रहस्यमयी दुल्हन-3
रहस्यमयी दुल्हन-3
पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- बिना सीढ़ियों के हवेली की ऊपरी मंजिल पर पहुंच जाना चंद्रिका को अजीब लग रहा था। उसे यह भी याद आता है कि गृहप्रवेश के समय उसने एक छोटे से मकान में कदम रखा था लेकिन अब वह एक बड़ी सी हवेली में थी। वह अपनी सोच में डूबी हुई थी कि उसे उस रहस्यमयी दुल्हन के बारे मे याद आता है जिसका पीछा वह कर रही थी लेकिन वह दुल्हन वहां से गायब हो जाती हैं। उसकी सास दर्शना उसे वहां देख लेती हैं। चंद्रिका उन्हें अपने साथ हुई घटना के बारे मे बताना चाहती हैं लेकिन वहां सब कुछ पहले जैसा हो जाता हैं। दर्शना देवी चंद्रिका को वहाँ भटकने के लिए डांटती है और अपनी विश्वासपात्र सेवक त्रिपाला को चंद्रिका की सेवा में लगा देती हैं। अब आगे-
चंद्रिका त्रिपाला के साथ अपने कमरे में आती हैं तो उसे याद आता है कि जब वह उस दुल्हन का पीछा कर रही थी तब वह दरवाजे से ही निकली थी और इसी बीच जब दर्शना देवी उसके पास आई थी तो वह अपने कमरे के पीछे की बालकनी में खड़ी थी। वह बालकनी में कैसे आ सकती थी? बिना कमरे में गए बालकनी में पंहुचना नामुमकिन है और वह तो कमरे से निकल कर उस दुल्हन का पीछा कर रही थी और कभी कमरे में वापस नहीं आईं तो फिर वह बालकनी में कैसे आई, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
इसके आगे चंद्रिका कुछ सोच पाती कि तभी त्रिपाला की आवाज आई- "आइये बहुरानी आराम कर लीजिए। थोड़ी ही देर में सुबह होने वाली हैं।" इतना कहकर त्रिपाला अपनी लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ती है। चंद्रिका भी अपने कपड़े ठीक कर पलंग पर लेट जाती हैं और त्रिपाला भी उसी के साथ लेट जाती हैं।
चंद्रिका की आंखों से नींद कोसों दूर थीं। वह यही सोच रही थीं कि जो कुछ भी उसने देखा और महसूस किया, वो सब उसका वहम था या सच? क्या सच में कोई और दुल्हन उसके कमरे में थी? क्या उसने वाकई किसी का पीछा किया था? यहीं सब सोचते सोचते चंद्रिका ने त्रिपाला की ओर देखा। त्रिपाला सो चुकी थीं लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी घूंघट पड़ा हुआ था। चंद्रिका को यह बात बहुत अजीब लगी लेकिन चंद्रिका की त्रिपाला का घूंघट उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ देर बाद चंद्रिका को भी नींद आ जाती हैं।
सुबह हो चुकी थी और चंद्रिका अपने कमरे में तैयार हो रही थीं। उसने आज हरे रंग की साड़ी पहनी थी और बालों में फूलों का गजरा लगाया था। आज वह शेखर को देखने के लिए भी बहुत खुश और बेचैन थी। अभी वह आईने में देखकर सिंदूर लगा ही रही थीं कि उसे कमरे में झांकती हुई एक परछाई दिखाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ दरवाजे पर कोई नहीं था। इसे अपना वहम समझ कर चंद्रिका फिर से आईने में देखते हुए सिंदूर लगाने जा रही थी कि उसे फिर से आईने में वही परछाई दिखाई दी।
चंद्रिका बुरी तरह घबरा गई। उसने सिं
