Ivan Maximus Edwin

Horror Fantasy Thriller

3.8  

Ivan Maximus Edwin

Horror Fantasy Thriller

बड़ी हवेली - 3

बड़ी हवेली - 3

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खोपड़ी का कहर - 

डायरी पढ़ते पढ़ते कब सुबह हो गई तन्नू को इस बात का पता ही नहीं चला, सुबह उसकी पलकें भारी हो जाने के कारण उसे नींद आ जाती है। सपने में उसकी आँखों के सामने उस डायरी की कहानी के दृश्य चलते हैं, तभी शहनाज़ वहाँ पहुँच कर, खिड़कियों पर टंगे परदों को सरकाती है, गुड मॉर्निंग, नवाब साहब", शहनाज़ ज़ोर से कहती है। 

तनवीर (तन्नू) की नींद खुलती है," ओह तुम, थोड़ी देर और सोने दो न प्लीज़ ", तन्नू शहनाज़ से कहता है। 

" आज मोती झील जाने का प्लान बनाया था, भूल गए क्या, तुमने मेरे छोटे भाई हैदर को कानपुर घुमाने का वादा किया था और वह डाइनिंग टेबल पर ब्रेक फास्ट के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहा है ", शहनाज़ अपनी बात पूरी करती है।

" मुझे 10 मिनट दो मैं तैयार होकर आता हूँ", तन्नू कहते ही सीधे बाथरूम की ओर फ्रेश होने चला जाता है।

नाश्ते के बाद तन्नू, हैदर को अपने वालिद की कार से कानपुर घुमाने ले जाता है। काफ़ी घूम कर खिलौने और सामान खरीदने के बाद दोनों गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे थे कि तनवीर की नज़र एक लड़की पर पड़ती है," यह यहाँ.... ये तो निहारिका है, ये यहाँ पर क्या कर रही है, इसे तो अपने गांव में होना चाहिए था। इसका पीछा करना पड़ेगा, आखिर ये कौन सी नई पहेली है, इसका पता तो लगाना ही पड़ेगा," तनवीर अपने मन में कहता है ।

तनवीर हैदर को सामान सहित अपने हाथों से पकड़ उठा लेता है और जल्दी से अपनी कार की तरफ लपकता है।

निहारिका सामने रोड क्रॉस कर रही थी। तनवीर बिना देरी किए रोड क्रॉस कर, गाड़ी उसके पीछे पीछे चलाने लगता है।

अब तक निहारिका की नज़र तनवीर पर नहीं पड़ी थी, वो एक अस्पताल के अंदर चली जाती है। तनवीर भी गाड़ी पार्क करके अस्पताल के अंदर चला जाता है, हैदर भी उसके साथ ही था।

अस्पताल के कुछ कमरों में देखने के बाद निहारिका उसे दिखती है, वो अस्पताल में किसी मरीज़ को देखने पहुंची थी, तनवीर को अपने सामने देखकर पहले तो वह थोड़ा चौंक जाती है फिर बाद में तनवीर को बाहर आने का इशारा कर कॉरिडोर की तरफ चल पड़ती है।

तन्नू अपने साथ हैदर को लेकर उसके पीछे चल देता है, बाहर जाकर निहारिका उसे बताती है कि उसके पिता जो अन्दर बेहोश पड़े हैं नैनीताल के फ़ार्म हाउस की देखभाल करते थे, वह तनवीर को बताती है कि उसे झूठ बोल कर तनवीर के यहाँ नौकरानी का काम करना पड़ा क्यूँकि उसकी वजह वो कमांडर का कटा हुआ सिर है।

तनवीर उसे सारी बातें विस्तार से बताने को कहता है।

"मेरा नाम उर्मिला है, मैं आपके पिता द्वारा रखे गए फ़ार्म हाउस के केयर टेकर की बेटी हूँ, मैं पढ़ी लिखी हूँ और बी. ए फ़र्स्ट ईयर की स्टूडेंट हूँ। हम लोग नैनीताल में बड़ी हंसी खुशी जीवन बिता रहे थे। एक दिन आपके वालिद वहाँ पहुँचे उनके हाथों में वज़न दार छोटा संदूक था। साथ में कुछ पुरातत्व से संबंधित कलाकृतियां थीं।

फ़ार्म हाउस के माली और नौकरों ने मिलकर सामान उनके कमरे में रखवा दिया। वह ज़्यादातर समय अकेले ही बिताते थे, वो वहाँ दो दिन रुके थे, अपने जाने से पहले उन्होंने अपने कमरे का ताला ख़ुद बंद किया और चाभी मेरे पिता जी को दे दी। 

ऐसे तो कभी आपके वालिद के कमरे को हाँथ नहीं लगाया जाता था, पर आपके वालिद को गुज़रे हुए जब काफ़ी साल बीत गए। तो एक दिन फ़ार्म हाउस को फिर से पेंट करने का फैसला लिया गया, क्यूँकि दीवारों से पानी रिसने लगा था ऐसा पहली बार हो रहा था इतने सालों में। आपके पिता के कमरे की दीवारों पर भी पेंट करने का फैसला किया गया, उनके कमरे का ताला खोला गया और अंदर जाकर साफ़ सफ़ाई शुरू हुई, पहले दो दिन तो सबकुछ ठीक था, फिर आपके पिताजी का कमरा खोल कर ही रखा जाने लगा क्यूँकि पेंट करने का काम तब भी चालू था । 

पर एक रात जब सभी अपने अपने कमरों में सो रहे थे, तभी अचानक मेरे पिताजी अपने बिस्तर से उठ सीधे आपके पिताजी के कमरे की ओर चल दिए। ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें नींद में कोई पूकार रहा हो और उन्हें उस कमरे तक लेकर गया। उस रात मैं अपनी खिड़की के सामने स्टडी टेबल पर बैठकर अगले दिन होने वाले अपने पेपर की तैयारी कर रही थी, खिड़की से आपके पिताजी का कमरा साफ़ दिखता है जो ठीक नीचे है, मैंने देखा कि मेरे पिताजी अंदर गए और वहां एक ओर लटकी शेर की तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए, फिर थोड़ी देर खड़े रहने के बाद उन्होंने उस तस्वीर को हटाया। उसके पीछे एक दीवार पर बनी अलमारी में संदूक रखा हुआ मिला। 

मेरे पिताजी ने संदूक को नीचे उतारा और पास ही एक टेबल पर रख दिया। उसे हेयर पिन की मदद से खोल उसके अंदर से एक कपड़े के झोले जैसे बटुए को बाहर निकाला, फिर उसकी रस्सी ढीली कर जैसे ही अंदर देखा तो तेज़ लाल रोशनी चमकी, मेरे पिताजी बेहोश होकर वहीं गिर पड़े , कपड़े का बटुआ हाथ से नीचे गिर चुका था। 

मैं भागते हुए उस कमरे में पहुंची तो देखा कि उस बटुए के अंदर का सामान बाहर नहीं निकला था लेकिन रोशनी फिर भी जल रही थी।

 अपने पिता जी को उठाने जैसे ही मैं आगे बढ़ी तो इतने में एक आवाज़ सुनाई पड़ी, "इन द नेम ऑफ द क्वीन , आखिर कमांडर ब्राड शॉ रोउडी जाग ही गया। सुनो लड़की ये तुम्हारा बाप अभी मरा नहीं है, आँखो पर रोशनी की चमक से बेहोश हुआ है और ऐसा ही रहेगा जब तक तुम हमारा बाकी का बॉडी का मदद नहीं करता है, तुमको करना ये है कि कानपुर के बड़ी हवेली के तहखाने पर लटकी ताविज़ और जंजीरे हटा देना है, जिससे मेरा शरीर वहाँ टहल सके और लोगों में खौफ़ पैदा हो जाए।

किसी को पता नहीं चल पाए कि तुम कौन हो, वहां तुम्हें रहना पड़ेगा फ़िर जो तुम देखोगी या सुनोगी, हम यहाँ बंद संदूक में देखेंगे और सुनेंगे , अगर कोई होशियारी दिखाई तो तुम्हारा बाप अब भी मेरे ही कब्जे में है जब चाहें इसकी जान ले लें। अब बैठे हुए.... क्या देखता और सुनता है, इधर आ कर हमारा खोपड़ी को उठाओ और इज़्ज़त के साथ संदूक में वापस रख दो"। 

पहले तो मैं डर गई फिर थोड़ी हिम्मत उसकी बातों को सुनकर मिली, ऐसा लगा वो जो भी है मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएगा सो मैंने वही किया जो उसने कहा मैंने उसे संदूक के अंदर बंद कर उसी जगह पर रख दिया और वही तस्वीर उस जगह को छुपाने के लिए दीवार पर लटका दी। 

इस हादसे के बाद मेरे पिताजी की हालत गंभीर हो गई, बहुत इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ, फिर हम सब यहाँ चले आए और मैंने उसकी बताई हुई योजना को मजबूरी में अंजाम दिया। मैं आपके यहाँ हवेली पर दो बार नौकरानी के रूप में काम कर चुकीं हूँ, एक बार नन्दनी के रूप में जब पहली बार मैंने वहाँ आप लोगों के रहने से पहले नौकरानी का काम कर तहखाने पर लटके ताविज़ और जंजीरों को हटाया और उस कमांडर के धड़ कि मदद की। जिससे उसका बिना सिर का शरीर हवेली में इधर-उधर टहलने लगा, नौकरों में दहशत फैल गई और नौकर नौकरी छोड़ कर जाने लगे, कुछ दिनों बाद मैंने भी काम छोड़ दिया।

आपकी अम्मी के आने से पहले एक बार फिर वहां झाड़ फूंक करवाई गई और एक बार फिर से उस तहखाने को ताविज़ और जंजीरों से बांध दिया गया इसलिए इस बार निहारिका का रूप लेना पड़ा।

मैं क्या करूं नवाब साहब मैं मजबूर थी, मुझे अपने पिता की जान बचानी थी, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए, " निहारिका ने हांथों को जोड़ते हुए कहा।

तनवीर उसकी मजबूरी समझ गया और उससे हमदर्दी जताते कहा कि " अब जब तहखाना खुल ही चुका है, सब कुछ पता चल ही गया है तो मैंने दो दिन बाद उस फ़ार्म हाउस पर जाने का फैसला किया है, तुम चाहो तो अपने पिता और बाकी परिवार के साथ हवेली पर रह सकती हो । तुम्हारे हवेली पर रहने से मैं भी थोड़ा निश्चिंत हो जाऊंगा और एक ही जगह पर रहने से तुम्हें भी सहारा मिलेगा, कब तक अस्पताल और किराए के मकान पर रुकोगी। एक बार इस कमांडर वाली गुत्थी सुलझ जाए फिर तुमलोग भी आराम से नैनीताल के उसी फ़ार्म हाउस पर रह सकते हो, तब तक हवेली पर ही रुको, मैं कल ही गाड़ी भिजवा दूंगा, अस्पताल से छुट्टी लेकर सीधा परिवार के साथ हवेली पर रहने चले आओ"।

उर्मिला भी तनवीर के फैसले से सहमत हो गई । तनवीर अपने संग हैदर को लेकर वहाँ से अपनी कार पर सवार होकर सीधा बड़ी हवेली की ओर चल दिया।

हवेली की तरफ़ जाते समय रास्ते भर तनवीर यही सोचता रहा कि आखिर ऐसा कौन सा राज़ था जो उसके वालिद ने डायरी में लिखा था, जिसका ज़िक्र कमांडर ने उनसे किया था, तनवीर के दिमाग में एक तरफ उन करोड़ों के हीरों का भी ख़याल आ रहा था। एक तरफ हीरे और दूसरी तरफ कमांडर के सीने में दफ्न राज़ ने तनवीर के अंदर बेचैनी सी जगा दी थी।

बड़ी हवेली पहुंचते ही तन्नू ने शहनाज़ को सारी बातें बताईं। शहनाज़ सारी बातें सुनकर उर्मिला के ही पक्ष में थी। अगले दिन तनवीर ने उर्मिला और उसके परिवार को बड़ी हवेली लाने के लिए गाड़ी भेज दी।

दोपहर तक अस्पताल का सारी कार्यवाही पूरी करके उर्मिला अपने परिवार के साथ बड़ी हवेली पहुँची। शहनाज़ ने उसे उसका कमरा दिखा दिया, बड़ी हवेली के कमरे काफ़ी बड़े और अलीशान थे इसलिए शहनाज़ ने उन्हें नीचे के फ्लोर पर दो बड़े कमरे दे दिए।

रात में डिनर के बाद तनवीर ने उन दोनों को नैनीताल जाने की योजना के बारे में बताया। तनवीर ने कहा "कमांडर अपने सीने में कोई ख़ास राज़ दबाए है और वह राज़ क्या है ये सिर्फ नैनीताल पहुंच कर ही पता चलेगा। उसने उर्मिला को भी यहाँ इसी ख़ास मकसद से भेजा था", तनवीर ने उन्हें अब तक डायरी के बारे में और उन हीरों के बारे में नहीं बताया था। 

"मैंने कल अपने एक दोस्त को बुलवाया है जो नैनीताल जाने में मेरी मदद करेगा, दो लोग रहेंगे तो गाड़ी ड्राइव करने में मदद मिलेगी, उसे ड्राइविंग का काफ़ी तजुर्बा है, उसका नाम अरुण और वह मेरे साथ ही पढ़ता है इलाहाबाद में, वह भी यहीं कानपुर का ही रहने वाला है, मैंने कल ही उससे मिल कर उसे नैनीताल चलने के तैयार कर लिया था, साथ ही अपने वालिद की गाड़ी भी उसे दिखा दी, जिसमें सफ़र तय करना था, कल दोपहर को हम दोनों यहीं से अपने सफ़र के लिए निकलेंगे, तुम दोनों सारी तैयारियां कर देना और हवेली की देखभाल करना ", तनवीर उन दोनों को सब कुछ समझाता है। 

