बड़ी हवेली - 1...
बड़ी हवेली - 1...
रात के बारह बज चुके थे तनवीर (तन्नू) इलाहाबाद से कानपुर पहुंचा रोडवेस की बस से। उसके बस से उतरते ही एक अधेड़ उम्र का आदमी उसकी ओर हाँथ बढ़ा कर बैग को थामते ही बोला " कहाँ चलेंगे बाबूजी, मैं रिक्शे वाला" दूसरे हाँथ से रिक्शे की ओर इशारा करते हुए। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दिसम्बर की ठंड और भूख ने उसके गले को बैठा दिया हो तभी तो वो भागता हुआ पहुंचा था अपनी सवारी के पास। तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा " बड़ी हवेली चमन गंज जाना है, कितने लोगे"? 1978 की उस कड़ाके की ठंड में केवल चार रिक्शे वाले और दो तांगे वाले ही दिख रहे थे हर जगह कोहरे ने चादर चढ़ा रखी थी। रिक्शे वाले ने कहा " 10 रुपए दे दीजिएगा, ठंड भी तो है सरकार"। तन्नू ने रिक्शे की तरफ़ चलते हुए कहा " ठीक है चलो "।
रिक्शे पर सवार होते ही तन्नू ने अपने जैकेट से सिगरेट का पैकेट निकाला एक सिगरेट उसमें से निकला और पैकेट वापस जैकेट की जेब में रख दिया उसी जेब से लाइटर निकाला और सिगरेट जलाई। एक लम्बा कश लगा कर अन्दर खिंचा और राहत की साँसों के साथ सिगरेट का धुआं बाहर छोड़ा। उसका चेहरा तनाव रहित लग रहा था। उसने रिक्शे वाले से पूछा "रात भर रिक्शा चलाते हो क्या, परिवार नहीं है क्या शहर में"? रिक्शे वाले ने जवाब दिया "नहीं बाबूजी , दो बजे तक चलाएंगे फ़िर कमरे पर जा कर आराम करेंगे, सुबह 9 बजे से Elgin mill में काम करते हैं, यहीं पास के गांव के हैं इसलिए परिवार नहीं रखा शहर में"। "अरे वाह! तुम तो काफ़ी मेहनती मालूम पड़ते हो, कितना पढ़े लिखे हो", तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।" मैट्रिक पास हैं बाबूजी" रिक्शे वाले ने जवाब दिया। सिगरेट का आखिरी कश ख़त्म होते ही चमन गंज पहुंच गया था तन्नू। रिक्शे वाले ने हवेली के पास रिक्शा रोकते ही कहा" लीजिए पहुंच गए बाबूजी बड़ी हवेली।" तन्नू ने अपनी जेब से बटुवा निकाला उसमें से दस रुपए का नोट रिक्शे वाले को दिया फ़िर बटुवा जेब में रखते ही बैग को कंधे पर टांग लिया और हवेली की तरफ़ बढ़ने लगा।
हवेली के गेट पर चौकीदार बैठा था उसे तन्नू के आने की ख़बर शायद पहले से ही थी इसलिए तो उसने नाम सुनते ही गेट खोल दिया। तन्नू हवेली के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ा। चौकीदार ने उसके हाथ से बैग लेकर अपने कंधे पर टांग लिया था और दूसरे हाथ में लालटेन थाम रखी थी। दरवाजे पर पहुंच उसने कुंडा खटखटाया।
कुछ देर में दरवाजे को एक 18 साल की सुन्दर लड़की ने खोला। उसने तन्नू कि ओर देखते ही एक नादान सी मुस्कान अपने चेहरे पर झलकाई। तन्नू भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला "तुम शहनाज़ हो न, डॉक्टर अंकल की बेटी, कितनी बड़ी हो गई हो।" शहनाज़ ने उसे उसकी अम्मी के कमरे की ओर चलने का इशारा करते हुए कहा "आप भी तो कितने खूबसूरत हो गए हैं" उसने जारी रखा " अब आंटी को देखने वाला कोई नहीं था इसलिए मुझे पापा ने रुकने को कहा, लेकिन अब आप भी आ गए हैं तो एक से भले दो"।
उसने तन्नू की अम्मी के कमरे का दरवाज़ा खोला उसकी अम्मी रज़ाई के अंदर लिपटी पड़ी थीं। उन्हे अलजाईमर नाम का दिमागी रोग हुआ था उनकी हालत ज़्यादा नाज़ुक थी इसलिए तन्नू को तुरन्त बुलवाया गया था।
तनवीर नवाबों के परिवार से ताल्लुक रखता था और पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवाया गया था। उसके वालिद ने गुज़रने से पहले सब कुछ उसके नाम पहले ही कर दिया था क्यूँकि वह अपनी बेगम की तबीयत के बारे में जानते थे। यूँ तो तनवीर की अम्मी लखनऊ की हवेली में रहा करती थीं लेकिन अपने शौहर के गुज़रने के बाद कानपुर की बड़ी हवेली में रहने लगीं थीं।
तन्नू ने शहनाज़ से अपनी अम्मी की सारी जानकारी ली क्यूँकि वह सो रही थीं इसलिए उसने जगाना सही नहीं समझा।