दूर की डिबिया को नीचे रखा और भागते हुए दरवाजे पर पहुंची। उसने इधर से उधर मुँह घुमाकर देखा लेकिन वहाँ पर कोई नही था। भाग कर आने की वजह से उसकी धड़कन तेज हो गई थी। उसने गहरी सांस ली और दरवाजा बंद करने लगी।
जैसे ही वह दरवाजा बंद करके मुड़ी, उसकी चीख निकल गई। सामने त्रिपाला खड़ी थी। चेहरे पर वहीं घूंघट, हाथों में वहीं लाठी।
"अरे त्रिपाला काकी आप यहाँ कब आई ? अभी तो आप यहाँ नही थी।" चंद्रिका ने एक सांस में पूछ लिया।
"जब आपका दरवाजा खुला हुआ था, हम तो तभी आए थे बहुरानी जी आपने देखा ही नहीं। वैसे आप दरवाजे पर किसे ढूंढ रही थीं बहुरानी ?"त्रिपाला ने जैसे व्यंग्य भरे शब्दों में पूछा।
चंद्रिका सकपका गई। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। उसने संभलते हुए कहा- "मैं दरवाजा बंद करने गई थी काकी, वो ऐसे तैयार होना अच्छा नहीं लगता, हैं ना।
"इस घर के दरवाजे कभी बंद नहीं होते बहुरानी। यह इस घर का बहुत पुराना नियम है।"त्रिपाला उसके पास आते हुए कह रही थीं।
"तो क्या पति- पत्नी का निजी कक्ष भी खुला रहता है काकी?"चंद्रिका ने सकुचाते हुए पूछा। उसे अब घबराहट हो रही थीं।
पति पत्नी का कक्ष केवल रात मे ही बंद हो सकता हैं, वो भी तब जब पति मौजूद हो। त्रिपाला ने स्पष्ट करते हुए कहा।
चंद्रिका को यह नियम बेसिरपैर का मालूम हुआ लेकिन उसने बहस ना करना ही ठीक समझा। त्रिपाला ने आगे कहा- "चलिए बहुरानी
मालकिन रसोईघर में आपका इंतजार कर रही हैं।"
चंद्रिका ने आगे बढ़ कर सिंदूर की डिबिया उठाई। वह डिबिया खोल कर अपनी मांग में सिंदूर लगाने जा ही रही थीं कि तभी त्रिपाला ने उसे रोक दिया।
"रुक जाओ बहुरानी। आप यह सिंदूर नही लगा सकती।"
अब चंद्रिका हैरान रह गई। उसने पूछा- "क्यों ? यह तो पति की लंबी उम्र के लिए लगाया जाता हैं।"
"हमारे घर की बहुएं इन सब आडम्बरों पर वक्त बर्बाद नहीं किया करती बहुरानी। चलिए बहुरानी, बातों में काफी समय बर्बाद हो गया।" इस बार त्रिपाला ने रूखे स्वर में कहा।
चंद्रिका को यह बात बहुत बुरी लगी लेकिन वह कुछ नहीं बोली और त्रिपाला के साथ चल दी। चंद्रिका जैसे ही अपने कमरे से बाहर निकली, एक नई पहेली उसका इंतजार कर रही थीं।
बाहर निकलते ही उसकी नजर अपने कमरे की दीवारों पर जा टिकी। दीवारों पर एक बारीक नक्काशी वाला चित्र टुकड़ों में बना हुआ था। उसने चित्र को ध्यान से देखा तो उसका सिर घूम गया। उसके साथ कल रात को जो कुछ भी हुआ था, गृहप्रवेश से लेकर त्रिपाला के साथ सोने तक हर एक घटना उस चित्र में साफ उकेरी गई थी।
"यह कैसे हो सकता हैं? यह तो कल रात की पूरी घटना को दीवार पर बनाया गया है।" इतनी जल्दी इसे बनाना नामुमकिन हैं और मैं त्रिपाला काकी के साथ कमरे में ही सो रही थीं। अगर यह चित्र रात में बनाया गया है तो किसने बनाया है और हम दोनों में से किसी को कोई आवाज क्यों नहीं आई?"
"क्या हुआ बहुरानी क्या देख रही हो?" त्रिपाला के सवाल से चंद्रिका अपनी सोच से बाहर आई।.........
जारी......