शहनाज़ और उर्मिला सारी बातें अच्छे से सुन रहीं थीं, फिर तनवीर से सहमत होकर अपने अपने कमरों में सोने चली गईं। 

अगले दिन सुबह ही अरुण बड़ी हवेली पहुँच जाता है । शहनाज़ उसे हॉल में बैठा देती है, थोड़ी देर बाद तनवीर उससे मिलने आता है और दोनों अन्दर डाइनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए बैठ जाते हैं। उर्मिला नौकरों की सहायता से नाश्ता टेबल पर रखवा कर, तनवीर की अम्मी के कमरे में चली जाती है। 

नाश्ता करते ही तनवीर और अरुण गैराज की ओर चले जाते हैं, जहाँ दोनों मिलकर कार का अच्छी तरह से निरीक्षण करते हैं। सफ़र का सारा ज़रूरी सामान लेकर दोनों चलने की तैयारी शुरू कर देते हैं। 

शहनाज़ और उर्मिला तनवीर को यकीन दिलाती हैं कि अपनी अम्मी की तबीयत को लेकर बेफिक्र रहें। तनवीर और अरुण उन दोनों को अलविदा कह कर सफ़र पर निकल पड़ते हैं। उन्हे काफ़ी लम्बा रास्ता तय करना था। तनवीर ने अपने वालिद की डायरी अपने पास ही रखी थी ताकि वह उसे बार बार पढ़कर सारी जानकारी ले सके, कहीं ऐसा न हो कि कोई विशेष जानकारी उससे छुट न जाए। 

अपने कुछ दिनों के सफ़र के बाद तनवीर और अरुण नैनीताल हाई वे वाले फ़ार्म हाउस पर पहुँचे। दोपहर हो चुकी थी इसलिए दोनों थकावट के मारे हॉल में ही सो गए। फ़ार्म हाउस की चाबी तन्नू ने उर्मिला से ले ली थी। 

"तुम आ गया...... हमको पता था तुम ज़रूर आएगा", एक अनजान सी आवाज़ तन्नू को सुनाई पड़ती है और उसकी नींद खुल जाती है। तनवीर इधर-उधर देखने लगता है पर कोई भी नहीं था, सामने अरुण एक सोफ़े पर सो रहा था। तनवीर ने घड़ी पर नज़र डाली तो शाम के पांच बज चुके थे। उसने अपने फ़ार्म हाउस को अच्छी तरह से घूम फिर कर देखा, फिर वो अपने वालिद के कमरे में चला गया जहाँ उसे रैक पर सजे दो हांथी दाँत के हाथियों की मूर्तियां दिखती हैं और ठीक उनके नजदीक ही दीवार पर उसे शेर की तस्वीर टंगी दिखती है, जिसके पीछे संदूक में कमांडर का कटा हुआ सिर रखा था। तनवीर पहले उन हाथियों की मूर्तियों की पीठ खोलकर देखता है जिनके अंदर 50-50 बड़े साइज़ के हीरे रखे हुए थे जिनकी कीमत करोड़ों में थी, पर उन्हें हासिल करने के लिए कमांडर से उसकी अनुमति लेनी थी या कमांडर का कोई अधूरा काम करना था ये तो सिर्फ कमांडर ही जानता था।

वहाँ से तनवीर बाहर निकल कर सीधा फ़ार्म हाउस के गार्डन में पहुंचता है जहां उसे पहले से ही एक माली काम करता हुआ दिखाई पड़ता है। वह उस माली के नज़दीक जाकर उससे पूछता है "नाम क्या है तुम्हारा, क्या तुम यहीं पर काम करते हो, कब से काम कर रहे हो यहाँ", तनवीर उस माली से एक साथ कई सवाल पूछ लेता है। माली पहले तो हाँथ जोड़कर खड़ा हो जाता है फिर तनवीर को देख कर कहता है "हमारा नाम रामू है सरकार, हम यहाँ पर 20 सालों से माली का काम कर रहे हैं, आप प्रोफेसर साहब के बेटे हैं न यानि हमारे छोटे मालिक, आपने आने की खबर दी होती तो सारी तैयारी कर लेते, रुकिए मैं अभी जाकर बाकी नौकरों को ख़बर करता हूँ, आपके खाने पीने की व्यवस्था करवाता हूँ ", इतना बोलते ही वह गाँव की ओर भागता है और वहाँ से तीन चार लोगों को ले आता है। उनमें से कुछ साफ़ सफ़ाई कर तनवीर और अरुण के सोने का कमरा साफ़ कर उनका सामान वहीं रख देते हैं और कुछ रसोई में जाकर दोनों के लिए खाने का इंतजाम करने लगते हैं।

इधर जैसे ही जैसे समय बीत रहा था तनवीर के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी, उसके मन में एक भय घर करने लगा था कि अब तक केवल कमांडर के धड़ से ही सामना हुआ था, जो बिना सिर के कमज़ोर था, पर आज रात तो उसका सामना कमांडर के सिर से होना था जो काफ़ी शक्तिशाली था और कुछ भी कर सकता था। तनवीर को यह चिंता भी खाई जा रही थी कि कहीं कमांडर कोई जानलेवा योजना तो नही बनाए बैठा था। इन सभी बातों का जवाब तो सिर्फ कमांडर ही दे सकता था।

तनवीर ने अपने और अरुण के लिए उर्मिला का कमरा साफ़ करवाया था। ऐसा उसने इसलिए किया ताकि वह वहाँ से अपने वालिद के कमरे पर नज़र रख सके। उन दोनों में से एक को अगर कुछ होता है तो अगला उसे बचा सके। तनवीर को कमांडर के इरादों पर ज़रा भी भरोसा नहीं था इसलिए उसने अरुण को सतर्क रहने के लिए पहले से ही बता रखा था। उन दोनों की योजना ये थी कि रात में थोड़ा सतर्क रहना है फ़िर चाहे दिन में आराम कर लें। उर्मिला का कमरा ऊपर होने के कारण तनवीर को फ़ार्म हाउस का सबसे सुरक्षित कमरा लगा। 

रात का डिनर ख़त्म होते ही दोनों उर्मिला के कमरे में आराम करने चले गए। सफ़र से थके होने के कारण दोनों को नींद आने लगी।

रात गहरी हो चली थी, ऊपर से हवा में हल्की ठंड सी थी, नैनीताल हाई वे पर फ़ार्म हाउस होने की वजह से ठंड का असर कुछ ज़्यादा ही था। यही वजह थी कि दोनों अपने अपने कम्बलों में घुसकर सो रहे थे कि अचानक एक भारी आवाज़ उनके कानों से टकराई "इतना साल इंतज़ार के बाद आखिर तुम आ ही गया...... इन द नेम ऑफ द क्वीन, अब हमारा मकसद पूरा हो जाएगा"।

तनवीर चौंक कर उठता है, अरुण अभी तक सो ही रहा था, तनवीर उसकी तरफ देखता है और उसे हिला कर जगाता है, काफ़ी कोशिश के बाद भी अरुण की नींद नहीं खुलती है, ये सफ़र की थकान का असर था। तनवीर भी उसे जगाना उचित नहीं समझता है और ख़ुद ही खिड़की से बाहर अपने वालिद के कमरे की ओर देखने लगता है।

"अब आ ही गया है तुम तो हमारे और थोड़ा नज़दीक आओ...... अपना डैडी के कमरे में चले आओ", कमांडर उसे आवाज़ लगा कर प्रोफेसर के कमरे में बुलाता है।

तनवीर घबरा सा जाता है, फिर किसी तरह हिम्मत जुटा कर फ़ार्म हाउस की सीढ़ियाँ धीरे धीरे उतरने लगता है और अपने वालिद के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगता है। अपने वालिद के कमरे में पहुँचकर वो लाईट ऑन करता है।

कमांडर उससे कहता है कि "अब ये तस्वीर हटा कर हमारा खोपड़ी को संदूक से बाहर निकालो, हम तुमको देखना चाहता है, हम वादा करता है तुमको सारा सच्चाई बताने तक कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, बस तुमको भी एक वादा करना होगा, हमको हमारा धड़ तक पहुंचाना होगा"।

तनवीर आगे बढ़ कर तस्वीर को दिवार से नीचे उतारता है, फिर संदूक को टेबल पर रखता है और उसे खोलकर कमांडर का कटा हुआ सिर बाहर निकालता है। उसकी आंखों में लाल रोशनी चमक रही थी पर इतनी तेज़ नहीं थी कि किसी को नुकसान पहुंचा सके। वह कमांडर के सिर को टेबल पर एक जगह रख उसके सामने कुर्सी लगा कर बैठ जाता है। तनवीर को ख़ुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई, अभी कुछ देर पहले तो केवल कमांडर की आवाज़ सुनकर उसकी हालत खराब थी। 

कमांडर भी तनवीर को देख कर मुस्कुराने लगता है, फिर पूछता है "क्या तुम destiny यानि भाग्य पर विश्वास करता है", कमांडर पूछते ही उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखता है, जैसे वह तनवीर का चेहरा पढ़ रहा हो। 

"अब आज के ज़माने में तो भाग्य केवल कहानियों में ही दिखता है, हम लोग पढ़े लिखे कॉलेज जाने वाले नौजवान विज्ञान के इस दौर में भाग्‍य जैसी चीज़ों पर नहीं बल्कि कर्मों पर विश्वास करते हैं", तनवीर थोड़ा सोचने के बाद कमांडर को उसके पूछे हुए सवाल का जवाब देता है। 

" जो ख़ज़ाना डॉक्टर ज़ाकिर और प्रोफेसर को मिला, उसे पाने का वास्ते न जाने कितना लोगों ने अपना जान गँवाया फिर भी इसका भनक तक किसी को नहीं मिला, पर अचानक 300 साल बाद बर्फ़ में जमा हमारा शरीर ऊपर की तरफ आता है और साथ ही गुफा का पत्थर भी खिसक जाता है जिससे गुफा का द्वार हल्का सा खुल जाता है, इतना सालों से जो प्रकृति ने छुपा कर रखा था वो दिखने लगता है जिस पर डॉक्टर ज़ाकिर का टीम के एक सदस्य का नज़र पड़ता है, फिर ख़ज़ाना और हमारा शरीर मिलता है ", कमांडर, तनवीर से कहता है। 

" आप कहते जाइए मैं सुन रहा हूँ, जहाँ कुछ बीच में पूछना होगा तो मैं बीच में ही टोक दूँगा ", तनवीर ने कमांडर से कहा और उसकी बातों को ध्यान से सुनने लगा। 

" हम ये कहना चाहता है कि इतना बेशकीमती ख़ज़ाना जिसके पीछे कितने लोगों ने जान गंवाया, अगर किसी के भाग्‍य में होता तो पहले ही मिल जाता फ़िर भी ये 300 साल बाद ही तुम्हारा डैडी और उसके दोस्त को ही क्यूँ मिला, इस बारे में आराम से सोचकर देखना, पर अभी जो हम बताने जा रहा है वो तुम्हारे डैडी को भी नहीं बताया ", कमांडर की बातें सुनकर तन्नू के मन में जिज्ञासा का सैलाब उमड़ पड़ता है। 

कमांडर अपनी बात जारी रखता है " तुम्हारे डैडी का दोस्त डॉक्टर ज़ाकिर ने ख़ज़ाना मिलते ही अपना असली रंग दिखाया, गुफा से ख़ज़ाना निकालने के बाद हमने उनके टीम का हर सदस्य को एक एक करके मारना शुरू किया जिससे सभी लोग डर गया था, उन लोगों के समक्ष में नहीं आ रहा था क्या करें, हम ख़ज़ाने से जुड़ा हुआ था इसलिए कोई हमको छोड़ कर भी जाता तो भी मुसीबत में पड़ता इसलिए साथ ले जाने का फैसला किया, जब हमने गुफा का खोज करने वाले सभी लोगों को मार दिया तो प्रोफेसर ने हमारा सिर और धड़ को अलग कर के रख दिया क्यूँकि अगला नंबर डॉक्टर ज़ाकिर फ़िर तुम्हारा डैडी का था। पर उस धोखेबाज़ डॉक्टर ने अपना जान बचाने और बाकी सबके मरने का वास्ते ख़ज़ाने का हिस्सा पहले ही बांट दिया जिसमें कुछ हीरे तुम्हारे वालिद के हिस्से में और एक एक अपना टीम का साथियों में बांट दिया, इस वजह से आज वो ज़िंदा है और तुम्हारे वालिद के साथ साथ सभी लोग मर गया। उस डॉक्टर को पहले से पता था कि ख़ज़ाने से जुड़ा मौत सीरियल नंबर के हिसाब से चलता है इसलिए उसने मौत का सिरीज़ तोड़ने के वास्ते ऐसा किया, ख़ज़ाना भले ही सरकार को सौंप दिया हो पर वो अधूरा ही था क्यूँकि उसका बंटवारा उसने पहले से ही कर दिया था, इसी तरह सबके मरने के बाद वो लंदन का यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के नाम से चला गया और अब तक ज़िन्दा है "।

 कमांडर की बातें सुनकर तन्नू एक गहरी सोच में चला गया, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसके वालिद के दोस्त ने ही उन्हें धोखा दिया था, जिस वजह से उसके वालिद और टीम के बाकि के सदस्यों की मौत हो गई थी।

