चार्ली चैपलिन
चार्ली चैपलिन
आज मुझे विख्यात हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन की आत्मकथा को पढ़ने का अवसर मिला। उनकी आत्मकथा बहुत ही रोचक थी। वैसे तो उनकी आत्मकथा का सम्पूर्ण संकलन बेहद शानदार है परन्तु उसमें प्रस्तुत एक अंश ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया जिसे पढ़कर मैं प्रेरित हुई और मेरा मन हुआ कि उस प्रभावी अंश को मैं अपने सभी कर्मठ साथियों के साथ साझा करने का प्रयास करूं। आशा करती हूं आप सभी को इस लोकप्रिय शख्शियत की आत्मकथा से लिया गया ये अंश पसंद आएगा जिसमें जीवन का महत्त्वपूर्ण सार छिपा हुआ है.....।
"मन से डर निकाल दें तो ज़िंदगी खूबसूरत हो जाएगी।"
इस कथन की पुष्टि करता प्रस्तुत अंश......
"जीवन के शुरुआती दौर में मेरी दुनिया सिर्फ दो ही लोग थे। एक थी मां और दूसरे बड़े भाई। हमारा समय बुरा चल रहा था क्योंकि हम गिरिजाघरों की कृपा पर पल रहे थे। शो की टिकटों की बदौलत जैसे-तैसे ज़िन्दगी काटने को हम मजबूर थे। सिडनी स्कूल के दौरान समय निकालकर मैं अख़बार बेचता था और बेशक इससे हमारी जरूरतें पूरी नहीं होती थीं। जीवन में जिस सबसे बुरी चीज़ की कल्पना मैं कर सकता हूं, वो है ऐशो आराम की लत।
मां 'हाना' ने सिखाया कि पैसे नहीं होने पर कैसे मनोरंजन किया जा सकता है। मां खिड़की पर बैठ जाती और सड़कों पर गुजरने वाले लोगों को देखती और इसके आधार पर उनके चरित्र, रंग-रूप और आचरण का अनुमान लगाती। उन पर कहानियां सुनाती, कभी-कभी उनकी नकल करके भी दिखाती। मैंने अपनी मां की इस कुशलता को आत्मसात कर लिया था। मेरी मां की यही प्रतिभा और उनकी सुनाई कहानियां थी, जिनके कारण मैं तमाम दुनिया को आगे हंसा पाया। मेरा मानना है कि "ज़िंदगी खूबसूरत हो सकती है अगर आप इससे डरें नहीं।" जरूरत है तो सिर्फ साहस और कल्पना की और बहुत थोड़े से पैसों की।
अगर आप नीचे देखेंगे तो कभी भी इन्द्रधनुष नहीं देख पाएंगे। इस मक्कार दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, यहां तक कि हमारी परेशानियां भी नहीं।"