नाले बा- कल आना
नाले बा- कल आना
चुड़ैल ? चुड़ैल क्या होती हैं ? बता सकता है तुम में से कोई क्या होती है यह चुड़ैल ? मैंने अपने दोस्तों से पूछा
मुझे याद है यह उस दिन की बात है जब हम दोस्त मिलकर पूस की रात में जलते हुए अलाव के आगे बैठे हुए थे, हवा इतनी ठंडी चल रही थी कि हड्डियाँ तक गल जाए वो तो उस अलाव का सहारा था जो ठंड का तनिक भी एहसास नहींं होने दे रहा था।
साथ में जलते हुए अलाव से आती, जलती हुई लकड़ियों के चड़ चड़ाने की आवाज हमारे कानों को चीरती हुई हमें डराने की कोशिश कर रही थी, पर हम मिलकर सुबह होने का इंतजार कर रहे थे और यह रात कैसे भी कट जाए, इसलिए हम बातें करके अपना समय व्यतीत करने लगे।
हम रात में इतनी ठंड में वहाँ क्यों थे ? हम कौन थे ?
जिस जगह पर हम थे, वो जगह बैंगलोर-मैसूर हाईवे पर थी, बिल्कुल सुनसान , अनजानी सी, हाईवे के साथ मुख्य सड़क से बिल्कुल सटी हुईलेकिन सड़क पर वाहनों की आवा-जाही शून्य थीफिर हम यहाँ पहुँचे कैसे ?
हुआ यूं कि मैं और मेरे दो दोस्त हरीश और गुलमोहर, (गुलमोहर को हम प्यार से गुल्लू कहते हैं) बैंगलोर में एक शादी से अपने घर मैसूर वापस लौट रहे थे, अभी बैंगलोर शहर छोड़कर हाईवे पर लगभग 20-30 किलोमीटर ही चले होंगे कि गाड़ी झटके मारते हुए रुक गई।
गाड़ी रुकते ही मैंने कहा, अरे यार गुल्लू कैसे गाड़ी चला रहा है, आराम से चला ना सारी नींद खराब कर दी।
गुल्लू बोला ले तू चला ले, आ चला अब, फिर मैंने कहा अब नाराज़ क्यों होता है चल उतर कर देखते है क्या हुआ ?
पता नहींं यार ऐसा लगा कि कोई हवा का झोंका गाड़ी से आके टकराया हो, इसलिए हड़बड़ी में गाड़ी रोक दी, गुल्लू ने कहा।
फिर......
हम तीनों गाड़ी से उतरे देखा इंजन गरम हो चुका है, बोनट से धुआं बाहर आ रहा है,
हरीश ने कहा रुको मैं अभी आया 5 मिनट में, मैं और गुल्लू बोनट खोलकर गाड़ी देख ही रहे थे, तभी हरीश ने डिग्गी में से पानी की बोतल निकली और बोला ये लो ठंडी करो गाड़ी को, हरीश की आवाज बैठी हुई और भर्राई सी थी, ये उसकी बचपन की समस्या थी, उसी ने बताया था कि बचपन मे होली वाले दिन किसी ने मजाक में मिठाई में गुलाल मिलाकर खिला दिया था, तब से उसकी आवाज बैठी हुई भर्राई सी हो गयी थी, कोई पहली बार सुने तो डर जाए, खैर हमे तो आदत थी उसकी आवाज़ सुनने कीफिर भी उस दिन उसकी आवाज़ सुनकर गुल्लू कुछ कांप सा गया।
हमने इंजन ठंडा किया, और गाड़ी में बैठ गए, गुल्लू ने चाबी मुझे पकड़ा दी ये बोलकर की अब खुद चला इसको वो भी पूरे आराम से।
मैंने गाड़ी स्टार्ट की और हम अपनी मंजिल की ओर चल दियेतभी मेरी नज़र पेट्रोल के कांटे पर पड़ी, फिर मैंने बोला ओए गुल्लू, पेट्रोल खत्म होने वाला हैं इतने से पेट्रोल से हम मैसूर कैसे पहुँचेंगे , उसने कहा अरे पहुँच जाएंगे रास्ते में भरवा लेंगे।
सड़क पर बहुत अंधेरा था, गाड़ी चलाना मुश्किल हो रहा था, पूस की रात थी तो धुंध भी हो रही थी,, आगे जागे हाईवे दो हिस्सों में बट गया, मैंने पूछा गुल्लू कौनसा रास्ता पकड़ना है, वो देख उस पर लिखा है मैसूर बाईपास
उस पर ले ले पेट्रोल भी कम हैं जल्दी पहुँच जाएंगे, दूसरे रास्ते पर बहुत भीड़ हैं सब दूसरे रास्ते से ही जा रहे हैं, हम शॉर्टकट चलते हैं- हरीश ने कहा।
मैंने कहा देख ले भाई, कोई नहींं जा रहा है वहाँ से, कही कोई मुसीबत ना आ जाये,
गुल्लू हंसने लगा बोला अरे कोई भूत प्रेत नहींं आएगा क्यों डरता, हरीश है ना अपने साथ, इसकी आवाज़ से अच्छे अच्छे भूत प्रेत डर कर भाग जाएंगे, और फिर हम तीनों जोर से हँसने लगे और मैंने गाड़ी बायपास की तरफ मोड़ ली।
अभी कुछ 10 , 20 किलोमीटर ही चले होंगे कि गाड़ी फिर झटके मार कर रुक गयीगुल्लू बोला अब क्या हुआ?
