बड़ी हवेली - 4
बड़ी हवेली - 4
कमांडर इन एक्शन -
तनवीर और अरुण अपने सामानों को अपने कैबिन में रखते ऊपर डेक पर आ गए जहाज से समुद्र का मनोरम दृश्य उनके दिलों को लुभा रहा था, साथ में विशाल बॉम्बे शहर जो दूर से भी उतना ही सुन्दर था जितना समुद्र से दिख रहा था, तभी उनके पास कैप्टन आता है और उनसे पूछता है "तनवीर आपके साथ जो ताबूत है, वो क्या काफ़ी पुराना है, इसकी क्या कोई खास डिमांड है विदेश में, जो डॉक्टर इसे रिसर्च के लिए मंगवाया है", कैप्टन उनकी तरफ आश्चर्य के भाव से देखता है।
तनवीर उसका जवाब देता है "जी हाँ, ये डॉक्टर ज़ाकिर को एक पुरातात्विक खोज में मिला था, लंदन जाने से पहले उन्होंने मेरे वालिद से इसे किसी तरह वहां भिजवाने के लिए बोला था, पर मेरे वालिद की तबीयत नासाज़ हो गई, इसलिए उन्होंने मुझे इसे डॉक्टर तक पहुंचाने के लिए कहा था, डॉक्टर इसपर अपनी रिसर्च अधूरी ही छोड़ गए थे ", तनवीर ने बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल दिया और कैप्टन ने उसकी बात मान ली।
फ़िर कैप्टन ने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा" हमारे जहाज के कुछ नियम हैं, सुबह, दोपहर, रात के भोजन के लिए डाइनिंग हॉल में ही आना होगा, सफ़र लम्बा है अगर आप लोग चाहेंगे तो हमारे काम में हाथ बंटा सकते हैं, अब ज़रा मेरे साथ मेरे कैबिन में आइए, वहाँ चलकर हम पैसों का लेन देन कर लेते हैं", कैप्टन उन्हें अपने साथ चलने का इशारा करते हुए कहता है और ऊपर अपने कैबिन में ले जाता है।
वहाँ पैसों का लेन देन कर के दोनों फ़िर से डेक पर आ जाते हैं, जहाँ समुद्री यात्रा का दोबारा लुत्फ़ उठाने लगते हैं, खुशी के पल बिताते हुए वो दोनों जहाज में मौजूदा सभी कर्मचारियों से मुलाकात कर लेते हैं और जहाज पर उनके काम को लेकर थोड़ी जानकारियां भी इकट्ठा कर लेते हैं। जहाज पर पहला दिन यूँ ही बीत जाता है।
अगले दिन सुबह होते ही दोनों डेक पर सुबह की परेड के लिए इकट्ठा होते हैं, उसके बाद उन्हें नाश्ता मिलता है, मेस में नाश्ता ख़त्म करते ही ऊपर के डेक की सफ़ाई का काम उन्हें दिया जाता है, जहाज के फर्श से शीशे तक उन्हें साफ़ करने के लिए दिए गए, नवाब होते हुए भी तन्नू ने जहाज के कड़े नियमों का पालन किया क्यूँकि यह उस जहाज के कर्मियों की दिन चर्या का हिस्सा था, हर रोज़ उन्हें अपनी अपनी ड्यूटी बदलनी पड़ती थी। आज अगर सफ़ाई का काम है तो कल हो सकता है मेस में खाना बनाने में मदद करना पड़े, इसलिए दोनों ने ऊपर के डेक की सफ़ाई मन लगाकर की। देखते ही देखते दिन बीत गया शाम होते ही नहा धोकर, अपने कैबिन में दोनों आराम करने लगे।
"शुक्र है मैं अपने साथ बैग में छुपा कर दो स्कॉच की बोतल लेकर आया था, रोज़ाना काम के बाद दो दो पेग पी लिया जाएगा, ये देखो बोतल", अरुण कहते ही बैग से एक बोतल स्कॉच की निकालता है, तनवीर भी थकान मिटाने के लिए हामी भर देता है। अरुण कॉफी पीने वाले दो स्टील मग में एक एक लार्ज पेग बनाता है और दोनों उन्हें टकराने के बाद पीने लगते हैं। एक ही सांस में दोनों उस बड़े स्टील के मग खाली कर देते हैं।
"आह! बॉटम्स अप का मज़ा ही कुछ और है एक ही सिप में खाली, फिर बच्चा लोग बजाओ ताली, न चखने की ज़रूरत न किसी चीज़ की, वैसे मेरे बैग में भुने चने हैं, लो तुम भी खाओ", अरुण अपने बैग से एक छोटा टिफिन बॉक्स निकलता है जिसमें भूने चने भरे हुए थे, तनवीर एक मुट्ठी चना लेकर खाने लगता है।
अरुण दूसरा पेग बनाता है और उसमें थर्मस से पानी मिला कर तन्नू के उठाने का इंतजार करता है, तनवीर कुछ सोच रहा था।
" मां यार इतना क्या सोच रहे हो, कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ, अभी हल किए देते हैं, नहीं तो महफिल न बिगाड़ो लो अगला पेग जल्दी से सुड़क जाओ, कहीं कोई आ न जाए", अरुण तनवीर की ओर मग बढ़ाते हुए कहता है। तनवीर उसे हाथ से पकड़ता है और एक साँस में पी लेता है। फिर दोनों एक साथ स्टील मग नीचे अटैच फोल्डिंग टेबल पर रखते हैं। फिर चने खाने लगते हैं।
"भाई आज के लिए इतना ही बाकी के दारू चने सफ़र भर चलाने हैं, अपना कोटा आखिर अपना होता है, अभी तो जहाज का सफ़र शुरु ही हुआ है, हम लोगों को तो अब तक ये भी नहीं पता यहाँ कौन अपनी तरह महफिल जमाने का शौक रखता है, पता चलने तक अपना कोटा संभाल कर रखना है", अरुण कहते ही स्कॉच की बोतल और चने अपने बैग में रख लेता है। फिर दोनों बातें करने लगते हैं।
"अगर कमांडर जहाज पर लोगों को दिखने लगेगा तो क्या होगा ", तनवीर ने अरुण से पूछा।
"होगा क्या जहाज और जहाजियों की पतलून गीली पीली हो जाएगी ", अरुण ने हिलते हिलते जवाब दिया, स्कॉच का नशा उस पर असर करने लगा था। कुछ देर बातें करते करते उनका नशा थोड़ा हल्का होता है तो सीधा ऊपर के डेक पर निकल जाते हैं। थोड़ी खुली हवा में उन्हें अच्छा लगता है। दोनों कुछ देर खड़े होकर बातें करते हैं, फिर एक बेंच पर बैठ जाते हैं। तभी उस जहाज पर काम करने वाला एक आदमी उनके पास आकर कहता है "बात ही करते रहोगे या डाइनिंग हॉल में खाना खाने भी चलोगे, पता है न कैप्टन का ऑर्डर है सबको एक साथ ही खाना है, समय निकल गया तो खाना नहीं मिलेगा", तनवीर और अरुण उसके पीछे नीचे डाइनिंग हॉल तक जाते हैं। एक साथ खाना खाने के बाद दोनों थोड़ा टहल कर सोने चले जाते हैं।
एक रात और बीत जाती है। अगले दिन सुबह होते ही सबसे पहले परेड में शामिल होते हैं। फिर सुबह का नाश्ता कर काम पर लग जाते हैं। इसी तरह यात्रा के दो दिन और निकल जाते हैं।
एक शाम महफिल ख़त्म करने के बाद दोनों बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक वहाँ एक अज्ञात शख्स ने कैबिन के दरवाजे पर दस्तक दी। अरुण ने दरवाजा खोला। एक लम्बा चौड़ा आदमी सामने खड़ा था, अरुण ने उसे कमरे के अंदर प्रवेश करने दिया। वह अज्ञात शख्स तनवीर के पास आकर बोला "क्या आप ही तनवीर हैं, तनवीर ने सिर हिलाकर जवाब दिया, वह उसके बिस्तर पर बैठ गया और तनवीर से कहा" मैं अजीत हूँ, यहां के लगेज कंपार्ट्मेंट की देखरेख का ज़िम्मा मेरा ही है, पर कल रात जो हादसा हुआ मेरा उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन है, मैंने अब तक इसका ज़िक्र किसी से नहीं किया, सबसे पहले मैं आप से मिलने चला आया, कल रात मैं देर तक उस कंपार्ट्मेंट की सफाई करने में लगा हुआ था, तभी मेरी नज़र आपके ताबूत पर पड़ी जिसके अन्दर से तेज़ लाल रोशनी चमक रही थी, उस ताबूत में कई जगह दरार है जिससे चमकती लाल रोशनी को साफ़ देखा जा सकता था, कुछ देर तक मैं उसे बड़े आश्चर्यजनक रूप से देखता रहा क्यूँकि मैं जो देख रहा था उसपर यकीन कर पाना नामुमकिन था, थोड़ी देर बाद वह रोशनी चमकना बंद हो गई और मैं ऊपर डेक पर आ गया", वह अपनी बात आगे जारी रखते हुए कहता है" मैं आज दिन भर इसके बारे में ही सोचता रहा फिर मैं आप ही के पास इस पहेली का हल पूछने आ गया", उसने तनवीर की ओर जिज्ञासा से देखते हुए कहा।
"लगता है आप को कोई वहम हुआ है है या आँखों का धोखा हुआ है, उस ताबूत के अंदर एक पुरातात्विक खोज में मिली कुछ वस्तुएं हैं और कुछ नहीं, इसी वजह से हम लोग लंदन जा रहे हैं",
तनवीर ने अजीत की आँखो में देखकर बड़ी कुशलता पूर्वक झूठ बोल कर उसकी बातों को टाल दिया। अजीत तनवीर के जवाब से संतुष्ट नहीं था, पर वह उससे जवाब पाकर वहां से चला गया। उसके जाते ही अरुण ने दरवाज़ा बंद किया और पलटकर चिंतित होकर तनवीर की ओर देखते हुए बोला" अमां यार इसे कहीं शक़ तो नहीं हो गया कि तुम झूठ बोल रहे हो क्यूँकि उसके चेहरे से लग नहीं रहा था कि वो तुम्हारे जवाब से संतुष्ट होकर गया है, लगता है रात में कमांडर जब जागा होगा उस वक़्त सफ़ाई कर रहा होगा, कमांडर को जब इस बात का एहसास हुआ होगा कि कोई आस पास खड़ा है तो उसने दुबारा आँखें बंद कर ली होंगी "।
" मुझे भी ऐसा ही लगता है, अब सवाल यह है कि इन महाशय ने अगर अपने से कुछ जाँच पड़ताल करने के चक्कर में संदूक को खोल दिया तो फिर क्या होगा, इस जहाज पर अब हमें कोई खतरा है तो वह इन्हीं महाशय से है इसलिए इनके ऊपर दिन रात नज़र रखनी पड़ेगी ", तनवीर ने चिंतित मुद्रा में अपनी बात को अरुण के सामने प्रकट किया।
