astha singhal

Children Stories

4.5  

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बच्चे मन के सच्चे

बच्चे मन के सच्चे

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कहते हैं कि बच्चों का दिल साफ होता है। उस साफ दिल पर जो लिख दिया जाए वो जीवन भर के लिए छप जाता है। बच्चे जादू में बहुत विश्वास करते हैं। उन्हें लगता है कि जादू से सब कुछ ठीक किया जा सकता है। ऐसा वह परियों की कहानियां सुनकर सोचते हैं और इस बात को सच मान लेते हैं। पर क्या सच में ऐसा होता है? ये एक छलावा है। देखते हैं बच्चों को इसका एहसास कैसे हुआ।


"चलो सब जल्दी - जल्दी छिप जाओ। मैं बीस तक गिनती करूंगा।" अभिमन्यु ने आंखें बंद करते हुए कहा। 


शाश्वत और श्वेता दोनों छिपने के लिए घर में इधर- उधर भागे। वह दोनों अपने दादाजी के कमरे में पहुंच गए। शाश्वत ने जैसे ही अंदर जाने के लिए दरवाज़ा खोला, श्वेता ने उसे रोकते हुए कहा,"पागल, दादाजी के कमरे में नो - एंट्री है। वह बिमार हैं।" 


"जानता हूं। पर आज वो हैं नहीं। याद नहीं चाचू उन्हें लेकर डॉक्टर के गये हैं। चल अंदर जल्दी।" शाश्वत ने कहा। 


दोनों अंदर घुस छिपने की जगह ढूंढ रहे थे कि अचानक उन्हें एक पुराना संदूक दिखा। वह इतना ऊंचा था कि उसमें आसानी से घुसा जा सकता है। दोनों ने एक दूसरे को देखा और उसे खोल उसमें घुस गये।शाश्वत की जेब में लेज़र लाइट थी। उसने उसे निकाल जला कर इधर उधर घुमाया। श्वेता को बहुत डर लग रहा था। पर शाश्वत ने उसे हिम्मत रखने को कहा। दोनों उत्सुकता वश दादाजी का छिपा खज़ाना देखने लगे। देखते- देखते उनकी नज़र एक चमकती चीज़ पर पड़ी। श्वेता ने डरते-डरते उसे उठाया और उसे उलट-पलट कर देखने लगी। 


"शाश्वत भैया, ये तो…." श्वेता कुछ बोले इससे पहले शाश्वत बोल पड़ा, "चि…चिराग है!" 


"हमें अभिमन्यु को दिखाना चाहिए। उसे साइंस अच्छी आती है ना।" श्वेता ने भोलेपन से कहा। 


शाश्वत ने उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा,"पागल है क्या? चिराग का साइंस से क्या लेना देना?" 


दोनों चुपचाप संदूक से बाहर आए और कमरे से बाहर निकल गये। अभिमन्यु उन्हें रसोईघर में ढूंढ रहा था। दोनों ने चुपचाप उसे इशारे से अपने कमरे में आने को कहा।


"ये क्या बात हुई? मैं तुम्हें इतनी देर से ढूंढ रहा था और तुम दोनों ना जाने कहां छिपे बैठे थे। मैं नहीं खेलूंगा आगे से।" अभिमन्यु कमरे में आते ही चिल्लाने लगा। 


"शशशशश……चुप कर अभि…. चुप बिल्कुल। देख हमें दादाजी के कमरे से क्या मिला है?" शाश्वत ने अभिमन्यु को चिराग दिखाते हुए कहा।


"क्या? तुम दोनों दादाजी के कमरे में छिपने गये थे? किसी ने देखा नहीं?" 


"उफ्फ…अभि.. भैया…हम क्या कह रहे हैं वो तो सुनो।" श्वेता ने चिढ़ते हुए कहा। 


अभिमन्यु के शांत होने पर शाश्वत ने उसे पूरी बात बताई।


अभिमन्यु ने चिराग हाथ में लेते हुए कहा,"हमारे दादाजी के पास चिराग है! कितना रोमांचक लग रहा है ये सुन कर। पर क्या ये कोई जादुई चिराग है?" 