चला ना आराम सेमैंने बोला, होना क्या है, पेट्रोल खत्म, ये हरीश के काम ऐसे ही होते है, इसको बोला था पेट्रोल डलवाकर लाना गाड़ी में, ऐसे ही ले आया होगा।
हरीश अपनी बैठी हुई भर्राई सी आवाज में बोला, अरे देर हो रही थी इसलिए जैसी थी वैसी ले आया, अब उतरो नीचे और धक्का लगाओ देखते है आगे कोई पेट्रोल पंप मिल जाए तो।
अब हम में से बारी बारी एक आदमी स्टेरिंग पर बैठता और बाकी दोनों धक्का लगातेऐसे चलते चलते हमने देखा कि सड़क के बीचों बीच एक बहुत विशालकाय बरगद का पेड़ हैं, वो सड़क के बिल्कुल बीच में हैं, और उसके चारों तरफ बड़ा सा चबूतरा बना रखा हैं, वही से बगल से एक संकरा सा रास्ता दे रखा है जिसमें से बमुश्किल एक बार में एक गाड़ी निकल पाएबरगद की बड़ी बड़ी लतायें नीचे लटकती हुई, किसी के होने का एहसास करा रही थी, डर से हम तीनों के होश उड़ रहे थे।
जैसे जैसे हम उस बरगद के पेड़ की तरफ बढ़ रहे थे, हमारी धड़कने बढ़ती जा रही थी, यूँ लग रहा था कि वो पेड़ हमें ही देख रहा है, और हमारी और बढ़ा चला आ रहा हैऐसा लग रहा था कि मानो उस पर लताएँ नहींं , कई सारे कटे हुए पैर लटक रहे है।
हम सहमे सहमे से आगे बढ़ते गए और हमारे दिमाग में ये बात भी चल रही थी कि ये पेड़ सड़क के बीचों बीच क्यों हैं? सड़क बनाते समय इसको हटाया क्यों नहींं गया!
खैर अब हम बिल्कुल पेड़ के बगल से गुजर रहे थे, सहसा ही मेरी दृष्टि पेड़ के चबूतरे पर रखी भगवान की तस्वीरों पर पड़ी, और सब समझ आ गया कि जरूर ये पेड़ भुतिया पेड़ होगा इसलिए इसको काट नहीं पाए, और लोगो ने खुद को बचाने के लिए पेड़ को लाल डोरे से बांध दिया था भगवान की तस्वीर रख दी थी, शायद तभी वो पेड़ हमें सिर्फ घूर कर देखता रह गया कुछ कर नहींं पायावही पेड़ के तने पर कुछ अक्षर उभरे हुए थे, शायद वहाँ की स्थानीय भाषा मे कुछ लिखा था जो मुझे समझ नहींं आ रहा था, लेकिन अक्षरों की वो आकृति मेरे दिमाग मे बैठ चुकी थी।
हम थोड़ा और आगे बढ़े तो एक उजड़ी हुई वीरान बस्ती दिखाई थी, ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी कब्रिस्तान से गुजर रहे हो, रात का सन्नाटा, सुनसान सड़क सिर्फ हम तीन दोस्त, पूस की ठंडी रात में भी हमारे पसीने छूट रहे थे।
यहाँ भी हर जगह वही अक्षर आकृतियां बनी हुई थी, और एक बात और काफी देर से हमे एक अजीब सी गंध का एहसास हो रहा था , पता नहीं क्या था वो सब।
ऐसे ही चलते चलते हम काफी दूर आ चुके थे, लगभग 4, 5 किलोमीटर धक्का लगाने के बाद हम तीनों थक चुके थे, हमने सोचा गाड़ी में बैठकर आराम करते है, और तीनों गाड़ी में बैठ गए, ठंड बहुत थी पूरी गाड़ी बन्द करने के बाद भी कँपकँपी नहींं रुक रही थी।
तभी हरीश बोला चलो बाहर अलाव जलाकर आग सेंकते है, ऐसे तो गाड़ी में कुल्फी जम जाएगी हमारी, रात काफी हो चुकी थी करीब 12 से 1 बजे के बीच का वक्त रहा होगाहम गाड़ी से बाहर निकले सड़क से नीचे उतर कर एक कोने में जगह ढूंढ़ी फिर लकड़ियाँ इकट्ठी की और अलाव जलाया, गुल्लू ने अपने लाइटर से 2, 4 बून्द पेट्रोल लकड़ियों पर डाला और उसी लाइटर से आग लगा दी और हम आग सेंकने लगे।
और हमने गप्पें मारना शुरू कर दिया वही थोड़ी दूरी पर एक टूटी हुई दीवार थी उसका दरवाजा भी अब जर्जर हो चुका था, धुंध बहुत थी तो कुछ साफ दिख नहींं रहा था, दीवार पर वही की लोकल भाषा में कुछ लिखा था, मैंने गुल्लू को बोला क्या लिखा है पढ़ना जरा, गुल्लू वहां की लोकल भाषा जानता था, उसने पढ़ने का प्रयास किया, ना... ना.... ना... ब...ब... अरे छोड़ो ना हमें क्या करना है कुछ भी लिखा हो, एक तो धुंध ऊपर से दीवार पर जमी धूल कुछ समझ नहींं आ रहा - गुल्लू बोला।
