कातिल कौन
कातिल कौन
भाग 26
हीरेन दा की शुरुआती तकरीर से ही अदालत में खलबली मच गई थी । दर्शकों में जैसे जान आ गई और सबके चेहरे खुशी और उमंग के मारे दमकने लगे थे । अदालत में "सत्यमेव जयते" का उद्घोष गूंजने लगा । इस माहौल को देखकर अनुपमा के बुझे हुए शरीर में भी जैसे जान सी आ गई थी । उसे अब कुछ कुछ विश्वास होने लगा था कि उसे इस झूठे केस में फंसाने का षड्यंत्र सफल नहीं हो पाएगा । अब तक उसे हीरेन एक निकम्मा, असफल और फालतू आदमी लग रहा था लेकिन उसकी एक छोटी सी बहस ने पूरा माहौल बदल कर रख दिया था । अनुपमा हीरेन दा की जासूसी की कायल हो गई थी । वह सोचने लगी कि उसने कैसे जुटाए होंगे ये सबूत ? पर जो भी सबूत उसने प्रस्तुत किये थे वे सब अकाट्य थे । इसका मतलब है कि हीरेन ने इस केस पर बहुत मेहनत की है । झूठ की लंका बस अब जलने ही वाली है ऐसा सोचने लगी थी वह ।
अदालत के बाहर जनता खुशी के मारे बेकाबू हो रही थी । अभी तक सारे न्यूज चैनल्स अनुपमा को चरित्र हीन , कातिल और न जाने क्या क्या बता रहे थे । लेकिन हीरेन की दलीलों और सबूतों से यह सिद्ध हो गया था कि उस रात अनुपमा अपने घर में थी ही नहीं । जब वह उस रात अपने घर में थी ही नहीं तो उसका उस रात अक्षत के साथ "संबंध" बनाने वाली थ्यौरी तो झूठी साबित हो गई थी । इसी थ्योरी के आधार पर ही तो चैनल्स वालों ने उसका नाम "रंगीली रानी" रख दिया था । अनुपमा के चरित्र का कितना हनन किया था इन मीडिया वालों ने ? क्या वे अब अपने उस अक्षम्य अपराध के लिए माफी मांगेंगे ? पर माफी तो वो मांगता है जिसमें नैतिकता बाकी हो , यहां तो मीडिया कब से नंगा ही घूम रहा है और नंगे आदमी को कोई शर्म नही आती है ।
हीरेन थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुका । उसने अपने लंबे लंबे बालों को जो उसके चेहरे पर आ गये थे जैसे उसके चेहरे को चूमने के लिए उस पर झुक गये हों , एक जोरदार झटके से ऊपर किया और उनमें अपनी उंगलियों से कंघी करने लगा । वह अपनी जेब में कंधा रखता जरूर था मगर उसे कभी काम में नहीं लेता था । हमेशा ही उंगलियों से बाल बनाता था वह । यह उसकी स्टाइल बन गई थी जो मीना को बेहद पसंद थी । वह जब भी हीरेन के साथ होती, उसके बालों में उंगलियां फिराती रहती थी । जब हीरेन अपने होठों को गोल करके सीटी बजाता था तब वह मीरा की तरह प्रेम दीवानी होकर गाने लगती थी "मेरो तो हीरेन के अलावा दूसरो न कोई । जाके होठों से सीटी बाजे मेरो प्रियतम वो ही" ।
हीरेन की नजरें मीना की नजरों से टकराईं तो मीना की नजरों में हीरेन के लिए अटूट प्यार देखकर हीरेन गदगद हो गया । उसमें स्फूर्ति का एक नया झोंका भर गया । मीना की नजरें कह रही थीं "एक दिन, तुम बहुत बड़े बनोगे एक दिन । चांद बन चमक उठोगे एक दिन" ।
उन नजरों को पढ़कर हीरेन के मुंह से हौले हौले सीटी बजी "मैं तेरा चांद तू मेरी चांदनी" । दोनों के अधर एक दूजे को देखकर खिल गये थे । मीना पानी का गिलास लेकर तैयार खड़ी थी । हीरेन ने उसके हाथ से वह गिलास लिया और गट गट करता एक ही सांस में सारा पानी पी गया । इसके बाद हीरेन ने मीना की ओर हाथ बढ़ाया तो मीना समझ गई कि उसे क्या चाहिए ? मीना ने पानदान खोला और उसमें से एक "बनारसी पान" निकाल कर हीरेन को पकड़ा दिया ।
"तुम्हें कैसे पता कि मुझे इस समय यही पान चाहिए था" ?