दोनों के मन में सच बाहर आने का भय था कि अगर कमांडर का असली रूप सामने आ गया तो क्या होगा, साथ ही साथ अब उन्हें अजीत नाम की चिन्ता भी सताए जा रही थी।
रात होते ही जहाज पर खामोशी छा जाती थी, केवल कुछ गिने चुने अधिकारियों को ही नाइट ड्यूटी करनी पड़ती थी खासकर वो जिन्हें जहाज चलाना और रात में निगरानी रखना था।
जहाज काफी बड़ा था और उसे कंट्रोल करना एक बड़ी बात थी जिसे मर्चेंट नेवी का मंझा हुआ युवा दल चला रहा था। कैप्टन अपने कैबिन से निकलकर बीच बीच में हवा का बहाव और दिशा का पता पूछ वापस अपने कैबिन में चले जाते थे।
इसी बीच एक अनजान साया डेक से नीचे उतर अंदर की लॉबी को पार करते हुए पीछे की सीढ़ी से उतरकर नीचे लगेज डिपार्टमेंट के अंदर प्रवेश करता है, चारों तरफ़ अंधेरा फैला हुआ था, कुछ भी देख पाना नामुमकिन था सिवाय कमांडर के ताबूत की दरारों से निकलती तेज लाल रोशनी को जो उस अनजान शख्स को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह शख्स उस संदूक के पास पहुंचा पर उसपर जंजीर बंधी हुई थी जिस पर मोटा सा ताला लगा जो उस बड़ी जंजीर से ताबूत को बांधे हुए था। वो अनजान शख्स अपने जैकेट की जेब से एक स्टील का हेयर पिन निकलता है, जिसकी सहायता से वह ताला खोल ताबूत को उन जंजीरों से मुक्त कर देता है, पर तभी अचानक एक झटके में ताबूत खुलता है और कमांडर बड़ी फुर्ती से उस अनजान शख्स का गला दबोच लेता है और हवा में ऊपर की ओर ले जाता है , फिर थोड़ी दूरी पर रुक जाता। कमांडर अपने सिर को बाएं हाथ में पकड़े हुए था फिर धीरे धीरे अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ता है, एक तेज़ प्रकाश उस अनजान शख्स पर पड़ता है तो उसका चेहरा दिखाई देता है और वह कोई दूसरा नहीं बल्कि अजीत था, जिसने जिज्ञासा में ताबूत खोल दिया था, कमांडर इतनी ज़ोर से उसका गला घोंट रहा था कि उसकी चीख़ निकलना मुश्किल था लेकिन तभी कमांडर अपने बाएं हाथ को उसके पेट के अंदर घुसा देता है जिससे उसकी खतरनाक चीख़ निकल पड़ती है और अचानक ही तनवीर की नींद खुल जाती है , देखा तो सवेरा हो चुका था।
तनवीर और अरुण तैयार होकर डेक पर पहुंच जाते हैं सुबह की परेड के लिए, उसके बाद नाश्ता कर उन्हें सफ़ाई का काम फिर से मिलता है, दोनों सफ़ाई में लगे थे, तभी अचानक अरुण चिल्लाता है "अमां तनवीर वो देखो शार्क की छोटी बहन डॉलफिन, देखो वहां कैसे झुण्ड में छलाँग मार रहीं हैं सब, कितना सुन्दर दृश्य है ", अरुण अपनी उँगली से उनके झुंड की तरफ इशारा कर के तनवीर को दिखाता है। तनवीर भी ये मनोरम दृश्य देखकर काफ़ी ख़ुश होता है।
धीरे धीरे दिन बीतता है और उनका काम भी समाप्त हो गया था, दोनों शावर लेने के बाद अपने कैबिन में आराम कर रहे थे। शाम ढलते ही उनकी महफिल दोबारा जमती है, उसके बाद दोनों डाइनिंग हॉल की तरफ़ निकल पड़ते हैं। खाने में अब भी काफ़ी समय था इसलिए सभी टेबल पर बैठ अपना मनोरंजन कर रहे थे, कुछ ताश के पत्तों का खेल खेलने में लगे थे, तो कुछ किताबें पढ़ रहे थे, कुछ बातें करने में मग्न थे, तो कुछ अंताक्षरी का खेल खेलने में मशरूफ थे। तन्नू और अरुण ने खाली कुर्सियों पर अपनी तशरीफ़ रख दी।
कुछ लोग अपने में कोई विशेष बात कर रहे थे, अरुण और तनवीर को देखते ही ख़ामोश हो गए, अरुण ने उनसे उत्सुकता पूर्वक पूछा "अमां क्या बात है भाई लोग, हम दोनों के आते ही चुप क्यूँ हो गए, हमें भी तो बताओ ऐसा क्या है", अरुण के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे।
उनमें से एक ने जवाब दिया "कोई खास बात नहीं है, अजीत के बारे में है, कल ही हमारे जहाज का कुक जो असली ज़िंदगी में अजीत का पड़ोसी है बता रहा था, कुछ दिनों से अजीत का बर्ताव कुछ सही नहीं है, उस कुक बनवारी का कैबिन अजित के बगल ही में है इस जहाज पर, उसका कहना है कि रात में कभी कभी कैबिन के बाहर से डरावनी आवाजें आती हैं, ऐसा लगता है जैसे कोई गुर्राते हुए बाहर लॉबी में आना जाना करता हो ", वो अपनी बात कह ही रहा था कि उसके बगल में बैठे उसके साथी ने, उसे बीच ही में टोकते हुए कहा
"कल वाली बात बता न, कल रात में जो हुआ ", उसने बहुत उत्सुकता पूर्ण रूप से कहा।
उस कहानी सुनाने वाले ने आगे बताया
" कल आधी रात के बाद बनवारी नींद न आने की वजह से बाहर डेक पर सिगरेट पीने चला गया, वो आराम से वहां खड़ा सिगरेट पी ही रहा था कि अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, बनवारी की डर से हालत खराब हो गई, एक दम से किसी के पीछे से हाथ रखने की वजह से वह चौंक गया, इससे पहले कि वह पीछे पलट कर देखता कि कौन है, उस अनजान शख्स ने अंग्रेजी में सिगरेट मांगी, बनवारी ने अपने ओवर कोट से डिब्बा निकाला और उसकी ओर पीछे बिना देखे बढ़ा दिया, उस अनजान शख्स ने उससे कहा "कमांडर को माचिस या लाइटर चाहिए," बनवारी ने निकाल कर दे दिया, वो अनजान शख्स बनवारी के पीछे से आगे आकर खड़ा हो गया, बनवारी की तो जैसे साँस ही अटक गई हो उस शख्स को देख कर, वो कोई और नहीं जहाज के लगेज डिपार्टमेंट में काम करने वाला अजीत था, बनवारी का कहना है कि उसके हाव भाव बिलकुल बदले हुए थे, उसका चेहरा सुर्ख सफ़ेद पड़ चुका था और आखों की पुतलियाँ लाल रोशनी चमका रही थी, ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर पर किसी रूहानी ताकत ने कब्ज़ा कर रखा हो, अजीत बड़े अजीब ढंग से पेश आ रहा था, उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे किसी अंग्रेज ने उसके शरीर काबू में किया हो, कुछ देर बाद वहीं बेहोश हो गया, बनवारी उसे उठाकर उसके कैबिन तक ले गया और उसे बिस्तर पर लेटा दिया, अब तक के अपने जहाज की यात्रा के इतने सालों अनुभवों में ऐसा किस्सा पहली बार सुनने को मिल रहा है ", वह हैरत जताते हुए अपनी बात पूरी करता है।
तनवीर और अरुण पहले तो ये कहानी सुनकर थोड़ा घबरा गए लेकिन फिर तनवीर ने हंसते हुए कहा" अरे कुछ नहीं भाइयों अजीत के ऊपर काम का बोझ थोड़ा ज़्यादा होगा इसलिए ऐसी अजीब हरकत करने लगा होगा, काम का प्रेशर कभी कभी दिमाग पर ज़्यादा डालने से ऐसे मानसिक तनाव के किस्से ज़्यादा सामने आते हैं जिसमें इंसान का व्यक्तित्व कभी कभी पूरी तरह से बदल जाता है और ऐसा ही उसका एक व्यक्तित्व का हिस्सा कल बनवारी ने देख लिया, वर्ना आज कल के ज़माने में कहीं भूत प्रेत होता है, ज़माना कितना आगे बढ़ गया है, आप लोग पढ़े लिखे होकर ऐसी बातें करते हैं ", तनवीर ने आपत्ति जताते हुए बड़ी कुशलता से उनसे झूठ बोल दिया।
तभी अरुण भी बोल पड़ता है" अब अजीत की हालत कैसी है, डॉक्टर को दिखाया कि नहीं ", अरुण भी तनवीर के झूठ में साथ देते हुए उनसे पूछता है।
उस टेबल पर बैठे एक सज्जन कहते हैं " अब खतरे जैसी तो कोई बात नहीं, रात ही को बनवारी ने डॉक्टर को बुला दिया था, उसने जांच के बाद कहा अजीत को काफ़ी कमज़ोरी है, जिस वजह से बेहोश हो गया था, उसका शरीर भी तप रहा था इसलिए उसे बुखार की भी दवाई दे दी गई है, जिस वजह से उसे दिन भर नींद आने की वजह से कैप्टन ने भी तबीयत सही होने तक की छुट्टी दे रखी है, अब लगेज डिपार्टमेंट का काम किशोर संभाल रहा है ", उस आदमी ने सारी बातें विस्तार से समझाते हुए कहा।
इतने में डाइनिंग हॉल के खाने की बेल बजती है, जिसे जहाज के हर कैबिन में सुना जा सकता था ताकि सभी डाइनिंग हॉल में खाने के लिये उपस्थित हो जाएं।
कैप्टन के आते ही लगभग जहाज के सभी कर्मचारी डाइनिंग हॉल में आ जाते हैं। कैप्टन की थाली लगने के बाद, सभी लाइन में लग कर खाना लेते हैं और टेबल पर बैठ खाना खाने लगते हैं।
डिनर खत्म होते ही तन्नू और अरुण थोड़ा टहलने के लिए डेक पर निकल जाते हैं, जहाज के दाहिनी ओर खड़े हो रात के सुन्दर दृश्य का आनंद ले रहे थे, रात में समुद्र बिलकुल ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे सभी सितारों और चांद ने चादर बन समुद्र को ढक लिया हो। ठंडी हवा काफी तेजी से बह रही थी, थोड़ी थोड़ी दूरी पर कोहरे के बादल भी थे।