और फिर हमारा पूरा ध्यान अलाव पर था, उससे अच्छी गर्मी मिल रही थी ठंड का आभास खत्म हो चुका था,
हमने काफी लकड़ियाँ जोड़ ली थी जलाने के लिए इससे आग काफी तेज थी, हम बाते कर ही रहे थे, तभी मेरे दिमाग में एक जिज्ञासा जागी मैंने सोचा चलो पूछता हूं।
चुड़ैल ? चुड़ैल क्या होती है? बता सकता है तुम में से कोई क्या होती है यह चुड़ैल ? मैंने अपने दोस्तों से पूछा।
दोनों एकदम सन्न रह गए जैसे मैंने पता नहींं क्या पूछ लिया, फिर हरीश बोला अभी थोड़ी देर पहले तो डर रहा था, अब चुड़ैल के बारे में जानना चाहता है।
हां तो क्या हुआ, उसके बारे में बात करने से क्या वो यहाँ प्रकट हो जाएगी डर तो अब तुम रहे हो – मैंने कहा।
हरीश बोला सुनो मैं बताता हु चुड़ैल के बारे में, मैंने बहुत सुना है, और वो अपनी भर्राती हुई डरावनी सी आवाज़ में लगा सुनाने चुड़ैल के किस्से।
तभी गुल्लू बोला अच्छा पहले ये बता ये चुड़ैल पैदा होती हैं या बाद में बनती हैं, हरीश ने बताया देखो चुड़ैल कभी पैदा नहींं होती हैं ये तो मरने के बाद चुड़ैल बनती हैं,
मैंने पूछा कैसे ?
हरीश बोला कहा ये जाता हैं कि जब कोई गर्भवती महिला दीवाली की पांचवे दिन प्रसव पीड़ा में अप्राकृतिक मौत के कारण मर जाये तो वो बाद में चुड़ैल बन जाती हैं, चुड़ैल दिखने में बहुत ही डरावनी होती हैं उनके पैर उल्टे होते हैं, उनके चेहरे पर मौत का खौफ दिखता हैं, बाल उलझे से बिखरे हुए, ठोडी नुकीली लम्बी सी होती हैं चेहरे पर झुर्रियाँ छाई रहती हैं।
ये कोई भी रूप धारण कर लेती हैं, स्त्री पुरुष कोई भी ये किसी की भी आवाज निकाल कर तुम्हें बहला सकती हैं, ऐसा सुना हैं कि रात में ये दरवाजे पर दस्तक देती हैं, तुम्हारे किसी चहेते की आवाज इस तरह निकाल कर पुकारती हैं कि जैसी वो किसी मुसीबत में हो और तुम झट से दरवाजा खोल दोगे और ऐसा करते ही तुम्हारी मौत हो जायेगी।
ये पुरुषों को सुंदर महिला बनकर लुभाती हैं और उनका खून चूसकर अपनी उम्र को बढ़ाती हैंइतने में गुल्लू बोला कि डायन भी तो यही करती हैं पुरुषों को अपने वश में करती हैं तो क्या डायन और चुड़ैल एक ही चीज हैं।
हरीश बोला अरे नहींं चुड़ैल और डायन में अंतर होता हैं, चुड़ैल तो मैंने जैसे बताया कि मरने के बाद बनती हैं, पर डायन जो होती हैं वो एक ज़िंदा स्त्री होती हैं, वो अपने तंत्र मंत्र काले जादू से पुरुषों को अपने वश में करती हैं इसलिए तुमने सुना भी होगा कि कई जगह एक औरत को जलाकर कर मार दिया क्योंकि वो एक डायन थी, पर चुड़ैल को मारने की बात नहींं सुनी होगी तुमने क्योंकि उसको कौन मरेगा वो तो पहले ही मरी हुई हैं।
तो क्या चुड़ैल को खत्म नहींं किया जा सकता हैं – मैंने पूछा।
गुल्लू बोला – मैंने सुना हैं कि अगर चुड़ैल के पेट को काटकर उसके बच्चे को उससे अलग करके बरगद के नीचे दफना दे तो चुड़ैल की शक्ति खत्म हो जाती हैं और सदा के लिए शांत हो जाती हैं।
फिर हरीश ने अपनी बात आगे बढ़ाई उसने बताया कि उसकी दादी माँ ने बचपन में उसे एक चुड़ैल का किस्सा सुनाया था, करीब 100 – 150 साल पुराना किस्सा होगा “नाले बा” का दादी माँ ऐसा बताती थी , तुम लोग सुनना चाहोगे नाले बा की कहानी ?