"मैं तुम्हारी रग रग से वाकिफ हूं , ये पान तो क्या चीज है ? तू दिल मैं धड़कन सनम । ऐसा है अपना बंधन सनम" । उसकी आंखों ने सब कुछ कह दिया था ।
पानी, पान और प्रेम तीनों चीजें पाकर हीरेन तरोताजा हो गया था । वह वापस मुड़ा और अपनी यात्रा पर चल पड़ा ।
"योर ऑनर । मेरे द्वारा प्रस्तुत अकाट्य सबूतों से यह तो सिद्ध हो गया हि कि अनुपमा 31 मई की रात को चंडीगढ में ही होटल विजयंत में रुकी थी । अब प्रश्न यह उठता है कि जब उसे उस रात चंडीगढ में ही रहना था तो फिर उसने होटल क्यों बदला ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैं एक गवाह मिस मालती को प्रस्तुत करना चाहता हूं और इसके लिए मैं अदालत से विनम्र निवेदन करना चाहता हूं कि मुझे इसकी अनुमति दी जाये" । हीरेन ने अदालत से आग्रह करते हुए कहा
"इजाजत है" । जज साहब अपने पान का स्थान बदलते हुए बोले । उन्होंने अपना पान बांयें गाल से स्थानांतरित कर दांयें गाल में कर लिया था । संभवत: पान भी एक जगह बैठा बैठा बोर हो गया था इसलिए क्या पता उसने ऐसी गुहार लगाई हो ?
दरबान धीरे से उठा और दरवाजे के बाहर जाकर आवाज लगाने लगा "मिस मालती अदालत में हाजिर हो" ।
थोड़ी देर में लोगों ने देखा कि लगभग पचास साल की एक औरत जिसके चेहरे से अभी भी नूर टपक रहा था । जमाने के सितमों ने शायद उसके सुन्दर गोरे मुखड़े को बदरंग करने के लिए झुर्रियों का जंगल उगा दिया था । फिर भी उसके चेहरे पे कांति चमक रही थी । उसकी बड़ी बड़ी काली आंखों पर एक मोटा चश्मा विराजमान था जिससे उन आंखों का आकर्षण और बढ गया था । उसके बाल आधे से ज्यादा सफेद हो गये थे और बाकी के बालों में भी सफेद होने की रेस लग रही थी । उसने एक आसमानी साड़ी पहन रखी थी जिसमें वह एक देवी की तरह नजर आ रही थी । पचास साल की उम्र में ही वह वृद्धा नजर आ रही थी वरना आजकल तो पचास साल की औरतें जवान ही नजर आती हैं । मिस मालती चलकर गवाहों के लिए बने कटघरे में आकर खड़ी हो गई ।
हीरेन दा चलकर उसके पास गये । मिस मालती का हाथ गीता पर रखवाकर सत्य बोलने की प्रतिज्ञा करवाई गई । हीरेन ने अपनी स्टाइल में बाल झटक कर ऊपर की ओर करते हुए और उनमें उंगली फिराते हुए प्रश्न पूछना शुरू किया
"आपका नाम" ?
"मिस मालती"
"पूरा नाम बताओ" ?
"मिस मालती गुप्ता"
"पिता का नाम" ?
"रवि गुप्ता"
"कहां रहती हो" ?
"फिलहाल तो मैं लखनऊ रहती हूं"
"आप अनुपमा को जानती हो क्या" ?