कमांडर अपनी बात जारी रखता है "ख़ज़ाना मिलने के बाद जब हम लोग लौट रहा था तब से कई बार डॉक्टर ज़ाकिर ने ये कोशिश किया कि तुम्हारे फादर का जान चला जाए, इसलिए डॉक्टर ने मेरा सिर उस कपड़े का बटुआ से बाहर निकाला और संदूक में ऐसे ही बंद कर दिया, उसने सोचा हम तुम्हारे फादर को मार देगा, पर मौत तो सिरीज़ में होना था जो शरीर के टुकड़ों को अलग कर के थम गया था। फिर भी अगर हम चाहता तो भी डॉक्टर ज़ाकिर और प्रोफेसर को तब भी मार सकता था"।

तनवीर ने कमांडर को बीच ही में टोकते हुए कहा " इसका मतलब यह है कि आपने जान बूझकर उन्हें ज़िन्दा छोड़ा, पर किसलिए, मेरी समझ में कुछ नहीं आया, ज़रा खुलकर बताइए ", तनवीर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे।

" अब अगर बीच बीच में टोकेगा तो हम भी भूल जायेगा, राज़ की बातें ज़्यादा हैं और रात बहुत ही छोटा , कुछ ही देर बाद सुबह हो जाएगा, एक रात और बर्बाद होगा, हम तो सारा बात आज ही सुना कर ख़त्म करना चाहता है ताकि अपना धड़ तक पहुंचने का सफ़र जल्द ही तय कर सके। अब सुनो, अगर हम चाहता तो उस समय भी इस संदूक से बाहर निकल कर डॉक्टर और तुम्हारा फादर का सफाया कर सकता था, पर हम उस समय ही डॉक्टर का भविष्य देख लिया था, उसे ख़ज़ाना भारत सरकार के हवाले करते ही लंदन यूनिवर्सिटी का टिकिट मिलना तय था, 

जब एक ताकतवर आत्मा किसी के पीछे लगता है तो उसका भूत, वर्तमान भविष्य सब जानता है। 

प्रोफेसर इस ख़ज़ाने का क्रेडिट अपने ऊपर टीम का सहायक बन कर लेता और डॉक्टर टीम का लीडर, ये बात हमको तब ही पता चल गया था, इसलिए हम इतना साल इंतजार किया, अब जब इतना साल बीत ही गया है तो हम तुमको ये सारा हीरा बस एक ही शर्त पर ले जाने देगा, अगर तुम हमारा धड़ के पास हमको लेकर जाएगा और किसी भी तरह से लंदन लेकर जाएगा, हमारा मदर लैंड में डॉक्टर छुप कर बैठा है उसको भी सबक तो सिखाना पड़ेगा, अब बोलो अगर तुम तैयार हो तो कल ही निकलते हैं यहाँ से कानपुर के लिए", कमांडर अपनी बात ख़त्म करते ही तनवीर की तरफ देख मुस्कुराता है। 

" इसका मतलब यह है कि आप इतने सालों से इसी योजना पर काम कर रहे थे, मान लीजिए मुझे पता ही नहीं चलता आपके धड़ के बारे में फ़िर क्या होता, ये भी तो हो सकता था कि मुझे डायरी नहीं मिलती तो कभी कुछ पता ही नहीं चलता, या सब कुछ जानते हुए भी कोई ये जोखिम उठा आप तक आने की कोशिश ही न करता ", तनवीर कमांडर की ओर देखते हुए पूछता है।

"हम तुमसे पहले ही एक सवाल किया था क्या तुम destiny पर विश्वास रखता है, हमारा मिलना पहले से तय था, तुम कहीं भी होते फ़िर भी हम दोनों ज़रूर मिलते, प्रोफेसर भी ख़ज़ाने का खोज में ऐसे ही नहीं निकला था, हम भी उनलोगों को ऐसे ही नहीं मिला था, डॉक्टर ने भी धोखा ऐसे ही नहीं दिया था, ये सब कुछ पहले से तय था, इन सब घटनाओं के पीछे एक ख़ास मकसद था नियति हम सबको मिलवाना चाहता था ताकि एक दूसरे का सहायता से हम लोग अपना अधूरा सफ़र पूरा ख़त्म कर सके, आखिर हमको भी इस ख़ज़ाने और इस जगह से छुटकारा चाहिए था, कब तक कटा हुआ सिर के साथ लोगों को डराने का काम करता रहेगा हम ", कमांडर अपनी बात ख़त्म करते ही तनवीर की ओर सवालिया निगाहों से देखता है।

तनवीर उसकी बातें सुनकर चिंतित हो जाता है, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, उसे एक ओर तो कमांडर की बातों पर यकीन भी था तो दूसरी ओर इस बात का डर भी था कि कहीं कमांडर किसी प्रकार की कोई साज़िश तो नहीं रच रहा है।

तनवीर को चिन्तित देख कमांडर उससे कहता है "इतना सोच रहा है तुम, इतना तो तुम्हारा फ़ादर और डॉक्टर ख़ज़ाना उड़ाने से पहले नहीं सोचा, आज से तीन सौ साल पहले का इंसान सोचता नहीं था कर गुज़रता था क्यूँकि सोचने से हौसला धीरे धीरे पस्त पड़ने लगता है, अगर शाहजहाँ इतना सोचता तो कभी ताज महल नहीं बनता, अगर औरंगजेब इतना सोचता तो कभी शाहजहाँ को बन्दी बना कर बादशाह नहीं बन पाता, अगर हम यानि कमांडर ब्राड शॉ रोउडी इतना सोचता तो कभी कोहिनूर चूरा कर भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य स्थापित नहीं कर पाता, इतना तो तुम तब नहीं सोचा जब तीन सौ साल पहले सिर्फ एक गुमनाम लुटेरा था जिसने मुग़ल सल्तनत और ब्रिटिश गवर्नमेंट के नाक में उंगली नहीं कर दिया था यही नहीं हमारा सिर भी धड़ से अलग कर दिया था , ज़्यादा सोचने से जोश ख़त्म हो जाता है और इंसान अपने बालों का रंग सफेद कर लेता है"। तनवीर कमांडर की बातें सुनकर अचंभित था। 

" क्यूँ चौंक गया, यही तो destiny का खेल था, खरबों का ख़ज़ाना और ख़ज़ाने के साथ जुड़ी दो अधूरी कहानी, एक कहानी तुम्हारी........ एक कहानी हमारी...... हा.. हा.. हा.. हा..... अब समझ में आया तीन सौ साल बाद वही ख़ज़ाना डॉक्टर और प्रोफेसर को ही क्यूँ मिला, क्यूँकि हमको तुमसे मिलना था", कमांडर अपनी बात ख़त्म करता है और तनवीर की तरफ हँसते हुए देखता है।

तनवीर बुरी तरह से डर गया था, उसका पूरा शरीर जैसे डर से जमकर ठंडा और सुन्न सा पड़ गया था, उसे समझ ही में नहीं आ रहा था कि क्या करे।

कमांडर इस बात को भांप गया कि तनवीर डर गया है, उसने तन्नू से कहा "डरो नहीं, तुमने उस समय जो किया अपना जगह पर सही था, तुम्हारा जैसा साहसी आदमी के हांथों मरने का फक्र है, अब उस बात को तीन सौ साल बीत चुके हैं, कई बार दूसरा जन्म लेने पर भी इंसान का अपना पिछला ज़िंदगी याद कर पाना नामुमकिन होता है, इसलिए किस्मत ने हम दोनों को दुबारा मिलवाया एंड इन द नेम ऑफ द क्वीन, मिलकर अच्छा लगा "। 

" हमको प्रोफेसर से मिलते ही इस बात का पता चल गया था और ये दूसरा सबसे बड़ा कारण था हम इस खेल को अंजाम दिया , तुम्हारा फादर और डॉक्टर ज़ाकिर यही सोचता रहा कि दोनों ने बड़ा हिम्मत के साथ मिलकर हम पर काबू पा लिया था, हकीकत तो यह है हमने खुद उनको अपने ऊपर काबू पाने दिया, उस लड़की उर्मिला को भी इसलिए भेजा ताकि हम दोनों के मिलने का रास्ता बने ", कमांडर कहते ही खिड़की की ओर देखता है, सुबह होने ही वाली थी। 

तनवीर की आँखें फटी की फटी ही रह गई थी, उसे अंदर से जैसे झटका सा लगा हो कमांडर की बातों को सुनकर। तनवीर अपने मन में सोच रहा था कि किस्मत का ये कैसा खेल है जिसने उसे तीन सौ साल पहले के इतिहास से जोड़ दिया। ऐसा इतिहास जो अधूरा ही रह गया जिसे एक बार फिर से पूरा करने का मौका दिया है विधाता ने।

कमांडर की खोपड़ी से बात करते करते कब सुबह हो गई तनवीर को पता ही नहीं चला, उसने खिड़की से बाहर देखा तो पाया कि सूर्य की पहली किरण धरती पर पड़ने ही वाली थी, उसने कमांडर की खोपड़ी को संदूक में वापस रख दिया और उस संदूक को दीवार की रैक पर रख शेर की तस्वीर टांग दी।

कमांडर की बातें तनवीर को परेशान करने लगीं थीं। " क्या कमांडर ने जो कहा वाकई में सच था, क्या मैं ही वो लुटेरा था जिसने कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग किया था और अगर ऐसा था तो कमांडर के दिमाग में भी बदला लेने की बात तो नहीं चल रही है", तनवीर के मन में लगातार ऐसे ख्याल आ रहे थे।

तनवीर जहाँ कमांडर की बातों से परेशान था वहीं उसकी बातें सुनकर काफ़ी डरा हुआ था। उसने अपने डर के कारण ही एक ऐसा फैसला लिया जिसकी कमांडर को भी उम्मीद ना थी। तनवीर ने फौरन ही अरुण को जगाया और सामान बाँधने की तैयारी करने लगा, उसने अपने पिता के कमरे में रखे हाथियों की मूर्तियों को भी अपने बैग में रखा और अरुण के साथ फ़ार्म हाउस से गाड़ी लेकर निकल गया।

गाड़ी अरुण ही ड्राइव कर रहा था, रास्ते में अरुण ने तनवीर से पूछा "अरे यार तन्नू, कल रात ऐसा क्या हुआ जो तुमने अचानक ही फ़ार्म हाउस छोड़ने का निर्णय ले लिया, कितना मज़ा आ रहा था वहाँ, बिलकुल शांत और शुद्ध वातावरण को छोड़कर एक दम से कानपुर के दूषित वातावरण में जाने का फैसला कर लिया, इन हाथियों की मूर्तियों में ऐसा क्या है जो इन्हें भी अपने सामान के साथ बाँध लिया "?

" कुछ नहीं बस एक ज़रूरी काम याद आ गया जो अधूरा ही छोड़ आया था और ये हाथियों की मूर्तियां मेरे वालिद की आखिरी पुरातात्विक खोज थी जो उन्होंने बड़ी हवेली में रखने को कहा था क्यूँकि ये काफ़ी रेयर कलेक्शन है बस ", तनवीर ने अरुण के सवालों का जवाब देते हुए कहा, उसने अरुण को अब तक ख़ज़ाने के उन हीरों के बारे में नहीं बताया था।

" मुझे याद है तुमने कमांडर की बात की थी, पर फ़ार्म हाउस में तो ऐसा कोई भूत नहीं दिखा मुझे तो लगता है शायद ये तुम्हारा कोई मज़ाक था, हमदोनों तो इतनी दूर आ चुके हैं अगर कोई भूत होता तो फ़ार्म हाउस पर ही रोक लेता, तुम भी यार तन्नू आज के ज़माने में भूत प्रेत पर यकीन करते हो, बहुत ताज्जुब होता है तुम्हारी बातों को सुनकर, अच्छा अब इतनी दूर पहुंच ही गए हैं तो थोड़ा नाश्ता पानी किया जाए, सुबह से अब तक कुछ गया नहीं है पेट में ", अरुण ने तनवीर से गाड़ी चलाते हुए कहा।

तनवीर गहरी सोच में था, उसने अरुण की बात सुनकर केवल अपनी गर्दन हां के इशारे में हिलाई। अरुण ने गाड़ी एक ढाबे पर रोक दी। गाड़ी से उतरते ही उसे लॉक किया और दोनों चारपाई पर बैठ गए, चारपाई के बीच में एक लकड़ी का तख्ता रखा था जिसपर एक ग्लास और एक पानी से भरा जग रखा था, दोनों अलग अलग चारपाई पर बैठे हुए थे। 15 वर्ष का एक लड़का उनके पास आया और बोला "क्या लेंगे साहब , नाश्ता अभी अभी बना है, 6 ताजी कचोरी, जलेबी, आलू पालक, मटर पनीर और रायते की प्लेट का दाम केवल दस रुपए है", लड़का अपनी बात ख़त्म करते ही उनकी ओर देखने लगा। 

अरुण ने उसकी ओर देखते हुए कहा "ऐसा करो दो प्लेट नाश्ता लगाओ और मेरे लिए जो प्लेट लाओगे उसमे जलेबी की जगह कचोरी बढ़ा देना "।