मैंने पूछा ये नाले बा क्या बला हैं, गुल्लू बोला अरे कुछ नहींं ये यहाँ की लोकल भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता हैं कल आना।
अच्छा.... कहकर मैंने कहा सुनाओ सुनाओ
गुल्लू बोला कही तुम वो श्रद्धा कपूर की फ़िल्म स्त्री कल आना की कहानी तो नहींं सुनाने वाले जिसमें चुड़ैल को कहते हैं कल आना।
हरीश बोला अरे नहींं यार ....
उल्टे वो फ़िल्म इस कहानी से प्रेरित होकर बनी हैं.....
और फिर मेरी कहानी तो उसके उलट हैं एकदम...
उलट वो कैसे – मैंने पूछा।
हरीश बोला सुनोगे तो पता चलेगा तुम्हें, पहले सुन तो लो।
ये एक गांव की कहानी है बैंगलोर के पास एक गांव था, बहुत बड़ा नहींं छोटा सा ही रहा होगा, गांव में एक परिवार था, उस परिवार में एक बहुत ही सुंदर स्त्री थी जो कि गर्भवती थीगांव के बाहर एक बरगद का पेड़ था उससे कुछ दूरी पर सड़क किनारे बहुत सारे छोटे छोटे कब्रिस्तान बने हुए थे और दूर एक बड़ा कब्रिस्तान भी था, मैंने पूछा बहुत सारे कब्रिस्तान क्यो ? और क्या वो मुर्दो को जलाते नहीं थे?
नहीं, उस गांव की अपनी एक परम्परा थी जिसमे मरने वाले कि आधे शरीर को मतलब धड़ से नीचे वाले हिस्से को जलाया जाता था और ऊपर वाले हिस्से को दफनाया जाता था।
और एक व्यक्ति को दफनाने के बाद कब्रिस्तान की दीवार पर लिख दिया जाता था “नाले बा” मतलब कल आना, गुल्लू बोला ऐसा क्यों भाई, एक कब्रिस्तान में एक मुर्दा क्यों और नाले बा क्यों लिखते थे ?
हरीश बोला क्योंकि मुर्दों को दो हिस्सों में रखा जाता था, एक को बरगद के नीचे जला दिया जाता था, तो दूसरे को दफनाया जाता था, जब दफनाया जाता था तो साथ में उनके सभी वस्त्र और खाने पीने का सामान भी रखा जाता था, ऐसा कहा जाता है कि जो भी स्त्री गर्भावस्था में अप्राकृतिक मौत मरेगी वो चुड़ैल बनती है ये मैंने बताया था अभी, बस इसलिए इनकी खाने की व्यवस्था वही कर दी जाती थी ताकि चुड़ैल वहां से बाहर ना आये, यदि कोई इन्हें देख ले तो चुड़ैल उसको मार डालेगी, इसलिए कब्रिस्तान के बाहर “नाले बा” लिखवा दिया जाता था ताकि कोई भूल से भी अंदर ना चलजे जाए।
और क्या उसका खाना कभी खत्म नहींं होता था क्या? कौन देता था खाना ? और क्या, चुड़ैल नहींं खाती थी उनको ? गुल्लू ने उत्सुकता से पूछा।
हरीश बोला – एक साथ इतने प्रश्न, सबका जवाब देता हूं।
जब भी खाना खत्म होता तो उसके परिवार का ही कोई सदस्य वहां भेड़ बकरियां बांधकर आता था, वो दिन में ही जाता था और सूरज छिपने से पहले वापस आ जाता था।
मैंने कहा दिन में चुड़ैल नहींं आती क्या ?
हरीश बोला हाँ भाई चुड़ैल सूरज की रोशनी सहन नहींं कर सकती हैइसलिए वो रात में ही बाहर आती है।
अच्छा एक बात समझ नहींं आई कि ये कब्रिस्तान की दीवार पर नाले बा क्यों लिखते थे, गांव में तो सबको पता ही होगा फिर क्या जरूरत आ गई ? गुल्लू ने पूछा।
इस पर हरीश का जवाब था कि गांव से बाहर के लोगों को तो नहींं पता होगा ना।
ये मुख्य सड़क के साथ ही हैं गांव, बहुत लोग आते जाते थे बाहर से इसलिए कोई भूल से वहां रुके नहींं ये लिखना जरूरी था।
और ये धड़ से नीचे के हिस्से को अलग से जलाने का क्या कारण था, मैंने उत्सुकता वश पूछा?
हरीश ने बताया कि गांव के लोग ऐसा मानते थे कि ऐसा करने से चुड़ैल अपाहिज हो जाएगी और लोगों को परेशान करने के लिए इस कब्रिस्तान से बाहर ज्यादा दूर नहींं जा पाएगी , गांव में प्रवेश नहींं कर पायेगीऐसा गांव वालो का मानना था।
अच्छा ये जो चुड़ैल होती है ये किसी भी स्त्री पुरुष का रूप बना लेती हैं कितनी देर तक वो ऐसा कर सकती हैं, गुल्लू ने हरीश को बीच में रोकते
हुए पूछा ?
