astha singhal

Horror Thriller

4.9  

astha singhal

Horror Thriller

मास्क वाला खौफनाक चेहरा

मास्क वाला खौफनाक चेहरा

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वैसे तो दुनिया का हर व्यक्ति अपने चेहरे पर एक मास्क लगा कर घूमता है। सच्चाई और अच्छाई का मास्क। जिससे उसके अंदर व्याप्त बुराईयां, धोखा देने की प्रवृत्ति, दूसरों से जलन की भावना, अपनों को ही सीढ़ी बना कर ऊंचाईयों तक पहुंचने की फितरत को वह ढ़क सके।

हम में से कोई भी एक दूसरे के असली चेहरे को शायद ही कभी पहचान सकेंगे।


आज की तारीख में तो पहचानना और भी मुश्किल हो गया है। क्योंकि पूरी दुनिया ने महामारी के चलते अपने आधे चेहरों को मास्क से ढ़क रखा है।कौन आपके सामने से निकल गया पता ही नहीं चलता।


गज़ब की बात तो यह है कि अजीब स्टाइलिश मास्क भी मार्केट में उपलब्ध हैं। कुछ तो ऐसे मास्क हैं जिन पर डरावने दांत बने हैं। कुछ पर डरावनी शक्लें। उस डरावने मास्क के पीछे कौन सा चेहरा छुपा है यह कहना मुश्किल है। ऐसे ही एक चेहरे से मेरा सामना हुआ। और उसके बाद मेरी ज़िंदगी में उत्थल - पुत्थल मच गई।


मैं सुगंधा पेशे से वकील हूं। डाइवोर्स केस लेती हूं।आज के परिदृश्य में जब महामारी इतनी फैल गई है तो मैं भी कोर्ट कम ही जाती हूं। ज्यादातर क्लाइंट से ओनलाइन ही संपर्क करती हूं।लॉकडाउन खुलने के बाद कुछ पैचीदा केस के लिए कोर्ट जाने लगी थी।


एक रोज़ मेरे कैबिन के बाहर एक अजीब सा मास्क पहने हुए एक आदमी खड़ा था। उसका मास्क गज़ब का डरावना था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई ड्रेक्यूला खड़ा हो जो अभी सब का खून पी जाएगा। और उसकी आंखें तो लग भी वैसी ही रहीं थीं। एकदम लाल। जैसे वाकई में उनमें खून उतर आया हो। मेरी निगाह जब उस पर पड़ी तो वह मुझे ही देख रहा था। मैं एकदम सहम गई। डर की तरंगों ने अंदर तक मुझे झकझोर दिया। मैंने चपरासी को बुलाया और उससे उस मास्क वाले व्यक्ति की पूछताछ करने को कहा। 


कुछ देर बाद जब चपरासी आया तो उसने बताया कि वह उससे कुछ पूछता इससे पहले ही वह वहां से चला गया।मैं मन ही मन सोचने लगी कि अजीब आदमी था। जब कोई काम ही नहीं था तो आया क्यों था? आया तो आया अपने अजीब से मास्क से डराया क्यों?


शाम तक मैं सब भूल चुकी थी। काम खत्म करके घर के लिए निकल पड़ी। कोर्ट के बाहर आकर अपनी गाड़ी का इंतज़ार कर रही थी कि अचानक फिर से वह मास्क वाला खोफनाक चेहरा मुझे फिर दिखा। उसकी आंखें अभी भी लाल थीं। उसने चेहरे को तो मास्क से ढ़क ही रखा था, अपने सिर पर भी अलग रंग के बालों वाली विग पहन रखी थी। मैंने कुछ देर उसे देखने की कोशिश की। शायद कोई दोस्त हो जो मुझे डरा रहा हो। क्योंकि मेरे सारे दोस्त जानते हैं कि मैं कितनी डरपोक हूं। पर मुझे नहीं लगा कि वह मेरा कोई दोस्त है।


तभी अचानक वह मेरी तरफ बढ़ने लगा। मेरी दिल की धड़कन तेज़ हो गई। डर के कारण पैर लड़खड़ाने लगे। बस जल्दी से ड्राइवर गाड़ी ले आए और मैं उसमें बैठ जाऊं। यही प्रार्थना कर रही थी भगवान से। अब वह मुझसे सिर्फ दस कदम के फासले पर था। मैं चीखना चाहती थी पर आवाज़ गले से निकल ही नहीं रही थी। तभी मेरी गाड़ी आ गई और मैं भाग कर उसमें ऐसे बैठी जैसे किसी को खून करते देखने पर गवाह भागता है। 