शहनाज़ ने तन्नू को उसके कमरे की ओर ले जाते हुए कहा " तुम इस हवेली में पहली बार आए हो न, इसलिए तुम्हें बता रही हूँ नीचे बेसमेंट में कभी मत जाना । सब कहते हैं उसमें एक रूह रहती है। तुम्हारी अम्मी को भी यहाँ नहीं आना चाहिए था यहाँ आते ही उनकी तबीयत ज़्यादा खराब हो गई।"
" तुम भी न बच्चों जैसी बातें करती हो शहनाज़ आज के ज़माने में कहीं कोई मानेगा इन सब बातों को। अच्छा ये बताओ तुम्हें कितनी बार पकड़ा उस रूह ने " तन्नू ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
" मज़ाल है मेरे सामने कोई रूह आ जाए मेरे गले में पीर बाबा का ताविज़ है, तुम्हारे लिए भी ला दूँगी" शहनाज़ ने इतराते हुए कहा।
उसने एक कमरे के दरवाजे के सामने रुकते ही कहा" लीजिए हुज़ूर आपका कमरा आ गया "। तन्नू ने दरवाजा खोला और अंदर बिस्तर की ओर बढ़ा वो काफ़ी थक चुका था उसने तुरंत ही ख़ुद को बिस्तर पर फेंक दिया। शहनाज़ ने उसकी ये हरकत देखी और लालटेन को टेबल पर रख दिया जो बिस्तर के पास ही था फ़िर तन्नू की ओर देखते हुए कहा "अच्छा अब मैं चलती हूँ, तुम भी आराम से सो जाओ सुबह बातें होगीं"। तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा "गुड नाइट" शहनाज़ ने भी इसका जवाब गुड नाइट बोलकर दिया।
तन्नू को रात में प्यास लगी उसकी नींद खुल गई उसने घड़ी में देखा तो सुबह के तीन बजे हुए थे वो बिस्तर से उठकर रसोई की तरफ़ बढ़ा। इतने में एक आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वो आवाज़ शायद बेसमेंट से ही आ रही थी। आवाज़ धीरे धीरे तेज़ होने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपने हांथों से दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से पीट रहा हो। तनवीर के कदम रुके नहीं वो सीधा बेसमेंट की ओर लपका और दरवाज़े के सामने खड़े होकर आश्चर्य के स्वर में पूछा "कौन है, कौन है अंदर"? तन्नू ने अपने कान दरवाज़े पर रख दिए ताकि सुन सके कि अन्दर से कोई आवाज़ आती है या नहीं लेकिन इतने में दो भयानक हाथ दरवाज़ा तोड़ते हुए बाहर निकल कर तन्नू को गर्दन सहित पकड़ लेते हैं। तन्नू अपनी आँखो को बंद कर के ज़ोर से चिल्लाया "बचाओ, बचाओ" जब आँखें खोलीं तो देखा सुबह हो चुकी थी , सूरज सिर पर आ चुका था और चिड़ियों की आवाज़ों से सारा वातवरण उत्साहित हो रहा था। अगली सुबह तनवीर (तन्नू) अपने बिस्तर से उठ कर फ्रेश होने के बाद सीधा डाइनिंग टेबल पर जा पहुंचा। शहनाज़ पहले से ही वहाँ मौजूद थी और जूस पी रही थी। तन्नू ने उससे भूमिका बांधते हुए पूछा "अच्छा कल जो तुम उस बेसमेंट वाली रूह के बारे बात कर रही थी शहनाज़ इसका और भी कोई चश्मदीद गवाह है या ये तुम्हारे ही दिमाग की उपज है"। "तुम्हें क्या लगता है मैं क्या कोई पागल हूँ जो अपने से भूत आया, भूत आया चिल्लाउंगी सिर्फ मैं ही नहीं और भी गवाह हैं जिन्होंने ये दावा किया है कि उन्होंने रूह को देखा है " शहनाज़ ने काफ़ी आत्मनिर्भरता से जवाब दिया। " तो ठीक है आज इस रहस्य को भी और नज़दीक से जानने का मौका मिलेगा, पहले ज़रा नाश्ता कर के अम्मी से मुलाकात कर लूँ फ़िर हम दोनों मिलकर इस मसले का तहकिकात करेंगे" तन्नू ने काफ़ी उत्साहित होकर कहा। " निहारिका ओ निहारिका , ज़रा नवाब साहब के लिए नाश्ता लगाना" शहनाज़ ने पुकारते ही तन्नू की तरफ देख कर आँख मार दी। तन्नू भी अपनी मुस्कान न रोक पाया वो उस शख्स को देखने के लिए उत्साहित था जिसका शहनाज़ ने नाम पुकारा था। निहारिका वाह नाम सुनते ही लगता है ज़रूर किसी अप्सरा का होगा तन्नू ने मन ही मन सोचा और मुस्कुराने लगा।
