ख्वाहिश
ख्वाहिश
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उसकी ख्वाहिश कुछ अलग ही थीं इस दुनिया से। लड़कियों को चॉकलेट पसंद होती थी लेकिन उसे नहीं। उसने घर के काम सीखा तो सही लेकिनशौकिया तौर पर। उसने जिंदगी जीना तो सीखा लेकिन बंदिशों में नहीं।
वो अपनी ख्वाहिश को अपना हिस्सा बनाना चाहती थी लेकिन यह मुमकिन नहीं था क्योंकि उसका शरीर लड़कियों का था लड़को का नहीं। उसका परिवार उसका था ही नहीं क़भी। अपनी इज्ज़त ज्यादा प्यारी थी उन्हें उसकी ज़िंदगी से। उसकी ख्वाहिश भी उसके साथ दम तोड़ चुकी थी।
उसकी ख्वाहिश न तो दुनिया को मंजूर थी न ही उसके परिवार को क्योंकि उसकी ख्वाहिश तो लड़का होने की थी न कि लडक़ी होने की।