घर पहुंच कर कम से कम पांच गिलास पानी पिया। फिर शांति से सोफे पर ही बैठ गई। दिल अभी भी तेज़ रफ़्तार से धड़क रहा था। चेहरे पर पसीने की बूंदें साफ दिख रही थीं। मैं अभी भी उस मास्क वाले व्यक्ति के बारे में ही सोच रही थी कि अचानक मां की आवाज़ कानों में पड़ी।


" अरे! कम से कम घर आकर तो कोर्ट कचहरी को भूल जाया कर। चल हाथ मुंह धोकर खाने के लिए आ जा।"

एक पल को सोचा कि आज जो हुआ वह मां को बता दूं पर दूसरे ही पल अपने आप को रोक लिया। मां बेवजह परेशान हो जाएंगी। वैसे ही मुझे लेकर परेशान रहती हैं।


अगले दिन मेरे मोबाइल पर एक वीडियो मैसेज आया। कोई अनजान नंबर था। मैंने जब वह वीडियो देखा तो डर के मारे मोबाइल ही हाथ से गिर गया। उस वीडियो में वही मास्क वाला खोफनाक चेहरा किसी को बेदर्दी से मार रहा था और फिर मेरी तरफ इशारा करके बोला कि अब तेरी बारी। कुछ पलों के लिए आंखों के आगे अंधेरा छा गया।


समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्ट करूं। उस आदमी के पास मेरा फोन नंबर कैसे आया? वह मेरे बारे में और क्या क्या जानता है? यह सब बातें अब मेरे ज़हन में घूमने लगीं। मुझे लगा कि इससे पहले कि वह आदमी कुछ और करे मुझे कोई ना कोई ठोस कदम उठाना पड़ेगा। मैंने अपनी एक दोस्त जो कि क्रिमिनल लॉयर है और ऐसे कई साइबर क्राइम केस सुलझा चुका है को संपर्क किया।

" फिक्र मत करो सुगंधा, तुम अपना फोन लेकर कल मेरे केबिन में आ जाना। " मेरे दोस्त आशीष ने बोला।


अगले दिन मैं आशीष के केबिन में पहुंची। उसने मुझे समझाया कि किस तरह हम यह पता लगा सकते हैं कि हमें भेजा गया वीडियो कहां से आया है। लगभग 2 घंटे बीत गए पर साइबर क्राइम वाले उस वीडियो की लोकेशन का पता नहीं लगा पाए। आशीष ने मुझे सांत्वना देते हुए बोला कि मैं घबराऊं नहीं । वह अपने कुछ और क्रिमिनल लॉयर दोस्तों से बात करेगा और इस मसले की तह तक पहुंच कर रहेगा।


क्योंकि आशीष ने मेरे केस को हैंडल करने की जिम्मेदारी ले ली थी इसलिए मैं बेफिक्र होकर अपने काम में लग गई। शाम को मां का फोन आया कि उन्हें बाजार से कुछ सामान मंगवाना है। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि मैं आते हुए ले आऊंगी वह बाजार ना जाएं। ड्राइवर ने गाड़ी कार पार्किंग में पार्क करी और मैं मार्केट में चली गई। जब मैं सामान खरीद रही थी तब मुझे ऐसा आभास हुआ कि कोई मेरा पीछा कर रहा था। मैंने मुड़कर हर जगह देखा पर मुझे कोई नज़र नहीं आया। मेरा भ्रम समझकर मै सामान खरीदने में लग गई। कुछ देर बाद मैंने उस मास्क वाले खतरनाक चेहरे को मार्केट में देखा । वह मुझे ही घूर रहा था‌। ना जाने क्यों उसे देखते ही मेरे पूरा शरीर पसीने से भीग जाता है और सांसे एकदम तेज़ दौड़ने लगती हैं।


मैंने अपना सामान उठाया और तेज कदमों से पार्किंग की तरफ बढ़ने लगी। मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि वह भी मेरे पीछे-पीछे आ रहा है। मैंने फटाफट अपने ड्राइवर को फोन लगाया और गाड़ी को पार्किंग से बाहर लाकर खड़े करने को कहा। गाड़ी आते ही मैंने तुरंत अपना सामान उसमें पटक दिया और बैठ गई। 


घर पहुंच कर मैंने तुरंत आशीष को फोन मिलाया और उसे सारी घटना बताई। 


"सुगंधा कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सब तुम्हारा भ्रम हो। हो सकता है ऐसा कोई आदमी हो ही ना?"