" ठीक है साहब, अभी लाता हूँ ", लड़का नाश्ते का ऑर्डर लेकर चला जाता है।

" तुम भी किस सोच में डूबे हो यार तनवीर, चलो जब तक वह नाश्ता लाता है हम लोग हाँथ मुँह धो लेते हैं ", तनवीर से अरुण ने कहा और दोनों सामने लगे हैंड पंप के पास चले गए, दोनों ने बारी बारी हाँथ मुँह धोएं फिर गाड़ी की ओर गए, उसका लॉक खोलकर अपने बैग में टॉवेल और टूथ ब्रश रखा, फिर गाड़ी लॉक कर के वापस ढाबे की ओर चल दिए।

लड़का उनकी चारपाई पर नाश्ता लेकर पहुंचा, दोनों ने जमकर नाश्ता किया, फिर वापस अपने सफ़र पर निकल पड़े, अब तक वो दोनों फ़ार्म हाउस से लगभग पचास किलोमीटर दूर निकल आए थे।

सफ़र भर तनवीर ख़ामोशी से कुछ सोच रहा था जबकि अरुण उससे लगातार बातचीत कर रहा था। तनवीर को अब भी कमांडर की बातें परेशान कर रही थी, उसने अब भी कमांडर की बातों पर यकीन नहीं किया था, उसे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि वह 300 साल पुराने इतिहास से जुड़ा हुआ था, उसे अब भी यही लग रहा था कि कमांडर के दिमाग में कोई खेल चल रहा है। इसी तरह से सफ़र करते करते करीब दोपहर के दो बज गए थे, अरुण ने गाड़ी को फिर एक ढाबे पर रोक तन्नू से कहा " तुम ज़रा यहीं ढाबे पर खाने का ऑर्डर दो, मैं ज़रा गाड़ी के टायर्स की हवा चेक करवा कर आता हूँ, पास में ही एक मैकेनिक शॉप है, फिर खाना खाकर अपने सफ़र पर दुबारा निकल पड़ेंगे", तनवीर गाड़ी से उतरकर ढाबे की ओर चल दिया।

ढाबे पर उसने खाने का ऑर्डर दिया और अरुण का इंतजार करने लगा, अब वह फ़ार्म हाउस की बात से थोड़ा निश्चिंत हो गया था क्यूँकि अब तक वह दोनों कमांडर की गिरफ्त से काफ़ी दूर जा चुके थे, पर तन्नू के मन में कहीं न कहीं कमांडर का डर था, उसके मन को एक बात लगातार परेशान कर रही थी कि क्या वह उन हीरों को बिना कमांडर की इच्छा पूरी किए बेच सकता था क्यूँकि कमांडर ने उसे बताया था कि डॉक्टर ज़ाकिर ने अपने सहायको को जो हीरे बांटे थे वो सभी उन्हें बेचने पर मर गए, पर फिर भी डॉक्टर ज़ाकिर अब तक ज़िन्दा कैसे हैं, यह बात तनवीर को सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी। थोड़ी देर बाद ढाबे पर अरुण भी पहुंच जाता है, हाँथ मुँह धोकर तनवीर के पास की चारपाई पर बैठ जाता है।

"ऑर्डर दे दिया भाई", तनवीर की ओर देखते हुए अरुण उससे पूछता है।

"हाँ दे दिया है, अभी लाता ही होगा, मैंने उसे बता दिया था कि मेरे साथ एक सज्जन और हैं उनके आते ही खाना लगा दे", तनवीर ने अरुण के सवाल का जवाब दिया।

थोड़ी देर बाद एक लड़का उनका खाना चारपाई पर लगा देता है। दोनों अपना खाना खत्म करते ही चारपाई पर थोड़ी देर आराम कर फिर अपने सफ़र पर निकल पड़ते हैं। शाम हो चली थी और मौसम में ठंड के साथ बादल भी थे, ऐसा लग रहा था कि बरसात भी अपना कहर ढा ही देगी, फिर भी उन दोनों ने अपना सफ़र जारी रखा।

"अरे यार तन्नू आज मौसम बड़ा सुहाना है, लगातार सफ़र करते हुए पीठ भी दर्द हो रही है, आज मूड बन गया है क्यूँ न पास के गाँव में थोड़ी देर रुक कर ग़म का साथी रम पीकर ठंड भगाई जाए, फिर कहाँ ऐसा मौका मिलेगा, घर पहुंचकर अपने बापू की किट किट सुननी पड़ती है, यही तो मौका है जब एंजॉय किया जा सकता है, तुम्हारी भी परेशानी थोड़ी कम होगी रम लेकर चखने के लिए भी सोचना नहीं पड़ेगा वाइन शॉप के बगल में ही एक छोटा सा होटल है जहाँ खाने पीने की भी व्यवस्था मौजूद है ",अरुण ने तनवीर से कहा।

" तुम्हें कैसे पता आगे के गाँव में वाइन शॉप है ", तनवीर ने आश्चर्य से पूछा।

अरुण ने हंसते हुए कहा " मन्दिर का पता पुजारी को ना रहे तो पुजारी किस काम का, मैंने फ़ार्म हाउस जाते समय रास्ते पर ही देख लिया था कि इस गाँव में वाइन शॉप है, अब बस तुम इजाज़त दो तो गाड़ी वहीं अड्डे पर रोका जाए, पर पीने के बाद तुम ड्राइव करोगे क्यूँकि मैं काफ़ी थक चुका हूँ और फिर मूड भी तो बना रहना चाहिए। अगले शहर पहुंचते ही रहने के लिए लॉज और होटल की सुविधा है अगर चाहो तो वहीं रात सो लिया जायेगा लेकिन शहर जब तक पहुंचेंगे तब तक वाइन शॉप बंद हो जाएगी , चिन्ता मत करो तुम्हें गाड़ी ज़्यादा दूर नहीं चलानी पड़ेगी "।

तनवीर जो कमांडर की बातों से कश़्मकश में पड़ कर उलझ सा गया था अरुण के इस प्रस्ताव को ठुकरा ना सका और उसने भी हामी भर दी।

गाँव के वाइन शॉप के नज़दीक पहुँचते ही अरुण ने गाड़ी होटल पर रोक दी, तनवीर को होटल पर रुकने को कहा और ख़ुद बगल की दुकान से रम का एक खरीदने चला गया । होटल पर पीने वालों की अच्छी खासी संख्या थी, होटल के बाहर तीन गाड़ियां पहले से ही रुकीं थीं। तन्नू ने होटल के वेटर को दो प्लेट चिकेन तंदूरी का ऑर्डर दिया, जब तक वह ऑर्डर लेकर आता अरुण भी रम लेकर पहुंच गया, फिर उसने ग्लास में दो पेग बनाए और एक तनवीर की तरफ़ बढ़ा दिया। दोनों ने अपने अपने पेग पीए। चारों तरफ़ बैठे शराबी अपनी जग जीतने कि कथा सुना रहे थे, उनमें से कुछ जोड़े में टेबल पर बैठे हुए थे तो कुछ ग्रुप में पीने आए थे, जो अकेला आता था तुरंत ही पीकर चला जाता था। कुछ ही देर बाद वेटर उनका खाने का ऑर्डर लाया, दोनों चिकन तंदूरी पर नींबू निचोड़ कर खाने का आनंद लेने लगे, बीच बीच में अपने ग्लास से रम का पेग भी पीते रहते थे।

कुछ देर बाद तनवीर और अरुण पर भी नशे का असर धीरे धीरे होने लगा, दोनों अपने यूनिवर्सिटी के दिनों और दोस्तों को याद करके ठहके मारने लगे जिससे बगल में बैठे सज्जन को दिक्कत होने लगी क्यूँकि वह शायद ग़म मिटाने के लिए पी रहे थे, उसने अरुण से कहा "थोड़ा धीरे हँसो भाई, हर किसी के जीवन में तुम्हारी तरह खुशियाँ नसीब नहीं होतीं, नहीं तो दुनिया तुम्हारी तरह गला फाड़ कर हँसती", तनवीर और अरुण उसकी तरफ देख कर थोड़ा शांत हो जाते हैं फिर आपस में धीरे धीरे बात करने लगते हैं।

समय थोड़ा और बीतता है तनवीर और अरुण पर अब नशा अच्छा खासा चढ़ गया था, इतने में बाहर बिजली कड़की, बिजली की आवाज़ इतनी तेज थी मानो कहीं आसपास ही गिरी हो, हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गई। इतने में गाँव की एक सुंदर लड़की बारिश से बचने के लिए होटल की आड़ में खड़ी हो गई। होटल पर बैठे तमाम शराबी उसके सौंदर्य को देख मंत्र मुग्ध हो गए। उनमें से कुछ के अंदर सभ्य महा पुरुष बनने का कीड़ा जागा, उनमें से एक ने फैसला किया कि लड़की को कम से कम बैठने के लिए कुर्सी तो दे ही देनी चाहिए, यहाँ होटल में तो कई खाली पड़ी कुर्सियां हैं। वह उठा और एक कुर्सी लड़की के पास लेकर पहुंचा, लड़की कुर्सी पर बैठ गई फ़िर शराबी अपने टेबल पर पीने के लिए चला गया। तनवीर और अरुण ये नज़ारा बड़े आराम से बैठकर देख रहे थे और एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे।

इतने में दोनों के पीछे टेबल पर बैठे हुए एक शराबी ने लड़की पर अश्लील ताना मारता है और उसके बाकी चार साथी ठाहके मार कर हँसने लगे। उनकी हँसी सुन फ़िर उसी शराबी ने टोका जिसने तनवीर और अरुण को टोका था, उसने कहा "अरे थोड़ा धीरे हँसो भाई, हर किसी के जीवन में तुम्हारी तरह खुशियां नसीब नहीं होती, नहीं तो दुनिया तुम्हारी तरह गला फाड़ कर हँसती", वो सभी उसकी ओर देखने लगे लेकिन कोई नहीं माना। उन्होंने लड़की पर अश्लील ताने मारना जारी रखा। लड़की अब डर से थोड़ा सहम सी गई थी। तनवीर और अरुण को भी अब गुस्सा आने लगा था, उन्होंने भी मना किया लेकिन उन बदमाशों ने उनकी बाते अनसुनी कर दी। अचानक उनमें से एक शराबी उठा और लड़की के नज़दीक लड़खड़ाते हुए पहुंचा। उसने लड़की का हाथ पकड़ते हुए कहा "ए रानी चलती हो क्या, एक रात में मालामाल कर दूँगा, बस हम पाँचों को खुश कर दे", लड़की मदद माँगते हुए हाँथ छुड़ाने लगी।

इतने में तनवीर पास की टेबल पर रखी बियर की बॉटल उस शराबी के सिर पर मारता है। वह शराबी लहूलुहान हो जाता है, उसके बहते खून को देख उसके साथी मदद के लिए भाग कर आते हैं, पर अरुण और तनवीर उस लड़की को साथ में लेकर गाड़ी स्टार्ट कर भागने लगते हैं। उस शराबी के साथी भी दो गाड़ियां लेकर उनका पीछा करने लगते हैं।

अरुण गाड़ी को तेज रफ्तार से चला रहा था क्यूँकि उन शराबियों ने पीछा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, कभी रफ्तार बढ़ा कर तनवीर और अरुण की गाड़ियों को अगल बगल से टक्कर मारते तो कभी अरुण उनकी गाड़ी को टक्कर मार रहा था। इसी आपाधापी में अरुण ने गाड़ी की रफ्तार बहुत अधिक बढ़ा दी जिससे उनकी गाड़ी ने अच्छी खासी दूरी बना ली, पर फिर भी शराबियों ने पीछा करना नहीं छोड़ा। इतने में अचानक उनकी गाड़ियों से काफ़ी दूरी पर सड़क के किनारे एक पेड़ पर बिजली गिरती है जिससे वह पेड़ सड़क पर गिरकर रास्ता बंद कर देता है लेकिन अरुण की नज़र उस पेड़ पहले गाँव के रास्ते निकलने वाली सड़क पर पड़ती है जो हाइवे को दो हिस्सों में बांट रही थी, अरुण उन शराबियों से बचने के लिए गाड़ी को उसी सड़क पर ले जाता है। उन शराबियों की गाड़ियां अब भी उनका पीछा कर रही थीं। इतने में वो लड़की अरुण और तनवीर से कहती है आगे आने वाले मोड़ पर दाएँ ओर गाड़ी घुमा लें वो रास्ता आगे जाकर हाइवे से मिलता है वहीं नज़दीक ही एक गाँव है जहाँ मेरी मौसी रहती हैं, मैं रात वहीं गुज़ार लूँगी, आप लोग सफ़र जारी रख सकते हैं अगर चाहें तो ", लड़की ने उनकी ओर देखते हुए कहा। 

तनवीर और अरुण ने पीछा कर रही दोनों गाड़ियों को चकमा देने के लिए यही उचित समझा, गाड़ी लड़की के कहे अनुसार दायीं ओर निकलने वाली सड़क पर घुमा दी। उन शराबियों की गाड़ियां चकमा खा गयीं और मोड़ के बायीं ओर घूम कर चलीं गईं। वो तीनो अब कुछ शांत हो गए, उनके सिर से एक बला टल गई थी। 

तनवीर ने अपनी घड़ी में देखा तो रात के 11:30 बजे थे, उसने अरुण से कहा "अरे यार हमलोग कितनी देर से भाग रहे थे इसका पता ही नहीं चला, आधे घंटे के बाद आधी रात हो जाएगी, हमलोगो ने काफ़ी समय होटल में पीने के चक्कर में बर्बाद कर दिया"। 

