हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Crime Thriller

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Crime Thriller

कातिल कौन, भाग 18

कातिल कौन, भाग 18

11 mins
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जब सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी अनुपमा और अक्षत की "रासलीला" को रस ले लेकर कोर्ट में सुना रहा था तब सक्षम, अनुपमा और अक्षत तीनों के सिर नीचे झुके हुए थे । अनुपमा बहुत देर तक सब्र करती रही पर आखिर उसका सब्र भी जवाब दे गया तो वह चीख पड़ी 

"स्टॉप दिस नॉनसेंस ! एक महिला पर भरी कोर्ट में ऐसे बेहूदे इल्जाम लगाते हुए शर्म नहीं आती है आपको ? मैं कब से आपकी "मनोहर कहानियां" सुने जा रही हूं लेकिन आप बकते ही चले जा रहे हैं । आखिर सहन शक्ति की भी कोई सीमा होती है । आप झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं और हम सब उसे सुने जा रहे हैं । यह भी कोई न्याय है क्या" ?


अनुपमा का चेहरा गर्म तेल की तरह खौल रहा था । वह सिंहनी की तरह दहाड़ उठी थी । उसकी दहाड़ सुनकर एक बार तो त्रिपाठी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई लेकिन उसे तुरंत अहसास हो गया कि वह डी जे कोर्ट में बहस कर रहा है और इन कोर्टों में तो वकीलों का साम्राज्य होता है । यहां कोई माई का लाल भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । 


पूछताछ के बहाने किसी महिला को सरेआम बेइज्जत करना वकीलों के पैशन बन गया है इसीलिए महिलाऐं कोर्ट कचहरी से डरती हैं । कोर्टों में फरियादी और गवाहों को सरेआम अपमानित करने में वकीलों को बहुत मजा आता है । कोर्ट इसके लिए उन्हें रोकती, टोकती नहीं है और चुपचाप उनका मुंह ताकती रहती हैं इसलिए इनके हौंसले और भी अधिक बुलंद होते जाते हैं । इन्हें न तो किसी महिला की गरिमा का ख्याल है और न ही किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की प्रतिष्ठा का ? इन्हें तो बस अपने मतलब की चीजों से ही मतलब होता है । 


अनुपमा की बात सुनकर त्रिपाठी वकील भड़क गया । वह डी जे से कहने लगा

"योर ऑनर, एक वकील का काम है अपनी बहस में मामले के तथ्य रखना और उस संबंध में बने कानूनी प्रावधानों को बताना । कोर्ट की इजाजत से मैं वही कार्य कर रहा था लेकिन आरोपिता ने मेरे कार्य में न केवल व्यवधान डाला है अपितु मुझे भरी कोर्ट में अपमानित कर "कंटेप्ट ऑफ कोर्ट" की कार्रवाई की है । अत: सभी आरोपियों को पाबंद किया जाये कि वे मेरी बहस के बीच में नहीं बोलें और जो कुछ यहां कहा गया है उसके लिए वे माफी मांगें? 


डी जे साहब कुछ कहने के लिए तैयार हुए पर बीच में ही हीरेन दा खड़े हो गये और अपने बालों को झटक कर उनमें ऊपर की ओर उंगली फिराने लगे । अपनी जेब से पानदान निकाला और उसमें से एक चांदी के वर्क लगा "शरबती पान" निकाला और उसे चुपके से अपने मुंह में दबाकर बोलने लगे 


"अपनी क्लाइंट की अभद्रता के लिए मैं कोर्ट से माफी मांगता हूं, योर ऑनर । दरअसल इन लोगों ने कभी कोर्ट कचहरी की कार्रवाई को गौर से देखा नहीं है इसलिए इन्हें इस प्रक्रिया का कुछ अता पता नहीं हैं । कोर्ट में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा रहता है ना "सत्यमेव जयते" तो ये लोग यह समझ जाते हैं कि कोर्ट में सत्य की ही जीत होती होगी । इन बेचारों को यह पता नहीं है कि कोर्ट में झूठे गवाह , झूठी दलीलें और झूठे दस्तावेज पेश कर झूठा न्याय होता है । या यों भी कह सकते हैं कि न्याय के नाम पर तमाशा होता है ।  

कोई जमाने में होता होगा "सत्यमेव जयते", आज तो चारों तरफ "असत्यमेव जयते" का बोलबाला है । मैं मेरे मुवक्किल की तरफ से कोर्ट और विद्वान वकील साहब से इस धृष्टता के लिए पुन: क्षमायाचना करता हूं" । हीरेन दा ने अपने सभी मुवक्किलों से कहा "यदि तुम्हें बीच में कुछ कहना भी पड़े तो केवल मुझे कहना । विद्वान वकील साहब को कुछ नहीं कहना है , समझ गये सब लोग" ? 