" कैसी बातें कर रहे हो आशीष भ्रम एक बार होता है बार-बार नहीं।"


"अच्छा हो सकता है कि कहीं यह तुम्हारा कोई पुराना क्लाइंट हो, जो तुम से बदला लेना चाहता हो?"


" तुम पागल हो गए हो क्या आशीष? मैं एक डायवोर्स लॉयर हूं! तुम्हारी तरह क्रिमिनल लॉयर नहीं जो मेरे दुश्मन होंगे।"


"अरे! यह भी तो हो सकता है कि कभी तुमने किसी सरफिरे का डाइवोर्स करा दिया हो और अब वह तुमसे बदला ले रहा हो।" आशीष हंसते हुए बोला।


"आशीष तुम्हें यह सब मज़ाक लग रहा है । तुम इस केस को सीरियसली नहीं ले रहे हो। रहने दो । तुम्हारे बस का नहीं है । अब इसे मैं खुद ही देखूंगी।" यह कहकर मैंने फोन रख दिया।


तभी मेरे पास एक और वीडियो आया। उस वीडियो को देख मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। वह वीडियो मेरे घर का था। घर में मेरी मां काम कर रही थी। तभी अचानक दरवाजे की घंटी बजती है और वीडियो वहीं खत्म हो जाता है। फिर वह मास्क वाला खतरनाक चेहरा उस वीडियो में आता है और बोलता है," सोचो, अगर दरवाजा खोलते ही कोई तुम्हारी मां को मार दे तब तुम क्या करोगी?"


मैं निशब्द सी अपने बिस्तर पर बैठ जाती हूं। मेरे सोचने समझने की शक्ति जैसे ख़त्म सी हो गई थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह आदमी मुझसे चाहता क्या है? आज यह मेरे घर तक कैसे पहुंच गया? मेरे घर के अंदर का वीडियो इसने कैसे बना लिया? तभी मैंने अपनी मां को पुकारा।


"मां क्या आज सुबह 12:30 बजे कोई आया था?"


"अरे हां! दरवाजे की घंटी बजी और जब मैं वहां पहुंची तो वहां कोई भी नहीं था।" मां ने सोचते हुए बोला।


"तो हो सकता है कि 12:30 से पहले कोई आया हो।" मैंने सवाल पूछा।


"नहीं उससे पहले तो कोई नहीं आया था। अब तू मुझसे यह वकीलों की तरह सवाल जवाब करना बंद कर। चल आ जा। मैं तेरे लिए खाना लगा देती हूं।"


कैसे समझाऊं मैं मां को कि अब उनकी सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है। रात को खाने पर मां ने मुझसे पूछा कि क्या वह कुछ दिन के लिए अपनी बहन के यहां जा सकती है? अगर यह सब नहीं हुआ होता तो शायद मैं इस महामारी की वजह से मां को ना कर देती। पर इस वक्त मुझे उनकी सुरक्षा की ज्यादा चिंता थी। मुझे लगा कि यह सही मौका है, मां को यहां से कहीं और भेजने का। मैंने उन्हें तुरंत हां कर दी। और अगले ही दिन उन्हें उनकी बहन के पास रवाना कर दिया। मां को भेज कर मुझे थोड़ा सुकून मिला । अब सिर्फ मैं हूं, और वह खतरनाक मास्क वाला चेहरा।


मां के जाने के बाद कुछ दिन बहुत शांति में गुज़रे। मुझे वह चेहरा कहीं भी नजर नहीं आया। मुझे लगा कि शायद आशीष सही कह रहा था कि यह मेरा भ्रम है । या फिर कोई मुझसे मजाक कर रहा था।