"मेरा तो सारा नशा बेकार कर दिया उन शराबियों ने पीछा करके, बस जितने देर उस होटल में बैठे थे उतनी देर ही एंजॉय किया, बाद में तो भागादौड़ी में सारा नशा उतार कर रख दिया शराबियों की टोली ने, शुक्र मनाओ मैंने एक और हाफ़ बॉटल रम अलग से ख़रीद कर पहले ही बैग में रख लिया था, जब कहोगे तब एक बार और मूड बना लिया जाएगा ", तनवीर से अरुण ने गाड़ी चलाते हुए कहा। 

तनवीर ने अरुण की तरफ़ आश्चर्य से देखा और कहा" तुम भी न यार अरुण समझ के बाहर हो, यहाँ अभी थोड़ी देर पहले हम तीनों की जान जाने वाली थी और तुम्हें अब भी दारू चखने की पड़ी है "। 

" याद ना हो तो याद दिला दें होटल में हीरो गिरी शायद आप ही ने दिखाई थी, वर्ना आज ये नौबत ना आती, ना उन शराबियों से पीछा छुड़ाने के लिए हमें भागना पड़ता और ना हम अपने हाई वे के रास्ते को छोड़ इस गाँव से होकर निकलने वाले रास्ते को पकड़ते जहाँ सड़क के दोनों ओर सुनसान जंगल ही हैं ", तनवीर से अरुण ने व्यंग्य के के भाव में कहा। 

" मैं क्या करूं यार, वो शराबी इस लड़की को छेड़ रहा था, मुझसे रहा नहीं गया, सोचो अगर इसकी जगह कोई तुम्हारी जानने वाली होती तो तुम क्या उसे मुसीबत में छोड़ देते ", तनवीर ने अरुण से ख़ुद की सफाई पेश करते हुए पूछा। 

अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा "अपनी सफ़ाई देना तो कोई तुमसे सीखे"। 

" हैलो तनवीर, तुम हमको छोड़कर कैसे भाग आया, आज तो तुमने वही लुटेरे वाला रूप दिखा दिया, तुमको क्या लगा तुम हमसे बच गया, हम तुमको बताया था कि हम अगर चाहता तो तुम्हारा फ़ादर और डॉक्टर को पहले ही मर सकता था, तुमको क्या लगा कि हम बस उस संदूक तक ही सीमित है", तनवीर और अरुण उस भयानक आवाज़ को सुनकर घबरा जाते हैं, अरुण के पाँव अपने आप ब्रेक पर दबाव बना देते हैं और दोनों एक साथ पीछे मुड़कर बैक सीट पर देखते हैं, ये उस लड़की ने कहा था जिसके अन्दर से कमांडर बोल रहा था, उस लड़की का हावभाव, रंगत, आवाज़ सब कुछ बदल सा गया था, बाल बिखरे हुए थे जो सामने से चहरे को ढक रहे थे, आँखो की पुतलियां लाल हो चुकी थीं जो रात में गाड़ी के अंदर चमक रही थीं।

तनवीर और अरुण की डर से हालत खराब हो गई थी, दोनों का चेहरा एक दम सुन सा पड़ गया था, डर ने मानो उन्हे जमा दिया हो।

उनसे उस लड़की के अंदर घुसी कमांडर की आत्मा ने कहा "गाड़ी चलाओ और बिना कोई होशियारी दिखाए फ़ार्म हाउस तक चलो", उस लड़की के चहरे पर क्रोध के भाव थे। अरुण ने गाड़ी स्टार्ट की और एक बार फिर से फ़ार्म हाउस के लिए गाड़ी चल पड़ी।

तनवीर थोड़ा साहस जुटा कर कमांडर से पूछता है "एक बात बताईये आप ने हम दोनों को ढूंढा कैसे और इतने सालों सबकी जान बख्श देने का असली मकसद क्या है, मुझे तो अपने 300 साल पहले के जन्म का कुछ भी याद नहीं, मैं इसी कश़्मकश में उलझ सा गया हूँ कि आप सच बोल रहे हैं या फिर इसके पीछे कोई और राज़ छुपा है जो आप मुझसे छुपा रहे हैं ", तनवीर अपनी बात ख़त्म कर के कमांडर की ओर देखता है।

लड़की जिसके अन्दर कमांडर की रूह थी उसने तनवीर की बाते सुन कर कहा" हमको पहले से पता था तुम इतना आसानी से यकीन नहीं करेगा, फिर भी हम तुमको पहले भी बोला था हम तुमको नुकसान नहीं पहुंचाने वाला जब तक हमारा मकसद पूरा नहीं होता और हमको तुम डॉक्टर ज़ाकिर से नहीं मिलवाता है, अगर तुम आज का दिन बर्बाद नहीं करता तो हमलोग एक साथ कानपुर की बड़ी हवेली के लिए निकल चुके होते", कमांडर ने तनवीर से तराज जताते हुए तनवीर की ओर देखा, तनवीर ने एक पल को उस लड़की की रूहानी आँखो में देखा फ़िर तुरंत ही अरुण की ओर देखने लगा।

अरुण का चेहरा डर से सफ़ेद पड़ गया था ऐसा लग रहा था उसने अपनी सांसो को रोक रखा था, उसकी दयनीय हालत देखकर तनवीर ने उससे कहा "भाई लाओ अब गाड़ी मैं चलाता हूँ, तुम काफ़ी थक चुके होगे, कमांडर क्या गाड़ी मैं चला सकता हूँ", तनवीर ने बैक सीट पर बैठे कमांडर की रूह मतलब उस लड़की से पूछा।

कमांडर की रूह मान गई और अरुण ने गाड़ी को रोक कर स्टीयरिंग पर तनवीर को बैठा दिया। तनवीर ने गाड़ी स्टार्ट की और उनका सफ़र एक बार फिर शुरू होता है।

" हा.... हा.... हा.... तुम्हारा दोस्त तो डर कर पैंट में सुसू कर देगा ऐसा लगता है, क्यूँ बेवड़े कभी भूत नहीं देखा क्या, तेरे बाप का नाम पुरुषोत्तम मिश्रा है ना क्यूँ शराबी तेरी माँ का नाम राधिका है और तेरी बहन का नाम सरिता है क्यूँ है ना ठरकी", कमांडर की रूह अरुण से कुछ इस मज़ाकिया अंदाज़ में सवाल करती है कि सुन कर तनवीर की भी हँसी छुट जाती है।

अरुण घबराहट भरे स्वर में कमांडर से कहता है" आपको कैसे पता चल गया मेरा इतिहास, अपने सब कुछ सही बताया है ", अरुण कहते हुए अपना पसीना पोंछता है। 

" इतनी ठंड में भी तुम्हारा पसीना निकल गया ठरकी, तुमको तो भूत पर कोई यकीन नहीं था, आज तो देख लिया और देखते ही गीला पीला हो गया, हम जिसको भी एक बार देख लेता है उसका भूत, वर्तमान और भविष्य सब जान लेता है, जैसे अभी तुम्हारे बारे में जान गया शराबी", कमांडर बोलते ही अरुण की तरफ़ देखता है। 

"आप बार बार ठरकी और शराबी क्यूँ बोल रहे हैं..... मेरा नाम तो अरुण है ", अरुण कमांडर से ऐतराज जताते हुए कहता है। 

" ठरकी को ठरकी नहीं कहेगा तो क्या कहेगा..... एक तो दारू बाज ऊपर से नाम लेने को कहता है, ए दारूबाज हम तुमको ठरकी ही बुलायेगा.... क्या करेगा अपने बाप से चुगली लगाएगा ", कमांडर अपने रौबिले अंदाज़ में अरुण से कहता है, तनवीर उन दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा रहा था। 

अरुण डर के मारे कमांडर से सहमत हो जाता है और कहता है" आप की जो मर्ज़ी वो ही बुलाइये, पर एक बात बताईये कि आप जिस संदूक में रहने की बातें कर रहे थे, उसका क्या चक्कर है", अरुण आश्चर्य प्रकट करते हुए कमांडर को पलट कर देखता है। 

कमांडर उसे सारी कहानी विस्तार से समझाता है, पर उसे उन हीरों के बारे में नहीं बताता है जो डॉक्टर ज़ाकिर ने तनवीर के वालिद को दिया था। कमांडर की बातें सुनकर अरुण कहता है " आज तक मैं तनवीर से बड़ी हवेली के राज़ के बारे में पूछता रहा, पर मुझे इसका सही जवाब नहीं दिया कभी, आज मुझे पता चला कि राज़ ना बता कर ये मुझे इस बात पर यकीन करने से रोक रहा था कि भूत हक़ीक़त में होते हैं, आज तक केवल कहानियों में पढ़ा था, आज हक़ीक़त में देख भी लिया ", अरुण ने तनवीर की ओर देखते हुए कमांडर से कहा

" अच्छा कमांडर मौत के बाद कैसा दिखता है, क्या होता है जो इंसान समय में फंस जाता है जैसे आप, मैं बस जानना चाहता हूँ कि आप कैसे मौत और जीवन के बीच में हर रात सफ़र कर लेते हैं", अरुण ने कमांडर से जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा।

पहले तो कमांडर हंसने लगा फ़िर बोला" तुम चाहता है कि हम अपना सारा राज़ बता दे ताकि तुम रात को भी हमारा आना जाना रोक सको, हा.... हा.... हा..... अब सुनो तीन लोकों में ब्रह्माण्ड बंटा है स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक, अर्ध लोक, जिन इंसानों की मौत अप्राकृतिक रूप से होती है उन्हें अर्ध लोक में रोक दिया जाता है जो चाँद का वो हिस्सा है जहाँ सूर्य का प्रकाश कभी नहीं पड़ता बस ग्रहण के दौरान ही सूर्य का प्रकाश पड़ता है और सूर्य उन आत्माओं के इंसाफ़ के वास्ते न्याय का द्वार खोल देता है, प्राकृतिक मौत वाले तो सीधा स्वर्ग जाते हैं अपने कर्मों के आधार पर, नहीं तो वापस जन्म ले लेते हैं, इन आत्माओं के आने जाने का मुख्य द्वार वीनस ग्रह होता है क्यूँकि वीनस का समय बाकी ग्रहों से कहीं ज्यादा तेज़ है, वजह बस यही है कि वीनस दक्षिणावर्त घूमता है और बाकी के सारे ग्रह वामा वर्त घूमते हैं जिस वजह से उनका समय और ज्ञान वीनस के मुकाबले काफी पीछे है, बस इसी कारण सुबह के समय अर्ध लोक में मेरी आत्मा पहुंच जाती है और समय होते ही वापस अपने शरीर में पहुंच जाता है, बहुत कम ही लोग होते हैं जो इस विज्ञान को अच्छी तरह से समझते हैं ", कमांडर ने अरुण के सवाल का अच्छी तरह से समझाते हुए जवाब दिया।

बाहर मौसम अब खराब हो चला था, बारिश ने अपना कहर बुरी तरह से ढ़ा दिया था, फिर भी तनवीर को गाड़ी चलाने में ज़्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा, जंगल का रास्ता सुनसान था जिस वजह से उस पर ट्रेफिक लगभग ना के बराबर था, तनवीर और अरुण ने जितनी दूरी हाई वे पर चलकर नहीं तय कि थी उससे कम समय में जंगल के उस शॉर्ट कट पर चलकर तय कर लिया था, अब सब फ़ार्म हाउस से ज़्यादा दूरी पर नहीं थे, रास्ता खाली होने की वजह से तनवीर गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रहा था, वजह थी उन दोनों के सिर पर बैठी कमांडर नाम की मौत जिसने उस अनजान लड़की के शरीर पर काबू कर लिया था।

रास्ता भले ही लम्बा था पर बातचीत करते हुए आसानी से कट रहा था, अब अरुण और तनवीर को कमांडर से ज़्यादा परेशानी नहीं हो रही थी जितनी बाहर के खराब मौसम से थी, तीनों में दोस्ती भले ही ना हो पर अपने अपने मकसद को पूरा करने के लिए समझौता ज़रूर हो गया था और उसी समझौते का परिणाम था कि कमांडर ने अब तक दोनों को मारा नहीं था।

सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक गाड़ी के सामने एक जंगली हिरण आ जाता है, तनवीर उसे बचाने की कोशिश में गाड़ी को दूसरी तरफ घुमाता है, बरसात होने के कारण अरुण और तनवीर ठीक से कुछ देख नहीं पाते हैं, गाड़ी तनवीर के कंट्रोल से बाहर हो जाती है और एक पेड़ से जा टकराती है। उनकी गाड़ी का बुरी तरह से एक्सिडेंट हो जाता है और उस दुर्घटना में तनवीर, अरुण और वो अनजान लड़की गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं पर उस हादसे में कमांडर का कोई अता पता नहीं चलता है।

"वीरे ओ वीरे, रुक मैं भी आ रहा हूँ, देख माँ ने गाजर का हलवा बनाया है, अरे थोड़ा धीरे चल अभी पाठशाला शुरु होने में बहुत समय है, साथ में बैठ कर खाया जाएगा, सुन न यार जीते आज गणित की परीक्षा के वक़्त थोड़ा मदद कर देना," 15 वर्ष का हरप्रीत अपने मित्र इंद्रजीत से कहता है।

उसका मित्र इंद्रजीत जवाब देता है" ठीक है मैं तेरी मदद कर दूँगा बस याद रखना गाजर का हलवा पूरा मैं खाऊँगा "। 