तीनों ने हां में गर्दन हिला दी । तब जज साहब ने सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी से कहा "हां जी वकील साहब, आप अपनी बहस कंटीन्यू कर सकते हैं" । 


"यस मी लॉर्ड् । तो मैं कह रहा था कि अनुपमा अपना पोर्ट्रेट बनवाने के लिए कमरे में आ गई । उसने अक्षत के सामने ही अपने सारे कपड़े निकाले और एक पोज बनाकर बैठ गई । अक्षत ने किसी जवान औरत का नग्न शरीर पहली बार देखा था । अनुपमा का गोरा अनावृत बदन देखकर अक्षत की आंखें चौंधिया गईं । वह अपलक अनुपमा को देखे जा रहा था । अनुपमा भी लाज के मारे दोहरी हुई जा रही थी । दोनों निशब्द होकर एक दूसरे को निहारने लगे । 


"पेन्टर महाशय , अपना काम शुरू कीजिए । मुझे ऐसे बैठे रहने में शर्म आ रही है" अनुपमा ने सकुचाते हुए कहा । 

"ओह ! मैं तो भूल ही गया था । अच्छा हुआ जो आपने याद दिला दिया" । अक्षत अपनी ब्रश और कलर लेकर कागज पर अनुपमा का पोर्ट्रेट बनाने लगा । लगभग दो घंटे में अनुपमा का पोर्ट्रेट बनकर तैयार हो गया । 


"यह रहा वो पोर्ट्रेट और ये रहे बाकी की पेन्टिंग्स" । कहते हुए नीलमणी त्रिपाठी ने जज साहब के सामने अक्षत की बनाई सारी पेन्टिंग्स रख दी और एल्बम का कवर पेज जिस पर लिखा था "माई फ़र्स्ट लव" वह भी जज साहब के सामने रख दिया । जज साहब उन पेन्टिंग्स और कवर पेज को देखने लगे । जज साहब ने अक्षत से पूछ लिया 

"क्या ये पेन्टिंग्स आपने बनाई हैं" ? 

"यस सर" अक्षत ने सिर नीचा किये हुए ही जवाब दिया । 

"गुड । यू कैन कैरी ऑन मिस्टर त्रिपाठी" । जज साहब ने सरकारी वकील को बहस आगे चलाने को कहा । 


"योर ऑनर ! उस दिन अक्षत और अनुपमा में पहली बार शारीरिक संबंध बने और उसके बाद ये दोनों अक्सर संबंध बनाते रहे । जब अनुपमा जाने के लिए अपने अंगवस्त्र पहनने लगी तब अक्षत ने उससे रिक्वेस्ट करते हुए कहा 

"इन्हें अपनी अमानत के तौर पर यहीं रहने दो ना" ! "प्लीज भाभी" ? 

अक्षत की इस अजीबोगरीब फरमाइश पर अनुपमा खूब तेज हंसी और हंसते हंसते हुए ही उसने पूछा "क्या करोगे इनका" ? 

"संभालकर रखूंगा । जब कभी भी आपकी याद आएगी तब इन्हें देख लूंगा और यह मान लूंगा कि आपके दर्शन हो गए हैं" । अक्षत के चेहरे पर अब शरारत खेल रही थी । 

"अगर इन्हें अपने पास रखने से तुम्हें चैन मिलता हो तो रख लो अपने पास । मैं नीचे जाकर दूसरे पहन लूंगी" । अनुपमा ने वे अंगवस्त्र वहीं छोड़ दिए । ये रहे वे अंगवस्त्र" । सरकारी वकील ने एक पैकेट जज साहब के हाथों में देते हुए कहा । जज साहब ने उन वस्त्रों को एक नजर देखा और फिर एक नजर अनुपमा को देखा । जज साहब ने अनुपमा से पूछा 

"क्या ये अंगवस्त्र आपके हैं" ? 

