Ranjeeta Dhyani

Inspirational

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Ranjeeta Dhyani

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अंगूठी

अंगूठी

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एक बार एक चालाक आदमी सम्राट के दरबार में पांच रुपए की चमकदार रंगों से रंगवाई गई एक सस्ती-सी अंगूठी लेकर गया। उसने सम्राट के समक्ष अंगूठी प्रस्तुत की तथा उसके मनगढ़ंत गुणों का बखान करते हुए सम्राट को यह विश्वास दिलाया कि वह अंगूठी कोई साधारण अंगूठी नहीं बल्कि एक जादुई अंगूठी है जिसे पहनने से उनकी प्रसिद्धि युगों-युगों तक जीवित रहेगी और उनके राज्य में हमेशा समृद्धि का विकास होता रहेगा। सम्राट उस आदमी की बात सुनकर बहुत खुश हुआ। उन्होंने अंगूठी की ओर देखते हुए पूछा- "इस अंगूठी का क्या दाम है ?"

"एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएं" आदमी ने जवाब दिया।

सम्राट के वज़ीर ने उस आदमी की चालाकी भांपते हुए उन्हें सतर्क रहने की सलाह दी लेकिन सम्राट के सिर पर प्रसिद्धि का अभिमान इस कदर हावी हो गया कि उन्होंने वज़ीर की बात को अनसुना कर खजांची को तुरंत आदेश देते हुए कहा-"दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं लाई जाएं और यह अंगूठी इनसे खरीद ली जाए।"

खजांची ने सम्राट के आदेश का पालन करते हुए उस आदमी को दस हज़ार स्वर्ण मुद्राएं देे दी और बदले में उससे अंगूठी ले ली। इतनी सारी स्वर्ण मुद्राएं पाकर उस आदमी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा और वह होंठो पर हल्की-सी मुस्कान लिए सम्राट से विदा लेकर दरबार से बाहर चला गया। कुछ दिन बाद वह आदमी अपने एक घनिष्ठ मित्र से मिलने उसके घर गया और अंगूठी की पूरी कहानी उसने मित्र को सुनाई। कहानी सुनकर मित्र ने कहा- "महोदय, मुझे एक बात बताइए कि आखिर एक साधारण-सी अंगूठी को दस हज़ार स्वर्ण मुद्राओं में बेचने का राज़ क्या है?" आदमी ने मुस्कराते हुए उससे कहा- "मित्र, इसका राज़ है- इंसान की कमज़ोरी।" 

"क्या है इंसान की कमज़ोरी?" मित्र ने उत्सुकतावश प्रश्न किया। उस आदमी ने अपने मित्र की उत्सुकता को शांत करते हुए बताना शुरू किया कि- "इंसान की कमज़ोरी है- उसका अहंकार। वह मानता है कि मैं ही श्रेष्ठ हूं और वह अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए मायाजाल में भ्रमित हो जाता है। यही बात सम्राट के साथ भी हुई उन्हें अभिमान था अपनी श्रेष्ठता पर। आप ही श्रेष्ठ हैं... और हमेशा रहेंगे। यह जताकर मैंने सम्राट के अहंकार का पोषण कर दिया और पांच रुपए की अंगूठी दस हज़ार स्वर्ण मुद्राओं में बेच दी। दोनों मित्र सम्राट की मूर्खता पर ठहाका लगाने लगे।


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