Saroj Verma

Horror

4  

Saroj Verma

Horror

इस रात की सुबह नहीं

इस रात की सुबह नहीं

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मारिया को अपनी दादी के गाँव जाना था, इसलिए उसने सोचा रात वाली ट्रेन पकड़कर आराम से सोते हुए जाएंगी, कितने दिन हो गए वो अपनी दादी से नहीं मिली, उसकी दादी का घर है भी तो बहुत दूर, उसके मम्मा पापा अब इस दुनिया में रहे नहीं, वो यहाँ शहर में अकेली रहती है, दादी अपना गाँव छोड़कर शहर में उसके साथ रहना नहीं चाहती, उसकी दादी जूलिएट को तो अपना गाँव ही भाता है, वहाँ उनका अपना खुला खुला फाँर्महाउस है जिसमें वें खेतीबाड़ी करके अपना जीवन यापन करतीं हैं और उन्होंने वहाँ के छोटे से तालाब में बतखें पालीं हुई हैं , एक गाय भी है उनके पास , वें अब बूढ़ी हो चुकीं हैं इसलिए अपनी हेल्प के लिए उन्होंने मरियम और जोसेफ को रख रखा है, दोनों पति पत्नी है, साथ में गरीब घर से हैं, जूलिएट ने उन्हें अपने फाँर्महाउस में सहारा दे रखा है, वो यहाँ रहकर काम भी करते हैं और साथ में जूलिएट की सेवा भी, जब भी मारिया जूलिएट से मिलने आती है तो जूलिएट की खुशी का ठिकाना नहीं रहता, मारिया हमेशा अपनी दादी के यहाँ बस से जाती थी तो दिनभर लग जाता था इसलिए इस बार मारिया ने अपनी दादी जूलियट के यहाँ ट्रेन से जाने का सोचा, वो अपनी दादी के यहाँ ट्रेन से पहली बार जा रही थी, इसलिए ये उसके लिए एक नया अनुभव था,

 मारिया रात सात बजे ट्रेन में अपनी दादी के घर जाने को चढ़ी, उसकी सीट ट्रेन के दरवाजे के पास ही थी, वो आज बहुत खुश थी उसकी खुशी उसके चेहरे पर साफ साफ देखी जा सकती थी, वो ट्रेन में और भी यात्रियों से मिली और उनसे बात बात करते करते उसका सफ़र अच्छा कट रहा था, फिर सब खाना खाने बैठे , मारिया ने भी बाहर से खाना पैक कराया था सफ़र के लिए तो वो भी अपना खाना खोलकर खाने लगी, खाना खाने के बाद सब अपनी अपनी सीट पर सोने के लिए लेट गए, मारिया भी अपनी सीट पर लेट गई......

लगभग दस बजने को थे तभी अचानक ना जाने क्या हुआ? ट्रेन हिलने लगी और किसी को कुछ भी पता नहीं चला, शायद ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, मारिया को जब होश आया तो उसे अपने माथे पर कुछ दर्द सा महसूस हुआ, उसने अपने माथे पर हाथ लगाकर देखा तो उसे गीला गीला सा महसूस हुआ शायद उस जगह चोट लगने से खून बह रह रहा था, फिर उसने धीरे धीरे अपनी आँखें खोली तो उसे सब जगह अँधेरा सा नज़र आया, उसे ऐसा एहसास हुआ कि शायद ट्रेन का डिब्बा पलट गया था और ईश्वर का शुक्र था कि उसकी सीट दरवाज़े के पास थी, ट्रेन का दरवाजा आधा खुला हुआ था और वो आधी ट्रेन के भीतर और आधी ट्रेन के बाहर पटरियों पर पड़ी थी, उसने सावधानी पूर्वक स्वयं को बाहर निकाला, स्वयं को निकालते समय उसे कमर पर चोट और पैरों पर खरोंच भी आ गई.....

