astha singhal

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फॉर्मूला वन - एक सपना

फॉर्मूला वन - एक सपना

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ज़िन्दगी में हर किसी को अपने सपने पूरे करने का एक मौका ज़रूर देती है। बस, उस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। और बहुत खुशकिस्मत होते हैं वह लोग जिन्हें यह मौका मिलता है। 


यह कहानी है चैतन्य की, जो रेसिंग की दुनिया में अपना नाम करना चाहता था, पर इस खेल के लिए अथाह पैसे की ज़रूरत थी। फॉर्मूला वन रेस बड़े लोगों का शौक था। उसके पिता दयानंद एक बहुत बड़े रेसिंग कम्पनी के मालिक हरीश मल्होत्रा के यहां ड्राइवर का कार्य करते थे। उनकी तनख्वाह से ही उनके घर का खर्चा पानी चलता था। उनका बेटा चैतन्य  एक बहुत ही होनहार छात्र था।‌वह कॉलेज के प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था।‌ दयानंद के बहुत सपने थे अपने बेटे को लेकर। 


पर एक दिन अचानक दयानंद का एक्सिडेंट हो गया। उनका सीधा पांव व हाथ बुरी तरह घायल‌ हो गये। डॉक्टर के हिसाब से अगले एक साल तक वह ड्राइव नहीं कर सकते थे। घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अब घर का खर्चा कैसे चलेगा? यही सोच सबको खाए जा रही थी। 


एक दिन दयानंद के मालिक हरीश ने चैतन्य को ऑफिस में बुलाया। 


"बेटा, मैं जानता हूं यह सही समय नहीं है बात करने का पर…. अब मुझे कोई और ड्राइवर रखना पड़ेगा। तुम्हारे पिताजी को ठीक होने में 1 साल लग जाएगा।" 


"मैं समझ सकता हूं पर क्या मैं अपने पिताजी की जगह पर काम कर सकता हूं?" चैतन्य ने कहा।


"जरूर कर सकते हो अगर तुम को ड्राइविंग आती है।" 


चैतन्य हरीश मल्होत्रा की यहां ड्राइवर की नौकरी करने लगा। साथ-साथ कॉरेस्पोंडेंस से अपनी पढ़ाई भी कर रहा था। हरीश मल्होत्रा चैतन्य की ड्राइविंग से बहुत खुश थे। उनकी हिसाब से वह अपने पिता से ज़्यादा अच्छी ड्राइविंग करता था।


चैतन्य हरीश मल्होत्रा के साथ फॉर्मूला वन के रेसिंग मैदान पर भी जाया करता था। उसे तेज़ गाड़ियों का बहुत शौक था। 


हरीश मल्होत्रा की कंपनी का स्टार रेसर मार्टिन उसका पसंदीदा फॉर्मूला वन रेसर था। मार्टिन भी उसको बहुत पसंद करता था। जब भी वक्त मिलता चैतन्य मार्टिन के साथ फॉर्मूला वन रेसिंग के तरीके सीखता रहता। 


"तुम बहुत अच्छी गाड़ी चलाते हो चैतन्य। एक दिन तुम बहुत बड़े फॉर्मूला वन रेसर बन सकते हो।" मार्टिन हमेशा चैतन्य को कहता था। पर चैतन्य हमेशा उसकी बात हंसी में टाल देता था। पर शायद नियति को भी  यही मंजूर था। 


2 दिन बाद साल की सबसे बड़ी रेसिंग प्रतियोगिता होने जा रही थी। हरीश मल्होत्रा की कंपनी का पूरा पैसा मार्टिन पर लगा हुआ था। यदि मार्टिन इस रेस को जीत लेगा तो हरीश मल्होत्रा की कंपनी सबसे ऊपर पहुंच जाएगी। 


किंतु ठीक रेस से 2 दिन पहले मार्टिन का भयंकर एक्सीडेंट हो गया। अब वह 2 साल तक चल फिर नहीं सकता था।  यह सुन हरीश मल्होत्रा को जबरदस्त झटका लगा क्योंकि यदि मार्टिन रेस में नहीं भाग लेगा तो हरीश मल्होत्रा के सारे पैसे डूब जाएंगे। 


"सर आपका पैसे ना डूबे इसका इलाज है मेरे पास।" मार्टिन में दर्द से कराहते हुए कहा।


मार्टिन ने रेस में उसकी जगह चैतन्य को उतारने को कहा। 


"तुम पागल हो गए हो क्या? चैतन्य को फार्मूला वन के बारे में कुछ भी समझ नहीं है। वह रेस कैसे जीतेगा?" 


