astha singhal

Abstract Horror Action

4.6  

astha singhal

Abstract Horror Action

उस हवेली का रहस्य

उस हवेली का रहस्य

14 mins
738


मैं जयपुर के सरकारी दफ्तर में कलेक्टर पद पर हूं। हाल ही में मेरा तबादला बीकानेर में हो गया। थोड़ी मायूसी थी इस तबादले की खबर से। वैसे तो प्रमोशन के साथ तबादला हुआ था पर जयपुर छोड़कर जाने का मन नहीं था। बहुत ही खूबसूरत शहर है। कितनी यादें जुड़ी हैं इस शहर से। सुमन को ब्याह कर इसी शहर में लाया था चार साल पहले और मेरी नन्ही सी आलिया भी इसी शहर में पैदा हुई थी। ओह मैं चाहता था कि मेरी आने वाली अगली संतान भी यहां ही होती। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था।

" विनय, क्यों दिल छोटा कर रहे हो। यह क्या कम अच्छी खबर है कि तबादले के साथ प्रमोशन भी मिला है। देखा, हमारा आने वाला नन्हा राजकुमार कितना भाग्यशाली है।"

सुमन ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा।

मैं मुस्कुरा दिया। पर ना जाने क्यों एक अनजाना सा डर मन में घर कर गया था कि सब कुछ सही नहीं हो रहा।


बहरहाल वह दिन भी आ गया जब भारी मन से जयपुर को अलविदा कहना पड़ा। बीकानेर का वह सरकारी क्वार्टर जयपुर से बड़ा था। और बच्चों के खेलने की जगह भी ज़्यादा ही थी।

" देखा विनय बाबू, हमने कहा था ना कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। कितना खूबसूरत क्वार्टर है।" सुमन घर को निहारते हुए बोली।

"हम्म, है तो । पर......" मैं कुछ बोलता सुमन मेरी बात काटते हुए बोली," पर वर कुछ नहीं। आप बेकार ही परेशान हो जाते हो।"

सुमन की बात में दम था। मैं शायद बेकार ही परेशान हो रहा था पर मैं उसे समझा नहीं पा रहा था कि एक अनजान सा डर मेरे अंदर समाया हुआ था। पता नहीं उस जगह से कैसा अजीब सा रिश्ता था । उस जगह पर मेरा दम घुटता था। 

ठीक हमारे क्वार्टर के सामने एक बड़ा सा मैदान था। और उस मैदान के आगे एक बहुत ही पुरानी हवेली थी। उस हवेली को सब लाल हवेली कहकर संबोधित करते थे क्योंकि उसका पूरा रंग लाल था। जब भी उस हवेली को देखता था तो एक अजीब सा खिंचाव उस हवेली की तरफ महसूस होता था। ऐसा लगता था कि वह हवेली मुझे पुकार रही है। 

एक दिन रात को अचानक मेरी आंख खुल गई। मुझे किसी के बहुत तेज़ - तेज़ चीखने की आवाज़ आ रही थी।

मैंने उठकर देखा तो सुमन आराम से सो रही थी और हमारी गुड़िया भी आराम से उसके साथ सो रही थी। फिर मैंने खिड़की से बाहर झांक कर देखा। वह आवाज़ बाहर से ही आ रही थी। कोई चीख कर किसी को पुकार रहा था पर किसको यह ढंग से सुनाई नहीं दे रहा था। मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगा कि वह आवाज़ सामने वाली लाल हवेली से आ रही थी। मैं बहुत देर तक उस हवेली को देखता रहा और वह आवाज़ तेज़ होती चली गई और मुझे अपनी तरफ खींचने लगी। तभी सुमन जाग गई और बोली, " आप यहां क्या कर रहे हैं? चलिए आइए सो जाइए ! फिर सुबह जल्दी उठकर दफ्तर भी तो जाना है।"

