यात्रा
यात्रा
"अरे मानव, कितनी बार कहा तुझे, मुझे तीर्थ यात्रा पर ले चल। पर तेरे पास समय ही नहीं होता।" कुसुम ने झल्लाते हुए कहा।
"माँ, ऑफिस से छुट्टी मिलनी मुश्किल हो जाती है।" अजय ने भी झल्लाते हुए जवाब दिया।
"अच्छा, जब बच्चों और बहू को ले जाना होता है तब तो तुझे छुट्टी मिल जाती है, मेरी बारी में ही तुझे छुट्टी नहीं मिलती।" कुसुम बोली।
"माँ, पिछले साल बहुत मिन्नतें की तब जाकर छुट्टी मिली। आपसे कहा चल लो हमारे साथ पर आप माने नहीं। अब बच्चे थोड़ा ही मंदिरों में घूमने जाएंगे।" अजय बोला।
"क्यों, हम तो जाते थे अपने माता पिता के साथ। और तुम भी तो जाते थे। आजकल के बच्चे अनोखे हैं क्या?"
"माँ वो ज़माना और था, ये ज़माना और है। आप समझ क्यों नहीं रहे?" अजय उठा और अपना बैग उठाकर चला गया।
कुसुम वहीं बैठी बड़बड़ाती रही। कुसुम की पोती जो दसवीं कक्षा में थी, वह यह सब सुन रही थी।
"दादी, आपको तीर्थ यात्रा करनी है ना। मेरे पास एक ज़बरदस्त आइडिया है। आज शाम जब आप अपनी सहेलियों से मिलने पार्क जाओगे तो मुझे भी ले चलना। वहीं मैं आपको अपना आइडिया बताऊंगी। "
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शाम को पार्क पहुंच कुसुम बोली, "अब बोल बिटिया क्या प्लान है?"
"देखिए, जब भी हम कहीं घूमने जाते हैं तो हमें कैसे लोगों का साथ चाहिए होता है?" अनु ने सबसे पूछा।
"ऐसे लोगों का जो…हमारी उम्र के हों या जिनसे हमारी दोस्ती हो।" एक वृद्ध महिला बोलीं।
"बिल्कुल सही आंटी। तो आप सब यदि कहीं घूमने जाएं तो इकठ्ठा जाएंगी तो ज़्यादा मज़े करेंगी या फिर अपने बच्चों और पोते - पोतियों के साथ, जिनका अलग टेस्ट है?" अनु ने कहा।
"हम तो एक साथ एंजॉय करेंगे। जैसे तुम यंग लोग अपने ग्रुप में करते हो।" कुसुम की सहेली बोलीं।
"उफ्फ तू क्या कहना चाहती है अनु?" कुसुम बोलीं
"दादाजी, आप सब मिलकर तीर्थयात्रा के लिए क्यों नहीं जाते? क्यों आप इंतज़ार करते हो कि आपके बच्चे आपको लेकर जाएं। आप सब सक्षम हो, अभी चल फिर लेते हो, तो क्यों दूसरों पर आश्रित होना। इकट्ठा होकर एक गाड़ी कीजिए और जाओ। देखो कितना मज़ा आएगा।" अनु बोली।
सबको उसका सुझाव पसंद आया। सबने उसकी बहुत सराहना की।
तब से कुसुम और उसकी सभी सहेलियों ने मिलकर अनेकों यात्राएं करीं। अपनी हम उम्र दोस्तों के साथ उन्हें मज़ा भी बहुत आता था।
अनु के एक सुझाव ने सबकी परेशानी का हल निकाल दिया।