इतने में तनवीर ने अरुण से कहा "तुम्हें क्या लगता है अजीत की जान को खतरा है, कमांडर ने उसके शरीर पर क्यूँ काबू किया होगा, ये बात मेरी समझ में नहीं आई, कहीं उसने ताबूत को खोला तो नहीं होगा, लेकिन अगर ताबूत खोला है तो कमांडर का शरीर भी जहाज पर ही कहीं होगा, आखिर उसी के शरीर में कमांडर की रूह ने प्रवेश क्यूँ किया ", तनवीर ने आश्चर्य प्रकट करते हुए अरुण से पूछा।
"मुझे लगता है कमांडर ने उसके शरीर में इसलिए प्रवेश किया क्यूँकि वह उस ताबूत का राज़ जान गया था, अगर वह हम दोनों को बताने आया था तो वह जहाज में किसी और को भी उस ताबूत के राज़ के बारे में बता देता, बस इसी राज़ को छुपाने के लिए कमांडर ने ऐसा किया होगा, मुझे नहीं लगता कि कमांडर उस ताबूत के बंधन से मुक्त हो गया होगा नहीं तो लगैज डिपार्टमेंट में नियुक्त हुआ नया शख्स अब तक उन जंजीरों के टूटने या ताला खुलने की खबर हम तक पहुंचा चुका होता ", अरुण ने कुशलता से अपनी बात तनवीर के सामने रखी। तनवीर भी इस बात से काफ़ी हद तक सहमत था, थोड़ी देर बाद दोनों अपने कैबिन में सोने चले गए।
रात जैसे ही जैसे बीतती है, जहाज पर एक खौफ़ ज़दा ख़ामोशी सी छा जाती है। चारों तरफ़ अंधकार फैला हुआ था, केवल जहाज के चालक दल और कुछ गार्ड्स ही ड्यूटी पर तैनात थे, कैप्टन भी सोने चले गए थे। कोहरे ने भी अब जहाज और उसके इर्दगिर्द अपना डेरा जमा दिया था, तभी अचानक रात की भयानक ख़ामोशी को चीरते हुए एक अनजान साया अपने बूट से ज़ोरदार आवाज़ निकलते हुए लॉबी के पास से गुजरता है। तनवीर की नींद उसके कदमों की ज़ोरदार आहटों से खुल चुकी थी, तनवीर कुछ देर तक अपने बिस्तर पर ही पड़े पड़े उस आवाज़ को सुनता है। आवाज़ ने अब उसके कैबिन से अच्छी खासी दूरी बना ली थी, तनवीर अपने कैबिन का दरवाज़ा खोलता है। जहाज की लॉबी बड़ी होने के कारण वह अनजान साया अब तक लॉबी को पार नहीं कर पाया था।
तन्नू की नज़र उसपर पड़ते ही वह उस साये का पीछा करने लगता है, साया बड़ी तेज़ी से लॉबी को पार करने की कोशिश में था, तनवीर भी तेजी के साथ उसके पीछे लगा हुआ था। वह अनजान साया चलते चलते एक दम से रुक गया, तनवीर ने यह देख ख़ुद को लॉबी की आड़ में छुपा लिया, वो अनजान साया पीछे मुड़कर देखने लगा, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उस साए को भी शक़ हो गया था कि कोई उसका पीछा कर रहा है, इसलिए वह कुछ देर वहीं रुका रहा।
तनवीर लॉबी की आड़ में छुपकर ये सब कुछ देख रहा था।
कुछ देर बाद वह अनजान साया वापस चलना शुरू कर देता है, तनवीर भी उसके पीछे पीछे चलने लगता है। तनवीर बहुत सतर्क हो कर उस साए का पीछा कर रहा था क्यूँकि उस साए को अब यह शक़ हो चला था कि कोई उसके पीछे लगा हुआ था। वह साया तेजी से फुर्ती के साथ कदम बढ़ाने लगा ताकि अपना पीछा कर रहे तनवीर से वह छुटकारा पा सके।
तनवीर उस साए का पीछा करते हुए ये सोचने में लगा हुआ था कि आखिर ये अनजान साया कौन हो सकता है, कहीं अजीत तो नहीं लेकिन उसकी तो तबीयत खराब है, डॉक्टर ने उसे आराम करने के साथ ही उसे कुछ दवाइयां दी थी जिनके असर से उसका इतनी जल्दी नींद से जागना नामुमकिन था क्यूँकि उसे बुखार चढ़ गया था, तो फिर ये शख्स कौन हो सकता है। तनवीर के मन में यही एक जिज्ञासा ने घर कर रखा था कि आखिर वह अनजान साया है कौन जो चीते जैसी फुर्ती दिखाकर लॉबी पार कर नीचे की सीढ़ियाँ उतर रहा है।
तनवीर अंधेरे में आगे बढ़ रहा था तभी अचानक उसे एहसास होता है कि कोई उसके भी पीछे है, पर तनवीर उसके आगे वाले अनजान साये को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था। इसलिए उसने आगे बढ़ना नहीं छोड़ा, कुछ देर बाद कॉरिडोर के नीचे जाने वाली सीढ़ी उतरने से पहले वह एक बार रुक कर पीछे मुड़कर देखता तनवीर बड़ी फुर्ती के साथ अंधेरे का फायदा उठाते हुए छुप जाता है, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स भी छुप जाता है।
अब वह अनजान साया इस बात से आश्वस्त हो गया था कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा था बल्कि ये उसका वहम था। अब वह निर्भीक होकर नीचे के फ्लोर पर जाने वाली सीढ़ी उतरने लगा, मौका पाते ही तनवीर भी उसके पीछे सीढ़ियाँ उतर नीचे जाने लगा, तनवीर का पीछा करने वाला अनजान शख्स भी लपक कर सीढ़ियाँ उतर जाता है।
तनवीर अब उस अनजान साये का पीछा नीचले फ्लोर के कॉरिडोर में कर रहा था, तनवीर के पीछे आने वाला अनजान शख्स दबे पाँव भागते हुए तनवीर के पास पहुँचता है। वह कोई और नहीं बल्कि अरुण था, तनवीर भी उसे एक पल के लिए पहचान नहीं पाया था, पर ऊपर लगी जलती बुझती हल्की लाइट की रोशनी में अरुण को तन्नू ने पहचान लिया और अपने साथ आने का इशारा किया। अब वह अनजान साया लगैज कंपार्ट्मेंट के दरवाजे के सामने खड़ा था, उसने दरवाजा खोला और अंदर की ओर प्रवेश करने लगा, तनवीर और अरुण भी उसके पीछे चल दिए, वह साया कमांडर के ताबूत के पास जाकर रुका। ताबूत की दरारों से तेज़ लाल रोशनी निकल रही थी। वह ताबूत को खोलने की तैयारी में था, तभी उसे पीछे से अरुण और तनवीर ने धर दबोचा।
"अमां यार तन्नू ज़रा इसका चेहरा देखो ये कौन महाशय हैं" अरुण ने पकड़ में ज़ोर लगाते हुए तनवीर से कहा।
कमांडर के ताबूत से निकल रही रोशनी काफ़ी थी उस साये का चेहरा देखने के लिए, सो तनवीर ने आगे आकर उसका चेहरा देखा, तनवीर के पैरों तले जमीन खिसक गई थी जब उसने देखा वह अनजान साया कोई और नहीं बल्कि कैप्टन विक्रम प्रजापती थे। लेकिन वह अपने पूरे होश में नहीं थे ऐसा लग रहा था कि कोई उन्हें यहां तक खींच कर लाया है, तनवीर और अरुण उन्हें लगैज कंपार्ट्मेंट के बाहर तक ले कर जाते हैं, कैप्टन बहुत छुड़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन जवान लड़को के ज़ोर के आगे उनकी नहीं चलती है।
"कैप्टन... कैप्टन... कैप्टन ख़ुद को संभालिए," तनवीर ने कैप्टन को खींचते हुए कहा। दोनों उन्हें खींचते हुए कॉरिडोर में ले कर चल रहे थे, तभी अचानक कैप्टन बेहोश हो जाते हैं।
तनवीर और अरुण उन्हे उनके कैबिन तक लेकर जाते हैं और उन्हें बड़ी सावधानी से लेटा देते हैं।
"चलो शुक्र है इन्हें लाते हुए किसी ने देखा नहीं" तनवीर ने अरुण की ओर देखते हुए कहा।
"तुम्हें नहीं लगता हमें कमांडर से इस विषय पर एक बार बात करनी चाहिए", अरुण ने तनवीर से क्रोध जताते हुए कहा, फिर उसने अपनी बात जारी रखी "जब हमलोग उसे सात समंदर पार लंदन लेकर जा रहे हैं तो इस प्रकार की बेवकूफ़ी का क्या मतलब बनता है", अरुण की बाते सुनकर तनवीर भी सोच में पड़ जाता है और कुछ देर बाद कहता है" मेरे ख्याल से तुम बिलकुल सही कह रहे हो, एक तो हमलोग इतना बड़ा जोखिम उठा रहे हैं ऊपर से इस प्रकार की हरकत का क्या मतलब बनता है, चलो उसी से पता कर लेते हैं",
तनवीर ने अरुण को अपने पीछे आने का इशारा करता है।
तनवीर और अरुण अपने कैबिन से उस ताबूत की चाबी निकाल कर सीधे लगैज कंपार्ट्मेंट की ओर जाते हैं। कमांडर के ताबूत को खोलते हैं, खुलते ही कमांडर हवा में चार फुट ऊपर रुक कर अपनी खोपड़ी को धड़ से जोड़ने और तेज़ लाल प्रकाश फैलाने के बाद उनसे कहता है "इन द नेम ऑफ क्वीन, कितना समय बीत गया हम बाहर का दुनिया नहीं देख पाया था, तुम लोग क्या पूछने आया है ये हम पहले से ही जानता है, पर हम भी क्या कर सकता था उस अजीत ने एक रात ताबूत का दरारों से लाल प्रकाश जलता हुआ देख लिया, उसने जहाज पर कुछ लोगों को इसका बारे में बताया जिसमें वो कुक और कैप्टन शामिल था, यही नहीं कल रात उसने कैप्टन को ताबूत से निकलता लाल प्रकाश निकलते हुए दिखा दिया, तब से हम दोनों को अपना दिमाग से चला रहा था, अगर हम ऐसा नहीं करता तो सारा खेल बिगड़ जाता ", कमांडर ने दोनों को भरोसा दिलाने की कोशिश की।
पर तनवीर का दिल नहीं माना उसने कमांडर से कहा" लेकिन कल रात को ही अजीत हम दोनों के पास आया था और यह कह रहा था कि वह हम दोनों को ही सबसे पहले इस बात के बारे में जानकारी दे रहा था, फिर आज पूरा दिन कैप्टन ने हम दोनों को इस बारे में कुछ नहीं पूछा", तनवीर ने थोड़ा एतराज जताया।