हरीश कुछ कहता, मैं तपाक से बोला ये तो मुझे पता है मैंने पढ़ा था कही बहुत ज्यादा देर तक वो ऐसा नहींं कर सकती हैं क्योंकि जीतना ज्यादा समय वो दूसरे के रूप में रहेगी, उसके शरीर से शक्ति कम होने लगती हैं और अगर जिस व्यक्ति का रूप उसने लिया हैं वो सामने आ जाये तो वो तुरंत ही अपने असली रूप में आ जायेगी।
बस मिल गया जवाब ये बोलते हुए मैंने हरीश को कहानी आगे बढ़ाने को कहा और पूछा वो अलग से बड़ा कब्रिस्तान किसलिए था ?
वो सामान्य जन के लिए था, जो चुड़ैल नहींं होती थी उनको वहां दफनाया जाता था हरीश बोला।
गुल्लू बोला वो सुंदर गर्भवती स्त्री उसका क्या हुआ ?
हरीश बोला सारी कहानी उसी की तो हैं।
वो स्त्री अपने परिवार की बड़ी बहू थी, और पहली बार गर्भवती हुई थी।
उसको अपने भेड़ बकरियों से बहुत प्यार था, उसके पास एक बकरी का मेमना था, जिसको वो भोली कह कर पुकारती थीउसको उससे बहुत लगाव था, एक क्षण के लिए भी वो उसकी आँखों से ओझल होता थातो वो खाना पीना छोड़कर उसी को ढूंढा करती जब तक वो मिल नहींं जाता कुछ खाती पीती भी नहींं थी।
पूरा दिन घर में काम करती थी शाम को अपनी भेड़ बकरियों को चराने के लिए जंगल ले जाया करती थी।
बेचारी घर में भी अकेली ही सारा काम करती थी फिर भी उसके घर वाले उसे ताना मारा करते थे, वो कुछ ना कहती थी चुपचाप सारा दिन काम में लगी रहती थी, वो बहुत परेशान थी, भोली ही एकमात्र सहारा थी उसका, उसी से अपने सुख दुख की बतला लेती थी।
एक दिन वो जंगल से अपनी भेड़ बकरियों को लेकर वापस घर आ रही थी शाम का समय था सूरज छिप चुका था, भोली भी उसके साथ थी, अचानक भोली उसके हाथों में से कूदकर भाग गईवो भोली के पीछे दौड़ी, उसने देखा भोली कब्रिस्तान में चली गयी है, स्त्री घबरा गई वो कब्रिस्तान के बाहर ही रुक गई, उसकी नज़र नाले बा पर पड़ी, इसलिए वो अंदर जाने से डर रही थीउसने बाहर से ही आवाज लगाई भोली भोली पर वो बाहर नहीं आईवो स्त्री डरी सहमी सी धीरे धीरे कब्रिस्तान में प्रवेश कर गई, अंदर का दृश्य बहुत ही भयानक था, चारों तरफ जानवरों की हड्डियों के कंकाल पड़े थे।
वो थोड़ा और आगे बढ़ी, धीरे धीरे अपने डर को खुद में समेटते हुए, उसने कांपते होंठों से आवाज़ लगाई भोली- भोली और अपनी नज़रें इधर उधर घुमाई, तभी अचानक उसकी नज़र एक औरत पर पड़ी, जिसने काले वस्त्र पहने हुए थे, बिखरे हुए बाल थे उसके, चारों ओर खून बह रहा था वो वहाँ ज़मीन पर बैठी हुई कुछ खा रही थी उसके चबाने की आवाज़ गूंज रही थी।
वह स्त्री उसको देख कर बहुत ज्यादा सहम गई थी, उसके शरीर से पसीना छूट रहा था वो डर से थर थर काँप रही थी, फिर भी उसने डरते डरते आवाज़ दी भोली-भोली, उसकी आवाज़ सुनते ही उस भयानक सी दिखने वाली महिला ने चबाते चबाते, वही बैठे बैठे बिना धड़ घुमाए उसकी ओर अपना पूरा सर घुमा दिया, अब वह उस स्त्री को वही बैठे बैठे अपनी ख़ौफ़नाक आंखों से घूर रही थी, और उसके हाथ मे थी भोली जिसे वो चबा चबा कर खा रही थी, उस गर्भवती स्त्री ने जब ये मंजर देखा तो उससे रहा नहीं गया, और वो अपनी भोली को उससे छिनने के लिए उसकी तरफ भागी, इससे पहले की वो कुछ कर पाती उस भयानक ख़ौफ़नाक चुड़ैल ने उस स्त्री को जोर से धक्का दिया, वो स्त्री दूर जाकर जोर से ज़मीन पर गिरी, उसके पेट मे जो बच्चा था उसने तुरंत ही दम तोड़ दिया जैसे ही उस स्त्री को इसका आभास हुआ उसने भी तुरंत ही अपने प्राण त्याग दिए।