थोड़ी देर बाद एक हसीन युवती नाश्ता लेकर अन्दर से आई, उसे देखते ही तन्नू के होश फाख्ता हो गए। वो बला की खूबसूरत थी कोई भी उसे देखकर नहीं कह सकता था कि वह घर कि नौकरानी है। कटिले नैन नक्श, गोरा रंग, लम्बा कद और गदराया बदन। उसे देखते ही कोई भी लड़का उसका दीवाना बन जाता। निहारिका ने नाश्ते की प्लेट तन्नू के सामने रख दी और साथ ही टेबल पर गोभी, आलू, मूली, मेथी आदि के तरह तरह के पराठे थे। तन्नू ने बटर नाइफ से थोड़ा बटर निकाल कर प्लेट में डाला और सोचने लगा कौन सा पराठा पहले खाऊँ। इतने में शहनाज़ बोली" ये गोभी वाला पहले खाओ", उसने एक गोभी का पराठा उसकी प्लेट में डाल दिया। तन्नू ने खाना शुरू किया "वाह! क्या बात है, ऐसा गोभी का पराठा आज तक नहीं खाया" तन्नू ने पराठा मुँह में डालते हुए कहा। "अच्छा है न, इस हवेली में काम करने वाले रसोइए बहुत अच्छा खाना पकाते हैं " शहनाज़ ने तुरंत ही कहा।
"और कुछ चाहिए नवाब साहब को" निहारिका ने तन्नू की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पूछा। तन्नू ने भी मुस्कुराते हुए नहीं के इशारे में गर्दन हिला दी, निहारिका समझ गयी और अपना काम करने वापस जाने लगी।
तन्नू ने अपना नाश्ता ख़त्म किया और टेबल से सीधा उठकर शहनाज़ के साथ अम्मी के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा। कमरे में पहुँचते ही देखा अम्मी एकटक छत को देख रही थी। उसने अम्मी को देख कर पूछा "अम्मी अब कैसी तबीयत है आपकी"। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उसने तीन चार बार और पूछा लेकिन बिलकुल सन्नाटा। इतने में शहनाज़ बोली " मैंने सवेरे का डोस दे दिया है जैसा पापा ने बताया था, थोड़ी देर बाद इन्हें नींद आ जाएगी, इनके लिए आराम करना बहुत जरूरी है"। शहनाज़ ने जैसा बोला था वैसा ही हुआ थोड़ी देर बाद तन्नू कि अम्मी की पलकें भारी होने लगीं जिन्हें अब खुला रखना तनवीर की अम्मी के बस में नहीं था और वह गहरी नींद में सो गईं।
तन्नू और शहनाज़ अपने तय किए हुए कार्य पर लग गए उन्होंने हवेली के सभी नौकरों को बुलवाकर पूछताछ की। उनमें से ज़्यादातर का यही कहना था कि उस बेसमेंट में से कभी कभी किसी के चलने की आवाज आती है। उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि उनमें से कुछ ने वहां तेज़ लाल रोशनी जलते हुए देखा है।
सभी से पूछताछ करने के बाद तन्नू ने शहनाज़ की तरफ देख कर कहा "इसका मतलब यह है कि इस हवेली में सही में कोई रूह है लेकिन तेज़ लाल रोशनी का क्या मतलब है, अच्छा शहनाज़ तुम्हें पता है इस हवेली को कब खरीदा गया या इससे पहले इसमें कौन रहता था, इन सब बातों का पता चलना बहुत जरूरी है तभी किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है"। शहनाज़ ने कुर्सी से उठ कर तन्नू के इर्दगिर्द चलते हुए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ते हुए कहा" जहाँ तक मेरी जानकारी में है तुम्हारे अब्बू ने इस हवेली को गुज़रने से पाँच साल पहले ही लिया था उन्होंने इस हवेली को अपने पुरातत्व विभाग के दोस्त और सह कर्मचारी डॉ ज़ाकिर से खरीदा था, उन्हे लंदन की यूनिवर्सिटी से बुलावा आ गया था और उन्होंने जाने से पहले ये हवेली तुम्हारे अब्बू को बेच दी। शहनाज़ ने बोलना जारी रखा " तुम्हारे अब्बू के गुज़रने के बाद घर का खर्चा हवेली के रख रखाव में दिक्कत आने लगी थी इसलिए मुनीम जी और बाकी के जिम्मेदार सदस्यों ने ही लखनऊ की हवेली बेचने का फैसला किया था फिर भी खर्चा चल ही रहा है कई जगह खेती से अच्छी खासी आमदनी जो हो जाती है। तुम्हारे अब्बू और डॉ जाकिर इस हवेली में अपने प्रयोग की कुछ वस्तुएं भी रखते थे, मैंने ऐसा सुना है "।
तन्नू काफ़ी गंभीरता से इस बड़ी हवेली के खयालों में खो गया। तन्नू अपने खयालों में ये सोचता रहा कि आखिर उस तहखाने में ऐसा क्या होगा जिससे सभी हवेली के नौकर डरें हुए हैं क्यूँ न तहखाने को एक बार खोलकर देखा जाए। "मैं कल ही उस तहखाने को खोलता हूँ", तन्नू ने मन ही मन सोचा।
शाम हो चली थी तन्नू ने अपनी अम्मी को दवाई खिलाई और हाल में चिमनी के पास आकर बैठ गया। निहारिका तुरंत उसे चाय की प्याली देती है। तन्नू निहारिका की तरफ बड़े प्यार से देखता है और पूछता है "घर में कौन कौन है?"