"यही तो पता लगाना है भैया!" श्वेता बोली। 


"एक काम करते हैं आज रात सबके सोने के बाद पीछे आंगन में चलकर इसे रगड़ कर देखेंगे। हो सकता है जादुई चिराग हो!" अभिमन्यु बोला।


तीनों में यही तय हो गया। रात को सबके सोने के बाद वह तीनों पीछे आंगन में चिराग लेकर पहुंचे। अब सवाल यह था कि घिसेगा कौन? क्योंकि शाश्वत सबसे बड़ा था तो दोनों ने उसे ही चिराग को रगड़ने को कहा। 


शाश्वत ने डरते-डरते चिराग रगड़ना शुरू किया पर कुछ नहीं हुआ। उसने एक बार फिर कोशिश की। पर कुछ नहीं हुआ। अभिमन्यु ने शाश्वत से चिराग लेकर रगड़ा पर नाकामयाब रहा। उसने गुस्से में आकर चिराग को‌ पानी से भरी बाल्टी में डाल दिया। तभी अचानक बाल्टी में से धुआं उठने लगा।‌ और देखते ही देखते एक खूबसूरत सी जिन उसमें से प्रकट हुई। 


तीनों बच्चों के मुंह खुले हुए थे। उन्हें इस रुप में देख जिनी हंसने लगी। 


"आप सच में जादू करती हो?" श्वेता ने पूछा।


"बिल्कुल! मांगों जो मांगना है!" 


"आइसक्रीम, चॉकलेट, कोल्डड्रिंक" तीनों ने एक साथ अलग अलग फरमाइश कर डाली।


"एज़ यू से मास्टर,!" और ये कह कर जिनी ने तीनों चीज़ें ताली बजाकर उनके सामने पेश कर दीं। 


तीनों ने शौक से अपनी पसंद की चीज़ें खाईं। 


"जिनी, आप हमारी सारी बातें मानोगे!" शाश्वत ने कहा।


"मास्टर, मैं कोई ऐसी बात नहीं मानती जिससे किसी का नुक़सान हो। बाकी सब फरमाइश पूरी करुंगी।" 


तीनों खुश हो गए। और तय हुआ कि चिराग को अपने स्कूल बैग में छिपा कर रखा जाए। 


अब तो तीनों की ज़िंदगी ही बदल गई। जब भी उन्हें कुछ खाना होता तो वह चिराग पर पानी डाल जिनी को बुलाते और खाते। 


एक दिन शाश्वत ने जिनी को चिराग से बुलाया और कहा,"जिनी मेरा होमवर्क कर दो।" 


"सॉरी मास्टर। नहीं कर सकती।" 


"पर क्यों? तुम तो हमारा हर हुक्म मानती हो‌ ना?" शाश्वत को गुस्सा आ गया। 


"मास्टर, इसमें आपका नुकसान है।‌ मैं आपका काम करुंगी तो आप कैसे सीखेंगे?" 


कुछ दिनों पश्चात दादाजी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई। उनको हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। पर डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। डॉक्टर बोले, "अब कोई चमत्कार ही इन्हें बचा सकता है।" 


जब ये बात बच्चों ने सुनी तो शाश्वत ने कहा,"हमारे पास तो जिनी है ना। वो चमत्कार करेगी और दादू ठीक हो‌ जाएंगे।"


"हां चलो जिनी को बुलाते हैं।" अभिमन्यु ने कहा।


तीनों ने चिराग निकाला और‌ जिनी को बुला लिया।


"यस माई लिटिल मास्टर्स। क्या खाना है?" 


"जिनी आज कुछ खाना नहीं है। हमारे दादाजी बहुत बिमार हैं। डॉक्टर कहते हैं कि अब कोई चमत्कार ही उन्हें बचा सकता है। प्लीज़, चमत्कार कर हमारे दादाजी को बचा लो।" शाश्वत ने कहा।


"सॉरी मास्टर। ये नहीं कर सकती।" 


"पर क्यों? इसमें किसका नुकसान है?" श्वेता बोली।‌


"मैं चमत्कार से किसी की जान नहीं बचा सकती। ये सृष्टि के खिलाफ है। सृष्टि के कुछ नियम होते हैं। उसे कोई नहीं तोड़ सकता। मैं भी नहीं।" जिनी ने अपनी असमर्थता का कारण बताया।


"ये ग़लत है। जादू से सब कुछ हो सकता है। तुम्हें ये करना ही होगा।" अभिमन्यु बोला।


'मै जीवन-मृत्यु  के कार्य में काम नहीं अड़ा सकती। यदि मैंने ऐसे किया तो …. मैं ही भस्म हो जाऊंगी।'"


दो दिन में दादाजी मृत्यु को प्राप्त हो गये। तीनों बच्चों को तब समझ में आया कि क्यों दादाजी ने इस चिराग को संदूक में रख रखा था। क्योंकि ये केवल एक छलावा मात्र है। बच्चों ने फैसला किया की चिराग को दादाजी के शरीर के साथ ही जला देंगे।


शाश्वत ने जब मुखाग्नि दी तब उसने चुपके से चिराग भी डाल दिया। आग में डलते ही जिनी आज़ाद हो गयी और अपने लोक वापस चली गई। 



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