"अरे जब वह तुम्हारे पास से सारी कहानी बताने के बाद गया तो कल रात को ही अजीत ने कैप्टन को ताबूत से निकलता प्रकाश दिखा दिया था और तभी मैंने इन दोनों के दिमाग़ अपने काबू में कर लिया था, अजीत तो दो दिन पहले ही ताबूत के बारे में जान गया था, उसने सबसे पहले बनवारी को ये बात बताया लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ, तुम दोनों से उसने झूठ बोला था", कमांडर ने अपनी बातों से ख़ुद की सफ़ाई दी जिसे सुन तनवीर और अरुण को सारा मामला समझ में आ गया।
फिर कमांडर ने उनसे कहा" ये हमारा आखरी सफ़र है, इसलिए हमारा तुम दोनों से रिक्वेस्ट है कि ताबूत को जंजीरों से मत बांधो क्यूँकि कोई भी रात को यहाँ ड्यूटी करने वाला इसे देख सकता है, हम अपना हिफाज़त इंसानों से कहीं अच्छा से कर सकता है, चिन्ता का कोई बात नहीं हम उन सभी का ब्रेन वॉश कर देगा जिसने ये सब कुछ देखा है", कमांडर ने उन दोनों को समझाते हुए कहा।
"अगर रात में ताबूत के बाहर निकले और किसी ने देख लिया तो फिर क्या होगा ", अरुण ने आशंका जताते हुए पूछा।
कमांडर ने उसकी ओर देखते हुए कहा " सुन दारूबाज तेरा तो पता नहीं पर कमांडर ब्राड शॉ का ज़ुबान का वजन 300 साल पहले भी था और 300 साल बाद मरने का बाद भी है, एक बार बोल दिया कि इस जहाज पर कोई भी ये नहीं जान पाएगा कि ताबूत में क्या है, बस ताबूत लगे कुंडों पर ही ताला मारो जिसे हम अपना सुपर नैचुरल पॉवर से खोल बंद कर सकता है, क्यूँकि हम चाहता तो जंजीर तोड़ भी सकता था लेकिन फिर उसे कौन जोड़ता, सबको पता चल जाता और भगदड़ मच जाता ", कमांडर ने अरुण को फटकार लगाते हुए अपनी बात को दोनों के सामने रखा, दोनों मान गए और तनवीर अपने कैबिन की ओर दौड़ पड़ा, अपने सामान से ताबूत के पुराने दो ताले लेकर आने के लिए, उसने कमांडर के ताबूत में जाते ही ताबूत के कुंडों को बंद कर उन पर ताला लगा दिया। दोनों ने मिलकर जंजीर को समेट कर एक कोने में रखा और अपने कैबिन की ओर चल दिए। रात भर की भागदौड़ में पता नहीं चल पाया कि कब सुबह हो गई और घड़ी में 4 बज कर 45 मिनट हो गए, कुछ ही देर में सुबह की परेड शुरू होने वाली थी। रात भर कमांडर ने उनकी अच्छी खासी परेड करा दी थी। वह काफ़ी थक चुके थे और उनका बदन दर्द से टूट रहा था। अपने कैबिन में जाते ही दोनों बिस्तर पर खुद को फेंक देते हैं मानो जन्मों से उसी की तलाश रही हो। कुछ देर बाद उन्हें गहरी नींद आ जाती है।
"तनवीर... वेक अप, तनवीर...सुबह की परेड हो चुकी है और तुम दोनों अभी तक सो रहे हो... अरे भाई कैबिन का दरवाज़ा तो खोलो... तनवीर... जाग जाओ" कैप्टन विक्रम ने तन्नू और अरुण के कैबिन के दरवाजे को पीटते हुए कहा। कुछ देर बाद अरुण ने उठ कर दरवाजा खोला, कैप्टन ने जल्दी ही दोनों को अपने कैबिन में बुलवाया।
दोनों फ्रेश होकर कैप्टन के कैबिन में पहुँचे, कैप्टन ने उनकी तरफ देखते हुए कहा" नहीं... नहीं... मेरे जहाज पर ये डिसिप्लिन नहीं चलेगा... कोई भी मेरे नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता है, खासकर तब, जब आप एक अवैध मेहमान के रूप में हों, जिनकी निजी तौर पर ज़िम्मेदारी जहाज के कैप्टन ने ली हो, चलिए आप ही बताइए क्या आपका दिया हुआ पैसा इतना है कि जहाज के सभी कर्मचारियों में बांट सकते हैं... नहीं... आपकी ज़िम्मेदारी मेरी है और अगर मैं ही अपने जहाज की डिसिप्लिन तोड़ने की छूट दे दूँ, तो जहाज के सभी कर्मचारियों को मेरे ऊपर उंगली उठाते देर नहीं लगेगी, इसलिए उन्हें पैसों की बात न बता कर आप दोनों को एक मजबूर स्टूडेंट के रूप में नज़र आना था, ये बात मैंने आपको पहली मुलाकात में ही बता दी थी, फिर भी आप दोनों ने आज इस जहाज का डिसिप्लिन तोड़ दिया है, सुबह परेड से गायब रहे और फिर डाइनिंग हॉल में ब्रेकफास्ट के लिए भी नहीं पहुँचे... नो... नो... ये नहीं चलेगा, आज तो मैं छोड़ रहा हूँ क्यूँकि पहली बार है, पर कल से बिलकुल समय पर चलना पड़ेगा... एम आई क्लियर... अब आप दोनों जा सकते हैं ", कैप्टन ने एक ज़ोरदार फटकार लगाते हुए दोनों को उनकी ड्यूटी पर लगवा दिया, आज दोनों को कॉरिडोर की सफाई का काम दिया गया था। उन दोनों को ये जानकर प्रसन्नता हुई कि कैप्टन को कल रात के हादसे के बारे में कुछ भी याद नहीं था, इसलिए दोनों उनसे माफी मांग कर कैप्टन के कैबिन से मुस्कुराते हुए निकल लिए।
दोनों अपना काम मन लगाकर कर रहे थे, धीरे धीरे वक़्त और बीतता है और दोपहर के 2:00 बजे हुए थे, लंच का समय हो गया था। दोनों अपना काम ख़त्म करते ही हाथ मुँह धोकर डाइनिंग हॉल में पहुंच गए। वहाँ पहुँचते ही उनसे सबने सुबह परेड में न आने की वजह पूछी, उन दोनों ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया। डाइनिंग हॉल में कैप्टन के पहुंचते ही सबसे पहले एक कुक उनका खाना सामने की मेज़ पर लगा देता है, अब उनकी पलटन के सारे सदस्य कतार में लग कर खाना लेते हैं और टेबल पर बैठ जाते हैं खाना खाने के लिए, फिर कैप्टन के शुरुआत करते ही, सभी खाने की शुरुआत करते हैं।
सभी शांति के साथ बैठकर खाना खा ही रहे थे कि थोड़ी ही देर में जहाज के कुछ गार्ड्स सायरन बजाते हैं जो कि एक खतरे की निशानी थी, उसे सुनते ही कैप्टन खाना छोड़ कर डेक की ओर दौड़ पड़ते हैं, उनके पीछे ही डाइनिंग हॉल में बैठे उनके पलटन के सदस्य भी भाग खड़े होते हैं। ऐसा कौन सा खतरा बीच समंदर में आ गया था जिसका सायरन सुन सभी इतनी बुरी तरह भाग खड़े हुए ये जानने के लिए तनवीर और अरुण भी सबसे आख़िर में उनके पीछे भागे।
जहाज पर किसी खतरे का अंदेशा मिलना एक बिन बुलाए मुसीबत की निशानी थी। तनवीर डेक पर जाते समय मन में यही विचार लिए हुए था कि पहले ही कमांडर की वजह से कम मुसीबत न थी और अब कोई अनजान खतरा उनकी तरफ बढ़ता चला आ रहा है। उन दोनों को अंदर से ये भय खाए जा रहा था कि कहीं लंदन तक का ये समुंद्री सफ़र उनके जीवन का आखिरी सफ़र न हो।
तनवीर और अरुण भागते हुए डेक पर पहुंचते हैं, सभी जगह भगदड़ मची हुई थी। जहाज के चारों ओर मर्चेंट नेवी के सारे कर्मचारियों ने झुंड बना जहाज की रेलिंग को घेर रखा था, कुछ फ्लेयर गन से निशाना तान रहे थे तो, कुछ जहाज के हर कोनों पर लगे मोटे पाइपों को लेकर खड़े थे जो ज़्यादातर जहाज पर आग को बुझाने में इस्तेमाल किए जाते हैं। जहाज पर हँगामा मचा हुआ था, तनवीर और अरुण के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, चारों ओर से गोलियां चल रही थी, जहाज को चारों तरफ़ से समुंद्री लुटेरों ने घेर लिया था, वो काफ़ी संख्या में थे, हर जगह yacht के आकार के जहाज नज़र आ रहे थे। उनमें से एक जहाज पर से किसी ने रेमिंग्टन 700 - 1962 मॉडल गन से फ़ायर किया जिसकी गोली सीधा तनवीर के साथ खड़े एक सहायक को लगती हुई जहाज के कैबिन के शीशे को भेदते हुए निकल जाती है, इस दृश्य को देखकर तनवीर और अरुण की रूह कांप उठती है। वो दोनों डर से नीचे बैठ जाते हैं, तभी उनके पास खड़ा एक जहाज कर्मी उनसे खड़े होकर उनकी मदद करने को कहता है, दोनों किसी तरह हिम्मत जुटा पानी का पाइप पकड़ खड़े हो जाते हैं और उन लुटेरों के जहाज पर पानी की तेज़ धार मारते हैं जिससे उन्हें आगे बढ़ने में असुविधा हो क्यूँकि पानी की धार इतनी तेज़ थी कि पाइप को संभालने के लिए दो लोगों की ज़रूरत थी। कैप्टन के पास अपनी स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 60 - 1965 रिवॉल्वर थी जिससे वह जहाज के हर क्षेत्र में दौड़ लगाते हुए पहुंचकर गोलियां चला रहे थे, एक आद बार कामयाबी हाथ लगी जिससे कुछ बंदूक धारी घायल हुए लेकिन कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा। कंट्रोल रूम से भी बार बार मदद के लिए गुहार लगाई जा रही थी पर आस पास नज़दीक में कोई जहाज न होने की वजह से मदद मिल पाना नामुमकिन था। जहाज के कुछ सिक्यूरिटी गार्ड्स के पास G लॉक 17 - 1982 पिस्टल्स, CZ-75 - 1975 मॉडल पिस्टल्स थीं जिससे वह जहाज जहाज के हर कोने में खड़े होकर चला रहे थे इससे कुछ देर तक उनकी रफ़्तार थोड़ी धीमी रही पर जहाज के हर कोने से भारी संख्या में होने के कारण उन्हें ज़्यादा देर रोक पाना नामुमकिन था। तीन घंटों तक चारों ओर अफरा तफरी का माहौल बना हुआ था, सभी अपना पूरा ज़ोर लगाए हुए थे उन लुटेरों को रोकने के लिए, पर होनी को कौन टाल सकता है, आधुनिक हथियार होने के कारण उन्हें जहाज कि मरम्मत करने वाली सीढ़ियों को चढ़ने से कोई नहीं रोक सका और देखते ही देखते जहाज के हर कोने से हथियार से लैस लुटेरों ने कब्ज़ा जमा लिया। पर उनके जहाज पर चढ़ने से पहले भागदौड़ में तनवीर जहाज के निचले कॉरिडोर के एक कैबिन में जाक