निहारिका ने जवाब दिया, " कोई नहीं है नवाब साहब"।
तन्नू चाय की चुस्की तो ले ही रहा था साथ ही निहारिका की कमर को देख रहा था। उस गदराए हुस्न की मलिका की कमर बिलकुल चिकनी नज़र आ रही थी। वो उसे हसरत भरी निगाहों से देख रहा था और उसके मन में उसे छू लेने का विचार आ रहा था। इतने में कमरे में शहनाज़ आ जाती है और तन्नू की तरफ देख कर कहती है "क्या हुआ नवाब साहब, क्या खिचड़ी पक रही है दिमाग में", तन्नू ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा और कहा "कुछ नहीं बस यूँही चाय की चुस्की ले रहा हूँ", " तुम्हें भी पीनी हो तो बनवाऊँ" तन्नू ने अपनी नज़र चुराते हुए कहा।
"रहने दीजिए, मैं ख़ुद ही बना लूँगी" शहनाज़ ने तन्नू की ओर देखते हुए कहा। इतने में तन्नू ने उससे पूछा "अच्छा शहनाज़ क्या कल तुम मेरे साथ तहखाने में चलोगी "," न बाबा न, क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है " शहनाज़ ने बोला।" तुम भी क्या बच्चों जैसी बातें करती हो, आज के ज़माने में तुम भूत प्रेत जैसी बातें करती हो" तन्नू ने निडरता दिखाते हुए कहा।
"मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ " निहारिका ने कहा।" बहुत अच्छा हम तीनों कल ही तहखाने में चलेंगे इस बात का पता लगाने की आखिर उस तहखाने में ऐसी क्या चीज़ छुपी हुई जिससे घर के बाकी नौकर इतना डरे हुए हैं ", तन्नू ने उन दोनों नौजवान लड़कियों से कहा जिनके चहरे पर गंभीरता के साथ डर साफ़ झलक रहा था।
रात काफ़ी हो चली थी खाने की टेबल पर एक दूसरे को गुड नाइट कहने के बाद शहनाज़ और तन्नू अपने अपने कमरों में सोने चले गए। तन्नू ने अपने कपड़े बदले और नाइट सूट में बिस्तर पर सोने चला गया। कुछ देर बाद तन्नू की नींद खुली उसने अपनी घड़ी में देखा तो तीन बजे हुए थे। उसे ज़ोर से प्यास लगी थी लेकिन बगल में रखे जग में पानी ख़त्म हो गया था। उसने अपने मन में सोचा "बड़ी अजीब बात है, अभी तो पानी भर के रखा गया था सोने से पहले एक बार भी नही पिया तो फिर ये पानी कैसे खत्म हो गया", तन्नू ने इतना सोचा ही था फिर उठकर किचन की ओर बढ़ने लगा कि अचानक उसे किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी उसने पहले तो इस बात को नज़रअंदाज़ किया लेकिन फिर जब आवाज काफ़ी ज़ोर से आने लगी तो उसने उस आवाज़ का पीछा किया। वह कदमों की आहट उसे तहखाने के पास ले गई। कदमों की आहट इतनी साफ़ सुनाई पड़ रही थी कि कोई भी दूर से सुन ले और दरवाज़े के नीचे दरार से लाल रोशनी चमकती हुई दिखाई पड़ रही थी। तन्नू तहखाने के दरवाज़े के निकट आया तो कदमों की आहट थोड़ी धीमी पड़ गई, उसने जैसे ही दरवाज़े पर कान टिकाए अचानक एक खौफनाक हाँथ बाहर निकल कर आता है दरवाज़ा तोड़ते हुए और तन्नू को जकड़ लेता है। तन्नू घबराहट में अपनी आँखे बंद कर के ज़ोर से चीखता है "बचाओ, बचाओ", इतने में उसकी आँखें खुल जाती हैं तो देखता है निहारिका खिड़की का पर्दा हटा रही थी और सुबह का सूरज निकल चुका था। उसने तन्नू की ओर देखते हुए कहा "किसने पकड़ लिया नवाब साहब, आपको किससे बचाना है", तन्नू ने बात को बदलते हुए कहा "जिसे पकड़ना है वो तो कभी पकड़ती नहीं है जिसे नहीं पकड़ना होता है वो सपनों में भी पकड़ लेता है"। तन्नू का शरारत भरे जवाब का मतलब शायद निहारिका समझ गई थी इसलिए उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोली" अब जल्दी से तैयार भी हो जाइए और नाश्ते की टेबल पर आ जाइए, याद है न आज तहखाने की छानबीन करनी है "।
तन्नू तैयार होकर टेबल पर पहुंच जाता है जहाँ शहनाज़ पहले से ही मौजूद थी।
तन्नू ने शहनाज़ को गुड मॉर्निंग कहा वापसी में शहनाज़ ने भी उत्तर दिया। नाश्ता ख़त्म होते ही तीनो पहले तन्नू की अम्मी को देखने गए उनकी हालत में सुधार तो था लेकिन वह किसी से बात चीत नहीं करतीं थीं। निहारिका और शहनाज़ ने उन्हें दवाईयां देकर आराम से बिस्तर पर लेटा दिया क्यूँकि उनकी दवाइयां ऐसी थीं कि किसी भी इंसान को कुछ देर में सुला देतीं।
