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Saroj Verma

Romance Tragedy

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Saroj Verma

Romance Tragedy

श्रृंगार

श्रृंगार

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"क्या जी!आप जब देखों तब कविताएं ही लिखा करतें हैं,कभी मेरा भी ख्याल कर लिया कीजिए?निगोड़ी आपकी ये कविताएं मेरी तो सौत बनी फिरतीं हैं,माया ने अपने पति लाभशंकर से कहा...

तुम्हारा ख्याल ही तो हर वक्त रहता है तभी तो मैं इतनी सुन्दर-सुन्दर कविताओं की रचना कर पाता हूँ",लाभशंकर बोलें।।

" सच कहते हो जी!" माया ने पूछा।।

" बिल्कुल सच श्रीमती जी! हमें तो आपके बिना किसी और का ख्याल आता ही नहीं,हम ठहरे रसिक व्यक्ति ,सदैव आपके प्रेम में लिप्त रहने वाले,जहाँ फूल वहाँ भँवरें का होना एक वाजिब सी बात है,इसलिए हमारे भावों को जरा समझा कीजिए, श्रीमती जी!" लाभशंकर जी बोलें।।

" जी!समझी!कविवर!" माया बोली।।

"तुम्हें याद है माया!जब हमारा ब्याह हुआ था तो तुमने अठारहवीँ पार की थी और मैनें इक्कीसवीं,घरवालों ने हमें इस रिश्ते में बाँध दिया,जब पहली बार मैनें तुम्हारा घूँघट उठाया तो तुम्हारे रूप की चकाचौंध से मेरी आँखें चौंधिया गई थी,बस उसी रात से मैं कवि बन गया और तुम मेरी कविता बन गई,जिसे हर रोज मैं लिखता हूँ लेकिन संतुष्टि ही नहीं मिलती,तुम्हारें प्रेम में उस रात से इस कद़र डूब गया हूँ कि आज तक उबरा ही नहीं,तुम ही तो मेरी इन प्रेमभरी कविताओं की प्रेरणा हो" ,लाभशंकर बोला।।

"मैं ये जानती हूंँ जी कि आप मुझे कितना अधिक प्रेम करते हैं,शादी के दस साल बाद भी मैं माँ ना बन सकी तो मुझे घरवालों के ताने ना सुनने पड़े इसलिए आप उनसे अलग करके मुझे इस शहर ले आएं,मैं धन्य हो गई आप जैसे स्वामी को पाकर" ,माया बोली।।

" हाँ!तुम्हारी बात से ध्यान आया,सुना है कि शहर में बहुत बड़ा डाँक्टर आया है,उसे बहुत ज्ञान है उसके इलाज से ना जाने कितनी माँओं की गोद हरी हो गई है" ,लाभशंकर बोले।।

"मुझे किसी के पास नहीं जाना स्वामी,इतने साल से तो इलाज करवा रही हूँ",माया बोली।।

" एक बार और कोशिश करके देख लो" ,लाभशंकर बोला।।

"आप कहते हैं तो ठीक है" ,माया बोली।।

और फिर माया का उस डाँक्टर के यहाँ इलाज चलने लगा,दो तीन महीनों बाद पता चला कि माया तो माँ बन सकती है लेकिन कमी तो लाभशंकर में ही है,जब माया को इस बात का पता चला तो उसने डाँक्टर से ये बात बताने को मना किया,लेकिन इलाज के बहाने वो डाँक्टर के पास निरन्तर जाती रही ताकि लाभशंकर को कोई शक़ ना हो,

     डाँक्टर अभिमन्यु अभी जवान था साथ में सुन्दर और कँवारा,उसे माया के रूप ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया था इसलिए वो माया से नजदीकियांँ बढ़ाने लगा,माया भी खुद को अकेला महसूस करती थी क्योंकि लाभशंकर के पास कविताएं लिखने का तो समय था लेकिन माया के लिए समय नहीं,माया इस बात से भी ब्यथित थी कि लाभशंकर में खामियांँ हैं और बाँझपन का दाग उस पर लगा हुआ है,डाँक्टर यहाँ पर दीपक का कार्य कर रहा था और माया पतंगा बनकर उसके भ्रमजाल में फँसी जाती थी,लेकिन प्रेम की प्यासी प्रेयसी भला अपने आपको कब तक रोकती?आखिरकार वो अभिमन्यु के प्रेमजाल में पूरी तरह से फँस ही गई.....