" हाँ,.. चल खा लेना, पर मदद ज़रूर करना ", हरप्रीत अपने मित्र से कहता है।

पाठशाला के बाद दोनों सीधा अपने घर की ओर जाते हैं, गाँव के चौराहे पर काफ़ी भीड़ लगी थी, इंद्रजीत का घर वहीं पर था, दोनों दौड़ते हुए भीड़ को चीरकर घर के मुख्य दरवाज़े से अंदर पहुंचते हैं, सामने चार लाशें रखी थीं जो सफ़ेद चादर से लिपटी हुई थीं, उनमें से एक लाश हरप्रीत के पिता की थी और बाकी तीन लाशें इंद्रजीत के पिता और दो बड़े भाईयों की थीं। घर में मातम का माहौल छाया हुआ था, एक ओर घर और पड़ोस की महिलाएँ बैठकर रो रहीं थीं तो दूसरी ओर पुरुषों का झुंड सिरों को झुकाए बैठा था, इंद्रजीत और हरप्रीत रोते हुए उन लाशों से लिपट गये, कुछ महिलाएं उनके करीब आकर उन्हें चुप कराने में लग गईं। इंद्रजीत अपनी माँ से लिपट गया और बोला "ये क्या हो गया माँ, कैसे और किसने किया ये", उसकी आँखें बदले के क्रोध से भरी हुई थीं जो आँसुओं के रूप में बह रही थीं।

"सच्चे बादशाह की सेवा करते हुए तेरे पिता शहीद हुए हैं बेटा, ये फक्र की बात है, शाहजहाँ की सेना से लड़ते हुए उन्होंने और तेरे भाइयों वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी है, तुझे भी इन्ही की तरह बनना है और इनकी मौत का बदला लेना है", इंद्रजीत की माँ अपने दिल पर पत्थर रखकर कहती है।

" मैं कसम खाता हूँ माँ, शाहजहाँ को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, मैं मुग़ल सल्तनत की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दूँगा ", 15 वर्ष का इंद्रजीत अपनी माँ से वादा करता है। धीरे धीरे समय बीतता जाता है, इंद्रजीत और हरप्रीत बड़े हो जाते हैं, दोनों ने मिलकर अपने गांव और आसपास के गांवों के नौजवानो की छोटी टुकड़ी बना ली, जिसका काम शाही ख़ज़ाना और विदेशी व्यापारियों को लूटना था। दोनों ने गुमनामी में रहकर नामुमकिन डकैती को भी अंजाम दिया था। उनके कुछ ख़ास साथियों के अलावा कि‍सी को उनका असली नाम और पता ठिकाना मालूम नहीं था।

समय बीतते देर नहीं लगती और सारे हिन्दुस्तान में उनके दल द्वारा लूट के किस्से फैल जाते हैं और मुग़ल सल्तनत तथा अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक भी पहुँचता है। ठीक ऐसे ही ताजमहल और काले ताज की खबर इंद्रजीत और उसके दल को मिलती है। इंद्रजीत अपने दल के साथ शाहजहाँ से पुराना हिसाब चुकता करने के लिए तैयार बैठा था और सही समय का इंतजार कर रहा था, जो बादशाह के सालगिरह का दिन था। अपने साथियों के साथ मुग़ल सिपाहियों के रूप में सालगिरह के मौके पर पहुँचा और देखा ख़ुद औरंगजेब के ख़ास सिपाही ख़ज़ाने का एक बड़ा हिस्सा किले के पीछे के गुप्त द्वार से निकाल रहे हैं, उन्होंने पीछा किया और उस ख़ज़ाने को छुपाने वाली जगह देख ली। एक रात पूरी तैयारी के साथ ख़ज़ाने को लूट लिया और जंगल की ओर चल दिए।

कुछ दिनों बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ सिपाहियों ने चारों ओर से घेर कर हमला किया, उनका बचना नामुमकिन सा था, पर हरप्रीत ने योजना बनाई और केवल कुछ साथियों के साथ रुककर हिम्मत के साथ अंग्रेजी सिपाहियों का सामना किया जिसमें वह शहीद हुआ, पर उसने इंद्रजीत और बाकी साथियों की जान बचा ली। थोड़े दिनों बाद कमांडर ब्राड शॉ राउडी और उसके शिकारी दल का सामना उससे होता है, कमांडर को मार उसे ख़ज़ाने की गुफ़ा के सामने बर्फ़ में गाड़ कर वह पहाड़ों से नीचे उतरता है, जहाँ उसका सामना एक बार फिर से मुग़ल सल्तनत के सिपाहियों से होता है।

उसे कारागार में डाल दिया जाता है, जहाँ उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है, उसके दाएँ हाथ की दो उँगलियाँ काट दी जाती हैं, पगड़ी बांधने वाले सरदार की पगड़ी की बेज़त्ती की जाती है, उसके बाल और दाढ़ी नोच लिए जाते हैं, उससे बार बार ख़ज़ाने का पता और उसका नाम पूछा जाता है, पर दिल में शाहजहाँ के प्रति नफरत भरे हुए इंद्रजीत की ज़ुबान कोई नहीं खुलवा पाता है। अंत में शेर की तरह जीवन बिताने वाले इंद्रजीत की कारागार में ही मृत्यु हो जाती है।

"मालिक... ओ... छोटे मालिक, आपकी आँखें खुल रही हैं थोड़ा और ज़ोर लगाइए", अनजान आवाज़ सुनकर तनवीर आँखे खोलता है और ख़ुद को फ़ार्म हाउस में पाता है, वो उठने की कोशिश करता है पर सिर में ज़ोर का दर्द शुरू हो जाता है, सिर को हांथों से पकड़ने पर पता चलता है कि पट्टी बंधी हुई है। उसे सब याद आने लगता है, बरसात की वो रात, कमांडर की बात, अचानक होने वाला वो हादसा जो उस रात हुआ था।

वो उस शख्स की तरफ़ देखता है और कहता है "तुम कौन हो और मैं यहाँ कैसे पहुंचा, मेरा तो एक्सिडेंट हुआ था न और अरुण कैसा है, उस लड़की का क्या हुआ जो साथ में थी", तनवीर काफ़ी घबराया हुआ सा था।

वो अनजान शख्स उससे कहता है "मैं इस फ़ार्म हाउस में ही काम करता हूँ, छोटे मालिक, उस दिन भी तो आपके लिए खाना बनाने आया था लगता है आपको याद नहीं है, आपकी गाड़ी जंगल में मिली थी कुछ गाँव वालों को और भगवान की कृपा से उसमें से एक आपको जनता था, सो आप लोगों को यहाँ ले आया, आपको पूरे दो दिन बाद होश आया है, आपके दोस्त और वो लड़की भी सुरक्षित हैं और यहीं पर हैं, बस आपको सिर पर थोड़ी ज़्यादा चोट लगने के कारण कुछ दिनों बाद होश आया है "।

तनवीर उस नौकर की बातें सुनकर सब समझ जाता है। यहाँ तक कि दुर्घटना के बाद उसे अपने पिछले जन्म की कहानी भी याद आ जाती है, अब उसे कमांडर की बातों पर यकीन हो गया था, उसे पता चल चुका था कि इंद्रजीत ही वो लुटेरा था जिसने शाहजहाँ का ख़ज़ाना लूटा था और कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था, अब उसे उस तीन सौ साल पुराने इतिहास पर पूरी तरह से विश्वास हो गया था। पर उसे एक बात खाए जा रही थी कि कहीं उसके साथ घटित दुर्घटना में कमांडर का हाँथ तो नहीं था, अगर था तो इसका मतलब यह था कि कमांडर ने उनसे झूठ बोला था कि वह उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए तन्नू इस नतीजे पर पहुँचा कि कमांडर पर इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता है कि वह उनकी जान नहीं लेगा, अगर इस हादसे में उसी का हाँथ था तो कमांडर जानलेवा होने के साथ साथ विश्वास करने के लायक भी नहीं है। तनवीर को ये सारी बातें आने वाले कल के लिए आगाह कर रही थीं।

तनवीर नौकर की बाते सुनकर सारी कहानी समझ जाता है, वह सबसे पहले अपने सामान और अपने साथियों को देखने के लिए बिस्तर से उठता है। उसे हीरों की चिन्ता तो थी ही साथ ही अरुण की चिन्ता भी थी। अरुण फ़ार्म हाउस के एक कमरे में आराम कर रहा था और वह अनजान लड़की नीचे के कमरे में थी, उस दुर्घटना में सबसे कम चोट उसे ही लगी थी। अरुण को सोता हुआ पा कर तनवीर उसके कमरे में रखे अपने सामान की तलाशी लेता है, हाथियों की मूर्ति सुरक्षित थी तथा उसके अंदर हीरे भी सुरक्षित थे। वह उन्हें उसी तरह रख कर अपने समान को अपने कमरे में ले जाकर रखता है और कमरा लॉक कर देता है, फिर सीढ़ियों से नीचे उतर कर हॉल के सोफ़े पर बैठता है, थोड़ी देर बाद फ़ार्म हाउस में काम करने वाला नौकर वहाँ से गुज़रता है। तनवीर उससे पूछता है "गाड़ी का क्या हुआ", नौकर तनवीर की तरफ़ पलट कर देखता है और जवाब देता है "कल तक मैकेनिक गाड़ी बनवाकर ले आएगा छोटे मालिक"।

तनवीर नौकर के जवाब से संतुष्ट हो गया, उसे राहत मिली ये जानकर कि कल इस फ़ार्म हाउस को छोड़कर निकला जा सकता है। वैसे भी इस फ़ार्म हाउस का तजुर्बा उसे कुछ ख़ास रास नहीं आया था। शाम हो चली थी कुछ घंटों बाद कमांडर के भी जागने का वक़्त होने ही वाला था, तनवीर इस सोच में था कि पता नहीं आज कमांडर कौन सी क्लास लेगा, इतने में वो अनजान लड़की भी अपने कमरे से आराम फरमा के बाहर हॉल की ओर निकली थी। तन्नू को सोफ़े पर बैठा देख वह उसकी तरफ बढ़ी, उसके नज़दीक पहुँचते ही बोली "अब आपकी तबीयत कैसी है, आपके सिर पर काफ़ी चोट लगी थी", लड़की ने तनवीर के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की।

तनवीर ने कहा "मैं बिलकुल ठीक हूँ, सिर पर कुछ टाँके लगे हैं नहीं तो और कहीं चोट नहीं आई"।

"चलो शुक्र है, क्या कल यहां से निकलने की तैयारी है, यहाँ के नौकर बता रहे थे कि कल तक गाड़ी ठीक हो जायेगी, अगर मुझे भी छोड़ देंगे तो काफ़ी मेहरबानी होगी, यहाँ दो दिन लग गए आप दोनों को होश में आने को ", लड़की ने तनवीर से अनुरोध करते हुए कहा।

तनवीर ने कहा "चलो ठीक है, कल सुबह गाड़ी आते ही, हम लोग निकल चलेंगे, तुम्हें रास्ते में गाँव ही उतार देंगे, मुझे पता है तुम्हारे घर वाले भी परेशान हो रहे होंगे, बस एक रात की बात है, तुम चिंता मत करो, इसे अपना ही घर समझो, जिस चीज़ की ज़रूरत हो बेझिझक नौकरों से मंगवा सकती हो ", तनवीर उस लड़की को दिलासा देता है। 

कुछ देर बाद अरुण भी नीचे हॉल की तरफ़ आता है, उसके हाँथ और पाँव में थोड़ी चोट आई थी बाकि सब कुछ सुरक्षित था। तन्नू ने अरुण को सारा हाल बताया और उसकी तबीयत के बारे में भी पूछा। अरुण को ये जानकर खुशी हुई कि कल इस फ़ार्म हाउस से रवाना हो जाएंगे हालाकि उसे फ़ार्म हाउस पसंद आ गया था पर तनवीर कि एक बेवकूफ़ी ने कमांडर को गुस्सा दिला दिया था।

शाम हो चली थी और जैसे ही जैसे वक़्त बीत रहा था कमांडर का भय उन तीनों के चेहरों पर दस्तक दे रहा था। कमांडर जिसने दो दिन पहले ही तीनों का वो हाल किया था कि इन्हें जीवन भर याद रखना था। तीनों बैठकर उस रात हुए हादसे को ही याद करने की कोशिश कर रहे थे। तभी नौकर ने लाकर चाय रखी, तन्नू ने उससे पूछा "तुमने इस फ़ार्म हाउस पर कुछ अजीब घटना होते हुए देखी है, तुम तो यहां काफी सालों से काम कर रहे हो न, तनवीर ने चाय कीचुस्की लेते हुए उसकी तरफ देखा। 

नौकर ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया " ऐसा तो कुछ नहीं देखा मालिक बस, कुछ सालों पहले जो केयर टेकर रहते थे उन्हें शायद इस घर में कोई बुरी आत्मा दिखी थी शायद, उसके बाद से ही उनके जीवन में अजीब सी परेशानी होने लगी, घर के किसी न किसी सदस्य का नुकसान होने लगा, उसके कुछ महीनों बाद पूरा परिवार ही फ़ार्म हाउस छोड़कर चला गया, किसी को कानो कान ख़बर नहीं लगी उनके जाने की, बस सुबह काम पर आते ही ताला लगा हुआ मिला, सो हर रोज़ केवल माली ही आकर बाग बगीचे की सफ़ाई कर चला जाता था, हमलोगो ने अपने अपने खेतों पर ही काम करना शुरू कर दिया था , आपके आने की खबर मिलते ही हम लोग यहाँ काम करने पहुँच गए "। 

" अच्छा ठीक है तुम जाओ अपना काम करो ", तनवीर ने नौकर से कहा और वह रसोई की ओर बाकि नौकरों का साथ देने चला गया। 