उनके सो जाने के बाद तीनों तहखाने की ओर चल दिए। हो सकता है कि इस तहखाने में कुछ ऐसा राज़ छुपा हो जिसे आज तक कोई ढूँढ न पाया हो, शायद कोई खज़ाना हो या छुपा हुआ रहस्य जो तीनों को अमीर बना दे, हो सकता है कि लोगों की बात सही हो और यहाँ पर कोई भूत प्रेत हो, या ये भी हो सकता है कि सिर्फ एक वहम है जो लोगों ने पाल रखा है तन्नू के मन में ये सारी बातें चल रहीं थीं जैसे ही जैसे वह तीनों तहखाने की ओर बढ़ रहे थे।
तहखाने के कमरे के बाहर एक बड़ा ताला लटका मिला तन्नू ने आसपास नज़र डाली तो देखा कोई ज़्यादा काम आने वाली चीज़ नहीं मिली बस एक लोहे की खंती रखी हुई थी उसने उस खंती को उठाया और तहखाने के कमरे के उस ताले को तोड़ दिया।
तन्नू ने तहखाने का ताला तोड़ तहखाने का दरवाज़ा खोला। निहारिका और शहनाज़ की हालत डर से खराब हो गई थी उन्होंने अपने अपने हांथों से कस कर पकड़ रखा था तन्नू को। तन्नू को भी उनके डर का अंदाज़ा हो गया था। पूरे तहखाने में धूल ने चादर चढ़ा रखी थी ऐसा लग रहा था मानो किसी ने सदियों से हाँथ न लगाया हो। चारों ओर दीवार पर मकड़े के जाल साफ़ नज़र आ रहे थे। तन्नू ने तहखाने में सामने रखी मेज़ पर देखा तो कुछ पुराने दस्तावेज रखे हुए थे, कुछ नक्शे थे और एक पेपर वेट भी था। निहारिका और शहनाज़ सामने रखी अलमारी खोल कर छान बीन कर रहे थे। उस तहखाने में कुल पाँच अलमारीयां थीं। तन्नू ने दस्तावेज की छान बीन से पता लगाया की उसके अब्बू शायद हिमालय की किसी गुफा के ऊपर काम कर रहे थे। कुछ दस्तावेजों से पता चला कि उस गुफा से उन्हें एक अमूल्य वस्तु प्राप्त हुई थी। उसका उन दस्तावेजों में ज़िक्र तो था लेकिन कहीं ये नहीं लिखा था वो क्या थी। तन्नू ने उन दस्तावेजों को अपने ओवर कोट के जेब में रख लिया और सामने की अलमारी की ओर बढ़ गया। सभी अलमारियों को देखने के बाद उसने सभी दस्तावेज एक जगह इकट्ठा किए वहीं थोड़ी दूर में एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। उन तीनो ने उस पुराने संदूक को खोला उसमें एक कंकाल रखा हुआ था ऐसा लग रहा था काफ़ी पुराना है लेकिन उस संदूक के कंकाल का सिर गायब था। "आख़िर इसका सिर कौन ले गया होगा, और ये कंकाल यहाँ क्या कर रहा है", शहनाज़ ने अचंभित स्वरों में पूछा। तन्नू ने उसका उत्तर दिया "मुझे लगता है अब्बू और उनके दोस्त किसी प्रोजेक्ट पर हिमालय के पहाड़ों की गुफाओं पर गए थे वहाँ से उन्हें शायद ये कंकाल मिला होगा। यह कोई मामूली कंकाल तो है नहीं और इसे देखकर ऐसा लगता है कि काफ़ी समय से बर्फ़ में जमा हुआ होगा तभी इसके कोट में पानी से गलने के निशान हैं। "
" लेकिन नवाब साहब इसका सिर ग़ायब होने की क्या वजह हो सकती है," निहारिका ने तन्नू की ओर देखते हुए पूछा।" मुझे लगता है कि ये एक अंग्रेज का कंकाल है क्यूँकि इसके कपड़ों से तो यही पता चलता है, लेकिन ये बात तो मेरी भी समझ में नहीं आई कि इसका सिर कौन ले गया होगा और क्यूँ "। तन्नू ने कंकाल को ध्यान से देखा उसके कोट का आधा हिस्सा फंटा हुआ था। उसकी पतलून भी कई जगह से फंट सी गई थी। उसके पाँव में लॉन्ग बूट थे जो ज़्यादातर पहाड़ों पर चढ़ने वाले लोग ही पहनते हैं। तन्नू उन बूट को देखकर थोड़ी देर के लिये सोच में पड़ गया। फिर उन तीनों ने वहां से ज़रूरी कागज़ात बटोरे और तहखाने को बंद कर दिया। शहनाज़ एक नया ताला लेकर आई और उसने तन्नू को दे दिया तन्नू ने उस तहखाने के दरवाजे का कुंडा बंद कर के उसपे ताला लगा दिया।
तीनों तहखाने से मिले कागज़ात को लेकर हॉल में आए।
उन्होंने उन सभी दस्तावेजों को हॉल की एक बड़ी टेबल पर रखा। फिर तन्नू और शहनाज़ मिलकर उन दस्तावेजों की जांच पड़ताल करने लगे। निहारिका तन्नू की अम्मी के कमरे में उनका हाल पता करने चली गई।
तन्नू और शहनाज़ ने दस्तावेजों से पता किया कि वो कंकाल काफ़ी कीमती था जिसे तन्नू के अब्बू अपने इंतकाल से पहले ही इस तहखाने में लेकर आए थे
उस कंकाल का सिर काफ़ी कीमती और चमत्कारी था। तन्नू ने शहनाज़ की तरफ देखते हुए कहा "शायद उस कंकाल के सिर ग़ायब हो जाने की यही वजह थी कि वह चमत्कारी था लेकिन ऐसा कौन सा अंग्रेजी चमत्कारी कंकाल मिल गया था"? इतने में शहनाज़ ने कहा "मुझे लगता है कि उस कंकाल का सिर इस हवेली में आने के बाद ग़ायब हुआ था"। "यह बात तो तुमने बिलकुल सही कही लेकिन सिर ग़ायब किसने किया होगा ये अपने आप में एक पहेली है" तन्नू ने शहनाज़ से अचंभित भाव में कहा।