"जी, जज साहब" । अनुपमा ने स्वीकार कर लिया । 

"कैरी ऑन मिस्टर त्रिपाठी" जज साहब ने आगे बहस करने के लिए हरी झंडी दिखा दी । 


"सर, इस प्रकार अनुपमा और अक्षत में प्रगाढ रिश्ते बन गए । कहावत है कि जब आग लगती है तो धुंआ भी उठने लगता है । जब एक स्त्री और एक पुरुष में संबंध बनते हैं तो किसी न किसी की निगाहों में आ ही जाते हैं । इश्क और मुश्क कहीं छुपते हैं क्या ? जल्द ही सक्षम को इनकी रासलीला का पता चल गया । सक्षम क्रोध में खौलने लगा । उसके सिर पर दोनों को मारने का भूत सवार हो गया । इन दोनों की हत्या करने के लिए वह योजना बनाने लगा । उसने एक सुपारी किलर राहुल की मदद ली और उसे 10 लाख रुपये में "हायर" कर लिया । राहुल तक पहुंचने का जरिया बना सुभाष । 


सुभाष सक्षम के ऑफिस में गार्ड का काम करता है । एक दिन वह बता रहा था कि किस तरह उसकी कॉलोनी में एक ट्रिपल मर्डर हुआ था । तब सक्षम ने उससे उस ट्रिपल मर्डर के बारे में जानकारी ली और धीरे धीरे सुभाष सक्षम के नजदीक आ गया । एक दिन सक्षम ने उसे उस सुपारी किलर से मिलवाने को कहा तो सुभाष ने उसे एक सुपारी किलर राहुल से मिलवा दिया । राहुल और सक्षम में 10 लाख रुपए में सौदा पक्का हो गया । मैं विटनेस बॉक्स में सुभाष को बुलाने की इजाजत चाहता हूं योर ऑनर" । सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी ने जज से कहा । 

"ठीक है । इजाजत है" । जज ने इजाजत दे दी । 


दरबान ने जोर से आवाज लगाई "सुभाष अदालत में हाजिर हो" । 


सुभाष नाम का एक व्यक्ति अदालत में हाजिर हो गया जिसे विटनेस बॉक्स में ले जाया गया । उसके हाथ में गीता की एक प्रति देकर उससे प्रतिज्ञा करवाई गई । 

"जो भी कहूंगा , सब सच कहूंगा । सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा" । 

कोर्टों में सच बोलने की शपथ का यह पुराना ढर्रा चला आ रहा है जबकि जज, वकील और गवाह सब जानते हैं कि कोर्ट में सच के सिवाय सब कुछ कहा जाता है । लेकिन यह परंपरा चली आ रही है तो इसको अभी तक ढो रहे हैं न्याय दिलाने वाले । यद्यपि परंपराओं के विरुद्ध हजारों निर्णय सुना दिए हैं सुप्रीम और हाईकोर्ट ने पर पता नहीं गीता की शपथ करवा कर गीता के अपमान की ओर न्यायालय का ध्यान अब तक क्यों नहीं गया ? 


सरकारी वकील त्रिपाठी जी उठकर विटनेस बॉक्स के पास आये और सुभाष से पूछने लगे 

"आपका नाम" ? 

"सुभाष चंद" 

"उम्र" ? 

"35 वर्ष" 

राहुल को जानते हो" ? 

"हां, अच्छी तरह से" 

"कैसे जानते हो उसे" ? 

"वह मेरी मौसी की मामी की दौरानी की ननद की बहन का बेटा है" सुभाष ने राहुल से अपना नजदीकी रिश्ता बता दिया 

"कब से जानते हो" ? 

"जब से पैदा हुआ तब से ही। बचपन में हम लोग साथ साथ खेलते थे" सुभाष का आत्मविश्वास देखने लायक था । वह अदालती प्रक्रिया से घबराया नहीं था । ऐसा लगता था कि वह पहले भी गवाही दे चुका है । 

"क्या करता था वह" ? 

"टिकिट काटा करता था और क्या" ? 