 तीनों फ़िर से आपस में बैठकर बातें करने लगे। देखते ही देखते खाने का समय हो गया, खाना खाते ही अरुण ने तनवीर के साथ रात में जागने का प्लान बना लिया। उसे रात में कमांडर से मुलाकात करने की तीव्र इच्छा थी। रात बीतते ज़्यादा समय नहीं लगा और घड़ी ने बारह बजे का घंटा बजा। तनवीर ने संदूक पहले से ही टेबल पर निकाल कर रख दिया था, अरुण कुर्सी पर जमकर बैठा हुआ था, संदूक के खुलते ही तेज़ लाल रोशनी चमकने लगती है, कमांडर संदूक के बाहर आते ही अरुण और तनवीर को देख मुस्कुराते हुए कहता "गुड ईवनिंग माय चिल्ड्रन, हाउ आर यू टुडे, सब कुछ याद आ गया होगा, क्यूँ इंद्रजीत मेरा मतलब है नवाब तनवीर और क्या हाल है हरप्रीत, कुछ याद आया कि नहीं, दो दिन से लगातार पिछले जन्म का सपना देख रहा था तुम दोनों हा.... हा..... हा", कमांडर के बोल सुनकर तनवीर और अरुण के होश उड़ गए थे। वो दोनों एक दूसरे को अजनबियों की तरह देख रहे थे। अब तक दोनों ने एकदूसरे से इस बात का ज़िक्र नहीं किया था। 

कमांडर ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" ये सब वीनस ग्रह का कमाल है, जिन इंसानो का दूसरा जन्म इस पृथ्वी पर होता है उनका याददाश्त इसी ग्रह का वजह से आता है। ब्रह्माण्ड में उसी ग्रह का समय बाकी ग्रहों से कहीं आगे है, हम आत्माओ का भी इस पृथ्वी पर आना और जाना उसी ग्रह का वजह से है, यही नहीं हम सब के मरने की एक वजह थी ख़ज़ाना और अप्राकृतिक मौत, जो समय से पहले ही हो गया था हम ख़ज़ाने का रखवाला बन गया और तुम दोनों का तीन सौ साल बाद जन्म हुआ", कमांडर उन्हें समझाते हुए आगे बताता है, अगर हम दो दिन पहले उस लड़की के अंदर घुसकर तुम दोनों का एक्सिडेंट नहीं करवाता तो तुम्हारा याददाश्त कभी वापस नहीं आता, लेकिन हमको तीन सौ साल पहले ही पता चल गया था कि तुम दोनों से कब मुलाकात होगा", कमांडर ठण्डी साँसे भरते हुए कहता है, "कितना लम्बा इंतज़ार करना पड़ा, अब सोचो तनवीर ने तुमको ही क्यूँ चुना इस फ़ार्म हाउस में आने के लिए, क्यूँकि तुमको अपना पिछला जन्म यहीं याद आना था ", कमांडर ने अरुण की ओर देखते हुए कहा। अरुण कमांडर को आश्चर्य से देख रहा था उसकी चमकती हुई लाल आँखो में कई राज़ दफ़न थे, जिसे वह धीरे धीरे खोल रहा था। 

" अगर हम उस गाँव की लड़की के अंदर प्रवेश कर सकता है तो तनवीर के बड़ी हवेली पर तो उर्मिला थी, उसके शरीर पर तो हम पहले से ही काबू कर रखा था, उर्मिला जो भी सुनता, बोलता और देखता था, सब कुछ हम देख और सुन सकता था, अब जब सारा बात तुम दोनों को पता चल ही गया है तो अब तुम दोनों को एक आखरी काम करना पड़ेगा, जिससे हमको मुक्ति मिल जाएगा और हम भी इस पहेरेदारी से मुक्त हो जाएगा, तुम दोनों को हमको लंदन लेकर जाना पड़ेगा जहाँ डॉक्टर ज़ाकिर है, उससे एक आखरी मुलाकात करना बाकी है", कमांडर ने उन्हें आदेश देते हुए कहा। 

दोनों कमांडर का चेहरा गंभीरता से देख रहे थे। कमांडर के आँखों की लाल चमक बढ़ती ही जा रही थी। कमांडर ने उन्हें देखते अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" लंदन में डॉक्टर ज़ाकिर का आखिरी रात होगा, एक रात कमांडर के साथ "।

पूरी रात कमांडर से बातचीत करके तनवीर और अरुण अपने कमरों में आराम करने चले गए। सुबह करीब ग्यारह बजे गाड़ी बनकर आ गई। तनवीर और अरुण ने सारा सामान गाड़ी के अंदर रख लिया, तनवीर ने संदूक को संभालकर गाड़ी में रख लिया क्यूँकि इस बार कमांडर को फ़ार्म हाउस पर छोड़ना एक बेवकूफ़ी होती। तीनों कानपुर के सफ़र के लिए निकल पड़े।

रास्ते में उस अनजान लड़की जिसका नाम राधिका था, उसका गाँव आते ही उसे उतार दिया और अपने सफ़र पर रवाना हो गए।

कुछ दिनों बाद दोनों कानपुर की बड़ी हवेली पहुंचे। अरुण कुछ देर हवेली पर रुककर अपने घर चला गया, ये कहकर कि कल आऊँगा। हवेली पर तनवीर और अरुण कि घाव देखकर सभी परेशान थे पर तन्नू ने उन्हें सारी बातें खुलकर समझा दीं। तनवीर ने कमांडर के सिर वाले संदूक को तहखाने में उसके धड़ के साथ ही रख दिया, उसने संदूक से कमांडर का सिर बाहर निकाल कर उसके धड़ के साथ रख दिया और कमरे में आराम करने चला गया।

सात बजे तनवीर सो कर उठा और सीधा हॉल में आकर बैठ गया जहाँ उर्मिला और शहनाज़ पहले से ही हैदर के साथ बैठे हुए थे। तनवीर के वहां पहुंचते ही दोनों लड़कियां उसके सफ़र के बारे में पूछने लगीं, तनवीर ने उन्हें सारी कहानी सुना दी, कमांडर के साथ हुई मुलाकात के बारे में भी बताया। दोनों लड़कियों का डर से बुरा हाल हो गया था, क्यूँकि आज तो सिर का धड़ के साथ सालों बाद मिलन होना था। आज रात सबको यही खतरा था कि कहीं कमांडर अपनी बातों से मुकर न जाए और सभी का खेल खत्म कर दे।

सभी ने निर्णय लिया कि आज आस पास के कमरों में ही सोया जाएगा, एक साथ रहेंगे तो हम सबका नुकसान नहीं होगा, इसलिए अगल बगल के कमरों में ही सबने सोने का मन बना लिया ताकि किसी को कोई दिक्कत हुई तो अगले कमरे से मदद की पुकार को सुना जा सकता है।

सभी ने जैसा प्लान बनाया था वैसा ही किया, रात को खाने के बाद रात सबने अगल बगल के नीचे के दो कमरों में बिस्तर लगा लिए, दोनों कमरे तनवीर की अम्मी के कमरे के नज़दीक थे, रात भर डर से किसी को नींद नहीं आ रही थी इसलिए कुछ लोग जाग ही रहे थे, जिनमें शहनाज़ और उर्मिला सबसे आगे थे, तन्नू भी अपने कमरे में जाग रहा था , अचानक ही घड़ी में बारह का घंटा बजता है। जितने लोग जागे थे सबकी आत्मा कांप उठती है बारह बजे का घंटा सुनकर। तभी तहखाने के दरवाजे पर एक ज़ोरदार चोट की आवाज़ सुनाईं पड़ती है "धड़ाक" और दरवाज़ा खुल जाता है। आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि सोए हुए हैदर की भी नींद खुल जाती है, कमांडर हँसते हुए तहखाने की सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर की ओर आता है, उसके बूट की आवाज़ हवेली की शांति को चीरते हुए हॉल की तरफ़ बढ़ रही थी। अचानक कमांडर हॉल में चीखता है "हे, आई एम बैक, कहाँ छुप गया सब, कमांडर का कोई स्वागत नहीं करेगा इस हवेली में, लगता है हमको सबको ख़ुद ही ढूंढना पड़ेगा", कमांडर की डरा देने वाली भारी आवाज़ सुनते ही शहनाज़, उर्मिला और हैदर के पसीने छूटने लगते हैं। तनवीर अपने कमरे से बाहर निकल कर आता है तो देखता है कमांडर नीचे शहनाज़ और उर्मिला के कमरों की तरफ बढ़ रहा है, सबसे पहले उर्मिला के कमरे का दरवाज़ा अपने आप खुल जाता है, सामने कमांडर को खड़ा देख उसके मुँह से ज़ोरदार चीख निकल जाती है जिसे सुन शहनाज़ भी अपने कमरे का दरवाज़ा खोल कर देखती है और शहनाज़ की भी खौफनाक दृश्य देखकर चीख निकल जाती है। कमांडर अपना कटा हुआ सिर अपने हांथों में लिए हुए था जिसकी आँखों में तेज़ लाल रौशनी की चमक थी जिससे हवेली का हाल जगमगा रहा था। उनकी चीख सुनते ही तनवीर दौड़ते हुए सीढ़ियाँ उतरता है पर लड़कियों की लगातार चीख सुनकर कमांडर उनसे कहता है "अरे बाबा इतना क्यूँ चीखता है, कान का पर्दा फाड़ डालेगा क्या", कमांडर अपने सिर को अपनी गर्दन पर लगाता है और उसका शरीर हवा में ऊपर उठने लगता है, अब उसके पैर हॉल के फर्श को नहीं छू रहे थे। इस नज़ारे को देख लड़कियां और ज़ोर से चीखने लगीं, हवेली के सारे लोग जाग जाते हैं, जिनमें उर्मिला के परिवार और शहनाज़ के कमरे में सो रहीं सावित्री आंटी भी डर से जाग उठती हैं। हैदर भी इस दृश्य को देख रहा था उस छोटे से बच्चे का डर से नाइट सूट गिला हो जाता है। इतने में कमांडर कहता है "अरे बाबा चीखना बंद करो और हमारा बात सुनो, तनवीर तुम समझाओ इनको", कमांडर तनवीर की ओर देखते हुए कहता है। 


तनवीर लड़कियों को खामोश रहने को कहता है, लड़कियां शांत होकर कमांडर की बात सुनने को तैयार हो जाती हैं। कमांडर अपनी बात उनके सामने रखता है "देखो हम यहाँ किसी का नुकसान करने नहीं आया है, लेकिन अगर बिना मतलब का तुमलोग कुछ उल्टा सीधा करेगा तो हम नुकसान पहुंचा भी सकता है, अब सुनो ध्यान से तनवीर हमको समुन्द्र के रास्ते लंदन लेकर जाएगा और हम वादा करता है उर्मिला का फ़ादर और तनवीर की अम्मी को हम सही कर देगा, तनवीर की अम्मी को जो Alzheimer नाम का बिमारी है ये हम ठीक कर सकता है क्यूँकि ये बिमारी भी समय से जुड़ा है तो इसका इलाज भी हम कर देगा पर हमको लंदन डॉक्टर ज़ाकिर से मिलने जाना है जिसमें तनवीर को हमारा साथ देना है और तुम सब घरवालों को हमको बर्दाश्त करना ही पड़ेगा, इन द नेम ऑफ द क्वीन, हम अपना सरज़मीं पर पूरा तीन सौ साल बाद कदम रखेगा, फिर ज़ाकिर से पुराना हिसाब चुकता करते ही इस आधे अधूरे जीवन से मुक्त हो जाएगा ", कमांडर सभी घरवालों की ओर देखते हुए कहता है और हवा में उड़ रहा कमांडर अब धीरे धीरे नीचे आने लगता है। कमांडर की बातें सुनकर हवेली में जग रहे सारे लोग अब थोड़ा संतुष्ट हो जाते हैं। कमांडर उनसे आगे कहता है" अब जितने दिन हम यहाँ पर है हमारा अच्छे से ख़ातिर दारी होना चाहिए, लंदन पहुँचते ही उर्मिला का फादर और तुम्हारा अम्मी ठीक हो जाएगा, अब जल्द से जल्द हमारा लंदन जाने का तैयारी कर दो"। 

खौफ़ भरी एक रात के बाद हवेली पर फ़िर सुबह का सूरज चमकता है। तनवीर ने अरुण को फोन कर के बुलाया, उसके हवेली पर आते ही तनवीर ने उसे पिछली रात की सारी जानकारी दी। अरुण उसकी बातें सुनकर कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया फ़िर बोला "मेरे एक पड़ोसी हैं वो लंदन जाने में हमारी मदद कर सकते हैं, वो कस्टम में हैं, अक्सर विदेशों की यात्रा पर ही रहते हैं, किस्मत से वो यहाँ पर आए हुए हैं और हमारी समुन्द्र यात्रा में हमारी मदद कर सकते हैं, कमांडर के सात फुट लम्बे ताबूत को ले जाने में वो हमारी मदद कर सकते हैं, बस उनके सामने एक कहानी गढ़नी होगी कि डॉक्टर ज़ाकिर ने कमांडर के ऐतिहासिक ताबूत को अपने रिसर्च के लिए मंगवाया है, उन्हें उनका सामान सुरक्षित मिल जाए इसलिए हम दोनों को ये ज़िम्मेदारी सौंपी है ", अरुण अपनी बात ख़त्म करने ही वाला था कि तनवीर उसे बीच में ही टोक देता है" तुम भी साथ चलोगे क्या ", तनवीर उसकी तरफ आश्चर्य से देखता है। 