र छुप गया लेकिन वह अरुण को अपने साथ ले जाने में असमर्थ रहा क्यूँकि अचानक उसी समय एक लुटेरे ने प्रकट होकर थाॅम्पसन सबमशीन गन - 1918 मॉडल से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी जिससे बचने के लिए तनवीर ने निचले तल की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ लांघ लीं, लेकिन डेक पर जहाज के पांच कर्मचारी शहीद हो गए। जहाज खून से लथपथ हो गया था, इस खतरनाक हमले में जहाज के कुल 12 कर्मचारी मारे गए।
उन समुंद्री लुटेरों के दल ने जहाज के सभी सदस्यों को बन्दी बना जहाज के डाइनिंग हॉल में रख दिया। उन सभी लुटेरे के पास थाॅम्पसन सबमशीन गन्स - 1918 मॉडल , स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 36 पिस्टल , कोल्ट .38, स्टेयर ऑग 9 mm मशीन गन्स, M-16, AK-47 - 1948 मॉडल , स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 29 चेम्बर्ड इन .44 मैगनम जैसे कई घातक हथियार थे जिनकी सहायता से उन्होंने जहाज के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का अनुभव सभी को करवा दिया था।
कैप्टन को उनके चालक दल के सदस्यों के साथ इंजन रूम में बन्दी बना कर रखा गया था, ताकि जहाज अपनी यात्रा जारी रखते हुए आगे बढ़ सके। कंट्रोल रूम से उन लुटेरों ने स्थिति सामान्य हो जाने का गलत संदेश पहुंचाने को कहा, सब ने आदेश का पालन करते हुए सहायता दल को गलत संदेश दिया जिससे आने वाली सहायता भी वापस हो जाए।
लुटेरों के yacht जैसे छोटे जहाज मर्चेंट नेवी के बड़े cargo जहाज के साथ साथ ही चल रहे थे। शाम हो चुकी थी और डूबते सूरज की लालिमा समुद्र को भी अपने आगोश में लिए हुए थी।
"जहाज पर जितना कीमती सामान है सब कुछ हमारे हवाले कर दो", लुटेरों के सरदार ने कैप्टन से कहा।
"देखो कोई बेवकूफ़ी मत करो, हमारे जहाज पर ऐसा कोई कीमती सामान नहीं है जो तुम लोगों के काम आ सके", कैप्टन ने पलटकर लुटेरों के सरदार को जवाब दिया।
"चुप कर हरामज़ादे, ज़्यादा होशियार बनने कि कोशिश की तो तेरा भेजा यहीं पर खोलकर रख दूंगा, जितना कहा गया है उतना ही कर ", लुटेरों का सरदार क्रोध में कैप्टन को फटकार लगाते हुए कहता है, फिर उसने कैप्टन की ओर अपनी रेमिंग्टन 870 - 1951 मॉडल पंप एक्शन शॉट गन तान दी और कहा" सबसे पहले कैप्टन तू अपना सारा कीमती माल, रुपया पैसा, सोने चांदी की चेन, अंगूठी, ब्रेसलेट इत्यादि निकाल और यही आदेश अपने साथियों को भी दे, चल अब उठ और मेरे साथ अपनी पलटन के पास चल", कैप्टन को बंदूक के ज़ोर पर अपने कुछ साथियों के साथ लुटेरों का सरदार डाइनिंग हॉल की ओर ले जाता है, इंजिन रूम तथा कंट्रोल रूम में अपने कुछ बंदूक धारियों को जहाज के कर्मचारियों के साथ जहाज चलाने के लिए वहीं छोड़ देता है।
डाइनिंग हॉल में पहुँचते ही लुटेरों का सरदार कैप्टन को उसकी टेबल और कुर्सी पर बैठा देता है फिर कैप्टन के बाकी की पलटन से कहता है उनके पास जितना भी कीमती सामान है उसके साथियों के हवाले कर दे। इसके लिए उसने अपने हत्यारों से लैस आदमियों के साथ एक एक कर के जहाज के सभी बंधको को उनके कैबिन से सामान लाने के लिए भेजा। सभी अपने कैबिन से कीमती वस्तुएं, रुपए पैसे इत्यादि लेकर आए, उन्हें खाने की बड़ी सी टेबल पर रख दिया गया, वहीं पास बैठा एक आदमी रुपए इकट्ठे कर के उन्हें गिनकर गड्डी बनाकर रबर बैंड चढ़ा रहा था। कैप्टन को भी उनके कैबिन में ले जाकर उनके सामान की तलाशी ली गई जिसमें कई कीमती वस्तुएं बरामद हुईं और उन्ही में तनवीर से लिये गये वह पैसे भी थे जो उन्हें लंदन पहुंचाने के लिए लिया था। सारे पैसों को इकट्ठा कर वही लुटेरा गिनने में लगा हुआ था, गिनती खत्म हो जाने के बाद वह सरदार के कान में कुछ खुस्फुसाता है , जिसे सुन समुंद्री लुटेरों का सरदार उनसे कहता है "देखो जितना माल और पैसा इकट्ठा हुआ है उतना काफी नहीं है इसलिए तुमलोगों को जहाज पर लदे कंटेनरों और अपने लगैज कंपार्ट्मेंट में रखे कीमती सामानों की भी जानकारी देनी पड़ेगी, अब आज तो काफ़ी वक़्त बीत गया है इसलिए हमलोग सुबह होते ही सारी चीजों की तलाशी लेना शुरू करेंगे, अब जहाज के रसोई में काम करने वाले आगे आएं और रसोई का कार्य भार संभाले ताकि सभी को रात का खाना मिल सके, किसी ने भी होशियारी दिखाने की कोशिश की तो मेरे साथी उन्हें गोलियों से छलनी कर देंगे ", लुटेरों के सरदार ने अपनी बंदूक सब पर तानते हुए अपने साथियों की ओर इशारा किया।
जैसा लुटेरों का सरदार चाहता था सब कुछ वैसा ही चल रहा था।
जहाज का हर कर्मचारी उसके आदेश का पालन करने में लगा हुआ था जैसे जहाज का कैप्टन वही हो, अरुण डाइनिंग हॉल में बैठा हुआ यही बात सोच रहा था। साथ ही साथ उसे तनवीर की भी चिंता सता रही थी कि पता नहीं कहाँ रह गया, ठीक होगा या नहीं। वह एक बात से आश्वस्त हो गया था कि तनवीर अब भी लुटेरों के हाथ नहीं लगा है वर्ना उसे भी बन्दी बनाकर यहीं लाया गया होता।
उधर तनवीर लगैज कंपार्ट्मेंट के ठीक सामने के कैबिन में छुपा हुआ था, उसे भी अरुण और जहाज के बाकी साथियों की चिन्ता लगी हुई थी, वह भी अपने मन में यही सोच रहा था कि पता नहीं ऊपर डेक पर क्या हो रहा होगा लेकिन उसका यह जानने के लिए ऊपर डेक की ओर जाना खतरे से खाली नहीं था। बस इसी वजह से वह जहाँ था वहीं छुपा रहा।
धीरे धीरे समय थोड़ा और बीतता है, हर तरफ अंधकार छाने से पहले ही जहाज की लाईटों को ऑन किया जाता है। हर तरफ़ रौशनी जगमगाने लगती है, जहाज अपना साइरन बजाते हुए अपनी उपस्थिति का एहसास समुद्र में कराता है। मौसम कुछ साफ़ न था और आसमान को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि आज रात भीषण कोहरे की रात होगी, इसलिए जहाज की भी रफ़्तार उसी हिसाब से रखनी पड़ेगी।
डाइनिंग हॉल में रात का खाना खत्म होते ही लुटेरों का सरदार अपने कुछ साथियों को बाहर डेक पर बुलाकर कहता है "तुम लोग गुट में बंट कर जहाज के हर फ्लोर, हर कैबिन, कॉरिडोर, लगैज कंपार्ट्मेंट से लेकर हर जगह कीमती सामान तलाश करो, कोई भी जगह नहीं छोड़ना, मुझे कैप्टन पर भरोसा नहीं है इसलिए सब कुछ ख़ुद देखना सही रहेगा, बाकि कंटेनरों में तो कल तलाश करेंगे, पर आज रात तुम लोग जहाज छान मारो", उसके इशारा करते ही उसके साथी जहाज की तलाशी का काम शुरू करते हैं। जहाज बड़ा था इसलिए दो दो के गुट में बंट कर उन्होंने तलाशी का काम शुरू किया पर इसमें भी काफ़ी वक़्त लगने वाला था।
लुटेरों का सरदार फ़िर से डाइनिंग हॉल के अंदर प्रवेश करता है और कैप्टन की ओर देखते हुए कहता है "सुनो अपने ऑफिस के कैबिन से जाकर कंटेनरों की लिस्ट लेकर आओ ताकि पता चले कंटेनरों में कौन सा कीमती सामान लेकर जा रहे हो, तुम दोनों कैप्टन के साथ जाओ", उसने अपने दो साथियों को कैप्टन के साथ जाने को कहा, वह लोग कैप्टन को अपने साथ लेकर चले गए।
उधर तनवीर भी कैबिन में छुपा हुआ थक चुका था इसलिए थोड़ा कैबिन से बाहर निकल कर कॉरिडोर में झाँकने का मन बनाता है, जैसे ही कैबिन का दरवाज़ा खोल कर बाहर देखता है तो उसे कॉरिडोर में दो लुटेरों के सीढ़ियाँ उतरने की आवाज़ सुनाई पड़ती है, वह झट से उसी कैबिन में दुबारा छुप जाता है लेकिन तन्नू यह जान चुका था कि वह वहाँ ज़्यादा देर तक नहीं छुपा रह सकता है, इसलिए उस कैबिन से अटैच बाथरूम में छुप जाता है और उसे लॉक कर देता है। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, बस ऊपर वाले से यही दुआ मांग रहा था कि लुटेरे उसे न ढूँढ पाएँ। जहाज का कॉरिडोर बड़ा होने के कारण उसमें कई कैबिन थे, वो लूटेरे एक एक करके सभी कैबिन की तलाशी लेने में जुट गए। जितना कीमती सामान मिलता उसे कॉरिडोर में इकट्ठा करके रख देते थे।