 वो बाहर निकली उस दिन चाँदनी रात थी और उसने चाँद की रोशनी में ट्रेन की हालत देखी तो वो देखकर दंग रह गई, ट्रेन के सभी डिब्बे पलटे हुए थे और जगह लोगों के कराहने की आवाज़ आ रही थी, एक वो ही अकेली थी जो ट्रेन के बाहर थी, आस पास केवल मैदान ही मैदान था कोई भी बस्ती नहीं थी, उसके पास कोई सामान भी नहीं था, उसकी कलाई की घड़ी पर उसने समय देखने की कोशिश की तो उसे कुछ समझ नहीं आया कि क्या समय हुआ है, अब वो अकेली हैरान परेशान सी हो उठी, उसे समझ नहीं आ रहा था अब वो क्या करें, उसे बहुत प्यास भी लग रही थी, वहाँ कहीं भी पानी का साधन उसे दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था, पता नहीं बचाव कार्य भी कब शुरु होने वाला था ये भी उसे पता नहीं था,

 उसने सोचा यहाँ ठहरने का कोई मतलब नहीं आस पास कुछ ढूढ़ती हूँ शायद कोई उम्मीद की किरण दिख जाएं और वो दुर्घटना वाली जगह से बाहर निकलकर जाने लगी, उसे दूर कहीं एक रास्ता दिखा, जो शायद यहाँ के किसी गाँव की ओर जा रहा था, उसने सोचा कि क्या करूँ जाऊँ या नहीं?फिर सोचा इसके आलावा उसके पास और कोई रास्ता भी तो नहीं है, वो उस सँकरे से रास्ते से उस गाँव की ओर जाने लगी, लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद उसे एक रोशनी सी दिखाई दी, रोशनी देखकर उसके मन में आशा जागी कि शायद यहाँ उसे कोई मिल जाएं, वो अब धीरें धीरें उस रौशनी की ओर बढ़ने लगी, लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद उसे पता चला कि वहाँ एक घर है और वो रौशनी उस घर की खिड़की से आ रही है, वो घर अभी भी दूर था और मारिया को बहुत प्यास लग रही थी, वो एक उमस भरी रात थी, लेकिन फिर भी हिम्मत करके मारिया उस घर की ओर चल पड़ी,

कुछ ही देर में वो उस घर के पास पहुँच गई उसने देखा कि वो घर तो एकदम पुराना और खण्डहर है, घर के सामने बड़ा सा मैदान है, मैदान में एक चापाकल लगा है और मैंदान के आगें लोहे का गेट लगा है चाँदनी रात थी लेकिन वहाँ का दृश्य मन को भयभीत करने वाला था, , उस घर के लोहें का गेट खुला था, तो वो बिना संकोच के भीतर चली गई, चापाकल देखकर वो खुद को रोक ना सकीं और उसने चापाकल चलाना शुरु कर दिया, लेकिन उससे पानी नहीं निकल रहा था, वो लगातार मेहनत करती रही और आखिरकार अन्त में उसमें से पानी आने लगा, वो चापाकल चलाते चलाते पसीने पसीने हो गई थी, इसलिए चापाकल का पानी भरने के लिए वो कोई बरतन ढूढ़ने लगी, बहुत नज़र दौड़ाने के बाद उसे एक चीनी मिट्टी का पुराना सा मर्तबान दिखा जो दूर पड़ा था, उसने उसके पास जाकर देखा तो उसके मुँह के ऊपर का भाग टूटा हुआ था, उसने सोचा चलो इसमें पानी भरकर ठीक से पी तो सकती हूँ, उसने वो पुराना मर्तबान उठाया और पहले उसमें पानी भरकर उसे ठीक से धोया, फिर साफ पानी भरकर उसने अपनी अंजुली में भर भर कर जी भर के पिया, उसके बाद अपना चेहरा धोया, अपनी खरोंचों को धोया और साथ में माथे के खून को भी धोया, चेहरा धोने के बाद उसने उस पुराने से घर के दरवाज़े पर दस्तक दी....

चर्र....चर्र.....की आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुला तो उसने देखा कि कोई बुढ़िया एक लोहें का छोटा सा लैम्प लेकर खड़ी है, उस बुढ़िया ने मारिया से पूछा.....

तुम कौन हो और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही हो?

तब मारिया बोली...