उसकी आवाज़ जैसे मुझे किसी अनचाही शक्ति की पकड़ से वापस खींच लाई। मैं जाकर सो गया।


सारा दिन दफ्तर में मैं उस अंजान आवाज़ के बारे में सोचता रहा। क्या वह सच में आ रही थी या मेरा भ्रम था? मैं किसी से इस बारे में बात भी नहीं करना चाहता था। नया दफ्तर था नये लोग थे। पता नहीं क्या सोचे मेरे बारे में। उस दिन शाम को जब मैं दफ्तर से घर लौट रहा था तो मेरी गाड़ी अचानक उस हवेली के सामने ही खराब हो गई। ड्राइवर ने उतर कर देखा तो गाड़ी का टायर पंचर हो गया था। उसने मुझसे कहा कि उसे 15 मिनट लगेंगे इसे ठीक करने में। मैंने उसे कहा कि वह चिंता ना करें और आराम से अपना काम करे। घर पास में है मैं यहां से चलकर चला जाऊंगा।

मैं धीरे-धीरे घर की तरफ चलने लगा। रास्ता हवेली से होकर ही गुजरता था। जैसे ही हवेली के सामने पहुंचा तो ना जाने क्यों मैंने सिर उठाकर हवेली की तरफ देखा।

जब भी उस हवेली को देखता एक अजीब सा खिंचाव महसूस होता था। और आज जब हवेली के सामने खड़ा हुआ था तो वह खिंचाव और भी ज्यादा महसूस हो रहा था। उस हवेली को देख ऐसा लगता था कि जैसे मैं उसके चप्पे-चप्पे से वाकिफ हूं। तभी मुझे किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी। मैंने इधर उधर देखा तो मुझे छत पर एक परछाईं भागती नज़र आई। मेरे कदम खुद-ब-खुद हवेली के अंदर चले गए। ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे हवेली के अंदर खींच लिया हो। मैं सीधे छत  की तरफ भागा। छत पर पहुंचकर मुझे ताज्जुब हुआ कि मुझे छत पर आने का रास्ता कैसे मालूम था? मैंने चारों तरफ नज़र घुमाकर देखा पर मुझे कोई नज़र नहीं आया। क्या वह परछाईं मेरा भ्रम थी? यह सोचते सोचते मैं छत से नीचे उतरने लगा। 

तभी अचानक मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मुझे ज़ोर से धक्का दिया। मुझे संभलने का मौका भी नहीं मिला और मैं सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ नीचे फर्श पर गिर गया। मेरे हाथ पैर बुरी तरह छिल गए और काफी चोटें आईं। मैं जैसे तैसे अपने आप को संभालता हुआ था और हवेली से बाहर निकलने लगा। तभी सामने की दीवार पर लाल रंग से किसी ने बड़े अक्षरों में लिखा 'बदला' ।पर जैसे ही मैं उसके पास गया वह शब्द अपने आप मिट गए। फिर पलट कर सामने वाली दीवार पर देखा तो वहां लिखा हुआ था 'खून का बदला खून'।


मैं तेज कदमों से भागता हुआ हवेली से बाहर आ गया और अपने क्वार्टर पर पहुंच गया। मेरे शरीर पर इतनी चोटें देख सुमन हैरान हो गई और भागते हुए मेरे पास आई,

" यहां आपको क्या हुआ विनय?  कहां से गिर गए आप?"

