हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime Thriller

5.0  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Crime Thriller

कातिल कौन ,भाग 46

कातिल कौन ,भाग 46

12 mins
533



आज अदालत में बहुत ज्यादा चहल पहल थी । कारण था कि रात में कातिल पकड़ा जा चुका था । सारे न्यूज चैनल्स चीख चीखकर कर रिपोर्टिंग कर रहे थे कि कातिल पकड़ लिया गया है मगर एक भी चैनल ने कातिल का नाम नहीं बताया था । इसका श्रेय हीरेन को जाता है । उसने कातिल को अपने विश्वस्त लोगों के सुपुर्द कर दिया था जो उससे राज उगलवा रहे थे । मीडिया को बस इतनी ही जानकारी दी गई थी कि कातिल पकड़ा जा चुका है । कातिल का मुंह जज साहब, आदित्य, मीना और आदित्य की टीम ने देखा था मगर हीरेन ने इन सबको कातिल का नाम नहीं बताया था । ये सब लोग केवल उसकी सूरत जानते थे क्योंकि उन्होंने उसका चेहरा देखा था , नाम हीरेन ने बताया नहीं था । बस इतना पता था कि वह एक 30-32 साल का नवयुवक है जिसके दाढ़ी मूंछें हैं । उसकी पर्सनैलिटी बहुत शानदार है । जिसकी लाश को वह उत्तम नगर थाने के भवन के नीचे दफना रहा था वह कौन था ? इसका पता किसी को नहीं था मगर हीरेन ने उसका खुलासा कर दिया था । वह व्यक्ति श्याम अग्रवाल था जो "आनंदम सोसायटी" का प्रेसीडेंट था । 

जब से न्यूज चैनल्स पर इस घटना की रिपोर्टिंग होनी शुरू हुई थी तब से जनता में कातिल को देखने और उसके द्वारा किये गए कत्लों का रहस्य जानने की बड़ी उत्कंठा हो रही थी । भीड़ अदालत की ओर खिंची चली आ रही थी । पुलिस को भीड़ को रोकने का आदेश दिया गया मगर भीड़ रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी । तब हर चौराहे पर बड़ी बड़ी स्क्रीन लगाकर अदालत की कार्यवाही "लाइव" दिखाने की बात की गई तब जाकर भीड़ अदालत आने से रुकी और अपने अपने नजदीक के चौराहों पर लगे स्क्रीन पर अदालत की कार्यवाही देखने लगी । 


आज तो अदालत में लगी सभी सीटों पर सभी वकीलों ने अपना कब्जा कर लिया था । ऐसे केस जिन्दगी में बार बार नहीं आते हैं जो इतने उलझे हुए होते हैं । यही जानकर सब वकील लोग आ गये थे अदालत में । जनता को बाहर ही बैठना पड़ा । वैसे जनता की तो नियति ही यही है । सत्ता हो या न्यायालय, जनता को तो बाहर ही बैठना पड़ता है । आम आदमी बनकर भी जो नेता सत्ता में आते हैं वे भी अपने लिए 50-50 करोड़ का बंगला बनवा लेते हैं और जनता ठगी सी खड़ी खड़ी उनको "राज" करते हुए देखती रहती है । वैसे तो अपनी सभाओं में ये नेता कहते हैं कि "जनता असली मालिक है" पर जब जनता इनको सत्ता सौंप देती है तो चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं कि "दिल्ली के मालिक तो हम हैं" । जनता को सौ बार सोचना होगा कि वह किन लोगों को सत्ता सौंपे ? गिरगिट लालों को या देश के सच्चे सपूतों को ? 

सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी जी ने अपनी सीट संभाल ली थी । हीरेन और मीना दोनों साथ साथ ही आये थे । मीना ने तो हठ कर ही रखा था कि वह हीरेन को अकेला नहीं छोड़ेगी । इसके पीछे दो कारण थे । एक तो हीरेन पर हमले का ही कारण था पर दूसरा कारण थोड़ा विचित्र था । मीना को डर लगता था कि यदि हीरेन को अकेला छोड़ दिया गया तो उसे कोई "तितली" उड़ाकर ले जाएगी । इसलिए वह ऐसी कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी जिससे उसका हीरेन किसी और का हो जाए । हीरेन का मुंह पान से भरा हुआ था । आज तो मीना ने लाड़ लाड़ में उसे जबरन कई कई पान खिला दिये थे । उसका प्यार करने का तरीका ऐसा ही है । मुंह में इतने पान ठुंसे होने के कारण हीरेन को बोलने में भी बहुत जोर आ रहा था । पर मीना तो मीना है , वह कुछ भी कर सकती है । इश्क और लड़ाई में सब जायज है । 