मैं अपनी दादी के घर जा रही थी और मेरी ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है, शायद उस ट्रेन में अब तक कोई भी ना बचा हो, क्योंकि ट्रेन बुरी तरह पलटी हुई पड़ी थी लेकिन मैं बच गई, उस जगह मुझे बहुत डर लग रहा था इसलिए मैं वहाँ से चल पड़ी और भटकते-भटकते यहाँ आ पहुँची...

 तो बाहर क्यों खड़ी हो भीतर आओ?वो बुढ़िया बोली।।

और फिर मारिया भीतर पहुँची, उसने देखा लैम्प की रौशनी में देखा कि घर बहुत ही पुराना है और सालों से ना तो वहाँ सफाई हुई है और ना वहाँ की मरम्मत, उस घर की हालत देखकर मारिया ने पूछा.....

 घर की हालत तो बहुत खराब है, कब से मरम्मत नहीं हुई यहाँ?

शायद सौ सालों से मरम्मत नहीं हुई यहाँ की, बुढ़िया बोली।।

ओह...तो आप यहाँ कब से रहतीं हैं?मारिया ने पूछा।।

बहुत सालों से रहती हूँ, बुढ़िया बोली।।

तो क्या आप यहाँ अकेलीं रहतीं हैं?मारिया ने पूछा।।

हाँ!भला मेरे साथ कौन रहना चाहता है?बुढ़िया बोली।

ऐसा क्यों?आपके रिश्तेदार भी तो होगें, मारिया ने पूछा।।

एक भूतनी के साथ कोई नहीं रहना चाहता, क्या तुम रहोगी मेरे साथ, बुढ़िया बोली।।

मारिया ने इतना सुना तो उसकी हालत खराब हो गई क्योंकि उसने देखा कि अब बुढ़िया हवा में तैर रही थी और उसके पैर ही नहीं थे, ये देकर मारिया दरवाजे के बाहर भागी और ऐसी भागी....ऐसी भागी....कि एक किलोमीटर दूर जाने पर ही दम लिया.......

अब थक जाने पर उसकी रफ्तार धीमी पड़ गई थी, वो धीरे धीरे चली जा रही थी, तभी उसने किसी ट्रेन की आवाज सुनी, उसे लगा कि हो सकता है कि यहाँ को रेलवें स्टेशन हो, वो ट्रेन की आवाज़ की दिशा में बढ़ चली, लेकिन अब उसे ट्रेन की आवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई थी लेकिन तब भी उसने हार ना मानी थी और तब उसे एक घंटी की आवाज़ सुनाई दी जैसे कि ट्रेन के आने पर बजती है, उसे अब ऐसा लगा कि शायद पास में कोई रेलवें स्टेशन है, तो वो वहाँ अपना हाल बताकर मदद माँग सकती है, वो स्टेशन की ओर बढ़ती जा रही थी और फिर कुछ दूर चलने पर उसका यकीन पक्का हो गया क्योंकि वहाँ सच में एक रेलवें स्टेशन था, वो खुश हुई और थोड़ी देर के लिए पास में पड़े पत्थर पर सुस्ताने के लिए बैठ गई.....

तभी उसे पीछे से किसी ने पुकारा.....

सुनिए!क्या आप भी रेलवें स्टेशन की ओर जा रहीं हैं?

मारिया ने पीछे मुड़कर देखा तो एक नौजवान लड़का खड़ा था, उसने उसे देखकर राहत की साँस ली ओर मन में बोलीं....

चलो! अब कोई तो मिला, मैं यहाँ अकेली नहीं हूँ।।

जी!आपने जवाब नहीं दिया मेरे सवाल का, उस लड़के ने कहा.....

जी!मेरी ट्रेन पीछे कहीं दुर्घटनाग्रस्त हो गई है शायद अब तक कोई भी ना बचा होगा, लेकिन मैं बच गई और भागकर यहाँ आ गई, मारिया बोली।।