मिस मालती गुप्ता खामोश रहीं और अनुपमा को एकटक देखती रहीं । बोली कुछ नहीं
"खामोश क्यों हो ? बोलो जानती हो या नहीं" ? हीरेन दा ने बहुत ही विनम्र शब्दों में पूछा ।
मिस मालती गुप्ता ने अपना सिर नीचे कर लिया और धीरे से कहा "जानती हूं"
"कबसे जानती हो" ?
"जबसे अनुपमा पैदा हुई है तब से जानती हूं" वह धीरे धीरे बोल रही थी ।
"अच्छा तो आप अनुपमा को उसके जन्म से ही जानती हैं । पर कैसे" ?
"अनुपमा मेरी बेटी है जज साहब" । मिस मालती गुप्ता की रुलाई फूट पड़ी । उन्हें रोते देखकर अनुपमा भी रोने लगी । पूरी अदालत हक्का बक्का होकर उन दोनों का रुदन देखने लगी । अदालत में एकदम से सन्नाटा व्याप्त हो गया ।
इस नवीन घटनाक्रम को देखकर सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी को जैसे सांप सूंघ गया था । उन्होंने तो यह कल्पना भी नहीं की थी कि अनुपमा की मां भी अदालत में पेश होगी और वह गवाही देगी ।
हीरेन दा ने उन्हें शान्त करवाया और उन्हें एक गिलास पानी दिया । पानी पीकर मिस मालती गुप्ता सहज हो गईं ।
हीरेन दा ने उनसे आगे प्रश्न पूछना शुरू किया ।
"आप अपने आपको अनुपमा की मां बता रही हैं लेकिन उनके दस्तावेजों में उनकी मां का नाम सरिता देवी लिखा है । इसका मतलब यह है कि आप झूठ बोल रही हैं । आपको शायद पता नहीं है कि अदालत में झूठ बोलने की कितनी सजा है ? बताइये, आप झूठ क्यों बोल रही हैं" ?
इतना सुनते ही मिस मालती की आंखों से टप टप आंसू गिरने लगे । वह कहने लगी
"मैं सौ प्रतिशत सच कह रही हूं जज साहब । अनुपमा मेरी बेटी है । मैंने अपने पेट में इसे नौ महीने रखा है जज साहब । फिर भला मैं झूठ क्यों बोलूंगी ? हां, यह बात सच है कि अनुपमा के दस्तावेजों में उसकी मां का नाम सरिता देवी है । मैं वो अभागन हूं जज साहब जो कि अपनी पुत्री को अपना नाम भी नहीं दे सकी" । वह फिर से फफक फफक कर रोने लगी थी ।
अदालत में एकदम सन्नाटा व्याप्त था । लोग दम साधे अदालत में बैठे हुए इस कार्यवाही को देख रहे थे । उबाऊ अदालती कार्यवाही में जैसे चेतना आ गई थी । सबको बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि अनुपमा की दो दो मां हैं । सबकी निगाहें मालती देवी और अनुपमा पर टिकी हुई थीं । हीरेन ने सन्नाटा तोड़ते हुए पूछा
"ऐसे कैसे हो सकता है कि अनुपमा जी की दो दो मां हों" ?
"ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ? जब भगवान श्रीकृष्ण के दो मां हो सकती हैं एक देवकी और दूसरी यशोदा तो अनुपमा के क्यों नहीं हो सकती हैं" ? मालती देवी धीरे धीरे मगर सधी हुई आवाज में बोलीं ।
मालती देवी के इतना कहने पर अबकी बार सक्षम भी चौंका था । उसे भी इस राज का आज ही पता चला था । उसे अनुपमा पर आश्चर्य हो रहा था कि उसने कभी भी उसे इस बारे में नहीं बताया था । वैसे तो लोग कहते हैं कि युधिष्ठिर के शाप के कारण औरतों के पेट में कोई बात प
चती नहीं है लेकिन इतनी बड़ी बात अनुपमा कैसे पचा गई ?