और अब उस स्त्री के मृत शरीर में उस चुड़ैल ने प्रवेश कर लिया, अब वो चुड़ैल शक्तिशाली हो चुकी थी क्योंकि अब कब्रिस्तान के बाहर जा सकती थी गांव में भी प्रवेश कर सकती थी क्योकि उसे अब पूरा शरीर मिल चुका था चलने फिरने के लिए।
धीरे धीरे उस चुड़ैल का आतंक बढ़ता गया उसने सभी कब्रिस्तान की चुड़ैलों को भी खुद में मिला लिया।
और उसकी शक्ति बहुत अधिक बढ़ चुकी थी।
गांव की स्थिति खराब होने लगी थीआलम ये था जो भी पुरुष अकेला सोता था वो अगली सुबह अपने बिस्तर से गायब मिलता था।
कुछ घटनाये तो ऐसी हुई कि चुड़ैल रात में जाती आवाज लगाती, जो भी पुरुष दरवाजा खोलता उसको साथ लेकर हवा बन गायब हो जाती।
धीरे-धीरे गांव में पुरुषों की संख्या कम होने लगीफिर लोगों ने इसका उपाय ढूंढने की कोशिश की, और इसका उनको वही एक उपाय सूझा जो उन्होंने कब्रिस्तान के लिए सोचा था और वह उपाय था कि सबने अपने दरवाजों पर लाल स्याही से लिख दिया था नाले बा अर्थात कल आना।
ऐसा करने से यह फायदा हुआ कि जब भी चुड़ैल किसी के घर आती और उसके घर के बाहर ही नाले बा लिखा हुआ पाती तो वापस चली जाती और फिर अगले दिन आती और फिर वही नाले बा लिखा पाती और वापस चली जाती है इस तरह यह क्रम चलता रहता और लोग अपने घर में सुरक्षित रहते हैं परंतु ऐसा करने से उनकी दिनचर्या पर असर पड़ने लगा वो डरे सहमे से रहने लगे घर से बाहर निकलना उनके लिए दूभर था रात को उन्हें किसी भी कार्य के लिए बाहर जाना हो तो वह नहींं जा सकते थे।
धीरे-धीरे सभी लोगों ने उस गांव से पलायन शुरु कर दिया और वह गांव धीरे-धीरे खाली हो गया कहते हैं कि वो गाँव अभी भी हैं और वह चुड़ैल भी अभी भी हैं उस चुड़ैल का दायरा बहुत बढ़ चुका हैं वह आते जाते लोगों को परेशान करती हैं उन्हें डराती हैं और पुरुषों को तो वह अपने साथ लेकर गायब हो जाती हैं।
अब वह चुड़ैल सिर्फ कुछ कब्रिस्तान या गांव तक सीमित नहींं हैं बल्कि उस गांव से लगी हुई मुख्य सड़क पर वह सुनसान रातों में भटकती रहती हैं और अपने शिकार की तलाश में लोगों को उस कब्रिस्तान तक लेकर आती हैं वह कोई भी रूप धारण कर सकती हैं वह किसी स्त्री का या किसी पुरुष का जिस प्रकार संभव हो उसी रूप में लोगों को अपने पास लेकर आती हैं और उनका भक्षण करती हैं ऐसा करने से उसकी शक्ति और ज्यादा बढ़ जाती हैं अब वह सिर्फ जानवर भेड़ बकरियां नहींं खाती बल्कि अब वह इंसानों को खाती हैं।
कहते हैं की वह खण्डहर हो चुका गांव, कब्रिस्तान और चुड़ैल का साया अभी भी बैंगलोर मैसूर हाईवे पर मौजूद हैं सरकार ने उस गांव से निकलने वाली सड़क का कायाकल्प किया उसको नए सिरे से बनाया फिर भी कोई भी वाहन वहां से नहींं गुजरता हैं क्योंकि वहां पर चुड़ैल का साया हैं चुड़ैल का साया पूरे हाईवे पर पाया जाता हैं लेकिन उस गांव के नजदीक उसकी दहशत बहुत ज्यादा हैं इसलिए कोई भी उस शॉर्टकट रास्ते में दाखिल होने की हिम्मत नहींं करता हैं।
अचानक हमें ठंड का एहसास होने लगा हमारा शरीर कांप रहा था तभी मेरी नजर अलाव पर गई मैंने देखा अलाव बुझने वाला था फिर मैंने अपने साथियों से कहा की यह अलाव बुझने वाला है चलो और लकड़िया लाते हैं ताकि हम ठंड में आराम से बैठकर अलाव की तपश ले सकें।