शाम हो चली थी सब कुछ देखते हुए तन्नू ने शहनाज़ से कहा" अच्छा अब चल कर नहा धोकर फ्रेश हो लिया जाए आज तहखाने की काफ़ी सफ़ाई कर ली है "। शहनाज़ भी उसकी बात मानकर अपने कमरे की ओर फ्रेश होने चली गई। दोनों फ्रेश होने के बाद डाइनिंग टेबल आ कर बैठ गए निहारिका उन दोनों के लिए कॉफी ले आई।
कॉफी पीते पीते शहनाज़ ने तन्नू से पूछा " क्या तुम्हें लगता है कि इस हवेली में इसी सिर कटे अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही का भूत घूमता है"? तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा " तुम भी अजीब अजीब बातें करती हो, उस तेज़ लाल रोशनी का क्या जिसका ज़िक्र हवेली के सारे नौकरों ने किया था, आखिर वो लाल रोशनी उन सभी को तहखाने के रोशनदान से जलते हुए दिखने की क्या वजह हो सकती है "।" अगर उस कंकाल का सिर चमत्कारी है तो धड़ भी तो चमत्कारी होगा", निहारिका ने पूछा। तन्नू थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया उसके मन में ये विचार आ रहे थे कि जब से वो इस हवेली में आया है उसने दो बार उस तहखाने में किसी के कदमों की आहट सुनी है, लगातार दो रातों को एक जैसे ही सपने, घड़ी में तीन बजे का घंटा दिखाई देना, ये सारी चीजें किसी ओर इशारा कर रहीं थीं लेकिन तन्नू ने बात बदलते हुए शहनाज़ से पूछा "अगर तुम्हें उस कंकाल का सिर मिल जाए तो तुम क्या करोगी"? "अगर वो सचमुच चमत्कारी हुआ तो उससे बहुत सारी दौलत मांग लूँगी और इस दुनिया पर शहज़ादी बनकर राज करूंगी" शहनाज़ ने पलक झपकते ही जवाब दिया। दोनों मिलकर हंसने लगे। रात काफ़ी हो चली थी निहारिका ने दोनों का खाना डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और ख़ुद तन्नू की अम्मी के लिए सूप लेकर उनके कमरे की ओर चली गई। शहनाज़ और तन्नू खाना खाने लगे।
डाइनिंग टेबल पर खाना खत्म होने के बाद तन्नू ने शहनाज़ को गुड नाइट बोला और निहारिका से अपने कमरे में पानी रखने का हुक्म दिया। निहारिका ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला दी।
तन्नू ने अपने कमरे में जाकर नाइट सूट पहना और अपने बिस्तर पर लेट गया।
कुछ देर बाद निहारिका जग में पानी लेकर आई। तन्नू ने उसे अपने पास थोड़ी देर के बैठने को कहा निहारिका पहले तो थोड़ा घबराई लेकिन फिर पास ही कुर्सी पर बैठ गई। तन्नू ने उससे बिस्तर पर ही लेटे हुए पूछा " अच्छा निहारिका तुम इसी हवेली में ही रहती हो या कभी अपने घर भी जाती हो"। " जाती हूँ न नवाब साहब हर शनिवार को जाती हूँ और रविवार की शाम को वापस आ जाती हूँ" निहारिका ने तन्नू के प्रश्न का उत्तर दिया। "अच्छा कोई आशिक या मंगेतर है क्या तुम्हारा" तन्नू ने थोड़ा संकोच से पूछा।" नहीं नवाब साहब अब तक तो कोई आप जैसा कहाँ मिला " निहारिका ने शरारत भरे अंदाज़ में जवाब दिया जैसे वो जानती हो कि तन्नू ने ये प्रश्न उससे क्यूँ पूछा। तन्नू के चहरे पर मुस्कान खिल गई जैसे उसे किसी ख़ज़ाने की चाबी मिल गई हो लेकिन उसने अपने हाव भाव को काबू में रखते हुए निहारिका से कहा " अच्छा चलो अब तो मैं मिल गया हूँ, अब क्या ख़याल है"। निहारिका का चहरा शर्म से लाल हो चुका था उसने अपने चहरे को हाँथों से ढका और वहाँ से भागती हुई चली गई। तन्नू भी समझ गया लड़की हँसी तो फंसी उसका आधा काम हो चुका था बस अब इज़हार कर के आँखें चार और जिया बेकरार करना बाकी रह गया था। तन्नू ने ठण्डी आहें भरी और एक ग्लास पानी पिया फ़िर थोड़ी देर में सो गया।
रात का घनघोर अंधेरा बाहर छाया हुआ था और साथ ही उस पर कोहरे ने चादर चढ़ा रखी थी लेकिन शायद उस हवेली में किसी को चैन की नींद नहीं आ रही थी। कदमों की तेज़ आहट सुनकर तन्नू की नींद खुली। वो कुछ देर के लिए अपने बिस्तर पर ही लेट कर उन कदमों की आहट को सुनकर सोचने लगा। इतनी रात को कौन टहल रहा है हवेली में कहीं कोई चोर तो नहीं। वह अपने बिस्तर से उठा उसने अपना नाइट गाउन डाला और धीरे से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला। तन्नू उन तेज़ कदमों की आहट का पीछा करने लगा। वह उसी जगह पहुँच गया लेकिन जो उसने देखा उस पर यकीन कर पाना शायद हर पढ़े लिखे युवक के लिए असंभव था। तन्नू ने देखा वही कंकाल हवेली में इधर-उधर घूम रहा था शायद वो अपना सिर ढूँढ रहा था।