शनिवार का दिन था और कोर्ट में बहुत सारा काम बचा हुआ था। तभी मेरे ड्राइवर का फोन आया कि उसकी मां की तबीयत अचानक खराब हो गई है तो उसे छुट्टी चाहिए। मैंने उसे छुट्टी दे दी। अब मुझे खुद ही गाड़ी चला कर घर जाना था । शाम होते-होते सारा दफ्तर खाली होने लगा पर मेरा काम अभी बाकी था। रात के 9:30 बजे मैं अपना काम खत्म कर निकली तो देखा कि अमूमन सारे केबिन के दरवाजे बंद हो चुके थे। ज्यादातर वकील जा चुके थे। सिर्फ एक दो लोग ही बचे थे।


अब मैं कार पार्किंग की तरफ बढ़ने लगी। कार पार्किंग को इतना खाली कभी नहीं देखा था। सिर्फ जहां-जहां कार खड़ी थीं वहीं लाइट जल रहीं थीं। बाकी जगह लाइट भी बंद हो गई थीं। मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। मुझे फिर से उसी डर का आभास हुआ। तभी मुझे वहां किसी के सीटी बजाने की आवाज़ आई। मैं एक क्षण रुकी, और फिर तेज़ कदमों से अपनी कार की तरफ भागने लगी।


जैसे-जैसे मैं अपनी कार की तरफ पहुंच रही थी वैसे - वैसे वह सीटी भी तेज़ होती चली जा रही थी। मेरे हाथ पैर फूलने लगे। मेरी सांसे रुकने लगीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं ? कार पार्किंग में इधर- उधर नज़र दौड़ा कर देखा, कोई भी नहीं था। चौकीदार भी शायद चला गया था। खौफ मेरे चेहरे पर साफ दिख रहा था। पसीने से मेरा पूरा शरीर भीग चुका था। पैर भी लड़खड़ा रहे थे। फिर मैंने मन में सोचा कि आज तो मुझे इस डर का सामना करना ही पड़ेगा। मैं वहां रुकी और अपने अंदर हिम्मत जुटाकर चिल्लाई," कौन हो तुम? और सामने क्यों नहीं आते ? आज या तो तुम नहीं रहोगे या मैं नहीं रहूंगी।" 


तभी अचानक वह मास्क वाला खतरनाक चेहरा मेरे सामने सीटी बजाता हुआ आ कर खड़ा हो गया। उसे देख मेरे मुंह से एक हल्की सी चीख निकली। पर फिर मैंने अपने आप को संभाल लिया। और उससे पूछा कि उसे मुझसे क्या चाहिए? मैंने उसका ऐसा क्या बिगड़ा है जो वह मेरे पीछे पड़ा हुआ है।


"तुमने तो मेरी जिंदगी ही उजाड़ दी। और अब पूछ रही हो कि तुमने मेरा क्या बिगड़ा है और मैं क्यों तुम्हारे पीछे पड़ा हूं? तुम्हारी वजह से आज मेरे बच्चे मेरे पास नहीं है।"


" मेरी वजह से ? मैं कुछ समझी नहीं ? कौन हो तुम ? मैंने कभी किसी के बच्चे को उससे जुदा नहीं किया!"


"हां, तुम्हारी ही वजह से आज मैं अपने बच्चों को देखने के लिए भी तरस गया हूं। तुमने ही मेरा और मेरी पत्नी का डायवोर्स केस लड़ा था। जिसे वह जीत गई और मेरे बच्चों की कस्टडी भी मुझे नहीं मिली। तुमने बहुत बड़ा पाप किया है और इस पाप की सज़ा मैं तुम्हें जरूर दूंगा।" उसने जेब से चाकू निकालते हुए कहा।


" यह क्या कह रहे हो तुम? कौन से केस की बात कर रहे हो ? और इस चाकू को अंदर रखो। तुम मुझे ऐसे डरा धमका नहीं सकते।" मैंने हिम्मत जुटाते हुए कहा।


" तुम ने पिछले साल शालिनी आहूजा का केस लड़ा था। मैं उसका पति हूं।"


"हां मैंने लड़ा था उसका केस। उसका पति उसे बहुत मारता पीटता था। और उससे पैसे भी मांगता था। इसलिए मैंने उसका केस लड़ा था।"


"यह सब झूठ था। क्या तुमने कभी सच जानने की कोशिश की थी ? बस जो शालिनी ने तुमसे कहा तुमने वही मान लिया। कभी यह नहीं सोचा कि सिक्के का दूसरा पहलू भी हो सकता है। कभी मुझसे बात करने की कोशिश करी होती तो पता चलता कि सच क्या था।"