यदि मैं सुमन को सच बता देता तो वह डर जाती। और उसकी ऐसी हालत में मैं उसे कोई दिमागी परेशानी नहीं देना चाहता था। "वो में दफ्तर की सीढ़ियों से गिर गया था"

मैंने उससे नजरें चुराते हुए कहा।

"तो वहीं पर आपको पट्टी करा लेनी चाहिए थी? आप भी अपना ध्यान बिल्कुल नहीं रखते। यहां बैठ जाइए। मैं डॉक्टर को अभी फोन कर देती हूं।" 

डॉक्टर आकर मेरी मरहम पट्टी करके चला गया। मैं बिस्तर पर बैठा हुआ था कि सुमन ने आकर मुझे हल्दी वाला दूध पकड़ाया और इशारे से पूरा खत्म करने को कहा और अपना काम  करने चले गयी। मैं खिड़की से लगातार उस लाल हवेली को देख रहा था। आज जो कुछ उस हवेली में हुआ उसने मेरी नींद उड़ा दी थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह कौन था जिसने मुझे धक्का दिया? क्यों किसी ने बदला जैसे शब्द दीवार पर लिखे? और कैसे वह शब्द मेरे वहां पहुंचते ही अपने आप गायब हो गए? 

रात गहरी हो चुकी थी पर मेरी आंखों में नींद नहीं थी। मैं सिर्फ उस हवेली को  देख रहा था। तभी मुझे उस हवेली से फिर से किसी के चीखने की आवाजें आने लगीं। धीरे-धीरे वह आवाज़ें से तेज होती चली गई और मुझे साफ-साफ सुनाई भी देने लगीं। 

" मुझे छोड़ दो,  मुझे जाने दो मुझे मत मारो, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं , मुझे छोड़ दो मैं किसी की अमानत हूं।" अब यह वाक्य मुझे साफ-साफ सुनाई पड़ने लगे। यह किसी लड़की की आवाज़ थी। पर किसकी आवाज़ है ?वह लड़की मुझसे क्या चाहती थी? क्या उसने ही मुझे धक्का दिया था? क्या उसने ही दीवारों पर बदला लिखा था? क्या वह मुझसे बदला लेना चाहती थी? यह सब सोचते सोचते सुबह हो गई।

सुबह सुमन के मना करने के बावजूद भी मैं दफ़्तर चला गया। क्योंकि मैं उस हवेली से कुछ समय के लिए दूर रहना चाहता था। ऑफिस में थोड़ा सुकून तो मिला पर दिन गुज़र कर रात का साया फिर से उसी प्रश्न पर आकर रुका था। आज भी मैं खिड़की के पास बैठ उस हवेली को देख रहा था। पर आज की रात एक अजीब सी शांति थी चारों ओर। आज रात भर मुझे फिर से नींद नहीं आई।


अगले दिन शाम को दफ्तर से निकलने से पहले मुझे सुमन का फोन आया," विनय जल्दी से घर पर आ जाओ,  आलिया कहीं भी नहीं मिल रही है। मुझे बहुत डर लग रहा है। तुम जल्दी से घर आओ।" सुमन कांपते हुए बोल रहे थी।

मैं तुरंत घर पहुंचा और सुमन से पूछा," कहां है आलिया?  कहां गई थी वह? तुम क्यों नहीं थी उसके साथ?"

मेरे प्रश्नों का सुमन ने कोई उत्तर नहीं दिया बस रोती रही। मुझे भी ख़्याल आया कि मैंने सुमन पर ज़बरदस्ती ही प्रश्नों की बौछार कर दी। 

सुमन ने मुझे बताया कि वह आलिया के साथ ही थी। गेंद से खेल रही थी। तभी गेंद हवेली की तरफ चली गई। इससे पहले कि सुमन आलिया को रोकती आलिया भाग के हवेली की तरफ चली गई। सुमन उसके पीछे भागी पर जब तक वह वहां पहुंची आलिया उसे कहीं नजर नहीं आयी।

मैं शायद समझ गया था कि हुआ क्या था। मैंने सुमन से कहा कि वह बाहर खड़ी रहे। मैं हवेली के अंदर जा रहा हूं। मैंने उसे समझाया कि चाहे जितना भी शोर हो, उसे कितनी भी चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई पड़े वह अंदर नहीं आएगी। सुमन प्रश्न भरी निगाहों से मुझे देख रही थी। पर मेरे पास उसे समझाने का वक्त नहीं था। मैंने उसे आश्वासन दिया कि वह मुझ पर भरोसा रखे। मैं हमारी बिटिया को लेकर जल्द वापस लेकर आऊंगा।