इतने में जज साहब आ गये । सब लोग उनके सम्मान में खड़े हो गये । जज साहब के चेहरे पर आज जजों वाला रौब नहीं था बल्कि एक मासूम सी मुस्कान खेल रही थी । इसका कारण क्या था , ये तो वही बता सकते थे । उनके डायस पर बैठते ही अदालत की कार्यवाही शुरू हो गई । 


हीरेन अपनी सीट से खड़ा हुआ और जज साहब को प्रणाम करते हुए बोलने को तैयार हुआ ही था कि जज साहब बोल उठे 

"मिस्टर हीरेन, आप अपनी बहस शुरू करें उससे पहले मैं आपको कुछ देना चाहता हूं" । उनके अधरों पर मुस्कान और चेहरे पर आग्रह के भाव थे । 


उनकी बात सुनकर अदालत में बैठे सभी वकील दंग रह गये । जज साहब के बारे में यह प्रचलित था कि जज साहब बहुत कंजूस हैं । बोलते भी कंजूसी से ही हैं । वही जज साहब आज क्या देना चाहते हैं हीरेन को ? और हीरेन ने ऐसा क्या जादू कर दिया है जो जज साहब इतने प्रभावित हो गये थे उससे ? इसकी जिज्ञासा सबको थी । औरों की तरह हीरेन भी चौंका था । उसने जज साहब की ओर आश्चर्य से देखा । जज साहब ने ही सस्पेंस खत्म करते हुए कहा 


"अरे, आप लोग इतने आश्चर्य चकित क्यों हो रहे हैं ? जिस तरह जासूस महोदय ने कल अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है उससे मेरे मन में इनके लिए बहुत आदर और सम्मान पैदा हो गया है । दूसरे जजों की तरह मैं भी यही समझता था कि केवल हम लोग ही ईमानदार हैं और पूरी निष्ठा से काम करते हैं । लेकिन जब मैंने कल हीरेन दा का काम देखा तो पाया कि बाकी लोग हमसे भी अधिक ईमानदार हैं और अपने काम में अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं । इससे मेरा मन हीरेन दा के प्रति श्रद्धा से भर गया है । मैं आज इन्हें अपनी ओर से कुछ देना चाहता हूं । किसी को कोई ऐतराज तो नहीं है ना" ? 


पूरी अदालत में सन्नाटा व्याप्त हो गया । जज साहब किसी को कुछ दें इस पर किसी को क्या ऐतराज हो सकता है ? ऐतराज यदि होगा तो वह हीरेन को ही होगा, बाकी को ऐतराज क्यों होने लगा ? हीरेन को ऐतराज तो नहीं मगर उत्सुकता अवश्य थी कि जज साहब आज उसके लिए क्या लेकर आए हैं ? 


जज साहब बोले "जिस तरह हीरेन दा ने इस केस में सस्पेंस बनाए हुए रखा है, वैसा सस्पेंस मैं रखने वाला नहीं हूं । मैं तो हीरेन दा को एक "गोल्डन पान" देना चाहता हूं और कुछ नहीं । हीरेन दा ने मुझे पान खिला खिलाकर पानों का जो चस्का मुझे लगाया है तो मेरी घरवाली ने अपने मायके में मेरे इस नये शौक का बढ़चढ़कर बखान कर दिया । मेरी घरवाली बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के बरहिमा गांव की रहने वाली हैं । उस गांव का "गोल्डन पान" देश विदेश में बहुत मशहूर है । जब से उन लोगों ने मेरी पान खाने की आदत के बारे में सुना है तब से वे लोग ये गोल्डन पान खिलाने को बहुत आतुर हो रहे थे । कल हमारे साले साहब जब हमारे घर आये तो वे अपने गांव से ये गोल्डन पानों की एक डलिया भरकर ले आये और साथ में पान के मसालों की एक पोटली बांध लाये । उन्होंने हमें पान लगाना सिखा दिया । हमने अपने हाथों से पहला पान हीरेन दा के लिए बनाया है । उम्मीद है कि दा को यह पान पसंद आएगा । इस पान में 30 प्रकार की चीजें डलती हैं । यह गोल्डन पान बहुत पौष्टिक होता है । जो खाये वह कभी ना भूल पाये और जो न खाये वह सारी उमर पछताये" । मुस्कुराते हुए जज साहब ने तुकबंदी का तीर छोड़ दिया था । 


गोल्डन पान के बारे में दिल्ली में कोई जानता नहीं था इसलिए सबका मन गोल्डन पान खाने के लिए लालायित हो उठा । जज साहब का इतना प्रेम पाकर हीरेन गदगद हो गया । उसने जज साहब के सामने नत मस्तक होकर कृतज्ञता प्रदर्शित की और उसने वह गोल्डन पान लेकर अपने मुंह में रख लिया । पान के मुंह में जाते ही वह आनंद के सागर में गोते लगाने लगा । हीरेन ने जज साहब का आभार व्यक्त किया तो जज साहब बोले 

"अब तो कातिल का भी पता चल गया है जासूस महोदय, इसलिए अब इस केस के समस्त रहस्यों से शीघ्र पर्दा हटा दो । जनता भी संपूर्ण सत्य जानने के लिए बहुत बेसब्री से इंतजार कर रही है" । 


जज साहबकी इस बात पर हीरेन ने हंसते हुएकहना शुरू किया 

"यस योर ऑनर ! आज मैं इस केस का "द एण्ड" करके ही दम लूंगा । तो मैं आज की बहस शुरू करते हुए कहना चाहता हूं मी लॉर्ड कि यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है जो एक गांव में एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था । जिसका बाप पेड़ों पर लगे मधुमक्खी के छत्तों से शहद एकत्रित करने का काम करता था । इस काम से उसका बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था । वह आदमी चाहे गरीब था लेकिन अपने पेशे के प्रति वह बहुत ईमानदार था । उसने शहद में कभी मिलावट नहीं की थी मी लॉर्ड । आज तो बाजार में बड़ी बड़ी नामी गिरामी कंपनियों के शहद में केवल चीनी ही मिलती है । शुद्ध शहद की पहचान यही है मी लॉर्ड कि वह कभी जमता नहीं है और जो जम जाता है वह शहद नहीं चीनी है । तो सत्तन सिंह अपनी ईमानदारी के लिए विख्यात था । उसकी पत्नी बिरमा देवी एक अनपढ और घरेलू औरत थी जो छोटा मोटा काम करके घर की आय में थोड़ा बहुत योगदान दे देती थी । दोनों पर ईश्वर की भरपूर कृपा थी इसलिए उनके पूरे 8 बच्चे पैदा हुए । यह कोढ में खाज वाली बात हो गई थी सत्तन के लिए । 


जैसे तैसे करके बच्चे पल रहे थे । सत्तन के सातवां लड़का था जिसका नाम रखा था "मधु सिंह" । मधु बहुत कुशाग्र बुद्धि का बालक था । किसी भी बात को वह बड़ी जल्दी पकड़ लेता था । जो कोई बात वह सुन लेता था उसे एक बार में ही याद कर लेता था । उसका ध्यान हमेशा खेलकूद में ही लगा रहता था , पढने में उसकी नानी मरती थी । किताबों से उसे ऐसे ही परहेज था जिस तरह दमा के मरीज को ठंडी चीजों से परहेज होता है । सत्तन और विरमा देवी को बच्चों पर ध्यान देने के लिए समय ही नहीं मिलता था । 


मधु धीरे धीरे बड़ा होने लगा । भगवान ने उसे बनाया भी बहुत खूबसूरत था । वह ज्यों ज्यों बड़ा हो रहा था त्यों त्यों उसका रूप रंग और निखर रहा था । मूंछें आने लग गई थी उसके और हलकी हलकी दाढी भी आने लगी थी । गांव की लड़कियां उस पर मर मिटने को तैयार थीं पर उसका ध्यान लड़कियों पर जाता ही नहीं था । एक एक कक्षा में उसे तीन तीन साल लग जाते थे । तब अध्यापक उसे जानबूझकर पास कर देते थे । पांचवी कक्षा में वह सोलह साल का था । 


वह अपने पिता के साथ "शहद का छत्ता" तोड़ने जाया करता था । उसे पता था कि छत्ता तोड़ना कितना कठिन काम है ? सभी मधुमक्खियां एक साथ आक्रमण कर देती हैं । बुरी तरह से काट खाती हैं छत्ता तोड़ने वाले को । इन सब बाधाओं को पार करने के पश्चात जब शहद निकलता तो वह थोड़ा सा ही होता था । सत्तन नाम का ही सत्यवादी नहीं था , वास्तव में वह था भी सत्यवादी हरिश्चंद्र ही । मिलावट वह करता नहीं था इसलिए मधु सिंह और सत्तन में अक्सर खट पट होती रहती थी । 


एक दिन सत्तन ने शहद का मटका मधु सिंह को दे दिया और उसे बाजार में बेच आने को कह दिया । मधु सिंह ने मौका देखकर उसमें चीनी का रस बनाकर आधा मटका पूरा कर दिया । उसे उस दिन और दिनों की तुलना में दुगने दाम मिल गए । वह उछलता कूदता घर आ गया । घर पर सारे पैसे सत्तन को दे दिये तो सत्तन इतने रुपए देखकर भन्ना गया और उसने मधु से पूछा कि क्या तूने शहद में कुछ मिलावट की थी" ? पहले तो मधु टाल-मटोल करता रहा लेकिन बाद में उसने स्वीकार कर लिया कि उसने उसमें "चाशनी" मिलाई थी । बस, सत्तन ने एक लाठी उठाई और दे दनादन करते हुए मधु की खाट खड़ी कर दी । 


मधु गुस्सा होकर घर से भाग गया और एक रेल में चढ गया । वह रेल दिल्ली जा रही थी । रास्ते में टीटी आया भी था लेकिन एक गरीब बच्चा समझकर उसने उसे छोड़ दिया । मधु दिल्ली आ गया । वह दिन भर का भूखा था इसलिए वह एक होटल पर चला गया और उसने होटल के मालिक से कहा कि वह भूखा है, उसे खाना खाना है पर उसके पास पैसे नहीं है । होटल के मालिक ने कहा कि वह फ्री में खाना नहीं खिलाएगा, उसे कुछ काम करना होगा । मधु इस पर राजी हो गया । उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था । इस तरह से मधु सिंह का उस होटल में अस्थाई जुगाड़ हो गया था । 


दिन, महीने, साल बीतते रहे । मधु सिंह होटल में नौकरी करता रहा और "चक्क" खाना खाता रहा । वह अब 21-22 साल का युवक बन गया था । उस होटल में एक प्लंबर दीनानाथ भी आता रहता था खाना खाने के लिए । मधु सिंह की उससे गहरी छनने लगी थी । दीनानाथ लगभग 50 वर्ष का आदमी था । उसकी शादी हुई नहीं थी इसलिए वह अकेला ही रहता था । मधु सिंह से उसे लगाव सा हो गया था । वह उसे बेटा कहकर बुलाता था । मधु भी उसे पूर्ण सम्मान देता था । दीनानाथ दारू बहुत पीता था । वह दारू पीकर वहीं होटल में ही बेहोश हो जाया करता था । मधु उसे ऑटो में साथ ले जाकर उसके घर छोड़कर आता था । इसलिए दीनानाथ मधु से प्रेम भी बहुत करने लगा था । 


एक दिन दीनानाथ ने मधु से कहा कि वह उसके साथ उसका बेटा बनकर रहे तो वह लोगों के झूठे बर्तन धोने से बच जाएगा । वह प्लंबर का काम भी सिखा देगा जिससे उसकी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी । यह बात मधु को पसंद आ गई और वह दीनानाथ के साथ उसके घर चला आया । मधु ने दो साल में ही प्लंबर का काम सीख लिया था । अब वह भी अपने बाप के साथ काम करने लगा था ।


मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था । एक दिन एक मकान की सातवीं मंजिल पर दीनानाथ काम कर रहा था । अचानक असावधानी वश उसका पैर फिसल गया और वह सांतवी मंजिल से धड़ाम से धरती पर आ गया । नीचे गिरते ही दीनानाथ की मौत हो गई । अब मधु इस दुनिया में फिर से अकेला हो गया था । 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Crime