Saroj Verma

Romance

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Saroj Verma

Romance

हमसफ़र

हमसफ़र

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ये क्या चाय अभी तक रखी है तुमने पी नहीं?अब मैं दोबारा बनाकर नहीं लाऊँगीं,शिवमति बोली।।

मेरा ही काम करने में तुम्हें आफ़त आती है,सबके काम तो लोगों से बिना पूछे ही कर दोगी,गिर्वाण दत्त मिश्रा जी बोले....

हाँ....हाँ....तुम्हारे काम तो जैसे बगल वाले मरघट की चुड़ैल करने आती है,शिवमति बोली।।

जिस घर में पहले से एक खतरनाक चुड़ैल मौजूद हो तो भला दूसरी चुड़ैल कैसे कदम रखेगी,गिर्वाण जी बोले....

हाँ....हाँ...मैं तो खून पीने वाली पिसाचिनी हूँ,चुड़ैल तो छोटी होती है,शिवमति बोली।।

अच्छा....अच्छा....ये सब तुम्हारे खानदान से होगीं तभी तो तुम्हें ज्यादा पता है,गिर्वाण जी बोले....

सुनो जी! मैं अभी कहे देती हूँ,मेरे खानदान तक मत जाना,नहीं तो.....शिवमति बोली।।

नहीं तो...क्या कर लोगी तुम? गिर्वाण जी गुर्राए....

मैं ये घर छोड़कर चली जाऊँगी,शिवमति बोली।।

तो किसने रोका है तुम्हें,चली नहीं जाती घर छोड़कर,चालिस सालों से तो झेल रहा हूँ तुम्हें,सोचा था कि बच्चे अपनी अपनी जगह लग जाऐगे और मेरे नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद तुम सुधर जाओगी,लेकिन तुम नहीं बदली और ना शायद कभी बदलोगी,दिनभर वही खटर-पटर,जीना मुहाल कर रखा है मेरा,गिर्वाण जी बोले....

मैं ने जीना मुहाल कर रखा है तुम्हारा,या कि तुमने मेरा जीना मुहाल रखा है,बात बात पर तो तुम्हारा मुँह फूल जाता है,यही होता है जब कम बोलने वाले इन्सान को हँसमुँँख बीवी मिल जाती है,तो वो उसकी कदर ही नहीं करता,शिवमति बोली।।

अच्छा! तो तुम हँसमुँख हो,ये तो गज़ब की गलतफहमी पाल रखी है तुमने,गिर्वाण दत्त जी बोले।।

गलतफहमी नहीं पाल रखी है मैनें,ऐसा ही है तुम मन के घुन्ने हो,शिवमति बोली।।

तो सालों से क्यों रही हो इस घुन्ने इन्सान के साथ,गिर्वाण जी बोले।।

मजबूरी है मेरी,शिवमति बोली।।

कैसी मजबूरी? कुछ बोलोगी ,गिर्वाण जी बोले....

मैं चली जाऊँगी तो इस बुढ़ापे में तुम्हारा ख्याल कौन रखेगा?शिवमति बोली।।

मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ,बड़ी आई मेरा ख्याल रखने वाली,गिर्वाण जी बोले.....

ठीक है तो खुद रख लो अपना ख्याल,आज मैं दोपहर का खाना नहीं बनाऊँगी,मैं भी देखती हूँ कि आज तुम क्या खाते हो? और इतना कहकर शिवमति बेडरूम में जाकर लेट गई......

 दोनों पति पत्नी में हमेशा ऐसे ही नोंकझोंक चलती रहती है,बेटा अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता है वो किसी बड़ी कम्पनी में साफ्टवेयर इन्जीनियर है,बहु भी नौकरी वाली है और बेटी बनारस में रहती है,दमाद बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और बेटी इन्टीरियर डिजाइनर है,गिर्वाण दत्त जी बैंक से रिटायर्ड हो चुके हैं और अपने बनाएं हुए लखनऊ के घर में रहते हैं,दोनों बुड्ढे बुढ़िया के लिए घर बड़ा ही इसलिए एक दो किराएदार रख रखें हैं।।

दोपहर बीत चुकी लेकिन शिवमति बेडरूम से बाहर नहीं निकली,तब मिश्रा जी ने सोचा कि आज दोपहर का भोजन मिलना तो असम्भव है इसलिए खुद ही किचन में गए,फ्रिज खोलकर देखा तो थोड़ा गुथा हुआ आटा और तीन चार उबले आलू मिल गए....

धनिया मिर्च और प्याज काटकर ,आलूओं को मैस किया,थोड़ा आमचूर,थोड़ा जीरा पाउडर और नमक डालकर मसाला तैयार करके चार आलू के पराँठे सेकें,दो अपनी प्लेट में डाले और दो दूसरी प्लेट में डालकर शिवमति के दरवाजे के पास जाकर बोले.....

 अब कब तक मुँह फुलाकर बैठी रहोगी,लो खाना खा लो....

मुझे नहीं खाना,शिवमति भीतर से बोली।।

ज्यादा नखरे मत करो,चुपचाप खा लो,अभी शुगर लो हो जाएगा तो डाक्टर को बुलाना पड़ेगा,मिश्रा जी बोले।।

मैं मर भी जाऊँ,इससे तुम्हें क्या फरक पड़ता है? शिवमति बोली।।

तो किसे फर्क पड़ता है और भी कोई है क्या मेरे अलावा तुम्हारी चिन्ता करने वाला,अभी बता दो और वैसे भी तुम तो बहुत खूबसूरत हो,तुम्हारे चाहने वालों की कमी थोड़ी ही है,मिश्रा जी बोले.....

ये सुनते ही शिवमति ने दरवाजा खोला और बोली.....

राम....राम....सठिया गए हो क्या? इस उम्र में ऐसी बातें करते हो तुम्हें शरम नहीं आती,

और अपने बूढ़े पति को सताते हुए तुम्हें शरम नहीं आती,मिश्रा जी बोले....

मैं कहाँ सता रही थी तुम्हें? तुम मुझे सताते हो,शिवमति बोली।।

और किसे सताऊँगा भला,कहो तो कल से पड़ोसन को सताना शुरू कर दूँ,मिश्रा जी बोले....

मैं पड़ोसन की जान ना ले लूँगी,शिवमति बोली।।

अच्छा! उसकी जान बाद में लेना ,पहले खाना खा लो,मिश्रा जी बोले....

और फिर दोनों पल भर में अपने गिले-शिकवें भूलकर ,साथ मिलकर खाना खाने लगें.....

तो ऐसे होते हैं हमसफ़र कितना भी लड़ लें,झगड़ ले लेकिन एकदूसरे के बिना रह नहीं पाते.....


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