मैं हवेली के अंदर पहुंचा। तभी किसी की हंसी की आवाज़ मुझे सुनाई पड़ी। फिर उस आवाज़ में कहा, "आखिर आ ही गए तुम।"


अंदर ही अंदर मुझे डर लग रहा था। पर मैं दृढ़ता के साथ खड़ा रहा। खड़े-खड़े मैंने चारों तरफ नज़र घुमाई और फिर बोला," आंख मिचोली ही खेलोगी या काम की बात भी करोगी। तुम्हें मैं चाहिए था तो लो मैं आ गया मैं जानता हूं मेरी बेटी तुम्हारे कब्ज़े में है उसे छोड़ दो।"

मेरी इतना कहते ही उस हवेली के बड़े से कमरे में शांति छा गई। ऐसा लग रहा था मानो दूर से कोई उसका मुआयना  कर रहा हो। मेरी आंखें भी कमरे की हर जगह को ताड़ रहीं थीं।

कमरे के सन्नाटे को पायल की आवाज़ ने तोड़ा , छम, छम छम ,छम। आवाज हवेली की गैलरी से आ रही थी और  धीरे-धीरे नीचे कमरे की तरफ बढ़ती जा रही थी।

"मैं फिर से कह रहा हूं कि मेरी बेटी को छोड़ दो। तुम्हें मुझसे काम है ना ? मुझ से बदला लेना है तो लो पर उस मासूम को छोड़ दो।" मैं चिल्ला कर बोला।

"मासूम, हर बच्ची अपने पिता के लिए मासूम ही होती है। पर तुम जैसे दरिंदे उसकी मासूमियत को कुचल देते हैं। तब उसके पिता पर क्या गुज़रती है इसका अंदाज़ा है क्या तुम्हें?" वह आवाज़ चीख कर बोली। 

मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उस आवाज ने मुझे दरिंदा क्यों कहा? मैंने तो कभी भी किसी का नुकसान नहीं किया। 

" तुम क्या कह रही हो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। तुम्हें मुझे यह बताना होगा कि तुम्हारी मुझ से क्या दुश्मनी है?" मैंने उसे समझाते हुए कहा

तभी चारों तरफ घूंआ ही धूंआ हो गया ।और उस धूंए के बीच में से मुझे एक लड़की चलकर अपनी तरफ आती दिखाई दी। 

होठों को चेहरे तक घुंघट में दबाए, सफेद और लाल रंग का गहरी लहंगा चोली पहने हुए, जिसकी किनारे गोटे से पटे हुए थे, गली में आभूषणों की बड़ी सी माला, दोनों हाथों में गहरे हरे रंग की चूड़ियों की बड़ी सी लड़ी और होठों पर कोई भी जज़्बात नहीं। उसकी पायल की छम छम रात के सन्नाटे में गूंज रही थी।


उसके कदम मुझ से 1 फुट की दूरी पर आकर ठहर गए। घूंघट के पीछे से उसकी नज़र मुझे ही देख रही थी। 

" कुंवर अमर प्रताप सिंह, तो आपको कुछ भी याद नहीं। शायद मुझे ही याद दिलाना पड़ेगा। "

उस औरत ने एक चुटकी बजाई और बोलना प्रारंभ किया।

जैसे जैसे वह बोलती जा रही थी वैसे वैसे वह घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने मुझे नज़र आने लगा।

" देखो अमर प्रताप सिंह अपने आप को देखो। इस विशाल हवेली के इकलौते वारिस घमंड और नशे में चूर।

