astha singhal

Children Stories Fantasy

5.0  

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Children Stories Fantasy

एलियन से मुलाकात

एलियन से मुलाकात

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मयंक का सबसे पसंदीदा विषय था साइंस। बचपन से ही उसे रात में चाँद तारे देखने का बहुत शौक था। उसका यह शौक बढ़ता चला गया। तो उसके पिता ने उसे एक टेलेस्कोप लाकर दिया। 


अब वह रोज़ अपनी छत से रात को तारों, और विभिन्न नक्षत्रों के समूहों को देखता था। एक दिन उसे एक अजीब सा ग्रह देखा। बहुत तेज़ चमक रहा था। उसने हर रोज़ रात को उस तारे के समान दिखने वाले ग्रह का अध्ययन करना शुरू किया। मयंक ने उसका नाम ग्लूको रख दिया। अब वह रोज़ रात ग्लूको को अपनी दूरबीन से देखता और बातें करता। 


एक रात बहुत तेज़ आंधी- तुफान आया। मयंक घबरा कर उठा। उसकी प्यारी दूरबीन छत पर खुले आसमान के नीचे रखी थी। वह उसे उठाने के लिए दौड़ा।


जब वह छत पर पहुंचा तो उसे वहां पर एक छोटी सी छतरी नुमा आकार की चमकती हुई चीज़ अपनी तरफ आती दिखाई दी। इससे पहले की वह भाग पाता वह छतरी नुमा चीज़ जो अब एक यू. एफ. ओ की तरह लग रही थी, उसकी छत पर उतरी। और उसमे से एक दो अजीब से सिर वाला हरे रंग का एलियन निकला। 


मयंक पहले तो डर गया फिर सहज होकर बोला, "तुम कौन हो?" उस एलियन के माथे से एक अजीब सी तरंग निकली। यह तरंग सीधे मयंक के माथे पर पहुंची और दो पल में गायब हो गई।


अब उस एलियन ने एक अजीब सी आवाज़ में बोलना शुरू किया,"मैं ग्लूको, जिससे तुम रोज़ बात करते हो। और हमेशा मुझे बोलते हो कि मैं तुम्हें अपना ग्रह दिखाऊं। तो लो मैं आ गया।" 


"पर तुम मेरी बोली कैसे बोल पाए? तुम्हारे ग्रह पर भी हिंदी बोलते हैं?" मयंक ने ताज्जुब से कहा। 


"अभी अभी अपनी तरंगों से तुम्हारे दिमाग में जितनी भाषाएं थीं सब अपने दिमाग में ट्रांसफर कर लीं थीं। चलो अब जल्दी से मेरे ग्रह पर चलो।" ग्लूको बोला। 


मयंक उसके साथ उसके अंतरिक्ष यान में बैठ गया। आगे का सफर उसके लिए किसी स्वप्न से कम नहीं था। उनका अंतरिक्ष यान तीस हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से अंतरिक्ष के सफर पर चल पड़ा। 


उस सफर में रास्ते में मयंक ने अपनी पृथ्वी को देखा। जो एक गोल बॉल से समान लग रहा था। फिर उसने ज्यूपिटर, सैटर्न, नैपच्यून को पार किया। और पहुंच गये ग्लूको ग्रह पर। 


"वैसे हमारे ग्रह का नाम सिम्फ़नी है। पर…. ग्लूको भी अच्छा नाम है। और मेरा नाम ऑल्टो है। मेरे ग्रह पर उतरने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना। पहली, कोई भी नाकारात्मक विचार अपने दिमाग में मत लाना। तुम पृथ्वी वासियों को नाकारात्मक सोचने की बहुत आदत है। दूसरा, मेरा ग्रह एकदम साफ सुथरा है। इसलिए इसे गंदा करने की कोशिश मत करना। तुमने पृथ्वी को तो गंदगी से भर ही दिया है। तीसरी बात, हमारे ग्रह पर बहुत हरियाली है। इसलिए इसे किसी भी तरह से नष्ट मत करना। पृथ्वी पर तो हरियाली का नामोनिशान मिट गया है। और चौथी और सबसे अहम बात, हम सब सिम्फ़नी वासी एक दूसरे के साथ बहुत प्यार और स्नेह से रहते हैं। इसलिए तुम हमारे बीच कोई टकराव उत्पन्न करने की कोशिश मत करना। पृथ्वीवासी तो आपसी  झगड़ों, दंगे फसाद, लूटपाट, मारकाट में ही विश्वास रखते हैं।" 


मयंक यह सब सुन बहुत शर्मिन्दा हुआ। ऑल्टो द्वारा दिया गया स्पेस सूट पहन वह उतर‌ गया। 


सच में ऑल्टो ने जैसा कहा था उसका ग्रह वैसा ही निकला। सुन्दर, हराभरा और साफ़ सुथरा। ऑल्टो ने उसे वहां के वासियों से मिलवाया। सब उससे बहुत प्रेम से मिले। सब सिम्फ़नी वासी एक ही जैसे दिखते थे। जो मर्द थे उनके सिर पर बाल नहीं थे और जो औरतें थीं उनके सिर पर हल्के लाल रंग के एंटीना के समान बाल थे। 


सब बहुत प्रेम और अपनेपन से रहते थे। वह यह जानकर आश्चर्य चकित हो गया कि वहां कोई राजा कोई सरकार नहीं थी। सब अपना काम करते थे।‌सांइस और टैक्नोलॉजी में वह पृथ्वी से कई हज़ार साल आगे थे।‌ पर उन्होंने साइंस का इस्तेमाल अपने ग्रह की उन्नति और प्रगति में इस्तेमाल किया। पृथ्वीवासियों की तरह परमाणु बम और अन्य विस्फोटक पदार्थ बनाने में नहीं लगाया। 


उस ग्रह पर आकर मयंक को लगा कि असली जीवन तो सिम्फ़नी वासी जी रहे हैं। पृथ्वी पर तो सब नरक भुगत रहे हैं। काश! उसकी पृथ्वी भी ऐसी ही होती। जहां खुल कर ताज़ी स्वच्छ हवा में सब सांस ले पाते। 


तभी मयंक को कहीं दूर से एक आवाज़ सुनाई पड़ी,


"उठ बेटा, स्कूल जाने का समय हो गया।‌ कितना सोएगा।" 


मयंक हड़बड़ा कर उठा। अपने आप से बड़बड़ाने लगा,

"ओह! तो सच में ऐसा कोई ग्रह नहीं था। ये मेरा सपना था।" 


मयंक मन ही मन मुस्कुराया और नहाने चला गया। पर उस दिन उसने अपने आप से एक वादा किया कि बड़ा होकर वह एक साइंटिस्ट ज़रुर बनेगा और अपनी पृथ्वी को बचाने की पूरी कोशिश करेगा। और…हो सका तो…सिम्फ़नी ग्रह की खोज भी करेगा।


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