वह दोनों लूटेरे अपना काम करने में लगे हुए थे कि अचानक एक की नज़र लगैज कंपार्ट्मेंट के दरवाजे पर नीचे बने स्पेस पड़ पड़ती है जहाँ से तेज़ लाल रोशनी चमक रही थी, वह लुटेरा कैबिन से कॉरिडोर में कीमती सामान रखने आया था। लगैज कंपार्ट्मेंट के दरवाजे से तेज लाल प्रकाश निकलता देख वह थोड़ी देर के लिये वहीं जम सा जाता है फिर खुद पर यकीन हो जाने के बाद वह भागकर अपने दूसरे साथी को लेकर आता है, वह भी इस हैरतअंगेज कारनामे को देखता है फिर दोनों भागकर ऊपर डाइनिंग हॉल की ओर जाते हैं, वहाँ पहुँचते ही अरुण की नज़र उन पर पड़ती है। अरुण भांप लेता है वह अपने मन में सोचता है कि लगता है इन्होने लगैज कंपार्ट्मेंट में कुछ होते हुए देखा है इसलिए इनके चेहरों की हवाइयां उड़ी हुईं हैं।
वह दोनों लूटेरे अपने सरदार के नज़दीक जाकर कान में कुछ कहते हैं जिसे सुनकर लुटेरों का सरदार कुछ देर के लिए उनका चेहरा देखता है फिर अपने कुछ साथियों और लगैज कंपार्ट्मेंट के नए इंचार्ज को लेकर उनके साथ चल देता है। उसके बाकि साथी बंदूकें तान बाकि के लोगों को वहीं हॉल में बंधक बनाए थे।
लुटेरों का सरदार अपने साथियों के साथ जहाज के निचले तल पर जाने की सीढ़ियाँ उतरने लगता है। कुछ ही देर में वह सभी लगैज कंपार्ट्मेंट के पास पहुंचते हैं पर वहाँ कोई लाल रोशनी नहीं जल रही थी, लुटेरों का सरदार अपने साथियों की ओर शक़ की निगाह से देखता है , फिर भी दरवाजे के बाहर खड़े होकर लगैज कंपार्ट्मेंट के इंचार्ज से उसे खोलने को कहता है। इंचार्ज दरवाज़ा खोल देता है, अंदर भयानक सन्नाटा और अंधकार छाया हुआ था, ऐसा लग रहा था मानो किसी ने नर्क का द्वार खोल दिया हो। उन लुटेरों में से दो के पास कोल्ट. 38 जैसी आधुनिक गन थी जिसके ऊपर की लाइट ऑन करते ही लाल लेज़र लाइट निकलने लगती है, वह दोनों अंधकार को चीरने के लिए गन की लेज़र लाईट्स ऑन करते हैं और सबसे पहले सीढ़ियाँ उतरने की तैयारी करने लगते हैं। लगैज इंचार्ज भी अपनी टार्च ऑन कर लेता है। अब उन सभी को सीढ़ियाँ उतर कर नीचे की ओर जाना था सो पहले वही लेज़र लाइट की गन लिए बंदूक धारी सीढ़ियाँ उतरते हैं।
"देखो नीचे सीढ़ियाँ उतरते ही दायीं ओर स्विच पैनल होगा, उसका बायां लिवर नीचे करते ही लाइटें जल जाएंगी, वो देखो उधर, लगैज कंपार्ट्मेंट का इंचार्ज टार्च की रोशनी से पैनल की ओर इशारा करके उन बंदूक धारियों को दिखाता है।
कोल्ट. 38 लिए उन लुटेरों ने सीढ़ियाँ उतरते ही पैनल के बाएं लिवर को नीचे की ओर कर दिया, कंपार्ट्मेंट के हर कोने की लाइट जल गई।
"अरे ये तो वाकई बहुत बड़ा कंपार्ट्मेंट है आज तक मैंने किसी जहाज में इतना बड़ा लगैज कंपार्ट्मेंट नहीं देखा," लुटेरों के सरदार ने सीढ़ियों से उतरते ही कहा।
"ये तो व्यापारियों के कीमती सामानों से भरा हुआ है सरदार, अब तक इस जहाज के कैप्टन ने या उसके किसी आदमी ने जानबूझकर हमें इसके बारे में नहीं बताया," कोल्ट. 38 लिए एक लूटरे ने अपने मुखिया से कहा।
" ठीक कह रहे हो, इन हराम के पिल्लों को इसके लिए सबक सिखाना पड़ेगा, एक काम करो तुम लोग इस कंपार्ट्मेंट की अच्छी तरह से तलाशी लो इस इंचार्ज के बच्चे को भी अपने साथ रखो, मैं ज़रा इस जहाज के कैप्टन को सबक सिखाता हूँ", लुटेरों के सरदार ने अपने साथियों से कहा और सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर डाइनिंग हॉल की ओर चल दिया, उसके पीछे पीछे एक और लुटेरा चल दिया। अब उस कंपार्ट्मेंट केवल छः लोग मौजूद थे।
चारों ओर ख़ामोशी सी छाई हुई थी, उन लुटेरों के साथ कंपार्ट्मेंट इंचार्ज के सिवाए कोई और नज़र नहीं आ रहा था।
" एक काम करते हैं हम लोग चारों ओर फैल जाते हैं इस तरह से तलाशी लेने में सुविधा होगी, अबे इंचार्ज की औलाद तू मेरे साथ ही रहेगा", उनमें से एक लुटेरा कहता है और सभी उस कंपार्ट्मेंट में फैल जाते हैं। खामोशी से भरे उस लगैज कंपार्ट्मेंट में अब उन लुटेरों के कदमों की आहट के सिवाय और कुछ भी नहीं सुना जा सकता था।
"जहाज के सभी कैबिन की तुलना में यहाँ कुछ अधिक ठंड है ", लुटेरा कंपार्ट्मेंट इंचार्ज से कहता है।
"ऐसा जहाज के सबसे निचले तल पर होने की वजह से है, आज हमारे जितने भी साथी मारे गए हैं उन्हें भी बॉडी बैग्स में यहाँ लाकर रखा जाना था, पर उन्हें अब तक ऊपर डेक के एक कैबिन में रखा गया है ", कंपार्ट्मेंट इंचार्ज ने आपत्ति जताते हुए कहा।
"चुप कर हरामी, ज़्यादा मत बोल, हमारे जाने के बाद भी तुम लोग ये कर सकते हो फिलहाल साथ में रहकर अमीर व्यापारियों के इन कीमती सामानों की जानकारी दे ", लुटेरा उस कंपार्ट्मेंट इंचार्ज से कहता है और वह उसे एक एक कर बंधे सामानों का ब्यौरा देने लगता है।
"धाएँ... धाएँ... धाएँ, धाएँ धाएँ... धाएँ, आ...आ ... बचाओ... आ ", स्मिथ एंड वेस्सों मॉडल 29 चेम्बर्ड इन .44 मैगनम की गोलियों के धमाकों के साथ एक खतरनाक चीख ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। सभी भागते हुए उस जगह पहुंचे तो देखा कि उन लुटेरों का एक साथी मारा गया है।
"ये कैसे हुआ और किसने किया", एक लुटेरे ने हैरत जताते हुए पूछा।
" ऐसा होना तो नामुमकिन है हम सभी लोग इधर मौजूद हैं फिर ऐसा कौन कर सकता है, इसकी तो आँखे भी बाहर की ओर निकल आईं हैं जैसे अंदर से सूज गई हों ऐसा तो केवल तभी होता है जब कोई इंसान दुनिया की सबसे डरावनी चीज़ देख लेता है, उसने तो इसका पेट भी फाड़ दिया है, शायद उसके पास कोई धार दार हथियार है जिससे उसने ऐसा किया ", कंपार्ट्मेंट इंचार्ज उनसे कहता है।
" चुप कर हराम ज़ादे, इस जहाज पर लगता है सबसे ज्यादा बोल बचन तू ही देता है, ए सुनो रे दो गुटों में होकर उस हत्यारे को तलाशने का काम शुरू करो, अभी ", एक लुटेरा कंपार्ट्मेंट इंचार्ज को फटकार लगाते हुए अपने चार साथियों से कहता है। सभी हाथों में घातक हथियार लिए अपने साथी के हत्यारे को ढूंढने का काम शुरू कर देते हैं।
"तड़... तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़...तड़...आई ईईईई",फिर से एक बार उसी तरह AK-47 - 1948 मॉडल गन के गोलियों की गूँज के साथ दर्दनाक चीख़ सुनाई पड़ती है, सभी एक बार फिर भागते हुए घटना स्थल पर पहुँचते हैं और देखते हैं कि उन लुटेरों का एक और साथी मारा गया। अब डर से उस कंपार्ट्मेंट में मौजूद हर एक शख्स की आत्मा कांप रही थी, ऐसा कौन सा शख्स या जानवर इस कंपार्ट्मेंट में मौजूद है जो इतनी क्रूरता से हत्या कर रहा है और उस पर हथियार भी बेअसर है।
"इ... इ... इसकी भी हत्या उसी अंदाज़ में हुई है, आँखें डर से बाहर निकल आयीं हैं और पेट फाड़ दिया है, म... मैं...मैं इतने दिनों से यहाँ काम क... कर रहा हूँ लेकिन इसके बारे में नहीं मालूम था अब... अब तक हम लोगों को, ये हो क्या रहा है", डर से कंपार्ट्मेंट इंचार्ज के शब्द भी अटक अटक कर निकल रहे।
" जो भी हो अब यहाँ पर रुकना ठीक नहीं है, सरदार से कोई भी बहाना बना दिया जाएगा लेकिन यहाँ रहे तो मारे जाएंगे, ऊपर डाइनिंग हॉल में एक साथ रहकर मुकाबला करने में मदद मिलेगी, तुम लोग क्या कहते हो," एक लुटेरा अपनी बात अपने बाकि बचे तीन साथियों के सामने रखता है।
"और ये जो दोनों मारे गए हैं इनके बारे में क्या कहेंगे, मैं तो कहता हूँ चुप चाप एक बार फिर से तलाशी लेते हैं नहीं तो ऊपर सारे साथी मज़ाक बनाएंगे हम लोगों का, एक बात बताओ जब तुम दोनों को साथ तलाश करने को कहा था तो अलग अलग क्यूँ हुए", दूसरे लुटेरे ने तीसरे को देख एतराज जताते हुए पूछा।
" अरे अलग होने पर इसी ने कहा दो दिशाओं में बंट कर ढूंढे तो काम आसान हो जाएगा", तीसरे ने अपने बाकि दो साथियों से अपनी सफाई देते हुए कहा।
" म... म... मैं तो कहता हूँ यहाँ से फौरन निकल चलो, प... प... पता नहीं कौन सी मुसीबत है यहाँ पर", कंपार्ट्मेंट के इंचार्ज ने कांपते स्वरों में कहा।
" साले तेरा ही जहाज है और तुझे ही नहीं पता कि यहाँ कौन सी बला है हकले की औलाद", एक लुटेरे ने क्रोध में आकर कहा और उसके ऊपर अपनी आधुनिक कोल्ट. 38 लेज़र पिस्टल तान दी। फिर अपनी बात जारी रखते हुए कहा " अब अगर हकले तूने बोलना बंद नहीं किया तो इसकी पूरी मैगज़ीन तेरे अंदर उतार दूँगा"।