कभी किसी गांव वाले को इंसान तो समझा ही नहीं तुमने। तुम्हारे लिए तो सब तुम्हारे नौकर थे। जो तुम्हारे एक इशारे पर अपनी जान तक दे दें। पर बदले में तुम उन्हें सम्मानजनक मौत भी नहीं देते थे। तुम्हारे गंदे इरादों और गंदी निगाहों से गांव की हर लड़की परेशान थी। पर मेरी बदकिस्मती थी कि अपने बापू के कहने पर मुझे तुम्हारी हवेली में दासी का काम करना पड़ा। शुरू से ही तुम्हारी निगाहें थी मुझ पर। और उस दिन तुम्हें मौका मिल ही गया। तुम जैसे हवस के लालची इंसान ने कितनी दरिंदगी से मुझे इस्तेमाल किया। सुनो कैसे मैं चीख रही थी। चिल्ला रही थी। मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो। पर तुमने मेरी एक ना सुनी और अपनी मनमानी करते रहे। तुम जानते थे कि मेरा विवाह तय हो चुका है फिर भी तुमने ऐसी शर्मनाक हरकत करी। मैं चिल्ला कर कह रही थी कि मैं किसी और की अमानत हूं पर तुमने मेरी एक नहीं सुनी।

देखो अमर प्रताप सिंह, देखो, कैसे तुमने अपनी हवस पूरी होने के बाद मुझे मार डाला और इसी हवेली में गाढ़ दिया। 

मेरे बापू रोज़ आकर तुम से मेरे बारे में पूछते गिड़गिड़ाते, रोते पर तुमने उन पर ज़रा भी इंसानियत नहीं दिखाई। और उन्हें कोड़े मार वहां से निकाल दिया।"


मेरी आंखों के सामने जैसे वह सारे दृश्य एक एक कर दिखाई दे रहे थे। मैं हतप्रभ था। हताश था कि मेरा ऐसा भी कोई जन्म था जब मैंने दरिंदगी की सारी हदों को पार कर दिया था। मैंने उस महिला के आगे हाथ जोड़ें और बोला, " मुझे माफ कर दो गौरी, मैं तुम्हारा गुनहगार हूं ।तुम्हारा कातिल हूं। पर यह सब कई वर्षों पहले के जन्म की बात है।  मैं आज वह नहीं हूं जो तुम मुझे समझ रही हो। इस जन्म में मैं विनय हूं। मेरा एक छोटा सा परिवार है। और मैंने कभी भी किसी को जानबूझकर हानि नहीं पहुंचाई है। मेरा दिल बिल्कुल साफ है और नेक है।"

" पर मैं तो जन्मों से तुम से बदला लेने के लिए यहां प्यासी भटक रही हूं । मुझे तुमसे बदला चाहिए। तभी मेरी आत्मा को मुक्ति मिल सकेगी। और वह बदला मैं तुम्हारी बेटी को तुम्हारी ही आंखों के सामने मार कर लूंगी। तुम्हें तड़पता देख मुझे बहुत खुशी और सुकून मिलेगा। तुम्हें भी तो पता चलना चाहिए कि बेटी की मौत का दर्द क्या होता है।" 


"नहीं, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं। मेरी बेटी को मेरे पिछले जन्मों के गुनाहों की सज़ा मत दो। वह मासूम है।

तुम्हारी दुश्मनी मुझसे है ना तो यह लो मैं तुम्हारे सामने हाज़िर हूं । तुम मुझे मार कर जो सज़ा देना चाहती हो दे दो।  पर मेरी बेटी को मुझ से मत छीनो।" मैंने गिड़ गिड़ाते हुए उससे कहा। तभी सुमन अंदर आ गई और वहां का नज़ारा देखकर बेहोश सी हो गई। मैंने दौड़कर सुमन को संभाला और किसी तरह उसको होश में लेकर आया।

" यह सब क्या चल रहा है विनय? इस औरत ने हमारी बेटी को क्यों हवा में लटका रखा है?" सुमन ने डर से चीखते हुए कहा।

" सुमन मैंने तुम्हें अंदर आने से मना किया था फिर तुम क्यों आईं?" 