तन्नू एक तरफ बड़ी सावधानी से छुप कर ये सब कुछ देख रहा था। एक ओर जहां उसके रौंगटे खड़े हुए थे वहीं दूसरी ओर उसके मन में सवाल भी था और वह ये था कि ये कंकाल उस तहखाने से बाहर कैसे आया वहाँ तो ताला लगा दिया था। तन्नू उस कंकाल का बड़ी सावधानी से पीछा करने लगा जैसे ही घड़ी ने तीन बजे का घण्टा बजाया वो कंकाल अपने तहखाने की ओर बढ़ने लगा। तन्नू भी उसके पीछे पीछे हो लिया। उसने देखा कि वह अंग्रेज का कंकाल अपने संदूक के अंदर जाकर लेट गया फ़िर संदूक अपने आप बंद हो गया और ठीक उसी तरह बंद हो गया हवेली के तहखाने का दरवाज़ा। तन्नू को बड़ी हैरत हुई ये सब देख कर। तन्नू सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने कमरे में वापस आ गया और अपने बिस्तर पर लेट गया। लेट कर तन्नू ये सोचने लगा कि सब की बात सही साबित हो गई इस हवेली में हक़ीक़त में भूत है जो शायद रोज़ाना ही इस हवेली के चक्कर लगाता है शायद उसे अपनी खोपड़ी की तलाश है। यह सिर कटा कंकाल इस हवेली में तब तक घूमता रहेगा जब तक उसे अपना सिर नहीं मिल जाता लेकिन उस सिर को चुराया किसने होगा और क्यूँ चुराया होगा। शायद उस कंकाल की खोपड़ी कुछ ज़्यादा ही कीमती है उस कंकाल के लिए भी और उसे ढूंढने वाले के लिए भी।
तन्नू इसी सोच में सो नहीं पाया और देखते ही देखते सुबह हो गई। सवेरे होते ही उसने नाश्ता किया और सबसे पहले तहखाने में पहुंच गया लेकिन एक बार फिर वो हैरानी में पड़ गया उसने देखा कि तहखाने के दरवाजे पर ताला लगा हुआ है। उसने निहारिका को आवाज़ लगाई और उससे चाबी लाने को कहा।
निहारिका फौरन ही चाबी लेकर पहुंची उसने तन्नू को चाबी दे दी, तन्नू ने तुरन्त ही ताला खोल तहखाने का दरवाज़ा खोल दिया। निहारिका भी उसके साथ ही तहखाने में चली गई वो तन्नू को बड़ी हैरत से देख रही थी क्यूँकि तन्नू के माथे पर चिंता की लकीरें थीं। उसने तन्नू से पूछा "आप क्या ढूँढ रहे हैं नवाब साहब"? तन्नू ने उसे पिछली रात की सारी घटना बताई और उसे सुन निहारिका डर गई । तन्नू ने सबसे पहले उस संदूक को खोला जिसमें कंकाल रखा था उसने कंकाल का अच्छी तरह से निरीक्षण किया फ़िर उसने उस संदूक का अच्छी तरह से निरीक्षण किया। उसे ये लगा कि शायद संदूक में कोई ऐसा सुराग छुपा हुआ हो जो उस कंकाल का राज़ बताने में मदद करे लेकिन उसके हाँथ निराशा ही लगी। फिर दोनों ने मिलकर संदूक बंद कर दिया और तहखाने का अच्छी तरह से निरीक्षण करने लगे। निहारिका ने तन्नू से फ़िर एक बार पूछा "हमलोग क्या ढूंढ रहे हैं नवाब साहब"? तन्नू ने जवाब दिया "इस समय कंकाल से संबंधित हर उस चीज़ की तलाश कर रहे हैं जो उन्हें उस चमत्कारी खोपड़ी तक ले जाए"।
तन्नू और निहारिका ने अच्छी तरह से तहखाने में हर चीज़ की तलाशी ली ताकि उन्हें कुछ अहम सुराग़ मिल जायें जो उन्हें उस चमत्कारी खोपड़ी तक पहुँचा दें अंत में उन्हे तन्नू के अब्बू के दोस्त डॉ. ज़ाकिर की तस्वीर मिली जिसके पीछे उनका पता और फोन नंबर लिखा हुआ था। तन्नू ने अपने मन में सोचा कि "ये एक अहम सुराग़ है जो उन्हें उस चमत्कारी खोपड़ी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दे सकता है"। निहारिका और तन्नू ने तहखाने को अच्छी तरह से बंद कर दिया और ऊपर हॉल की तरफ़ आ गए जहाँ शहनाज़ पहले से उनका इंतजार कर रही थी। उसने तन्नू और निहारिका से पूछा "तुम दोनों नीचे तहखाने में क्या कर रहे थे, इतनी बड़ी हवेली छोटी पड़ गई थी क्या जो कोना ढूंढने तहखाने में पहुंच गए थे"? तन्नू और निहारिका मुस्कुराये फ़िर तन्नू ने कहा "ऐसी कोई बात नहीं है कल रात हुए एक हादसे के बाद हम लोग कुछ ढूंढने के लिए तहखाने में गए थे"।" कौन सा हादसा ", शहनाज़ ने अचंभित स्वरों में पूछा। तन्नू ने विस्तार पूर्वक सारी बातें बताई जिसे सुन शहनाज़ मारे खौफ़ के थर थर काँप रही थी लेकिन उसने सब से अपने डर को छुपाते हुए पूछा" अच्छा तो कुछ मिला क्या नीचे तहखाने में "। तन्नू ने उसे डॉ. ज़ाकिर के बारे में बताया उसने शहनाज़ को बताया कि उसे डॉ. ज़ाकिर की तस्वीर मिली है जिसके पीछे उनका लंदन का पता और फोन नंबर भी लिखा हुआ है।