हरीश ने कहा की मुझे मालूम हैं लकड़ियां कहां मिलेंगे मैं अभी आया यह कह कर वो आगे की तरफ बढ़ गया वही उस दीवार की ओर जहां कुछ धुँधला सा लिखा हुआ था जिसे हम पढ़ नहींं पा रहे थे पीछे पीछे गुल्लू भी लकड़ी लेने उसके पीछे गया मैं भी उनके साथ हो लिया।
हरीश थोड़ा तेज तेज चल रहा था वह हमसे आगे था मैं और गुल्लू हरीश के पीछे थे वह दीवार के उस तरफ चला गया लकड़िया लेने तभी मेरी नजर उस दीवार पर लिखे हुए पर पड़ी,
मैंने गुल्लू को कहा अब पढ़ो हम इसके काफी नजदीक है अब समझ आ जाएगा कि क्या लिखा है गुल्लू ने थोड़ा ध्यान लगाया जमी हुई धूल को हाथों से झाड़ा और उसको पढ़ने की कोशिश की उसको पढ़ते ही गुल्लू की जुबान जैसे हलक में अटक गई हो ऐसा लगा वह कुछ बताना चाह रहा था।
पर बोल नहींं पा रहा था मैंने गुल्लू को झिंझोड़ा और पूछा क्या हुआ ऐसा क्या लिखा हैं इसमें वह घबराते हुए अटकते अटकते बोला नाले बा और मेरी नजर उस लिखे हुए पर पड़ी मुझे वह पढ़ना तो नहींं आता था परंतु उसे देख कर ऐसा लगा की अक्षरों की इन आकृतियों को मैंने पहले भी कहीं देखा है मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया तो मुझे याद आया अभी जब हम गाड़ी को धक्का लगाते हुए आ रहे थे दो रास्ते में जो बरगद का पेड़ था उस पर भी ऐसा ही कुछ लिखा था साथ में हमें जो खंडहर वीरान गांव मिला था वहां भी दरवाजों पर इसी तरह के अक्षरों की आकृतियां बनी हुई थी फिर मुझे यह समझने में जरा भी देर न लगी कि अब हम तीनों बुरी तरह से फंस चुके हैं और उस चुड़ैल के साए में हम बुरी तरह से फंस चुके हैं अब वह चुड़ैल अपने चंगुल से हमें बच कर जाने नहींं देगी।
मैं और गुल्लू हरीश को आवाज देने लगे जल्दी निकलो यहां से हम फंस चुके हैं और यह कहते हुए हम अपनी गाड़ी की और भागे परंतु अंदर से कोई जवाब नहींं मिला हरीश शायद लकड़ियां ढूंढने आगे निकल चुका था।
जब हम वापस गाड़ी के पास आए तो क्या देखते हैं कि हरीश गाड़ी में पेट्रोल डाल रहा है हाथ में पेट्रोल से भरी कैन लेकर गाड़ी में पेट्रोल डालता जा रहा है और हम पर चिल्ला रहा है कि क्या यार तुम मुझे वहां कहां अकेला छोड़ गए।
मैंने तुमसे कहा था ना कि अभी 5 मिनट में आता हूं, जब गाड़ी रुकी थी तो मैंने पेट्रोल के कांटे की तरफ देखा था मुझे पता चल गया था कि गाड़ी में पेट्रोल खत्म होने वाला है ज्यादा देर तक नहीं चलेगी वही पीछे ही पेट्रोल पंप दिख गया था मुझको, इसलिए डिग्गी में से कैन लेकर पेट्रोल लेने चला गया था और कहकर भी गया था ना कि अभी 5 मिनट में आता हूं, फिर तुम वहां मुझे अकेला छोड़कर चले आये।
हरीश बिना रुके एक ही सांस में बोले जा रहा था और हम दोनों उसको ख़ौफ़ज़दा आंखों से देखे जा रहे थे कि ये हो क्या रहा है !
हरीश बोलता ही जा रहा था-
कितनी मुश्किलों से तुम्हें ढूंढा है तुम्हारा किसी का फोन भी नहीं लग रहा था कब से पैदल चल रहा हूं एक व्यक्ति से लिफ्ट मांगी थी, फिर बाईपास के नजदीक आकर वहां कुछ लोगो से पूछा गाड़ी का नम्बर बताया कि इस नम्बर की गाड़ी किस तरफ गयी है उन्होंने बताया कि बाईपास पर गई है, मैंने जिससे लिफ्ट ली थी उससे बाईपास पर जाने से मना कर दिया बोला कि मुझे नहीं मरना वहां जाकर ये कहकर उसने बाईपास के पास छोड़ दिया।
मैं तब से यहां तुम्हें ढूंढता हुआ पैदल पैदल आ रहा हूं।
उसने पेट्रोल टैंक बन्द किया और कैन को डिग्गी में रखा – और बोला अब ऐसे देख क्या रहे हो चलो बैठो गाड़ी में घर नहीं चलना क्या ?