" तुम्हारे और आलिया के लिए। मैं तुम दोनों को कैसे किसी संकट में अकेला छोड़ सकती हूं।"

" तुम यहां से चली जाओ सुमन मैं वादा करता हूं कि तुम्हारी बिटिया तुम्हारे पास सही सलामत पहुंच जाएगी।"


तभी सुमन ने उस औरत के आगे हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाते  हुए ज़मीन पर बैठ गई और बोली, " एक मां तुम से अपनी बेटी की जिंदगी की भीख मांग रही है। तुम भी तो किसी की बेटी रही होगी। प्लीज़ मेरी बेटी मुझे लौटा दो।" 

अचानक गौरी ने आलिया को नीचे उतार दिया और सुमन ने आलिया को अपनी गोद में उठा लिया।

" एक मां की पुकार को बेटी कभी अनदेखा नहीं कर सकती। चली जाओ अपनी बेटी को लेकर यहां से।" गौरी ने रौद्र रूप धारण करते हुए बोला।

" चलो विनय,  जल्दी से यहां से चलते हैं।" सुमन ने मेरा हाथ पकड़ मुझे खींचते हुए बोला। पर मैंने उससे अपना हाथ छुड़ा लिया और कहा," सुमन अभी तुम्हें यहां से अकेले ही जाना होगा मैं यहां से नहीं जा सकता। तुम्हें आलिया और हमारे होने वाले बच्चे की कसम है तुम एक मिनट भी यहां नहीं रुकेगी और सीधे क्वार्टर की तरफ चली जाओगी।" मैंने सुमन और आलिया को गले लगाते हुए कहा। शायद मैं उन्हें आखिरी बार गले लगा रहा था।


सुमन आंखों में आंसू लिए आलिया को गोद में उठा हवेली से बाहर चली गई। मैं जमीन पर नतमस्तक हो गौरी के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गया और बोला, "आज तुम्हें पूरी आज़ादी है गोरी। मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि तुमने मेरी बेटी को छोड़ दिया। अब तुम जिस तरह से भी मुझे सज़ा देना चाहती हो दे दो। फिर चाहे इस सजा में मुझे अपनी जान ही क्यों ना गंवानी पड़े। अगर इससे तुम्हें मुक्ति मिलती है तो मैं यह भी करने को तैयार हूं। पर मेरे उस जन्म में किए गए कुकर्म को यदि हो सके तो क्षमा कर देना।" मैं आंख बंद कर हाथ जोड़ ज़मीन पर बैठा रहा।


अगले दिन सुमन घर के दरवाजे पर बैठी हुई थी। शायद रात भर मेरा इंतजार वहीं बैठ कर कर रही थी।

मैंने उसके सर पर हाथ फेरा तो वह हड़बड़ा कर उठ गयी और मुझे देखते हैं मेरे गले लग रोने लगी।

मैं उसे घर के अंदर ले गया और आराम से बैठा कर उसकी प्रश्न भरी निगाहों को सारा किस्सा सुना कर शांत किया।

" उसने तुम्हें माफ कर दिया ना विनय?" सुमन ने मेरे गालों को छूते हुए बोला।

" यह तो मुझे नहीं पता सुमन। पर यदि आज मैं तुम्हारे सामने जिंदा वापस आया हूं तो उसकी एक वजह तुम हो।

मेरे उस जन्म में तुम भी थीं। तुम गौरी की बहुत ही अच्छी सहेली थी। गौरी अपनी सहेली से उसका पति और बच्चा नहीं छीनना चाहती थी। शायद इसलिए उसने मुझे छोड़ दिया।" 

मैंने और सुमन ने हवेली की तरफ देखा और हाथ जोड़ गौरी को श्रद्धांजलि दी। कोहरे की वो रात छट चुकी थी। अब सब तरफ उजाला ही उजाला था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract