन मैं चाहती हूँ कि वह वापस अपने घर ज़िंदा न पहुँचे।”

“मतलब ?”

“मतलब वही है जो तुम समझ रहे हो।मैं इस दानव से मुक्ति चाहती हूँ, हमेशा के लिये”

विजय दंग रह गये, उन्होने कहा “गीतिका तुम्हारी नफरत जायज़ है, लेकिन इस प्रकार का कदम उठाना सही नहीं है।”

“सही तो वह भी नही था जो उसने मेरे साथ किया...अब वह फिर आ रहा है। उसको मुझसे कोई प्यार-व्यार नहीं है, उसे मेरी पोजीशन से, मेरे विधायक और सांसद के पद से प्यार है....कल फिर उसको कोई दूसरी पसंद आ जायेगी, वह फिर यही करेगा......मैं उम्र भर केवल यही बर्दाश्त करती रहूँ ?.... और फिर विजय, तुम्हारे परिवार को भी तो बर्बाद ही कर दिया है उसने........कोई भी कदम उठाने से पहले देखना चाहिये कि सामने कौन है, और मैं अच्छी तरह देख रही हूँ कि मेरे सामने कौन है. उम्मीद करती हूँ कि तुम भी देखो। गीता में भगवान ने कहा है जो, मैं वही कर रही हूँ।इसकी हत्या नहीं विजय, इसका वध होगाऔर आज की तारीख में केवल तुम ही हो जो यह वध कर सकते हो, और जो करना ज़रूरी है।”

“गीतिका मैं ज़मानत पर बाहर हूँ”

“तभी तो कह रही हूँ, जिनके साथ तुम धरने पर थे, उस लोगों को बुलाओ इस काम के लिये।”

लेकिन विजय ने साफ मना कर दिया।


रविवार को जब नंदन गीतिका से मिल कर वापस गये थे तो फिर से गीतिका ने विजय को फोन किया और सारी बात जो भी नंदन के साथ हुई, वह विजय को बताई। उसने यह भी बताया कि किस बेरहमी से विजय की पत्नी और छोटी सी बच्ची को मार दिया गया। गीतिका ने फिर विजय से पूछा “विजय, क्या तुम्हे अब भी लगता है कि इस राक्षस का ज़िंदा रहना ज़रूरी है ?क्या इसका वध नहीं किया जाना चाहिये ? वह शुक्रवार को फिर यहाँ आ रहा है। मैं देर रात तक उस से बात करती रहूंगी और काफी देर में वह यहाँ से जायेगा, गाड़ी में भी वह अकेला ही होगा क्या कहते हो ?”

 

अंत में विजय ने सहमति दे दी। 


अगले एक-डेढ़ महीने में विजय ने इस बात से भी ताल-मेल बिठा लिया कि उसकी पत्नी और बेटी की हत्या हो चुकी है, और हत्यारे को सज़ा मिल चुकी है। रजनी देवी और गीतिका के सम्बंध भी काफी सुधरे हुए लग रहे थे। फिर एक रविवार के ही दिन गीतिका के मन में आया कि आज रात का भोजन वही बनाए। बेटी अरुणा को गीतिका के हाथ की सेवईं काफी पसंद थी और वह काफी दिन से ज़िद कर रही थी, इसलिये गीतिका ने नौकरों को फिर छुट्टी जल्दी दे दी, और खुद रसोई में काम कर रही थी। अरुणा ,नानी के साथ खेल रही थी। तीनों ने भोजन किया फिर अरुणा को गीतिका ने सुला दिया। अब माँ-बेटी अपनी बालकनी में कुर्सी लगाकर दुनिय भर की बातें कर रही थीं और ठंडी-ठंडी हवा का आनंद ले रही थीं। दूर कहीं बारिश हुई थी शायद, वहीं से हवा आ रही थी। रात के करीब 11 बज गये थे बातें करते-करते जब गीतिका ने कहा “मम्मी, कॉफी बनाती हूँ, बड़ा मन कर रहा है आज” , और फिर गीतिका रसोई में चली गयी।

कुछ मिनटों के बाद वह कॉफी बना के ले आयी। वे दोनों ठंडी हवा के बीच कॉफी का आनंद ले रही थीं, और उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। कॉफी पीने के कुछ समय बाद रजनी देवी को कुछ असहजता सी महसूस हुई। गीतिका अभी भी कॉफी पी रही थी। उसने पूछा “क्या हुआ मम्मी ?” रजनी देवी ने कहा “नहीं बेटा कुछ नहीं, ...लगता है बी.पी. कुछ बढ़ा हुआ है शायद.....अब बुढ़ापा तो आ ही गया है।”