जी!ये मेरे सवाल का जवाब तो नहीं है, वो नौजवान बोला।।

जी!हाँ!रेलवें स्टेशन ही जा रही थी, लेकिन आप ....यहाँ कैसें?मारिया ने पूछा।।

 जी!मैं एण्टेनिओ और मैं यहाँ दोपहर से भटक रहा हूँ, रास्ते में मेरी कार खराब हो गई थी, जो पानी और स्नैक्स मेरे साथ थे वो मैनें खतम कर दिए, मैं दोपहर में स्टेशन भी देखकर आया लेकिन वो तो सुनसान पड़ा है, बस घंटी और ट्रेन की आवाज़ मुझे दूर से ही सुनाई दी थी लेकिन वहाँ कोई भी नहीं था , ना तो ट्रेन और ना कोई भी इन्सान, एण्टेनिओ बोला।।

लेकिन ऐसा कैसें हो सकता है?मैनें थोड़ी देर पहले ट्रेन की आवाज़ सुनी और ट्रेन आने के पहले जो घंटी बजती है वो भी सुनी, मारिया बोली।।

सुनी तो मैनें भी थी तभी तो उस ओर गया था, एण्टेनिओ बोला।।

ओह...तो अब क्या करूँ मैं, मारिया बोली।।

तो चलिए एक बार और उस ओर होकर आतें हैं, एण्टेनिओ बोला।।

जी!चलिए!मारिया बोली।।

और दोनों अपना परिचय देते और बातें करते हुए स्टेशन पर पहुँचे, स्टेशन सच में सुनसान पड़ा था, लेकिन वहाँ की बत्तियाँ जल रहीं थीं जो कि इलेक्ट्रिक ना होकर लालटेन्स थीं, वें दोनों वहाँ का नज़ारा देखकर आश्चर्य में थे, दोनों यहाँ वहाँ स्टेशन पर घूमने लगें और तभी उन्हें एक कुली दिखा, उससे एण्टेनिओ ने पूछा....

भाई!यहाँ इतना सन्नाटा क्यों है?कोई नहीं रहता क्या यहाँ?

जी!सब रहते हैं, यहाँ केवल तीन ट्रेन ही गुजरतीं हैं, सुबह दोपहर और रात इसलिए जब ट्रेन के आने का वक्त होता है तभी सब आते हैं, ऊपर से ये स्टेशन कस्बे से बहुत दूर है इसलिए भी लोंग यहाँ कम आते हैं यहाँ के ज्यादातर लोंग बसों से यात्रा करते हैं, कुली बोला।।

लेकिन जो ट्रेन की आवाज़ हम दोनों ने सुनी तो वो क्या थी? मारिया ने पूछा।।

अरें, ट्रेनें यहाँ से गुजरतीं हैं, रुकतीं थोड़े ही हैं, कुली बोला।।

अच्छा तो ये बात है, एण्टेनिओ बोला।।

लेकिन उन ट्रेनों की आवाजाही के लिए यहाँ कर्मचारी भी तो चाहिए जो कि यहाँ नहीं हैं, मारिया ने पूछा।।

ज्यादा काम नहीं रहता तो ये काम तो मैं भी कर देता हूँ, साहब लोंग मुझे कुछ पैसें दे देते हैं, कुली बोला।।

लेकिन ये तो गैरकानूनी है, अपना काम किसी और को सौपना, ये बिल्कुल ठीक नहीं है, मारिया बोली।।

यहाँ सब चलता है, मेरी भी कमाई हो जाती है, कुली बोला।।

लेकिन ये तो गलत है, मारिया बोली।।

अरे!मारिया ये सब छोड़ो, तुम हमें ये बताओ कि अगली ट्रेन कब मिलेगी?एण्टेनिओ ने कुली से पूछा...

बस , कुछ ही देर में आने वाली है..., कुली बोला।।

चलो, अच्छा है, कम से कम हम इस जगह से तो निकलेगें, मारिया बोली।।

हाँ!मैडम!और इतना कहकर वो कुली वहाँ से चला गया, मारिया और एण्टेनिओ ट्रेन का इन्तज़ार करने लगें, उनका एक एक पल बड़ी मुश्किल से बीत रहा था, क्योंकि वो स्टेशन बहुत ही छोटा था, पुराने जमाने का उसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया था, वहाँ लोंग भी नज़र नहीं आ रहे थे, इसलिए उन दोनों को वहांँ ट्रेन की प्रतीक्षा करना बड़ा अखर रहा था, टिकटघर में टिकट भी नहीं मिल रहे थे क्योंकि वहाँ भी कोई नहीं था, तब उन दोनों ने फिर से उसी कुली से पूछा ....