हीरेन और स्पष्ट कराने के लिए मालती देवी से बोला
"आपके पास क्या सबूत है जिससे यह सिद्ध हो कि अनुपमा आपकी ही बेटी है" ?
"क्या अनुपमा की शक्ल मुझसे मिलती नहीं है" ? मालती देवी को झूठी बताने से वे चिढ़कर बोलीं ।
सब लोग मालती देवी और अनुपमा का चेहरा मिलाने लगे । अनुपमा का चेहरा हूबहू मालती देवी से मिलता था । पर आज उम्र के अंतर के कारण मालती देवी और अनुपमा के चेहरों में अंतर नजर आ रहा था ।
"दो चेहरे यदि एक जैसे हों तो क्या उन्हें मां बेटी मान लेना चाहिए ? ये कौन सा सबूत है" ?
"एक बच्चे के बारे में एक मां ही बता सकती है कि वह किसकी पैदाइश है । बच्चा मां के गर्भ में पलता है यह बात तो सब लोग जानते हैं पर मैं वह अभागिन हूं जिसे इस बात का भी सबूत देना पड़ रहा है कि अनुपमा मेरे ही गर्भ में पल थी और मैंने उसे जन्म दिया था । आप चाहें तो मेरा और अनुपमा का डी एन ए करा सकते हैं जज साहब । यदि फिर भी आपको विश्वास नहीं हो तो इस अदालत में अनुपमा के पापा बैठे हैं आप उनसे भी पूछ सकते हैं" ।
मालती देवी के इस खुलासे से सब लोग स्तब्ध रह गये । किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह केस एक नये रहस्य को प्रकट करेगा । सक्षम को झटके पर झटके लग रहे थे । सबका कौतुहल बढता ही जा रहा था । हीरेन ने मालती देवी से पूछा
"अनुपमा के पापा का नाम क्या है" ?
मालती देवी ने अपना पल्लू अपने सिर पर रखा और कहने लगीं "मैं अपने देवता का नाम अपने मुंह से कैसे ले सकती हूं जज साहब ? दर्शक दीर्घा में तीसरी पंक्ति में जो आसमानी रंग की शर्ट पहने हुए बैठे हैं वे ही अनुपमा के पापा हैं" । मालती देवी ने सिर नीचा कर लिया ।
दर्शक दीर्घा में खलबली मच गई । सब लोग तीसरी पंक्ति में बैठे आसमानी रंग की शर्ट वाले व्यक्ति को देखने लगे । इस पर वे सज्जन खड़े हो गये और कहने लगे "मेरा नाम सचिन शर्मा है जज साहब । मिस मालती जो भी कह रही हैं सब सच कह रही हैं" ।
सक्षम अपने श्वसुर डॉक्टर सचिन शर्मा को अदालत में देखकर आश्चर्य चकित हो गया । आज इतना बड़ा रहस्योद्घाटन हो रहा था यहां । पता नहीं हर इंसान के जीवन में न जाने कितने बड़े बड़े रहस्य छुपे हुए हैं । भीड़ में खुसुर-पुसुर होने लगी तो जज साहब का हथौड़ा बोल उठा
"ऑर्डर ऑर्डर । ये अदालत है मिस्टर । यहां पर किसी की मनमानी नहीं चलती है । आपको जो भी कहना हो , वहां विटनेस बॉक्स में जाकर कहो"
सचिन शर्मा विटनेस बॉक्स में चले गए । वहां पर मिस मालती देवी पहले से ही खड़ी हुई थीं । उन्होंने सचिन शर्मा के पैर छुए । सचिन शर्मा ने उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दिया । मालती गुप्ता का बदन सचिन शर्मा के बदन से छू गया था इससे उनके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई थी । वे सचिन शर्मा को लगातार देखे जा रही थीं । न जाने कितने वर्षों के पश्चात उन्हें अपने मन के देवता के दर्शन हुए थे इसलिए इस अवसर का वे भरपूर लाभ उठाना चाहती थीं । फिर पता नहीं कब मुलाकात हो या नहीं भी हो । आज यद्यपि अवसर अनुकूल नहीं था पर ईश्वर की जो मरजी है वही बात होगी । आदमी के हाथ में क्या है ?