    अब तो माया का ज्यादातर समय डाँक्टर के पास ही बीतता ,वो अब लाभशंकर का ध्यान रखना भूलने लगी,उसका ध्यान ना घर की सफाई पर रहता और ना ही गृहस्थी के किसी भी काम पर,वो अक्सर खाना बनाना भी भूल जाती और लाभशंकर सोचता कि बेचारी परेशान है इसलिए मुझ पर ध्यान नहीं दे पाती....

      एक दिन लाभशंकर माया को ढूढ़ते हुए अभिमन्यु के क्लीनिक जा पहुँचा और उसने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया,अब लाभशंकर को काटो तो खून नहीं,वो उस समय कुछ नहीं बोला और चुपचाप घर आ गया,उसके पीछे पीछे माया भी घर पहुँची,माया को देखकर लाभशंकर बोला....

    "चली जाओ यहाँ से,अब तुम मेरी कविता नहीं रही और ना मैं तुम्हारा कवि।।"

" मेरी बात तो सुनो," माया बोली।।

"अब मुझे कुछ नहीं सुनना,आज मैनें सब देख लिया" ,लाभशंकर बोला।।

"लेकिन मुझे भी तो अपनी सफाई पेश करने का मौका मिलना चाहिए",माया बोली।।

  "तुम कुल्टा हो और एक कुल्टा को मैं अपने जीवन में स्थान नहीं दे सकता" ,लाभशंकर बोला।।

"मुझे कुल्टा बनने पर तुमने मजबूर किया,सच तो ये हैं कि कमी तुम में हैं और बाँझ का कलंक सालों से अपने माथे पर लगाएं मैं घूम रही हूँ",माया ने ना चाहते हुए वो कटुसत्य बोल दिया।।

ये सुनकर लाभशंकर के पैरों तले जमीन खिसक गई और वो बोला.....

   "तो तुमने ये पहले क्यों नहीं बताया? तुम्हें बेकार में मेरे नाम का श्रृंगार अपने शरीर पर नहीं लादना पड़ता,तुम क्यों ये बोझ ढोओगीं? मैं तुम्हें अपने नाम के श्रृंगार से मुक्त करता हूँ,तुम अपने लिए नया श्रृंगार ढूढ़ सकती हो,मुझे क्षमा करना जो सालों तक तुम्हें इतना कष्ट देता आया" ,लाभशंकर बोला।।

    लाभशंकर ने इतना कहा और वो अचेत होकर धरती पर गिर पड़ा,डाँक्टर को बुलाया गया तो उसने कहा इन्हें दिल का दौरा पड़ा था और अब वें इस दुनिया में नहीं रहें.....

    लाभशंकर की मौत से माया को कोई दुःख नहीं हुआ और वो लाभशंकर की सम्पत्ति की अब अकेली मालकिन बन चुकी थी,वो स्वतन्त्र थी और स्वच्छंद जीवन यापन करने लगी,उसने अभिमन्यु से विवाह करने का फैसला भी कर लिया था लेकिन कुछ समय बाद ,क्योंकि वो सोच रही थी कि अगर उसने इतनी जल्दी ब्याह कर लिया तो जमाना क्या कहेगा?

    लाभशंकर की मृत्यु को अभी तीन महीने ही बीते थे कि माया के घर में लाभशंकर के एक पुराने मित्र पधारें और उन्होंने माया को एक पैकेट पकड़ाया और बोलें कि इसे खोलें....

माया ने पैकेट खोला तो वो एक किताब थी जिसके कवरपृष्ठ पर श्रृंगार लिखा था और दूसरे पृष्ठ पर लिखा था....

ये किताब मेरी पत्नी को समर्पित है,

श्रृंगार रस से भरी इन कविताओं

की वो ही प्रेरणास्रोत है...

वो मेरा प्रेम है और मैं उसका श्रृंगार हूँ.....

 

माया ये पढ़कर रो पड़ी और फिर उसने जीवन भर श्रृंगारविहीन जीवन जिया,फिर वो अभिमन्यु से ब्याह ना कर सकी....

समाप्त.....



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