हम स्तब्ध से हरीश की ओर आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे तभी पीछे से एक व्यक्ति आवाज लगाता हुआ हमारी और आया अरे देखो भाइयों मैं लकड़िया ले आया हमने पलट कर देखा तो हरीश लकड़ियां लेकर हमारी ओर आ रहा थाहम थर थर कांप रहे थेहमारे साथ दाँत किट किटा रहे थे, इस ठंड में भी हमारे शरीर से पसीना पानी की तरह बह रहा था । कुछ समझ नहींं आ रहा था, यह हो क्या रहा हैं इधर भी हरीश उधर भी हरीश कौन सही कौन गलत हम किस माया जाल में फंस गए हैं जैसे ही लकड़िया लिए हुए हरीश हमारे नजदीक आया तो उसकी नजर हमारे साथ खड़े हरीश पर पड़ी और दोनों की आंखें आपस में टकराई और तुरंत ही लकड़ी लिए हुए हरीश के हाथों से लकड़ियाँ जमीन पर गिर गई, और एक तेज़ हवा का झोंका आया और वो हरीश अब एक भयानक हंसी वाली चुड़ैल में तब्दील हो चुका था।
उसके बिखरे हुए बड़े बड़े बाल आंखों से टपकता हुआ खून चेहरे पर झुर्रियां और नुकीली ठुडी देखकर हमें समझने में जरा भी देर न लगी कि यह तो वही चुड़ैल हैं जिसका इस गाँव और हाईवे पर साया मंडराता रहता हैं अब हमें उससे बचकर निकलना था परंतु वो चुड़ैल बहुत ही शक्तिशाली थी उससे बच पाना बहुत मुश्किल था।
वह हमारी और बढ़ने लगी और हम उससे खुद को बचाने का प्रयास करने लगे उसने हम पर जानलेवा हमला किया जैसे तैसे हमने अपनी जान बचाई और हम तीनों अलग-अलग दिशा की ओर भागे फिर मुझे गुल्लू की बताई हुई वह बात याद आ गई कि अगर चुड़ैल के पेट को काटकर के बच्चे को बरगद के नीचे दफ़ना दिया जाए तो उसकी शक्ति का असर खत्म हो सकता हैं और वह हमेशा के लिए शांत हो जाएगी पर यह करना बहुत मुश्किल था, इसके लिए हमें कब्रिस्तान के अंदर जाना था, और उस स्त्री के पेट को काटकर वहां से बच्चे को निकाल कर दूर उस बरगद के नीचे दफनाना था यह कार्य बहुत कठिन था।
चुड़ैल हमें ढूंढ रही थी और हम उससे छिपते हुए कब्रिस्तान में प्रवेश कर गए वहां हमने उस महिला की लाश को देखा वह लगभग गल चुकी थी और उसमें कंकाल के अलावा कुछ नहींं बचा था हमने देखा उसके पेट वाले हिस्से पर छोटा सा कंकाल है वह निश्चित ही उसका मरा हुआ बच्चा होगा हमने उसे उठा लिया उसके बच्चे को उठाते ही वह चुड़ैल बहुत ही विकराल हो गई और भयानक तरीके से हम पर हमले करने लगी हम उसके हमले से बचने का लगातार प्रयास करते रहे और बचते बचाते जैसे तैसे डरते हुए हम बरगद के नीचे पहुंचे और बरगद के पास जाकर हमने तुरंत उसके बच्चे को दफनाने का प्रयास किया परंतु बरगद पर लटक रहे कटे हुए पैर हमारे काम में बाधा बन रहे थे, और वह हमें लगातार परेशान कर रहे थे, और हमें यह काम नहींं करने दे रहे थे।
फिर मैंने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू किया और हनुमान चालीसा के असर से कटे हुए पैर शांत हो गए गुल्लू ने फटाफट गड्ढा खोदा और हरीश ने उसे दफना दिया उसके दफन होते ही एक भयानक चीख हमें सुनाई दी और देखा हवा में चारों तरफ चुड़ैलें मंडराने लगी, वह सब कब्रिस्तान के बाहर थी, क्योंकि जो चुड़ैलें थी वह उस औरत के द्वारा आपस में जुड़ी हुई थी अब हमने बच्चे को दफना दिया था तो उस औरत की आत्मा को मुक्ति मिल चुकी थी और इस कारण से सभी चुड़ैल औरत के शरीर से बाहर निकलकर चारों तरफ आसमान में फैल चुकी थी,
अब बचना हमारे लिए और मुश्किल लगने लगा था , हम सब को काफी चोटे आ चुकी थी , हम लहुलुहान हो चुके थे।
अब तो सिर्फ वहां से भागकर ही जान बचाई जा सकती थी परंतु भागकर भी कैसे क्या तरीका हो भागने का -हमने सोचा।
थोड़ी देर बाद मुझे कुछ सुझा - कि हम लहुलुहान तो पहले से ही हो चुके थे हम नहींं चाहते थे कि हमारा और ख़ून बहे।
और हम इन चुड़ैलों का भोजन बन जाए, यही सोचते हुए मैंने अपनी ऊँगली से बहते हुए खून से कार के पिछले शीशे पर अक्षरों की उन्हें आकृतियों को बना दिया जिनका अर्थ होता है नाले बा
हरीश ने गाड़ी स्टार्ट की और हम तीनों उसमें बैठकर वहां से भाग निकले, चुड़ैलें हमारे पीछे आई परंतु उन्होंने गाड़ी के पीछे नाले बा लिखा हुआ देखा, और वही रुक गई।
वो वहीं रुक गई और हम वहाँ से सही सलामत वापस अपने घर पहुंच गए।