उन्हें भी गीता पर हाथ रखवाकर शपथ दिलवाई गई । हीरेन ने उनसे पूछना आरंभ किया
"आपका नाम" ?
"डॉक्टर सचिन शर्मा"
"क्या आप इन्हें जानते हैं" ? हीरेन ने मालती देवी की ओर इशारा करते हुए पूछा
"जी हां, मैं इन्हें जानता हूं । ये मिस मालती गुप्ता हैं"
"इनका कहना है कि अनुपमा आपकी और इनकी पुत्री है । क्या ये बात सही है" ?
सचिन शर्मा ने मिस मालती की ओर देखा । उनकी आंखों में दर्द उमड़ आया और उन्होंने उसी कटघरे में मालती देवी का हाथ थामकर कहा
"हां जज साहब, अनुपमा हम दोनों की ही बेटी है" ।
उनकी आंखों से आंसू उमड़ने लगे । सचिन शर्मा के आंसू देखकर मालती देवी असहज हो गई और उनके आंसूं अपने आंचल से पोंछते हुए कहने लगी "धीरज रखिए ना । अगर आप इस तरह बच्चों की तरह रोऐंगे तो मेरा क्या होगा ? मैं और सब कुछ देख सकती हूं , सब कुछ सहन कर सकती हूं पर आपको बिलखते हुए नहीं देख सकती हूं । मैंने सदैव आपकी पूजा की है । आपको तन मन से चाहा है । आपके बिना भी मैंने इतने वर्ष अकेले गुजारे हैं मगर मेरे आंसू तब भी नहीं आये । पर यदि आप ऐसा करेंगे तो मेरे सब्र का बांध भी टूट जाएगा । प्लीज, आप शांत हो जाइए । देखो, अनुपमा भी कितनी परेशान हो रही है हम दोनों को यहां देखकर" । मालती देवी डॉक्टर सचिन शर्मा को चुप कराने में यह भी भूल गईं कि वे अदालत में खड़ी हैं । डॉक्टर सचिन मालती देवी के कंधे पर सिर रखकर खूब रोये।
"अब यदि रोने का कार्यक्रम पूर्ण हो गया हो तो आगे की कार्रवाई शुरू करें" ? जज साहब का शायद पान खत्म हो गया था इसलिए उनका ध्यान इधर चला गया वरना तो वे पान की मस्ती में रम रहे थे । हीरेन ने मीना से अपना पानदान लेकर एक और पान निकाला और जज साहब को देते हुए कहा
"खालिस गुलकंद का पान है सर, पुष्कर से मंगवाता है ये छज्जू पनवाड़ी गुलकंद । कहते हैं कि वहां की गुलकंद एकदम शुद्ध होती है । आजकल शुद्ध चीजें मिलती भी कहां हैं श्रीमान" ? हीरेन दा ने गुलकंद वाला पान जज साहब की ओर बढा दिया । पान देखकर जज साहब का चेहरा खिल गया ।
हीरेन ने सचिन शर्मा से पूछा "आपका कहना है कि अनुपमा आपकी और मालती देवी की पुत्री हैं जबकि इनके रिकॉर्ड में इनकी माता का नाम सरिता देवी लिखा है । ऐसा क्यों" ?