"ठीक है इस नंबर पर कॉल कर के पता चल जाएगा कि उस अधगले कंकाल और खोपड़ी का राज़ क्या है, अब तुम्हारी अम्मी को दवाई देने का समय हो गया है बाद में डॉ. ज़ाकिर के बारे में पता कर लिया जायेगा, चलो ज़रा दवाई पिलाने में मदद करो", शहनाज़ ने तन्नू और निहारिका से कहा। फिर तीनों तन्नू की अम्मी के कमरे में दवाई पिलाने चले गए।
तन्नू की अम्मी को दवा देने के बाद निहारिका बावर्ची खाने में नौकरों के ऊपर नज़र रखने चली गई इधर तन्नू और शहनाज़ हॉल में चिमनी के पास बैठकर बातें कर रहे थे। शाम हो चली थी और बाहर सूरज की रोशनी फिंकी पड़ने लगी थी ठंड होने के कारण कोहरे ने भी हल्की चादर चढ़ा रखी थी। इतने में अचानक फ़ोन की घंटी बजती है तन्नू फ़ोन का रिसीवर उठाता है और अपने कानो से लगाता है फिर भारी स्वरों में कहता है "हेलो", उधर से भी आवाज़ आती है "हैलो, कौन तनवीर, मैं शहनाज़ का अब्बू बोल रहा हूँ, अब तुम्हारी अम्मी की तबीयत कैसी, कुछ सुधार हुआ उनकी हालत में" शहनाज़ के अब्बू ने तन्नू से पूछा। तन्नू ने अपनी अम्मी का हाल उन्हें बताया और फिर शहनाज़ को अपनी तरफ आने का इशारा किया थोड़ी देर शहनाज़ के अब्बू से बात करने के बाद उनसे बोला" शहनाज़ भी यहीं खड़ी है अंकल लीजिए उससे भी गुफ्तगू कर लीजिए"।
शहनाज़ ने रिसीवर तन्नू के हाँथ से लिया और अपने दायीं तरफ कान से लगा लिया और बोली "हैलो, अब्बू आप कैसे हैं", उधर से आवाज़ आई "मैं तो ठीक हूँ बेटा तुम बताओ तुम कैसी हो","मैं भी अच्छी हूँ यहाँ काफ़ी ख़ुश भी हूँ, आंटी को दवा समय से दे रही हूँ आप इस बात की चिंता न करियेगा", शहनाज़ ने अश्वासन जताते हुए कहा। "मैं जानता हूँ तुम इस मामले में काफ़ी होशियार हो, अच्छा सुनो मैं कल हैदर को भेज रहा हूँ उसके स्कूल की छुट्टियाँ भी हो गईं हैं और वो तुम्हारे पास जाने की ज़िद किए हुए है", शहनाज़ के अब्बू ने उससे कहा।" ठीक है अब्बू हम लोग यहाँ उसका अच्छी तरह से ख़याल रख लेंगे", निहारिका ने एक बार फिर अश्वासन जताते हुए कहा और गुड बाय बोलकर फ़ोन का रिसीवर नीचे रख दिया। उसने तन्नू को हैदर के बारे में बताया उसने कहा कल वो यहाँ पहुँच जाएगा। तन्नू ने भी प्रसन्नता पूर्वक कहा "चलो अच्छा है हम सबका दिल भी लगा रहेगा "।
हैदर 7 साल का था और शहनाज़ का छोटा भाई था जिसके पैदा होने के चार साल बाद उन दोनों की अम्मी का इंतकाल हो गया था जिसके बाद दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी शहनाज़ के अब्बू ने बखूबी निभाई थी। दोनों बच्चों को कभी अपनी अम्मी की कमी नहीं खली। जहाँ शहनाज़ एक सुलझी हुई सुंदर लड़की थी वहीं हैदर बहुत शरारती और हाज़िर जवाब था। उसकी शरारतों के किस्से अक्सर उसके स्कूल से सुनने को मिल जाते थे। अब तक शायद ही कोई ऐसा दिन गुज़रा हो कि हैदर की शरारतों की शिकायत उसके घर तक न पहुँची हो लेकिन पढ़ाई के मामले में हैदर अपनी क्लास में सबसे आगे था शायद यही वजह थी कि उसकी इतनी शरारतों के बावजूद उसे कभी निकाला नहीं स्कूल वालों ने।
रात काफ़ी हो चली थी निहारिका ने तन्नू और शहनाज़ को खाने के लिए बुलाया दोनों बावर्ची खाने के सामने वाले हॉल में रखी डाइनिंग टेबल पर खाने के लिए बैठ गए। खाना खाने के बाद तन्नू ने शहनाज़ को रोज़ की तरह गुड नाइट कहा और अपने कमरे में सोने चला गया थोड़ी देर बाद उसके कमरे निहारिका ने रोज़ की तरह पानी का जग और ग्लास रख दिया। तन्नू ने निहारिका को आते और पानी रख कर जाते तक नहीं देखा क्यूँकि वह उस खोपड़ी और अधगले कंकाल के बारे में सोच रहा था, वो डॉ. ज़ाकिर और उनके कंकाल से संबंध के बारे में सोच रहा था, वो सोच रहा था कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जो डॉ. ज़ाकिर अचानक ही लंदन निकल गए हो सकता है उन्हें इस ज़िंदा लाश के बारे में जानकारी हो तभी उन्होंने अचानक ही लंदन की यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का आवेदन किया हो और उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया हो। तन्नू के सोचते सोचते ही काफ़ी रात बीत गई कि तभी अचानक बड़ी ज़ोरों की आवाज़ सुनाई पड़ी "धड़ाक", जैसे कहीं किसी ने दरवाज़े पर बहुत ज़ोर से एक लात मार दी हो और दरवाज़ा खुल गया हो।
To be continued...
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