"आपके पास और कोई ऑप्शन नहीं बचा है। यदि आपकी कंपनी ने रेस से हाथ वापस खींच लिए तो आपका सारा पैसा वैसे ही डूब जाएगा। तो क्यों ना चैतन्य को एक मौका देकर देख लें।" मार्टिन ने कहा। 


हरीश मल्होत्रा मान गया और चैतन्य को रेस में उतारने का मन बना लिया। पर चैतन्य यह सुनते ही डर गया।


"नहीं सर मैं यह कैसे कर सकता हूं?" उसने मार्टिन से कहा।


"मार्टिन यह तो पहले से ही डरा हुआ है। यह कैसे भाग लेगा? गया मेरा सारा पैसा।" हरीश मल्होत्रा ने अपना सिर पीटते हुए कहा। 


"सर आप चिंता ना करें मैं समझाता हूं इसे।" मार्टिन ने कहा।


"चैतन्य जीवन में ऐसे मौके हर किसी को नसीब नहीं होते। तुम बहुत खुश किस्मत हो कि तुम्हें यह मौका मिला है। मैं जानता हूं कि तुम बहुत अच्छी ड्राइविंग करते हो। और मैं यह भी जानता हूं कि मन ही मन तुम्हारा एक सपना था। एक सफल फॉर्मूला वन रेसर बनने का। आज वह सपना तुम्हारे सामने बाहें फैलाकर खड़ा है। उठो, और जी लो अपने सपने को। अभी नहीं तो कभी नहीं।" मार्टिन ने चैतन्य को समझाते हुए कहा।‌


***********


रेस का मैदान दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। यह देख चैतन्य बहुत विचलित हो गया। उसके मन में बहुत से सवाल उठ खड़े हुए। तभी वहां व्हील चेयर पर बैठ मार्टिन आया। 


"मैं जानता हूं चैतन्य कि तुम बहुत नर्वस फील कर रहे हो। होता है ऐसा जब हम पहली बार कोई काम करने जाते हैं। पर आज का यह दिन तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए अपने अंदर से डर को निकाल दो। बस यह याद रखो कि आज जो मौका तुम्हें मिला है उसको तुमने सफलता में बदलना है।" 


चैतन्य ने मार्टिन को गले से लगाते हुए कहा,"सर आप मेरी हिम्मत हैं। आपको देखकर ही तो मैंने सपने बुनना शुरू किया था। आज मैं आपसे वादा करता हूं कि यह रेस मैं जीत कर ही रहूंगा।" 


रेस प्रारंभ हुई। शुरू में चैतन्य बहुत घबरा रहा था पर फिर उसने हिम्मत दिखाइए और एक के बाद एक राउंड को पार करता चला गया। देखते ही देखते उसने वह रेस जीती ली। 

आज चैतन्य एक बहुत बड़ा फॉर्मूला वन रेसर बन चुका है। उसके माता-पिता को उस पर बहुत गर्व है। हरीश मल्होत्रा की कंपनी ऊंचाइयों को छू रही है। पर सबसे ज्यादा गर्व मार्टिन को चैतन्य पर है। मार्टिन दोबारा रेस के मैदान में कभी उतर नहीं पाया। पर उसने चैतन्य का साथ कभी नहीं छोड़ा। और आज भी उसको फार्मूला वन के हर गुण और तरीकों के बारे में बताता रहता है। और सच्चे गुरु की तरह हमेशा उसका साथ देता है।


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