"अच्छा तो तुम ही बता दो सच क्या था?" मैंने पूछा।


वह आदमी दूसरी गाड़ी के बंपर पर बैठ गया ।और मुझे भी अपनी गाड़ी पर बैठने को कहा। जब मैं नहीं मानी तो उसने मुझे चाकू से डराया। फिर उसने मुझ से विनती करी कि मैं बिना हंगामा किए चुपचाप बैठ जाऊं। और उसकी बात ध्यान से सुन कर फिर फैसला करूं कि उस दिन मुझसे गलती हुई थी कि नहीं।


" मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार का आदमी हूं। मेरी तनख्वाह इतनी ज़्यादा नहीं थी।लेकिन मेरी पत्नी की ख्वाहिशें बहुत ऊंची थीं। वह हमेशा मुझसे ज़्यादा पैसे कमाने को कहती थी । पर मैं उतने ही कमा सकता था जितनी मेरी क्षमता थी। एक दिन मुझे पता चला कि वह किसी और को पसंद करने लगी है। और उसके साथ घर बसाना चाहती है । मैंने उसे बहुत समझाया कि ऐसा करने पर हमारा परिवार बिखर जाएगा। हमारे बच्चों का क्या होगा ? पर वह नहीं मानी और उसने डाइवोर्स का केस फाइल कर दिया। उसने तुम्हारे ज़रिए यह साबित कर दिया कि मैं उसे पैसों के लिए परेशान करता हूं और मारता पीटता हूं। तुम्हारी मदद से उसे डाइवोर्स भी मिल गया और मेरे बच्चों की कस्टडी भी तुमने उसे ही दिला दी। तुमने मुझ पर इतने घिनौने और झूठे आरोप लगाए कि मेरा उस कॉलोनी में रहना मुश्किल हो गया। सब यही सोचने लगे कि मैंने ही शालिनी के साथ बुरा बर्ताव किया होगा। मुझे कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ी तुम्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं है। तभी मैंने सोच लिया था कि इस बात का बदला मैं तुमसे लेकर रहूंगा। अपने बच्चों से बिछड़ने का डर और अपने नाम खराब होने का डर क्या होता है यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता । पर यह तुम्हें समझाना बहुत ज़रूरी था। मैं तुम्हें इतना डराना चाहता था कि तुम्हारी सांसे रुक जाए।"


"अगर मैंने या शालिनी ने तुम पर झूठे इल्ज़ाम लगाए थे तो तुम ने कोर्ट में उन्हें झूठा साबित क्यों नहीं किया? तुम तो शायद कोर्ट भी नहीं आए थे।"


" अगर मैं शालिनी के इल्ज़ाम को झूठा साबित करता तो उसकी बहुत बेइज्जती होती । वह दुनिया में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहती। मेरे पास सारे सबूत थे पर उन्हें दिखा कर मैं अपने परिवार की बदनामी नहीं कर सकता था। और यदि यह सच सामने आ जाता तो शालिनी का एक घिनौना रूप भी सामने आता। तुम्हारे मुताबिक मैं शालिनी को मारता पीटता था। पर जब मुझे सच्चाई का पता चला था और मैंने शालिनी को यह कदम उठाने से रोका था तो जो उसने जो किया वह शायद इंसानियत और मानवता के विरुद्ध था।" यह कहकर उसने अपना मास्क उतारना शुरू करा।


जैसे ही उसके मास्क उतारा मेरे मुंह से एक दर्द भरी चीख निकल पड़ी। उसका आधा चेहरा जला हुआ था।


" मेरे डिवोर्स पेपर पर साइन ना करने पर शालिनी ने मेरे साथ यह किया।"उसने अपने चेहरे की तरफ संकेत करते हुए कहा।


मैं हैरानी से उसे देख रही थी। मेरी आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे ।आज मुझे अपने ऊपर बहुत ही ग्लानि महसूस हो रही थी । क्यों मैंने शालिनी की बात पर आंख मूंद कर विश्वास किया ? क्यों मैंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मुझे सच्चाई की तह तक जाना चाहिए? मेरी वजह से इस आदमी ने कितने दुख भोगे होंगे। कितने दर्द सहे होंगे? आज मुझे अपने वकील होने पर अफसोस हो रहा था। क्योंकि वकालत की डिग्री लेते वक्त मैंने एक कसम खाई थी कि मैं कभी भी किसी निर्दोष को सजा नहीं होने दूंगी।