अरुण उसकी बात का जवाब देता है" पहली बार लंदन देखने का मौका मिलेगा, वो भी समुन्द्र के मार्ग से, ऐसा कौन सा बेवकूफ़ होगा जो ये मौका हाँथ से जाने देगा, कुछ दिनों के लिए अपने बापू कि किट किट से भी छुटकारा मिलेगा, मैं तो चल रहा हूँ भाई इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है, याद रखना मेरा भी पिछला जन्म तुमसे और कमांडर से जुड़ा हुआ है , तो मेरे न जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता, मैं आज ही घर जाकर अपने पड़ोस के उन कस्टम अधिकारी से बात करके तुम्हें सूचित करता हूँ फ़िर तुम्हारी उनसे मुलाकात करवा दूँगा ", अरुण कहते ही हवेली से बाहर निकल जाता है और सीधा अपनी गाड़ी स्टार्ट कर के अपने घर की ओर रवाना हो जाता है।

अपने घर पहुँचते ही, अरुण सबसे पहले अपने पड़ोस के उन कस्टम अधिकारी के घर पहुंचा, उन्हें सारी कहानी समझाई बगैर इसके कि उस ताबूत में कमांडर की लाश है जो ज़िंदा हो जाती है, उन्हे केवल इतना ही बताया गया कि ये प्राचीन लाश डॉक्टर ज़ाकिर के पास लंदन रिसर्च के लिए पहुंचानी है। वो नेक कस्टम अधिकारी उसकी सहायता के लिए तैयार हो गए। अरुण ने अपने घर जाते ही सबसे पहले ये ख़ुश खबरी तन्नू को दी और उसे अगली सुबह अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया।

तनवीर अगले दिन सुबह ही अरुण के घर पहुँचा, वहाँ से दोनों उस कस्टम अधिकारी के यहाँ गए, उन्होंने दोनों का स्वागत किया और उन्हें समझा कर कहा "देखो मैंने अपने कुछ साथियों से बात की है इस मामले में, वो अपने साथ तुम दोनों को ले जाने को तैयार हो गए हैं, समुद्री रास्ता काफ़ी लंबा होगा और वह जहाज पर लदे समान को कई जगह उतारते हुए लंदन पहुंचेंगे, पोर्ट ऑफ बॉम्बे से यात्रा शुरू होगी, लंदन की दूरी 7059 नॉटिकल माइल्स है, जिसे Arabian sea, Gulf of Aden, Red sea, Gulf of Suez, Suez canal river, Suez canal, Ismailiya Canal river, Nile river, Damietta branch river, Mediterranean sea, Alboran sea, Strait of Gibraltar, North Atlantic Ocean, Bay of Biscay, English Channel, North sea, Thames river से होते हुए London पोर्ट तक की दूरी तय करना पड़ेगा, अगर तुम दोनों तैयार हो तो हफ़्ते भर बाद ही मेरा एक मित्र जहाज लेकर निकलेगा, मैंने उससे तुम दोनों का ज़िक्र किया है, बस तुम दोनों को समय पर बॉम्बे पोर्ट पहुँचना पड़ेगा, उसका नाम कैप्टन विक्रम प्रजापति है, पैसों की बातचीत उसी से कर लेना मैं तुम्हें उसका नंबर लिख कर देता हूँ ", एक काग़ज़ पर नंबर लिख उन दोनों को देते हुए कहते हैं" तीन दिन बाद वही जहाज हिन्दुस्तान के लिए वापसी करेगा, तो तुम दोनों के पास बस तीन दिन हैं अपना काम खत्म करने के लिए, पास पोर्ट अवश्य रख लेना बाकि रास्ते भर कोई तकलीफ नहीं होगी "।

तनवीर उस कस्टम अधिकारी से पर्चा लेते हुए हाथ मिलाता है और कहता है "आपका यह एहसान हम ज़िंदगी भर नहीं भूलेंगे, आज के दौर में अपनों के लिए भी कोई इतना रिस्क नहीं लेता और आप ने तो हम अनजान लोगों के लिए इतना बड़ा रिस्क लिया, लंदन तक अवैध तरीके से लाने ले जाने को तैयार हो गए, आपके हम सदैव अभारी रहेंगे, अगर हमारे पास इतना बड़ा एतिहासिक ताबूत न होता तो लंदन हवाई रास्ते आने जाने में इतनी तकलीफ न होती ", अरुण विनम्रता पूर्वक अपनी बात कहता है और अरुण के साथ वहाँ से चल देता है। अरुण और तन्नू काफ़ी ख़ुश थे क्यूँकि उनके सिर से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।

" मैं हवेली पहुंचते ही कैप्टन से बात करूंगा और पैसों की बातचीत करके तुम्हें फ़ोन करूंगा, तुमने मेरी बहुत बड़ी परेशानी हल कर दी है, अच्छा बाय, कल मिलते हैं हवेली पर", तनवीर ने अरुण से आभार प्रकट किया और गाड़ी स्टार्ट कर के हवेली की ओर रवाना हो गया। हवेली पहुंचते उसने कैप्टन विक्रम से फ़ोन पर बात की और पैसों का लेन देन किस प्रकार होना है ये जानकारी हासिल की। कैप्टन विक्रम ने उसे सब कुछ बता दिया और जहाज के रवाना होने से एक दिन पहले ही आने को कहा। तनवीर कैप्टन की बात सुनकर आश्वस्त हो गया, उसके जान में जान आ गई। अब बस उसे रात का इंतजार था ताकि वह ये खुशखबरी कमांडर को दे सके। 

रात अंधकार चारों ओर फैल चुका था, कोहरे ने चाँद की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था। तनवीर हॉल में ही चिमनी के पास बैठा हुआ था कि अचानक घड़ी बारह बजे का घंटा बजाती है, "धड़ाक" एक ज़ोरदार चोट की आवाज़ से तहखाने का दरवाज़ा खुलता है। तनवीर भी अचानक इस आवाज़ को सुनकर घबरा सा जाता है। कमांडर हॉल में उड़ता हुआ दाखिल होता है, उसकी खोपड़ी उसके हाथों में थी, जिसे वह तनवीर के सामने आते ही अपने धड़ से जोड़ लेता है, खोपड़ी के धड़ के साथ जुड़ते ही कमांडर की आँखो से तेज़ लाल रोशनी चमकती है जिसके कारण तनवीर अपनी आंखों को अपनी हथेली से ढक लेता है।

कमांडर तनवीर के सामने एक कुर्सी पर बैठ जाता है और उससे कहता है "हैलो, तनवीर मेरा काम हुआ कि नहीं, चलो हम ही बता देता है, तुम हमारे लिए एक खुशखबरी लेकर आया है", कमांडर ने भारी आवाज़ में तनवीर की ओर देखते हुए कहा।

"जी हाँ आपका काम हो गया कमांडर, हमलोगो को बॉम्बे के लिए रवाना होना पड़ेगा, जहाज में आपके ताबूत को ले जाने का इंतज़ाम करवा दिया है, हमलोगो को एक दिन पहले वहाँ पहुँचना है, जहाज हफ़्ते भर बाद लंदन पोर्ट के लिए रवाना होगा", तनवीर ने कमांडर की चमकती आँखो में देखते हुए कहा।

कमांडर को उसकी बातें सुनकर थोड़ी राहत मिली, उसने तनवीर से अपनी भारी आवाज़ में कहा " थैंक यू, हमको अच्छा लगा, अब तुम थोड़ा समझदारी से चल रहा है, दो दिन बाद तुम्हारे सिर के घाव का टांका भी काट देगा डॉक्टर और तुम्हारा दोस्त का भी हाँथ और पैर का घाव थोड़ा भर जाएगा, हमलोग उसका अगला दिन यहाँ से निकलेगा तभी लंदन का सफ़र शुरु होने से पहले पहुंचेगा "।

" आपने बिलकुल सही कहा हमलोग इसी योजना के अनुसार चलेंगे, एक वैन का इंतजाम कल ही ड्राइवर से बोलकर करवाता हूँ, बॉम्बे तक का सफ़र हमलोग उसी से तय करेंगे क्यूँकि ट्रेन में आपके ताबूत को ले जाना सही नहीं है इसलिए किराए का वैन ले जाना सही होगा, ड्राईवर उस वैन को वापस कानपुर ले आएगा ", तनवीर ने कमांडर से आगे की योजना बताते हुए कहा। कमांडर तनवीर की बातों से काफ़ी प्रभावित हुआ, फिर दोनों ने काफ़ी देर तक बैठकर बातें की और इसी तरह बड़ी हवेली में एक रात बीत गई, सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ने से पहले ही कमांडर तहखाने की ओर रवाना हो गया और तनवीर भी अपने कमरे में रात भर जागने के बाद सोने चला गया।

करीब ग्यारह बजे के आसपास अरुण हवेली में तनवीर से मिलने पहुंचा, तन्नू ने उसको कमांडर की योजना के बारे में बताया और कहा कि हमें बॉम्बे पोर्ट तक जाने के लिए एक वैन की ज़रूरत पड़ सकती है। अरुण ने तनवीर की बातें सुनकर उससे सहमत होते हुए गर्दन को हाँ में हिलाने का इशारा किया।

देखते ही देखते दो दिन बीत जाते हैं, वैन में कमांडर का ताबूत रखने के बाद तन्नू और अरुण बड़ी हवेली छोड़ बॉम्बे पोर्ट निकलने के लिए आखरी बार हवेली के सारे सदस्यों से बात करने के लिए मुड़ते हैं, तनवीर शहनाज़ और उर्मिला से कहता है "हमलोग जल्द ही वापस आ जाएंगे, तुम दोनों हवेली और अम्मी का ख्याल रखना, लंदन पहुंचते ही मैं फ़ोन कर दूँगा , अब तुम सब हवेली में चैन की नींद सो सकते हो, अच्छा गुड बाय, हैदर", तनवीर हैदर की ओर हाँथ हिलाते हुए इशारा करता है, हैदर भी उसकी ओर हाँथ हिलाते हुए कहता है" बाय तनवीर भईया, अपना ख्याल रखियेगा, शहनाज़ भी तनवीर से बाय कहती है और दोनों से अपना अपना ख्याल रखने को कहती है, उर्मिला तनवीर के नज़दीक आकर उसे देख मुस्कुराते हुए कहती है " अपना ख्याल रखियेगा नवाब साहब ", तनवीर भी मुस्कुरा कर कहता है" अच्छा अब चलता हैं आप सब इजाज़त दीजिए।

अरुण और तनवीर वैन में बैठ जाते हैं, हाँथ हिलाते हुए वैन से बड़ी हवेली का गेट पार कर लेते हैं, चौकीदार गेट बंद कर देता है। शहनाज़ बाकी हवेली वालों के साथ हवेली के अंदर चले जाते हैं।

उधर तन्नू और अरुण बॉम्बे पोर्ट के लिए हाई वे की ओर निकल पड़ते हैं, वैन तनवीर का अपना ड्राइवर ही चला रहा था, तनवीर ड्राइवर की बगल की सीट पर बैठा था और अरुण पीछे की सीट पर ताबूत भी नीचे ही रखा था उनके लगैज के साथ। कुछ देर बाद उन्होंने शहर को छोड़कर हाई वे का रास्ता पकड़ लिया। सफ़र करते हुए बीच बीच में खाना खाते और थोड़ा आराम करते हुए उनकी वैन जहाज रवाना होने से एक दिन पहले बिलकुल समय पर पहुंच जाती है।

उनके पास एक दिन था बॉम्बे देखने का, इसलिए दोनों ने शहर घूमने का मन बना लिया, बॉम्बे का कभी न रुकने वाला जीवन देख अरुण ने तनवीर से कहा "अमां यार तन्नू यहाँ तो लोगों की चलती ही रहती है, ट्रेन से कब ढकेल देते हैं और कब किस ट्रेन में चढ़ा देते हैं पता ही नहीं चलता, अच्छा हुआ तुम साथ में थे, अब टैक्सी से ही वापस चलेंगे", अरुण ने तनवीर से अनुरोध करते हुए कहा।

सारा दिन बॉम्बे शहर की रौनक देखकर, शॉपिंग करने और प्रसिद्ध जगहों पर घूमकर वो दोनों शाम को होटल की ओर टैक्सी से चल दिए। तनवीर ने वैन को होटल के पार्किंग में ही खड़ा रखा था क्यूँकि उसके अंदर कमांडर का सात फुट लम्बा ताबूत रखा हुआ था। ड्राइवर को होटल के सामने ही एक लॉज में दोनों ने कमरा दिलवा दिया था। दिन बीतते समय नहीं लगा, अगले दिन बॉम्बे पोर्ट के लिए होटल से रवाना हो गए। 

पोर्ट पहुंचते ही कैप्टन विक्रम से दोनों ने मुलाकात की, उन्होंने अपने कुछ आदमियों को आदेश दिया और वो सभी कमांडर के ताबूत को वैन से उठाकर जहाज में रखने के लिए दौड़ पड़े। ताबूत को लगैज कंपार्ट्मेंट में रखवा दिया गया और कैप्टन उन दोनों को अपने साथ जहाज में ले गए। जहाज के ऊपर के कंपार्ट्मेंट में उन्हे एक कमरा दिया गया था और कमांडर का ताबूत नीचे के लगैज कंपार्ट्मेंट में था। तनवीर इस बात से थोड़ा चिंतित था कि कही कोई उस ताबूत के ताले को खोल न ले या कमांडर ख़ुद ही बाहर न आ जाए, पर अब कुछ किया भी नहीं जा सकता था। कुछ ही देर बाद उनका लंदन का सफ़र शुरु हुआ और जहाज बॉम्बे पोर्ट से लंदन पोर्ट के लिए रवाना हो गया।

To be continued... 


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