"ए तेरे खोपड़ी पर दो लाल लेज़र लाइट कैसे जल रही है", दूसरे लुटेरे ने उस लुटेरे से कहा जिसने कंपार्ट्मेंट इंचार्ज के ऊपर कोल्ट. 38 तानी थी, इससे पहले कि कोई समझ पाता और उस दिशा में देख पाता, "भड़ाक" की आवाज़ कर उस लुटेरे की खोपड़ी तरबूज़ की तरह फट जाती है। "आ... आ... ये क्या हो गया ", कंपार्ट्मेंट इंचार्ज ने चीख़ कर कहा।
"चुप कर हरामी, ज़रा ध्यान से सुनने दे किसी के चलने की आवाज़ आ रही है", एक लुटेरा उस डरे हुए कंपार्ट्मेंट इंचार्ज से कहता है। अब उस लगैज कंपार्ट्मेंट में केवल तीन लोग ही बचे थे, चारों ओर मातम सा छाया हुआ था। उन तीनों की डर से हालत खराब थी। तभी अचानक लगैज कंपार्ट्मेंट की लाइट ऑफ हो जाती है। " हे... हे... भगवान ये क्या हुआ...ब... ब... बचा ले भगवान ", कंपार्ट्मेंट इंचार्ज ने डर से कांपते हुए कहा।
उस अंधकार में कुछ भी देख पाना नामुमकिन था, वो तीनों अब उस कंपार्ट्मेंट के बीचोंबीच थे, कंपार्ट्मेंट इंचार्ज डर से इतनी बुरी तरह भयभीत हो गया था कि उसके पास ओवर कोट की जेब में एक टार्च है ये भी भूल गया था।
अचानक उस अंधकार में दो लाल आंखें जलते हुए दिखतीं हैं, "क... क... क... कौन है वहाँ", कंपार्ट्मेंट इंचार्ज के बोलते ही बाकी दोनों लुटेरे भी उस ओर देखने लगते हैं।
कंपार्ट्मेंट इंचार्ज को याद आते ही कि उसकी जेब में टार्च रखी है, वह उसे निकाल कर ऑन करता है पर वह अज्ञात लाल चमकती आँखे ग़ायब हो चुकी थीं।
उधर सामने के कैबिन में छुपे तन्नू कि गोलियों की आवाज़ सुनकर हालत खराब थी, उसे लग रहा था कि बाहर शायद लुटेरे बंदियों को गोलियों से भून रहे हैं, लेकिन यही गोलियों और चीखों की आवाज़ चार तल ऊपर डाइनिंग हॉल तक सुन पाना नामुमकिन था।
इधर लगैज कंपार्ट्मेंट में मौत ने तांडव नृत्य कर दिया था और लुटेरों संग लगैज कंपार्ट्मेंट के इंचार्ज की भी हालत खराब थी।
"मैं तो कहता हूँ गुरु अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, इस मनहूसियत से भरे हुए कंपार्ट्मेंट से बाहर निकल चलते हैं, अरे ये तेरी खोपड़ी पर दो लाल लेज़र लाइट कैसी है", एक लुटेरे ने दूसरे को संबोधित करते हुए कहा, इससे पहले कि कंपार्ट्मेंट इंचार्ज और वह लुटेरा कुछ समझ पाता, एक बार फिर से "भड़ाक" की आवाज़ से दूसरे लुटेरे की खोपड़ी फट जाती है। टार्च की रोशनी में यह देखकर दोनों अपने होश खो बैठते हैं और पूरी ताकत लगाकर कंपार्ट्मेंट की सीढ़ियों की ओर भागते हैं, कंपार्ट्मेंट इंचार्ज को टार्च की रोशनी का लाभ मिला इसलिए वह सीढ़ियों के नज़दीक पहुंच गया, लेकिन वह लुटेरा बिना रोशनी के दिशा हीन हो गया और एक बार फिर मौत ने अपना खेल खेला, " आ... आईईईईई ...धाएँ... धाएँ", एक दर्द नाक चीख़ के बाद कोल्ट. 38 से दो फ़ायर हुए लेकिन शायद बे असर थे, क्यूँकि उस खतरनाक मौत के सामने उनके पास बच निकलने का कोई और दूसरा रास्ता नहीं था। बस कंपार्ट्मेंट इंचार्ज ही उस लगैज कंपार्ट्मेंट से निकलने में कामयाब रहा लेकिन पीछे आ रही मौत के भय से भागते हुए एक खाली कैबिन में छुप गया। हादसों से भरी उस रात की खामोशी में वह जहाज के कैबिन में छुपकर मौत के कदमों की आहट को साफ़ साफ़ सुन सकता था। "ठक... ठक... ठक... ठक", कोई अब लगैज कंपार्ट्मेंट की सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर कॉरिडोर तक पहुंच चुका था, "ठक... ठक", कदमों की आहट आना बंद नहीं होती है।
लगैज कंपार्ट्मेंट का इंचार्ज एक अंधेरे कैबिन के बेड के नीचे छुपा हुआ यही सोच रहा था कि आगे इस जहाज पर कौन सी अनहोनी होने वाली है, क्या लगैज कंपार्ट्मेंट से निकली वह गुमनाम भयानक मौत उसका पता लगा उसे भी खत्म कर देगी, इस डर से उसका हृदय ज़ोर से धड़क रहा था, वह लगैज कंपार्ट्मेंट के हुए हादसे में इतना दहशत से भर चुका था कि कंपार्ट्मेंट इंचार्ज सोचते सोचते ही बेहोश हो जाता है।
"ठक...ठक... ठक", लगैज कंपार्ट्मेंट से निकली वह खतरनाक मौत धीरे धीरे जहाज के कॉरिडोर की खामोशी को चीरते हुए आगे बढ़ती है, "चरररररर... " एक कैबिन का दरवाज़ा खोलती है और उस कैबिन के अंदर प्रवेश करती है।
वो खतरनाक मौत कैबिन के अंदर प्रवेश करती है और उस कैबिन के बाथरूम का दरवाजा अपने आप खुल जाता है,
"ओ कमांडर आप हैं, मैंने तो सोचा लुटेरों ने मुझे भी ढूंढ लिया", घबराया हुआ तनवीर डर से कांपते स्वरों में कहता है।
"ये आपके हाथों में खून कैसा", वो अपनी बात जारी रखते हुए कमांडर से पूछता है।
"ये उन लुटेरों का खून है, जो इस समय जहाज पर अपना कब्ज़ा जमाए हुए हैं, तुम्हें हमारा मदद करना पड़ेगा, हम दोनों मिलकर इस जहाज से उनका नामो निशान मिटा देगा", कमांडर आक्रोश से भरे स्वर में तनवीर से कहता है, तन्नू भी उसकी मदद करने के लिए तैयार हो जाता है, कमांडर विस्तार से उसे अपनी योजना के बारे में बताता है और दोनों उसपर अम्ल करते हुए ऊपर डेक की ओर चल देते हैं।
उधर लुटेरों का सरदार जहाज के कैप्टन को सबक सिखाने के लिए उसे डाइनिंग हॉल में यातनाएँ देने में लगा हुआ था "क्यूँ बे हराम ज़ादे, तू हमसे ही सारा झूठ बोल ले, लगैज कंपार्ट्मेंट में व्यापारियों का इतना माल भरा पड़ा है कि उसमें से अगर थोड़ा हमलोग लूट लें तो किसी को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, पर उसके लिए तू जान देने को तैयार है", वो कैप्टन के बालों को पकड़कर उसका सिर चारो दिशाओं में गोल गोल घुमाते हुए कैप्टन से कहता है।
" चाहे जान ही क्यूँ न चली जाए, पर अपनी नौकरी पर आंच नहीं आने दूँगा ", जहाज का कैप्टन उस लुटेरे को जवाब देता है।
" तो चल फ़िर तेरी जान इस शरीर से बाहर ही निकाल देते हैं", इतना कहते ही समुंद्री लुटेरों का सरदार अपनी रेमिंग्टन 870 - 1951 मॉडल पंप एक्शन शॉट गन तान देता है।
तभी अचानक जहाज के हर क्षेत्र की लाईट ऑफ हो जाती है।
" अरे ये क्या हुआ, बत्ती क्यूँ गुल हो गई, ज़रा जाकर देखना क्या हुआ ", लुटेरों का सरदार जहाज की बत्ती गुल हो जाने पर अपने साथियों से कहता है, दो लोग टार्च लिए डाइनिंग हॉल के बाहर निकल जाते हैं। डाइनिंग हॉल में बैठे कुछ कर्मचारियों ने लुटेरों के सरदार का आदेश पाते ही हॉल की ईमर्जेंसी लाइट ऑन कर देते हैं, अब हॉल में सब कुछ देखने लायक रोशनी मौजूद थी।
रात काफ़ी काली होने के साथ साथ कोहरे की चादर से ढकी हुई थी, जहाज के पिछले हिस्से में कुछ लुटेरे गश्त लगा रहे थे कि अचानक उन्हें दो लाल रोशनी जलते हुए दिखाई पड़ती। इससे पहले कि घने कोहरे में वह कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, कमांडर की कटी हुई खोपड़ी अपनी आंखों से कहर ढा देती है और उन चारों लुटेरों की खोपड़ी तरबूज की तरह फट जाती है, डेक पर चारों तरफ़ खून ही खून बहने लगता है।
तन्नू भागते हुए वहाँ पहुँचता है और कमांडर को जहाज के साथ चल रहे लुटेरों के yacht के आकार के छोटे जहाजों को दिखाता है।
"हम सारा माजरा समझ गया अगर इन छोटे जहाजों से पीछा छुड़ा लिया जाए तो मुश्किल वक़्त में लुटेरों तक पहुंचने वाला मदद उन्हें नहीं मिल पाएगा", कमांडर लुटेरों के उन छोटे जहाजों को देखते हुए कहता है जो उनके जहाज को चारों दिशाओं से घेरकर उसके साथ साथ चल रहे थे।
कमांडर अपने सिर को धड़ से अलग करके कहता है" अब देखो कमाल ", इतना बोलते ही कमांडर अपने सिर को उन जहाजों की तरफ़ हवा में फेंक देता है।
"अरे ये दो लाल रोशनी कैसी चमक रही है", घने कोहरे के कारण ठीक से देख पाने में असफल एक जहाज चालक अपने साथी से कहता है।
"रुको मैं जाकर देखता हूँ," उसका साथी कैबिन से बाहर निकल कर उस रोशनी की दिशा में देखता है। तभी अचानक दो तेज़ किरणे कमांडर की आँखो से निकलती हैं और उस जहाज के तेल की टंकी से टकरा जाती हैं।
"कड़ ड़ड़...ड़ ड़ड़ड़...बम", एक तेज़ धमाके के साथ लुटेरों का एक छोटा जहाज विस्फोट का शिकार हो जाता है।
सभी लुटेरों का ध्यान उस छतीग्रस्त जहाज पर पड़ता है।
"ये कैसे हुआ होगा, अचानक अपने आप कैसे उड़ गया", लुटेरों के दूसरे छोटे जहाज का एक चालक अपने साथी से कहता है।