कि ट्रेन का टिकट क्यों नहीं मिल रहा ,

तब कुली ने कहा,

यहाँ आप लोगों को टिकट लेने की जरूरत नहीं है , आपका टिकट तो ट्रेन में ही कट जाएगा, कुली की बात सुनकर एण्टेनिओ बोला.....

तुम्हारे कहने का क्या मतलब है?

तब कुली बोला....

मतलब ये है कि ट्रेन में ही अपना टिकट बनवा लीजिएगा, यहाँ टिकट नहीं मिलता,

ओह....तो ऐसा कहो ना!एण्टेनिओ गुस्से से बोला।

फिर कुछ ही देर में ट्रेन आ गई, ट्रेन रूकी तो दोनों ने देखा कि ट्रेन बहुत ही पुराने जमाने की थी, उसमें आगें इलेक्ट्रिक लाइट नहीं थीं, अगल बगल बहुत तेज़ रोशनी वाली लालटेन टंगी थीं, ट्रेन काफी देर तक रूकी रही लेकिन उसमें से एक भी यात्री ना उतरा, दोनों को ये चक्कर कुछ समझ नहीं आया, लेकिन दोनों को इस जगह से छुटकारा भी पाना था इसलिए मजबूरीवश दोनों ट्रेन में चढ़ गए और जैसे ही वें ट्रेन में चढ़े तो ट्रेन फुल स्पीड से चल पड़ी, ऐसा लगा कि जैसे ट्रेन उन दोनों के चढ़ने का ही इन्तज़ार कर रही थी,

 दोनों ने ट्रेन के भीतर नज़र दौड़ाई तो अन्दर बिल्कुल मद्धम सी रोशनी थी, सीटों पर ज्यादा लोंग नहीं थे, कुछ महिलाएं , कुछ पुरूष और कुछ बच्चे थे, जैसे ही वें दोनों चढ़े तो सब उन दोनों को घूर घूरकर देखने लगें, दोनों को थोड़ा डर लगा फिर दोनों एक मुनासिब सी सीट देखकर साथ में बैठ गए, फिर उन्हें ट्रेन में कुछ खटर पटर की आवाज़ आई, एण्टेनिओ ने मारिया से कहा.....

 मैं देखकर आता हूँ,

मारिया बोली....

कहीं मत जाओ मुझे डर लग रहा है,

फिर मारिया की बात सुनकर एण्टेनिओ कहीं नहीं गया वो चुपचाप वहीं बैठा रहा, वहाँ मौजूद बच्चे गुमसुम से बैठे थे, ना हँस रहे थे और ना खेल रहे थें, बस उन दोनों को ही घूरे जा रहे थे, तभी अचानक एण्टेनिओ की निगाह उन सबकी सीटों के नीचें गई, वो ये सब देखकर भौचक्का रह गया और मारिया से इशारों में कुछ कहा.....

मारिया ने एण्टेनिओ की बात समझ कर जब उन सबकी सीटों के नीचें देखा तो उनमें से किसी के पैर नहीं थें, दोनों चुपचाप चुप्पी साधे बैठें रहें, दोनों को डर भी लग रहा था लेकिन उस ट्रेन में बैठे रहने के सिवाय उनके पास कोई और चारा नहीं था, अब धीरे धीरे वें बच्चे अपनी सीट से उठे और हवा में तैरने लगें, वें सब मारिया और एण्टेनिओ के पास आकर फिर चले जाते, बच्चे उठे तो उनकी माँये भी उनके पीछे पीछे उड़ने लगी और साथ में भयानक सी हँसी भी हँसने लगी, वें सब सफेद गाउन पहने थी जो हवा में लहरा रहे थे,

