मेहनत का जादू
मेहनत का जादू
मगन एक छोटे से गांव में रहता था। उसके पिता के पास थोड़ी बहुत ज़मीन थी जिसपर खेती कर वह अपनी गुज़र बसर करते थे। पर मगन कभी भी अपने पिता के साथ खेती के काम में हाथ नहीं बटाता था। उसे तो शहर जाकर कमाने का भूत सवार था। मगन को लगता था कि जिस तरह गांव के और लड़के अपनी किस्मत आजमाने शहर गये और सफल हुए उसी तरह उसके हाथ भी जादू से कोई नौकरी लग जाएगी और वह भी पैसे कमाने लगेगा।
"अरे बेटा, शहर में पैसा कमाने के लिए जादू नहीं बल्कि बहुत मेहनत लगती है। तू तो इतना पढ़ा लिखा भी नहीं है कि कहीं नौकरी के लिए आवेदन दे सके।" मगन के पिता उसे समझाते हुए बोले।
"आप नहीं जानते पिताजी, मेरा तो अब शहर जाकर ही कुछ हो सकता है। राजन को देखो, कितना बढ़िया कमा रहा है। चाल ही बदल गई उसकी। वो कह रहा था कि शहर में ऐसा जादू है कि हर कोई अमीर बन जाता है।"
"मेरे साथ खेतों पर काम कर। ये जादू तो तू यहां भी पैदा कर सकता है। शहर जाने की क्या ज़रूरत है।"
पर मगन नहीं माना और ज़िद्द कर मुम्बई शहर के लिए रवाना हो गया। मुम्बई शहर की चकाचौंध ने मगन को बहुत आकर्षित किया। पर यह आकर्षण क्षण भंगुर था। वह अपने जिस दोस्त के दम पर मुम्बई आया था वह उसे लेने स्टेशन पहुंचा ही नहीं। अब इतने बड़े शहर में एक गांव का देहाती अकेला पड़ गया। उसे समझ नहीं आया कि वह कहां जाए।
किसी तरह उसने एक रैन बसेरा में आश्रय लिया। वहां के हालात से अच्छी तो उसके गांव की झोंपड़ी थी। पर अब तो उसे यहीं जीना था। जिस जादू की तलाश में वह शहर आया था वो छूमंतर हो गया था।
एक हफ्ते की कड़ी मेहनत के बाद एक कंस्ट्रक्शन साइट पर उसे ईंटें ढोने का काम मिला। जैसे तैसे उसने तीन महीने वह काम किया और कुछ पैसे बचाए और अपने गांव वापसी का टिकट कटवाया।
जब वह गांव पहुंचा तो अपने पिताजी के गले लग कर बहुत रोया।
"आप ठीक कहते थे पिताजी कि असली जादू मेहनत में है। और वह मेहनत हमें उस काम में करनी चाहिए जो हमें आता है। आज से मैं खेतों पर पूरी मेहनत करुंगा और मेहनत के जादू से तरक्की करुंगा।"