कुछ समय बाद रजनी देवी को अचानक काफी पसीना होने लगा था और उनको काफी बेचैनी होने लगी थी, उनकी साँस कुर्सी पर बैठे-बैठे ही फूलने लगी थी। उन्होने हाँफते हुई गीतिका से कहा “बेटा....ज़रा डॉक्टर मित्तल को......फोन....फोन करना.....बेटा....मित्तल....फोन....बेटा” लेकिन गीतिका अपनी कुर्सी से उठी नहीं, वह अपनी कॉफी पी रही थी और रजनी देवी को देख रही थी। अचानक रजनी देवी अपनी कुर्सी से गिर पड़ी। वह बुरी तरह हाँफ रही थी। उन्होने गीतिका की तरफ देख कर कहने की कोशिश की “बेटा.....डॉक्टर मित्तल.....फोन.....बेटा कॉफी में.....फोन......मित्तल......डॉक्टर।” ,लेकिन गीतिका अपनी जगह से नहीं उठी। उसने आराम से अपनी कॉफी खत्म की, खाली कप सामने की स्टूल पर रखा और रजनी देवी को देखने लगी। तभी अचानक रजनी देवी के मुँह से सफेद झाग निकलने लगा, साथ में खून भे निकलने लगा। रजनी देवी ने मुँह से निकलता झाग और खून देखा, और फिर सामने की कुर्सी पर गीतिका को आराम से बैठा देखा, मानो कुछ हुआ ही न हो। उनकी समझ में आ चुका था कि शह और मात का ये खेल अब खत्म हो चुका है, और गीतिका ने इस खेल की अंतिम चाल चल दी है। रजनी देवी ने रोते हुए कहा “क्यों.....क्यों किया गीतिका तुमने.....ऐसा ?......मैंने तो पूरी मदद की थी तुम्हारी” अब तक मुँह से तेज़ी से झाग निकलने लगा था।

देर से खामोश गीतिका खड़ी हुई और बालकनी के एक छोर पर पहुँची। कुछ देर तक नीचे सड़क पर देखने के बाद वह रजनी देवी की तरफ घूमी और कहा “कौन सी मदद की रजनी देवी आपने मेरी? मेरे पूज्य पिताजी को मरवा दिया, ये की मदद ?.....कृष्णा अंकल को मरवा दिया, ये की मदद ?” और रही बात मेरे और नंदन के बीच बात सुलझाने की, तो सुनिये रजनी देवी जी, आपको शायद पता नहीं है, नंदन को मेरे ही कहने पर जला कर मारा गया था। मैंने विजय से कहा था कि नंदन अपने घर ज़िंदा नहीं जाना चाहिये। उसके जैसे इंसान का न रहना बहुत ज़रूरी है। विजय ने अपने आदमियों को तैयार किया और अगले दिन आपने अखबार में खबर पढ़ी थी. उसकी हत्या नहीं रजनी देवी, विजय ने उसका वध किया है.....और अब कल के अखबार में एक और राक्षस के वध की खबर होगी।”


गीतिका ने बोलना जारी रखा “हम दोनों मजबूर थे रजनी देवी.....आप लोगों ने मिलकर हमारा जीवन नर्क से भी बदतर बना दिया था। हम दोनों में से किसी को भी, राजनीति में किसी भी पद की चाह नहीं थी। हम बस सुकून से जीना चाहते थे, जैसे दुनिया में करोड़ों इंसान रहते हैंहैं, लेकिन आप लोगों ने हमें चैन से जीने भी नहीं दिया। मुझे नहीं बनना था एम.एल.ए. या फिर एम.पी………मैं केवल अपने पिताजी कि हरसम्भव मदद करना चाह्ती थी, क्योंकि इस घर में एक वही थे, जिनको मैं अपना कह सकती थी. विजय को भी कोई पद नहीं चाहिये था। किसानों के लिये काम करना उसे अच्छा लगता था और वह बस वही कर रहा था। बोलिये क्या बुरा था ये ? लेकिन आप लोग नहीं माने……उसकी छोटी बेटी तक को नहीं छोड़ा आपने.......गलती तो छाया कि थी न, लेकिन उसने क्या बिगाड़ा था आप लोगों का ? फिर गीता में भगवान ने कहा भी है कि सही नतीजा हासिल करने के लिये कभी-कभी कुछ गलत कदम उठाने पड़ जायें अगर तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है. पिछले कुछ दिनों में हमने यह महसूस किया कि न चाहते हुए भी यह गलत काम हमें करना ही पड़ेगा, इसलिये हमने यह कदम उठाया।”


रजनी देवी अब तक तड़प-तड़प कर मद्धम पड़ने लग गयी थी, उनके शरीर की हरकत धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। गीतिका अपने सामने उनको देखे जा रही थी। थोड़ी देर बाद रजनी देवी बिल्कुल शांत पड़ गयी थी। मुँह से उनके झाग अभी भी निकल ही रहा था।

गीतिका ने शहर के पुलिस कमिश्नर शुक्ला जी को फोन लगाया। शुक्ला जी, पाठक जी के बहुत करीबी दोस्त थे, और हमेशा पाठक जी की मदद करते थे चाहे उनकी पोस्टिंग अकबराबाद हो या कहीं भी। शुक्ला जी की वजह से ही वैभव की काली करतूतों के बावजूद वह बचता रहा था। शुक्ला जी ने फोन उठाया “हैलो ?”

“हैलो, शुक्ला अंकल ?।मै गीतिका”

“अरे गीतिका बेटा ! !....इतनी रात को ?सब कुशल-मंगल तो है ?”

“जी अंकल,…एक इमरजेंसी सिचुएशन आ गयी है.....आप प्लीज़ जल्दी आ जायेंगे यहाँ ?.....अंकल प्लीज़ मना मत कीजियेगा, इट्स एक्स्ट्रीमली अर्जेंट ! !....और प्लीज़ अकेले ही आइयेगा।”

शुक्ला जी तुरंत अपनी गाड़ी खुद ड्राइव करके पहुँचे। वहाँ का नज़ारा देख कर वह दंग रह गये। फिर गीतिका ने उन्हे बहुत आराम से सारी बातें बताई। सब कुछ जान कर और समझ कर शुक्ला जी ने गीतिका को भरोसा दिया कि सब कुछ वैसा ही होगा जैसे वह चाहती है।

अगले दिन प्रदेश के बड़े अखबारों में प्रमुख खबर थी “नव-निर्वाचित विधायक और श्रमशक्ति पार्टी की अध्यक्ष गीतिका पाठक को मातृ-शोक....माँ रजनी देवी जी की मृत्यु कल रात दिल का दौरा पड़ने से हो गयी, वे 74 वर्ष की थी।”


अगले एक साल तक विजय की लगातार पेशियाँ होती रहीं, लेकिन केस किसी निर्णायक दिशा में नहीं बढ़ सका था। सेंट्रल एजेंसी और पुलिस अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद विजय को दोषी सिद्ध न कर सके। थक-हार कर एजेंसी और पुलिस ने, हाइकोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट फाइल की कि कोई भी पुख्ता सबूत या गवाह के अभाव में इस केस में आगे बढ़ना अति दुष्कर है, और विजय राज मिश्रा के ऊपर तो आरोप तक तय किये जाने लायक प्रमाण नहीं मिल पाये हैं, अत: इस केस को यहीं पर खत्म माना जाये। हाइकोर्ट ने एजेंसी और पुलिस को लताड़ लगाते हुए, विजय को बाइज़्ज़त बरी किया और वी।पी। पाठक-के।पी। मिश्रा दोहरा हत्याकाण्ड केस को समाप्त घोषित किया।

विजय के बरी होने के बाद, गीतिका ने उस से शादी की। विजय ने “अन्नदाता इंडिया” नामक संस्था की स्थापना की किसानों के हित के लिये काम करती थी। गीतिका एक बार विधायक रही, और एक बार सांसद, उसके बाद उसने सक्रिय राजनीति पूरी तरह छोड़ दी और विजय की संस्था के साथ पूरे मनोयोग से जुड़ गयी। इसी संस्था को समाज सेवा के क्षेत्र में आज प्रतिष्ठित मैगसेसे पुरस्कार मिलने की खबर सुबह से चल रही थी।


25 साल पुरानी इस कहानी को सोचते-सोचते रात के 1:30 बज गये थे। गीतिका की आँखों में अभी भी नींद नहीं थी और वह विजय को देखे जा रही थी। थोड़ी देर बाद विजय अचानक उठ गये। गीतिका ने पूछा “क्या हुआ विजय ?...उठ क्यों गये ?” विजय ने आलस भरे स्वर में कहा “प्यास लगी है गीतिका, थोड़ा पानी पिला देना तो” गीतिका उठी और विजय के लिये पानी लेने फ्रिज की तरफ बढ़ गयी।


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