अब उन महिलाओं के पति भी कोट पहने हुए हवा में तैरने लगें, वें सिगार भी पी रहे थे, अब डर के मारे मारिया और एण्टेनिओ की घिग्घी बँध गई, कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा दोनों को अपनी जान बचाने का, ऊपर से ट्रेन की रफ्तार भी तेज थी, वें कूद भी नहीं सकते थे ट्रेन से, फिर एण्टेनिओ ने मारिया को दोबारा इशारों में कहा कि मैं ट्रेन की चेन खींचने की कोशिश करता हूँ शायद ट्रेन रूक जाएं और फिर हम यहाँ से भाग सकते हैं, तुम ट्रेन के दरवाज़े के पास पहुँचों, मैं भी चेन खींचते ही आ जाऊँगा, मारिया मान गई और धीरे धीरे से दरवाज़े के पास पहुँची और इधर एण्टेनिओ चेन के पास पहुँचा, ट्रेन का दरवाज़ा अधखुला था और मारिया वहीं जाकर खड़ी हो गई, एण्टेनिओ ने जैसे ही चेन खीची तो मारिया नीचें उतर गई, लेकिन जैसे ही एण्टेनिओ उतरने को हुआ तो उन सभी ने एण्टेनिओ को जकड़ लिया, एण्टेनिओ जोर से चीखा....

 मारिया!तुम भाग जाओं, मेरी चिन्ता मत करों।।

 मारिया रोते हुए बोली.....

मैं तुम्हें छोड़कर नहीं भाग सकती,

तुम भागों मारिया, अपनी जान बचाओं, एण्टेनिओ फिर चीखा, इतने में उन सभी लोगों ने एण्टेनिओ को काटना शुरू कर दिया, ये देखकर मारिया रूक ना सकीं और वहाँ से भाग गई, उसके वहाँ से दूर जाते ही ट्रेन चल पड़ी लेकिन उसमें से कोई नीचें ना उतरा और मारिया नीचें खड़ी रोते हुए बोली.....

आय एम साँरी एण्टेनिओ!मैं तुम्हारे लिए कुछ ना कर सकी।।

मारिया कुछ देर वहीं रोती रही फिर कुछ सोचकर उस रेलवें ट्रैक से बाहर निकली, वहाँ से वो बाहर तो निकल आईं तब उसने वहाँ दो तीन ट्रैक्टर खड़े हुए देखें, उसे लगा कि शायद यहाँ कोई उसे मिल जाएगा जो उसकी मदद कर सकें, वो उन ट्रैक्टर के नजदीक पहुँची तो उसे वहाँ कुल्हाड़ियों से कुछ कटने की आवाज़ आई, उसने सोचा शायद मजदूर लकड़ियाँ काट रहे होगें और इन ट्रैक्टर पर लादकर ले जाते होगें, अब तो पक्का उसे यहाँ मदद मिल जाएगीं,

 वो धीरे धीरें एक ट्रैक्टर की ट्राली के पास पहुँची और वहाँ से छुपकर देखने लगी, उसने सोचा पहले पूरी तसल्ली कर लूँ फिर मदद माँगूँ और उसने देखा कि एक तम्बू के भीतर दो चार लालटेनें रखी हैं और एक व्यक्ति काला सा लाबादा पहनकर कुल्हाड़ी चला रहा है और उसने जो देखा वो देखकर वो दंग रह गई क्योंकि वहाँ लकड़ियाँ नहीं काटीं जा रहीं थीं, वहाँ कई सारें लोगों की लाशें रखीं थी और वो व्यक्ति उन लाशों के टुकडे़ टुकड़े करके शायद ट्रैक्टर की ट्रालियों में ले जा रहा था, उस व्यक्ति ने पहले से ही कुछ टुकड़े कर रखें थे और थोड़े से टुकड़े और करके उसने उस ट्रैक्टर की ट्राली में डालें जिसके पीछे मारिया छुपी थी, मारिया को ये एहसास ही नहीं था कि उस व्यक्ति ने उसे देख लिया है,