"मतलब रेल या बस की बुकिंग पर काम करता था" ? त्रिपाठी जी ने जोर देकर पूछा । 


त्रिपाठी जी के इस तरह पूछने पर सुभाष जोर से हंसा । इस पर जज साहब बहुत नाराज हुए । उन्होंने कड़क कर कहा 

"ये हमारी अदालत है । इसमें हमारी मरजी के बिना एक पत्ता भी नहीं खड़कता है । क्या तुम्हें ये पता नहीं है" ? 


सुभाष जज साहब के रौद्र रूप से घबरा गया था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसने क्या गलती की है ? वह डरते डरते बोला "हुजूर , मैंने तो एक भी पत्ता नहीं खड़काया है अभी तक । आप कहें तो खड़का दूं" ? 


सुभाष के इस मासूम से जवाब पर जज साहब को जोर से हंसी आ गई । जज साहब को हंसते देखकर बाकी के लोग भी हंस दिए । कोर्ट का यही नियम है कि जज साहब के मूड के हिसाब से सबको व्यवहार करना पड़ता है । यदि जज साहब हंसे तो ही सबको हंसने की अनुमति है अन्यथा बिल्कुल नहीं हंस सकते । बीच में अगर कोई हंसा तो जज साहब का हथौड़ा जोर से बोलेगा "ऑर्डर ! ऑर्डर" । तब आपको शर्मसार होना पड़ेगा । कोर्ट मैन्युअल की पालना करना अति आवश्यक है । 


जज साहब सुभाष से बोले "अदालतों में न हंसा करते हैं और न ही रोया करते हैं । यदि हंसी बहुत तेज आ रही है और वह रोके से भी नहीं रुक रही है तो पहले कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है कि "जज साहब, मुझे बहुत तेज हंसी आ रही है, यदि आपकी इजाजत हो तो मैं हंस लूं"। फिर कोर्ट तथ्यों और कानून के प्रावधानों के अनुसार निर्णय लेगा कि हंसने की अनुमति दी जा सकती है अथवा नहीं । समझे ? अब दुबारा बिना अनुमति के मत हंसना" । जज साहब ने रहम करते हुए सुभाष की जान बख्श दी वरना उन्हें सारे पॉवर हैं , कुछ भी कर सकते हैं । जज साहब के इतना कहते ही पूरी अदालत में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा । 


माहौल "नॉर्मल" होने पर सरकारी वकील ने आगे पूछना शुरू किया 

"कौन से टिकिट काटा करता था राहुल" ? 

"यमराज जी का टिकिट काटता था राहुल । यानि वह सुपारी किलर था" 

"सक्षम को कैसे जानते हो" ? 

"साहब हमारी कंपनी में काम करते हैं इसलिए इन्हें जानता हूं" 

"तुमने सक्षम को किसी सुपारी किलर से मिलवाया था क्या" ? 

"हां, राहुल से मिलवाया था" 

"किसलिए" 

"साहब कह रहे थे कि उनकी बीवी का किसी लौंडे से चक्कर चल रहा है इसलिए दोनों को रास्ते से हटाना है" 

"कितने में सौदा हुआ" ? 

"दस लाख रुपए में" 

"क्या पैसे तुम्हारे सामने दिए गए" ? 

"एडवांस के रूप में 5 लाख रुपए मेरे सामने दिये गये थे" 

"और बाक" ?

"और बाकी का पता नही" । 

"तुम सक्षम को पहचान सकते हो क्या" ? 

"हां हां, क्यों नहीं ? वो जो लंबे से पतले से साहब खड़े हैं, वे सक्षम सर हैं" । 

"ठीक है । अब तुम जा सकते हो" 


"योर ऑनर, सुभाष की गवाही से स्पष्ट है कि राहुल को सक्षम ने अक्षत और अनुपमा दोनों के मर्डर के लिए हायर किया था और इसके लिए 10 लाख रुपए में सौदा हुआ जिसमें से आधे पैसे एडवांस में ही राहुल को दे दिये गए थे । 

मी लॉर्ड् ! किसी अपराध को करने के लिए कोई न कोई मोटिव होना चाहिए । इस केस में सक्षम के द्वारा अपराध कारित करने का एक सॉलिड मोटिव था जिसके लिए उसने राहुल को हायर भी कर लिया था" 


(अगले अंक में आप पढेंगे कि किस तरह राहुल उस घर में मर्डर के लिए जाता है और वह खुद शिकार बन जाता है ) 



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