कुछ देर के लिए हम दोनों शांत बैठे रहे।


फिर वह आदमी उठा और बोला," मैं चाहता तो शायद बहुत कुछ कर सकता था ।पर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था। क्योंकि कहीं ना कहीं मुझे यह एहसास था कि तुम सिर्फ अपना काम कर रही थीं ।मेरी तुम्हारी कोई पर्सनल दुश्मनी नहीं थी। बस तुम्हें यह एहसास दिलाना जरूरी था कि डर कितना बड़ा खौफ है। आज लोग मेरा चेहरा देखकर डर जाते हैं। मैं जहां भी जाता हूं सब मुझसे दूर भागते हैं। कोई मुझे नौकरी देने को तैयार नहीं है। मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई है। और उसकी एक वजह तुम हो।" यह कहते हुए उसकी आंखें नम हो गईं।


"मुझे माफ कर दो आज मुझे अपने वकील होने पर बेहद अफसोस हो रहा है। मुझे एक मौका दो, मैं तुम्हारी ज़िंदगी फिर से सुधारना चाहती हूं। मैं यह केस फिर से ओपन करना चाहती हूं। अब शालिनी को उसके कर्मों की सज़ा मिल कर रहेगी ।तुम्हारे पास जो भी सबूत हैं वह मुझे दे दो। मैं वादा करती हूं कि तुम्हारे बच्चों की कस्टडी तुम्हें वापस दिलाकर रहूंगी।"


मैंने उसे सोमवार को सुबह सारे सबूतों के साथ ऑफिस में आने को कहा । उसने मेरी बात मान ली और वहां से चला गया।


सोमवार को मैं उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी। जब वह आया तो मैंने उससे सारे सबूत मांगे। पर उसने मुझे देने से मना कर दिया और बोला,"अब मुझे मेरे बच्चों की कस्टडी नहीं चाहिए।"


"पर क्यों तुम तो अपने बच्चों के लिए तड़प रहे थे अब क्या हुआ? तुमने अपना इरादा क्यों बदल दिया? क्या तुम पर कोई दबाव है?" मैंने हैरान होकर पूछा।


" कल मैं शालिनी के घर गया था। सोचा था कि एक नज़र बच्चों को देख लूंगा। और मौका लगा तो उनसे मिलकर उन्हें बता भी दूंगा की जल्द ही वह मेरे पास वापस आ जाएंगे। पर वहां पहुंच कर मैंने जो देखा उसने मुझे सोचने पर बाध्य कर दिया कि कहीं बच्चों की कस्टडी वापस लेकर गलत तो नहीं कर रहा हूं।"


"क्यों ऐसा क्या देखा तुमने?" 


"मेरे बच्चे बहुत खुशी से अपने नए पापा की गोद में खेल रहे थे। उनके पास सुख सुविधा की बहुत सी चीजें मौजूद थीं जो मैं उन्हें कभी नहीं दिला सकता। वह इतने खुश थे कि शायद उन्हें मेरी याद भी नहीं आती होगी। मैं नहीं चाहता कि मैं उनसे वह सब छीन लूं। इतना स्वार्थी नहीं हूं मैं।" यह कहकर वह रोने लगा।


मेरे भी आंसू थम नहीं रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि ममता केवल मां के हृदय में ही होती है। पर यह सच नहीं है । ममता एक पिता के दिल में भी छुपी होती है।


मैंने उसे बताया कि मैंने उसके लिए नौकरी की बात कर ली है । और वह अपने सभी सर्टिफिकेट दिखाकर नौकरी पा सकता है। और रही बात उसके चेहरे की तो वह भी मैं धीरे-धीरे प्लास्टिक सर्जरी से ठीक करा दूंगी।


आज वह अपनी जिंदगी में खुश है। अकेला ज़रूर है मगर उसके चेहरे पर संतुष्टि साफ दिखाई देती है। और अब उसे अपने चेहरे को मास्क से ढकने की भी जरूरत नहीं रही।


किसी ने सच ही कहा है कि चेहरा हमारी खूबसूरती का आईना नहीं होता। उस मास्क वाले खौफनाक चेहरे के पीछे एक मासूम , भोला , निर्दोष चेहरा छुपा था।



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