" अरे कुछ नहीं सालों ने सिगरेट पीने के बाद फ़ेक दिया होगा, विस्फोटकों में आग लगने के कारण उड़ा दिया जहाज, उस जहाज पर सरदार ने वक़्त पर काम आने वाले विस्फोटक रखवाए थे, इसलिए मैं सिगरेट नहीं पीता, लोग कैंसर से मरते हैं और ये दोनों जलती सिगरेट का शिकार हो गए", जहाज के चालक से उसके साथी ने कहा।
तभी अचानक कमांडर का कटा हुआ सिर अपनी दो लाल चमकती आँखो के साथ उनके जहाज के सामने उन्हें दिखाई पड़ता है।
" आ...आ ईईईई... ह... ह...हे भगवान ये क्या है, य...य...ये तो किसी आदमी क...का कटा हुआ सिर है, य... ये यहाँ बीच समुद्र में क्या कर रहा है ", इस दिल दहला देने वाले नज़ारे को देख कर उस जहाज चालक की ज़ोरदार चीख निकल जाती है और वह जहाज को ग़लत दिशा में मोड़ देता है जिससे जहाज दिशाहीन होकर सीधा दूसरे जहाज से जा टकराता है और फिर से एक ज़ोरदार धमाका सुनने को मिलता है" कड़ ड़ड़ड़ड़ड़... बूम "। चारों ओर दोनों जहाजों का मलवा समुद्र में बिखर जाता है।
घने कोहरे और समुद्र में उठती तेज़ लेहरों की आवाज़ के बीच इन जहाजों के विस्फोट की आवाज़ दब सी गई थी शायद यही वजह थी कि डाइनिंग हॉल में बैठे लुटेरों का सरदार इससे बेखबर था।
जहाज के दायीं ओर चल रहे लुटेरों के पाँच जहाजों में से अब केवल दो जहाज ही शेष बचे थे जिन्हें कमांडर के सिर ने कुछ समय के लिए ज़िंदा छोड़ दिया था और जहाज के बायीं ओर के एक जहाज के कैबिन में प्रवेश कर लिया था।
"ऊ ईईईई... माँ... ये क्या बला है", इतना बोलते ही जहाज का चालक अपने कैबिन में कमांडर के कटे हुए सिर को देख बेहोश हो जाता है, उस जहाज पर बाकी के लुटेरे भी दहशत के मारे पानी में कूद पड़ते हैं, जहाज चालक के बेहोश हो जाने के कारण दिशा हीन होकर दूसरे जहाज से टकरा जाता है और फिर से एक ज़ोरदार धमाके के साथ दोनों जहाज के चीथड़े समुद्र में बिखर जाते हैं।
"अरे ये क्या हुआ, अपने आप कैसे एक दम से दोनों जहाज टकरा गए, अब तक तो दोनों बिलकुल सही तरीके से चल रहे थे ये अचानक क्या हो गया", दोनों जहाजों को टकराता देख एक लुटेरा अपने साथी से कहता है।
"सरदार ने नौसीख्यों को भर्ती जो कर लिया है अपने समूह में, अब बचकानी हरकतें दो दिखाएंगे ही, कहा था आदमी ज़रा सोच समझ कर भर्ती किया करो, देखना एक दिन हम सबके ऊपर आफ़त आ जाएगी अगर हमारे सरदार ने लूट से पहले अपने गिरोह के लिए होशियार आदमियों की भर्ती न की तो" दूसरे लुटेरे ने आपत्ति जताते हुए कहा।
" बिलकुल सही कह रहे हो... अरे ये क्या चीज़ हवा में उड़ रही है... वो देखो उधर ", उस लुटेरे का साथी अपनी बात कह ही रहा था कि अचानक उस घने कोहरे में उसे दो लाल आँखें चमकती हुई दिखाई पड़ती हैं। उसे देखते ही दोनों अपनी थाॅम्पसन सब मशीन गन्स-1918 मॉडल से फ़ायर कर देते हैं" तड़... तड़... तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़ तड़... तड़ तड़ तड़ तड़ तड़... तड़ तड़", उन दोनों के अंधाधुंध गोलीबारी करने से कमांडर को तो कोई नुकसान नहीं पहुँचता है लेकिन साथ चल रहे उनके साथी जहाज के सारे सदस्य उनकी गोलीबारी का शिकार हो जाते हैं और उनका जहाज दिशाहीन होकर उसी जहाज के सामने से रास्ते में आ जाता है जहां से गोलियां चलाईं गईं थीं। फिर से एक उस कोहरे से भरी रात और अशांत समुद्र में ज़ोरदार विस्फोट होता है "कड़ ड़ड़ड़ड़ड़... बूम"।
इस हादसे को देख बायीं ओर बचा आखरी लुटेरों के जहाज का चालक घबरा सा जाता है कि अचानक ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा उसके साथियों के सिर पर जो एक एक कर के सारे जहाज आपस में टकरा कर ख़त्म हो रहे हैं। तभी उनके जहाज के कैबिन में कमांडर के कटे सिर का प्रवेश होता है।
कमांडर के दिल दहला देने वाला रूप उनके दिलों में दहशत पैदा करने के लिए काफ़ी था कि तभी अचानक उनका चालक डर के मारे अपने बाकी के साथियों को जहाज पर छोड़ समुद्र में छलाँग लगा देता है, उसकी इस हरकत के कारण जहाज दिशा खो बैठता है और दूसरी तरफ चल देता है लेकिन उस पर कुछ लुटेरे अब भी ज़िंदा थे जो कमांडर के सिर पर अंधाधुंध गोलीबारी कर रहे थे, पर शायद कमांडर के सामने उनके घातक हथियार भी बे असर थे और कमांडर के कटे सिर ने उन सभी पर कहर ढा दिया था। चीख पुकार के साथ उन सभी लुटेरों ने एक एक कर के अपने प्राण गंवा दिए।
तन्नू जहाज के पिछले डेक पर खड़ा कमांडर के धड़ साथ ये सारे हादसे होते देख रहा था, लुटेरों को उनके किए की सज़ा बराबर मिल रही थी, जहाज के बायीं ओर सारे लुटेरों के छोटे जहाजों को खत्म करने के बाद कमांडर का कटा हुआ सिर धड़ के पास वापस पहुंचा और धड़ से जुड़ गया। कमांडर का शरीर देखते ही देखते हवा में उड़ने लगा और जहाज के दायीं ओर बचे दोनों जहाजों के पीछे चल दिया।
"मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आज हो क्या रहा है, आज जो हादसे हो रहे हैं ऐसा होते मैंने पहले कभी नहीं देखा", लुटेरों के एक जहाज चालक ने अपने बाकि के साथियों से कहा।
"अरे कुछ नहीं सरदार ने लूट से पहले पुराने लोग न मिल पाने के कारण नये लोगों को भर्ती करके एक मौका दिया था जिसका नतीजा आज सभी के सामने है ", दूसरे लुटेरे ने चालक की कही बातों का जवाब देते हुए कहा।
वहीं बैठा एक और लुटेरा उनकी बातें सुनकर खुद को रोक नहीं पाया और बोला" मैं तो कहता हूँ इस बार चुनाव करवा कर सरदार ही बदल दो, वैसे भी इस सरदार से समूह को कोई ख़ास फायदा तो हो नहीं रहा है, सरदार बदलने पर हो सकता है कि कुछ बढ़ियां नतीजा सामने आए"।
"ठीक ही कह रहे हो ऐसे भी सरदार का निर्णय कुछ ख़ास सफ़ल नहीं होता है अब आज ही देख लो, पूरे 16 जहाजों ने इस जहाज को रोककर लूटा, जहाज पर कब्ज़ा जमाते ही बाकि छः जहाजों के लुटेरों को वापस जाकर अड्डे पर इंतज़ार करने को कहा जबकि आज इधर उनकी ज़रूरत थी", पहले वाले लुटेरे ने अपने सरदार के निर्णय को गलत साबित करते हुए अपने साथियों से कहा।
" अरे वो सब तो बाद की बात है, यह सोचो की आज रात अचानक ऐसा क्या हुआ जो जहाज के वायरलेस ने काम करना बंद कर दिया, न तो इस हादसे की रिपोर्ट सरदार तक पहुँचाई जा सकती है और न मदद के लिए गुहार लगाई जा सकती है, ऊपर से इतना घना कोहरा छाया हुआ है कि जहाज पर अब तक किसी ने हो रहे विस्फोटक हादसों को देखा तक नहीं वर्ना अब तक तो जहाज रोक ही देते सरदार ", जहाज के चालक ने अपने साथियों से आपत्ति जताते हुए कहा और जहाज चलाने लगा।
तभी अचानक एक ज़ोरदार आवाज़ सुनाई पड़ती है" धड़ाक", ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उनके जहाज के छत पर कोई भारी चीज़ गिरी है।
" मैं जाकर देखता हूँ ", एक लुटेरा अपने बाकि के साथियों से कहते ही कैबिन से बाहर की ओर देखने निकल पड़ता है।
"धाएँ... धाएँ... आ ईईईईई या... आ, कोल्ट. 38 की गोलियों के धमाकों के साथ एक दर्द नाक चीख़ निकल पड़ती है, चीख़ इतनी दर्द नाक थी कि जहाज के कैबिन में बैठे लुटेरे बाहर निकल कर देखते हैं। बाहर आते ही उन्हें उनका साथी मृत अवस्था में मिलता है जिसकी आँखे बाहर की ओर निकल चुकीं थीं और पेट फटा हुआ था जिसे कमांडर ने अपना एक हाथ घुसा कर फाड़ दिया था, लेकिन कमांडर का कोई अता पता नहीं चल पाया।
"आ... आ... ये क्या है... आ," अचानक एक ज़ोरदार चीख़ दुबारा सुनाई पड़ती है, वो लुटेरे वापस कैबिन की ओर भागते हैं जहां पहुँचते ही उन्हें यह पता चलता है कि उनके जहाज चालक की डर के कारण मृत्यु हो चुकी है और उनका जहाज अपनी दिशा बदल कर लुटेरों के ही जहाज को टक्कर मारने जा रहा है, उन सभी ने मिलकर बहुत कोशिश की जहाज बचा लें लेकिन शायद बहुत देर हो चुकी थी, उनका जहाज अपने साथी जहाज को लिए लिए मर्चेंट नेवी के जहाज को ज़ोरदार टक्कर मारते हुए धमाके के साथ उड़ जाता है। दोनों जहाज के चीथड़े समुद्र में बिखर जाते हैं। टक्कर की मार और ज़ोरदार धमाका होने की वजह से जहाज में कंपन होने लगता है, कंट्रोल रूम में खतरे का सायरन एक बार फिर से बज उठता है। लुटेरों का सरदार डाइनिंग हॉल से निकलकर डेक पर आता है, जहाँ उसे पता चलता है कि उसके सारे साथी जहाज ख़त्म हो चुके हैं लेकिन कैसे और किस तरह से ख़त्म हो गए, ये उसकी भी समझ में नहीं आता है। वह इस घटना को देखकर बौखला सा जाता है।
To Be continued...