डॉक्टर सचिन एक मिनट के लिए झिझके फिर मालती को देखकर बोले "बड़ी दुख भरी कहानी है जज साहब । ये एक ऐसी देवी की कहानी है जो प्रेम की साक्षात देवी , पवित्रता की मूर्ति और त्याग का अनंत आसमान है । इस देवी का दुर्भाग्य ये है कि हम दोनों स्कूल में एक ही कक्षा में पढते थे । साथ साथ पढ़ते पढ़ते हम दोनों में कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला ? जब हम कक्षा 12 में थे तब हमारा एक पिकनिक ट्यूर हिमाचल प्रदेश में गया था । उस ट्यूर में हमें पूर्ण आजादी मिल गई और हमने उस आजादी का बेजां फायदा उठाकर समाज के सारे बंधन तोड़ दिये । उसका परिणाम यह निकला कि मालती देवी के गर्भ में हमारी अनुपमा आ गई जिसका मुझे पता नहीं चला । मैं डॉक्टरी की पढाई पढने के लिए दिल्ली आ गया और पीछे से मालती देवी जमाने के सब कष्ट अकेली उठाती रही ।
जब इसका पेट बाहर आने लगा तब इसके घरवालों ने इससे सारी बातें पूछी तो इसने सब कुछ सच सच बता दिया । जैसा कि ऐसी स्थिति में सभी मां बाप करते हैं , इसके मां बाप भी इसे एक अस्पताल ले गये पर इन्होंने गर्भ गिरवाने से साफ इंकार कर दिया । तब इनके मां बाप इन्हें लेकर कहीं ऐसी जगह चले गए जहां इन्हें कोई नहीं जानता था । वहां यह अनुपमा हुई । तब इनके मां बाप ने इसे समझा बुझाकर अनुपमा को एक अनाथाश्रम में दे दिया ।
जब मैं अपने गांव आगरा आया तब मैंने मालती को बहुत ढूंढा मगर इसका कोई अता पता नहीं चला । मैं निराश हो गया । पढने में मन नहीं लगता था । फिर एक दिन मुझे इनकी कही हुई एक बात याद आई । ये अक्सर कहती थीं "आप बहुत इंटेलीजेण्ट हैं । देखना , एक दिन आप अपने माता पिता, गांव और देश का नाम रोशन करोगे" । उन शब्दों ने मुझे बहुत प्रेरित किया और मैं जी जान से पढने लगा । डॉक्टरी पढाई में मैं पहले नंबर पर रहा ।
जैसे ही पढाई खत्म हुई वैसे ही मेरे घरवालों ने मेरी शादी के प्रयास शुरू कर दिये । मैं मालती को ढूंढते ढूंढते थक गया था । एक दिन मैंने शादी के लिए हां कह दिया और मेरी शादी सरिता देवी के साथ हो गई । ईश्वर की लीला देखिए कि सरिता देवी के कोई बच्चा नहीं हुआ । इसी बीच एक दिन एक सेमीनार में मैं शिमला गया हुआ था । मैं जाखो मंदिर में दर्शन करने के लिए चला गया । मेरी आंखें उस समय आश्चर्य चकित रह गईं जब मैंने सामने से मालती को आते हुए देखा । हम दोनों लिपट गये । जब सारी बातें खुली तब मैंने बताया कि मेरी शादी सरिता देवी के साथ हो गई है तो एक पल को ये बहुत दुखी हुईं मगर इन्होंने तुरंत ही खुद को संभाल लिया । फिर मुझसे बच्चों के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि सरिता कभी मां नहीं बन पाएगी , ऐसी उसमें कुछ कमी है । तब इसने मेरे दुख को समझ कर हमारी बेटी अनुपमा के बारे में बताया और यह भी बताया कि वह यहीं पर एक अनाथालय में पल रही है । तब मैंने अनुपमा को गोद लेने की इच्छा व्यक्त की तो ये बहुत खुश हुईं । मैंने सरिता को यह बात बताई तो वह भी अनुपमा को गोद लेने के लिए तैयार हो गई । हमने अनुपमा को गोद ले लिया । इस प्रकार इसे मेरा और सरिता का नाम मिला । मालती देवी ने शादी नहीं करने का निश्चय कर लिया था जिसे उन्होंने आज तक निभाया है" ।
पूरी अदालत में पिन ड्रॉप साइलेंस व्याप्त था ।