वो लाश के टुकड़े ट्राली में रखकर मारिया के पीछे से आया और उसे दबोच लिया, मारिया ने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब वो खुद को नहीं छुड़ा पाई तो उसने उसके हाथों को अपने दाँतों से काट लिया, मारिया के काटते ही उसके हाथों की पकड़ ढ़ीली पड़ गई और मारिया उसकी गिरफ्त से छूट गई और मारिया जरा भी देर ना करते हुए उस कुल्हाड़ी के पास भाग कर पहुँची और उसे अपने हाथों में उठा लिया, अब मारिया उस व्यक्ति का चेहरा ठीक से देख पा रही थी जो कि बड़ा अज़ीब सा दिख रहा था, उसने जरा भी देर ना करते हुए उस कुल्हाड़ी से उस वहशी इन्सान पर हमला कर दिया, पहले उसने पूरे दम के साथ उसके दाँए कंधे पर कुल्हाड़ी चलाई जिससे कि उसका एक बाजू कटकर नीचें गिर पड़ा, वो व्यक्ति दर्द से चीख उठा, उस वीराने में उसकी आवाज़ गूँज उठी, फिर मारिया ने उसके दूसरे कंधे पर भी वार किया वो भी कटकर जमीन पर गिर पड़ा, फिर मारिया ने उसके सीने पर कुल्हाड़ी चलाई और उसके सीने से खून की धार बह चली, आखिरी कुल्हाड़ी उसने उस व्यक्ति की गर्दन पर चलाई तो उसका सिर कटकर धरती की धूल चाटने लगा, उसका सिर कटते ही मारिया चीखते हुए धरती पर घुटनों के बल बैठकर रोने लगी और ऊपरवाले से बोली....

आय एम साँरी गाँड!मुझे माँफ करना, इस अपराध के लिए।।

 जब उसका दिमाग़ कुछ ठिकाने पर आया तो वो उस जगह से उठी और खुद को सम्भालते हुए आगें बढ़ चली, उसने देखा कि रात अभी भी ढ़ली नहीं थी और वो आगें बढ़ चली ना जाने कहाँ, चलते चलते उसे एक छोटा सा तालाब मिला, उसने वहाँ पहले जीभर के अपने हाथ पैर धुलें, पानी पिया और थोड़ी देर वहीं बैठकर रोती रही क्योंकि अब उसे वहाँ से बच निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, फिर एक बार वो हिम्मत करके उठी और आगें बढ़ चली, वो चलती चली जा रही थी......बस चलती चली जा रही थी....

 अब शायद सुबह होने को थी क्योंकि पंक्षी चहचहाने लगें, उसने देखा कि वो बहुत ही सुन्दर घाटी पर है और वहाँ बहुत सुन्दर सुन्दर फूल लगें हैं, हल्के उजाले में उसने ढ़ेर सी तितलियों को उड़ते हुए देखा, उसे ये सब देखकर भीतर से खुशी महसूस हुई क्योंकि वो एक ऐसी जगह से बचकर आई थी जिसकी उसे आशा नहीं थीं, घाटी का गोल गोल रास्ता और किनारे किनारे लगें वोगेनवेलिया के फूल उसकी आँखों को राहत दे रहें थें, तभी वहाँ से एक स्कूटर गुजरा जिस पर दो व्यक्ति सवार थे, मारिया ने उन्हें रोककर रास्ता पूछा तो उनमें से एक बोला.....

आगें चर्च है, वहाँ के पादरी आपकी मदद कर देगें....

मारिया फिर चलने लगी और कुछ ही देर में वो चर्च के सामने थी लेकिन बहुत ज्यादा थकी होने के कारण उसे चक्कर आ गया और वो वहीं गिर पड़ी, जब उसकी आँखें खुली तो वो एक अस्पताल में थी और उसके सामने पादरी बैठें थे, उन्होंने मारिया से कहा कि तुम चर्च के सामने उन्हें बेहोश मिली....

तब मारिया ने उन्हें सब बताया, ये सुनकर पादरी बोलें....

बेटी!वो गाँव और वो स्टेशन श्रापित है, बड़े आश्चर्य वाली बात है कि तुम वहाँ से सही सलामत वापस आ गई।।

और फिर पादरी ने मारिया को उसकी दादी के पास पहुँचा दिया, मारिया अपनी दादी से मिलकर बोली....

दादी!मैं वहाँ से बचकर आ पाऊँगी ये मैनें सोचा ही नहीं था, ऐसा लग रहा था उस रात कि इस रात की सुबह ही नहीं है....

ये एक काल्पनिक कहानी है और केवल मनोरंजन हेतु लिखी गई है।।


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